अमरीका में कैंसर की मरीज़ 14 साल की एक लड़की को इसकी अनुमति मिली थी कि मृत्यु के पश्चार उसके शरीर को संभाल कर रखा जाए। उस किशोरी की मृत्यु अक्टूबर 2016 में हो गई।
शरीर को संभालकर रखने की इस विधि को ‘क्रायोजेनिक्स’ कहा जाता है। क्रायोजेनिक्स यह आशा उत्पन्न करता है कि मृत मानव सालों बाद जी उठेगा। हालांकि इसकी कोई गारंटी नहीं कि ऐसा होगा।
आख़िर यह कैसे होता है?
मृत्यु के बाद जितनी जल्दी हो सके, लाश को ठंडा कर जमा दिया जाए ताकि उसकी कोशिकाएं, ख़ास कर मस्तिष्क की कोशिकाएं, ऑक्सीजन की कमी से टूट कर नष्ट न हो जाएं। इसके लिए पहले शरीर को बर्फ़ से ठंडा कर दिया जाता है। इसके बाद ज़्यादा महत्वपूर्ण काम शुरू होता है. शरीर से ख़ून निकाल कर उसकी जगह रसायन डाला जाता है, जिन्हें ‘क्रायो-प्रोटेक्टेंट’ तरल कहते हैं। ऐसा करने से अंगों में बर्फ नही बनते। यह ज़रूरी इसलिए है कि यदि बर्फ़ जम गया तो वह अधिक जगह लेगा और कोशिका की दीवार टूट जाएगी।
इसके बाद शरीर को तरल नाइट्रोजन की मदद से -196 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाता है और उसे आर्कटिक क्षेत्र में इस्तेमाल किए जाने वाले स्लीपिंग बैग में डाल दिया जाता है। लेकिन इस तरह शरीर को ठंडा रखने की तकनीक सिर्फ़ अमरीका और कनाडा के पास ही है।
अमरीका में 150 से अधिक लोगों ने अपने शरीर तरल नाइट्रोजन से ठंडा कर रखवाए हैं। इसके अलावा 80 लोगों ने सिर्फ़ अपना मस्तिष्क सुरक्षित रखवाया है। पूरे शरीर को जमा कर सुरक्षित रखने में 1,60,000 डॉलर ख़र्च हो सकता है। मस्तिष्क को सुरक्षित रखने में 64,000 डॉलर का ख़र्च आता है।
चुनौतियाँ

क्रायोजेनिक तकनीक से शरीर सुरक्षित रखने के समर्थक तीन बातों पर ज़ोर देते हैं।
- किसी को क़ानूनी तौर पर मृत घोषित करने में समय लगता है, लेकिन मरने के तुरंत बाद यह ध्यान रखा जा सकता है कि मस्तिष्क के ऑक्सीजन स्तर को बरक़रार रख उसे होने वाला नुक़सान कम किया जाए। इस मामले में 2015 में एक बड़ी कामयाबी मिली, जब एक ख़रगोश के मस्तिष्क में क्रायो-प्रोटेक्टेंट तरल डालकर कोशिकाओं को नष्ट होने से बचा लिया गया।
- दूसरी बात यह है कि शरीर को ठंडा रखने से कोशिकाओं की रासायनिक प्रक्रियाओं की रफ़्तार धीमी हो जाती है। इससे शरीर के अंग ख़राब नहीं होते।
- अंतिम बात यह है कि इस तरह ठंडा रखने से शरीर को जो नुक़सान होता है, भविष्य में नैनोटेक्नोलॉजी की मदद से उसे ठीक किया जा सकता है।
असली परेशानी कोशिका के स्तर पर ही होती है। साधारण शब्दों में कहा जाए तो क्रायोजेनिक प्रक्रिया कोशिकाओं के लिए निहायत ही नुक़सानदेह है।
कनाडा के कार्लटन विश्वविद्यालय के बायोकेमिस्ट प्रोफ़ेसर केन स्टोरी कहते हैं,
“मानव कोशिका में लगभग 50,000 प्रोटीन अणु और उसकी झिल्ली में करोड़ों वसा अणु होते हैं। क्रायोजेनिक तरीक़े के इस्तेमाल से वे नष्ट हो जाते हैं।”
मस्तिष्क कैसे काम करता है, यह समझने से यह भी आसानी से समझा जा सकता है कि इसकी मरम्मत कैसे की जा सकती है।
स्टॉकहोम के कैरोलिंस्का इंस्टीच्यूट के न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर मार्टिन इंगवर ने कहा,
“मस्तिष्क के नेटवर्क निहायत ही असमान होते हैं। इनमें से कुछ बेहद महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन कुछ दूसरे नष्ट हो सकते हैं। अब हमे यह नहीं मालूम कि इनमें कौन बचेंगे और कौन नष्ट हो जाएंगे।”
व्यवसायिक प्रयास
रूस में एक कंपनी है जिसका नाम क्रूरस है। जो करीब 100 देशों के लोगों का शव अब तक अपने यहां संरक्षित कर चुकी है। कंपनी के मालिक डैनिला मेदवदेव का मानना है कि विज्ञान आने वाले समय में इतनी तरक्की कर लेगा कि लोगों को जिंदा करने का फॉर्मूला भी मिल जाएगा।
कंपनी शवों को रखने का खर्चा खुद नहीं उठाती है। ये खर्च शव रखवाने वाले परिजन ही देते हैं। कुछ परिजनों ने केवल सर ही रखवाया है। ताकि बाद में जब जरूरत पड़े कम से कम चेहरे को ही लगाकर जिंदा किया जा सके। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पालतू जानवर का भी शव संरक्षित करवा रखा है।
स्रोत : बी बी सी
सर एक दिन जब ऐसा आएगा
जब मरा हुआ व्यक्ति जी जाएगा
तब हजारों सालों से सिंचित
इंसानों का सपना सच हो जाएगा
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Nice idea
विज्ञान के क्षेत्र में विकास हुआ है
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Hi,
May the light of success and happiness comes to you from all direction!
Thanks for all your support. Pls be connected.
best
kumud jain
feature editor
Daily Hindi Milap
7661918301
kumudrjain@gmail.com
2017-10-19 14:36 GMT+05:30 विज्ञान विश्व :
> Pro. Sachin vishnoi commented: “Nice ideas”
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यह एक कोरी कल्पना या बतंगड के सिवाय कुछ नही है, भला हजारो वर्षो से ईसाई और मुस्लिम और मिस्त्र निवासी शवो को संरक्षित करते आये है। क्या कोई जीवित हुआ क्या???
शवो के संरक्षण की नही बल्कि विज्ञान के संरक्षण की जरूरत है।
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विनीत, ममी बनाकर शरीर सुरक्षित रखने और क्रोयोजिनक्स से शरीर सुरक्षित रखने में अंतर है। क्रोयोजेनिक्स अर्थात अत्यधिक शीतल तापमान।
ममी बनाने पर शरीर सूख जाता है, अंग नष्ट हो जाते है। क्रोयोजेनिक्स में अंग सुरक्षित रहते है।
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I think it is possible and as the science continues to develop,that day is not far when we will become god of this universe.I am sure that human being will be immortal one day and I want to be immortal too. So if possible I will give my body to preserve it if it will possible.
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