सूर्य की ऊर्जा नाभिकिय संलयन से प्राप्त होती है!सूर्य की ऊर्जा नाभिकिय संलयन से प्राप्त होती है!

प्रयोगशाला मे सूर्य का निर्माण : नाभिकिय संलयन(nuclear fusion) मे एक बड़ी सफलता


सूर्य की ऊर्जा नाभिकिय संलयन से प्राप्त होती है!सूर्य की ऊर्जा नाभिकिय संलयन से प्राप्त होती है!
सूर्य की ऊर्जा नाभिकिय संलयन से प्राप्त होती है!

प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन के समय से ही नियंत्रित नाभिकिय संलयन(nuclear fusion) द्वारा अनंत ऊर्जा का निर्माण वैज्ञानिको का एक सपना रहा है। यह ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया जो कि किसी भी तरह के प्रदुषण से मुक्त है। लेकिन बहुत से वैज्ञानिक इसे विज्ञान फतांशी की प्रक्रिया मानकर नकार चूके है। अभी भी लक्ष्य दूर है लेकिन पहली बार वैज्ञानिको को नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया मे ऊर्जा के उत्पादन करने मे सफलता मीली है। यह घोषणा लारेंस लिवेरमोर नेशनल प्रयोगशाला(Lawrence Livermore National Laboratory) के नेशनल इग्नीशन विभाग(National Ignition Facility) के वैज्ञानीक ओमार हरीकेन(Omar Hurricane) द्वारा की गयी है और इसे नेचर पत्रिका मे प्रकाशित किया गया है।

जब दो हल्के परमाणु नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी तत्व के परमाणु नाभिक की रचना करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। नाभिकीय संलयन के फलस्वरूप जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान संलयन में भाग लेने वाले दोनों नाभिकों के सम्मिलित द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में यह कमी ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन के समीकरण E = mc2 से ज्ञात करते हैं। तारों के अन्दर यह क्रिया निरन्तर जारी है। सबसे सरल संयोजन की प्रक्रिया है चार हाइड्रोजन परमाणुओं के संयोजन द्वारा एक हिलियम परमाणु का निर्माण।

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nuclearfusionसूर्य से निरन्तर प्राप्त होने वाली ऊर्जा का स्रोत वास्तव में सूर्य के अन्दर हो रही नाभिकीय संलयन प्रक्रिया का ही परिमाण है। सर्वप्रथम मार्क ओलिफेंट निरन्तर परिश्रम करके तारों में होने वाली इस प्रक्रिया को 1932 में पृथ्वी पर दोहराने में सफल हुए, परन्तु आज तक कोई भी वैज्ञानिक इसको नियंत्रित नहीं कर सका था। इसको यदि नियंत्रित किया जा सके तो यह ऊर्जा प्राप्ति का एक अति महत्त्वपूर्ण तरीका होगा। पूरे विश्व में नाभिकीय संलयन की क्रिया को नियंत्रित रूप से सम्पन्न करने की दिशा में शोध कार्य हो रहा है, और अब इसमे सफलता प्राप्त हुयी है।

इसी नाभिकीय संलयन के सिद्धान्त पर हाइड्रोजन बम का निर्माण किया जाता है। नाभिकीय संलयन उच्च ताप (10‍7 से 1080 सेंटीग्रेड) एवं उच्च दाब पर सम्पन्न होता है जिसकी प्राप्ति केवल नाभिकीय विखण्डन से ही संभव है।

नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया सभी तारों के केंद्र मे होती है। हल्के तत्वो के परमाणु एक दूसरे से टकराकर भारी तत्व का निर्माण करते है और ऊर्जा का निर्माण होता है। यदि यह प्रक्रिया बड़े पैमाने पर होती है तब यह एक प्रक्रिया “प्रज्वलन(ignition)” का प्रारंभ करती है, जिसमे अधिक परमाणु आपस मे जुड़कर अधिक ऊर्जा का निर्माण करते है। इस अधिक ऊर्जा से से परमाणु केंद्रक जुड़कर और अधिक ऊर्जा का निर्माण करते है, इस तरह से यह एक श्रृंखला प्रक्रिया(Chain reaction) होती है और उस समय तक जारी रहती है जब तक नाभिकिय संलयन के लिये पर्याप्त परमाणु उपलब्ध हों। यदि इस प्रक्रिया को नियंत्रित किया जा सके तो यह अनंत रूप से ऊर्जा प्रदान कर सकती है। इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे कोई प्रदुषण नही फैलता है और इससे उत्पन्न पदार्थ रेडीयो सक्रिय नही होते है। इसलिये यह प्रक्रिया नाभिकिय विखंडन(Nuclear Fission) से कई गुणा बेहतर तकनिक है। वर्तमान मे समस्त परमाणू ऊर्जा नाभिकिय विखंडन से प्राप्त होती है।

पिछ्ले कुछ महीनो मे नेशनल इग्नीशन विभाग(National Ignition Facility)को इस प्रक्रिया मे सफलता मीली है। जैसा कि हम देख चुके है कि नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया प्रारंभ करने के लिये ऊर्जा चाहीये होती है। पहली बार वैज्ञानिको इस प्रक्रिया मे को नाभिकिय संलयन प्रारंभ करने के लिये लगने वाली ऊर्जा से ज्यादा ऊर्जा प्राप्त हुयी है। यह अतिरिक्त ऊर्जा ज्यादा नही है लेकिन यह एक शुरुवात है। नेचर पत्रिका मे प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार उत्पन्न की गयी ऊर्जा प्रक्रिया प्रारंभ करने वाली ऊर्जा से 1.7 गुणा ज्यादा है, वैज्ञानिको के अनुसार कुल बढोत्तरी 2.6 गुणा थी। यह एक बहुत बड़ी खुशखबरी है।

स्वर्ण निर्मित होह्लराम जिसमे हायड्रोजन को संपिडित किया जाता है!
स्वर्ण निर्मित होह्लराम जिसमे हायड्रोजन को संपिडित किया जाता है!

इस प्रयोग मे नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया को प्रारंभ करने के लिये विश्व के सबसे शक्तिशाली 192 लेजर किरणो को 1 सेमी स्वर्ण सीलेंडर पर केंद्रित किया गया। इस स्वर्ण सीलेंडर को होह्लराम (hohlraum) कहते है, इसके अंदर एक प्लास्टिक कैपसूल रखा जाता है। लेजर किरणो के द्वारा यह होह्लराम अत्याधिक तापमान(लाखों डीग्री सेल्सीअस) पर गर्म हो जाता है और X किरणो का उत्सर्जन प्रारंभ करता है। इन X किरणो के प्रभाव से से प्लास्टिक कैपसूल टूट जाता है और उसके अंदर की हायड्रोजन गैस संपिड़ित होती है। उच्च ताप के कारण यह हायड्रोजन गैस अपने वास्तविक घनत्व से 1/35 गुणा ज्यादा संपिड़ित हो जाती है। यह किसी बास्केटबाल को किसी मटर के दाने के आकार मे संपिडित किये जाने के तुल्य है।  इस प्रक्रिया मे हायड्रोजन की प्लाज्मा अवस्था मे मानव केश से भी कम व्यास की जगह मे हायड्रोजन के समस्थानिक ड्युटेरीयम और ट्रीटीयम के परमाणु एक दूसरे मे समाकर हीलीयम का परमाणू बनाते है और ऊर्जा मुक्त करते है।

यह पहली बार हुआ है कि इस प्रक्रिया मे उत्पन्न ऊर्जा , प्रक्रिया प्रारंभ होने मे लगने वाली ऊर्जा से ज्यादा है। इसके पहले के सभी प्रयोगो मे संलयन से उत्पन्न ऊर्जा इतनी नही थी कि श्रृंखला प्रक्रिया प्रारंभ कर सके।

स्वर्ण होह्लराम के अंदर हायड्रोजन प्लाज्मा
स्वर्ण होह्लराम के अंदर हायड्रोजन प्लाज्मा

वैज्ञानिको ने कुल ऊर्जा मे बढोत्तरी प्राप्त कर एक महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त कर ली है लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकि है। लेजर किरणो के प्लास्टिक कैप्सूल पर केंद्रीत करने की प्रक्रिया अभी परिपक्व नही है, उसे परिपक्व करना बाकि है। वर्तमान मे इस प्रक्रिया मे हायड्रोजन गैस का संपिड़न असमान आकार मे है,सटिक प्रज्वलन प्रक्रिया प्रारंभ करने के लिये वह गोलाकार आकार मे होना चाहिये। वैज्ञानिक वास्तविकता मे प्रयोगशाला के अंदर एक तारे के निर्माण का प्रयास कर रहे है, स्वभाविक है कि इस प्रक्रिया के परिपक्व होने मे समय लगेगा। वर्तमान मे हम नही जानते है कि इसमे कितना समय लगेगा। सबसे ज्यादा आशावादी अनुमानो के अनुसार इस मे अभी और कुछ दशक लग सकते है। लेकिन जब भी यह होगा एक मील का पत्थर होगा और हमारे पास ऊर्जा की कोई कमी नही होगी।

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