वायेजर 1 यान मानव निर्मित पहली वस्तु है जो सौर मंडल की सीमाओं को तोड़ कर ब्रह्माण्ड की गहराईयों मे प्रवेश कर चुकी है।
वैज्ञानिको के अनुसार इस यान के उपकरण बता रहे है कि यह यान सौर वायु से निर्मित बुलबुले (Heliosphere) से बाहर निकल कर सितारों के मध्य के अंतरिक्ष मे यात्रा कर रहा है।
1977 मे प्रक्षेपित वायेजर 1 अंतरिक्ष यान को सौर मंडल के बाह्य ग्रहो के अध्यन के लिये भेजा गया था, यह यान अपने प्राथमिक उद्देश्यो को पूरा करने के बाद भी यात्रा करते रहा और हमे नित नयी जानकारी देता रहा। वर्तमान मे नासा का यह यान पृथ्वी से 19 खरब किमी दूरी पर गतिशील यह दूरी इतनी ज्यादा है कि इस यान उत्सर्जित से प्रकाशगति से यात्रा करते रेडीयो संकेत पृथ्वी तक पहुंचने के लिये 17 घंटे का समय लेते है। 40 वर्ष से ज्यादा चलने वाले इस अभियान द्वारा प्राप्त यह पड़ाव एक मील का पत्थर है।
इस यान के ऊपकरण पीछले कुछ समय से संकेत दे रहे थे के यान एक नये क्षेत्र मे प्रवेश कर चुका है और उसके इर्द्गिर्द का अंतरिक्ष मे बदलाव आया है। इस अभियान के वैज्ञानिक कुछ शंकित थे लेकिन इस यान मे लगे प्लाज्मा वेव साईंस (PWS) उपकरण द्वारा भेजे गये आंकडो के अनुसार यह पाया गया कि इस यान के बाहर आवेशित कण प्रोटान के घनत्व मे बढोत्तरी हुयी है और वैज्ञानिक ने 12 सितंबर 2013 को घोषणा कर दी कि वायेजर 1 अब सौर मंडल के प्रभाव के बाहर सितारो की दूनिया मे है।
इस वर्ष 2013 के अप्रैल/मई मे तथा पिछले वर्ष 2012 के अक्टूबर/नवंबर मे इस यान के आसपास प्रोटान के घनत्व मे 100 गुणा बढोत्तरी देखी गयी थी। वैज्ञानिको वायेजर के सौर मंडल से बाहर पहुंचने पर जहाँ पर सूर्य का चूंबकिय प्रभाव खत्म हो जाता है और सौर वायु पहुंच नही पाती है, उस सीमा पर प्रोटान के घनत्व मे ऐसी बढोत्तरी का अनुमान पहले से लगा रखा था। सौर वायु सूर्य की सतह से बाहर की दिशा की ओर बहने वाला आवेशित कणो का एक प्रवाह है। वायेजर अभियान के वैज्ञानिको वायेजर 1 यान के अन्य उपकरणो से प्राप्त आंकड़ो के विश्लेषण से पाया कि वायेजार 1 यान 25 अगस्त 2013 को सौर मंडल से बाहर जा चूका है। यह निशकर्ष साइंस जनरल मे प्रकाशित किया गया है।
25 अगस्त 2013 को वायेजर 1 यान 121 AU दूरी पर था जोकि पृथ्वी से सूर्य की दूरी का 121 गुणा है। सौर मंडल की इस सीमा जिसे हीलीयोपाज कहते है; 1970 की पूरानी तकनिक से बने इस यान द्वारा पार कर पाना एक बडी उपलब्धि है।
वायेजर 1 यान अब सौर मंडल से बाहर सितारो के मध्य है लेकिन इस पर सूर्य के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव अभी भी है जैसे कि सौर मंडल से बाहर के कुछ धूमकेतुंओ पर भी सूर्य के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव होता है। लेकिन सभी तकनिकी और वैज्ञानिक परिभाषाओं के अनुसार यह यान सौर मंडल से बाहर जा चूका है।

वायेजर 1 पृथ्वी से 5 सितंबर 1977 को अपने साथी यान वायेजर 2(20 अगस्त 1977) से कुछ दिनो बाद अपनी इस अंतहीन यात्रा पर रवाना हुआ था। इस यान का प्राथमिक उद्देश्य गुरु, शनि, युरेनस और नेपच्युन का अध्यन था जो उसने 1989 मे ही पूरा कर लिया था। उसके पश्चात उसने गहन अंतरिक्ष मे छलांग लगाई थी। आशा है कि इस यान के प्लूटोनियम आधारित ऊर्जा संयंत्र अगले 10 वर्षो तक ऊर्जा देते रहेंगे; उसके बाद इसके सभी उपकरण और 20 वाट के ट्रांसमीटर कार्य करना बंद कर देंगे। इन उपकरणो के कार्य करते रहने तक इस यान का अभियान जारी रहेगा और वैज्ञानिक इस नये अंजाने क्षेत्र की जानकारी प्राप्त करते रहेंगे। वायेजर 1 अभी जिस क्षेत्र मे है वह क्षेत्र अब से लाखों वर्ष पहले किसी तारे मे हुये विस्फोट से निर्मित है। इस क्षेत्र के बारे मे हमारे पास कुछ आंकडे है लेकिन वायेजर 1 उन आकंडो को अपने मापन से एक वास्तविक रूप देगा।
वायेजर-1 अपनी 45 किमी/सेकंड की गति के बावजूद भी अगले 40,000 वर्षो तक किसी तारे के पास नही पहुंचेगा।
परिभाषायें
सौर वायु : सूर्य की सतह से उत्सर्जित आवेशीत कणो की धारा
टर्मीनेशन शाक : वह क्षेत्र जहाँ पर सूर्य द्वारा उत्सर्जित कणों की गति धीमी पडने लगती और अंतरिक्ष के कणो से टकराव प्रारंभ होता है।
हीलीयोसीथ : वह क्षेत्र जहाँ पर सौर वायु खगोलीय पदार्थ से टकराकर एक तुफान जैसी स्थिती उत्पन्न करती है।
हीलीयोपाज : सौर वायु और खगोलीय माध्यम के मध्य की सीमा जहाँ पर दोनो पदार्थो का दबाव समान होता है।
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acha ha viswas nhi hota ki ye sab sch ha
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विज्ञानं की एक और बड़ी सफलता
पर उएह पदक्र दुःख हुआ की यह इतनी सफलताओं कइ पश्चात् भी तारों तक नि पहुंच पायेगा 🙂 😉
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इसमें दुख की बात नहीं है ये तो शुरूवात है!
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हाँ
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वायेजर-1 अपनी 45 किमी/सेकंड की गति के बावजूद भी अगले 40,000 वर्षो तक किसी तारे के पास नही पहुंचेगा।
गजब
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WELL
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मेरे लिए तीन नई परिभाषाएँ..
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बहुत ही अच्छा अभी भी शायद कुछ बाकी है
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