वर्षो से हमारी आकाशगंगा ’मंदाकिनी’ के केन्द्र के निरिक्षण मे लगे खगोलविज्ञानियो ने एक नयी खोज की है। इसके अनुसार हमारी आकाशगंगा मे अरबो बृहस्पति के आकार के ’आवारा ग्रह’ हो सकते है जो किसी तारे के गुरुत्वाकर्षण से बंधे हुये नही है। एक तथ्य यह भी है कि ऐसे आवारा ग्रहो की संख्या आकाशगंगा के तारों की संख्या से दूगनी हो सकती है, तथा इन आवारा ग्रहों की संख्या तारों की परिक्रमा करते सामान्य ग्रहों से भी ज्यादा है।
विज्ञान पत्रिका ’नेचर(Nature)’ मे ’खगोलभौतिकी मे माइक्रोलेंसींग निरीक्षण (Microlensing Observations in Astrophysics- MOA)’ प्रोजेक्ट द्वारा इस खोज के परिणाम प्रकाशित हुये है। इस प्रोजेक्ट मे किसी तारे के प्रकाश मे उसकी परिक्रमा करते ग्रह से आयी प्रकाश के निरीक्षण वाली तकनीक का प्रयोग नही हुआ है। माइक्रोलेंसींग पृष्ठभूमी मे स्थित तारे पर किसी दूरस्थ ग्रह(१) के प्रभाव का अध्यन करती है।

एक तारा हर दिशा मे प्रकाश उत्सर्जित करता है लेकिन हम उस प्रकाश का एक छोटा सा भाग ही देख पाते है जो हमारी दिशा मे होता है। यदि कोई भारी पिंड हमारे और उस तारे के मध्य मे से गुजरता है तब उस भारी पिंड का गुरुत्व तारे की उन प्रकाश किरणो को हमारी ओर मोड़ देता है जो हमारी दिशा मे नही थी। इस कारण हम ज्यादा प्रकाश देख पाते है, तारा ज्यादा चमकिला प्रतित होता है। इसे ही गुरुत्विय लेंस कहते है। अंतरिक्ष मे गुजरता हुआ कोई भारी पिंड जब किसी तारे और हमारे मध्य से आता है तारा ज्यादा चमकिला दिखता है, जब यह पिंड तारे के सामने से गुजर जाता है, तारा धूंधला हो जाता है। किसी तारे के प्रकाश मे आने वाले इस परिवर्तन का पूर्वानुमान आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के समीकरणो ने किया था, इन समीकरणों से उस भारी पिंड के द्रव्यमान की गणना की जा सकती है।
इस प्रयोग से जुड़े खगोलशास्त्रीयों ने मंदाकिनी आकाशगंगा के केन्द्र के पास के एक भाग का निरीक्षण प्रारंभ किया। उन्होने लगभग 500 लाख तारों का निरीक्षण किया। आकाशगंगा के केन्द्र मे तारो का घनत्व ज्यादा है जिससे दुर्लभ घटनाओं के निरीक्षण की संभावना ज्यादा होती है। किसी तारे के प्रकाश मे किसी ग्रह के द्वारा उत्पन्न लेंस प्रभाव केवल एक या दो दिन ही तक रहता है, इसलिए उन्होने हर 10 से 50 मिनिट बाद तस्वीरे ली। इस प्रक्रिया मे ढेर सारे आंकड़े जमा हुये।

500 लाख तारो के एक वर्ष(वर्ष 2006 से 2007 तक) के निरीक्षण मे उन्होने सिर्फ 1000 घटनायें दर्ज की। वैसे 1000 की संख्या कुछ ज्यादा लगती है, हर 50,000 तारों मे एक घटना ज्यादा नही है। इन 1000 घटनाओ मे से आधी घटनाएँ अध्ययन के उपयुक्त पायी गयी। इसमे से भी सिर्फ 10 घटनाओं मे चमत्कारी 2 दिन का संक्रमण काल था, जो यह दर्शाता था कि यह लेंस बृहस्पति के आकार का कोई ग्रह था। तारे ज्यादा भारी पिंड होते है और उनसे उत्पन्न लेंस प्रभाव हफ्तो तक होता है, कोई ग्रह ही इतना कम अवधि का लेंस प्रभाव उत्पन्न कर सकता है।
अब सावधानी बरतते हुये खगोलशास्त्रीयो ने इन 10 घटनाओ को दूसरे सर्वे (OGLE-Optical Gravitational Lensing Experiment प्रकाश गुरुत्विय लेंसींग प्रयोग) मे लगे वैज्ञानिको से उनके द्वारा जमा किये गये आंकड़ो से पुष्टी करने कहा। दूसरी टीम(OGLE) ने MOA के 10 परिणामो मे से 7 की पुष्टी कर दी।
लेकिन खगोलशास्त्री इन्हे आवारा ग्रह या किसी तारे के गुरूत्व से स्वतंत्र ग्रह क्यों मानते है ?
यह लेंस के प्रभाव वाली घटना पृष्ठभूमि के तारे के प्रकाश मे सिर्फ एक बढोत्तरी और कमी दर्शाती है। यदि ये ग्रह किसी तारे की परिक्रमा करते हुये होते, तब उस ग्रह के मातृ तारे से भी लेंसीग प्रभाव उत्पन्न होना चाहीये था। अर्थात पृष्ठभूमि वाले तारे के प्रकाश द्वारा भी चढ़ाव और उतार होना चाहीये, यह नही हुआ था। यह संभव है कि ग्रह अपने मातृ तारे से काफी दूर वाली कक्षा मे हो, जिससे उस मातृ तारे द्वारा उत्पन्न लेंस प्रभाव नगण्य हो सकता है। लेकिन खगोलशास्त्री सांख्यकी(Statistics) के प्रयोग से इस तरह की घटना की संभावना ज्ञात कर सकते है तथा यह संभावना 25% है। इसका अर्थ यह है कि इन दर्ज की गयी घटनाओ मे एक बड़ा हिस्सा आवारा ग्रहों के द्वारा उत्पन्न है।
यह विचित्र आवारा ग्रह आये कहां से ?
यह आवारा ग्रह अंतरिक्ष मे स्वतंत्र रूप से तैर रहे है। इनके निर्माण की दो संभावनाएं है
- यह किसी तारे के निर्माण के जैसी प्रक्रिया मे किसी खगोलीय गैस के बादल के संपिड़न से बने है।
- ये हमारे सौर मंडल जैसे किसी सौर मंडल मे बने है और किसी कारण से बाहर फेंके गये है!
पहली संभावना पर नजर डाले कि यह किसी तारे के निर्माण की प्रक्रिया जैसी प्रक्रिया से बने है। इस संभावना के अंतर्गत हम उनके द्रव्यमान की निश्चित गणना कर सकते है अर्थात हम यह बता सकते है कि कितने ग्रहो का द्रव्यमान बृहस्पति के द्रव्यमान का 0.1 है, कितने का 0.5 इत्यादि। लेकिन निरीक्षित द्रव्यमान का वितरण, गणना द्वारा प्राप्त द्रव्यमान के वितरण से भिन्न है। इसका अर्थ यह है कि आवारा ग्रहों की इस तरह निर्माण प्रक्रिया संभव नही है।
अब दूसरी संभावना बचती है जिसके अनुसार इन ग्रहो का निर्माण किसी सौर मंडल मे हुआ है और किसी कारण से ये तारे के गुरुत्व से बाहर फेंके गये है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और बहुत ज्यादा सामान्य है।
हमारे सौर मंडल से बाहर हम बृहस्पति जैसे भारी महाकाय ग्रहों को अपने मातृ तारे के काफी समीप परिक्रमा करते देखते है। यह किसी भी अनुमान से ज्यादा समीप है (कुछ उदाहरणो मे बुध ग्रह की कक्षा से भी अंदर)। संभावना यह है कि ये भारी ग्रह किसी समय अपने मातृ तारे से वर्तमान दूरी से ज्यादा दूरी पर परिक्रमा करते रहे होंगे तथा धीरे धीरे अपने सौर मंडल के निर्माण के बाद बचे पदार्थ को समेटते हुये ये ग्रह अपने मातृ तारे के समीप आ गये होंगे। इस प्रक्रिया मे इस ग्रह और मातृ तारे के मध्य के किसी भी अन्य ग्रह पर प्रभाव पढेगा, इनमें से कुछ अपनी कक्षा बदलते हुये मातृ तारे के समीप होते जायेंगे, कुछ ज्यादा दूर वाली कक्षा मे चले जायेंगे, कुछ ग्रह अपने सौर मंडल से दूर फेंके जायेंगे।
ये दूर फेंके गये ग्रह ही आवारा ग्रह है। यदि मातृ तारे के पास जाने वाला ग्रह बृहस्पति के द्रव्यमान से 5 गुना भारी है, वह छोटे ग्रहो को सौर मंडल से बाहर फेंक सकता है लेकिन वह बृहस्पति जैसे महाकाय ग्रह को भी अपने सौर मंडल से बाहर फेंकने मे समर्थ है। अभी तक के निरिक्षणो के अनुसार हमने बहुत सारे भारी ग्रहो को अपने मातृ तारे के समीप वाली कक्षा मे पाया है। यह दर्शाता है कि हर महाकाय बृहस्पति के लिए एक या एक से ज्यादा सौर मंडल से बाहर फेंका गया आवारा ग्रह होना चाहीये !
MOA के परिणाम इन मान्यताओं की पुष्टी कर रहे है। सांख्यकी(Statstics) के अनुसार बृहस्पति के आकार के आवारा ग्रहो की संख्या तारो की संख्या से दोगुनी हो सकती है। ध्यान दे कि हमारी आकाशगंगा मे सैंकड़ो अरब तारे है, अर्थात अंतरिक्ष मे तारो के मध्य ‘रिक्त स्थान’ मे भटकते इन आवारा ग्रहो की संख्या हजारो अरब मे जायेगी! इन आवारा ग्रहो की संख्या सामान्य ग्रहों से देढ़ से दूगनी हो सकती है।
ध्यान दे की MOA सिर्फ बृहस्पति के जैसे महाकाय आवारा ग्रहों का पता लगा सकता है। वह छोटे ग्रहो की जांच मे सक्षम नही है जो कि सामान्यतः ज्यादा संख्या मे होते है।
यह आवारा ग्रह अंतरिक्ष की गहराईयो मे किसी तारे के पास न होकर भी अपेक्षा के विपरीत आश्चर्यजनक रूप से जमे हुये ठोस नही होंगे। बृहस्पति के आकार के ग्रह सामान्यतः महाकाय गैसीय गेंद होते है। उदाहरण के लिए हमारे सौरमंडल के बृहस्पति तथा शनि सूर्य से जितनी ऊर्जा प्राप्त करते है उससे ज्यादा उत्सर्जित करते है। इन दोनो ग्रहो का केन्द्र एकाधिक कारणो से गर्म है, जिसमे रेडीयोसक्रिय पदार्थो के क्षय से उत्पन्न ऊर्जा के अतिरिक्त 4.6 अरब वर्ष पहले इनके निर्माण के समय से फंसी हुयी ऊर्जा का समावेश है। आकाशगंगा मे भटकते बृहस्पति के आकार के आवारा ग्रहो के पास अति शीतल ब्रह्मांड मे भी उन्हे गैस अवस्था मे रखने लायक ऊर्जा होती है।
क्या इन आवारा ग्रहो पर जीवन की संभावना है?
यह ग्रह पृथ्वी के जैसे ठोस नही है, बृहस्पति के जैसे महाकाय गैसीय गेंद है। लेकिन इन आवारा ग्रहो के अपने ठोस चंद्रमा हो सकते है। इनमे से कुछ ठोस चंद्रमा बृहस्पति के आयो या शनि के एनक्लेडस के जैसे ज्वारीय बंध के फलस्वरूप गर्म हो सकते है। सौर मंडल से फेंके जाने कारण इन ग्रहो के पास चंद्रमा होने की संभावना कम लगती है , इस प्रक्रिया मे इन ग्रहो के चंद्रमा छीन गये होंगे। लेकिन प्रकृति ने हमे हमेशा चमत्कृत किया है (जैसे अभी हमे इन आवारा ग्रहो की मौजुदगी से किया है)। हो सकता है कि इन आवारा ग्रहों के भी चंद्रमा हो तथा उन पर जीवन संभव हो सकता है।
इन महाकाय बृहस्पतिनुमा आवारा ग्रहों के अतिरिक्त जमे हुये अत्यंत ठंडे छोटे आवारा ग्रह(३) भी बडी़ संख्या मे होंगे।
MOA की इस खोज के परिणाम रोमांचक है। यह परिणाम केवल एक वर्ष के आंकड़ो से प्राप्त हुये है, खगोलशास्त्री ज्यादा आंकड़ो से ज्यादा आवारा ग्रहो का पता लगायेंगे। ये संख्या समय के साथ बढते जायेगी। ये परिणाम विश्वसनिय है क्योंकि एक और टीम OGLE के निरिक्षण इसकी पुष्टी करते है।
शायद हम खगोलीय खोजो के सबसे सुनहरे दौर मे है !
================================================================================================
(1)यह ग्रह उस तारे की परिक्रमा करता हुआ ग्रह नही होता है।
(2)श्याम पदार्थ से जुड़ा एक नोट : ये आवारा ग्रह प्रकाश उत्पन्न नही करते है। इन्हे श्याम पदार्थ के MACHO श्रेणी मे रखा जा सकता है। पर ध्यान रहे ये आवारा ग्रह बड़ी संख्या मे होने के बावजूद इनका कुल अनुमानित द्रव्यमान भी श्याम पदार्थ के कुल अनुमानित द्रव्यमान की तुलना मे नगण्य है।
(3) पृथ्वी के तुल्य आकार के
Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
पसंद करेंपसंद करें
वेदविज्ञान के अनुसार सूर्य पर भी जीवन मौजूद है -ज्यों ज्यों व्ज्ञान तरक्की कर रहा है वेदों का महाविज्ञान सत्य सिद्ध होता जाता है – क्या आप मानते हैं कि चन्द्रमा पर पृथ्वी से बहतर जीवन है ?क्या आप यह नही मानते कि चन्द्रमा का उद्गम स्थल पृथ्वी के समुद्रमंथन से हुआ था -जोकि आज भी समुद्रजल को प्रभावित करता रहता है लेकिन जब वह सुक्षमविज्ञान उदय होता जायेगा तो शायद आप भी मानने लगेंगे !
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
1. चंद्रमा पर जीवन नही है।
2. सूर्य पर जीवन संभव नही है।
3. चंद्रमा का जन्म समुद्र मंथन से नही हुआ था, उसका जन्म किसी अन्य ग्रह के पृथ्वी से टकराने के पश्चात लगभग 4 अरब वर्ष पहले हुआ था। उस समय पृथ्वी आग के गोले के जैसे उष्ण थी।
4. चंद्रमा समुद्र जल को अपने गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित करता है। यह प्रभाव सूर्य से भी होता है।
पसंद करेंपसंद करें
Saarthak lekhan.
…………
ये है खुशियों का विज्ञान!
मिल गया है ब्लॉगिंग का मनी सूत्र!
पसंद करेंपसंद करें
शुक्रिया आशीष जी ,ये ऊर्ट बादल से पुच्छल तारों के आ टपकने की एक यह हायिपोथेसिस अच्छी बतायी आपने !
पसंद करेंपसंद करें
बहुत रोचक जानकारी -अब जिज्ञासा यह कि क्या अपने सौर मंडल में आ टपकने
वाले कुछ पुच्छल तारे भी ऐसे ही आवारा गृह हो सकते हैं ?
पसंद करेंपसंद करें
अरविन्द जी, धूमकेतु(पुच्छल तारे) इन आवारा ग्रहों की तुलना में बहुत छोटे होते है! ये आवारा ग्रह बृहस्पति के आकार(>70,000 किमी ) के है, जबकि धूमकेतु अधिकतम १०० किमी तक के ही होते है लेकिन उनकी पूँछ जो गैस, जल बाष्प की होती है हजारो किमी लम्बी हो सकती है.
यह जरूर संभव है कि कोई आवारा ग्रह ऊर्ट बादल में हलचल पैदा कर, धूमकेतुओ को आंतरिक सौर मंडल में भेज सकता है !
पसंद करेंपसंद करें
बहुत बढिया आलेख है! नई जानकारी मिली.
पसंद करेंपसंद करें