अपोलो 00 :अपोलो अभियान


moonlandingheader21 जुलाई 1969 को जब नील आर्मस्ट्राँग ने चन्द्रमा की सतह पर क़दम रखा तो निसंदेह वह मानव के अब तक के सबसे साहसिक अन्वेषण अभियान का उदाहरण था। पहली बार किसी मानव ने दूसरी दुनिया में क़दम रखा था।अंतरिक्ष में मानव के पहुँचने के आठ साल के भीतर धरती से ढाई लाख मील दूर चन्द्रमा पर जाना-आना संभव हो सकना, हर तरह से एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी।  तभी तो अपोलो 11 के लैंडर मॉड्यूल ’ईगल’ से नीचे चन्द्रमा की सतह पर उतर कर जब आर्मस्ट्राँग ने ‘One small step for man; one giant leap for mankind.’ कहा तो तब समस्त विश्व उनसे सहमत था।  नील आर्मस्ट्राँग के ही साथ चन्द्रमा पर गए थे बज़ एल्ड्रिन, और बाद के अपोलो अभियानों में 10 अन्य अमरीकियों ने चाँद पर क़दम रखे।

अपोलो कार्यक्रम यह संयुक्त राज्य अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा की मानव उड़ानो की एक श्रंखला थ। इस मे सैटर्न राकेट और अपोलो यानो का प्रयोग किया गया था। यह श्रृंखला उड़ान 1961-1974 के मध्य मे हुयी थी। यह श्रंखला अमरीकी राष्ट्रपति जान एफ केनेडी के 1960 के दशक मे चन्द्रमा पर मानव के सपने को समर्पित थी। यह सपना 1969 मे अपोलो 11 की उड़ान ने पूरा किया था।

यह अभियान 1970 के दशक के शुरुवाती वर्षो मे भी चलता रहा, इस कार्यक्रम मे चन्द्रमा पर छः मानव अवतरणो के साथ चन्द्रमा का वैज्ञानिक अध्यन कार्य किया गया। इस कार्यक्रम के बाद आज 2007 तक पृथ्वी की निचली कक्षा के बाहर कोई मानव अभियान नही संचालित किया गया है। बाद के स्कायलैब कार्यक्रम और अमरीकी सोवियत संयुक्त कार्यक्रम अपोलो-सोयुज जांच कार्यक्रम जिन्होने अपोलो कार्यक्रम के उपकरणो का प्रयोग किया था, इसी अपोलो कार्यक्रम का भाग माना जाता है।

बहुत सारी सफलताओ के बावजूद इस कार्यक्रम को दो बड़ी असफलताओ को झेलना पड़ा। इसमे से पहली असफलता अपोलो 1 की प्रक्षेपण स्थल पर लगी आग थी जिसमे विर्गील ग्रीसम, एड व्हाईट और रोजर कैफी शहीद हो गये थे। इस अभियान का नाम AS204 था लेकिन बाद मे शहीदो की विधवाओं के आग्रह पर अपोलो 1 कर दिया गया था। दूसरी असफलता अपोलो 13 मे हुआ भीषण विस्फोट था लेकिन इसमे तीनो यात्रीयों को सकुशल बचा लिया गया था।

इस अभियान का नाम सूर्य के ग्रीक देवता अपोलो को समर्पित था।

पृष्ठभूमी

अपोलो अभियान का प्रारंभ आइजनहावर के राष्ट्रपतित्व काल के दौरान 1960 के दशक की शुरूवात मे हुआ था। यह मर्क्युरी अभियान का अगला चरण था। मर्क्युरी अभियान मे एक ही अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी की निचली कक्षा मे सीमीत परिक्रमा कर सकता था, जबकि इस अभियान का उद्देश्य तीन अंतरिक्षयात्री द्वारा पृथ्वी की वृत्तीय कक्षा मे परिक्रमा और संभव होने पर चन्द्रमा पर अवतरण था।
नवंबर 1960 मे जान एफ केनेडी ने एक चुनाव प्रचार सभा मे सोवियत संघ को पछाड़ कर अंतरिक्ष मे अमरीकी प्रभूता साबित करने का वादा किया था। अंतरिक्ष प्रभूता तो राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रश्न था लेकिन इसके मूल मे प्रक्षेपास्त्रो की दौड़ मे अमरीका के पिछे रहना था। केनेडी ने अमरीकी अंतरिक्ष कार्यक्रम को आवश्यक वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी।

12 अप्रैल 1961 मे सोवियत अंतरिक्ष यात्री युरी गागरीन अंतरिक्ष मे जाने वाले प्रथम मानव बने; इसने अमरीका के

मन मे अंतरिक्ष की होड़ मे पीछे रहने के डर को और बड़ा दिया। इस उड़ान के दूसरे ही दिन अमरीकी संसद की विज्ञान और अंतरिक्ष सभा की बैठक बुलायी गयी। इस सभा मे अमरीका के सोवियत से आगे बड़ने की योजनाओ पर विचार हुआ। सरकार पर अमरीकी अंतरिक्ष कार्यक्रम को तेजी से आगे बडाने के लिये दबाव डाला गया।
25 मई  1961 को केनेडी ने अपोलो कार्यक्रम की घोषणा की। उन्होने 1960 के दशक के अंत से पहले चन्द्रमा पर मानव को भेजने की घोषणा की।

अभियान की शुरूआत

Apollo_Direct_Ascent_Conceptकेनेडी ने एक लक्ष्य दे दिया था, लेकिन इस मे मानव जीवन, धन, तकनीक की कमी और अंतरिक्ष क्षमता की कमी का एक बड़ा भारी खतरा था। इस अभियान के लिये निम्नलिखित पर्याय थे :
1. सीधी उडा़न : एक अंतरिक्षयान एक इकाई के रूप मे चन्द्रमा तक सीधी उड़ान भरेगा, उतरेगा और वापिस आयेगा। इसके लिये काफी शक्तिशाली राकेट चाहिये था जिसे नोवा(Nova) राकेट का नाम दिया गया था।

2.पृथ्वी परिक्रमा केंद्रीत उडा़न: इस पर्याय मे दो सैटर्न 5 राकेट छोडे़ जाने थे, पहला राकेट अंतरिक्षयान को पृथ्वी की कक्षा के बाहर छोड़ने के बाद अलग हो जाता जबकि दूसरा राकेट उसे चन्द्रमा तक ले जाता।

3.चन्द्र सतह केंद्रीत उडा़न: इस पर्याय मे दो अंतरिक्ष यान एक के बाद एक छोडे़ जाते। पहला स्वचालित अंतरिक्षयान इंधन को लेकर चन्द्रमा पर अवतरण करता, जबकि दूसरा मानव अंतरिक्ष यान उसके बाद चन्द्रमा पर पहुंचता। इसके बाद स्वचालित अंतरिक्ष यान से इंधन मानव अंतरिक्षयान मे भरा जाता। यह मानव अंतरिक्षयान पृथ्वी पर वापिस आता।

4.चन्द्रमा कक्षा केंद्रीत अभियान : इस पर्याय मे एक सैटर्न राकेट द्वारा विभीन्न चरणो वाले अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपित करना था। एक नियंत्रण यान चन्द्रमा की परिक्रमा करते रहता, जबकि चन्द्रयान चन्द्रमा पर उतरकर वापिस नियंत्रण यान से जुड़ जाता। अन्य पर्यायो की तुलना मे इस पर्याय मे चन्द्रयान काफी छोटा था जिससे चन्द्रमा की सतह से काफी कम द्रव्यमान वाले यान को प्रक्षेपित करना था।

1961 मे नासा के अधिकतर विज्ञानी सीधी उड़ान के पक्ष मे थे। अधिकतर अभियंताओ को डर था कि बाकि पर्यायो की कभी जांच नही की गयी है और अंतरिक्ष मे यानो का विच्छेदीत होना और पुनः जुड़ना एक खतरनाक और मुश्किल कार्य हो सकता है। लेकिन कुछ विज्ञानी जिसमे जान होबाल्ट प्रमुख थे, चन्द्रमा परिक्रमा केंद्रीत उडानो की महत्वपूर्ण भार मे कमी वाली योजना से प्रभावित थे। होबाल्ट ने सीधे सीधे इस कार्यक्रम के निदेशक राबर्ट सीमंस को एक पत्र लिखा। उन्होने इस पर्याय पर पूरा विचार करने का आश्वासन दिया।

इन सभी पर्यायो पर विचार करने के लिये गठित गोलोवीन समिती ने होबाल्ट के प्रयासो को सम्मान देते हुये पृथ्वी परिक्रमा केंद्रीत पर्याय और चन्द्रमा केन्द्रीत पर्याय दोनो के मिश्रीण वाली योजना की सीफारीश की। 11 जुलाई 1962 को इसकी विधीवत घोषणा कर दी गयी।

अंतरिक्ष यान

अपोलो यान की संरचना(पूर्ण आकार के लिये चित्र पर क्लीक करें)
अपोलो यान की संरचना(पूर्ण आकार के लिये चित्र पर क्लीक करें)

 

अपोलो अंतरिक्ष यान के तीन मुख्य हिस्से और दो अलग से छोटे हिस्से थे। नियंत्रण कक्ष(नियंत्रण यान) वह हिस्सा था जिसमे अंतरिक्ष यात्री अपना अधिकतर समय (प्रक्षेपण और अवतरण के समय भी)बीताने वाले थे। पृथ्वी पर सिर्फ यही हिस्सा लौटकर आने वाला था। सेवा कक्ष मे अंतरिक्षयात्रीयो के उपकरण, आक्सीजन टैंक और चन्द्रमा तक ले जाने और वापिस लाने वाला इंजन था। नियंत्रण और सेवा कक्ष को मिलाकर नियंत्रण यान बनता था।

चन्द्रमा की कक्षा मे नियंत्रणयान
चन्द्रमा की कक्षा मे नियंत्रणयान

 चन्द्रयान चन्द्रमा पर अवतरण करने वाला यान था। इसमे अवरोह और आरोह चरण के इंजन लगे हुये थे जो कि चन्द्रमा पर उतरने और वापिस मुख्य नियंत्रण यान से जुड़ने के लिये काम मे आने वाले थे। ये दोनो इंजन भी नियंत्रण यान से जुड़ने के बाद मुख्य यान से अलग हो जाने वाले थे। इस योजना मे चन्द्रयान का अधिकतर हिस्सा रास्ते मे ही छोड़ दिया जानेवाला था, इसलिये उसे एकदम हल्का बनाया जा सकता था और इस योजना मे एक ही सैटर्न 5 राकेट से काम चल सकता था।

चन्द्रमा की सतह पर चन्द्र यान
चन्द्रमा की सतह पर चन्द्र यान

 

चन्द्रमा पर अवतरण के अभ्यास के लिये चन्द्रमा अवतरण जांच वाहन(Lunar Landing Research Vehicle-LLRV) बनाया गया। यह एक उड़ान वाहन था जिसमे चन्द्रमा की कम गुरुत्व का आभास देने के लिये एक जेट इंजन लगाया गया था। बाद मे LLRV को LLTV(चन्द्रमा अवतरण प्रशिक्षण वाहन -Lunar Landing Training Vehicle) से बदल दिया गया।
अन्य दो महत्वपूर्ण थे LET और SLA। LET (aunch Escape Tower) यह नियंत्रण यान को प्रक्षेपण यान से अलग ले जाने के लिये प्रयोग मे लाया जाना था, वहीं SLA(SpaceCraft Lunar Module Adapter) यह अंतरिक्षयान को प्रक्षेपण यान से जोड़ने के लिये प्रयोग मे लाया जाना था।

इस अभियान मे सैटर्न 1B, सैटर्न 5 यह राकेट प्रयोग मे लाये जाने थे।

अभियान

अभियान के प्रकार

इस अभियान मे निम्नलिखीत तरह के अभियान प्रस्तावित थे।

  • A मानव रहित नियंत्रण यान जांच
  • B मानव रहित चन्द्रयान जांच
  • C मानव सहित नियंत्रण यान पृथ्वी की निचली कक्षा मे।
  • D मानव सहित नियंत्रण यान तथा चन्द्रयान पृथ्वी की निचली कक्षा मे।
  • E मानव सहित नियंत्रण यान तथा चन्द्रयान पृथ्वी की दिर्घवृत्ताकार कक्षा मे, अधिकतम दूरी ७४०० किमी।
  • F मानव सहित नियंत्रण यान तथा चन्द्रयान चन्द्रम की कक्षा मे।
  • G चन्द्रमा पर अवतरण
  • H चन्द्रमा की सतह पर कुछ समय के लिये रूकना
  • I चन्द्रमा की सतह पर उपकरणो से वैज्ञानिक प्रयोग करना
  • J चन्द्रमा की सतह पर लंबे समय के लिये रूकना

चन्द्रमा पर अवतरण से पहले की असली योजना काफी रूढीवादी थी लेकिन सैटर्न 5 की सभी जांच उड़ान सफल रही थी इसलिये कुछ अभियानो को रद्द कर दिया गया था। नयी योजना जो अक्टूबर 1967 मे प्रकाशित हुयी थी के अनुसार  प्रथम मानव सहित नियंत्रण यान की उड़ान अपोलो 7 होना थी, इसके बाद चन्द्रयान और नियंत्रण यान के साथ सैटर्न 1बी की उड़ान अपोलो 8 की योजना थी जो पृथ्वी की परिक्रमा करने वाला था। अपोलो 9 की उड़ान मे सैटर्न 5 राकेट पर नियंत्रण यान की पृथ्वी की परिक्रमा की योजना थी। इसके पश्चात अपोलो 10 यह चन्द्रमा पर अवतरण की अंतिम रिहर्सल उड़ान होना थी।

लेकिन 1968 की गर्मियो तक यह निश्चित हो गया था कि अपोलो 8 की उड़ान के लिये चन्द्रयान तैयार नही हो पायेगा। नासा ने तय किया कि अपोलो 8 को पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिये भेजने की बजाये चन्द्रमा की परिक्रमा के लिये भेजा जाये। यह भी माना जाता है कि यह बदलाव सोवियत संघ के चन्द्रमा परिक्रमा के अभियान झोंड(Zond) के डर से किया गया था। अमरिकी विज्ञानी इस बार सोवियत संघ से हर हाल मे आगे रहना चाहते थे।

चन्द्रमा से लाये गये नमुने

अपोलो अभियान ने कुल मिलाकर चन्द्रमा से 381.7 किग्रा पत्थर और अन्य पदार्थो के नमूने एकत्र कर के लाये थे। इसका अधिकांश भाग ह्युस्टन की चन्द्रप्रयोगशाला(Lunar Receiving Laboratory ) मे रखा है।

चन्द्रमा से लायी गयी एक चटटान
चन्द्रमा से लायी गयी एक चटटान

रेडीयोमेट्रीक डेटींग प्रणाली जांच से यह पाया गया है कि चन्द्रमा पर की चटटानो की उम्र पृथ्वी पर की चटटानो से कहीं ज्यादा है। उनकी उम्र 3.2 अरब वर्ष से लेकर 4.6 अरब वर्ष तक है। ये नमुने सौरमंडल निर्माण की प्राथमिक अवस्था के समय के है। इस अभियान मे पायी गयी एक महत्वपूर्ण चट्टान जीनेसीस है। यह चट्टान एक विशेष खनीज अनोर्थोसिटे की बनी है।

अपोलो एप्पलीकेसंस
अपोलो कार्यक्रम के बाद के कुछ अभियानो को अपोलो एप्पलीकेसंस नाम दिया गया था, इसमे पृथ्वी की परिक्रमा की 30 उड़ानो की योजना थी। इन अभियानो मे चन्द्रयान की जगह वैज्ञानीक उपकरणो को लेजाकर अंतरिक्ष मे प्रयोग किये जाने थे।
एक योजना के अनुसार सैटर्न 1बी द्वारा नियंत्रण यान को प्रक्षेपित कर पृथ्वी की निचली कक्षा मे 45 दिन तक रहना था। कुछ अभियानो मे दो नियंत्रण यान का अंतरिक्ष मे जुड़ना और रसद सामग्री की आपूर्ती की योजना थी। ध्रुविय कक्षा के लिये सैटर्न 5 की उड़ान जरूरी थी, लेकिन मानव उड़ानो द्वारा ध्रुविय कक्षा की उड़ान इसके पहले नही हुयी थी। कुछ उड़ान भू स्थिर कक्षा की भी तय की गयी थी।

इन सभी योजनाओ मे से सिर्फ 2 को ही पुरा किया जा सका। इसमे से प्रथम स्कायलैब अंतरिक्ष केन्द्र था जो मई 1973 से फरवरी 1974 तक कक्षा मे रहा दूसरा अपोलो-सोयुज जांच अभियान था जो जुलाई 1975 मे हुआ था। स्कायलैब का इंधन कक्ष सैटर्न 1बी के दूसरे चरण से बनाया गया था और इस यान पर अपोलो की दूरबीन लगी हुयी थी जोकि चन्द्रयान पर आधारीत थी। इस यान के यात्री सैटर्न 1बी राकेट से नियंत्रण यान द्वारा स्कायलैब यान तक पहुंचाये गये थे, जबकि स्कायलैब यान सैटर्न 5 राकेट द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। स्कायलैब से अंतिम यात्री दल 8 फरवरी 1974 को विदा हुआ था। यह यान अपनी वापसी की निर्धारीत तिथि से पहले ही 1979मे वापिस आ गया था।
अपोलो-सोयुज जांच अभियान यह अमरीका और सोवियत संघ का संयुक्त अभियान था। इस अभियान मे अंतरिक्ष मे मानवरहित नियंत्रण यान और सोवियत सोयुज यान का जुड़ना था। यह अभियान 15 जुलाई  1975 से 24 जुलाई 1975 तक चला। सोवियत अभियान सोयुज और सेल्युट यानो के साथ चलते रहे लेकिन अमरीकी अभियान 1981 मे छोडे़ गये एस टी एस 1 यान तक बंद रहे थे।

अपोलो अभियान का अंत और उसके परिणाम

अपोलो कार्यक्रम की तीन उड़ाने अपोलो 18,19,20 भी प्रस्तावित थी जिन्हे रद्द कर दिया गया था। नासा का बजट कम होते जा रहा था जिससे द्वितिय चरण के सैटर्न 5 राकेटो का उत्पादन रोक दिया गया था। इस अभियान को रद्द कर अंतरिक्ष शटल के निर्माण के लिये पैसा उपलब्ध कराने की योजना थी। अपोलो कार्यक्रम के यान और राकेटो के उपयोग से स्कायलैब कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। लेकिन इस कार्यक्रम के लिये एक ही सैटर्न 5 राकेट का प्रयोग हुआ, बाकि राकेट प्रदर्शनीयो मे रखे हैं।

नासा के अगली पीढी के अंतरिक्ष यान ओरीयान जो अंतरिक्ष शटल के 2010 मे रीटायर हो जाने पर उनकी जगह लेंगे, अपोलो कार्यक्रम से प्रभावित है। ओरीयान यान सोवियत सोयुज यानो की तरह जमीन से उड़ान भरकर जमीन पर वापिस आयेंगे, अपोलो के विपरीत जो समुद्र मे गीरा करते थे। अपोलो की तरह ओरीयान चन्द्र कक्षा आधारीत उड़ान भरेंगे लेकिन अपोलो के विपरीत चन्द्रयान एक दूसरे राकेट अरेस 5 से उड़ान भरेगा, अरेस 5 अंतरिक्ष शटल और अपोलो के अनुभवो से बना है। ओरीयान अलग से उड़ान भरकर चन्द्रयान से पृथ्वी की निचली कक्षा मे जुड़ेगा। अपोलो के विपरित ओरीयान चन्द्रमा की कक्षा मे मानव रहित होगा जबकि चन्द्रयान से सभी यात्री चन्द्रमा पर अवतरण करेंगे।
अपोलो अभियान पर कुल खर्च 135 अरब डालर था(2006 की डालर किमतो के अनुसार)(25.4 अरब डालर 1969 किमतो के अनुसार)। अपोलो यान के निर्माणखर्च 28 अरब डालर था जिसमे 17 अरब डालर नियंत्रण यान के लिये और 11 अरब डालर चन्द्रयान के लिये थे। सैटर्न 1ब और सैटर्न 5 राकेट का निर्माण खर्च 46 अरब डालर था। सभी खर्च  2006 की डालर किमतो के अनुसार है।

इस तरह मानव को पृथ्वी के बाहर किसी अन्य जमीन पर ले जाने वाला यह महान अभियान समाप्त हुआ!

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2 विचार “अपोलो 00 :अपोलो अभियान&rdquo पर;

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