KIC 8462852 का व्यवहार विचित्र क्यों है ? क्या यह धुल, ग्रहो के मलबे से है या एलियन सभ्यता के कारण ?

KIC 8462852 : एलीयन सभ्यता ? रहस्य और गहराया!


KIC 8462852 का व्यवहार विचित्र क्यों है ? क्या यह धुल, ग्रहो के मलबे से है या एलियन सभ्यता के कारण ?
KIC 8462852 का व्यवहार विचित्र क्यों है ? क्या यह धुल, ग्रहो के मलबे से है या एलियन सभ्यता के कारण ?

अक्टूबर मे हमने एक लेख मे एक विचित्र तारे KIC 8462852 से उत्सर्जित प्रकाश मे आने वाली विचित्र कमी के बारे मे चर्चा की थी। इस तारे के प्रकाश मे आने वाली कमी का एक संभावित कारण किसी एलियन सभ्यता द्वारा विशाल डायसन गोले का निर्माण भी था।
अब इस तारे से संबधित कुछ और विचित्रतायें का पता चला है।

इस तारे को अब टैबी के तारे(Tabby’s Star) के नाम से भी जाना जाता है। यह नाम टेबेथा बोयाजिअन(Tabetha Boyajian) के नाम पर है जो कि इस तारे की विचित्रता को पता लगाने वाली वैज्ञानिको की टीम की प्रमुख है। इस तारे को पिछले वर्ष समाचार माध्यमो मे प्रमुखता दी थी क्योंकि इस तारे का व्यवहार विचित्र है। केप्लर अंतरिक्ष वेधशाला द्वारा इस तारे के निरीक्षण मे पता चला था कि इस तारे के प्रकाश मे अनियमित अंतराल पर कमी आती है। इसमे प्रकाश मे आने वाली कुछ कमीयाँ तो 22% तक होती है जोकि सबसे विचित्र है।

प्रकाश मे आने वाली यह कमी अत्याधिक है। यह कमी किसी ग्रह के तारे के सामने से गुजरने पर होने वाले संक्रमण के द्वारा नही हो सकती है क्योंकि यह नियमित अंतराल पर नही होती है तथा प्रकाश मे कमी की मात्रा हर बार भिन्न होती है। साथ मे बृहस्पति के आकार का विशाल ग्रह भी किसी तारे के प्रकाश का अधिकतम एक प्रतिशत भाग ही कम कर सकता है। बृहस्पति किसी ग्रह के आकार की अधिकतम सीमा पर है, इससे विशाल ग्रह नही हो सकते है।

बोयाजिआन के मूल शोधपत्र मे लेखको ने यह सुनिश्चित कर दिया था कि इस तारे के निरीक्षण के आंकड़ो मे कोई गलती नही है ना ही उनके विश्लेषण मे कोई गड़बड़ी है। जो भी कुछ देखा गया है वह वास्तविक है। उन्होने तारे के इस विचित्र व्यवहार के पीछे कुछ संभव अवधारणाओ पर भी विचार किया। उनके अनुसार इस विचित्र व्यवहार के पीछे उस तारे के सामने से धूमकेतुओं के विशाल झुंड का गुजरना था जोकि आपस मे टकराकर विशालकाय मलबा निर्मित करते है और तारे के प्रकाश को रोक देते है। लेकिन इस अवधारणा मे भी अनेक कमीयाँ है।

डायसन गोला (महाकाय सौर पैनलो का एक विशाल जाल)
डायसन गोला (महाकाय सौर पैनलो का एक विशाल जाल)

एक अन्य संभावना के अनुसार यह प्रभाव किसी एलीयन सभ्यता के द्वारा निर्मित हो सकता है। इसकी संभावना न्यूनतम है लेकिन असंभव नही है और यह संभावना हमारे निरीक्षणो पर खरी उतर रही है। किसी अत्यंत विकसीत सभ्यता की ऊर्जा आवश्यकतायें अत्याधिक हो सकती है और वे किसी तारे के चारो ओर सौर पैनल का विशालकाय ढांचा बनाकर तारे के प्रकाश का प्रयोग कर सकते है। इस तारे के प्रकाश मे आने वाली यह कमी उस तारे के सामने से इस विशालकाय ढांचे के गुजरने से उत्पन्न हो सकती है। इस तरह के सौर पैनलो के विशालकाय ढांचे को डायसन गोला कहा जाता है।

ये खोज होने के बाद इस तारे की ओर परग्रही संकेतो को पकड़ने के प्रयास किया गया लेकिन नतीजा शून्य रहा। इसमे आश्चर्य की कोई बात नही है क्योंकि हमारे पास परग्रही संकेतो को पकड़ने का कोई विश्वसनिय जांचा परखा तरिका नही है।

लेकिन यह तय है कि यह तारा विचित्र है और ताजा जानकारीयों ने इस विचित्रता मे और बड़ोत्तरी की है।

ब्रैडली स्काफ़र(Bradley Schaefer) जो कि लुसियाना स्टेट विश्वविद्यालय (Lousiana State University) मे खगोलवैज्ञानिक है अय्र वे खगोल विज्ञान के रहस्यो को सुलझाने मे अपरंपरागत तरिको के लिये जाने जाते है। ब्रेडली ने टैबी के तारे के बारे मे सोचा कि इस तारे के भूतकाल मे किये गये निरीक्षणो से इस विचित्रता के बारे मे कोई संकेत मिल सकता है।

उन्होने पाया कि टैबी के तारे की 1890-1989 के दौरान संपूर्ण आकाश के निरीक्षण के लिये लगभग 1200 बार तस्वीरें ली गयी थी। दो भिन्न विधियों से ब्रेडली ने इस 1200 तस्वीरो का विश्लेषण किया और उसके प्रकाश की मात्रा की गाणना की।

उन्होने जो पाया वह आश्चर्य मे डालने वाला था। इस तारे के प्रकाश मे पिछली एक सदी मे 20% की कमी आयी है।

टैबी का तारा समय के साथ धूंधला हो रहा है। नीले बिंदु 1890 से 1989 तक के इस तारे की चमक के आंकड़े दर्शा रहे है। मोटी रेखा इन आंकड़ो का औसत है। जबकि डाटेड रेखा निरीक्षण के आरंभीक तथा अंत बिंदु को को दर्शा रही है। धूंधले भूरे बिंदु दो अन्य तारो की चमक को दर्शा रहे है जिनकी चमक समय के साथ लगभग स्थिर है।
टैबी का तारा समय के साथ धूंधला हो रहा है। नीले बिंदु 1890 से 1989 तक के इस तारे की चमक के आंकड़े दर्शा रहे है। मोटी रेखा इन आंकड़ो का औसत है। जबकि डाटेड रेखा निरीक्षण के आरंभीक तथा अंत बिंदु को को दर्शा रही है। धूंधले भूरे बिंदु दो अन्य तारो की चमक को दर्शा रहे है जिनकी चमक समय के साथ लगभग स्थिर है।

यह और भी विचित्र है। टैबी का तारा एक सामान्य F श्रेणी का तारा है, जो कि हमारे सूर्य से उष्ण, थोड़ा अधिक द्रव्यमान रखने वाला और थोड़ा बड़ा तरा है। इस तरह के तारे हायड्रोजन के संलयन से हिलियम बनाते रहते है, उनके प्रकाश मे कोई परिवर्तन नही होता है। यदि परिवर्तन हो भी तो लाखो वर्षो मे होता है, ना कि एक शताब्दि मे। ब्रेडली ने इस सर्वे मे इसी श्रेणी के दो अन्य तारों के प्रकाश का अध्ययन किया और पाया कि इस दौरान पीछली एक सदी उनका प्रकाश स्थिर तथा अपरिवर्तित था।

पिछली एक सदी मे टैबी के तारे के प्रकाश मे आने वाली भी स्थिर नही है। ऐसा कई बार हुआ है कि इस तारे के प्रकाश मे कमी आयी है लेकिन अगले कुछ वर्षो मे चमक वापिस आ गयी है। औसतन इस तारे के प्रकाश मे आने वाली कमी 16% प्रति शताब्दी है , लेकिन निरंतर नही है।

इससे यह लगता है कि टैबी के तारे के प्रकाश मे कमी और बढोत्तरी समय के हर पैमाने पर हो रही है, घंटो मे, दिनो मे, सप्ताहो मे, दशको और शताब्दी मे भी!

यह विचित्र है, ऐसा पहले कभी नही देखा गया है।

तो इस विचित्र व्यवहार का कारण क्या है। सबसे सरल व्याख्या ही सबसे अच्छा प्रारंभिक बिंदु होता है और इस मामले मे भी यही मानकर चलना चाहिये कि इन सब के पीछे कोई एक अकेला कारण है। ब्रेडली ने यह पाया कि इस विचित्र व्यवहार के पीछे धूमकेतुओं का झुंड नही हो सकता है। धुमकेतुओं के झुंड से थोड़े समय के लिये प्रकाश मे आनेवाली कमी को माना जा सकता है लेकिन लंबे समय मे आने वाली कमी को नही। धूमकेतुओं से होने वाली प्रकाश की कमी के लिये उनका बड़ी संख्या मे होना चाहिये और उनका विशाल आकार का होना चाहिये , साथ ही उनके मध्य टकराव से मलबे का निर्माण होना चाहिये।

धुमकेतुओं से ये सब संभव नही है, इसलिये इस संभावना मे दम नही है।

एन्सेंट एलीयन वाले नमूने विशेषज्ञ
एन्सेंट एलीयन वाले नमूने विशेषज्ञ

मै सबसे पहले स्पष्ट कर दूं कि मै यह नही कह रहा कि इस तारे पर एलीयन है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि इस तरह का व्यवहार डायसन गोले के निर्माण की प्रक्रिया से संभव भी है। जैसे जैसे एलीयन सभ्यता नये सौर पैनल का निर्माण कर डायसन गोले मे डालती जायेगी, प्रकाश मे कमी अधिक होते जायेगी। दूर के किसी निरीक्षक को यह कमी समय के साथ दिखायी देते जायेगी।

लेकिन यह भी दूर की कौड़ी लग रहा है। उदाहर्ण के लिये 1910 के दशक मे प्रकाश मे कमी आयी, लेकिन अगले कुछ वर्षो मे प्रकाश की चमक अपने पुराने स्तर पर आ गयी। ऐसा क्यों ? साथ ही प्रकाश मे पिछली सदी से कमी आ रही है अर्थात वे पिछली सदी मे सौर पैनल का निर्माण कर डायसन गोले मे डाल रहे है। इस तारे का व्यास सूर्य से 1.6 गुणा है। इस तारे के प्रकाश मे 20 प्रतिशत की कमी लाने के लिये सौर पैनलो का सम्मिलित क्षेत्रफल 750 अरब वर्ग किमी चाहीये होगा।

750 अरब वर्ग किमी अर्थात पृथ्वी के क्षेत्रफल का 1500 गुणा!

पृथ्वी से निरीक्षित प्रकाश मे आनेवाली कमी के लिये उन सौर पैनलो को पृथ्वी और उस तारे के मध्य मे भी होना चाहिये। ऐसी स्थिति डायसन गोले तथा डायसन वलय से संभव है। जिसका अर्थ है कि उन सौर पैनलो वास्तविक क्षेत्रफल और भी अधिक होगा। डायसन वलय के लिये वह कई खरब वर्ग किमी होगा तथा डायसन गोले के लिये इसका भी कई गुना।

इस तरह की परियोजना बहुत लंबे समय तक चलेगी।

इसलिये एलीयन सभ्यता दवारा यह संभव नही लग रहा है। लेकिन इस तारे के विचित्र व्यवहार के पीछे जो भी कुछ भी है वह हमने अब तक नही देखा है।

लेकिन इतना तय है इस रहस्य को सुलझाने के लिये हमे इस तारे पर और नजर रखनी होगी। कोई एक ऐसी बात जिसे वैज्ञानिक पसंद करते है, वह है रहस्यो को सुलझाना, और इस तारे ने वह चुनौती दी है।

14 विचार “KIC 8462852 : एलीयन सभ्यता ? रहस्य और गहराया!&rdquo पर;

  1. i think its not possible,if there is existing far developing civilization ,why they don’t sending any message for us as we are trying to find them,universe is uniform,curiosity exists in every being who can think,and if they exists ,however we can’t reach to them,bcz we can’t break the walls of time and space.

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  2. sir hame ye kaise pata chala ki har chiz ka ek vipreet bhi hota hai jabki hamare pas koi anti matter nahi hai
    yadi thoda ho bhi to ye kis aadhar par kaha jata hai ki sari hi chizo ka anti hota hai,aakhir kyu.
    yadi ye bhi maan le to fir energy ek hi kyu hoti hai energy or anti energy kyu nahi hoti.
    pla answer in details…

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  3. Sir, saayad is tare ka prakash jb earth par aata hai tab usko koi black hole khich leta hoga or jo prakash black hole se bach jata hai vo hamari earth tak pahuchata hoga.
    jab black hole ki jagah change hoti hogi to uske dvara prakash ko khichana kam ya jyada hota hoga jiske karan us taare ke prakash me aaniyamit aantaraal me kami aati hogi

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  4. sir
    ek scientific site se pata chala hai ki prithvi ki ghoornan gati aur parikraman gati ke alawa ek aur gati hoti hai..
    yah gati aisi hoti hai jaise kisi ghoomte hue lattu ki in dono gatiyon ke alawa ek gati me lattu ki central axis ki lakdi ka upri sira bhi ek parikrama lagata hai..
    thik isi tarah prithvi ka axis bhi ghumta hai jiski wajah se har 2000 saal me dharti ka ya keh sakte hai ki hamara aasmaan even hamara dhruv tara bhi badal jata hai.
    kya ye baat sahi hai kya real me prithvi ki teen gati hoti hai.

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    1. यह सही जानकारी है इस गति को अयन गति कहते है। पृथ्वी का घूर्णन अक्ष लगभग 36000 वर्ष में इस गति के फलस्वरूप एक चक्कर लगता है। इस के कारन ध्रुव तारा भी बदलते रहता है।

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      1. क्या इसका मतलब ये है कि हमारी धरती पे हर 36000 वर्षों में दिशा बदल जाती हैं क्युकी तारे तो बहुत ज्यादा सालो में अपनी आकाशगंगा का चक्कर लगाते है तो उनकी दिशा तो इतनी जल्दी बदल नहीं पाती होगी ना।

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और सीमान्त गाँधी में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।

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