न्यु हारीजोइन्स : प्लूटो की यात्रा सम्पन्न कर आगे रवाना


न्यु हारीजोन्स
न्यु हारीजोन्स

अंतरिक्ष सदीयों से मानव को आकर्षित करता रहा है। खगोलिय पिंड मानव मन को हमेशा चुनौति देते आये है, और सदियों से मानव उनका निरीक्षण और अध्ययन करता आया है। ज्ञान की इस यात्रा मे महत्वपूर्ण मोड़ 4 अक्टूबर 1957 को आया जब पहली बार कोई मानव निर्मित वस्तु स्पूतनिक उपग्रह के रूप मे पृथ्वी के वातावरण को पार कर अंतरिक्ष मे पंहुची। इसके पश्चात तो अंतरिक्ष अभियानो की एक श्रृंखला प्रारंभ हो गयी।

प्लूटो खोज के समय 1930 और न्यु हारीजोंस द्वारा लिया चित्र 2015
प्लूटो खोज के समय 1930 और न्यु हारीजोंस द्वारा लिया चित्र 2015

अपोलो अभियान के तहत मानव 20 जुलाई 1969 को चांद पर जा पहुंचा। अंतरग्रहीय अभियान के तहत 19 मई 1961 को सोवियत संघ का वेनेरा 1 शुक्र ग्रह के 100,000 किमी दूरी से गुजरा। इस यान के शुक्र के पास पहुंचने से पहले ही संपर्क टूट गया था लेकिन यह पहला अभियान था जब कोई मानव निर्मित यान किसी अन्य ग्रह के पास से गुजरा था। सं रा अमरीका का यान मैरीनर 2 पहला सफल अभियान था जिसमे दिसंबर 1962 मे शुक्र के 35,000 किमी दूरी से आंकड़े भेजे। सं रा अमरीका का यान मैरीनर 4 जुलाई 1965 को मंगल के पास से गुजरा। मार्च 1966 मे सोवियत संघ का यान वेनेरा 3 शुक्र की सतह से टकरा कर नष्ट हो गया और वह कोई भी सुचना भेजने मे असफल रहा था, लेकिन वह पहला यान था जो किसी अन्य ग्रह की सतह पर पहुंचा था। अक्टूबर 1967 मे सोवियत संघ का वेनेरा 4 किसी अन्य ग्रह की सतह पर उतरने वाला पहला सफल अभियान था।

सं रा अमरीका का यान मैरीनर 10 पहला अभियान था जो एक बार मे एकाधिक ग्रहो के पास से गुजरा। यह यान फरवरी 1974 मे शुक्र के पास से तथा बुध के पास से तीन बार मार्च , सितंबर 1974 तथा मार्च 1975 मे गुजरा।

इन अभियानो के बाद मानव के सबसे सफल अंतरग्रहीय अभियान वायेजर 1 तथा वायेजर 2 रहे। ये दोनो यानो ने बृहस्पति, शनि, युरेनस तथा नेपच्युन की यात्रा की थी। उसके पश्चात वे सौर मंडल के बाहर की यात्रा पर निकल गये। इस तरह से 2006 प्लूटो के ग्रह माने जाने तक मानव द्वारा सभी ग्रह तक खोजी अंतरिक्ष यान भेजे जा चुके थे केवल प्लूटो ही ऐसा अकेला ’ग्रह’ था जिसपर मानव यान नही भेजा गया था।

USPS_Pluto_Stamp_-_October_19911991 मे सं रा अमरीका डाक विभाग ने प्लूटो ग्रह पर एक डाक टिकट जारी किया, जिस पर लिखा था “Pluto Not Yet Explored”। डाक टिकट पर लिखे इस संदेश ने वैज्ञानिको को प्लूटो पर एक अभियान भेजने के लिये चुनौति दी। इस चुनौति ने न्यु हारीजोंस अभियान का आधार बनाया और 2006 मे यह यान अपनी यात्रा पर रवाना हो गया।

प्लूटो के बारे में हमें जितनी जानकारी है उसे एक डाक-टिकट के पीछे लिखा जा सकता है। इस मिशन के पूरा होने के बाद सौर मंडल संबंधी किताबों को दोबारा लिखे जाने की ज़रूरत होगी।

-2006 मे एक वरिष्ठ नासा अधिकारी कॉलिन हार्टमैन

प्रक्षेपण

NHPlutonasa-3_1437023504अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इस यान का प्रक्षेपण 19 जनवरी 2006 किया था। उस समय तक प्लूटो सौर-मण्डल का एक मात्र ऐसा ग्रह था जिसकी खोजबीन नहीं हुई थी और वैज्ञानिकों को सौर मंडल के ग्रहों में से सबसे कम जानकारी इसी ’ग्रह’ के बारे में थी।

इस यान को फ़्लोरिडा स्थित केप कैनेवरल अंतरिक्ष केंद्र से मंगलवार शाम रवाना करने की योजना थी लेकिन ख़राब मौसम के कारण इसे दो बार स्थगित करना पड़ा।ये यान पिछले किसी भी यान के मुकाबले में सबसे अधिक तेज़ी से छोड़ा गया ये अपनी पाँच अरब किलोमीटर की यात्रा नौ साल में पूरी की। इस परियोजना का मकसद ग्रहों के अस्तित्व में आने के बारे में जानकारी हासिल करना था।

‘न्यू होराइज़न्स’ के यान के निर्माण में 70 करोड़ डॉलर की लागत आई थी। यदि यान को मध्य फ़रवरी 2006 के बाद रवाना करना पड़ता तो नासा बृहस्पति ग्रह के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल इस यान को ऊपर उठाने के लिए नहीं कर पाता और ये यान प्लूटो तक वर्ष 2018 तक ही पहुँच पाता।

पियानो के आकार के इस यान पर 33 किलोग्राम प्लूटोनियम ईंधन लदा हुआ है और इसी कारण परमाणु ऊर्जा के उपयोग के विरोधियों ने इसे छोड़े जाने पर आपत्ति जताई थी। इसकी यान की बैटरी RTG है जो प्लुटोनियम से 250 वाट 30 वोल्ट की विद्युत निर्माण करती है जो उसके सभी उपकरणों के लिये अगले दस वर्ष के लिये पर्याप्त है।

प्लूटो और उसके उपग्रहों का अध्ययन करने के बाद यान बर्फ़ीले पिंडों के अध्ययन के लिए सौर मंडल के बाहरी हिस्से की ओर रवाना हो जाएगा जो कि ‘काइपर बेल्ट’ के नाम से जाना जाता है। ‘काइपर बेल्ट’ धरती और सूरज के बीच की दूरी के 30 से 50 गुना से भी दूर स्थित है और माना जाता है कि सौर मंडल के इस हिस्से में दसियों हज़ार बर्फ़ीले पिंड मौजूद हैं। उल्लेखनीय है कि कई खगोलविद प्लूटो को ग्रह मानने से इनकार करते हैं और उनका मानना है कि यह ‘काइपर बेल्ट’ के पिंडों में से एक हो सकता है। वर्तमान मे प्लूटो को वामन ग्रह माना जाता है।

यात्रा

7 अप्रैल 2006 को इसने मंगल ग्रह की कक्षा (ऑरबिट) पार की, 28 फ़रवरी 2007 को बृहस्पति ग्रह की, 8 जून 2008 को शनि ग्रह की और 18 मार्च 2011 को अरुण ग्रह (यूरेनस) की। इसे छोड़ने की गति किसी भी मानव कृत वस्तु से अधिक रही थी – अपने आखरी रॉकेट के बंद होने तक इसकी रफ़्तार 16.26 किलोमीटर प्रति सैकिंड पहुँच चुकी थी।

  1. पृथ्वी : 19 जनवरी 2006: केप कानावेरल फ्लोरीडा से न्यु हारीजोंस यान का प्रक्षेपण
  2. बृहस्पति : 28 फरवरी 2007 : अंतरिक्ष यान बृहस्पति ग्रह के पास गुरुत्विय त्वरण प्राप्त करने के उद्देश्य से गुजरा। इस त्वरण द्वारा यात्रा समय मे तीन वर्षो की बचत हुयी। इस दौरान प्लूटो के अध्यन के लिये वैज्ञानीको की टीम तैयारीयाँ करती रही।
  3. 2007-2014: बृहस्पति से प्लूटो तक की यात्रा के मध्य यान सुसुप्तावस्था मे रहा, वह हर सप्ताह सब कुछ ठीक होने का संकेत भेजता रहा। वर्ष मे एक बार 50 दिनो के लिये उसके उपकरणो की जांच तथा पथ के सही मापन के लिये उसे जागृत किया जाता रहा।
  4. 14 दिसंबर 2014 : अंतरिक्षयान को सुसुप्तावस्था से जगाया गया। प्लूटो से मुलाकात की तैयारीयाँ जारी।
  5. 14 जुलाई 2015 : अंतरिक्षयान प्लूटो के निकट से गुजरा।
  6. 2017-2020 : अब अंतरिक्षयान कुपीयर पट्टे के पिंडो के अध्ययन मे लग जायेगा।

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यान के प्रमुख उपकरण :

  1. एलीस(Alice) : यह एक पराबैंगनी चित्र लेने वाला स्पेक्ट्रोमीटर है। यह प्लूटो के वातावरण की संरचना का अध्ययन करेगा।
  2. लारी(LORRI): यह उच्च क्षमता का वाली दृश्य प्रकाशीय दूरबीन तथा कैमरा है। यह 200 दिनो तक प्लूटो के चित्र लेते रहेगा।
  3. राल्फ(Ralph) : यह दृश्य प्रकाश तथा अवरक्त प्रकाश का संयुक्त उपकरण है जो प्लूटो और शेरान की सतह का रंगीन मानचित्र बना रहा है। यह दोनो पिंडो की सतह की संरचना तथा उष्मीय सूचनाये भी देगा।
  4. पेप्सी(PEPSSI): यह उपकरण प्लूटो के वातावरण से मुक्त होने वाले अणु/परमाणु/कणो की जांच कर रहा है।
  5. स्वैप(SWAP): यह उपकरण प्लूटो के आसपास सौर वायु के कणो की जांच कर रहा है।
  6. रेक्स(REX) : यह एक रेडीयो उपकरण है जो प्लूटो के वातावरण की जांच रेडीयो तरंगो मे प्लूटो द्वारा उत्पन्न वक्रता के मापन से कर रहा है।
  7. छात्र धूल मापक(Student Dust Counter) :कोलोरेडो विश्वविद्यालय के छात्रो का उपकरण, यह उपकरण धूल कणो के प्रभाव को पृथ्वी से लेकर कुपीयर पट्टे तक जांच करेगा।
प्लूटो की सतह पर हाल ही में 'दिल' का आकार देखा गया था. यह क़रीब 1,600 किलोमीटर बड़े इलाके में फैला था
प्लूटो की सतह पर हाल ही में ‘दिल’ का आकार देखा गया था. यह क़रीब 1,600 किलोमीटर बड़े इलाके में फैला था

उद्देश्य

क्या आप जानते है न्यु हारीजोंस अपने साथ प्लूटो के खोजकर्ता क्लायड टामबाग के भस्मावशेष भी ले गया है। कितने भाग्यशाली है वो, जिनके शरीर का एक अंश अपनी खोज के समीप से होते हुये दूर ब्रह्माण्ड की गहराईयो मे खो जायेगा।
क्या आप जानते है न्यु हारीजोंस अपने साथ प्लूटो के खोजकर्ता क्लायड टामबाग के भस्मावशेष भी ले गया है। कितने भाग्यशाली है वो, जिनके शरीर का एक अंश अपनी खोज के समीप से होते हुये दूर ब्रह्माण्ड की गहराईयो मे खो जायेगा।

इस मिशन का उद्देश्य प्लूटो तन्त्र, काइपर बेल्ट, और प्रारम्भिक सौर मंडल के रूपांतरणों कि समझ विकसित करना है। यह यान प्लूटो और इसके उपग्रहों के वायुमण्डल, सतह, अंतरतम और पर्यावरणीय दशाओं का अध्ययन कर रहा है और साथ यह काइपर घेरे के में पाई जाने वाली इकाइयों और पिण्डों का भी अद्ध्ययन करेगा। एक अनुमान के मुताबिक अगर तुलना करके देखें तो मैरीनर यान ने मंगल के बारे में जितनी जानकारी जुटाई उसकी तुलना में यह यान प्लूटो के बारे में 5,000 गुना अधिक आँकड़े इकठ्ठा करेगा।

कुछ जरूरी प्रश्न जिनके उत्तर यह यह अभियान ढूँढने का प्रयास कर रहा है कि प्लूटो की सतह दिखती कैसी है? क्या वहाँ बड़ी भौमिकीय संरचनायें मौजूद हैं? सौर पवनों के कण प्लूटो के वायुमंडल के साथ कैसे प्रतिक्रिया करते हैं?

इस परियोजना के विशिष्ट लक्ष्य हैं:

  1. प्लूटो और इसके उपग्रह शैरन के सतही संगठन का नक्शा बनाना
  2. इन दोनों के भूविज्ञान और भूआकारिकी का चिह्नीकरण करना
  3. प्लूटो के वायुमण्डल की रचना और इसके पलायन वेग का मापन
  4. शेरोन के वायुमंडल की खोज
  5. इनके सतही तापमान का मापन
  6. प्लूटो के इर्दगिर्द और उपग्रहों और छल्लों की खोज
  7. ऐसी ही खोजें तथा एक या एकाधिक काइपर पिण्डों के बारे में करना

plutoImages

इस यान द्वारा हाल ही में प्लूटो की ऐसी तस्वीरें भेजी गई हैं जिनसे यह बात साफ होती है कि इस ग्रह पर करीब 11000 फीट ऊंचाई वाले पहाड़ हैं। इन पहाड़ों पर बर्फ होने के संकेत भी मिले हैं। प्लूटो की यह तस्वीरें 12500 किलोमीटर की ऊंचाई से ली गई हैं। मिली जानकारी के अनुसार न्यू होराईजन्स द्वारा प्लूटो के अतिरिक्त शेरान और हाइड्रा की फोटो भी जारी किए गए हैं। जिसमें यह कहा गया है कि जो पहाड़ प्लूटो के धरातल पर नज़र आ रहे हैं वे करीब 1000 लाख वर्ष पुराने हैं। प्लूटो का अध्ययन करने के लिए यान प्लूटो के ही गुरूत्वबल का सहारा ले रहा है। इसकी गति अमेरिका के सबसे तेज़ लड़ाकू विमान एसआर 71 लाकहीड से भी 16 गुना अधिक है। यह स्पेसक्राफ्ट 58536 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से प्लूटो के ऊपर गति कर रहा है।

इस तस्वीर में आप प्लूटो के चांद शेरान के सतह की बनावट देख सकते हैं. ये तस्वीर भी न्यू हेराइज़न्स यान ने भेजी है.
इस तस्वीर में आप प्लूटो के चांद शेरान के सतह की बनावट देख सकते हैं. ये तस्वीर भी न्यू हेराइज़न्स यान ने भेजी है.
इनमें इसके बर्फीले सतह पर 3,500 मीटर तक ऊंचे पर्वत देखे जा सकते हैं
इनमें इसके बर्फीले सतह पर 3,500 मीटर तक ऊंचे पर्वत देखे जा सकते हैं

यान ने प्लूटो के सतह की भी तस्वीरें भेज। इनमें इसके बर्फीले सतह पर 3,500 मीटर तक ऊंचे पर्वत देखे जा सकते हैं। नासा के अनुसार प्लूटो पर ये पर्वत शायद 10 करोड़ साल पहले बने थे।

पृथ्वी से थोड़ा ऊपर यदि प्लूटो और उसके चांद को रखा जाए तो कुछ इतना होगा इनका आकार
पृथ्वी से थोड़ा ऊपर यदि प्लूटो और उसके चांद को रखा जाए तो कुछ इतना होगा इनका आकार

न्यू होराइज़ंस ने प्लूटो का व्यास 2,370 किलोमीटर बताया है जबकि पहले इसका व्यास 2,300 किलोमीटर माना जाता था।इस नई जानकारी के बाद अब ये बात पुष्ट हो जाती है कि प्लूटो सौर मंडल की बाहरी सीमा में अब तक का सबसे बड़ा ग्रह है।

अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के न्यू होराइज़ंस अंतरिक्ष यान ने प्लूटो ग्रह की जो तस्वीरें भेजी हैं, उनमें में बर्फ़ की परत नज़र आ रही है।प्लूटो के एक इलाक़े का का नाम स्पुतनिक अंतरिक्ष यान के नाम पर रखा गया है। तस्वीरों में देखा जा सकता है कि वह इलाक़ा कई जगहों पर टूटा हुआ है। 20 से 30 किलोमीटर लंबे हिस्सों के किनारे पर छोटी-छोटी घाटियां दिखती हैं, जो काले रंग की किसी चीज़ से भरी हुई लगती है। साथ ही इसके आसपास छोटे-छोटे टीले भी हैं। वैज्ञानिकों ने कहा है कि सतह के इस तरह से उभरने की वज़ह उसके भीतर से आ रही गर्मी होगी।लेकिन, वैज्ञानिकों की टीम ने यह भी कहा कि जब तक उन्हें और सबूत नहीं मिलते, वे किसी नतीजे तक नहीं पहुंचना चाहेंगे।

वहीं एक अन्य आंकड़े के मुताबिक़, प्लूटो हर घंटे 500 टन वायुमंडल खो रहा है। इसके लिए सूर्य से निकलने वाले आवेशित कण ज़िम्मेदार हैं। प्लूटो का आकार निहायत ही छोटा है, इस वजह से उसके पास इतना गुरुत्वाकर्षण नहीं है कि वहां वायुमंडल टिक सके।

न्यु हारीजोंस का प्लूटो से सामना
न्यु हारीजोंस का प्लूटो से सामना

न्यू होराइज़ंस अभी तक इकट्ठा की गई जानकारियों का केवल दो से तीन प्रतिशत हिस्सा ही नासा तक भेज पाया है। प्लूटो से धरती की दूरी क़रीब 4.7 अरब किलोमीटर है। उसमें लगा ट्रांसमीटर केवल 12 वॉट का है जो केवल 1 किलो बाइट हर सेकेंड के हिसाब से डेटा भेज सकता है। इस वज़ह से ही इतनी देर लग रही है। प्लूटो की आख़िर लॉन्ग रेंज तस्वीर 30 जुलाई को ली जाएगी। न्यू होराइज़ंस सितंबर से अपने पास मौजूद क़रीब पांच जीबी की जानकारी वापस नासा भेजना शुरू कर देगा। इस पूरी प्रक्रिया में क़रीब 16 महीने का समय लगेगा।

न्यु हारीजोंस अभियान प्लूटो को पार कर चुक है लेकिन अभियान अभी अधूरा है। उसके द्वारा प्राप्त जानकरी हम तक पहुंची नही है, जो ना जाने कितने रहस्यो को उजागर करेगा। लेकिन मानवता का यह संदेशवाहक अपनी अगले पड़ाव काइपर पट्टे की ओर रवाना हो चुका है।

7 विचार “न्यु हारीजोइन्स : प्लूटो की यात्रा सम्पन्न कर आगे रवाना&rdquo पर;

  1. जिस दिन ये पढ़ा उस दिन मैं उन लोगों की ख़ुशी की परिकल्पना कर रहा था जिन्होंने पहली बार इसकी कल्पना की होगी। सोचा होगा और फिर इस पर काम किया होगा सालों बाद जब अपनी जिंदगी का एक अहम हिस्सा गुजर जाने के बाद ये संभव होता उन्होंने देखा होगा तो कैसा महसूस हुआ होगा !

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    1. सूर्य का द्रव्यमान ज्यादा है लेकिन इतना ज्यादा नही कि वह समय पर प्रभाव डाल सके। ऐसा ब्लैक होल जैसे महाकाय द्रव्यमान वाले पिंडो के पास ही होता है।

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  2. Mera ek sawal h ki jaisa ki humko pta h ki sun se aane wala
    Light 8 minute me earth tak pahunchta h lekin einsteen ke anusaar bhari mass space aur time adhik वक्रता पैदा karega | iske anusaar sun ka mass to bahut adhik h. To sun se aane wali light sun ke mass ke karan space aur time m jo bakrta paida hogi uske anusaar sun light ko prathbi tak pahuchne m 8 Minute se kanhi adhik samay lagega | kya yah sahi h ?
    Kya aisa to nahi ki humne jo light k8 Speed ka maan nikala h wo earth k sapeksh hota h uska surya k time se koi lena dena nai h

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    1. सूर्य प्रकाश को मोड़ सकता है लेकिन बहुत कम मात्रा मे। वह विशाल है लेकिन इतना भी नही कि प्रकाश गति पर ज्यादा अंतर डाल सके।

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