
न्यूटन से आइंस्टाइन तक आते तक भौतिक विज्ञान विकसित हो चुका था, आशा थी कि निकट भविष्य में वैज्ञानिक भगवान के मन को पढ़ने में सफल हो जायेगे। न्यूटन और आइंस्टाइन के सिद्धांतों से खगोलीय पिंडो तथा प्रकाश के व्यवहार को समझा जा चूका था, मैक्सवेल के समीकरण विद्युत-चुंबकीय व्यवहार की व्याख्या करते थे। लेकिन पदार्थ की संरचना के क्षेत्र में नयी खोजो ने सारी स्थिति बदल दी।
क्वांटम सिद्धांत का इतिहास
1803 मे ब्रिटिश वैज्ञानिक जान डाल्टन ने परमाणु के सिद्धांत को प्रस्तावित किया था। डाल्टन के अनुसार हर तत्व एक विशिष्ट प्रकार के परमाणु से बना होता है और परमाणु मिलकर रासायनिक पदार्थो का निर्माण करते है। एक गणितिय फ्रेंच वैज्ञानिक जीन पेर्रिन ने आइंस्टाइन के सिद्धांत का प्रयोग करते हुए परमाणु का द्रव्यमान और आकार मापा था।

1897 मे ट्रीनीटी महाविद्यालय कैम्ब्रिज के प्रोफेसर जे जे थामसन इलेक्ट्रान के अस्तित्व को प्रमाणित कर चूके थे। अब परमाणु अविभाज्य नही था। 1900 मे मैक्स प्लैंक ने प्रस्तावित किया कि ऊर्जा सतत प्रवाह ना होकर छोटी छोटी ईकाई से बनी होती है जिसे उन्होने क्वांटा नाम दिया। प्लैंक ने इसे आगे बढाते हुये एक नयी भौतिकी का निर्माण किया जिसे आज हम क्वांटम भौतिकी कहते है। 1905 मे आइंस्टाइन ने प्रस्तावित किया कि ना केवल ऊर्जा बल्कि विकिरण भी छोटी छोटी ईकाईयों से बनी होती है तथा प्रकाश के जैसे विद्युत-चुंबकिय विकिरण भी इसी व्यवहार को दर्शाते है। आइंस्टाइन के अनुसार प्रकाश की फोटान के जैसे कणो निर्मित होने की व्याख्या की जा सकती है, फोटान ऊर्जा के पैकेट के जैसे होते है और एक विशिष्ट तरंग दैधर्य से संबधित होते है।

1911 मे अर्नेसट रदरफोर्ड ने प्रमाणित किया कि परमाणु मे आंतरिक संरचना होती है, उनके अनुसार परमाणु मे धनात्मक आवेश वाले नन्हे केन्द्र के आसपास इलेक्ट्रान परिक्रमा करते है। सर्वप्रथम यह माना गया कि परमाणु इलेक्ट्रान और धनात्मक आवेश वाले प्रोटान से बना होता है। निल्स बोहर ने इस पर आधारित परमाणु का माडेल बनाया। 1924 मे लुइस दे ब्रोग्ली (Louis de Broglie) ने प्रस्तावित किया कि पदार्थ और ऊर्जा के मूलभूत कण दोहरा व्यवहार रखते है, वे कण और तरंग दोनो की तरह व्यवहार करते हैं।
पाल डीरेक ने मैक्सवेल के समीकरणों के आधार पर इलेक्ट्रान के व्यवहार की व्याख्या करने वाला समीकरण खोज निकाला। यह क्वांटम सिद्धांतों के आधारभूत स्तम्भ में से एक है। तब यह सोचा गया कि ऐसा ही समीकरण प्रोटान के लिये मिल जाएगा और भौतिकी समाप्त।
लेकिन 1932 मे जेम्स चैडवीक ने परमाणु के केन्द्र मे एक और कण न्यूट्रॉन को खोज निकाला जिसपर कोई आवेश नही होता है। अगले 30 वर्षो तक न्यूट्रॉन और प्रोटान को मूलभूत कण माना जाता रहा। लेकिन कुछ प्रयोगो ने सिद्ध किया कि प्रोटान और न्यूट्रॉन और भी छोटे कणो से बने है। इन कणो को मुर्रे गेलमन ने क्वार्क नाम दिया। अगले दशकों में ऐसे दर्जनों कण खोजे गये। पता चला कि लघु स्तर पर परमाण्विक कणो का एक चिडी़याघर है।
लघु स्तर पर के परमाण्विक कणो के चिडी़याघर को समझने के लिए क्वांटम सिद्धांत और मानक प्रतिकृति (Standard Model) का विकास हुआ।
क्वांटम सिद्धांत के मूल में निम्नलिखित प्रमुख स्तम्भ है:
1. मूलभूत कणो का दोहरा व्यवहार : सभी मूलभूत कण दोहरा व्यवहार करते है,वे कभी कण जैसे व्यवहार करते है, कभी तरंग के जैसे। यह न्यूटन के प्रकाश कण के सिद्धांत और मैक्सवेल-हायजेन्स के प्रकाश तरंग के सिद्धांत का मिश्रण है।
2. हीजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत : ‘अनिश्चितता के सिद्धांत(Uncertainty Principle)’ के अनुसार किसी गतिमान कण की स्थिति और संवेग को एक साथ एकदम ठीक-ठीक नहीं मापा जा सकता। यदि एक राशि अधिक शुद्धता से मापी जाएगी तो दूसरी के मापन में उतनी ही अशुद्धता बढ़ जाएगी, चाहे इसे मापने में कितनी ही कुशलता क्यों न बरती जाए। जितनी अचूक गति की जानकारी होगी, स्थिति उतनी ज्यादा अज्ञात होगी या इसके विपरीत जितनी अचूक स्थिति की जानकारी होगी , उसकी गति उतनी ही अज्ञात होगी। वर्तमान मे किसी भी परमाण्विक कण की स्थिती एवं गति की गणना को हम संभावना मे मापते है। हम कहते है कि किसी परमाण्विक कण के ’क’ स्थान पर ’ख’ ऊर्जा पर होने की ’म’ प्रतिशत प्रायिकता है।
क्वांटम सिद्धांत के विकास मे आइंस्टाइन ने प्रमुख भूमिका निभाईं है, लेकिन वे इस अनिश्चितता का सिद्धांत से सहमत नही थे। इस सिद्धांत के विरोध मे उन्होने कहा था
“भगवान पांसे नही खेलता! (God does not play dice)”!
क्वांटम सिद्धांत के इस गुणधर्म के कारण प्रकृति एक निश्चित, सुनियोजित अवस्था ना होकर अनिश्चित, अव्यवस्थित हो गयी।
श्रोडीन्गर की बिल्ली : क्वांटम विश्व मे यदि किसी परमाण्विक कण की अवस्था का निरीक्षण नही हुआ हो तो उसे एक महास्थिती (Superposition) मे माना जाता है। क्वांटम भौतिकी के अनुसार यदि किसी कण का निरीक्षण नही किया जा रहा है तब वह कण एक साथ सभी संभव अवस्थाओं मे रहता है। जब हम उस कण का निरीक्षण करते है तब वह सभी संभव अवस्थाओं मे से एक अवस्था ग्रहण करता है। यह विचित्र लगता है लेकिन यह क्वांटम सिद्धांत की बुनियाद है। यदि एकाधिक व्यक्ति एक साथ एकाधिक निरीक्षण करें तो हर व्यक्ति को उस कण की भिन्न अवस्था दिखायी देगी। इसे निरीक्षक प्रभाव(Observer Effect) कहते है। इसे रोजमर्रा के जीवन के परिपेक्ष मे समझने के लिए मान लिजिये कि हम एक स्टील के बक्से मे एक बिल्ली को तेजाब से भरी एक कांच की बोतल के साथ बंद कर देते है। इस बोतल के साथ एक हथौड़ा जुड़ा है। इस बक्से मे एक रेडीयो सक्रिय पदार्थ की छोटी सी मात्रा है। यदि रेडीयो सक्रिय पदार्थ से एक भी परमाणु का क्षय होता है, तो हथौड़ा कांच की बोतल को तोड़ देगा, जिससे बिल्ली की मृत्यु हो जायेगी। बक्से को बंद करने के पश्चात कोई भी निरीक्षक नही जानता कि रेडीयो सक्रिय पदार्थ मे परमाणु का क्षय कब होगा, इसलिए उसे ज्ञात नही होगा कि कांच की बोतल टूटी या नही और बिल्ली जीवित है या मृत ? हम यह नही जानते है कि बिल्ली जीवित है या मृत अर्थात क्वांटम भौतिकी के अनुसार बिल्ली एक साथ जीवित और मृत दोनो अवस्थाओं मे है। जब हम बक्से को खोलकर निरीक्षण करेंगे तब बिल्ली इन दोनो संभव अवस्था मे से एक अवस्था को ग्रहण करेगी। इस तर्क को आगे बढा़ते हुये हम यह भी कह सकते है कि एक ब्रह्माण्ड मे बिल्ली जीवित होगी तथा समानांतर ब्रह्माण्ड मे मृत, या इसके विपरीत।
3. क्वांटम एन्टेन्गलमेंट : प्रकृति के परमाण्विक स्तर पर विचित्र व्यवहार की कड़ी मे है क्वांटम एन्टेन्गलमेंट (Quantum Entanglement)। एन्टेन्गलमेंट का शाब्दिक अर्थ होता है उलझाव, गुंथा होना। यह एक अजीब व्यव्हार है। इसके अंतर्गत जब दो परमाण्विक कण (इलेक्ट्रान, फोटान, क्वार्क, परमाणु अथवा अणु) एक दूसरे से भौतिक रूप से टकरा्ने के पश्चात अलग हो जाते है, वे एक एन्टेंगल्ड(अन्तःगुंथित) अवस्था मे आ जाते है। इन दोनो कणो की क्वांटम यांत्रिकी अवस्थायें समान होती है अर्थात उनका स्पिन,संवेग, ध्रुवीय अवस्था समान होती है। एन्टेंगल्ड अवस्था मे आने के बाद यदि एक कण की अवस्था मे परिवर्तन होने पर वह परिवर्तन दूसरे कण पर स्वयं हो जाता है, चाहे दोनो कणो के मध्य कितनी भी दूरी हो। सरल शब्दो मे एन्टेंगल्ड कण-युग्म के एक कण पर आप के द्वारा किया गया परिवर्तन दूसरे कण पर भी परिलक्षित होता है।
4. कुछ भौतिक गुणों का क्वांटाइजेशन : पदार्थ से ऊर्जा का प्रवाह सतत रूप से न होकर ऊर्जा के पैकेट मे होता है। ऊर्जा के इन पैकेट्स को फोटान कहा जाता है।
क्वांटम सिद्धांत और मानक प्रतिकृति (Standard Model)

क्वांटम सिद्धांत के विभिन्न भागो को मानक प्रतिकृति (Standard Model) द्वारा व्यवस्थित रूप दिया गया है, यह मूलभूत बल तथा मूलभूत कणो के सम्पूर्ण ज्ञात सिद्धांतो का समावेश करता है। यह सिद्धांत 20 वी शताब्दी की शुरुवात से लेकर मध्य तक विकसीत हुआ है तथा 1970 मे क्वार्क के आस्तित्व के प्रायोगिक निरीक्षण के पश्चात मान्य हुआ है। इसके पश्चात इस सिद्धांत द्वारा अनुमानित बाटम क्वार्क (1977), टाप क्वार्क(1995) तथा टाउ न्युट्रीनो(2000) की खोज के बाद इस सिद्धांत को प्रामाणिकता मिली है। इस सिद्धांत द्वारा विभिन्न प्रायोगीक निरीक्षणो को सैद्धांतिक रूप से सत्यापन करने मे मिली सफलता के कारण इसे पूर्ण सिद्धांत माना जाता है।
सैद्धांतिक वैज्ञानिको के लिए मानक प्रतिकृति यह क्वांटम फ़ील्ड सिद्धांत का एक प्रतिमान है जो विभिन्न भौतिक प्रक्रियाये जैसे सहम सममीती विखंडन(Spontaneous Symmetry Breaking) असंगति की व्याख्या करता है।
इस मानक प्रतिकृति के पिछे 1960 मे शेल्डन ग्लाशो की विद्युत चुंबक और कमजोर नाभिकिय बल को एकीकृत करने वाली खोज रही है। 1967 मे स्टीवन वेनबर्ग तथा अब्दूस सलाम ने शेल्डन ग्लाशो के इलेक्ट्रोवीक सिद्धांत(विद्युत-चुंबक-कमजोर नाभिकिय बल एकीकृत सिद्धांत) मे हीग्स मेकेनिज्म को जोडा और यह मानक प्रतिकृती(Standard Model) आस्तित्व मे आयी।

मानक प्रतिकृति मे हीग्स मेकेनिज्म सभी मूलभूत कणो को द्रव्यमान प्रदान करता है। इसमे W तथा Z बोसान के अतिरिक्त सभी फर्मीआन (क्वार्क तथा लेप्टान) का भी समावेश है। 1973-74 मे जब प्रयोगो के अनुसार यह प्रमाणित हो गया की हेड्रान आंशिक रूप से आवेशित क्वार्क से बने होते है ,इस सिद्धांत मे मजबूत नाभिकिय बल का भी समावेश कर दिया गया।
मानक प्रतिकृति मे मूलभूत कणो कणो को दो वर्गो मे बांटा गया है : पदार्थ का निर्माण करने वाले फर्मीयान, बलो का वहन करने वाले बोसान।
1.फर्मीयान
मानक प्रतिकृति(Standard Model) मे 1/2 स्पिन के 12 मूलभूत कण है जिसे फर्मियान(fermions) कहते है। स्पिन-सांख्यकी प्रमेय(spin-statistics theorem) के अनुसार फर्मियान पाली व्यतिरेक सिद्धांत(Pauli exclusion principle) का पालन करते है। जिसका अर्थ है कि एक साथ एक अवस्था ( स्थिति तथा ऊर्जा) मे एक से ज्यादा कण नही रह सकते। हर फर्मियान(कण) का एक प्रतिकण(anti-particle) होता है।
मानक प्रतिकृति के कणो का वर्गीकरण उनके आवेश के अनुसार किया गया है। इसमे छः क्वार्क (अप, डाउन,चार्म, स्ट्रेंज, टाप, बाटम) तथा छः लेप्टान (इलेक्ट्रान, इलेक्ट्रान न्युट्रीनो, म्युआन,म्युआन न्युट्रीनो,टाउ, टाउ न्युट्रीनो) का समावेश है।
क्वार्क को परिभाषित करने वाला गुणधर्म उनके द्वारा रंगीन आवेश का वहन है और वे मजबूत नाभिकिय बल द्वारा प्रतिक्रिया करते है। एक गुणधर्म रंग बंधन(color confinement), उन्हे निरंतर रूप से एक दूसरे से बांधे रखता है, जिससे रंगहीन(या सफेद) कण का निर्माण होता है। इन रंगहीन कणो मे एक क्वार्क तथा एक प्रतिक्वार्क(मेसान) से बने हेड्रान(hadrons) कण या तीन क्वार्क से बने बायरान(baryons) कण होते है। प्रोटान और न्युट्रान दो सबसे ज्यादा जाने पहचाने सबसे कम द्रव्यमान वाले बायरान कण है। क्वार्क विद्युत आवेश तथा कमजोर समभारिक स्पिन वाले कण है, इस कारण क्वार्क अन्य फर्मीयान कणो से विद्युत चुंबकिय बल से तथा कमजोर नाभिकिय बल से प्रतिक्रिया करते है।
शेष: छः फर्मीयान कणो का रंग नही होता है और उन्हे लेप्टान कहते है। तीन न्युट्रीनो कण मे विद्युत आवेश भी नही होता है, जिससे उनकी जांच कमजोर नाभिकिय बल से ही की जा सकती है और इससे उन्हे जांच कर पाना अत्यंत कठीन हो जाता है। अन्य विद्युत आवेशीत लेप्टान (इलेक्ट्रान, म्युआन तथा टाउ) विद्युतचुंबकिय बल से प्रतिक्रिया करते है।
2.गाज बोसान
मानक प्रतिकृति मे गाज बोसान मजबूत नाभिकिय बल, कमजोर नाभिकिय बल तथा विद्युत चुंबक बल का वहन करने वाले बल वाहक कणो के रूप मे जाने जाते है। भौतिकी मे बल का अर्थ एक कण द्वारा दूसरे कण पर डाला गया प्रभाव है। क्वांटम के अनुसार मूलभूत बल पदार्थ कणो के मध्य बलवाहक कणो के आदानप्रदान का परिणाम है। बोसान पाली के व्यतिरेक सिद्धांत का पालन नही करते है, इस कारण बलवाहक कणो के घनत्व की कोई सीमा नही है। विभिन्न तरह के बोसान निन्नलिखित है:
- फोटान : यह विद्युतचुंबक बल का वाहक कण है और विद्युत आवेशीत कणो के मध्य आदान प्रदान होता है। इसका द्रव्यमान नही है और क्वांटम इलेक्ट्रोडायनेमिक्स द्वारा इसकी पूर्ण तरीके से व्याख्या संभव है।
- W+, W− तथा Z गाज बोसान: यह भिन्न तरह के कणो(क्वार्क और लेप्टान) के मध्य कमजोर नाभिकिय बलो के लिए उत्तरदायी है। ये कण भारी होते है।
- ग्लूआन द्वारा रंगीन आवेशित कणो के मध्य मजबूत नाभिकिय बल उत्पन्न होता है। इन कणो का द्रव्यमान नही होता है।
- हिग्स बोसान :यह एक परिकल्पित कण है, इसे प्रयोगशाला मे अब तक देखा नही गया है। यह एक भारी कण है । यह मानक प्रतिकृति के सिद्धांत के आधार स्तंभो मे से एक है।
सर आपके लेखो के लिये कोटीशः धन्यवाद
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धन्यवाद
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हिन्दी में विज्ञान को इतनी गहराई से लिखना एक सराहनीय कदम है। हिन्दी इभाषी लोग इससे काफी लाभान्वित हो सकते हैं।
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सर शायद कवांटम सिद्धांत और आपेक्षिकता का सिद्धांत अपनी-अपनी जगह ठीक हैं। पर मेरे अनुमान से इन सिद्धांतों को जोडा जा सकता है।
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GYANWARDHAK…!!!धन्यवाद आशीष जी…आपने बहुत सुन्दर रचनाएँ लिखी हैं. krypya ek savaal batayein, kya entangled particles worm holes k through communicate karte hai?
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कुछ वैज्ञानिक जैसे लिओनार्द सस्कीन मानते है कि दो एन्टैंगल्ड कणों के मध्य आइंसटाइन-रोजेन पुल अर्थात वर्महोल होता है।
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Sir ab jab higs boson ki khoj ho chuki hai toh kya aapko nahin lagta ki aapko apne lekho ki dobara vyakhya karni chahiye
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सलमान जी, आप सही कहते है, कुछ लेखों पर दोबारा ग़ौर करना पडेगा, लेकिन समय निकालना एक समस्या है। समय निकाल कर करता हुँ !
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जड़त्व क्या होता है
जड़त्व और द्रव्यमान एक ही है या अलग
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जड़त्व किसी पिंड या वस्तु के अपनी स्थिति परिवर्तित ना करने की प्रवृत्ति को कहते है, गतिशील पिंड गतिमान रहने का प्रयास करता है और स्थिर पिंड स्थिर रहने का! जड़त्व द्रव्यमान से उत्पन्न होता है।
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dhanyavad is mahatavpurn jankari ke liye me aapka kirtagya hun dhanyavad’dhanyavad’dhanyavad.
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आशीष जी
एक छोटा सा सवाल है कि कण जो बल लगाते है उसका क्या सिद्धांत है हम अगर एक चुम्बक को भी देखें तो वह लोहे को अपनी तरफ खींच लेता है हमने स्कूल में पढ़ा था कि कुछ चुम्बकीय रेखाएं बनती है जो सामने आने वाले लोहे के पदार्थों पर प्रभाव डालती है पर ये रेखाएं किस पदार्थ से बनती है। मै समझता हूं कि क्वांटम भौतिकी में इसका जवाब जरूर होगा।
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अमित जी,
इस लेख को देंखे https://vigyan.wordpress.com/2011/04/04/elementaryforce/
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श्रोडीन्गर साहब की बिल्ली – पहली बार पढने पर दिमाग हवा में उड़ा देती है. क्वांटम कम्प्यूटिंग कोर्स किया था हमने. मज़बूरी नहीं शौक से – इलेक्टिव लेकर 🙂 ये बहुत अच्छी श्रृंखला शुरू की है आपने.
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सैद्धाण्तिक भौतिकी से तो मेरा नाता १२ वी के बाद ही छूट गया था, इंजीनियरींग मे तो सब कुछ प्रायोगिक ही होता है। वो तो भला हो हिस्ट्री चैनल के “इकलौते विश्वसनीय” विज्ञान कार्यक्रम “द यूनिवर्स” का जिसने इसमे मेरी सुसुप्त रूचि फिर से जगा दी! 😀
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वाह बिल्ली!
आज मैं ब्रायन कॉक्स और जैफ फॉरशॉ की पुस्तक – द क्वाण्टम यूनिवर्स खरीदने का मन बना रहा था, पर 1200 रुपये का खर्च बजट के पार था!
उसके बाद आपका लेख पढ़ा। अब खरीदने के बारे में फिर सोचूंगा जरूर! शायद अगले महीने!
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यह पुस्तक ज़रूर खरीदीये, बहुत अच्छी पुस्तक है। ब्रायन काक्स एक अच्छे वैज्ञानिक होने के साथ एक अच्छे लेखक और टी वी प्रस्तोता भी है। बी बी सी पर उन्होने बहुत से वृत्त चित्रो मे प्रस्तोता की भूमिका निभाईं है।
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धन्यवाद आशीष जी…. हम सभी आपके आलेखों के प्रति आभारी हैं…. आपने बहुत सुन्दर रचनाएँ लिखी हैं…
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निशान्त जी, धन्यवाद बिल्ली के चक्कर में नामों का हेर फेर हो गया।
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जटिल लगा लेकिन कमजोरी हमारी है…गम्भीर विषयों पर हिन्दी में आपका लिखना अच्छ लगता है…
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Very good article, Ashish jee.
One mistake, Uncertainty Principle is from Werner Heisenberg, not from Erwin Schrodinger.
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