पहली बार खगोलविज्ञानियों ने एक क्षुद्रग्रह को खोज निकाला है जो बाहरी अंतरिक्ष से हमारे सौरमंडल में प्रवेश कर चुका है। चिली स्थित ESO(European Southern Observatory) के वेरी लार्ज टेलिस्कोप(Very Large Telescope: VLT) और विश्व के अन्य वेधशालाओं के निरीक्षण … पढ़ना जारी रखें ओमुअमुआ(Oumuamua) : सौर मंडल के बाहर से आया एक मेहमान
सभी गैस महाकाय ग्रहों के अपने वलय है लेकिन शनि के वलयों सबसे हटकर है, वे सबसे स्पष्ट, चमकदार, जटिल और शानदार वलय है। ये वलय इतने शाही और शानदार है किं शनि को सौर मंडल का आभूषण धारी ग्रह … पढ़ना जारी रखें शनि के शाही वलय
कालटेक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिको ने नौंवे ग्रह के अस्तित्व का दावा किया है? कालटेक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिको के अनुसार उन्होने सौर मंडल मे एक नये गैस महादानव ग्रह के प्रमाण खोज निकाले है। उनके अनुसार यह ग्रह विचित्र है और … पढ़ना जारी रखें सौर मंडल मे नौंवे ग्रह की खोज का दावा
प्लूटो के बारे में तो आपने सुना ही होगा। यह पहले अपने सौरमंडल का 9वां ग्रह था। लेकिन अब इसे ग्रह नहीं माना जाता। आओ आज प्लूटो के बारे में जानते हैं।
रोमन मिथक कथाओं के अनुसार प्लूटो (ग्रीक मिथक में हेडस) पाताल का देवता है। इस नाम के पीछे दो कारण है, एक तो यह कि सूर्य से काफ़ी दूर होने की वजह से यह एक अंधेरा ग्रह (पाताल) है, दूसरा यह कि प्लूटो का नाम PL से शुरू होता है जो इसके अन्वेषक पर्सीयल लावेल के आद्याक्षर है।
सूर्य की रोशनी को प्लूटो तक पहुंचने में छह घंटे लग जाते है जबकि पृथ्वी तक यही रोशनी महज आठ मिनट में पहुँच जाती है। प्लूटो की दूरी का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। बड़ी कक्षा होने के कारण सूर्य की परिक्रमा के लिए भी प्लूटो को अधिक वर्ष लगते है, 248 पृथ्वी वर्ष। प्लूटो अपनी धूरी के इर्दगिर्द भी घूमता है। यह अपने अक्ष पर छह दिवसों में एक बार घूमता है। प्लूटो की कक्षा अंडाकार है। अपनी कक्षा पर भ्रमण करते हुए कभी यह नेप्चून की कक्षा को लांघ जाता है। तब नेप्चून की बजाय प्लूटो सूर्य के समीप होता है। हालांकि प्लूटो को यह सौभाग्य केवल बीस वर्षों के लिए मिलता है। 1979 से लेकर 1999 तक प्लूटो आठवां जबकि नेप्चून नौवां ग्रह था।
प्लूटो नीचे दायें चंद्रमा और पृथ्वी की तुलना मे
प्लूटो का आकार हमारे चंद्रमा का एक तिहाई है। यानी हमारे चंद्रमा के तीसरे हिस्से के बराबर है प्लूटो। इसका व्यास लगभग 2,300 किलोमीटर है। पृथ्वी प्लूटो से लगभग 6 गुना बड़ी है। प्लूटो सूर्य से औसतन 6 अरब किलोमीटर दूर है। इस कारण इसे सूर्य का एक चक्कर लगाने में हमारे 248 साल के बराबर समय लग जाता है।
यह नाइट्रोजन की बर्फ, पानी की बर्फ और पत्थरों से बना है। इसके वायुमंडल में नाइट्रोजन, मिथेन और कार्बन मोनोक्साइड गैस है। इस कारण यहां का तापमान काफी कम रहता है। शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस नीचे यानी -200 डिग्री सेल्सियस रहता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है यहां कितनी ठंड लगती होगी। इतने कम तापमान में कोई यहां नहीं रह सकता है। पढ़ना जारी रखें “प्लूटो : न्यु हारीजोंस की प्लूटो यात्रा पर विशेष भाग 1”
ध्वनि को यात्रा के लिये माध्यम चाहिये होता है और अंतरिक्ष मे कोई वातावरण नही होता है। इसलिये अंतरिक्ष मे पुर्णत सन्नाटा छाया रहता है। अंतरिक्ष यात्री एक दूसरे से संवाद करने के लिये रेडियो तरंगो का प्रयोग करते है।
2. एक ऐसा भी तारा है जिसकी सतह का तापमान केवल 27 डीग्री सेल्सीयस है।
हमारे सूर्य की सतह का तापमान अत्याधिक है, 5778 डीग्री सेल्सीयस! लेकिन एक तारा WISE 1828+2650 की सतह का तापमान 26.7 डीग्री सेल्सीयस है। यह एक भूरा वामन तारा (Brown Dwarf) है। तकनिकी तौर पर भूरे वामन तारे और ग्रह के मध्य होते है। इनका द्रव्यमान ग्रहो से काफ़ी ज्यादा लेकिन तारे से कम होता है। इनका द्र्व्यमान इतना नही होता कि द्रव्यमान से संकुचित होकर वह तारों के जैसे हायड्रोजन संलयन प्रारंभ कर चमकना प्रारंभ कर सके।
3.अंतरिक्ष की गंध गर्म धातु तथा भूनते हुये मांस के जैसी है।
बहुत सारे अंतरिक्ष यात्रीयो ने अंतरिक्ष की गंध गर्म धातु तथा भूनते हुये मांस के जैसी बतायी है।
4.मानव शनि के चंद्रमा टाइटन पर अपनी बांहो पर कृत्रिम पंख बांधकर फड़फड़ाते हुये उड़ सकता है।