इस ब्लाग पर हमने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति , उसे बनाने वाले मूलभूत तत्वो, घटको की खूब चर्चा की है। हम जानते है कि हमारा दृश्य विश्व, हमारी आकाशगंगा, हमारी धरती और हम स्वयं किससे निर्मित है। लेकिन हम यह सब कैसे जानते है ? इस प्रमाण क्या है ? क्या हमने इसे प्रायोगिक रूप से प्रमाणित किया है या केवल गणितीय/दार्शनिक तुक्के हैं ?
हम यह सब कैसे जानते है ?

इस ब्लाग पर हम भौतिकी के विभिन्न आयामो, जिसमे से एक प्रमुख स्तंभ स्टैंडर्ड माडेल की चर्चा करते रहें है। स्टैंडर्ड माडेल विचित्र नामो वाले नन्हे, अदृश्य परमाण्विक कणो के विभिन्न पहलुओं की व्याख्या करता है। यह सभी वैज्ञानिक सिद्धांत “एलीस इन वंडरलैण्ड” के जादुई विश्व के जैसे लगते है, लेकिन यह जानना महत्वपूर्ण है कि भौतिकशास्त्र मे किसी कमरे मे बैठकर कहानीयाँ नही गढी़ जाती है। इस विज्ञान मे विभिन्न अवधारणाओं को प्रयोगशाला मे जांचा परखा जाता है, उसके परिणामों के आधार पर सिद्धांत गढे़ जाते है।
सिद्धांतो की जांच-परख के लिये वैज्ञानिक प्रयोग करते है, इन प्रयोगो मे वे ज्ञात सूचनाओं के प्रयोग से अज्ञात को जानने का प्रयास करते हैं। ये प्रयोग सरल आसान से लेकर जटिल तथा विशाल भी हो सकते है।
स्टैंडर्ड माडेल मानव के पिछले हजारो वर्षो के वैज्ञानिक अन्वेषण पर आधारित है लेकिन हमारी कण-भौतिकी के हमारी वर्तमान अवधारणाओं को आकार देने वाले अधिकतर प्रयोग हाल में ही घटित हुयें है। कण भौतिकी के सिद्धांतो की जांच प्रयोग की कहानी पिछले सौ वर्षो से भी कम समय पहले से प्रारंभ हुयी है।
परमाणु की संरचना की जांच पड़ताल कैसे हुयी ?
1909 तक परमाणु की संरचना को एक नन्ही अर्ध-पारगम्य गेंद के जैसे माना जाता था जिसके आसपास नन्हा सा विद्युत आवेश होता है। यह सिद्धांत उस समय के अधिकतर प्रयोगों तथा भौतिक विश्व के अनुसार सही पाया गया था।
लेकिन भौतिक शास्त्र मे यह जानना ही महत्वपूर्ण नही है कि विश्व किस तरह से संचालित होता है, बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि वह संचालन कैसे होता है। 1909 अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने उस समय प्रचलित परमाणु संरचना के सिद्धांत की जांच के लिये एक प्रयोग करने का निश्चय कीया। इस प्रयोग मे उन्होने इन नन्हे कणो के अंदर देखने का एक ऐसा तरीका ढुंढ निकाला जो सूक्ष्मदर्शी से संभव नही था।
रदरफोर्ड के इस प्रयोग मे एक रेडीयोसक्रिय श्रोत से अल्फा किरणो की एक धारा को एक पतली स्वर्ण झिल्ली की ओर प्रवाहित किया गया। यह स्वर्ण झिल्ली एक स्क्रीन के सामने थी। जब अल्फा कण स्वर्ण झिल्ली से टकराते थे, वे एक प्रकाशीय चमक उत्पन्न करते थे।

अल्फा कणो से आशा थी कि वे स्वर्ण झिल्ली को भेद कर स्क्रीन पर एक छोटे से भाग मे अपने टकराव के निशान बनायेंगे।
रदरफोर्ड के प्रयोग के परिणाम
परमाणु के पारगम्य विद्युत उदासीन गेंद के जैसे होने की अवस्था मे अल्फा कणो द्वारा स्वर्ण झिल्ली को पार कर उन्हे स्क्रिन के पिछे एक ही स्थान पर टकराना चाहीये था। लेकिन इस प्रयोग के परिणाम आश्चर्यजनक थे, अल्फा कण स्वर्ण झिल्ली से टकराकर विभिन्न कोणो पर विचलित हो रहे थे, कुछ कण तो स्वर्ण झिल्ली के सामने वाले स्क्रिन पर भी टकराये थे। अर्थात परमाणु पारगम्य नन्ही गेंद के जैसी संरचना नही रखते है क्योंकि उनसे टकराकर अल्फा कण वापिस आ रहे थे! कोई और व्याख्या होना चाहीये! [ध्यान रहे इस समय तक यह ज्ञात नही था कि अल्फा कण वास्तविकता मे हिलीयम का नाभिक होता है।]

रदरफोर्ड द्वारा परिणामो की विवेचना

कुछ धनात्मक अल्फा कण काफ़ी हद तक विचलीत हुये थे, इससे रदरर्फोर्ड ने निष्कर्ष निकाला की परमाणु के अंदर कुछ ऐसा नन्हा ठोस धनात्मक भाग होना चाहीये जिससे अल्फा कण टकराकर लौट रहे थे। रदरफोर्ड ने इस धनात्मक ठोस भाग को नाम दिया : नाभिक।

वर्तमान कण भौतिकी के प्रयोग
रदरफोर्ड का यह प्रयोग छोटा और सरल था लेकिन वर्तमान के भी कण भौतिकी के प्रयोग भी इसी तरह से ही होते है। वर्तमान के प्रयोगों मे निम्नलिखित तीन भाग होते है :
- कणों की धारा (इस प्रयोग मे अल्फा कण)
- एक लक्ष्य (इस प्रयोग मे स्वर्ण झिल्ली)
- कण जांचक (जींक सल्फाईड स्क्रीन)

इसके अतिरिक्त रदरफोर्ड ने परमाण्विक कणो को देखने के लिये कणो की धारा के प्रयोग की परंपरा स्थापित की थी। वर्तमान कण-भौतिकी वैज्ञानिक इस दृष्टान्त के प्रयोग से विभिन्न कणो की खोज और उन कणो के व्यवहार की जांच करते है।
कुछ प्रायोगिक उदाहरण
इसी तरह के प्रयोग से किसी वस्तु का आकार भी जांचा जा सकता है।
नीचे के दो उदाहरण मे इसे दर्शाया गया है। इन चित्रो मे बायें मे वस्तु अपने अज्ञात आकार मे दर्शायी गयी है, उस पर कणो की एक धारा डाली गयी। दायें के चित्र मे कणो की धारा के वस्तु से टकराने के पश्चात उनके विचलन के विश्लेषण द्वारा वस्तु के आकार का अनुमान लगाया गया है।
उदाहरण 1 :

उदाहरण 2 :

यह तो समझ मे आया कि कण भौतिकी के प्रयोग कैसे किये जाते है लेकिन यह कैसे पता चले कि क्या हो रहा है? अगले अंक मे..
यह लेख श्रृंखला माध्यमिक स्तर(कक्षा 10) की है। इसमे क्वांटम भौतिकी के सभी पहलूओं का समावेश करते हुये आधारभूत स्तर पर लिखा गया है। श्रृंखला के अंत मे सारे लेखो को एक ई-बुक के रूप मे उपलब्ध कराने की योजना है।
bahut bahtrin sir
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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hindi mein itani damdaar website chalaane k liye bahut dhanyawad
yeh vigyan ki anant yatra aise hi karwati rahe.
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बहुत मेहनत से चला रहें हैं आप यह श्रृंखला जो एक प्रकार से आन लाइन लेसन ही है .बधाई .
.कृपया यहाँ भी पधारें –
रविवार, 22 अप्रैल 2012
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र — भाग तीन
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र — भाग तीन
डॉ. दाराल और शेखर जी के बीच का संवाद बड़ा ही रोचक बन पड़ा है, अतः मुझे यही उचित लगा कि इस संवाद श्रंखला को भाग –तीन के रूप में ” ज्यों की त्यों धरी दीन्हीं चदरिया ” वाले अंदाज़ में प्रस्तुत कर दू जिससे अन्य गुणी जन भी लाभान्वित हो सकेंगे |
वीरेंद्र शर्मा
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*(वीरुभाई )
नुस्खे सेहत के
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
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nice….
thanks
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