
खगोल शास्त्रियों को शुक्र ग्रह के वायुमंडल में एक गैस मिली है, जो वहां जीवन होने का संकेत दे रही है। संभावना जताई गई है कि हो सकता है शुक्र ग्रह के बादलों में सूक्ष्म जीव तैर रहे हैं।
उस गैस का नाम है फॉस्फीन – अणु जो एक फास्फोरस के कण और तीन हाइड्रोजन के कणों से मिलकर बना है। धरती पर फॉस्फीन का संबंध जीवन से है। ये पेंगुइन जैसे जानवरों के पेट में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों से जुड़ा है या दलदल जैसी कम ऑक्सीजन वाली जगहों पर पाया जाता है। इस गैस को माइक्रो बैक्टीरिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में उत्सर्जित करते हैं।
फॉस्फीन को कारखानों में भी बनाया जा सकता है, लेकिन शुक्र ग्रह पर तो कारखाने है ही नहीं; और निश्चित रूप से वहां कोई पेंगुइन भी नहीं हैं। तो शुक्र ग्रह पर ये गैस क्यों है और वो भी ग्रह की सतह से 50 किमी ऊपर? ब्रिटेन की कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेन ग्रीव्स और उनके सहकर्मियों का बस यही प्रश्न है।

उन्होंने नेचर एस्ट्रोनॉमी नाम के जर्नल में एक शोधपत्र प्रकाशित किया है, जिसमें उन्होंने शुक्र पर फॉस्फीन मिलने के अपने निरीक्षण को विस्तार से लिखा है। साथ ही अपनी जांच के बारे में लिखा है जिसमें उन्होंने ये बताने की कोशिश की है कि ये अणु किसी प्राकृतिक, अजैविक(नॉन बायोलॉजिकल) प्रक्रिया से बना हो सकता है।
हालांकि वैज्ञानिकों की टीम ने शुक्र पर जीवन मिलने का दावा नहीं किया है, बल्कि कहा है कि इस संभावना के बारे में और पता लगाया जाना चाहिए।
कैसे मिली जीवन का संकेत देने वाली गैस
कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेन ग्रीव्स और उनके साथियों ने हवाई के मौना केआ ऑब्जरवेटरी में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल टेलीस्कोप और चिली में स्थित अटाकामा लार्ज मिलिमीटर ऐरी टेलिस्कोप की मदद से शुक्र ग्रह पर नज़र रखी।
इससे उन्हें फॉस्फीन के वर्णक्रम हस्ताक्षर (स्पेक्ट्रल सिग्नेचर) का पता लगा। जिसके बाद वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि शुक्र ग्रह के बादलों में यह गैस बहुत बड़ी मात्रा में है।
शुक्र ग्रह के बारे में अब तक हमारे पास जो भी जानकारी है और वहां जो स्थितियां हैं, उसे देखते हुए फॉस्फीन की जितनी मात्रा वहां मिली है, उससे अभी तक कोई भी फॉस्फीन के अजैविक प्रक्रिया का पता नहीं लगा पाया है। इसका मतलब कि वहां जीवन की संभावना पर विचार किया जा सकता है।
प्रोफेसर जेन ग्रीव्स ने कहा,
“अपने पूरे करियर में मेरी ब्रम्हांड में कहीं भी जीवन खोजने में रूची रही है। इसलिए मुझे इस संभावना के बारे में ही सोचकर अच्छा लग रहा है।”
यह महत्वपूर्ण क्यों है ?
पड़ोसी ग्रह शुक्र पर जीवन की संभावना सौरमंडल के दूसरे किसी भी ग्रह से कम मानी जाती है। शुक्र पर वायुमंडल की मोटी परत है, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता है। यहां के वातावरण में 96% कार्बन डाइऑक्साइड है। इस ग्रह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी के मुक़ाबले 90 गुणा ज़्यादा है। सतह का तापमान किसी किसी भट्टी की तरह 400 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा है। इसलिए अगर आपने शुक्र ग्रह पर पैर रखा तो कुछ ही सेकेंड में आप उबलने लगेंगे। इसलिए अगर शुक्र पर जीवन होता भी है तो वो हम 50 किलोमीटर ऊपर मिलने की ही उम्मीद कर सकते हैं।
जीवन होने की संभावना कम क्यों हैं?
बादलों की वजह से। वहां घने बादल हैं, जिनमें 75-95% गंधकाम्ल (सल्फ्यूरिक एसिड) है, जो उन जैविक कोशिकीय संरचनाओं के लिए घातक हैं जिससे पृथ्वी पर रहने वाले जीव बने हैं।
हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर वहां सूक्ष्म जीव हैं तो उन्हें सल्फ्यूरिक एसिड से बचने के लिए किसी तरह का कवच बनाना होगा।
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से जुड़े डॉ विलियम बैंस कहते हैं,
“हम एक ऐसे बैक्टीरिया की बात कर रहे हैं जिसने अपने आस-पास टेफ्लान से भी मज़बूत कवच बना लिया है और खुद को उसको अंदर एकदम सील कर लिया है। लेकिन फिर वो खाते कैसे हैं? वो गैस उत्सर्जन/अवशोषण कैसे करते हैं? ये विरोधाभासी है।”
शुक्र पर जीवन है या नहीं इस सवाल का जवाब जानने के लिए वहां किसी को भेजना होगा। अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने वैज्ञानिकों से कहा है कि वो 2030 के दशक में एक संभावित अभियान भेजने की योजना पर काम करें। इस तरह के अभियान नासा की ओर से भेजे गए सबसे सक्षम और सबसे महंगे अभियान होते हैं। इस मामले में एक उपकरणो से सज्जित गुब्बारा भेजने पर विचार किया जा रहा है, जो शुक्र के बादलों के बीच से गुज़रेगा।
टीम की सदस्य सारा सेगर ने कहा कि रूस ने 1985 में अपना वेगा बलून भेजा था। जिसे सल्फ्यूरिक एसिड से बचाने के लिए आस-पास टेफ्लान लगा दिया गया था। वो कहती हैं,
“हम वहां बिल्कुल जा सकते हैं और बूंदों को जमा करके उनका अध्ययन कर सकते हैं। इसके साथ ही हम एक माइक्रोस्कोप भी ले जा सकते हैं, जिससे वहां जीवन को देखने की कोशिश कर सकते हैं।”
वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय से डॉ लुईस डार्टनेल उम्मीद जताते हुए कहते हैं,
“अगर शुक्र के ऊपरी बादलों पर जीवन मिलता है तो इससे हमें कई चीज़ों को समझने में मदद मिलेगी। क्योंकि इसका मतलब हो सकता है कि हमारी आकाशगंगा में कई जगह जीवन हो सकता है। ऐसा हुआ तो शायद हो सकता है कि जीवन के लिए पृथ्वी जैसा ग्रह होना ज़रूरी नहीं है। बल्कि वो हमारी आकाशगंगा में शुक्र जैसे बेहद गर्म ग्रहों पर भी पाया जा सकता है।”
स्रोत : 1 :बीबीसी हिन्दी
2: https://in.reuters.com/article/uk-space-exploration-venus/potential-sign-of-alien-life-detected-on-inhospitable-venus-idUKKBN2652HG