
अतरिक्ष मे रेत के एक बड़े गोले के जैसे आकृति वाला कौनसा पिंड है ?
यह एक तारो का गोलाकार समूह(Globular Cluster ) है, इसे ओमेगा सेन्टारी(Omega Centauri (ω Cen) or NGC 5139) के नाम से जाना जाता है। इसे नरतुरंग तारामंडल(Centaurus constellation) के पास देखा जा सकता है।
इस तारा समूह मे सूर्य के आकार और उम्र के 100 लाख तारे है। 2000 वर्ष पहले ग्रीक खगोलवैज्ञानिक टालेमी (Ptolemy)ने इस तारासमूह को एक ही चमकदार तारा समझा था लेकिन 1830 मे जान विलियम हर्शेल ने इसे एक तारा समूह के रूप मे पहचाना था।
पृथ्वी से 15000 प्रकाशवर्ष दूर पर स्थित यह तारा समूह मंदाकिनी आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा करने वाले लगभग 200 तारा समूहो मे से एक है। इसकी चौड़ायी लगभग 150 प्रकाशवर्ष है। इसकी उम्र लगभग 12 अरब वर्ष है। इस तारासमूह मे तारो का घनत्व अत्याधिक है, इसमे तारो के मध्य औसत दूरी 0.1 प्रकाशवर्ष है। ध्यान दे कि पृथ्वी और उसके सबसे समीप के तारे अल्फा सेंटारी की दूरी 4 प्रकाशवर्ष है। इस तारा समूह मे इतनी दूरी पर 40 तारे आ जायेंगे।
यह तारा समूह नंगी आंखो से दिखायी देने वाले कुछ तारा समूहो मे से एक है। यह माना जाता है कि यह शायद किसी छोटी आकाशगंगा का बचा हुआ केन्द्रक है जिसे मंदाकिनी आकाशगंगा ने किसी समय निगल लिया होगा।
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जब तारों के बीच औसत दूरी इतनी कम है तो वे एक-दुसरे से टकराते और उनको निगलते भी होंगे.
आकाशगंगा के केंद्र में तारों की स्थिति कैसी है? वहां तो तारों की सघनता और अधिक होगी?
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सामान्यत ऐसे तारासमुह के मध्य एक श्याम विवर होता है जो सारे तारो को एक परिक्रमा पथ मे रखता है। लेकिन तारो के टकराने की सम्भावना से इन्कार नही किया जा सकता। आकाशगन्गा के केन्द्र मे तारों का घन्त्व ज्यादा रहता है लेकिन ये प्रणाली एक महाकाय श्याम विवर के गुरुत्व से नियन्त्रित होती है।
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अभी जब सुंदरबन जाना हुआ था तो अमावस की रात के घने अँधेरे में एक तारे (ग्रह) का रिफ्लेक्शन पानी में दिख रहा था. बड़ी खोजबीन करनी पड़ी ये जानने के लिए कि वो जुपिटर था. आपसे पूछने का मन बनाया था लेकिन उससे पहले ही पता चल गया 🙂
ऐसे ही जानकारी भरी बातें बताते रहिये.
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