स्ट्रींग सिद्धांत के अंतर्गत पांच तरह के अलग अलग सिद्धांत का विकास हो गया था। समस्या यह थी कि ये सभी सिद्धांत विरोधाभाषी होते हुये भी, तार्किक रूप से सही थे। ये पांच सिद्धांत थे प्रकार I, प्रकार IIA, प्रकार IIB तथा दो तरह के हेटेरोटीक स्ट्रींग सिद्धांत। पांच अलग अलग सिद्धांत सभी बलो और कणो को एकीकृत करने वाले “थ्योरी आफ एवरीथींग” के मुख्य उम्मीदवार का दावा कैसे कर सकते थे। यह माना जाता था कि इनमे से कोई एक ही सिद्धांत सही है, जो अपनी निम्न ऊर्जा सीमा तथा दस आयामो को चार आयामो मे संकुचन के पश्चात वास्तविक विश्व की सही व्याख्या करेगा। अन्य सिद्धांतो को स्ट्रींग सिद्धांत के प्रकृती द्वारा अमान्य गणितीय हल के रूप मे मान कर रद्द कर दिया जायेगा।
लेकिन कुछ नयी खोजो और सैद्धांतिक विकास के पश्चात पता चला कि उपरोक्त तस्वीर सही नही है, यह पांचो स्ट्रींग सिद्धांत एक दूसरे से जुड़े हुये है तथा एक ही मूल सिद्धांत के भिन्न भिन्न पहलुओं को दर्शाते है। यह सभी सिद्धांत एक रूपांतरण द्वारा जुड़े हुये है जिसे द्वैतवाद(dualities) कहते है। यदि दो सिद्धांत किसी द्वैतवाद रूपांतरण(Duality Transformation) द्वारा जुड़े हों तो इसका अर्थ यह होता है कि एक सिद्धांत का रूपांतरण इस तरह से हो सकता है कि वह दूसरे सिद्धांत की तरह दिखायी दे। यह दोनो सिद्धांत इस रूपांतरण के अंतर्गत एक दूसरे के द्विक(Dual) कहलायेंगे।
यह द्वैतवाद ऐसे परिमाणो को भी आपस मे जोड़ती है जिन्हे भिन्न समझा जाता है। न्युटन के क्लासीकल सिद्धांत तथा क्वांटम सिद्धांत मे विशाल और लघु दूरी के पैमाने, कमजोर और मजबूत युग्मन (weak and strong coupling) क्षमता द्वारा किसी भी भौतिक प्रणाली की विशिष्ट सीमाये तय की गयी है। लेकिन स्ट्रींग सिद्धांत द्वारा विशाल और लघु, मजबूत और कमजोर के मध्य का अंतर धुंधला हो जाता है, इसी कारण से यह सभी पांचो भिन्न स्ट्रींग सिद्धांत एक दूसरे से जुड़ जाते है।
लघु और विशाल दूरी
जिस द्वैतवाद सममीती से लघु और विशाल दूरी पैमानो के मध्य का अंतर धुंधला हो जाता है T-द्वैतवाद (T-Duality) कहलाता है और यह दस आयामी सुपरस्ट्रींग सिद्धांत के अतिरिक्त आयामो के संकुचन से उत्पन्न होता है।
मान लिजिये की हम किसी दस आयामी काल-अंतराल वाले विश्व मे है, अर्थात हमारे पास अंतराल के नौ तथा समय का एक आयाम है। इन नौ अंतराल के आयामो मे से एक को लिजीये और उसे एक R त्रिज्या वाले वृत्त मे लपेट दिजिये, अब यदि आप उसी दिशा मे 2πR की दूरी तय करें तो आप उस वृत्त का संपूर्ण चक्कर लगा कर उसी जगह पर वापिस आ जायेंगे जहां से आपने प्रारंभ किया था।
इस वृत्त का चक्कर लगाने वाला कण का वृत के पास एक क्वांटम संवेग होगा और वह कण की कुल ऊर्जा का एक भाग होगा। लेकिन स्ट्रींग (तंतु) भिन्न होती है क्योंकि वह वृत्त की परिक्रमा गति करने के अतिरिक्त वृत्त पर लपेटी भी जा सकती है। किसी वृत्त के पर किसी स्ट्रींग के लपेटे जाने की संख्या को चक्र संख्या (winding number) कहते है और यह भी एक क्वांटम मात्रा होती है।
स्ट्रींग सिद्धांत मे विचित्र यह है कि संवेग विधी(momentum mode) तथा चक्र विधी को आपस मे बदला भी जा सकता है, यदि वृत्त की त्रिज्या R को Lst2/R से बदला जाये जिसमे Lst स्ट्रींग की लंबाई है।
यदि R स्ट्रींग की लंबाई से बहुत कम हो तो Lst2/R का मूल्य बहुत ज्यादा होगा। अर्थात किसी स्ट्रींग के संवेग और चक्र विधी का विनियम से विशाल दूरी के पैमाने का लघु दूरी के पैमाने से विनियम होता है।
इस तरह के द्वैतवाद को T-द्वैतवाद (T-duality) कहते है। T-द्वैतवाद प्रकार IIA तथा प्रकार IIB सुपरस्ट्रींग सिद्धांत हो जोड़ता है। इसका अर्थ यह है कि यदि हम प्रकार IIA तथा प्रकार IIB को लेकर उन्हे किसी वृत्त के रूप मे संकुचित करे, उसके पश्चात संवेग तथा चक्र विधि ,लघु तथा विशाल दूरी के पैमानो का आपस मे विनियम करने के पश्चात यह दोनो सिद्धांत एक दूसरे मे परिवर्तित हो जायेंगे। यह दोनो हेटेरोटीक सिद्धांतो पर भी लागु होता है।
T-द्वैतवाद विशाल तथा लघु दूरी के मध्य के अंतर को धुंधला कर देता है। किसी स्ट्रींग के संवेग विधि(momentum mode) को जो एक विशाल दूरी प्रतित होती है वह किसी स्ट्रींग के चक्रविधि( winding mode ) को एक लघु दूरी प्रतित होती है। यह न्युटन और केप्लर की भौतिकी से विपरीत है।
मजबूत और कमजोर युग्मन(Strong and Weak Coupling)
युग्मन स्थिरांक(Coupling Constant) क्या होता है ? यह वह संख्या है जो दर्शाती है कि किसी प्रतिक्रिया की क्षमता क्या है। गुरुत्वाकर्षण बल के लिये युग्मन स्थिरांक न्युटन स्थिरांक(Newtons Constant) है। यदि न्युटन के स्थिरांक का मूल्य उसके वास्तविक मूल्य का दोगुना हो तो हम पृथ्वी से दोगुना गुरुत्वाकर्षण महसूस करेंगे तथा पृथ्वी चन्द्रमा और सूर्य से दोगुना गुरुत्वाकर्षण बल महसूस करेगी। विशाल युग्मन स्थिरांक का अर्थ है, ज्यादा मजबूत बल तथा लघु युग्मन स्थिरांक का अर्थ है कमजोर बल।
सभी बलों का युग्मन स्थिरांक होता है। विद्युत चुंबकिय बल का युग्मन स्थिरांक विद्युत आवेश के वर्ग के समानुपाती होता है। विद्युत चुंबक बल के क्वांटम व्यवहार के अध्यन मे वैज्ञानिक सम्पूर्ण सिद्धांत को एक साथ नही समझ पाते है, वे उसे छोटे टुकड़ो मे हल कर समझते हैं, इन छोटे टूकडो के साथ एक युग्मन स्थिरांक जुड़ा होता है। विद्युत-चुंबकीय बल के संदर्भ मे कम ऊर्जा पर युग्मन स्थिरांक लघु होता है, इस कारण से इन छोटे टुकड़ो से प्राप्त परिणाम वास्तविक परिणाम से अत्यंय समीप होते है। लेकिन यदि युग्मन स्थिरांक विशाल हो तो गणना विधि कार्य नही करती है, तथा यह छोटे टुकड़े वास्तविक भौतिक गणनाओं के लिये किसी मतलब के नही होते है।
यह स्ट्रींग सिद्धांत मे भी संभव है। स्ट्रींग सिद्धांत मे भी युग्मन स्थिरांक होता है। लेकिन कण भौतिकी से भिन्न रूप से यह युग्मन स्थिरांक एक संख्या मात्र नही है। वह स्ट्रींग की स्पंदन विधी अर्थात डाइलेशन(dilation) पर निर्भर करता है। डाइलेशन क्षेत्र के उसके ऋणात्मक मूल्य से विनिमय(exchange) के दौरान एक विशाल युग्मन स्थिरांक का एक लघु विनियम स्थिरांक के साथ विनिमय होता है।
इस सममीती को S-द्वैतवाद कहा जाता है। यदि दो स्ट्रींग सिद्धांत S-द्वैतवाद से जुड़े हों तो विशाल युग्मन स्थिरांक वाला सिद्धांत लघु स्थिरांक वाले सिद्धांत के जैसा ही है। ध्यान दें कि विशाल युग्मन स्थिरांक वाला सिद्धांत किसी क्रम(series) के विस्तार से नही समझा जा सकता है लेकिन लघु युग्मन स्थिरांक वाला सिद्धांत समझा जा सकता है। इस्का अर्थ यह है कि यदि हम कमजोर सिद्धांत को समझ लेते है तो वह मजबूत सिद्धांत को समझने के तुल्य होगा। किसी भौतिक वैज्ञानिक के लिये यह एक के साथ एक मुफ्त वाला सौदा होगा।
S-द्वैतवाद से संबधित सुपरस्ट्रींग सिद्धांत है : प्रकार I सुपरस्ट्रींग सिद्धांत हेटेरोटीक SO(32) से संबधित है तथा प्रकार IIB स्वयं से।
इस सबका अर्थ क्या है?
T-द्वैतवाद यह स्ट्रींग सिद्धांत के लिये ही है। यह कण भौतिकी मे संभव नही है, क्योंकि कोई कण किसी स्ट्रींग(तंतु) के जैसे वृत्त पर लपेटा नही जा सकता है। यदि स्ट्रींग सिद्धांत प्रकृति की सही व्याख्या करता है, तब इसका अर्थ है कि गहरे स्तर पर किसी जगह लघु और विशाल पैमाने मे कोई स्थायी अंतर नही रह जाता है, यह एक द्रवित अंतर जैसा परिवर्तनशील हो जाता है। यह अंतर हमारी दूरी मापने के उपकरण पर निर्भर हो जाता है कि कैसे हम उस उपकरण से अवस्था का मापन करते है।
S-द्वैतवाद के साथ भी ऐसा ही है जो यह दर्शाता है कि एक स्ट्रींग सिद्धांत के विशाल युग्मन स्थिरांक को दूसरे स्ट्रींग सिद्धांत के लघु युग्मन स्थिरांक से समझा जा सकता है।
यह परंपरागत भौतिक विज्ञान से कहीं भिन्न है लेकिन यह क्वांटम सिद्धांत मे गुरुत्वाकर्षण का परिणाम है क्योंकि आइन्स्टाइन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के अनुसार इसी तरह से पिंडो के आकार और प्रतिक्रियाओं के मूल्य वक्रकाल-अंतराल मे मापे जाते है।
p-ब्रेन और D-ब्रेन
सुपरस्ट्रींग सिद्धांत एक आयामी स्ट्रींग का ही सिद्धांत नही है, इसके घटक बहु आयामी भी हो सकते है और वे शून्य से लेकर नौ आयाम के हो सकते है। इन घटको को p ब्रेन(brane) कहते है। यह ब्रेन शब्द मेम्ब्रेन(membrane – झिल्ली जैसी संरचना) से बना है। मेम्ब्रेन मे 2 ब्रेन(लंबाई और चौड़ाई) होते है, स्ट्रींग मे 1 ब्रेन(लंबाई) तथा किसी बिंदु मे शून्य ब्रेन होते है।
एक p-ब्रेन काल अंतराल का वह पिंड है,जो आइंस्टाइन के समीकरण का सुपरस्ट्रींग सिद्धांत के कम ऊर्जा स्तर पर के हल से उत्पन्न होता है, इसमे गुरुत्वाकर्षण के अतिरिक्त अन्य बलो का ऊर्जा घनत्व नौ आयामो मे से p आयामो मे बंधा रहता है। ध्यान दें कि सुपरस्ट्रींग सिद्धांत मे 10 आयाम है जिसमे से एक समय का तथा 9 अंतराल के आयाम है। उदाहरण के लिये विद्युत आवेश के समीकरण के हल मे यदि विद्युत-चुंबकीय क्षेत्र का ऊर्जा घनत्व अंतराल मे किसी रेखा पर वितरीत हो, तब यह एक आयामी रेखा p=1 वाली p-ब्रेन होगी।
स्ट्रींग सिद्धांत मे एक विशेष तरह की p-ब्रेन D-ब्रेन कहलाती है। मोटे तौर पर Dब्रेन मे स्ट्रींग के खुले सीरे उस ब्रेन मे ही स्थानीय होते है। या D ब्रेन को एक से ज्यादा स्ट्रींग के समूह का सामुहीक उद्दीपन कह सकते है जैसे कागज के एक पन्ने मे एक से ज्यादा रेखाये।
स्ट्रींग सिद्धांत मे इस तरह के घटक बहुत बाद मे खोजे गये क्योंकि ये सभी T-द्वैतवाद की गणितीय जटिलताओं मे खोये हुये थे। D-ब्रेन स्ट्रींग सिंद्धांत के संदर्भ मे श्याम वीवर (black hole) को समझने मे अत्यावश्यक है, विशेषतः श्याम वीवर की एन्ट्रापी की ओर बढने वाली क्वांटम अवस्थाओं की गणना मे। यह स्ट्रींग सिद्धांत की एक बड़ी सफलता है।
कितने आयाम
स्ट्रींग सिद्धांत पर सैद्धांतिक भौतिकी वैज्ञानीको का पूरी तरह से ध्यानाकर्षण से पहले सबसे ज्यादा लोकप्रिय एकीकृत सिद्धांत 11 आयामो वाला महागुरुत्व सिद्धांत था जिसमे गुरुत्वाकर्षण के साथ महासममीती को सयुक्त किया गया था। यह 11 आयामो वाला काल-अंतराल संकुचित कर 7 आयामो वाले गोले मे करने की योजना थी जिससे कीसी दूरी पर स्थित निरीक्षक को केवल 4 काल-अंतराल के आयाम महसूस होंगे।
लेकिन यह एक असफल सिद्धांत था क्योंकि इसमे बिंदु कण की क्वांटम अवस्थाओ के लिए तर्कसंगत सीमा नही थी। लेकिन 11 आयामो वाली महागुरुत्विय सिद्धांत को मजबूत संयुग्मन सीमा वाले 10 आयामी सुपरस्ट्रींग सिद्धांत से एक नया जीवन मीला।
लेकिन 10 आयामी सुपरस्ट्रींग सिद्धांत का 11 आयाम वाले महागुरुत्व सिद्धांत मे रूपांतरण कैसे संभव है ? हम पहले ही देख चुके है कि सुपरस्ट्रींग सिद्धांत के द्वैतवाद से दो भिन्न सिद्धांतो मे संबध स्थापित किया जा सकता है, विशाल दूरी की लघु दूरी से तुलना की जा सकती है तथा मजबुत संयुग्मन और कमजोर संयुग्मन का विनियम संभव है। अर्थात कोई ऐसा द्वैतवाद संबध होगा जो 10 आयामी सुपरस्ट्रींग सिद्धांत को 11 आयाम वाले क्वांटम स्थिरता वाले सिद्धांत मे रूपांतरण कर दे।
हम जानते है कि सभी स्ट्रींग सिद्धांत एक दूसरे से जुड़े हुये है और हमे संदेह है कि वे सभी सिद्धांत एक ही मूल सिद्धांत की विभिन्न सीमाओं को प्रदर्शित करते है, अर्थात 11 आयामो मे किसी मूलभूत सिद्धांत का अस्तित्व है। यह सिद्धांत ही M सिद्धांत है।
अगले भाग मे M सिद्धांत
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lag rha he jese keval 1 hi dimension he “TIME” kyonki bina esake to kisi or dimension ka mapan sambhav pratit nhi ho rha he ….
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मैं भी आजकल फिजिक्स पढ़ रहा हूँ. आपके यहाँ भी 🙂
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Ji Aap vigyan ki duniya ke liye bahut hi mahatvpurn karya kar rahe hain… M theory ka intezaar rahega.!
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