१,२,३,४,५,…….
1,2,3,4,5,……
I,II,III,IV,V,……
अंक, संख्याये, हर किसी के जीवन का एक अनिवार्य भाग! मानव इतिहास से जुड़ा हुआ एक ऐसा भाग जो किसी ना किसी ना किसी रूप मे हमेशा मौजूद रहा है, चाहे वह हड्डीयो पर, दिवारो पर बनाये हुये टैली चिन्ह हों, किसी धागे मे बंधी हुयी गांठे , भेडो़ की गिनती के लिये रखे गये छोटे पत्त्थर या आधुनिक लीपी के भारतीय अंतराष्ट्रीय अंक!
जब अंको की, संख्या की चर्चा चल पडी है, चर्चा का प्रारंभ तो इसके उद्गम से होना चाहीये ना! मेरा आशय अंको के इतिहास से नही है, मेरा आशय सबसे प्रथम अंक से है! सबसे प्रथम अंक कौनसा है ?
शून्य (0) या एक (1) ?
एक (1) सभी जानते है, यह ईकाई है। हर गिनती की शुरुवात इसी से होती है, तो सबसे प्रथम ’एक’ ही होगा। यह क्या ? प्रथम तो स्वयं ही एक से जुड़ा है। सबसे प्रथम अंक कौनसा है ? प्रश्न को थोड़ा बदला जाये! सबसे प्रारंभिक अंक कौनसा है ?
क्या शून्य को प्रथम अंक माना जाये?

लेकिन शून्य क्या है? किसी की भी अनुपस्थिती को शून्य कहते है। सबसे प्रश्न तो प्रश्न यही है कि क्या शून्य अपने आप मे अंक या संख्या है ?
गणितज्ञो की माने तो शून्य एक संख्या है। दार्शनिको की माने तो शून्य निराकार है, भगवान है! लेकिन हमारे प्रश्न का क्या ? क्या शून्य से प्रारंभ किया जा सकता है ? किसी भी की अनुपस्थिति अवश्य ही एक प्रारंभिक बिंदू हो सकती है!
यह तय रहा कि गिनती का प्रारंभ शून्य से होगा, एक से नही! आप क्या सोचते है?
गिनती का अंत कहां होता है?

सबसे बड़ा अंक कौनसा है ? क्या आप सबसे बड़े अंक को जानते है ? यदि आपकी जानकारी का सबसे बड़ा अंक N है, तो N+1 उससे बड़ा होगा।
भारतीय तो बड़ी सख्याओं के पिछे पागल रहे है। भारतीय ग्रंथो मे तो लक्ष(105), करोड़(107), अरब(109) से लेकर पद्म(1015), शंख(1017), महाशंख(1019) से लेकर असंख्येय(10140) तक की संख्याओं का उल्लेख है। कुछ ग्रंथो मे इससे बडी़ संख्याओं का उल्लेख भी है।
वर्तमान मे प्रयुक्त बड़ी संख्याओं मे के googol (गूगोल) है, इसका मान 10100 है। अर्थात 10 के पिछे 100 शून्य। यह इतनी बड़ी संख्या है कि इससे मानव शरीर के परमाणुओं की गिनती की जा सकती है।
इससे बड़ी संख्या गूगोलप्लेक्स है, जो कि 10googol है। यह इतनी बड़ी संख्या है कि इस संख्या के एक अंक को लिखने के लिये एक बिंदु का प्रयोग हो तो अब तक का ज्ञात ब्रह्माण्ड इसके लिए छोटा पड़ेगा!
क्या आप इससे बड़ी संख्या सोच सकते है ? आप कहेंगे कि इससे बड़ी संख्या हमारे किस कार्य की है। लेकिन एक गणितज्ञ ऐसा नही कहेगा, क्योंकि गणित मे प्रयुक्त एक संख्या इससे बढ़ी है, इसे ग्राह्म की संख्या(Grahm’s Number) कहते है। इस संख्या को लिखना असंभव है। इस संख्या के अंकों को लिखने के लिये यदि हम प्लैंक दूरी(1.616199×10−35 मीटर) मे एक अंक को लिखे तब भी समस्त ज्ञात ब्रह्माण्ड इसके लिये कम है।
किसी गणितज्ञ से यह प्रश्न पुछने पर उसका उत्तर होगा, अनंत, अपरिमीत, infinity! अनंत (Infinity) का अर्थ होता है जिसका कोई अंत न हो। इसको ∞ से निरूपित करते हैं।
यदि ∞ सबसे बड़ी संख्या है, तब ∞+1 का क्या ? क्या ∞ + 1 उससे बड़ी संख्या नही है ?
एक उदाहरण लेते है :
हिल्बर्ट का अनंत होटल (Infinity Hotel)
इस होटल मे अनंत कमरे है, सभी कमरे भरे हुये है अर्थात सभी कमरे मे यात्री ठहरे हुये हैं। आप सोचेंगे कि इस होटल मे एक और यात्री ठहरने आया तो किसी सीमित कमरे के होटल की तरह इस होटल मे उसे कमरा नही मिलेगा क्योंकि सभी कमरे मे यात्री ठहरे हुये है। लेकिन क्या यह सत्य है ?
मान लेते है कि हम कमरा 1 के यात्री को कमरा 2 मे भेजते है, कमरा 2 के यात्री को कमरा 3 मे। अर्थात किसी कमरा N के यात्री को कमरा N+1 मे भेज देते है। अब कमरा 1 रिक्त है। हम उस मे नये यात्री को ठहरा सकते है।
∞ + 1 =∞
यदि उस होटल मे दो नये यात्री आ गये तब क्या उन्हे कमरा मिलेगा ?
अब हम कमरा 1 के यात्री को कमरा 3 मे जाने कहेंगे। कमरा 2 के यात्री को कमरा 4मे…. कमरा N के यात्री को कमरा N+2 मे। अब हमारे पास कमरा 1,2 खाली है, जिसमे 2 यात्री आ जायेंगे।
∞ +2 =∞
यदि उस होटल मे अनंत नये यात्री आ गये तब क्या उन्हे कमरा मिलेगा ?
अब हम कमरा 1 के यात्री को कमरा 1+∞ मे जाने कहेंगे। कमरा 2 के यात्री को कमरा 2 + ∞ मे…. कमरा N के यात्री को कमरा N+∞ मे। अब हमारे पास ∞ कमरे खाली है, जिसमे ∞ यात्री आ जायेंगे।
गणित मे भगवान और अनंत के लिए कोई जगह नही है ?
चलते चलते एक और प्रश्न क्या ब्रह्माण्ड ∞ (अनंत) है ?
bandhu ∞ koi digit nahi hai , sirf symbol hai , es par koi mathematics operation nahi lagu hota , es leya ye mathematics se bahar hai , ok jis din tum 0 se divide karna jaan jawo gay us din , mathematics ke definition change ho jaye ge ok , it is very complicated ok jantey ho kya hoga , 1=2 ho jaye ga
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जब यह कहा जाता है कि होटल के अनंत कमरों में अनंत यात्री ठहरे हैं तब होटल के बाहर किसी भी यात्री का होना संभव नहीं हो सकता इसलिए यह कहना ही कि एक यात्री और ठहरने के लिए आता है अपने आप में विरोधाभासी है। इसलिए अनंत में कोई संख्या या अनंत जोड़ना संभव ही नहीं है। लेकिन यह संभव है कि अनंत कमरों वाले इस होटल से कुछ यात्री बाहर चले जाएँ। ऐसे में अनंत कमरों में अनंत यात्री नहीं होंगे बल्कि अनंत से कम होंगे। अगर अनंत कमरों वाले होटल से सभी यात्री बाहर निकल जाएँ तो होटल में कोई यात्री नहीं बचेगा लेकिन ऐसे में यह ध्यान रखना होगा कि होटल के बाहर अनंत यात्री हो जाएँगे।
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यदि अर्थ ब्रह्माण्ड के आकार से है तब यह इस बात पर निर्भर करेगा की ब्रह्माण्ड और आकाश को किस प्रकार परिभाषित किया गया है। अगर इसे आइंस्टीन की विचारधारा के अनुरूप परिभाषित किया गया है तो यह संभव है कि ब्रह्माण्ड का आकर परिमित हो। लेकिन अगर आकाश को न्यूटन की विचारधारा के अनुरूप परिभाषित किया जाए तो ब्रम्हांण्ड को परिमित नहीं कहा जा सकेगा।
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आप का लेख ज्ञान वर्धक है ।
परन्तु शून्य अनपस यानी कि जिसकी उपस्थिति ही नहीं है, तो उसे परिभाषित कैसे किया जा सकता है अर्थात् निराकार
है ।
मेरे विचार से ब्रह्मांड का अन्त होना चाहिए, जबकि अंतरिक्ष का नहीं इसका मतब है कि अंतरिक्ष का अंत नहीं है अर्थात अनंत है ।
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एक समष्टि है वह अनन्त है अतः हम उसमें ओर कुछ भी न तो जोड सकते हैं ओर न घटा सकते हैं क्योंकि हम जो भी जोडते हैं वह पहले से ही उसमें समाहित है ओर जो घटा रहे हैं वह मात्र रूपान्तरित हो रहा है अतः अनन्त अनन्त ही रहेगा।अब प्रश्न आता है कि सबसे बडी संख्या कोन सी तो बात वही आती है कि सबसे बडी संख्या वही एक है उसका छोर पाना संभव नही है हाँ हमारी जितनी क्षमता है उसके उपभोग करने की वह उतनी ही बडी हमें प्राप्त होती जाएगी।यदि बडी संख्या को या सबसे छोटी संख्या को हम सीमित कर देंगे तो आगे के भावी आविष्कार पर हमने प्रतिबंध लगा दिया होगा जो असंभव है संभावना अनन्त है अतः शून्य भी निर्वात है जो अनन्त है ओर वही अनन्त एक है इन्ही में से हम आविष्कार करते जाएँ इनके छोर को पाना है तो अपनी सीमाएँ खतम करके अनन्त में समाहित होना पडेगा।
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हम अनन्त में जोड़ नहीं सकते यह तो तर्क संगत लगता है क्योंकि पहले ही मान चुके हैं अनन्त में सब समाहित है इसलिए जोड़ने के लिए कुछ नहीं बचेगा। लेकिन घटाने की संभावना तब भी है। पूर्ण में से कुछ घटा देने पर वह पूर्ण नहीं रहेगा तब इस स्थिति में इसे कैसे समझा जाए?
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∞-1=∞
∞+1=∞
ya kisa posibale hai?
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∞ अपरिभाषित है।
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sir ∞-1 ka value kya hoga?
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∞-1=∞
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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Jab tak 0&∞ ko paribhashit nahi kar sakte tab tak tippadi karana sahi nahi ho sakata
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infinity se introduce kisne karvaya tha
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किसी एक व्यक्ति को श्रेय नही दिया सकता है। अनंत का उल्लेख गणित के अतिरिक्त दर्शन और अध्यात्म मे भी हुआ है।
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lekin aapne to kaha tha eke lekh me ki Jo brahmand me rikt sthan(kala) h use syam padarth (black metter) kahate h
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नही, आपने गलत अर्थ लगाया है।
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जी दुनिया में दो चीजे है
एक है ज्ञान दूसरा विज्ञान
पहले आप ज्ञान और विज्ञानं को परिभासित कर दे मै आपको उत्तर दे दूंगा।
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ज्ञान का अर्थ “जानकारी ” और विज्ञान का अर्थ “विशेष जानकारी “
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kya zero aur infinity ko define kiya jaa sakta hai
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Kya ko pribhasit kiya ja sakta hai?Mera matlab jaise speed,velocity,distance ki definitions hai waise time ka bhi hai?
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दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील बिंदु के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल (प्रतीक्षानुभूति) को समय कहते हैं।
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Jab ham ‘ZERO’ and ‘INFINITY’ ke sahi matlab ko jaan lenge,tab KYA HAM TIME TRAVELLING KAR PAYENGE?
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हम शून्य और अनंत का अर्थ जानते है। लेकिन समय यात्रा कब होगी यह काल अंतरीक्ष के रहस्यो पर निर्भर है साथ ही मे तकनिक के विकास पर भी। कभी कभी हमारे पास वैज्ञानिक सिद्धांत होता है लेकिन उसे अमल मे लाने के लिये तकनिक नही होती है, यह समय यात्रा के साथ भी है। समय यात्रा के लिये सिद्धांत हैं लेकिन कैसे यह ज्ञात नही है, उसकी तकनिक नही है।
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Bhrhmand atle su? Bhrhmand ak sajiv jiv he uska bahri hisa ak jiv ke jesa he chahe vo manus ya prani ya kisi or rupme ho he vo ak jiv….,.,.,,,
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thaink you sir
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ashish sir jaise apne bataya he yah rikt he yaha kuchh nahi he khali he to phir uska astitwa he ya nahi mane ya nahi
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राहुल,
आपके प्रश्न का उत्तर आसान नहीं है। यह दार्शनिकता की ओर ले जाता है, आपके यदि रिक्त स्थान के अस्तित्व को प्रमाणित कर दे तो वह रिक्त नहीं रहेगा। वह है लेकिन उस तक पहुँचना संभव नहीं। वह हमेशा पहुँच से दूर रहेगा।
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यदि प्लेटो के मत कि प्रत्येक वस्तु के विपरीत का अस्तित्व अवश्य होता है को अभिगृहीत के रूप में स्वीकार कर लें तो शून्य का अस्तित्व प्रमाणित किया जा सकता है।
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जितना आनंद इस लेख को पढ़ कर आया वह कह नहीं सकता हूँ. मेरी समझ कहती है कि ब्रह्माण्ड(अंतरिक्ष नहीं) अनंत नहीं है!
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सर जी नमस्कार
यदि अंतरिक्ष रिक्त है जहाँ भौतिकी के नियम नही है, कोई गुणधर्म नही है । तो यह स्थान कैसे हो सकता है? स्थान का मतलब है जगह जहाँ समय भी होता है ।
तो क्या बिग बैंग से पहले समय का कोई अस्तित्व था ?
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मनोज,
यह रिक्त अंतरिक्ष सामान्य अंतरिक्ष से भिन्न है, सामान्य अंतरिक्ष अर्थात ग्रहो, आकाशगंगाओं के मध्य का स्थान। यह अंतरिक्ष रिक्त नही है, इसके गुणधर्म होते है, ऊर्जा होती है, तथा इसमे आभासी कणो का निर्माण और विनाश होते रहता है।
इस रिक्त अंतरिक्ष का अर्थ है हमारे ब्रह्माण्ड की सीमा के बाहर. यह वह जगह है जिसमे बीग बैंग के पश्चात का पदार्थ अभी तक नही पहुंचा है। यह रिक्त है, यहाँ कुछ नही है इसलीये समय भी नही है। यहाँ समय के मायने नही है। समय का आस्तित्व बीग बैंग के साथ हुआ है, वह ब्रह्माण्ड से जुड़ा है। जहाँ ब्रह्माण्ड नही है वहाँ समय नही है।
बीग बैंग के पहले भी समय के मायने नही है। स्थान से समय जुड़ा नही है वह ब्रह्माण्ड से जुड़ा है, उसके अंदर है। ब्रह्माण्ड के बाहर नही!
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Sir, aapka samay se kya aashay hai ? Samay ka sambandh Padarth ki upasthiti se hai ya uski avstha se hai ? Kyonki Big-Bang dhamake ke samay bhi padarth upasthit tha. or uske pahle bhi upasthit tha. to fir samay ka astitv big-bang se suru hua kyon mana jaae !
Main is Lekh ki abhi tak ki sari charchaon se sahmat hun. Sir aapka kahna bilkul sahi hai ki Brahmand Seemit hai.
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ऋग्वेद के अन्तर्गत नासदीय सूक्त जो संसार में वैज्ञानिक चिंतन में उच्चतम श्रेणी का माना जाता की एक ऋचा में लिखा है किः-
तम आसीत्तमसा गू—हमग्रे—-प्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम्।
तुच्छेच्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम्।।
(ऋग्वेद १०।१२९।३)
अर्थात्
सृष्टि से पूर्व प्रलयकाल में सम्पूर्ण विश्व मायावी अज्ञान(अन्धकार) से ग्रस्त था, सभी अव्यक्त और सर्वत्र एक ही प्रवाह था, वह चारो ओर से सत्-असत्(MATTER AND ANTIMATTER) से आच्छादित था। वही एक अविनाशी तत्व तपश्चर्या के प्रभाव से उत्पन्न हुआ। वेद की उक्त ऋचा से यह स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मांड के प्रारम्भ में सत् के साथ-साथ असत् भी मौजूद था (सत् का अर्थ है पदार्थ) । यह कितने आश्चर्य का विषय है कि वर्तमान युग में वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान पर अनुसंधान करने के पश्चात कई वर्षों में यह अनुमान लगाया गया कि विश्व में पदार्थ एवं अपदार्थ/प्रतिपदार्थ (Matter and Antimatter) समान रूप से उपलब्ध है। जबकि ऋग्वेद में एक छोटी सी ऋचा में यह वैज्ञानिक सूत्र पहले से ही अंकित है। उक्त लेख में यह भी कहा गया है कि Matter and Antimatter जब पूर्ण रूप से मिल जाते हैं तो पूर्ण उर्जा में बदल जाते है। वेदों में भी यही कहा गया है कि सत् और असत् का विलय होने के पश्चात केवल परमात्मा की सत्ता या चेतना बचती है जिससे कालान्तर में पुनः सृष्टि (ब्रह्मांड) का निर्माण होता है।
(source: http://sukh-shanti-samridhi.blogspot.in/ )
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अनमोल,
सत का अर्थ पदार्थ कहाँ लिखा है ? असत का अर्थ प्रतिपदार्थ कहाँ लिखा है ? किस संस्कृत के ग्रंथ मे यह परिभाषा दी है ?
लोग किसी भी वैज्ञानिक तथ्य को अपने धर्म के प्राचीन ग्रंथों मे मे दिखाने के लिये अपनी मर्जी से मनमाने अर्थ निकालते रहते है! तुम यह काम हिंदू ग्रंथो के लिये कर रहे हो, मैने अन्य धर्म के लोगो को अपने धर्मग्रंथो के लिये भी करते देखा है।
मैने ऐसे भी लेख देखे है जो अश्विनीकुमार को भाप चालित इंजन बताते है।
धर्मग्रंथो मे विज्ञान मत खोजो, यदि उनमे विज्ञान होता तब लोग प्रयोगशाला मे बैठकर प्रयोग नही करते। धर्मग्रंथ को पढकर ही खोज करते। सारे आविष्कार भारत मे होते, अमरीका और यूरोप ने नही!
यह लेख शून्य और अनंत पर है उसी से संबंधित टिप्पणी दो। किसी अन्य साईट का लिंक और संदर्भ देना है तो प्रामाणिक साइटो और ग्रंथो का संदर्भ दो।
सामान्यतः मै विषयांतर करने वाली टिप्पणीयाँ हटा देता हूं!
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हम किसी धर्म-विशेष को समर्थन नहीं दे रहे हैं, आज ही यह लेख पढ़ा था, तो उसकी सूचना आपको टिप्पणी के माध्यम से दे रहे थे…
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अनमोल,
बात पढने की नही है, बात है उसे समझने की। इंटरनेट पर 95% कुड़ा भरा है।
जो पंक्तियाँ तुमने की है, मै उसे जानता हूं! इस ब्लाग का सबसे पहला लेख इसी नासदीय सूक्त से प्रारंभ हुआ है। ये सूक्त उस समय के मनिषीयो की मेधा को दर्शाता है कि वे कितने विचारवान थे, कितने आगे तक सोचते थे।
दूरदर्शन पर एक धारावाहिक आता था “भारत एक खोज”, उसकी शुरूवात भी इसी सूक्त से होती थी, पहले संसकृत मे उसके बाद हिंदी मे।
लेकिन इस सूक्त का अर्थ वह नही है जो तुमने कहीं पढकर यहाँ पर चेप दीया।
मेरे कहने का अर्थ केवल इतना कि पढो, लेकिन अंधविश्वास मत करो, हर वस्तु को तर्क की कसौटी पर तौलो, उसके पश्चात मानो।
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इस ऋृचा में सत या शब्द आया ही नहीं है। और अगर आता भी तो उसका अर्थ सत्य-असत्य, वास्तविक-मिथ्या या त्रगुणों (सत,रज,तम) आदि से लगाया जा सकता था। सत (पदार्थ के रूप में) कभी कभी नचोड़े गए सोम को भी कहा दिया जाता है लेकिन सत और असत का अर्थ पदार्थ और प्रतिपदार्थ करना किसी भी तरह सही नहीं बैठता है और न ही प्रतिपदार्थ जैसी कोई सकल्पना किसी वैदिक ग्रंथ में दिखाई देती है। इस ऋृचा का अर्थ निम्न प्रकार होना चाहिए जो मैंने विकीपीडिया से लिया है
संधि विच्छेद -अग्रे तमसा गूढम् तमः आसीत्, अप्रकेतम् इदम् सर्वम् सलिलम्, आःयत्आभु तुच्छेन अपिहितम आसीत् तत् एकम् तपस महिना अजायत।
अर्थ –सृष्टि के उत्पन्न होने से पहले मतलब प्रलय अवस्था में यह जगत् अन्धकार से भरा था और यह जगत् तमस रूप मूल कारण में विद्यमान था,यह सम्पूर्ण जगत् जल के रूप में था। अर्थात् उस समय कार्य और कारण दोंनों मिले हुए थे यह जगत् व्यापक एवं निम्न स्तरीय अभाव रूप अज्ञान से आच्छादित था इसीलिए कारण के साथ कार्य एकरूप होकर यह जगत् ईश्वर के संकल्प और तप की महिमा से उत्पन्न हुआ।
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ईशावास्यउपनिषद के पहले ही श्लोक में अनंत से जुड़ी परिभाषा दी हुई है…
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदः पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
ॐ शांतिः । शांतिः । शांतिः ।
अर्थात्- वह भी पूर्ण है, यह भी पूर्ण है, पूर्ण से पूर्ण उत्पन्न होता है और पूर्ण से पूर्ण निकल जाने के बाद पूर्ण ही शेष रह जाता है। शांति, शांति, सर्वत्र शांति हो.
अर्थात: ∞ – ∞ = ∞
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अनमोल,
मैने यह श्लोक पढा़ है…
लेकिन इस श्लोक मे ∞ – ∞ = ∞ सही नही है। यह अपरिभाषित है क्योंकि इसका मूल्य 0,1,2,3,….,∞ या ऋणात्मक भी हो सकता है। लेख के बाकि समीकरणों को भी देखो, समझ मे आ जायेगा।
प्राचीन ग्रंथो का हर कथन सत्य हो जरूरी नही है।
ये देखो :
http://en.wikipedia.org/wiki/Indeterminate_form
http://www.suitcaseofdreams.net/infinity_paradox.htm
http://www.newton.dep.anl.gov/askasci/math99/math99191.htm
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agar anant ko hm 0,1,2,3,….. ki tarah ek sankhya manege …..to sankhyao k niyamanusar ……koi sankhya swyam wali sankhya ko jb ghatati h tb 0 shoonya bachta h…
tb anant – anant = 0 hi mana jayega.
rules are rules……
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सुमित, अनंत को किसी अन्य संख्या के जैसे नहीं माना जा सकता, उस पर अन्य संख्या जैसे नियम लागु नहीं होते। साथ ही में हर नियम की सीमा और शर्ते होती है।
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जी हाँ एकाधिक ब्रह्माण्ड संभव है।
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if universe will not infinite, then what will beyond the universe?
The Answer is zero?
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अनमोल,
ब्रह्माण्ड और अंतरिक्ष मे एक अंतर है! जब हम ब्रह्माण्ड कहते है उसका अर्थ है जहाँ तक बिग बैंग से उत्पन्न पदार्थ/ऊर्जा का अस्तित्व है, उसके पश्चात एक रिक्त(void) स्थान है। इस रिक्त स्थान मे कुछ नही है, भौतिकी के नियम नही है, कोई गुणधर्म नही है।
यह “रिक्त स्थान” ब्रह्मांड के पिण्डो (आकाशगंगा, तारे, ग्रह, निहारिका, गैसीय बादल) के मध्य के अंतरिक्ष से अलग है। ब्रह्माण्डीय पिंडो के मध्य के अंतराल की अपनी ऊर्जा, अपने गुण होते है, वह रिक्त नही होता है, इसकी सीमा और ब्रह्माण्ड की सीमा एक है, लेकिन उसके पश्चात जो “रिक्त स्थान”, वह अनंत है।
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tab to ek se adhik brahmand sambhav hain…
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∞ – ∞ = ∞
∞ + ∞ = ∞
∞ * ∞ = ∞
∞ / ∞ = ∞
its true….
.
Yes, Universe is infinite.
And God is also infinite.
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अनमोल,
∞ – ∞ = अपरिभाषित (indeterminint)
∞ / ∞ = अपरिभाषित (indeterminint)
अपरिभाषित (indeterminint) का अर्थ होगा कि इसका वास्तविक मूल्य ज्ञात नही किया जा सकता!
ब्रह्माण्ड सीमित है या असीमित फिर से सोचो ! यदि असीमित है अर्थात बिग बैंग थ्योरी ही गलत है!
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Yes big bang theory is absolute wrong as the universe has not born and will not die only two process are going on expansion and diffusion . the consideration of the birth of universe is absolute wrong
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Sir yo je brahnand ke bahar aantriksh ya void hai yeh kaha se paadai hua tha
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ब्रह्माण्ड के बाहर कुछ नही है, जो कुछ है वह ब्रह्मांड के अंदर है।
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