
यह एक बड़ा समाचार है। अंतरिक्ष वेधशाला केप्लर ने सूर्य के जैसे तारे के जीवन योग्य क्षेत्र(गोल्डीलाक क्षेत्र) मे एक ग्रह की खोज की गयी है। और यह ग्रह पृथ्वी के जैसे भी हो सकता है।
इस तारे का नाम केप्लर 22 तथा ग्रह का नाम केप्लर 22बी रखा गया है। यह पृथ्वी से 600 प्रकाशवर्ष दूर स्थित है। केप्लर 22 तारे का द्रव्यमान सूर्य से कम है और इसका तापमान भी सूर्य की तुलना मे थोड़ा कम है। केप्लर 22बी अपने मातृ तारे केप्लर 22 की परिक्रमा 290 दिनो मे करता है।
हमारे सौर मंडल के बाहर ग्रह की खोज कैसे की जाती है, जानने के लिये यह लेख देखें।
290 दिनो मे अपने मातृ तारे की परिक्रमा इस ग्रह को विशेष बनाती है। इसका अर्थ यह है कि यह ग्रह अपने मातृ तारे की जीवन योग्य क्षेत्र की कक्षा मे परिक्रमा कर रहा है। इस ग्रह की अपने मातृ तारे से दूरी इतनी है कि वहाँ पर पानी द्रव अवस्था मे रह सकता है। पानी की अनुपस्थिति मे जीवन संभव हो सकता है लेकिन पृथ्वी पर उपस्थित जीवन के लिए पानी आवश्यक है। पृथ्वी पर जीवन के अनुभव के कारण ऐसे ग्रहों की खोज की जाती है जिन पर पानी द्रव अवस्था मे उपस्थित हो। किसी ग्रह पर पानी की द्रव अवस्था मे उपस्थिती के लिए आवश्यक होता है कि वह ग्रह अपने मातृ तारे से सही सही दूरी पर हो, जिसे गोल्डीलाक क्षेत्र कहते है। इस दूरी से कम होने पर पानी भाप बन कर उड़ जायेगा, इससे ज्यादा होने पर वह बर्फ के रूप मे जम जायेगा।
इस ग्रह की मातृ तारे से दूरी, पृथ्वी और सूर्य के मध्य की दूरी से कम है, क्योंकि इसका एक वर्ष 290 दिन का है। लेकिन इसका मातृ तारा सूर्य की तुलना मे ठंडा है, जो इस दूरी के कम होने की परिपूर्ती कर देता है। यह स्थिति इस ग्रह को पृथ्वी के जैसे जीवनसहायक स्थितियों के सबसे बेहतर उम्मीदवार बनाती है। लेकिन क्या यह ग्रह पृथ्वी के जैसा है ?
यह कहना अभी कठीन है!
केप्लर किसी ग्रह की उपस्थिति उस ग्रह के अपने मातृ तारे पर संक्रमण द्वारा पता करता है। जब कोई ग्रह अपने मातृ तारे के सामने से गुजरता है, वह उसके प्रकाश को अवरोधित करता है। जितना बड़ा ग्रह होगा, उतना ज्यादा प्रकाश अवरोधित करेगा। खगोलशास्त्रीयों ने इन आंकड़ो के द्वारा जानकारी प्राप्त की कि केप्लर 22बी पृथ्वी से 2.4 गुणा बड़ा है। हमारे पास समस्या यह है कि हम इतना ही जानते है! हम नही जानते कि यह ग्रह चट्टानी है या गैसीय! हम नही जानते कि इस ग्रह पर वातावरण है या नही ?

हम यह नही कह सकते कि इस ग्रह पर क्या परिस्थितियाँ हैं। उपर दिये गये चित्र से आप जान सकते हैं कि द्रव्यमान और वातावरण से बहुत अंतर आ जाता है। तकनीकी रूप से मंगल और शुक्र दोनो सूर्य के जीवन योग्य क्षेत्र मे हैं, लेकिन शुक्र का घना वातावरण उसे किसी भट्टी के जैसे गर्म कर देता है, वहीं मंगल का पतला वातावरण उसे अत्यंत शीतल कर देता है।(यदि इन दोनो ग्रहो की अदलाबदली हो जाये तो शायद सौर मंडल मे तीन ग्रहो पर जीवन होता !) केप्लर 22बी शायद स्वर्ग के जैसे हो सकता है या इसके विपरीत। यह उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण पर निर्भर करता है, और गुरुत्वाकर्षण उसके द्रव्यमान पर निर्भर है।
यह एक समस्या है कि हमे इस ग्रह का द्रव्यमान ज्ञात नही है। केप्लर की संक्रमण विधी से ग्रह का द्रव्यमान ज्ञात नही किया जा सकता; द्रव्यमान की गणना के लिये उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण द्वारा उसके मातृ तारे पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाता है, जोकि एक जटिल गणना है। केप्लर 22बी अपने मातृ तारे की परिक्रमा के लिए 290 दिन लेता है जो इस निरीक्षण को और कठिन बनाता है। ( कोई ग्रह अपने मातृ तारे के जितना समीप होगा वह अपने मातृ तारे पर उतना ज्यादा प्रभाव डालेगा तथा उसे अपने तारे की परिक्रमा कम समय लगेगा।) इस ग्रह की खोज मे समय लगने के पीछे एक कारण यह भी था कि इसके खोजे जाने के लिये उस ग्रह का अपने तारे पर संक्रमण(ग्रहण) आवश्यक था। इसका पहला संक्रमण केप्लर के प्रक्षेपण के कुछ दिनो पश्चात हुआ था लेकिन इस ग्रह को 290 दिनो बाद दोबारा संक्रमण आवश्यक था जो यह बताये कि प्रकाश मे आयी कमी वास्तविक थी, तथा अगले 290 दिनो पश्चात एक तीसरा संक्रमण जो 290 दिनो की परिक्रमा अवधी को प्रमाणित करे।
यदि यह मान कर चले की यह ग्रह संरचना मे पृथ्वी के जैसा है, चट्टान, धातु और पानी से बना हुआ। इस स्थिति मे इस ग्रह का गुरुत्व पृथ्वी से ज्यादा होगा। इस ग्रह के धरातल पर आपका भार पृथ्वी की तुलना मे 2.4 गुणा ज्यादा होगा, अर्थात वह ग्रह पृथ्वी के जैसी संरचना रखते हुये भी पृथ्वी के जैसा नही होगा। दूसरी ओर यदि यह ग्रह हल्के तत्वों से बना है तब इसका गुरुत्व कम होगा।
लेकिन इस सब से इस तथ्य का महत्व कम नही होता कि इस ग्रह का अस्तित्व है। हमने एक ऐसा ग्रह खोजा है जिसका द्रव्यमान कम है और जीवन को संभव बनाने वाली दूरी पर अपने मातृ तारे की परिक्रमा कर रहा है। अभी तक हम जीवन योग्य दूरी पर बृहस्पति जैसे महाकाय ग्रह या अपने मातृ तारे के अत्यंत समीप कम द्रव्यमान वाले ग्रह ही खोज पा रहे थे। यह प्रथम बार है कि सही दूरी पर शायद सही द्रव्यमान वाला और शायद पृथ्वी के जैसा ग्रह खोजा गया है। हम अपने लक्ष्य के समीप और समीप होते जा रहे हैं।
वर्तमान मानव ज्ञान की सीमा के अंतर्गत अनुसार पूरी आकाशगंगा मे जीवन से भरपूर एक ही ग्रह है, पृथ्वी! लेकिन निरीक्षण बताते हैं कि ऐसे बहुत से ग्रह हो सकते है, और इन ग्रहो के कई प्रकार हो सकते है। हर दिन बीतने के साथ ऐसे ग्रह की खोज की संभावना पहले से बेहतर होते जा रही है। कुछ ही समय की बात है जब हम पृथ्वी के जैसा ही जीवन की संभावनाओं से भरपूर एक ग्रह पा लेंगे।
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रोचक एवं उपयोगी जानकारी। आभार।
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