विज्ञान संचार का जाना-पहचाना चेहरा : प्रोफेसर यश पाल


आसमान में गुब्बारों से ब्रह्मांड के रहस्यों का पता लगाने वाले प्रोफेसर यश पाल को सन् 1972 में अंतरिक्ष अनुसंधान की राह को आगे बढ़ाने के लिए अहमदाबाद में स्पेस एप्लिकेशन सेंटर यानी अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र की स्थापना के लिए निदेशक नियुक्त किया गया। उन्होंने कुशलतापूर्वक इस केंद्र की स्थापना की। यह उनका संस्था संस्थापक रूप था जिसे उन्होंने बड़ी जिम्मेदारी से निभाया। उनमें इतना आत्मविश्वास था कि जब उस केंद्र से कुछ वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण के लिए अमेरिका भेजने की बात उठी तो प्रोफेसर यश पाल ने कहा, “अमेरिका हमें क्या सिखाएगा? यह काम हम खुद करके दिखाएंगे।” इतिहास गवाह है कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता में उनके द्वारा स्थापित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र ने कितनी बड़ी भूमिका निभाई है।

प्रसिद्ध अंतरिक्ष विज्ञानी प्रोफेसर सतीश धवन ने प्रोफेसर यश पाल से भारत में शिक्षा के प्रसार के लिए उपग्रह के उपयोग की परियोजना पर काम शुरू करने के लिए कहा। वे जानते थे कि इस कठिन काम को प्रोफेसर यश पाल जैसा वैज्ञानिक ही अपनी दूरदर्शिता, लगन और मेहनत से मूर्त रूप दे सकता है। यही हुआ। हालांकि कई बाधाएं सामने आईं लेकिन प्रोफेसर यश पाल और उनके सहयोगी वैज्ञानिकों तथा तकनीशियनों की मेहनत रंग लाई। भारत के 2,400 गांवों में पहली बार सामुदायिक टेलीविजन के सेट लगा दिए गए। और, इस तरह अमेरिकी उपग्रह एटीएस-6 के जरिए शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण करके 1 अगस्त 1975 को सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपरिमेंट यानी ‘साइट’ कार्यक्रम शुरू हो गया। उपग्रह से शिक्षा के क्षेत्र में देश में यह पहला सफल प्रयोग था। इस शैक्षिक कार्यक्रम में विज्ञान की शिक्षा पर अधिक जोर दिया गया।

प्रोफेसर यश पाल शिक्षा पद्धति में आमूल परिवर्तन लाना चाहते थे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू जी सी) के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने इस दिशा में हर संभव प्रयास भी किए। उन्होंने शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए कई नए कार्यक्रमों की शुरूआत की। शोध को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने अंतर-विश्वविद्यालयी केंद्र स्थापित करने का सुझाव दिया। इसी के परिणाम स्वरूप प्रसिद्ध इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फाॅर एस्ट्रोनोमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स की स्थापना हुई।

प्रचलित शिक्षा पद्धति पर गहराई से विचार करने पर उन्होंने तो यह सुझाव भी दे दिया था कि सभी कालेजों तथा विश्वविद्यालयों को एक साल तक बंद कर देना चाहिए ताकि शिक्षक समाज में जाएं, लोगों से और विद्यार्थियों से मिलें, उनकी कठिनाइयां समझें और उन्हें किस तरह की शिक्षा की जरूरत है, इस पर गंभीरता से विचार कर सकें। उनका यह सुझाव राजनैतिक परिवर्तन के कारण लागू न हो सका। अगर यह सुझाव लागू हो गया होता तो आज शिक्षा पद्धति का चेहरा शायद कुछ और होता। वे चाहते थे कि शिक्षा बोझ न बने। उन्हें सन् 1993 में शिक्षा के राष्ट्रीय सलाहकार समिति का अध्यक्ष बनाया गया। उस समिति की रिपोर्ट ‘लर्निंग विदआउट बर्डन’ को आज भी एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ माना जाता है। सन् 2009 में उच्च शिक्षा में सुधार के लिए उनकी अध्यक्षता में सरकार ने एक समिति का गठन किया। तब भी प्रोफेसर यश पाल ने इस बात पर जोर दिया था कि स्कूली बच्चों के भारी-भरकम बस्ते का भार कम करना जरूरी है। विद्यार्थियों से वे कहा करते थे, रटो नहीं, विज्ञान को समझो। वे कोचिंग के कुचक्र को भी शिक्षा के खिलाफ साजिश मानते थे और उसे खत्म करने के लिए उन्होंने सिफारिश की थी। छत्तीसगढ़ के फर्जी विश्वविद्यालयों को बंद कराने का ऐतिहासिक मुकदमा प्रोफेसर यश पाल ने स्वयं लड़ा जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट की खंड पीठ ने अप्रैल 2005 में वहां के 112 फर्जी विश्वविद्यालयों को बंद करने का फैसला सुनाया।

प्रोफेसर यश पाल ने वैज्ञानिक, शिक्षक, विज्ञान संचारक और प्रशासक के रूप में जिम्मेदारियां निभाने के साथ-साथ कई और उत्तरदायित्व भी संभाले। वे योजना आयोग के प्रमुख सलाहकार और यूनीस्पेस के महासचिव और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सचिव भी रहे। सन् 2007 से 2012 तक वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के चांसलर भी रहे। वे इंडियन फिजिक्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट भी रहे। प्रोफेसर यश पाल भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, इंडियन एस्ट्रोनोमिकल सोसायटी, गुजरात साइंस एकेडमी आदि कई अकादमियों के फैलो थे।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रोफेसर यश पाल को अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। उन्हें सन् 1976 में पद्मभूषण और 2013 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। विज्ञान लोकप्रियकरण के लिए उन्हें 2009 में यूनेस्को का प्रसिद्ध कलिंग पुरस्कार और विज्ञान संचार के क्षेत्र में उनके समग्र योगदान के लिए सन् 2000 के राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद् (एनसीएसटीसी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार) के राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया। विज्ञान संचार में उनके योगदान के लिए उन्हें सन् 1994 में आर्थर क्लाक्र्स पुरस्कार भी दिया गया।

जन विज्ञान के चहेते चेहरे वाले, एक में अनेक प्रोफेसर यश पाल 25 जुलाई 2017 को रात्रि लगभग 8 बजे दिल्ली के निकट नोएडा में इस ग्रह से विदा हो गए। पढ़ना जारी रखें विज्ञान संचार का जाना-पहचाना चेहरा : प्रोफेसर यश पाल

3I/ATLAS: अंतरखगोलीय धूमकेतु  या एलियन अंतरिक्ष यान?


3I/ATLAS  एक प्राकृतिक अंतरखगोलीय धूमकेतु है। नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और अन्य संस्थानों के खगोलविद बताते हैं कि इसके दृश्यमान कोमा, धूल की पूंछ और गैस उत्सर्जन धूमकेतु के व्यवहार के अनुरूप हैं, भले ही इसकी रासायनिक संरचना असामान्य हो। इसमें कृत्रिम प्रणोदन, संचार संकेतों या संरचनात्मक विशेषताओं का कोई प्रमाण नहीं मिला है।

अधिकांश वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि हालाँकि इसकी विसंगतियाँ अध्ययन के योग्य हैं, लेकिन असाधारण दावों के लिए असाधारण प्रमाण की आवश्यकता होती है , और वर्तमान अवलोकनों को अंतरखगोलीय धूमकेतुओं की संरचना और उत्पत्ति में प्राकृतिक विविधताओं के माध्यम से समझाया जा सकता है।
असामान्य उत्पत्ति के बावजूद 3I/ATLAS ब्रह्माण्ड के अध्ययन के एक असाधारण वैज्ञानिक अवसर का प्रतिनिधित्व करता है। यह शोधकर्ताओं को किसी अन्य तारे के चारों ओर निर्मित पदार्थ का विश्लेषण करने का अवसर प्रदान करता है, जिससे ग्रह प्रणालियों की विविधता और उन्हें आकार देने वाली रासायनिक प्रक्रियाओं के बारे में सुराग मिलते हैं। चाहे अंततः यह एक एलियन कलाकृति साबित हो या अंतरखगोलीय निर्माण का एक प्राकृतिक अवशेष हो, यह पिंड 3I/ATLAS ब्रह्मांड के बारे में मानवता की समझ को विस्तार देता  है और हमें याद दिलाता है कि हम अपने सौर मंडल से परे के विशाल ब्रह्मांड के बारे में वास्तव में कितना कम जानते हैं।
3I/ATLAS पर बहस पृथ्वी से परे जीवन के बारे में मानव की निरंतर जिज्ञासा और वैज्ञानिक संशयवाद तथा कल्पनाशील अन्वेषण के बीच की महीन रेखा को दर्शाती है। हालाँकि वर्तमान साक्ष्य एक प्राकृतिक पिंड की अवधारणा का दृढ़ता से समर्थन करते हैं, ऐसे अंतरखगोलीय मेहमानों का खुले दिमाग से किया गया अध्ययन यह सुनिश्चित करता है कि यदि कोई एलियन यान कभी हमारे सौर मंडल में प्रवेश करता है, तो हम उसे पहचानने के लिए तैयार रहेंगे। इस अर्थ में, 3I/ATLAS न केवल एक अंतरखगोलीय यात्री है, बल्कि ब्रह्मांड और उसमें हमारे स्थान के बारे में ज्ञान की हमारी अपनी खोज को प्रतिबिंबित करने वाला एक दर्पण भी है। पढ़ना जारी रखें 3I/ATLAS: अंतरखगोलीय धूमकेतु  या एलियन अंतरिक्ष यान?

2025 रसायन नोबेल पुरस्कार :सुसुमु कितागावा(Susumu Kitagawa), रिचर्ड रॉबसन (Richard Robson)और उमर एम. याघी (Omar M. Yaghi)


रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने सुसुमु कितागावा, रिचर्ड रॉबसन और उमर एम. याघी को “धातु-कार्बनिक ढांचे के विकास के लिए” रसायन विज्ञान में 2025 का #नोबेल पुरस्कार देने का फैसला किया है। पढ़ना जारी रखें 2025 रसायन नोबेल पुरस्कार :सुसुमु कितागावा(Susumu Kitagawa), रिचर्ड रॉबसन (Richard Robson)और उमर एम. याघी (Omar M. Yaghi)

2025 भौतिकी नोबेल पुरस्कार: जॉन क्लार्क(John Clarke), मिशेल एच. डेवोरेट (Michel H. Devoret) और जॉन एम. मार्टिनिस(John M. Martinis)


रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने जॉन क्लार्क, मिशेल एच. डेवोरेट और जॉन एम. मार्टिनिस को “इलेक्ट्रिक सर्किट में मैक्रोस्कोपिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और ऊर्जा क्वांटाइजेशन की खोज के लिए” 2025 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार देने का फैसला किया है। पढ़ना जारी रखें 2025 भौतिकी नोबेल पुरस्कार: जॉन क्लार्क(John Clarke), मिशेल एच. डेवोरेट (Michel H. Devoret) और जॉन एम. मार्टिनिस(John M. Martinis)

2025 चिकित्सा नोबेल पुरस्कार : मैरी ई. ब्रुनको(Mary E. Brunkow), फ्रेड रामस्डेल(Fred Ramsdell ) और शिमोन साकागुची(Shimon Sakaguchi )


कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट की नोबेल असेंबली ने 2025 का फिजियोलॉजी या चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार “परिधीय प्रतिरक्षा सहिष्णुता से संबंधित उनकी खोजों के लिए” निम्नलिखित को देने का निर्णय लिया है: मैरी ई. ब्रुनकोइंस्टीट्यूट फॉर सिस्टम्स बायोलॉजी,सिएटल, अमेरिका फ्रेड रैम्सडेलसोनोमा बायोथेरेप्यूटिक्स,सैन … पढ़ना जारी रखें 2025 चिकित्सा नोबेल पुरस्कार : मैरी ई. ब्रुनको(Mary E. Brunkow), फ्रेड रामस्डेल(Fred Ramsdell ) और शिमोन साकागुची(Shimon Sakaguchi )

फर्मी विरोधाभास या पैराडॉक्स


फर्मी विरोधाभास, जिसे फर्मी पैराडॉक्स भी कहा जाता है, अंतर खगोलीय विकसित सभ्यताओं के अस्तित्व की उच्च संभावना और उनके अस्तित्व के प्रमाणों के अभाव के बीच का विरोधाभास है। यह प्रश्न उठाता है कि ब्रह्मांड की विशालता और आयु के बावजूद, मनुष्य ने अन्य बुद्धिमान जीवन के कोई संकेत क्यों नहीं खोजे हैं। इस विरोधाभास को सबसे पहले 1950 में भौतिक विज्ञानी एनरिको फर्मी ने उजागर किया था, जिन्होंने प्रसिद्ध प्रश्न पूछा था, “सब लोग कहाँ हैं?” पढ़ना जारी रखें फर्मी विरोधाभास या पैराडॉक्स