आकार में एक जैसे और अक्सर जुड़वां कहे जाने वाले ग्रह पृथ्वी और शुक्र ग्रह का मूल एक ही हैं, लेकिन बाद में दोनों का विकास एकदम अलग हुआ है। इसमे एक ग्रह एक शुष्क और उष्ण है तो दूसरा नम और जीवन से भरपूर। इसका उत्तर इन ग्रहों की सूरज से दूरी में छुपा है। हालांकि दोनों ग्रह खगोलिय पैमाने पर एक पर समीप हैं, धरती सूरज से 15 करोड़ किलोमीटर दूर है और शुक्र 10.8 करोड़ किलोमीटर।
12,000 किलोमीटर की दूरी पर शुक्र का व्यास धरती के व्यास का 95 प्रतिशत है। वह धरती और बुध ग्रह के बीच सूरज के चक्कर लगाता है। बुध सूरज का सबसे करीबी ग्रह है.। जहां तक दोनों के बीच अंतर का सवाल है तो शुक्र की सतह पर पानी नहीं है और उसका वातावरण बहुत घना और जहरीला है, जो लगभग पूरी तरह कार्बन डाय ऑक्साइड से बना है। सतह पर औसत तापमान 427 डिग्री सेल्सियस है.
दोनो ग्रहो मे समानता
दोनो ग्रहो मे मुख्य अंतर
तापमान
पृथ्वी पर औसत तापमान 15°C है, जबकी शुक्र पर औसत तापमान 427 °C होता है। इस तापमान पर सीसा भी पिघल जाता है। हमारी जानकारी के अनुसार इस तापमान पर जीवन संभव नही है।
जल
पृथ्वी के वातावरण मे 0.40% जल बाष्प है। जबकी शुक्र के वातावरण मे यह केवल .002% है। दोनो के वातावरण और सतह की तुलना करने पर पृथ्वी मे अपनी जुड़वा बहन की तुलना मे 100,000 गुणा अधिक जल है।
शुक्र : कुछ तथ्य
शुक्र इतना गर्म क्यों है ?
शुक्र अनियंत्रित ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण इतना उष्ण है। इसका घना वातावरण जोकि लगभग पूरी तरह से कार्बन डाय आक्साईड से बना है, सूर्य से प्राप्त उष्णता को पकड़ कर रखता है और उसे अंतरिक्ष मे जाने से रोकता है। इससे शुक्र का तापमान बढ जाता है।
शुक्र इतना शुष्क क्यों है?
यह माना जाता है कि इस ग्रह के जन्म के पश्चात हुये विकास की प्रक्रिया मे शुक्र से जल सूर्य की पराबैंगनी किरणो के प्रभाव मे उड़ गया। इसके परिणाम स्वरूप शुक्र पृथ्वी की तुलना मे लंबे समय तक पिघले हुये रूप से रहा। इस अवस्था मे इस ग्रह की सतह पर जल की उपस्थिति की कोई संभावना नही है।
पृथ्वी पर स्थिति
वैश्विक उष्णता (ग्लोबल वार्मिंग) की खोज
1960 तथा 1970 के निरिक्षणो मे पाया गया कि मंगल और शुक्र ग्रह पृथ्वी के समान लगते है लेकिन इनका वातावरण पृथ्वी से पुर्णत: भिन्न है। शुक्र पर ग्रीनहाउस प्रभाव ने उसे भट्टी बना रखा है, जबकी मंगल के झीने वातावरण से इसका तापमान किसी फ़्रीजर जैसा कम है। इससे यह सिध्द होता है कि जलवायु एक बहुत ही नाजुक कारको से संतुलित होती है, किसी ग्रह की जीवनदायी जलवायु एक छोटे से परिवर्तन से ही मृत्युदायी जलवायु बन सकती है।
पृथ्वी पर ग्रीनहाउस प्रभाव
पृथ्वी पर प्राकृतिक प्रभाव जीवन के लिये आवश्यक है। मानविय गतिविधियाँ, मुख्यत: जीवाश्म इंधन का ज्वलन, जंगलो की कटाई से इस ग्रह के प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव को तेज किया है और इससे वैश्विक जलवायु परिवर्तन दिखायी दे रहा है।
सूर्य से प्राप्त कुछ प्रकाश परावर्रित हो जाता है, कुछ उष्मा मे परिवर्तित हो जाता है। CO2 तथा वातावरण मे उपस्थित कुछ अन्य गैस उष्मा को पकड़ कर रखती जिससे पृथ्वी का तापमान उष्ण बना रहता है।
पृथ्वी की जलवायु के प्रभाव
- सागरी जलस्तर मे वृद्धि
- ध्रुविय हिम का पिघलना
- हिमनदो और पर्वतिय हिम का पिघलना
- सागरी सतह के तापमान मे वृद्धि
- विशाल झीलो के तापमान मे वृद्धि
- कुछ क्षेत्रो मे भारी वर्षा से बाढ़
- कुछ क्षेत्रो मे भयानक सूखा
- फ़सल मे कमी
- पारिस्थितिक तंत्र मे परिवर्तन
- भीषण गर्मी
- सागरी जल की अम्लता मे वृद्धि
ज्वलंत प्रश्न
क्या किसी दिन पृथ्वी से जल उड़ जायेगा?
हाँ! सूर्य प्रकाश मे प्राकृतिक रूप से वृद्धि हो रही है, यह एक अत्यंत धीमी प्रक्रिया है और वैश्विक जलवायु परिवर्तन से भिन्न है। इसके प्रभाव मे अगले कुछ करोड़ वर्ष मे पृथ्वी का तापमान बढ़ जायेगा और पृथ्वी के सागर बाष्पित हो जायेंगे।
तो क्या पृथ्वी का भविष्य वर्तमान शुक्र ग्रह के जैसा है?
हाँ, लेकिन अभी से घबराईये मत! वैज्ञानिको के अनुसार सागरी जल के पुर्ण बाष्पण के लिये 1 अरब वर्ष लगेंगे। लेकिन इसका अर्थ यह नही है कि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव स्पष्ट हौ और वे हर दिन पृथ्वी को शुक्र के जैसा बना रहे है।
पोस्टर रूप मे डाउनलोड करें
ग्राफिक्स स्रोत : https://futurism.com
मूल ग्राफिक्स कॉपी राइट : https://futurism.com
लेख सामग्री : विज्ञान विश्व टीम
हेलो आशीष जी , मैं पिछले 1 साल से आपके ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ , आपके लेख दिमाग़ को कुछ नया सोचने के उकसाते हैं, एक दो चीज़ें हैं जो दिमाग़ मे चल रही हैं – जैसा की आपने कहा शुक्र का तापमान 400 डिग्री से उपर है , पृथ्वी का भार कुछ है, तो ये तापमान और भार हम कैसे माप पाए ? सूर्य हमसे इतनी दूर है फिर हमने उसके केन्द्र का तापमान कैसे माप लिया ? कृपया शंका का समाधान कीजिए
पसंद करेंपसंद करें
किसी भी पिंड से उत्सर्जित प्रकाश से उसके तापमान और संरचना का पता चल जाता है।
द्रव्यमान की गणना उस पिंड द्वारा अन्य पिंड पर लगाये गुरुत्वाकर्षण से होती है।
पसंद करेंपसंद करें
THANKS
Harcharnsingh272@gmail.com
24 मई 2016 को 8:30 pm को, “विज्ञान विश्व” ने
लिखा:
> आशीष श्रीवास्तव posted: “आकार में एक जैसे और अक्सर जुड़वां कहे जाने वाले
> ग्रह पृथ्वी और शुक्र ग्रह का मूल एक ही हैं, लेकिन बाद में दोनों का विकास
> एकदम अलग हुआ है। इसमे एक ग्रह एक शुष्क और उष्ण है तो दूसरा नम और जीवन से
> भरपूर। इसका उत्तर इन ग्रहों की सूरज से दूरी में छुपा है। हाला”
>
पसंद करेंपसंद करें
Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
पसंद करेंपसंद करें
bhai ….
aap jyada article likho kam se kam ek din me ekk….
plzzz
पसंद करेंपसंद करें
अपका हर लेख जानकारियो से भरपुर है
पसंद करेंपसंद करें
आज की बुलेटिन अमर क्रांतिकारी रासबिहारी बोस और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर … अभिनन्दन।।
पसंद करेंपसंद करें