अंतरग्रहीय अभियानो मे विशाल गैस दानव ग्रहो(बृहस्पति, शनि, युरेनस, नेपच्युन) तथा अन्य ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण के प्रयोग के यानो को गति दी जाती है, इस तरिके को गुरुत्विय सहायता(Gravity Assist) कहते है। इस तरिके मे इंधन का प्रयोग नही होता है और यान की गति बढ़ जाती है।
वायेजर 1 तथा 2 का पथ। दोनो का पथ इस तरह निर्धारित किया गया था कि वे ग्रहो से गुरुत्विय सहायता(Gravity Assist) लेकर आगे बढे।
अगस्त 1977 मे प्रक्षेपित वायेजर 2 बृहस्पति पहुंचने के बाद उसके गुरुत्वाकर्षण की सहायता से गति प्राप्त की और तेज गति से शनि की ओर पहुंचा। उसके बाद वायेजर 1 भी यही कार्य किया। वायेजर 2 ने शनि से गुरुत्विय सहायता ली और ज्यादा तेज गति से युरेनस पहुंचा, उसके बाद और युरेनस से सहायता ले अधिक तेज गति से नेपच्युन पहुंचा और उसके आगे निकल गया। गैलेलीयो यान ने शुक्र से एक बार, पृथ्वी से दो बार, सूर्य से एक बार सहायता लेकर अपने लक्ष्य बृहस्पति पहुंचा। शनि की परिक्रमा कर रहे कासीनी यान ने शुक्र से दो बार, पृथ्वी से एक बार, बृहस्पति से एक बार सहायता ली और शनि तक पहुंचा।
ध्यान रहे कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है, वे एक जगह नही रहते है। इन सभी अभियानो मे इन अंतरिक्ष यानो का पथ इस तरह से बनाया जाता है कि वे निर्धारित समय पर ग्रह के पहुंचने के स्थान पर पहुंच जाये और तेज गति प्राप्त कर अगले पड़ाव पर समय पर पहुंचे ताकि अगले पड़ाव से भी गति त्वरण प्राप्त करने मे सहायता ले सके। इस तरह के पथ बनाने के लिये ग्रहों की स्थिति पर ध्यान मे रख कर पथ बनाया जाता है। वायेजर ने बृहस्पति, शनि, युरेनस से सहायता प्राप्त की थी, लेकिन इस तरह की स्थिति 175 वर्ष मे एक बार होती है। यह स्थिति 1977 मे बनी थी और अब 2152 मे बनेगी।
न्यु हारीजोंस के पथ मे वह केवल बृहस्पति से ही सहायता ले पाया था।
अंतरिक्ष सदीयों से मानव को आकर्षित करता रहा है। खगोलिय पिंड मानव मन को हमेशा चुनौति देते आये है, और सदियों से मानव उनका निरीक्षण और अध्ययन करता आया है। ज्ञान की इस यात्रा मे महत्वपूर्ण मोड़ 4 अक्टूबर 1957 को आया जब पहली बार कोई मानव निर्मित वस्तु स्पूतनिक उपग्रहके रूप मे पृथ्वी के वातावरण को पार कर अंतरिक्ष मे पंहुची। इसके पश्चात तो अंतरिक्ष अभियानो की एक श्रृंखला प्रारंभ हो गयी।
प्लूटो खोज के समय 1930 और न्यु हारीजोंस द्वारा लिया चित्र 2015
अपोलो अभियान के तहत मानव 20 जुलाई 1969 को चांद पर जा पहुंचा। अंतरग्रहीय अभियान के तहत 19 मई 1961 को सोवियत संघ का वेनेरा 1शुक्र ग्रह के 100,000 किमी दूरी से गुजरा। इस यान के शुक्र के पास पहुंचने से पहले ही संपर्क टूट गया था लेकिन यह पहला अभियान था जब कोई मानव निर्मित यान किसी अन्य ग्रह के पास से गुजरा था। सं रा अमरीका का यान मैरीनर 2पहला सफल अभियान था जिसमे दिसंबर 1962 मे शुक्र के 35,000 किमी दूरी से आंकड़े भेजे। सं रा अमरीका का यान मैरीनर 4 जुलाई 1965 को मंगल के पास से गुजरा। मार्च 1966 मे सोवियत संघ का यान वेनेरा 3 शुक्र की सतह से टकरा कर नष्ट हो गया और वह कोई भी सुचना भेजने मे असफल रहा था, लेकिन वह पहला यान था जो किसी अन्य ग्रह की सतह पर पहुंचा था। अक्टूबर 1967 मे सोवियत संघ का वेनेरा 4 किसी अन्य ग्रह की सतह पर उतरने वाला पहला सफल अभियान था।
सं रा अमरीका का यान मैरीनर 10 पहला अभियान था जो एक बार मे एकाधिक ग्रहो के पास से गुजरा। यह यान फरवरी 1974 मे शुक्र के पास से तथा बुध के पास से तीन बार मार्च , सितंबर 1974 तथा मार्च 1975 मे गुजरा।
इन अभियानो के बाद मानव के सबसे सफल अंतरग्रहीय अभियान वायेजर 1तथा वायेजर 2रहे। ये दोनो यानो ने बृहस्पति, शनि, युरेनस तथा नेपच्युन की यात्रा की थी। उसके पश्चात वे सौर मंडल के बाहर की यात्रा पर निकल गये। इस तरह से 2006 प्लूटो के ग्रह माने जाने तक मानव द्वारा सभी ग्रह तक खोजी अंतरिक्ष यान भेजे जा चुके थे केवल प्लूटो ही ऐसा अकेला ’ग्रह’ था जिसपर मानव यान नही भेजा गया था।
1991 मे सं रा अमरीका डाक विभाग ने प्लूटो ग्रह पर एक डाक टिकट जारी किया, जिस पर लिखा था “Pluto Not Yet Explored”। डाक टिकट पर लिखे इस संदेश ने वैज्ञानिको को प्लूटो पर एक अभियान भेजने के लिये चुनौति दी। इस चुनौति ने न्यु हारीजोंस अभियान का आधार बनाया और 2006 मे यह यान अपनी यात्रा पर रवाना हो गया।
प्लूटो के बारे में हमें जितनी जानकारी है उसे एक डाक-टिकट के पीछे लिखा जा सकता है। इस मिशन के पूरा होने के बाद सौर मंडल संबंधी किताबों को दोबारा लिखे जाने की ज़रूरत होगी।
सौर मंडल की सीमा पर ऐसा कोई बोर्ड नहीं है कि जो कहे “आकाशगंगा के मध्य के अंतरिक्षीय क्षेत्र मे आपका स्वागत है”!
अब से 35 वर्ष पहले प्रक्षेपित और पृथ्वी से 115 अरब मील दूरी पर नासा का अंतरिक्ष यान वायेजर 1 सौर मंडल की सीमा को पार कर आकाशगंगाओं के मध्य के अंतरिक्ष मे प्रवेश करने जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों ये वैज्ञानिक उस पल का इंतज़ार कर रहे है जब कोई मानव निर्मित वस्तु सौर मंडल की सीमा को पार कर खुले अंतरिक्ष मे प्रवेश करेगी, ऐसा होना तय है। लेकिन अब तक ऐसा हो चुका है कि हमें लगा है कि वायेजर इस सीमा को पार कर चुका है लेकिन बाद मे ज्ञात हुआ है कि सौर मंडल की सीमा उस बिंदु से और आगे है।
वायेजर- 1
पिछले गुरूवार 27 जून 2013 को वैज्ञानिकों ने कहा कि वायेजर 1 अभी भी सौर मंडल की सीमा मे है लेकिन एक ऐसे क्षेत्र मे है जिसकी अपेक्षा नहीं थी और हमारी समझ से बाहर है। ये एक ऐसे विचित्र क्षेत्र मे है जो सौर मंडल की निश्चित रूप से अंतिम परत होना चाहिये। अर्थात हीलीयोस्फियर का आख़िरी छोर, जो । सौर मंडल को घेरे हुये सौर वायु से निर्मित एक विशालकाय बुलबुला है। वायेजर 1 जो वर्तमान मे 3800 मील प्रतिघंटा की गति से सौर मंडल से दूर जा रहा है, उसने पिछले कुछ समय मे अपने आसपास अंतरिक्ष मे कुछ परिवर्तन महसूस किये है। पढ़ना जारी रखें “सौर मंडल की सीमा पर वायेजर 1? शायद हां शायद ना !”
वायेजर २ यह एक मानव रहित अंतरग्रहीय शोध यान था जिसे वायेजर 1 से पहले 20 अगस्त 1977 को प्रक्षेपित किया गया था। यह अपने जुड़वा यान वायेजर 1 के जैसा ही है, लेकिन वायेजर 1 के विपरित इसका पथ … पढ़ना जारी रखें मानव इतिहास का सबसे सफल अभियान :वायेजर 2