
सूर्य प्रभांमडल(कॅरोना) का अध्ययन एवं धरती पर इलेक्ट्रॉनिक संचार में व्यवधान पैदा करने वाली सौर-लपटों की जानकारी हासिल करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आदित्य-1 उपग्रह छोड़ेगा। इसका प्रक्षेपण वर्ष 2012-13 में होना था मगर अब इसरो ने इसका नया प्रक्षेपण कार्यक्रम तैयार किया है। इसरो अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने कहा है कि अब आदित्य-1 का प्रक्षेपण वर्ष 2017 के बाद (2017-20 के दौरान) किया जाएगा।
इसरो के सूत्रों के अनुसार आदित्य-1 के नए प्रक्षेपण कार्यक्रम से वैज्ञानिकों को “सौर मैक्सिमा” के अध्ययन का मौका मिल जाएगा। “सौर मैक्सिमा” एक ऎसी खगोलीय घटना है जो 11 वर्ष बाद घटित होती है। पिछली बार सौर मैक्सिमा 2012 में हुई थी। इस दौरान सूर्य की सतह से असामान्य सौर लपटें उठती हैं, सौर कलंको की संख्या मे बढ़ोत्तरी होती है और उनका धरती के मौसम पर व्यापक असर होता है। इसे देखते हुए इसरो ने न सिर्फ नया प्रक्षेपण कार्यक्रम तय किया बल्कि आदित्य-1 की प्रक्षेपण योजना में थोड़ा बदलाव भी किया है। इसरो अध्यक्ष के अनुसार अब आदित्य-1 को हेलो (सूर्य का प्रभामंडल) आर्बिट में एल-1 लग्रांज बिंदु के आसपास स्थापित किया जाएगा। इस कक्षा में आदित्य-1 सूर्य पर लगातार नजर रख सकेगा और सूर्य ग्रहण के समय भी वह उपग्रह से ओझल नहीं होगा।
लग्रांज बिंदु पर रहेगा आदित्य-1

सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक एक सरल रेखा खींचने पर जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं, वह लग्रांज बिंदु कहलाता है। सूर्य का गुरूत्वाकर्षण बल पृथ्वी की तुलना मे काफी अधिक है इसलिए अगर कोई वस्तु इस रेखा के बीचोंबीच रखी जाए तो वह सूर्य के गुरूत्वाकर्षण से उसमें समा जाएगी। लग्रांज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल समान रूप से लगने से दोनों का प्रभाव बराबर हो जाता है। इस स्थिति में वस्तु को ना तो सूर्य अपनी ओर खींच पाएगा, ना पृथ्वी अपनी ओर खींच सकेगी और वस्तु अधर में लटकी रहेगी। लग्रांज बिंदु को एल-1, एल-2, एल-3, एल-4 और एल-5 से निरूपित किया जाता है। इसरो धरती से 8 00 किलोमीटर ऊपर एल-1 लग्रांज बिंदु के आसपास आदित्य-1 को स्थापित क रना चाहता है। इसरो की नई योजना के मुताबिक 200 किलोग्राम वजनी आदित्य-1 को पीएसएलवी (एक्सएल) से प्रक्षेपित किया जाएगा।
सौर-लपटों के असर का होगा अध्ययन

आदित्य-1 देश का पहला सौर कॅरोनोग्राफ उपग्रह होगा। यह उपग्रह सौर कॅरोना के अत्यधिक गर्म होने, सौर हवाओं की गति बढ़ने तथा कॅरोनल मास इंजेक्शंस (सीएमईएस) से जुड़ी भौतिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करेगा। यह उपग्रह सौर लपटों के कारण धरती के मौसम पर पड़ने वाले प्रभावों और इलेक्ट्रॉनिक संचार में पड़ने वाली बाधाओं का भी अध्ययन करेगा। आदित्य-1 से प्राप्त आंकड़ों और अध्ययनों से इसरो भविष्य में सौर लपटों से अपने उपग्रहों की रक्षा कर सकेगा। इसरो ने इसके लिए कुछ उपकरणों का चयन भी किया है जो आदित्य-1 के पे-लोड होंगे। इनमें “विजिबल एमिशन लाइन कॅरोनोग्राफ (वीईएलसी)” सोलर अल्ट्रवॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप, प्लाजमा एनालाइजर पैकेज, आदित्य सोलर विंड एक्सपेरिमेंट, सोलर एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और हाई एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर शामिल हैं।
नोट : लग्रांज बिंदू
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L4 – Lagrangian Point(पृथ्वी और चंद्रमा के संदर्भ मे) एल-1 : यह बिंदू दो भारी पिंड M1 तथा M1 के केंद्रो को जोड़ने वाली रेखा पर तथा दोनो के बीच मे होता है। इस बिंदु पर M2 पिंड का गुरुत्वाकर्षण M1 पिंड के गुरुत्वाकर्षण को आंशिक रूप से निष्प्रभावी कर देता है।
- एल-2 : यह बिंदू दो भारी पिंड M1 तथा M1 के केंद्रो को जोड़ने वाली रेखा पर तथा दोनो पिंडो मे से हल्के पिंड के पश्चात होता है। इस बिंदू पर दोनो पिंडो का गुरुत्वाकर्षण बल अपकेंद्री बल (centrifugal force) के प्रभाव को संतुलित कर लेता है।
- एल-3 : यह बिंदू दो भारी पिंड M1 तथा M1 के केंद्रो को जोड़ने वाली रेखा पर दोनो पिंडो मे से बड़े पिंड के पश्चात होता है।
- एल-4 तथा एल-5: ये दोनो बिंदू दोनो पिंडो मे से छोटे पिंड द्वारा बड़े पिंड की परिक्रमा के प्रतल मे दो समबाहु त्रिभूज के तिसरे बिंदू पर होते है। इस त्रिभूज का आधार दोनो पिंडो के केंद्र को जोड़ने वाली रेखा पर इस तरह से होता है कि दोनो पिंडो मे से कम द्रव्यमान का पिंड एल-5 के पीछे या एल-4 से आगे होता है।
Which energy will used by aaditya-01 when it will in space
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सौर ऊर्जा।
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sir india is sending some probe and nasa ,japan,china also sending probes so sir is it some type of ego problem if they work together the unsolved questions of universe can be solved soon so sir why they don’t do this like first nasa have sent many moon mission and still sending and isro also sent it to moon again what is this and sir is there is any way to produce cheep and green energy for atleast 1000 years .how you see this problem.please answer?
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इन सभी अनुसंधानो के सैन्य, राजनितिक और आर्थिक हित भी होते है, कोई भी देश इन हितो को अन्य देश से बांटना नही चाहता है। आप सही है कि मानवता और ज्ञान के लिये सभी देशो को एक साथ आना चाहिये लेकिन वर्तमान वैश्विक परिदृश्य मे यह संभव नही लगता है।
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ऊपर के कुछ पाठको को हिंदी मे लिखना सीख लेना चाहिए
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सर अगर तृतीय विश्वयुद्ध हो और धरती पर मौजूद सारे परमाणु बम प्रयोग कर दिया जाय तो इसका धरती पर क्या असर होगा? क्या मनुष्य का अस्तिव और जीवन योग्य जलवायु बची रहेगी
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सारे परमाणु बम! आधे ही प्रयोग हो जाए तो सारा जीवन मनुष्य प्राणी वनस्पति सब नष्ट हो जायेगी। हजारो वर्ष तक कुछ नहीं होगा।
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सारे परमाणु बमो को नष्ट कर देना चाहिये ये तो खुदकुशी करने जैसा है सारे परमाणु सम्पंन राष्ट्रो को समझना चाहिये मै चाहुंगा भारत पहले ऐसा करे तो अच्छा होगा
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sir L1 at 800 km above earth is it not too low from where normal satelites is .or is it some type of error sir please tell the exact value of L1…….,L5. by the way your blog is so much knowledgeble great work ashish sir.
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Sir kya aaditya1 success hoga…
Kya sun ke sameep hone par us par temperature ka koi effect nahi hoga…
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आदित्य पर सूर्य की ऊष्मा झेलने के लिए विशेष परत लगाई जायेगी।
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मुझे बचपन से ही अंतरिक्ष के बिषय में जाननें की बहुत अभिलाशा थी, जो आपके परिश्रम से पूर्णं हुई!
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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Sir, according to big bang theory ,many many years ago the univers was just a little particle but we know the weight of earth was same, so my question is how can a very smll particle gain lot of weight. I mean is there no boundation of weight respect to its enclosed space.
Please reply as early as possible.
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मयंक , इस वेब साइट में हिग्स बोसान पर कुछ लेख है। उन्हें देखो उत्तर मिल जायेगा। द्रव्यमान और ऊर्जा एक ही है, जिसे हम द्रव्यमान समझते है वह हिग्स बोसान द्वारा उत्पन्न प्रभाव है। हिग्स बोसान बिग बैंग के बाद बना है।
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सर,
क्या हिग्स से छोटा कण ढुंढा गया है ?
कणों के घटते क्रम ‘ अणु > परमाणु > नाभिक (epn) > क्वार्क > हिग्स ‘
क्या ये क्रम सही है ?
ग्रेविटान , फोटॉन के क्या आकार हैं ?
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फोटान , हिग्स बोसान, ग्रेविटान, बल वाहक कण है, इनका आकार नही होता है। इन्हे इनकी वेवलेंथ (तरंग दैधर्य) से मापा जाता है जोकि ऊर्जा के अनुरुप कम ज्यादा हो सकती है।
क्वार्क सबसे छोटा कण है।
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Bahut hi achha lekh hai.
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Nice
Sir,sore maxima kis karan hoti h or isse prithavi par kya prabhav padata h.kya isse jyada hani hotih? Kya iske karan ozone me bhi kuch prabhav hota h?
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सूर्य के चुंबकीय ध्रुव हर 11 वर्ष मे पलट जाते है। इस समय सौर सक्रियता दिखाने वाले कलंक औअपने चरम पर होते हैं। सूर्य के धब्बों का एक पूरा चक्र 22 वर्षों का होता है। पहले 11 वर्षों तक यह कलंक बढ़ता है और बाद के 11 वर्षों तक यह कलंक घटता है। जब सूर्य की सतह पर कलंक दिखलाई देता है, उस समय पृथ्वी पर चुम्बकीय झंझावत उत्पन्न होते हैं।
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