
चिकित्सा के क्षेत्र में इस साल का नोबेल पुरस्कार पैरासाइट यानी परजीवी से होने वाले संक्रमण से लड़ने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले तीन वैज्ञानिकों को देने की घोषणा की गई है।
इन तीन वैज्ञानिकों में चीन की यूयू तू(Tu Youyou) ने मलेरिया के इलाज की नई थेरेपी में अहम योगदान दिया है जबकि आयरलैंड में जन्मे विलियम सी कैम्पबेल(William Campbell) और जापान में जन्मे सातोशी ओमूरा(Satoshi Omura) को गोल कृमि (राउन्ड वर्म पैरासइट्स) से होने वाले संक्रमण की नई दवा बनाने के लिए के लिए नोबेल पुरस्कार मिलेगा।
स्वीडन के कारोलिन्स्का इंस्टिट्यूट स्थित नोबेल असेम्बली ने बताया कि कैम्पबेल और ओमुरा को ‘राउंडवर्म परजीवियों द्वारा होने वाले संक्रमण का इलाज खोजने को लेकर’ आधी पुरस्कार राशि मिलेगी। जबकि बाकि की आधी राशि तु को मिलेगी जिन्होंने ‘मलेरिया के इलाज संबंधी खोज किए हैं।’
नोबेल असेम्बली की ओर से जारी बयान के अनुसार, कैम्पबेल और ओमुरा ने एक नई दवाई ‘एवेरमैक्टिन’ खोजी है, “जिसके यौगिकों ने ‘रिवर ब्लाइंडनेस’ और ‘लिम्फैटिक फिलारिआसिस’ की घटनाओं को काफी हद तक कम करने में सफलता पाई है और साथ ही अन्य परजीवी बीमारियों के खिलाफ भी प्रभावी है।’
बयान के मुताबिक, दूसरी ओर 84 वर्षीय तु ने एक दवाई ‘अर्टेमाइसिनिन’ खोजी है जिसके कारण मलेरिया से होने वाली मौतों में प्रभावी रूप से कमी आई है। चीन की इस महिला वैज्ञानिक ने चीनी पारंपरिक प्राकृतिक दवाओं के आधार पर अपनी खोज की है।
समिति ने कहा
‘इन दोनों खोजों ने मानवता को इन बीमारियों से लड़ने का नया शक्तिशाली तरीका दिया है, जिनसे हर साल लाखों लोग प्रभावित होते थे। इसके कारण मानव स्वास्थ्य में आई बेहतरी और लोगों की तकलीफों में हुई कमी को मापा नहीं जा सकता।’
नोबेल समिति ने कहा कि इन वैज्ञानिकों की खोजें उन बीमारियों से लड़ने में मददगार हैं जो दुनिया में करोड़ों लोगों को प्रभावित करती हैं।
मच्छरों से होने वाले मलेरिया से दुनिया भर में हर साल करीब 4.5 लाख लोगों की मौत हो जाती है और करोड़ों लोग इसके संक्रमण का ख़तरा झेलते हैं।
वहीं पैरासाइट वर्म दुनिया की एक तिहाई जनसंख्या को प्रभावित करता है। इससे रिवर ब्लाइन्डनेस और लिम्फ़ैटिक फिलारियासिस जैसी बीमारियां होती हैं।
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