हिन्दूकुश-हिमालय हुआ अधीर


आजकल हिमालयी क्षेत्रों में पश्चिमी विक्षोभ खूब हुड़दंग मचा रहा है। जाड़ों के मौसम की उठापटक जो पहले से दिसंबर-जनवरी के महीनों में देखी जाती थी इधर के सालों में जाड़ों की वही बारिश, ओलावृष्टि, बर्फ़बारी की हरकतें फ़रवरी के आख़िरी हफ्तों से मार्च के आख़िर यहाँ तक गर्मियों में भी देखने को मिल रही हैं। पहले ऐसा किसी साल अचानक से देखने को मिलता था अब तो यह लेटलतीफी मौसम की एक आदत सी बन गई है। वहीं बर्फ़ पड़ने में आई कमी आमजन की आँखों ने भी पकड़ी है। बर्फ़ खिसकने की दुर्घटनाएं तो जुबाँ पर चढ़ी ही हुई हैं। माणा में तो अवधाव के चलते 8 मजदूरों की जान भी चली गई। पहाड़ों में बर्फ़ अब कम टिकती है, तो खासोआम सभी आए दिन कहते-सुनते हैं। हिमालय और उसके पार खड़े बर्फ़ के बड़े-बड़े पर्वत, पूरा हिन्दूकुश, वो तिब्बत का पठार, जहाँ-जहाँ तक हमें ये बर्फ़ का अकूत भण्डार मिलता है वहाँ के मिज़ाज में गड़बड़ी आ रही है। पृथ्वी के उत्तर और दक्षिण ध्रुव के अलावा, उस पूरे क्षेत्र में बिना किसी शोर-शराबा के भारी बदलाव आ रहे हैं। वहाँ की हवा, पानी, मिट्टी, नदी-नाले, जंगलों की दुनिया सबकुछ बदल रहा है बल्कि साफ कहें तो बिगड़ रहा है, बिगड़ चुका है। ये खतरनाक बदलाव क्या हैं, क्यों हैं और इनके क्या भयावह परिणाम होंगे इन सब पर वैज्ञानिक रिपोर्ट आती रहती हैं। ऐसे ही कुछ रिपोर्टों के आधार पर कुछ बातें आपके सामने इस लेख के जरिए लाया हूँ। यह लेख वाडिया हिमालयी भूविज्ञान संस्थान की हिन्दी भाषा पत्रिका अश्मिका में प्रकाशित हुआ है। लेख पोस्ट में टेक्स्ट और तस्वीरों दोनों तौर पर सबकी आसानी के लिए दिया जा रहा है। पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया, राय ज़रूर दीजिएगा। साथ ही हिन्दूकुश-हिमालय के लिए भी सोचने-विचारने के लिए समय निकालएगा। पढ़ना जारी रखें हिन्दूकुश-हिमालय हुआ अधीर