ध्रुविय ज्योति



What the ....यह कोई साधारण चित्र नही है यह पृथ्वी पर होने वाली एक अद्भुत खगोलीय घटना है जो की हमारी पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रो में घटित होती है। पृथ्वी के धुवीय क्षेत्रो जैसे अलास्का तथा उत्तरी कनाडा के आकाश मे रंगो का अत्यंत वैभवशाली दृश्य दिखाई देता है नृत्य करते हरे गुलाबी रंग एक अदभुत दृश्य प्रस्तुत करते है ये दृश्य जितने मनोहारी है उतने ही रहस्यपूर्ण भी।

ध्रुवीय ज्योति (अंग्रेजी: Aurora), या मेरुज्योति, वह रमणीय दीप्तिमय छटा है जो ध्रुवक्षेत्रों के वायुमंडल के ऊपरी भाग में दिखाई पड़ती है। उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को सुमेरु ज्योति (अंग्रेजी: aurora borealis), या उत्तर ध्रुवीय ज्योति, तथा दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को कुमेरु ज्योति (अंग्रेजी: aurora australis), या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, कहते हैं। प्राचीन रोमवासियों और यूनानियों को इन घटनाओं का ज्ञान था और उन्होंने इन दृश्यों का बेहद रोचक और विस्तृत वर्णन किया है। दक्षिण गोलार्धवालों ने कुमेरु ज्योति का कुछ स्पष्ट कारणों से वैसा व्यापक और रोचक वर्णन नहीं किया है, जैसा उत्तरी गोलार्धवलों ने सुमेरु ज्योति का किया है। इनका जो कुछ वर्णन प्राप्य है उससे इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि दोनों के विशिष्ट लक्षणों में समानता है।

हेंड्रिक एंटून लॉरेंज (Hendrik Antoon Lorentz :1853-1928) डेनमार्क के सैद्धान्तिक भौतिकविज्ञानी और लिण्डेन के प्रख्यात प्रोफ़ेसर थे।जिन्हें पीटर जीमन (Peter Zeeman)के साथ संयुक्त रूप से 1902 में जीमन प्रभाव के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।
हेंड्रिक एंटून लॉरेंज (Hendrik Antoon Lorentz :1853-1928) डेनमार्क के सैद्धान्तिक भौतिकविज्ञानी और लिण्डेन के प्रख्यात प्रोफ़ेसर थे।जिन्हें पीटर जीमन (Peter Zeeman)के साथ संयुक्त रूप से 1902 में जीमन प्रभाव के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।

हम सब जानते है सूर्य पृथ्वी के लिए ऊर्जा का महान स्रोत है कारण सूर्य पर नाभिकीय संलयन का होना। इसके कारण सूर्य से सौर लपटें(solar flair)उठती रहती है ये सौर लपटें विशेष अवधि में अपने चक्र को घटाती और बढ़ाती रहती है क्योकि सूर्य अपने ध्रुव को निश्चित समयअंतराल मे बदलता रहता है। सूर्य से सौर लपटें उठते रहने के कारण ये सौर लपटें पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र(Magnetic Field)मे प्रवेश करती है वास्तव मे सौर लपटे विशाल संख्या मे सूर्य से निकलनेवाली आवेशित इलेक्ट्रान और प्रोटोन है। ये इलेक्ट्रान और प्रोटोन जब पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र मे प्रवेश करती है तो उसपर एक बल लगने लगता है जिसे लॉरेंज बल(Lorentz force)कहा जाता है।

लॉरेंज के अनुसार, जब कोई आवेशित कण किसी चुम्बकीय बल क्षेत्र में गति करता है तो उसपर एक बल क्रियाशील हो जाता है जिसकी दिशा दोनों के तल पर लम्बवत होती है अर्थात क्रियाशील बल की दिशा आवेशित कण और चुम्बकीय क्षेत्र के तल पर लम्ब होती है। लॉरेंज़ बल कितना शक्तिशाली होगा यह आवेशित कण और चुम्बकीय क्षेत्र के बीच बनने बाले कोण पर निर्भर करता है। यदि बना कोण 0° हो तो बल न्यूनतम होगा पर यदि बना कोण 90° हो तो उसपर लगने वाला बल बहुत ही शक्तिशाली होगा मतलब जैसे जैसे कोण का मान 0° से 90° की ओर बढ़ता जायेगा लगने वाला बल ताकतवर होता जायेगा और 90° पर बल सबसे महत्तम मान पर होगा।यदि कोण का मान 90° से 180° की और ज्यो-ज्यो बढेगा तो फिर लगने वाला बल कमजोर होता जायेगा और 180° पर बल का मान नगण्य हो जायेगा।इस प्रकार हम पाते है की लगने वाला बल 90° पर अपने सबसे महत्तम मान पर होता है।
इसे इस समीकरण से दर्शाया जाता है

F=q(V×B)

=qVB.SinA

यहाँ F बल,q कण का आवेश,V आवेशित कण का वेग,B चुम्बकीय क्षेत्र,A आवेशित कण और चुम्बकीय क्षेत्र के बीच बना कोण है।

aurora-1आप ध्यान रखे F,V और B तीनो सदिश राशियाँ है। जब आवेशित इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में प्रवेश करती है तो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र मे फँस जाती है और पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षेत्र रेखाओ के साथ-साथ वृताकार पथ पर गति करते हुए पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवों के पास पहुँच जाती है। शायद आप सोच रहे होगे की सौर लपटे(इलेक्ट्रान और प्रोटोन)पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवो के पास ही क्यों आ जाती है ये सौर लपटें ध्रुवों से दूर भी तो जा सकती है इसका कारण है पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की रेखाए चुम्बकीय ध्रुवों पर बहुत पास पास आ जाती है इस कारण पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र ध्रुवों पर ज्यादा शक्तिशाली हो जाता है। इसी कारण से सौर लपटें पृथ्वी के ध्रुवों पर आ जाती है। जब ये आवेशित इलेक्ट्रान और प्रोटोन पृथ्वी के ध्रुवों पर आ जाती है तो ध्रुवो पर आवेश का घनत्व बढ़ जाता है। ये आवेशित कण वायुमंडल के अणुओ एवं परमाणुओ से टकराने लगते है इस कारण आवेशित ऑक्सीजन परमाणु हरा और लाल रंग तथा आवेशित नाइट्रोजन परमाणु नीले, गहरे लाल और गुलाबी रंग का प्रकाश उत्सर्जित करने लगता है।

जैसा की ऊपर की पंक्तियों में भी उल्लेख किया गया है ध्रुवीय ज्योति उत्पन्न होने का कारण जब उच्च ऊर्जा वाले कण (मुख्यतः इलेक्ट्रान)पृथ्वी के ऊपरी वातावरण में उपस्थित उदासीन अणुओं से उनकी जोरदार टक्कर है। बड़े तीव्रता वाली ध्रुवीय ज्योति चाँद की रौशनी के समान उज्जवल होती है। ध्रुवीय ज्योति की ऊँचाई पृथ्वी से 80 किमी से लेकर 500 किमी तक हो सकती है। सामान्य तीव्रता वाली ध्रुवीय ज्योति की औसत ऊँचाई 110 किमी से लेकर 200 किमी तक होती है।

aurora-2ध्रुवीय ज्योति के रंग का निर्धारण करने वाले कारक वायुमंडलीय गैस, उसके विशिष्ट आवेश और उस कण की ऊर्जा जो वायुमंडल के गैस से टकराती है। वातावरण प्रधान गैस नाइट्रोजन और ऑक्सीजन अपने से सबंधित लाइन स्पेक्ट्रम एवं रंगो के उत्सर्जन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होते है।ऑक्सीजन परमाणु हरा (557.7 mn के तरंगदैर्घ्य) और लाल (630.0 mn के तरंगदैर्घ्य) रंगो के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।नाइट्रोजन नीले और गहरे लाल (600-700 mn के तरंगदैर्घ्य) रंग उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।यह एक प्रकार का उत्सर्जित रंगो का स्पेक्टम है जो की पृथ्वी के ऊपरी वातावरण में दृष्टिगोचर होता है।ज्यादातर ध्रुवीय ज्योति का रंग हरा और पीलापन लिए होता है लेकिन कभी-कभी सौर लपटे की लंबी किरणे इसे लाल रंग में भी बदल देती है जो की किनारो और ऊपरी सतहों पर दिखाई पड़ती है। बहुत दुर्लभ अवसरो (लगभग 10 साल में एक बार) पर जब सूर्य लपटे ज्यादा तूफानी होती है तो ध्रुवीय ज्योति का रंग गहरा लाल होता है जो की निचली वातावरण में दिखाई देती है इस समय गुलाबी रंग भी निचले क्षेत्रो में देखा गया है।इस प्रकार ध्रुवीय ज्योति का रंग उत्सर्जित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य पर निर्भर करता है साथ साथ ऊँचाई भी ध्रुवीय ज्योति के रंग को प्रभावित करती है। ज्यादातर हरा रंग 120 किमी से लेकर 180 किमी की ऊँचाई पर निकलते है लाल रंग 180 किमी से अधिक ऊँचाई पर उत्सर्जित होते है जबकि नीले और बैगनी रंग 120 किमी से नीचे बनते है।जब सौर लपटे ज्यादा तूफानी होती है तब लाल रंग 90 किमी से लेकर 100 किमी के ऊँचाई पर देखे गए है। पूर्ण रूप से लाल रंग कभी-कभी ही उत्तरी ध्रुवो पर देखे जाते है वो भी विशेषकर कम अक्षांशों पर। अलग-अलग ऊँचाईयो पर ध्रुवीय ज्योति का अलग-अलग रंग का उत्सर्जन करना पृथ्वी के वायुमंडलीय संरचना,उसके घनत्व और ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन के सापेक्ष अनुपात पर भी निर्भर करता है। इस प्रकार एक अत्यंत अदभुत रंगो की छटा दिखाई देने लगती है मानो सारा आकाश रौशनी से जगमगा उठता है और एक अविश्वसनीय आतिशबाजी का दृश्य दिखाई देता है।

भौतिकी मे इस घटना को उत्तर ध्रुवीय ज्योति(Northern Lights or Aurora Borealis) या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति (Southern Lights or Aurora Australis)कहा जाता है। यह प्राकृतिक आतिशबाजी का दृश्य रात्रि मे ही देखा जा सकता है सूर्य की उपस्थिति मे इसे आप देख नही सकते। सूर्यास्त के बाद पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों मे(अलास्का,उत्तरी कनाडा,आइसलैंड,नॉर्वे)आप इस प्राकृतिक आतिशबाजी का आनंद ले सकते है।

aurora

स्रोत::NCERT(12-1-P139)Lucent’s Physics(12-1-P43)
लेख : पल्लवी कुमारी

लेखिका परिचय

पलल्वी  कुमारी, बी एस सी प्रथम वर्ष की छात्रा है। वर्तमान  मे राम रतन सिंह कालेज मोकामा पटना मे अध्यनरत है।

पल्लवी कुमारी
पल्लवी कुमारी
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9 विचार “ध्रुविय ज्योति&rdquo पर;

    1. हमे बहुत ख़ुशी हुई आपने लेख में गलतियों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित कराया आपका आभार।हमे आशा है आप लोगो का सहयोग हमे निरंतर मिलता रहेगा।

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  1. सर समय यात्रा क्यो नही संभव है ? .
    क्योकि निर्वात मे तो बस एक बार ही उर्जा देनी होती है क्योकि निर्वात मे घर्षण बल शुन्य होता है अर्थात् वस्तु को केवल एक बार उर्जा की जरूरत होगी बार बार नही..़़..तो क्या हमारे पास इतनी उर्जा नही है कि हम यान को कुछ सेकंड के लिए प्रकाश गति प्रदान कर सके ?? निर्वात तक पहुचाने के लिए

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