बारबरा मैकक्लिंटॉक

बारबरा मैकक्लिंटॉक : दुनिया के सबसे महान आनुवंशिकीविदों में से एक


दुनिया के सबसे महान आनुवंशिकीविदों में से एक बारबरा मैकक्लिंटॉक थीं, जो अब तक की सबसे प्रेरणादायक अमेरिकी महिलाओं में से एक हैं। 1902 में हार्टफोर्ड, कनेक्टिकट में जन्मी मैकक्लिंटॉक ने ‘जंपिंग जीन’ की खोज की, डीएनए के टुकड़े जो एक कोशिका में दिए गए गुणसूत्र पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। मैकक्लिंटॉक ने 1992 में 90 वर्ष की उम्र में अपनी मृत्यु तक अपनी प्रयोगशाला में काम किया। सोमवार, 16 जून 2025 को उनकी उम्र 123 वर्ष हो जाती। मैकक्लिंटॉक आज भी अपने आत्मविश्वास, बुद्धिमत्ता और असाधारण निडर भावना से सभी उम्र के वैज्ञानिकों को प्रेरित करती हैं। उन्होंने सभी के लिए एक कालातीत सबक छोड़ा है। बेजोड़ दृढ़ता का सबक। उन्होंने एक बार कहा था, “अगर आपको पता है कि आप सही रास्ते पर हैं, अगर आपके पास यह आंतरिक ज्ञान है, तो कोई भी आपको रोक नहीं सकता… चाहे वे कुछ भी कहें”। पढ़ना जारी रखें बारबरा मैकक्लिंटॉक : दुनिया के सबसे महान आनुवंशिकीविदों में से एक

कैरोलीन हर्शेल (1750-1848) – धूमकेतु की पहचान करने वाली पहली महिला


कैरोलीन हर्शेल (जन्म 16 मार्च, 1750,  हनोवर [जर्मनी] – मृत्यु 9 जनवरी, 1848, हनोवर) एक जर्मन मूल की ब्रिटिश खगोलशास्त्री थीं। उन्हें पहली पेशेवर महिला खगोलशास्त्री माना जाता है। अपनी कड़ी मेहनत के लिए कैरोलीन रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित होने वाली पहली महिला थीं जोकि एक रूढ़िवादी संगठन था जिसमें तब तक केवल पुरुष सदस्य थे।

कैरोलीन ने अपने भाई सर विलियम हर्शेल के काम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अकेले ही 1783 में दूरबीन से तीन नीहारिकाओं का पता लगाया और 1786 में वे धूमकेतु की खोज करने वाली पहली महिला बनीं ; अगले 11 वर्षों में उन्होंने सात अन्य धूमकेतुओं को देखा। पढ़ना जारी रखें कैरोलीन हर्शेल (1750-1848) – धूमकेतु की पहचान करने वाली पहली महिला

हिन्दूकुश-हिमालय हुआ अधीर


आजकल हिमालयी क्षेत्रों में पश्चिमी विक्षोभ खूब हुड़दंग मचा रहा है। जाड़ों के मौसम की उठापटक जो पहले से दिसंबर-जनवरी के महीनों में देखी जाती थी इधर के सालों में जाड़ों की वही बारिश, ओलावृष्टि, बर्फ़बारी की हरकतें फ़रवरी के आख़िरी हफ्तों से मार्च के आख़िर यहाँ तक गर्मियों में भी देखने को मिल रही हैं। पहले ऐसा किसी साल अचानक से देखने को मिलता था अब तो यह लेटलतीफी मौसम की एक आदत सी बन गई है। वहीं बर्फ़ पड़ने में आई कमी आमजन की आँखों ने भी पकड़ी है। बर्फ़ खिसकने की दुर्घटनाएं तो जुबाँ पर चढ़ी ही हुई हैं। माणा में तो अवधाव के चलते 8 मजदूरों की जान भी चली गई। पहाड़ों में बर्फ़ अब कम टिकती है, तो खासोआम सभी आए दिन कहते-सुनते हैं। हिमालय और उसके पार खड़े बर्फ़ के बड़े-बड़े पर्वत, पूरा हिन्दूकुश, वो तिब्बत का पठार, जहाँ-जहाँ तक हमें ये बर्फ़ का अकूत भण्डार मिलता है वहाँ के मिज़ाज में गड़बड़ी आ रही है। पृथ्वी के उत्तर और दक्षिण ध्रुव के अलावा, उस पूरे क्षेत्र में बिना किसी शोर-शराबा के भारी बदलाव आ रहे हैं। वहाँ की हवा, पानी, मिट्टी, नदी-नाले, जंगलों की दुनिया सबकुछ बदल रहा है बल्कि साफ कहें तो बिगड़ रहा है, बिगड़ चुका है। ये खतरनाक बदलाव क्या हैं, क्यों हैं और इनके क्या भयावह परिणाम होंगे इन सब पर वैज्ञानिक रिपोर्ट आती रहती हैं। ऐसे ही कुछ रिपोर्टों के आधार पर कुछ बातें आपके सामने इस लेख के जरिए लाया हूँ। यह लेख वाडिया हिमालयी भूविज्ञान संस्थान की हिन्दी भाषा पत्रिका अश्मिका में प्रकाशित हुआ है। लेख पोस्ट में टेक्स्ट और तस्वीरों दोनों तौर पर सबकी आसानी के लिए दिया जा रहा है। पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया, राय ज़रूर दीजिएगा। साथ ही हिन्दूकुश-हिमालय के लिए भी सोचने-विचारने के लिए समय निकालएगा। पढ़ना जारी रखें हिन्दूकुश-हिमालय हुआ अधीर

जर्मन खगोलशास्त्री मारिया विंकेलमैन : धूमकेतु की पहचान करने वाला पहली मानव


धूमकेतु की पहचान करने वाला पहली मानव मारिया विंकेलमैन थी, जो एक जर्मन खगोलशास्त्री थी, जिसका जन्म 25 फरवरी 1670 को जर्मनी के लीपज़िग के पास पैनिट्ज़ में हुआ था। हालांकि, मारिया के पति गॉटफ्रीड किर्च ने उनके शोध परिणामों को अपने नाम से बेशर्मी से प्रकाशित किया और कई साल बीत जाने के बाद उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि वास्तव में सारा श्रेय मारिया को ही मिलना चाहिए। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मारिया विंकेलमैन को अपने समय की सबसे प्रशंसित महिला शोधकर्ताओं में से एक माना जाता है। मंगलवार, 25 फरवरी को मारिया की 355वीं जयंती होगी। पढ़ना जारी रखें जर्मन खगोलशास्त्री मारिया विंकेलमैन : धूमकेतु की पहचान करने वाला पहली मानव

लिज़ मीटनर : एक भौतिक विज्ञानी जिसने कभी अपनी मानवता नहीं खोई।


लिज़ मीटनर( एलिस मीटनर, 7 नवंबर 1878 – 27 अक्टूबर 1968) एक ऑस्ट्रियाई-स्वीडिश भौतिक विज्ञानी थीं, जिन्होंने परमाणु विखंडन और प्रोटैक्टीनियम की खोजों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

1905 में अपने डॉक्टरेट शोध को पूरा करने के बाद, मीटनर भौतिकी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने वाली वियना विश्वविद्यालय की दूसरी महिला बनीं। उन्होंने अपना अधिकांश वैज्ञानिक करियर बर्लिन में बिताया, जहाँ वे कैसर विल्हेम इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री में भौतिकी की प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष थीं। वह जर्मनी में भौतिकी की पूर्ण प्रोफेसर बनने वाली पहली महिला थीं। नाजी जर्मनी के यहूदी विरोधी नूर्नबर्ग कानूनों के कारण 1935 में उन्होंने अपने पद खो दिए और 1938 के एंस्क्लस (जमर्नी द्वारा आस्ट्रिआ पर कब्जे ) के परिणामस्वरूप उनकी ऑस्ट्रियाई नागरिकता चली गई। 13-14 जुलाई 1938 को, वह डर्क कॉस्टर की मदद से नीदरलैंड चलीगईं। वह कई वर्षों तक स्टॉकहोम में रहीं, अंततः 1949 में स्वीडिश नागरिक बन गईं, लेकिन 1950 के दशक में परिवार के सदस्यों के साथ रहने के लिए ब्रिटेन चली गईं। पढ़ना जारी रखें लिज़ मीटनर : एक भौतिक विज्ञानी जिसने कभी अपनी मानवता नहीं खोई।

2024 रसायन नोबेल पुरस्कार :डेविड बेकर(David Baker), डेमिस हसाबिस(Demis Hassabis),जॉन एम. जम्पर( John M. Jumper)


रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने रसायन विज्ञान में 2024 का # नोबेल पुरस्कार देने का फैसला किया है, जिसमें आधा हिस्सा डेविड बेकर को “कम्प्यूटेशनल प्रोटीन डिजाइन के लिए” और दूसरा आधा हिस्सा डेमिस हसाबिस और जॉन एम. जम्पर को “प्रोटीन संरचना भविष्यवाणी के लिए” संयुक्त रूप से दिया जाएगा।

रसायनज्ञों ने लंबे समय से जीवन के रासायनिक उपकरणों – प्रोटीन को पूरी तरह से समझने और उस पर महारत हासिल करने का सपना देखा है। यह सपना अब पहुंच के भीतर है। डेमिस हसबिस और जॉन एम. जम्पर ने लगभग सभी ज्ञात प्रोटीन की संरचना की भविष्यवाणी करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता(AI) का सफलतापूर्वक उपयोग किया है। डेविड बेकर ने सीखा है कि जीवन के मूलभूत घटको में महारत कैसे हासिल की जाए और पूरी तरह से नए प्रोटीन कैसे बनाए जाएं। उनकी खोजों का महत्व और कार्यक्षमता बहुत अधिक है।

कंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से प्रोटीन के रहस्यों की व्याख्या

जीवन का रसायन विज्ञान कैसे संभव होता है? इस प्रश्न का उत्तर प्रोटीन का अस्तित्व है, जिसे शानदार रासायनिक औजार के रूप में बताया जा सकता है। वे आम तौर पर 20 अमीनो एसिड से बने होते हैं जिन्हें अंतहीन तरीकों से जोड़ा जा सकता है। डीएनए में संग्रहीत जानकारी को ब्लूप्रिंट के रूप में उपयोग करते हुए, अमीनो एसिड को हमारी कोशिकाओं में एक साथ जोड़कर लंबी स्ट्रिंग बनाई जाती है।

फिर प्रोटीन का जादू होता है: अमीनो एसिड की स्ट्रिंग एक अलग – कभी-कभी अनोखी – त्रि-आयामी संरचना (चित्र 1) में मुड़ती और मुड़ती है। यह संरचना प्रोटीन को उनका कार्य देती है। कुछ रासायनिक निर्माण इकाइयां बन जाती हैं जो मांसपेशियों, सींग या पंख बना सकते हैं, जबकि अन्य हार्मोन या एंटीबॉडी बन सकते हैं। उनमें से कई एंजाइम बनाते हैं, जो जीवन की रासायनिक प्रतिक्रियाओं को आश्चर्यजनक सटीकता के साथ संचालित करते हैं। कोशिकाओं की सतहों पर बैठे प्रोटीन भी महत्वपूर्ण हैं, और कोशिका और उसके आस-पास के वातावरण के बीच संचार चैनल के रूप में कार्य करते हैं। पढ़ना जारी रखें 2024 रसायन नोबेल पुरस्कार :डेविड बेकर(David Baker), डेमिस हसाबिस(Demis Hassabis),जॉन एम. जम्पर( John M. Jumper)