प्रश्न आपके, उत्तर हमारे

प्रश्न आपके, उत्तर हमारे

यह ‘प्रश्न आपके और उत्तर हमारे’ का पहला भाग है। यहाँ अब 4000 के क़रीब टिप्पणियाँ हो गयी हैं, जिस वजह से नया सवाल पूछना और पूछे हुए सवालों के उत्तर तक पहुँचना आपके लिए एक मुश्किल भरा काम हो सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अब ‘प्रश्न आपके और उत्तर हमारे: भाग 2‘ को शुरू किया जा रहा है। आपसे अनुरोध है कि अब आप अपने सवाल वहीं पूँछे।

अन्य संबंधित आर्काइव:

1.
2. प्रश्न आपके, उत्तर हमारे: 1 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक के प्रश्नों के उत्तर

3,992 विचार “प्रश्न आपके, उत्तर हमारे&rdquo पर;

      1. आंखों में स्थित रेटिना में दो प्रकार की कोशिका होती हैं- एक फोटोरिसेप्टर कोशिका व दूसरी रॉड कोशिका।
        रॉड कोशिका प्रकाश संवेदी होती हैं और कम प्रकाश में उपयोगी होती हैं। कोन कोशिका रंगों व चमकीलेपन के प्रति संवेदी होती हैं। बिल्ली में रॉड कोशिका की अपेक्षा कोन कोशिका की संख्या अधिक होती है। अंधेरे में जब बिल्ली अपनी आंखों को पूरा खोलती है तो सम्पूर्ण उपस्थित प्रकाश टेपटिम ल्यूसिडम नामक पर्त पर गिरता है, जो कि क्रिस्टल से बनी होती है। यह पर्त सभी दिशाओं में आंख के अंदर व बाहर प्रकाश उत्सर्जित करती है, जिससे बिल्ली पर्याप्त रूप से देख सकें और हमें प्रतीत होता है कि उसकी आंखें चमक रही हैं।

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      1. सबसे पहले फ्रेडरिक मिशर ने 1869 में DNA को एक मछली के शुक्राणु से निकाला। 1919 में फोयबस लेवेन ने दिखाया कि DNA फास्फेट-शुगर-बेस के क्रम में जुड़ने से बना है। इसके बाद DNA पर और भी कई जानकरियाँ अलग अलग वैज्ञानिकों से प्राप्त हुईं। बाद में मॉरीस विल्किन्स और रोज़लिंड फ्रैंकलिन की DNA की एक्स रे डिफ़्रैक्शन की तस्वीरों/आँकड़ों और उसके पहले अन्य कई वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए कामों के आधार पर जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक 1953 में डीएनए की आणविक संरचना का पहला सटीक मॉडल प्रस्तुत किया।

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      1. ठंडा करने की प्रक्रिया के दौरान वह आंतरिक हवा अंदर लेता हैं, बाष्पीकरण (एवापोरेशन) के माध्यम से इसे पारित करके उसे ठंडा करता हैं और वापस कमरे में फेंक देता है| हालांकि, इसका काम करने का अंदाज़ पुराने एयर कूलर्स के काम करने की प्रकिया से काफी विपरीत है| एयर कूलर्स बाहर की हवा अंदर लेते हैं, उसे पानी के माध्यम से ठंडा करते हैं, और फिर अंदर फेंक देते हैं| लेकिन आजकल के एयर कंडीशनर सिर्फ आंतरिक हवा पर काम करते हैं|

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      1. पानी जब बूंद के रूप में गिरता है तो पृष्ठतनाव के कारण पानी की बूंदे गोल आकार ले लेता है।
        पृष्ठ तनाव (Surface tension) किसी द्रव के सतह या पृष्ट का एक विशिष्ट गुण है। इसी गुण के कारण किसी द्रव की सतह किसी दूसरी सतह की ओर आकर्षित होती है (जैसे किसी द्रव के दूसरे भाग की तरफ)। पृष्ट तनाव के कारण ही पारे की बूँद एक गोलकार रूप धारण कर लेती है न कि अन्य कोई रूप (जैसे घनाकार)।

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      1. पृथ्वी एक कतिपय धुरी पर सदैव पश्चिम से पूर्व को घूमती रहती है। पृथ्वी की इसी गति को घूर्णन अथवा आवर्तन गति कहा जाता है। पृथ्वी अपनी गति पर जब एक पूरा चक्कर लगा लेती है तो एक दिन होता है। इसी से इस गति को दैनिक गति भी कहते हैं।
        12 घंटे तक धरती का जो भाग सूर्य के सामने रहता है, तब वहां दिन होता है और शेष भाग में रात होती है।

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      2. Din aur raat hone ka karan yahi hai ki jab prithvi surya ka chakkar lagati hai tab wo apne Axis per bhi ghoomti hai isliye jab uska aage ka part surya ke samse aata hai to piche wale part pe aandera ho jata hai aur jab prithvi ka piche wala bhaag ghoomte ghoomte surya ke aage aa jaata hai to prithvi ke aage wale bhaag per aandera ho jaata hai. Yahi karan se din aur raat hoti hai.

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  1. आषीष जी। क्या ये ब्रम्हाँण , जीवन, हम सब ब्रम्हाँण मेँ समय के साथ हो रही अव्यबस्था Biological mutetion का परिणाम है या ये सब निश्चित समय और क्रम मेँ चल रहा है?

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    1. Biological Mutation और ब्रह्मांड मे समय के साथ हो रही अव्यवस्था दो अलग प्रक्रिया हैं। यह entropy के नियम से संचालित होती है जिसके अनुसार समय के साथ अव्यवस्था बढ़ती है।

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      1. हाँ, दोनो समान गति से नीचे गिरेंगी। इसे चंद्रमा पर देखा जा चूका है। इस प्रयोग को नासा ने पृथ्वी मे निर्वात उत्पन्न करके भी देखा है।

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    1. तरंग ऊर्जा के प्रवाह से उत्पन्न होती है। ऊर्जा के प्रवाह के लिये माध्यम चाहिये। ऊर्जा अपने प्रवाह के दौरान अपने माध्यम मे एक अव्यवस्था या दोलन उत्पन्न करता है जो तरंग के रूप मे होती है। ऊर्जा के प्रवाह का माध्यम काल-अंतराल(space-time) या पदार्थ (matter) हो सकता है। प्रकाश अपने प्रवाह के लिये काल-अंतराल का प्रयोग करता है, जबकि ध्वनि के पदार्थ चाहिये।
      प्रकाश काल-अंतराल मे दोलन उत्पन्न करता है, ध्यान रहे काल-अंतराल एक कपड़े के जैसे है जिसमें प्रकाश दोलन उत्पन्न कर सकता है।

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      1. विनोद जी, आपके बेटे के अच्छे स्वास्थ्य की हम कामना करते है। इस प्रश्न का उत्तर आपके बेटे का डाक्टर ही अच्छी तरह से पायेगा।

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  2. ओह !
    श्यानता का सीधा अर्थ यदि कहे तो …श्यानता माने ..गाढ़ापन !

    द्रव के प्रवाह से सम्बन्धित है ये ………

    तरल में दो परतों के मध्य लगने वाले घर्षण बल को श्यान बल के नाम से जाना जाता है
    जैसे .. शहद और पानी मे शहद अधिक श्यान है

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  3. श्री मान जी

    ” ताप बढ़ने पर द्रव की श्यानता घटती है जबकि गैसों की श्यानता बढती है ”

    उपरोक्त कथन की व्याख्या कर कारण को स्पष्ट करने का कष्ट कीजिये…..

    धन्यवाद !

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      1. प्रकाश फोटान से बना है। फोटान बोसान कणों का एक प्रकार है। बोसान कण स्थान नहीं घेरते है। बोसान कणों की यह विशेषता उन्हें पदार्थ बनाने वाले फर्मियान कणों से अलग करती है।

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    1. राहुल,
      लकड़ी मे कार्बन के अतिरिक्त और भी ज्वलनशील पदार्थ होते है। कोयला कार्बन का ही रूप है। ज्वलनशील प्रक्रिया मे सभी पदार्थ एक साथ नहीं जलते है, एक क्रम से जलते है, पहले लकड़ी के अन्य तेज ज्वलनशील पदार्थ जलते है और कोयला बचता है, कोयला जलने के बाद राख बचती है। राख मे मुख्यत धातु होती है, वह भी अत्यंत उच्च ताप पर जलेगी।

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      1. किसी भी कार्बनिक पदार्थ(लकड़ी, पत्ते, कोयला) के जलने पर मुख्यत: कार्बन डाय आक्साईड/कार्बन मोनाक्साईड मुक्त होती है। ये दोनो गैसों को हमारा शरीर ग्रहण नही कर पाता है। दोनो गैस जानलेवा भी हो सकती है।

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    1. १.समुद्र मे ज्वार भाटा
      २.पृथ्वी के अपनी धुरी के घूर्णन की स्थिर गति, चंद्रमा के ना रहने पर वह अनियमित हो जायेगी, मौसम मे बदलाव आयेगा और जीवन कठीन हो जायेगा।

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    1. निकाला जा सकता है, लेकिन कुछ समस्यायें है
      १. सटिकता से डुबो जहाज़ की जगह की जानकारी चाहिये
      २. समुद्र की गहराई ज़्यादा नहीं होना चाहिये, २-३ किमी से ज़्यादा होने पर निकालना कठिन है क्योंकि इस गहराई पर मानव नहीं जा सकता, बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी समस्याये आती हैं।
      ३. मशीन हर काम नहीं कर सकती है।

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    1. बादल फटना, (अन्य नामः मेघस्फोट, मूसलाधार वृष्टि) बारिश का एक चरम रूप है। इस घटना में बारिश के साथ कभी कभी गरज के साथ ओले भी पड़ते हैं। सामान्यत: बादल फटने के कारण सिर्फ कुछ मिनट तक मूसलाधार बारिश होती है लेकिन इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बादल फटने की घटना अमूमन पृथ्वी से १५ किलोमीटर की ऊंचाई पर घटती है। इसके कारण होने वाली वर्षा लगभग १०० मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है। कुछ ही मिनट में २ सेंटी मीटर से अधिक वर्षा हो जाती है, जिस कारण भारी तबाही होती है।
      बादल फटने का अर्थ अचानक ही आए तूफ़ान और भीषण गर्जना के साथ तीव्र गति से होने वाली वर्षा से हैं।

      जब वातावरण में अधिक नमी होती है और हवा का रुख़ कुछ ऐसा होता है कि बादल दबाव से ऊपर की ओर उठते हैं और पहाड़ से टकराते हैं।
      इस स्थिति में तब पानी एक साथ बरसता है।
      इन बादलों को ‘क्यूलोनिवस’ कहा जाता है।
      मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पहाड़ी क्षेत्रों में बादल अधिक फ़टते हैं।
      सर्द-गर्म हवाओं के विपरीत दिशा में टकराना भी बादल फटने का मुख्य कारण माना जाता है।
      वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रक्रिया में पानी असमान्य तेज़ी से गिरता है, जिसे ज़मीन सोख नहीं पाती।
      वर्षा की गति बहुत तेज होती है, जो भूमि को नम नहीं बनाती, बल्कि मिट्टी को बहा देती है।
      वर्षा की तीव्रता इतनी अधिक होती है कि वह दो फुट के नाले को पानी के 50 फुट के नाले में तब्दील कर देती है।

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  4. सर जी मेरा सबाल यह की मे रूस की पनडूबी को निकालना चाहता हूं जो करीब 12 बरष पहले समुंदर मे किसी कारण डूब गया था । मगर तब से लेकर आज तक मेरा अनुभव यह कहता हे कि इस पनडूबी को आज भी निकाला जा सकता हे जो कि समंदर के जल भरी हुई हे । सर जी मुझे ऐसा कयूं लगता हे कया ऐसा हो सकता हे अगर नही तो कयूं नहीं । मुझे साबित करने का एक मौका दिया जाये । कयूं इस घटना को आज तक मे भुला नही पाया । वह पिचर जो मेने टीवी पर देखी वह आज भी मेरे दिमाग मे हे । ओर मुझे ऐसा लगता हे कि पानी की गहराइयों मे से भारी से भारी समानों को बाहर निकाला जा सकता हे ।।????

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  5. अफ़सोस ! आगे कुआं पीछे खांई ……

    बेचारा विद्यार्थी माने तो माने किसकी ….?

    मैं तो मान लूँगा श्री मान जी …किन्तु क्या होगा उन अध्ययनरत बालको का जिनका एक मात्र सहारा उपर्युक्त श्रोत ही है /

    कुछ तो कहिये उन मासूमों के प्रति जिन्हें भारत का भविष्य कहा जाता है …!
    क्या ऐसा ही विज्ञानं सीखेगे ये सब ….. दुविधा युक्त !

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    1. मै केवल यही कहूँगा कि g पर पृथ्वी के घूर्णन का प्रभाव नहीं पड़ता और यह वैज्ञानिक तथ्य है। रहा प्रश्न पाठ्यपुस्तक का वह अंतिम सत्य नहीं है, मै ऐसे कई उदाहरण दे सकता जिनमें पाठ्यपुस्तक मे ग़लत जानकारी दी गयी है।

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    1. नीरज जी,
      ऊर्जा ब्रह्मांड का अंतिम सत्य है, ऊर्जा ही ब्रह्मांड है। वह किसी अन्य वस्तु से नहीं बना है, समस्त पदार्थ ऊर्जा से बना है।

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  6. श्री मान जी
    जरा इधर भी ध्यान दे ……
    इण्टरमीडिएट भौतिकी भाग -१ ….. विनोद गोयल
    आधुनिक भौतिकी भाग -१ …… अग्रवाल-त्यागी
    माध्मिक भौतिकी भाग -१ …….. डॉ वी०के० अग्रवाल

    इन सभी स्रोंतों ने तो पूरा सिद्ध कर रखा है कि पृथ्वी के घूर्णन के कारण भी ‘g ‘ के मान में परिवर्तन होता है !

    कृपया बालक की मनोदशा को समझते हुए दुविधा को नष्ट करने का कष्ट करे !
    धन्यवाद

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    1. विजय जी, आप मेरे द्वारा दिये लिंको पर भरोसा कर सकते है, ये सभी प्रमाणिक है। भारतीय पाठ्यक्रम की पुस्तकों की गुणवत्ता पर मै कुछ नहीं कहूँगा।

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  7. श्री मान जी

    अगर प्रथ्वी अपनी अक्ष के परित : घूमना बंद कर दे तो विषुवत रेखा पर ” g ” के मान में क्या परिवर्तन होगा …? कारण भी स्पष्ट कर दीजियेगा !

    धन्यवाद

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      1. क्षमा कीजियेगा ……… किन्तु पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण ‘g ‘ के मान में निम्न परिवर्तन होता है …g’= g – r w ^2 cos^2 A जहाँ w = कोणीय वेग & A = अक्षांश अतः श्री मान जी कृपया मामले को गंभीरता से ले ! धन्यवाद्

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      2. विजय जी,
        मै प्रश्नों का उत्तर पूरी गंभीरता से देता हुँ।
        http://en.wikipedia.org/wiki/Standard_gravity देखे!
        http://wiki.answers.com/Q/When_earth_stops_rotating_what_is_the_value_of_g#page1
        http://www.physicsforums.com/showthread.php?t=346228
        g के मान पर पृथ्वी के द्रव्यमान और पृथ्वी के केंद्र से दूरी के अतिरिक्त किसी अन्य कारक का प्रभाव नहीं पड़ता है।

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    1. पदार्थ , श्याम पदार्थ , ऊर्जा , श्याम ऊर्जा ये सभी एक ही है, सभी ऊर्जा के भिन्न रूप है। इस ब्लाग पर ब्रह्मांड की संरचना पर कुछ लेख है, उन्हे पढ़े।

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  8. सर जी काफी दिनों से एक सवाल मेरे दिमाग को परेशां करते आ रहा है पर उसका जवाब कही से न पाकर आपको लिख रहा हु | क्यूँकी हिंदी में जानकारी पाने का इस साईट के इलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है,मैंने २००५ में एक फिल्म देखा The six day जिसमे मरे हुए लोगो को उनके डीएनए और दिमाग का xray लेकर पुन जीवित किया जाता है और फिर वो इन्सान एक दुसरे शारीर में हमारे बिच होता है,फिल्म चाहे जैसा भी हो पर मनाब द्वारा किया गया एक बेहतरीन कल्पना है जो मुझे लगता है एक दिन सच हो सकता है,मेरा सवाल ये है की दिमाग के x-ray के बिना सिर्फ डीएनए से इन्शान की पूरी जनम से लेकर मृत्यु तक का मेमोरी प्राप्त किया जा सकता है ? क्या डीएनए में इन्सान का मेमोरी हो सकता है ? क्या माँ बाप गुण मेमोरी का हिस्सा हो सकता है ? क्योकि हम सब कुछ न कुछ माँ बाप के जैसे होते है | जैसे माँ बाप में से कोई किसी कार्य में जानकर है तो उनका पुत्र या पुत्री को वह कार्य सिखने में आसानी होती है, और उसे लगता है जैसे उसे पहले से उस कार्य को करने का अभ्यास हो | पीडी दर पीडी जो बिकाश हम देख रहे है वो क्या है ? उन्नत हो रहा है कौन अपने सिखने की क्षमता को बड़ा रहा है तो काया डीएनए में अभी तक बहुत कुछ रहस्य छुपा है ????

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    1. सैद्धांतिक रूप से DNA से प्रतिकृति बनाना संभव है लेकिन अभी हमारे पास तकनीक नहीं है। शायद भविष्य मे हो। DNA मे अभी भी कई रहस्य छुपे है।DNA मे आनुवाशिक स्मृति होती है जैसे नवजात शिशु दुग्ध पीना जानता है। लेकिन जो ज्ञान हम सीखते है जैसे पढ़ना लिखना या पेशेगत ज्ञान जैसी स्मृति DNA मे नहीं होती है, यह स्मृति मस्तिष्क मे होती है, इसे मृत्यु के पश्चात पुनर्जिवीत करना कठीन है।

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    1. कुछ बातें लिखीत इतिहास से जानते है। कुछ बातें ऐतिहासिक अवशेष से जैसे इमारतों के अवशेष जैसे पिरामीड, मक़बरे, भीत्ती चित्र , मृत अवशेष जैसे ममी, हड्डियों से जानते है।
      बहुत सी बातें धरती की परतों मे छुपी होती है, हर परत एक विशेष काल का प्रतिनिधित्व करती है, उसमें उस काल के अवशेष होते है।

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      1. ताम्बा अन्य धातुओ की तुलना में ऊष्मा का वहां बेहतर रूप से करता है। लेकिन अन्य धातुओ की ऊष्मा वहां क्षमता भी ताँबे से बहुत ज्यादा कम नहीं है। अन्य धातुओ के प्रयोग से अधिक अंतर नहीं आएगा।

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  9. गुरूजी,
    पूर्णत रिक्त स्थान ब्रह्मांड की सीमा से परे है l तो ब्रह्माण्ड में ऐसा कोई स्थान नहीं जहां कुछ भी ना हो। क्य़ा वैज्ञानिक प्रय़ोगशाला में पूर्णतः निर्वात उत्पन्न कर सकते हैं ?

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    1. वैज्ञानिक पुर्ण निर्वात का निर्माण नहीं कर पाये है लेकिन प्रयोग के लिये लगभग पुर्ण निर्वात ज़रूर बना पाये हैं।

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    1. guru ji
      यदि ऐसी कोई भी चीज, पार्टिकल या वस्तु नही है जिसकी कोई शुरूवात नही हुई और ना ही अंत होगा ? तो फिर ब्रह्माण्ड की शुरूवात कैसे हुई ?

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  10. Guru ji,
    आइंस्टाइन के साधारण सापेक्षतावाद के अनुसार ब्रह्मांडीय स्थिरांक निर्वात के घनत्व तथा दबाव से जुड़ा है। दूसरे शब्दो मे श्याम ऊर्जा , निर्वात की ऊर्जा है। इस व्याख्या के अनुसार श्याम ऊर्जा अंतरिक्ष(निर्वात) का गुणधर्म है।
    to kya koi sthaan puri tarah se khali nahi ho sakta? kyon ki, space ki koi seema nahi hai, aur big bang se ab tak universe jitna fail chuka hai, usake aage nirvaat hoga ,to syam urjaa bhi hoga. yadi esa hota hai to kya syam urjaa anant hai? to iska pai chart kaise sambhav hai?

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      1. प्लाज्मा पदार्थ की एक अवस्था है। जिस तरह गैस, द्रव औऱ ठोस अवस्था होती है उस तरह प्लाज्मा भी होती है। इस अवस्था मे पदार्थ के परमाणु के नाभिक और इलेक्ट्रान अलग हो जाते है।

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  11. Sir Ji,
    ek aur sawal hai jo ki lagbhag apke ek jabab ko dekh kar hi utpann ho gaya hai, kripaya mai sawal aur jabab dono hi niche copy / past kar raha hoon, kripaya isaka pahale avlokan kar len.

    manorath
    मार्च 24, 2013 को 6:37 अपराह्न पर

    सर हम जानते हैँ कि आँक्सीजन दहन का पोषण करती हैँ और हाइड्रोजन 1 ज्वलनशील गैस हैँ तब जल जिसमेँ ये दोँनो गैस रहती हैँ मेँ आग क्योँ नहीँ लगती है?

    आशीष श्रीवास्तव
    मार्च 25, 2013 को 9:27 अपराह्न पर

    क्योंकि हाइड्रोजन ही आक्सीजन में जलकर जल बनाता है। जल और कुछ नहीं बस जली हुयी हाइड्रोजन है।

    To sir ji,
    ab mera sawal ye hai ki agar “जल और कुछ नहीं बस जली हुयी हाइड्रोजन है।” to jab ham “Jal” ko garm karate hain, to yaha “Vasp” ban jati hai, matalab ki “ek ya ek se adhik Gas me convert ho jati hai” to ye kin gason me convert hoti hai, agar apka jabab “Hydrozen & Oxygen” hai to phir ye thandi hone par phir se “Jal” me kyon convert ho jati hai, jabki apka kahana hai ki “जल और कुछ नहीं बस जली हुयी हाइड्रोजन है।” jabki hum jante hain ki kisi bhee cheej ko jalane ke liye “ushma” ki jaroorat hoti hai, jo ki “Vasp” ko thandi hone ke prakriya me nahin mil pati, aur agar “Vasp” in dono gason ke alawa koi aur gas ya gason ka samooh hai to kripaya unaka naam aur prakriti batane ka kast kareyen, aur ye bhee batayen ki is puri prakriya ko ye kaise anjaam dete hain.

    Dhanyavad,

    Apka ek utsuk Pathak.

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    1. जल भाप के अणुओं मे आक्सीजन और हाइड्रोजन अलग नहीं होते है, वे जुडे होते है, जिससे ठंडा होने पर वापस जल बन जाते हैं। बर्फ से जल़ , जल से भाप बनना , भाप से जल, जल से बर्फ बनना भौतिक परिवर्तन है, इसमे अणु बनाने वाले आक्सीजन और हायड्रोजन के परमाणु अलग नही होते हैं।
      हाइड्रोजन का जलकर आक्सीजन से मिलकर पानी बनना रासायनिक परिवर्तन है, ये ज़्यादा स्थायी होता है, आसानी से टूटता नहीं है, इसे तोड़ने विशेष प्रक्रिया चाहिये ।

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  12. Sir Ji,
    Ek Sawal aur hai, Jo jyada muskil nahi hai,
    Sir ji ek formula hai :-
    E = MC^2
    Jahan “E = Energy” , “M = Mass” & “C = Speed of Light”

    Sir ji, Isme mera sawal ye hai ki in sabhee ki unit kya hogi, metalb ki “Mass” ki unit ka matlab kya hoga “Gram”, “Miligram” ya “Kilogram” Isi tarah se “Energy & Speed of Light” ka bhee unit kya hoga, Kripya kisi udaharan se samajhayen.

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    1. द्रव्यमान को भी ऊर्जा की ईकाइ मे मापा जा सकता है क्योंकि ऊर्जा और द्रव्यमान एक ही है बस स्वरूप अलग है। C एक स्थिरांक है जिसका मान प्रकाश गति के तुल्य है, इसकी इकाइ नहीं है।
      यहाँ पर ऊर्जा और द्रव्यमान दोनो की इकाइ eV इलेक्ट्रान वोल्ट है। ध्यान दो कि इलेक्ट्रान प्रोटीन का द्रव्यमान eV मे मापा जाता है।

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  13. Sir, ek bar phir se Namaskaar,
    Sir ji ek shikayat hai ki maine ek sawal poocha tha, kuch din pahale, aur usake jabab me apane kaha tha ki usaka jabab apke agle lekh me milega, khair ye koi badi baat nahin hai, lekin shayad aap jante hi honge ki ek jigyaasoo man apne sawalo ke jabab pane ko kafi adheer hota hai, aur jyada intijaar karana sambhav nahi ho pata, so, kripaya apne lekh kuch jaldi likhane ka kast kareyen. Dhanyavad Sir Ji.

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      1. भारत मे लिंग जांच गैर कानूनी है।
        गर्भावस्था के दौरान सोनोग्राफ़ी मे लिंग पता चल जाता है। चिकित्सक बता सकते है लेकिन कानूनन अपराध होने से लिंग बतायेंगे नही।

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  14. आशीष,
    ये कहा जाता है कि अगर कोई व्यकि किसी यान में बैठ कर प्रकाश के बराबर वेग से गति करे तो उसके लिए समय, पृथ्वी पर मौजूद व्यक्ति को महसूस होने वाले समय से कम होगा.

    मेरा सवाल है ‘प्रकाश के बराबर वेग’ से क्या तात्पर्य है?

    मान लीजिये मैं अपने यान के साथ एक ऐसे स्थान पर स्थित हूँ जहां मेरे आस पास और कोई भी पिंड-ग्रह-नक्षत्र नहीं है.
    इस जगह पर मैं अगर स्थिर हूँ या गतिशील हूँ इन दोनों स्थितियों में फर्क कैसे किया जा सकता है.
    मेरा वेग चाहे कितना ही अधिक हो उसका कोई अस्तित्व कैसे होगा जब मेरे आस पास कोई ऐसा पिंड है ही नही जिसके सापेक्ष मैं अपने वेग का आंकलन कर सकूँ?

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  15. श्री मान जी
    एक प्रश्न मेरे मष्तिष्क में भी हलचल पैदा करता है कि …..

    रेडियो उत्सर्जन में ये जानकारी कैसे की जा सकती है की किस समय कौन सा कण उत्सर्जित होगा … अल्फ़ा ,बीटा ,…. आदि

    कृपया मेरे जिज्ञासा शांत करने का कष्ट करें /

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    1. दुर्भाग्य से हिन्दी मे इस विषय पर अच्छी पुस्तक नही है। आप पुस्तक A short history of nearly everything लेखक Bill Bryson पढ़ सकते है, सरल अंग्रेज़ी मे है।

      होमशाप पर ५००₹ की मिल जायेगी।

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    1. सूर्य प्रकाश मे सभी रंगो का समावेश होता है। सूर्यास्त और सूर्योदय के समय सूर्य किरण एक कोण से पृथ्वी के वातावरण मे प्रवेश करती है, जिससे उन्हे ज्यादा दूरी तय करनी होती है। ज्यादा दूरी तय करने पर लाल रंग के अतिरिक्त अन्य रंगों की किरणे वातावरण के कणो से टकरा कर बिखर जाती है। ध्यान रहे कि लाल रंग कि किरणो की आवृत्ती सबसे कम होती है जिससे उनके बिखरने की संभावना अन्य रंगों से कम होती है। सूर्यास्त और सूर्योदय के समय हमारी आंखो तक केवल लाल रंग की किरण पहुँच पाती है जिससे सूर्य लाल रंग का दिखायी देता है।

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  16. आशीष,
    ये कहा जाता है कि अगर कोई व्यकि किसी यान में बैठ कर प्रकाश के बराबर वेग से गति करे तो उसके लिए समय, पृथ्वी पर मौजूद व्यक्ति को महसूस होने वाले समय से कम होगा.

    मेरा सवाल है ‘प्रकाश के बराबर वेग’ से क्या तात्पर्य है?

    मान लीजिये मैं अपने यान के साथ एक ऐसे स्थान पर स्थित हूँ जहां मेरे आस पास और कोई भी पिंड-ग्रह-नक्षत्र नहीं है.
    इस जगह पर मैं अगर स्थिर हूँ या गतिशील हूँ इन दोनों स्थितियों में फर्क कैसे किया जा सकता है.
    मेरा वेग चाहे कितना ही अधिक हो उसका कोई अस्तित्व कैसे होगा जब मेरे आस पास कोई ऐसा पिंड है ही नही जिसके सापेक्ष मई मैं अपने वेग का आंकलन कर सकूँ?

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  17. सर हम जानते हैँ कि आँक्सीजन दहन का पोषण करती हैँ और हाइड्रोजन 1 ज्वलनशील गैस हैँ तब जल जिसमेँ ये दोँनो गैस रहती हैँ मेँ आग क्योँ नहीँ लगती है?

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  18. सरजीमुझे लगताहै कbigbeng कासीदांतगतहै । तारोके दूरफेलने काकारणये नहीकुछऔरहै । मुझे लगताहे कहमारापूरामांड एकबहतबड़ीगेलेसीहै । औरइसमांडकसारीगेलेसीउसीबड़ीगेलेसीम है ।ओरमांडके केम ि◌वशालपावरहै जोइसे िगतमान बनातीह

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  19. महोदय में आइंस्टीन के नियम सापेक्षिकता का सिद्धान्त के बारे में विस्तार से जानना चाहता हु उदाहरण सहित तो बड़ी किपा होगी

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    1. विद्युत धारा अर्थात इलेक्ट्रानो का बहाव, इलेक्ट्रान ऋणावेशित होते है और वे धनावेशित एनोड की ओर प्रवाहित होंगे.

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  20. गुरु जी,
    Touchscreen कैसे काम करती है?
    Capacitive Touch मे ऐसा क्या होता है , जिससे वो सिर्फ त्वचा के श्पर्श पर ही कार्य करता है?
    इसकी सनरचना कैसी होती है?

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  21. Adhar bhut brahmaand ji mere hisab se sir ji sahi kah rhe h becouse jab hum kahte hai ki pindo ki gati dhiri ho rahi hai to isse ye tatperya ye nhi hai ki humare purwajo ne( adimanaw ne ) koi yantra se dekh ker anuman laga ker apne wanshajo ko bta diye ye to 1 audharna hai jise hum kewal earth ke time se matpte hai.
    wese kai ese bhaotiki niyam hai jise hum kewal kalpana tak hi dekh sakte hai wastwik nahi.
    or usi me se 1 maha visfot hai.

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    1. दोस्त, आपकी इस बात से शायद सर भी सहमत नहीं होंगे। आप जिसे अवधारणा कह रहे हैं। यदि सिर्फ यह अवधारणा होती। तो मैं इस विषय पर अपना समय बर्बाद नहीं करता। हमारे द्वारा सही-गलत तय करने से कुछ भी निर्धारित नहीं हो जाता। और जब कहा जाता है कि महा-विस्फोट के कुछ समय उपरांत ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति वर्तमान में ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति से कहीं बहुत अधिक थी। तो यह बिंदु गलत नहीं है। इसका भौतिकीय अर्थ निकलता है। इसे गहराई से समझने पर आपको समय के रूपों को समझने का मौका मिलेगा। मैं अभी भी इस बात पर अडिग हूँ, कि गति समय की प्रमुख शर्त है। न की गति, समय का एक रूप है। मैं समझ रहा हूँ कि आप किस ओर संकेत कर रहे हैं। आपने शायद सैद्धांतिक विज्ञान को अभी तक समझा नहीं है।

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      1. सर, आप गति के द्वारा ब्रह्माण्ड की उम्र और विशेष तत्वों की निर्धारित आयु को किस तरह से परिभाषित करेंगे ?? जैसा कि पूर्व में आपने समय की इकाइयाँ घंटे और वर्ष को गति द्वारा परिभाषित किया था।
        तारिक जी, अभी हम केवल यही कहना चाहेंगे कि गति, समय की प्रमुख शर्त है। न की समय का दूसरा रूप..।

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  22. आपका सोचना स्वाभाविक है, कि बाह्य बल की अनुपस्थिति में गति में त्वरण अथवा दिशा में परिवर्तन होना संभव ही नहीं है। गति अथवा उसकी दिशा में परिवर्तन, आरोपित बाह्य बल की उपस्थिति में होता है। इस तरह बाह्य बल गति के प्रथम नियम की प्रमुख शर्त है। समझने हेतू एक कल्पना है। माना, प्रत्येक पिंड, निकाय और निर्देशित तंत्र बाह्य बल की अनुपस्थिति में अस्तित्व रखते हों। तब किसी भी पिंड, निकाय अथवा निर्देशित तंत्र में परिवर्तन होने का सवाल ही नहीं उठता होगा। और इस तरह से किसी पिंड या निकाय का सम्बन्ध गलती से भी किसी अन्य दूसरे पिंड या निकाय से नहीं हो सकता। क्योंकि हमारे द्वारा यह निर्धारित ही नहीं हो पाएगा कि आखिर पिंड गतिशील है अथवा स्थिर-अवस्था में है। वास्तव में परिवर्तन की माप को ही भौतिकता कहा जाता है। इसके कारण ही किसी भौतिकीय संरचना में भौतिकता के गुण देखने को मिलते हैं। इसके लिए जरुरी है कम से कम एक बाह्य बल की उपस्थिति…

    अधिकतर लोगों के द्वारा समझ लिया जाता है कि अत्यधिक ताप और दाब (अतिसूक्ष्म पिंड होने की दूसरी शर्त का कारक) के कारण महा-विस्फोट हुआ था। जबकि ताप और दाब महा-विस्फोट के बाद की प्रक्रिया का प्रमुख घटक था। इसी तरह महा-प्रसार में भी ताप और दाब कम होते- होते स्थिर हो जाएगा।

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  23. adhar bhut brahmaand ji maine 1 jagah padha hai ki maha visfot ki ghatna ke bad se ab tak pindo ki gati dhiri hoti ja rahi hai.
    kalpna kijie agar pindo ki gati dhiri hoti ja rhi hai to shayad koi bal is per kary ker raha hoga.
    becouse newton ke gati vishayak pratham niyam ke anusar use apni gati parivartit nhi kerni chahie kyo ki usr per koi bahe bal aropit nhi hota hai.
    maine apna prashan isi adhar per pu6 tha.
    aur sir ji apne jo kaha hai ki brahmaand ka vistar hone ke bad thanda hokr vistar hota jaega ya thanda hoker sthir ho jaega..

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    1. तारिक,
      तुम्हारा प्रश्न बहुत अच्छा है। जब बिग बैंग से ब्रह्माण्ड बना था तब किसी अज्ञात कारण से पदार्थ की मात्रा प्रति-पदार्थ से ज्यादा थी। इस कारण पदार्थ और प्रति-पदार्थ के टकारने के बाद ऊर्जा बनी लेकिन कुछ पदार्थ बच गया। इसी शेष पदार्थ से वर्तमान ब्रह्माण्ड बना है। इस की खोज अब्दुस सलाम ने की थी और उन्हे नोबेल मीला था।
      वर्तमान की जानकारी के अनुसार ब्रह्माण्ड का संकुचन नही मीलेगा, यह निरंतर विस्तार करते हुये ठंडा हो जायेगा। यह एक नयी खोज है, इसके पीछे श्याम ऊर्जा(डार्क एनर्जी) को माना जा रहा है। पिछले साल का नोबेल इसी खोज के लिये हुआ था।

      समय का आस्तित्व ब्रह्माण्ड के आस्तित्व के साथ ही हुआ है, ब्रह्माण्ड के बिना समय का कोई अर्थ नही है। समय एक जटिल धारणा है। समय यह गति का एक दूसरा रूप है। जिसे हम एक दिन मानते है वह पृथ्वी का अपने अक्ष पर एक घूर्णन है। एक वर्ष पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा काल को कहते है। समय का आस्तित्व नही होता है, हम किसी गति को ही समय मानते है।

      जब तुम घड़ी देखते हो तब एक मिनिट अर्थात कांटे का एक चक्कर लगाना है, यह गति है जिसे समय मान लीया जाता है। दूसरा उदाहरण जब तुम कहते हो कि दोपहर हो गयी या बारह बज गये, इसका अर्थ है कि सूर्य क्षितिज से गति करते हुये आकाश के मध्य आ गया है।

      अर्थात समय के आस्तित्व के लिये गति आवश्यक है, गति ब्रह्माण्ड के रहने पर ही होगी। ब्रह्माण्ड के आस्तित्व के बिना समय होगा ही नही।

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      1. मैं सर की बात को आंगे बढ़ाना चाहूँगा कि ब्रह्माण्ड के संकुचन को प्रमाणित ही नहीं किया जा सकता। क्योंकि प्रयोगों में सिद्धांत की अहम् भूमिका होती है। आपके लिए एक कल्पना प्रस्तुत है। यदि ब्रह्माण्ड के सभी अवयवों, पिंडों और निकायों में स्वतः संकुचन होने लगे। तो आप क्या कहना उचित समझेंगे ?? कि ब्रह्माण्ड का संकुचन हो रहा है ?? अथवा ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है ??

        वास्तव में होता ये है कि स्वतंत्र संकुचन के कारण सापेक्षीय दुरी में वृद्धि होती है। फलस्वरूप आप को कहना ही होगा कि ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है। न कि ब्रह्माण्ड का संकुचन हो रहा है।

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      2. सर, समय केवल एक अवधारणा नहीं है। जो ब्रह्माण्ड के अस्तित्व के साथ ही अस्तित्व में आई। समय केवल एक अवधारणा तब होती। जब कुछ नहीं से कुछ होने की बात सामने आती। वर्तमान में जानकारी के अनुसार अतिसूक्ष्म पिंड में अचानक विस्फोट के कारण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई है। तात्पर्य किसी न किसी भौतिकीय संरचना का अस्तित्व था।

        इतना सब कहने का उद्देश्य सिर्फ इतना सा था कि समय, केवल गति का दूसरा रूप नहीं है। जबकि गति, समय की प्रमुख शर्त है। आपने जो उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। वह बिलकुल सटीक हैं। परन्तु जब हम कहते हैं कि महा-विस्फोट के बाद से अब तक ब्रह्माण्ड के विस्तार में धीरे-धीरे कमी आई है। तो क्या हम यहाँ समय को नहीं दर्शा रहें है ?? हम किस आधार पर कहते हैं कि महा-विस्फोट की घटना इतने वर्ष पूर्व हुई थी ?? दरअसल हमारा संकेत उम्र(समय का रूप) की और था। इन्ही सब बिन्दुओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि समय केवल एक अवधारणा नहीं है। बल्कि गति, समय की प्रमुख शर्त है।

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    1. गुरुत्वाकर्षण से। वैसे पृथ्वी पूर्णतया गोल नही है, वह ध्रुवो पर चपटी है।
      कोई भी विशाल पिंड अपने गुरुत्व से पूर्ण गोलाकार होने का प्रयास करता है, लेकिन घूर्णन से वह अपने विषुवत पर बड़ा और ध्रुवो पर चपटा हो जाता है।

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  24. दीवाली में छोटे-छोटे बल्बों की झालरें घरों में सजाई जाती हैं. यह छोटे-छोटे बल्ब थोड़ी-थोड़ी देर में जलते-बुझते रहते हैं. कुछ झालरों में तो कोई छोटी सी मशीन लगी होती है, जिस कारन वो अलग-अलग प्रकार से लुप-झुप करते रहते हैं. पर कुछ में कोई मशीन नहीं होती, उसमें एक विशेष बल्ब लगा होता है जिसे यहाँ ‘मास्टर बल्ब’ कहते हैं. मात्र उस मास्टर बल्ब के कारन ही पूरी झालर अपने आप कुछ सेकंड जलती है, फिर बुझ जाती है फिर जलती है और फिर बुझ जाती है. उस मास्टर बल्ब की संरचना सभी बल्बों से अलग होती है. क्या आप बता सकते हैं कि यह मास्टर बल्ब पूरी झालर को जलाने – बुझाने का कार्य कैसे करता है?

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    1. Anmol ji, ye jo master balb hota hai, ye ek simple bulb ki tajah hi hota hai, but antar itna hai ki is main filament to jodne ke liye ek visesh prakar ki dhatoo ke wire ka prayog hota hai. ye dhatoo garam karne par failti hai(extend hoti hai). Samany tapman par ye wire filament to power supply karti hai, then it got hot as par ohms law and also from the heat from the filament, then it extend and the contact to the filament get disconnected and bulb shut down, now it start to cool and touch the filament wire again and the above process follow again. to make it clear, this master bulb connected in the series to the entire circuit so it can block(cut) the follow of current.
      hope this helps.

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  25. कोटर[अशुद्ध अर्द्धचालक(p-type) मेँ पाये जाते हैँ] क्या है?
    क्या आप मेरा प्रश्न समझ चुके हैँ यदि हाँ तो कोटर के बारे मेँ विस्तार पूर्वक समझाइये

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    1. अनिल,

      त्वचा का रंग एक रासायनिक पदार्थ मेलेनीन से तय होता है। भैंस की त्वचा मे यह अधिकता मे पाया जाता है, जिससे उसका रंग काला होता है। वैसे कुछ अल्बिनो (रंग हीन या सफेद) भैंसे भी होती है जिनमे मेलेनीन की कमी होती है।

      इसी तरह से ही मानवो का रंग भी होता है।

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    1. हर्षित, मै कोटर का तात्पर्य नही समझा, यदि आप का आशय ब्लैक होल (Black Hole) या श्याम वीवर से है तो इस लेंखो को पंढे.

      https://vigyan.wordpress.com/2011/06/27/black-hole/
      https://vigyan.wordpress.com/2011/07/04/blackhole1/
      https://vigyan.wordpress.com/2011/07/11/bithofblackhole/

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  26. Par A. C. ka toh ausat maan sunya hota hai.
    Toh aap mujhe yeh bataiye ki dhaara ka maan ek cycle main negative aur postive ka matlab kya hai?yadi isse disha pata chalti hai toh iska matlab ek baar electron aage aur ek baar electron peeche jaata hai, yeh kaise sambhav hai? yadi hum maan le toh parinaami visthapan sunya hoga tab dhaara kaise bahegi[ aavesh pravah ki dar ko hi hum dhaara kahte hain]

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  27. धन्यवाद योगेन्द्र जी आपने बहुत बहुत बहुत अच्छा समझाया।
    Lekin sawal yeh hai ki
    प्रत्यावर्ती धारा का मान एक बार धनात्मक व एक बार NEGATIVE होता है।
    तो इस वाक्य का मतलब(अर्थ) क्या है?
    इसे किस प्रकार समझा जाये?
    गणितीय रुप से देखा जाये तो [ VE -VE =0 ]
    इसका मतलब धारा शून्य है।

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    1. प्रत्यावर्ति विद्युत धारा सदिश है, इसलीये इसकी गणना के लिये दिशा का भी ध्यान रखना होगा. इसलिये धन और ऋण मिलकर शून्य नही होंगे, दिशा के साथ जोडने पर मूल्य दोगुणा हो जायेगा.
      दूसरी बात यह है कि कोई भी भौतिक राशी धन या ऋण नही होती, ये तो हमने अपनी सुविधा के लिये चिह्न दिये है. इलेक्ट्रान को धन मानने पर हमे प्रोटान को ऋण मानना होगा क्योंकि उसका आवेश इलेक्ट्रान से विपरीत है.

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  28. हिंदी में इस तरह के चिट्ठे को पाकर मैं प्रफुल्लित हो गया। बहुत-बहुत ध्यन्यवाद इसके लिए आपको।

    क्या आपने सोचा है की अंग्रेजी की जो बहुत ही अच्छी विज्ञान पुस्तकें हैं आमा आदमी के लिए उन्हें हिंदी में भी उपलब्ध करवाया जाए जैसे:

    The Fabric of Reality – David Deutch
    The Beginning of Infinity – David Desutch
    The Fabric of the Cosmos – Brian Greene
    Hyperspace – Michio Kaku
    The Mind of God – Paul Davies

    सूची बहुत ही लम्बी है…

    आपके आलेखों को पढ़कर लगता है की अगर आप प्रयास करें तो इन पुस्तकों का हिंदी अनुवाद सार्थक होगा। लेकिन सबसे बड़ी समस्या होगी इनके लिए प्रकाशक ढूँढ पाना!

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  29. आपके अनुसार प्रत्यावर्ती धारा मे इलेक्ट्रानो के बहाव कि दिशा कर चक्र मे विपरीत हो जाती है।

    परन्तु जङत्व के कारण ऐसा सम्भव नही है यदि हम मान भी ले तो इसका मतलब कि प्रत्यावर्ती धारा मेँ इलेक्ट्रानो का परिणामी विस्थापन शून्य होता है(क्योँक एक बार इलेक्ट्रान आगे और एक बार इलेक्ट्रान पीछे जाता है ) तो फिर धारा कैसे प्रवाहित होगी?
    कृपया विस्तार से बताइये।
    मैँ इस सवाल से बहुत परेशान हूँ।

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    1. इलेक्ट्रानो के प्रवाह और जड़त्व का कोई संबंध नही है। ध्यान दे कि इलेक्ट्रान एक ऋणावेशित कण है और वे हमारे धनात्मक विभव की ओर प्रवाहित होंगे, इस प्रवाह की गति भी अत्याधिक होती है। एक चक्र के पश्चात ये विभव विपरित हो जाते है और इलेक्ट्रान के प्रभाव की दिशा भी बदल जाती है। विद्युत धारा का प्रवाह एक दिशा मे कुछ समय के लिये, दूसरी दिशा मे कुछ समय के लिये होता है।

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      1. दो तीन साल पहले मैं अत्यधिक कन्फ्यूज्ड था इस विद्युत् के सारे लफड़े को लेकर । तब काफी खोजने पर मुझे ये लिंक मिला था । इस पोर्टल दिए गए सभी आर्टिकल पढ़ें (ध्यान दें, सिर्फ एक-आध पढने से आप फिर कन्फ्यूज़ होंगे, इसलिए सम्बंधित सभी आलेख पढ़ें) । उम्मीद है कुछ मदद मिले जिज्ञासा शांत करने में । इस पोर्टल पर काफी मेहनत की गयी है विद्युत् सम्बन्धी जिज्ञासाओं को समझाने की ।

        http://amasci.com/miscon/whatis.html

        असल में हमारी स्कूलों में भी, ज्यादातर अध्यापक इतने कुशल नहीं होते जो इतना गहराई में जाकर बता दें । ना ही आजकल के सिस्टम में इतना समय होता है कि हर छोटे से छोटे टॉपिक को प्रेक्टिकली और थियरीटिकली समझा सकें, एक सेशन में उनको कोर्स पूरा करना ही होता है । आजकल तो वैसे मार्क्स डिपेंडेंट पढाई होती है न कि समझाईश वाली पढाई, बस टॉपिक याद करने होते हैं ना कि समझने ।

        अग्रवाल जी के प्रश्न के लिए मेरा तो यही उत्तर होगा, (जो मैंने इस पोर्टल से सीखा), कि असल में इलेक्ट्रौन के मूवमेंट को जिस तरह हम चलने के सदृश समझ रहे हैं । वैसा नहीं है । चालक पदार्थ के इलेक्ट्रान उस पदार्थ से बहार आकर ना तो निकल जाते हैं ना उसमें पीछे से कोई दुसरे इलेक्ट्रान घुसते जाते हैं । असल में इलेक्ट्रान चलते नहीं है या आप ये माने की इलेक्ट्रान कुछ आवेश या उर्जा जैसा है । ये शब्दों के थोड़ी घलमेंल भी है । समझाने वाले ने यही कहा है कि इलेक्ट्रिसिटी शब्द जैसा कुछ है ही नहीं, इसको कोई शब्द देना थोडा कठिन है, इसको समझना ही पड़ेगा ।
        असल में यह स्रोत से दिया गया एक दबाव-उर्जा-बल-धक्का है (कृपया इन्हें तकनीकी शब्दों के तरह न लें, मेरा मतलब बस धक्के से है) । जो एक जगह से इलेक्ट्रान के जरिये स्थानांतरित होता है । जैसे ध्वनि तरंगें, या पानी में तरंगे एक जगह से दूसरी जगह पर पहुँचती हैं । तो वे पानी या हवा के कणों को एक स्थान से दुसरे स्थान पर ले नहीं जाती । बस उर्जा ही इनके कन्धों पर सवार होकर अलग-अलग रूपों में स्थानांतरित होती है ।

        ——–
        अगर मैं गलत जानकारी दे रहा हूँ तो आशीष सर से निवेदन है कि वो मुझे सही करें ।

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      2. (…. पिछले कमेन्ट से जारी समझे)
        विद्युत् या इलेक्ट्रान के बहाव के लिए सबसे सरल उदहारण समन्दर की लहरें हैं ।
        ज्वार के प्रभाव से समुद्र में एक लहर उठती है । आप उसे देख भी पाते हैं । चलता हुयी भी दिखती है । तट पर अगर आप खड़े हैं तो आपके पास टकराने पर आपको दबाव या टक्कर भी महसूस होगी । यह क्या था ? बस एक उर्जा का चलन, स्थानांतरण । ये आपको जो चलता हुआ दिखा वो पानी नहीं था, पानी के कण नहीं थे । अगर ऐसा होता तो सारा समंदर कुछ ही देर में अपनी जगह बदल कर पास की धरती पर आता ही जाता और समन्दर अपनी जगह निरंतर बदलता जाता । पर ऐसा नहीं होता है । पानी के कण को आप इलेक्ट्रान के जैसे समझ लें । कण वहीँ रहता है उर्जा चलती है । समंदर में ये उर्जा ग्रहों के आकर्षण से पैदा हुए ज्वार से आई । बस उर्जा परिवर्तित हो रही है । विद्युत् भी इसी तरह एक जगह से, जहाँ से हम समझ रहे हैं कि पैदा हो रही है, पानी के बाँध से । तो वो पैदा तो हो नहीं रही बस एक उर्जा या धक्का निरंतर पम्प किया जा रहा है तार रूपी पाईप के जरिये । यही उर्जा-धक्का हमारे तक पहुँचता है । जैसे ये कंप्यूटर तक पहुँच रहा है जो इस उर्जा को प्रयोग कर रहा है, यहाँ से भी कोई इलेक्ट्रान जैसा कण निकाल कर आगे हवा में नहीं कूदने वाला है बस वह उर्जा-धक्का ही एक रूप से दुसरें में परिवर्तित हुआ जा रहा है ।

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  30. प्रश्न संख्या २] बल की परिभाषा क्या है ? latest or still that one we read in 8/9 वह व्यवस्था जिसके द्वारा कार्य किया जाता है या कुछ और परिवर्तन आये है इस परिभाषा में , ? और यदि में इसमें कुछ संशोधन करना चाहू तो क्या प्रोसेस है ? अधिकारिक परिभाषा कहा देखि जा सकती है ?

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  31. हम जानते हैँ कि
    प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान शून्य होता है क्योँ कि इसका मान एक बार धनात्मक व एक बार NEGATIVE होता है जबकि हम जानते हैँ आवेश प्रवाह को ही हम धारा कहते हैँ तो क्या प्रत्यावर्ती धारा मेँ एक बार आवेश आगे और एक बार आवेश पीछे जाता है?
    इसे किस प्रकार समझा जा सकता है क्रपया बताइये

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    1. विद्युत धारा का अर्थ होता है इलेक्ट्रानो का बहाव! इलेक्ट्रानो का बहाव ही विद्युत आवेश के बहाव के रूप मे होता है। आप सही है कि प्रत्यावर्ती धारा मे इलेक्ट्रानो के बहाव कि दिशा कर चक्र मे विपरीत हो जाती है।

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  32. आशीष सर,
    ऊपर एक प्रश्न वेब सर्वर्स के बारे में पूछा गया था | उसी के बारे में एक बात पूछना चाहता हूँ | हम जानते हैं इन्टरनेट का कोई मालिक नहीं पर कुछ नियामक संस्थाएं हैं | इन्टरनेट सर्विस प्रदाता हमें इन्टरनेट से जोड़ने के पैसे लेता है |
    पर एक देश में, जैसे भारत में सूचना के प्रवेश का क्या कोई स्थायी सर्वर (या अड्डा या गेटवे) भी होता है जहाँ से हर सूचना जो देश में आती है और देश के बहार जाती है, जहाँ से इसे गुजरना ही होता है, जहाँ से सरकार सूचनाओं पर निगरानी करती है ? या कोई भी अपने सर्वर को इन्टरनेट से जोड़कर मनमाने तरीके से सूचनाएं आदान-प्रदान (देश के बाहर भेजना और देश के अन्दर लाना) कर सकता है | मसलन विकिलीक्स के पेजेज़ एक बार खुलने बंद हो गए थे तो वे किसने बंद करवाए, कहाँ पर ये लिंक फ़िल्टर किये गए, कैसे किये गए | जैसे चीन और कुछ अन्य देश करते हैं | कुछ सामग्रियों को हटाने के लिए सरकारें वेब पोर्टल या कम्पनी को निर्देश देती रही हैं | पर मैं ये जानना चाहता हूँ क्या हर देश में प्रवेश करने के लिए कोई सरकार नियंत्रित सर्वर है जो बाद में देश के सारे अन्य सर्वर्स को जोड़ता है ? जहाँ से सरकार जबरन किसी सुचना को नियंत्रित कर सकती है जैसे विकिलीक्स के मामले में हो रहा था | क्या बीएसएनएल इस गेटवे का काम करता है ?

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    1. हर देश मे अपने इंटरनेट नियामक होते है, जो इंटरनेट पर नियंत्रण रखने की कोशिश करते है। किसी भी देश मे इंटरनेट सुविधा देने वाली कंपनी को इन नियामको द्वारा बनाये नियमो का पालन करना होता है लेकिन किसी भी देश मे इंटरनेट को नियंत्रित करने वाला एक सर्वर नही होता है। हर इंटरनेट सुविधा देने वाली कंपनी के अपने सर्वर होते है जो नियमो के अंतर्गत कार्य करने के लिये बाध्य होते है। नियामक उन्हे किसी साइट , यु आर एल या पेज को बंद करने कह सकते है।

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    1. हां ऐसे यंत्र है लेकिन वे उतने सफल नही है। ऐसा इसलिये कि पानी से हायड्रोजन अलग करने मे लगने वाली ऊर्जा हायड्रोजन को जलाने से मिलने वाली ऊर्जा से ज्यादा है।

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  33. आशीष जी , नमस्कार , मैंने आप से पृथ्वी की स्पीड के बारे में सवाल पुछा था, आपने जवाब भी दिया था , मगर आज मुझे वह जवाब नहीं मिल रहा है कृपया मेरी मदद करें ,[ और यह भी बताएं की पुराने जवाब कैसे ढूंड सकतें है ] धन्यवाद ,

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  34. सर मै एक गाँव से निकला छात्र हूँ मेरे गाँव मे बहुत से लोगोँ के भूत प्रेत कि बीमारी है और मै इन सब को नही मानता हुँ न तो भगवान और न भूत को तो मुझे ये बताओ कि ये बिमारी कोनसी है और इसका क्या ईलाज है

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  35. भाई, एक बात बताऍं कि जैसे हम भौगोलिक और आकाशीय पिण्‍ड खासतौर पर चंद्रमा से तिथियों, अमावस्‍या, पूर्णिमा आदि का निर्धारण कर सकते हैं क्‍या उसी तरह वारों का यथा सोमवार, बुधवार या शुक्रवार का निर्धारण भी किया जा सकता है क्‍या। मेरा सोचना है कि हर सातवें दिन कोई खगोलीय घटना नहीं होती है, जैसे पूर्णिमा/अमावस्‍या आदि लगभग नियमित अंतराल पर होते हैं, उस तरह सातवें/आठवें दिन के अंतराल पर कोई ऐसी घटना नहीं घटती है कि दिनों का/वार का निर्धारण संभव हो। अर्थात, मैं कहूँ कि आज मंगलवार है तो मैं इसे वैज्ञानिक रूप से या खगोलीय रूप से कैसे सिद्ध कर सकता हूँ। जैसे अमावस को कर सकता हूँ। जाहिर है कि यह सब पृथ्‍वी पर रहकर ही पूछा जा रहा है। कृपया, प्रकाश डालें।

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    1. मेरी जानकारी मे वारो का किसी आकाशीय/खगोलीय घटना से कोई संबध नही है। यह हो सकता है कि पूर्णिमा से अमावश्या(और उल्टा) की अवधि को दो भागो मे बांटने के लिये सप्ताह बना दिये गये हो और हर वार को एक आकाशीय पिंड से जोड़ दिया गया हो।

      अब्राहमिक धर्मो (यहुदी, इस्लाम, ईसाई ) धर्मो मे सप्ताह के सात दिन , ईश्वर द्वारा छः दिनो मे ब्रह्माण्ड की रचना और सांतवे दिन आराम करने से है।

      हिंदू धर्म मे यह परंपरा वैदिक काल से है।

      लेकि सप्ताह मे सात दिन हर सभ्यता मे नही है, कुछ अपवाद भी है जैसे चीन जापान और कोरीया मे यह दस दिन का होता था।

      इस लेख को देखें।

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      1. bhartiya jyotish ke garit khand men dinon ke nirdharn ka aadhaar HORA ko bataya hai .jismen saur (surya ki gati par aadharit )diwas, saur mass, saur varsh, & chandra (chandra ki gati par aadharit) diwas, chandra mass, chandra varsh, batae hain. din + ratri = aho+ratri (din ko aho kahte hain.)aho ka HO + ratri ka RA = HORA. saur din men (1 din men) 1-1 ghante ki 24 HORA kramshh is grah kram men hoti hain …….surya, shukra, budh, chandra, shani, guru, mangal (yah sambhavtah grahon ka utpatti kram hai) is tarah pahli surya ki hora 24 ghanton men grahon ke is kram se 25th hora matlab agle din ki pahli hora chandra ki hogi isliye agla din chadrawar ya somwar hoga isi tah agli 25th hora mangal ki isliye agla din mangalwar hoga aue kramshah isi tarah dinon ka nirdharan ho raha hai ……

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  36. आधारभूत ब्रह्माण्ड जी, देरी से जवाब देने के माफ़ी चाहूँगा, दरअसल जिस प्रकार पानी आप पीते हैं मगर मुंह के द्वारा, इसी तरह कार्य तो उर्जा ही करती है लेकिन पदार्थ के द्वारा. वैसे मुझे लगता है की आपके सवाल का जवाब वैज्ञानिक के बजाय दार्शनिक रूप से ज्यादा अच्छी तरह बताया जा सकता है. दुर्भाग्यवश मैं दर्शन के बारे में ज्यादा नहीं जानता.

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  37. सर, मैं प्रश्न के उत्तर का इंतज़ार कर रहा हूँ। क्या आप मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर देने वाले थे ?? आपके द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर मैने दे दिया है। मुझे इंतज़ार है…

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  38. सर, मैं एक बेबाकूफी भरा प्रश्न आपके सामने रखना चाहता हूँ। पर इस प्रश्न की अहमियत मेरे लिए बहुत है।
    “कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं।” तो कार्य ऊर्जा करती है या फिर पदार्थ..??

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  39. 12 sept के दिन मेरे EMAIL ID पर एक मेल आया था जिसमे लिखा था कि British international lottery programme मे आपके EMAIL ID ने £5.5 USD जिता है। कृपया आप अपना नाम पता आदि लिखकर भेजा । पुन: एक मेल आया जिसमे लिखा था कि आपके लौटरी का पैसा WESTERN UNION पर डाल दिया गया है (Western union transfercode, amount, sendername, question and their answer भी दिया था) परन्तु आपका नाम एक्टीवेट नही किया गया है आप पहले ट्रांसफर चार्ज भेज दिजिए आपका नाम एक्टीवेट कर दिया जाएगा।

    मुझे तो यह पूरा धोखा लगता है। क्या यह संम्भव है मै आपका राय जानन चाहता हूं

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    1. गुरुत्वाकर्षण सबसे कमजोर बल है. श्याम ऊर्जा के कारण ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति में त्वरण आ रहा है. ज्यादा जानकारी के लिए देखें https://vigyan.wordpress.com/2006/11/02/darkenergy/

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    1. CFC ऐसे कार्बनिक यौगिक होते है जिनमे क्लोरीन, फ्लोरीन, हायड्रोजन और कार्बन होते है। सामान्यतः इन्हे फ्रीआन भी कहते है। इनके एकाधिक प्रकार है। खूले वातावरण मे ये अत्याधिक सक्रिय ( अल्पायु)होते है और विघटित होकर नये यौगिको का निर्माण करते है।

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    1. जितेन्द्र गोस्वामीजी ने इसका सही उत्तर दिया है। जब हमारे मस्तिष्क मे आक्सीजन की कमी होती है तब उसकी पूर्ती के लिये हमारा शरीर स्वतः जम्हाई लेता है। एक और शोध के अनुसार जम्हाई लेने की प्रक्रिया मस्तिष्क को शीतल भी करती है।

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    1. यदि पृथ्वी से कोई पिंड आकाश मे फेंका जाये तो वह पृथ्वी पर वापिस आयेगी, पृथ्वी का चक्कर लगायेगी या पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से छूटकर अंतरिक्ष मे चली जायेगी, उसकी फेंके जाने की गति पर निर्भर करता है।
      इस विशेष गति को पलायन वेग कहते है,पृथ्वी का पलायन वेग 11.2 किलोमीटर प्रति सैकिंड या 40,320 किलोमीटर प्रति घंटा है। इस से अधिक वेग रखने से कोई भी यान हमारा ग्रह छोड़कर सौर मण्डल के दुसरे ग्रहों की ओर जा सकता है।
      अगर पृथ्वी से चलें तो सूरज के गुरुत्वाकर्षक क्षेत्र से निकलने के लिए पलायन वेग 42.1 किलोमीटर प्रति सैकिंड है। अगर सूरज की ही सतह से चलें तो पलायन वेग 617.5 किलोमीटर प्रति सैकिंड है। अगर सही स्थान पर सही पलायन वेग से चलें तो सूरज के गुरुत्वाकर्षण की सीमाएँ तोड़कर कोई यान सौर मण्डल से बाहर निकल सकता है।

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    1. सूर्यग्रहण ही नही सूर्य को किसी भी समय नंगी आंखो से देखना मना होता है। सूर्य से प्रकाश के अतिरिक्त पराबैंगनी किरणे निकलती है जो आंखो को क्षति पहुंचा सकती है और यह क्षति हमेशा के लिये हो सकती है। पराबैंगनी किरणे से कैंसर भी हो सकता है।
      CFC यह क्लोरोफ्लोरो कार्बन है। इसे एअर कंडीशनर, फ्रिज जैसे उपकरणो मे प्रयोग किया जाता है। यह ओजोन को आक्सीजन के अणुओ मे तोड़ देता है। पृथ्वी के वायुमंडल मे ओजोन की एक परत है जो पृथ्वी के वातावरण मे पराबैंगनी किरणो को आने से रोकती है। CFC से इस परत को क्षति पहुंचती है।

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    1. गोविन्द,

      आप किसके विस्थापन की गति (speed of displacement)की बात कर रहे है?

      सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार प्रकाश की गति ही अधिकतम गति है, इसके तुल्य गति से कोई भी पिंड या वस्तु गति नही कर सकती है।

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    1. Big Bang के बारे मे जानने के लिये महाविस्फोट का सिद्धांत देखें
      यह प्रयोग और निरीक्षण पर आधारित सिद्धांत है और इसके समर्थन मे अनेक प्रमाण मौजूद है।

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  40. प्रश्न संख्या ३ ] einstien द्वारा बताये गए effect ” की भारी गृह \ पिंड पास से गुजरते हुए प्रकाश की किरण को अपनी और मोड़ देते है इसमें और refraction में क्या फर्क है .और यदि नहीं तो प्रकाश के मुड़ने की घटना [refraction] तो धरती पे आम है ?

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    1. प्रकाश किरण फोटानो से बनी होती है, ये फोटान दोहरा व्यवहार रखते है अर्थात कण तथा तरंग दोनो के रूप मे व्यवहार करते है।

      गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से ये कण(फोटान) किसी भारी द्रव्यमान वाले पिंड के गुरुत्व से प्रकाश कण या प्रकाश किरण मुड़ जाती है। यह गुरुत्वाकर्षण का फोटान पर प्रभाव है।

      लेकिन अपवर्तन(refraction) प्रकाश के तरंग व्यवहार के फलस्वरूप होता है, माध्यम मे परिवर्तन होने से प्रकाश किरण की तरंग के तरंग दैधर्य मे बदलाव आता है और उसकी दिशा बदल जाती है।

      प्रकाश किरण पर गुरुत्विय प्रभाव तथा अपवर्तन दोनो अलग अलग प्रभाव से है और दोनो मे कोई समानता नही है।

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  41. प्रश्न संख्या २] बल की परिभाषा क्या है ? latest or still that one we read in 8/9 वह व्यवस्था जिसके द्वारा कार्य किया जाता है या कुछ और परिवर्तन आये है इस परिभाषा में , ? और यदि में इसमें कुछ संशोधन करना चाहू तो क्या प्रोसेस है ? अधिकारिक परिभाषा कहा देखि जा सकती है ?

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  42. मित्र , मेरा प्रयास आपको एक परिकल्पना के माध्यम से ये एहसास करवाना था की यदि प्रकृति ने हमें अर्थात हमारी चेतना को किसी घटना को याद रखने की शक्ति \गुण नहीं दिया होता . ये इस तरह से है की जैसा हम गंणित में करते है की माना की पेड़ की ऊंचाई x है ” – तो मेरे मित्र इस अवस्था में जब की हम किसी घटना को याद नहीं रख पाएंगे तो हमारे लिए भूतकाल का अस्तित्व ही नहीं होगा . हम सिर्फ वर्तमान को ही महसूस कर पाएंगे .तो मेरे कहने का मतलब है की क्या उस परिकल्पित अवस्था में हमारे सिधांत जो हमने समय ,सापेक्षता व अन्तराल के लिए बनाये है जरुर कुछ अलग होते उसमे भूतकाल जैसी कोई अवधारणा ही नहीं होती तो क्या भोतिकी के सारे सिधांत मूलतः हमारी चेतना पर ही सीधे निर्भर करते है ? अर्थात जो समय की आभासी नकारात्मक दिशा जो भूतकाल को प्रदर्शित करती है वो वास्तव में केवल हमारे मस्तिस्क और चेतना का बुना जाल है यथार्त नहीं |और इसीलिए जब हम समय से सम्बंधित किसी भी शोध के अंत में जाते है तो यही पाते है की भूतकाल में जाना संभव नहीं , यदि है तो केवल आभासी उपस्थिति मात्र घटनाओ को प्रभावित किये बिना |ये तो यही सिद्ध करती है की हम घूम कर वापस चेतना ,मस्तिष्क एवं एहसास पर ही आ गए .ashish ji please give some comment on this.

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    1. गोविंद जी,

      भौतिक घटनाये वास्तविक होती है, उनका प्रभाव वास्तविक होता है, जबकि चेतना, मस्तिष्क या स्मृति वास्तविक घटनाओं के अतिरिक्त आभासी घटनाओं को भी दर्ज करती है। एक वास्तविक है, दूसरे मे कल्पना का मिश्रण भी है।

      आप इन दोनो को एक जैसे नही देख सकते है। कुछ भौतिकी सिद्धांत या परिकल्पना जैसे समय यात्रा मे हम कल्पनाओं का सहारा लेते है क्योंकि हम उन्हे प्रायोगिक रूप से कर के देख नही सकते। लेकिन ये आभासी या कल्पना नही होती है, ज्ञात वैज्ञानिक सिद्धांतो के आधार पर वे संभव होती है।

      हमारी चेतना एक टेप कैसेट के जैसी है जो वास्तविक हो जरूरी नही है लेकिन वैज्ञानिक सिद्धांत और उनके प्रभाव वास्तविक होते है।

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      1. यह सही है कि समय का अपना अस्तित्व नही होता है लेकिन वह वास्तविक भौतिक गति से जुड़ा होता है। समय हमेशा किसी ना किसी गति से जुड़ा हुआ होता है। जैसे एक दिन पृथ्वी के एक सम्पूर्ण घूर्णन से जुड़ा है, एक वर्ष पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा को दर्शाता है।

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  43. सर, मैं आप से एक भ्रान्ति के बारे में पूंछना चाहता हूँ। मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं इस विषय में अपने सर की बातों को नहीं समझ पा रहा हूँ। मैं अपनी राय को व्यक्त करके या अपने सर की सोच को बताकर। आपमें या आपके द्वारा दिए जाने वाले उत्तर में सोच या राय का प्रभाव नहीं देखना चाहता।

    प्रश्न: क्या मैं मान सकता हूँ कि सर अल्बर्ट आइन्स्टीन की भूमिका परमाणु बम में थी..??

    आप इसका उत्तर विस्तृत भी दे सकते हैं। और एक शब्द में भी.. क्योंकि हम दोनों को इस विषय की पूर्ण जानकारी है। पर मुझे लगता है कि सिर्फ सोच का प्रभाव हावी हो रहा है। मैं उत्तर के इंतज़ार में हूँ..।

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    1. दुर्भाग्य से इसका उत्तर हां है। आइन्स्टीन ने अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट को परमाणु बम बनाने की सलाह दी थी, वे चाहते थे कि जर्मनी (हिटलर) से पहले अमरीका परमाणु बम बना ले। आपको ज्ञात होगा कि आइन्स्टीन यहूदी थे तथा जर्मनी से भागकर अमरीका मे शरण ली थी। वे नही चाहते थे कि ऐसी विनाशकारी शक्ति हिटलर के हाथ लगे।

      इसके अतिरिक्त परमाणु बम उनके कार्य E=mc2 पर ही आधारित है।

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  44. 1. पदार्थ
    2. प्रतिपदार्थ
    3. ऋणात्मक पदार्थ
    4. श्याम पदार्थ
    की परिभाषाएँ क्या हैँ और इनमेँ मुख्य अन्तर और विशेषताएँ कौन कौन से हैँ?

    इसीप्रकार

    1. ऊर्जा
    2. प्रति ऊर्जा
    3. ऋणात्मक ऊर्जा
    4. श्याम ऊर्जा
    की परिभाषाएँ क्या हैँ और इनमेँ मुख्य अन्तर और विशेषताएँ कौन कौन से हैँ?

    इनके अतिरिक्त क्या और किसी प्रकार के पदार्थ और ऊर्जा होते हैँ? यदि होते हैँ तो उनकी भी जानकारी दीजिए।

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  45. आयाम की परिभाषा?
    द्रव्यमान की परिभाषा?
    ऊर्जा की परिभाषा?
    समय की परिभाषा?
    पदार्थ की परिभाषा?
    स्थान की परिभाषा?

    उपरोक्त सभी की परिभाषाएँ कुछ सटीक और गहरी वैचारिक बिँदु से दीजिए।

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    1. क्योंकि यह एक तथ्य है, नियम है, प्रकाश का व्यव्हार है। इन नियमो के पिछे कोई कारण नही होता है। यह कुछ ऐसे है कि परमाणु एक विशिष्ट दिशा मे परिक्रमा क्यों करते है?

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  46. K = s = 2
    L = s,p = 2+6 = 8
    M = s,p,d = 2+6+10 = 18
    N = s,p,d,f =2+6+10+14 = 32
    O = s,p,d,f = 2+6+10+14 = 32
    P = s,p,d = 2+6+10 = 18
    Q = s,p = 2+6=8

    स्पष्ट है कि 2, 8, 18, 32 के बाद O, P, Q कक्षाओँ मेँ क्रमशः 32, 18 और 8 इलेक्ट्रान रहते हैँ। और इसी से 1 से लेकर 118 परमाणु क्रमांक वाले तत्वोँ मेँ इलेक्ट्रान वितरण समझाया जा सकता है।

    अब यदि 118 परमाणु क्रमांक वाले तत्व से आगे के तत्वोँ की खोज होती है तो 119 और 120 परमाणु क्रमांक वाले तत्व के अन्तिम इलेक्ट्रान आठवीँ कक्षा यानी R कक्षा मेँ जायेँगे।

    फिर 121 से आगे के लिए s,p,d,f से आगे g मेँ जाना पड़ेगा। g मेँ अधिकतम 18 इलेक्ट्रान होँगे। जिससे पाँचवेँ आवर्त यानी O कक्षा मेँ 32 से बढ़कर अधिकतम 50 इलेक्ट्रान हो जायेँगेँ, इसी प्रकार छठे आवर्त मेँ 18 से बढ़कर अधिकम 32 इलेक्ट्रान और सातवेँ मेँ 8 से बढ़कर अधिकतम 18 इलेक्ट्रान हो जायेँगे।
    इस प्रकार परमाणु क्रमांक 121 से 151 तक के तत्वोँ मेँ इलेक्ट्रान वितरण समझाया जा सकेगा। और आठवेँ आवर्त मेँ 50 और तत्व रह सकेँगे।

    पर यहाँ तक कोई आयेगा नहीँ। क्योँकि अधिक परमाणु क्रमांक वाले तत्व अस्थायी होते हैँ और शायद प्रयोगशाला मेँ जबरदस्ती बनाये जाते हैँ।

    (किसी भी स्थिति मेँ अन्तिम कक्षा मेँ आठ से ज्यादा इलेक्ट्रान नहीँ हो सकते।)

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    1. और अन्तिम कक्षा मेँ दो से ज्यादा इलेक्ट्रान तभी हो सकते हैँ जब अन्तिम से पहले वाली सभी कक्षायेँ 2n^2 के अनुसार पूर्ण भरी होँ।

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    1. अनिल, अभी तक किसी भी तत्व के परमाणु की किसी भी इलेक्ट्रान कक्षा मे 32 से ज्यादा इलेक्ट्रान नही पाये गयें है। शायद 32 इलेक्ट्रान किसी भी कक्षा मे इलेक्ट्रानो की अधिकतम संख्या है। O,P तथा Q कक्षा मे भी अधिकतम 32 इलेक्ट्रान ही हो सकते है।

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    1. 0 डीग्री पर पानी बर्फ़ मे बदलना शुरू होता है लेकिन किसी पात्र के पूरे पानी को बर्फ़ मे बदलने के लिये उसे 0 से -5 डीग्री तक तापमान चाहीये होता है।

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  47. दोस्तों, मैंने कुछ समय पहले ही एक फिल्म देखकर ख़त्म की। उसका नाम तरंग था। यह फिल्म समान्तर ब्रह्माण्ड पर आधारित थी। आप देखेंगे कि फिल्म में पहले से ही समान्तर ब्रह्माण्ड की उपस्थिति को जायज ठहरा दिया गया है। फिल्म के मध्य में 11-आयाम की उपस्थिति को कुछ जरूरतों को समझने में आवश्यक बिंदु बतलाया गया है। उसी समय दोनों ब्रह्माण्ड की आपसी वार्ता में चल रही वार्ता को स्वपन कहा जाता है।

    मैंने भी एक आर्टिकल में वर्तमान को स्वपन का दर्जा दिया था। जिसको जानने के लिए प्रश्न करने की आवश्यकता नहीं होती। जहाँ वर्तमान, ब्रह्माण्ड के स्वरुप अर्थात विशिष्ट संरचना को वर्गीकृत नहीं अपितु विश्लेषित करता हुआ मालूम पड़ता है। फिल्म के अंत में जो दिखाया गया है। तब ऐसा लगता है मानो हम ही एक निर्देशित तंत्र के रूप में ब्रह्माण्ड है। जिसकी प्रकृति ब्रह्माण्ड की प्रकृति के अनुरूप ही कार्य करती है। याद रहे यह कहना तब संभव होगा जबकि हम ब्रह्माण्ड की प्रकृति को जानते हों। फिल्म का मजा तब तक अधुरा रहेगा। जब तक आपको फिल्म देखते समय दो-चार ठहाके की हसी न आ जाए..। यह हसी एक रचनाकार के रूप में होगी। जो ब्रह्माण्ड की रचना को क्रमबद्ध संरक्षित करता गया होगा।
    जरूर देखिये.. FREQUENCY

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  48. आग की लौ हमेशा ऊपर की ओर ही क्योँ जाती है?

    अगर माचिस की तीली को जलायेँ और उसे तेजी से ऊपर ले जायेँ तो क्या होगा और अगर तेजी से नीचे ले आयेँ तो क्या होगा?
    (वायु के प्रतिरोध को नगण्य मानिये, अन्यथा तीली बुझ जायेगी। 🙂 अभी तीन चार बार कोशिश की पर वायु के प्रतिरोध के कारण तीली इतनी जल्दी बुझ जाती कि पता ही नहीँ चल पाता कि लौ बुझनेँ से पहले ऊपर की ओर थी या नीचे की ओर या यथावत ही थी।)

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      1. 1. According to Wikipedia The first reference to an elevator (lift) is in the works of the Roman architect Vitruvius, who reported that Archimedes built his first elevator probably in 236 BC.
        2. In some literary sources of later historical periods, elevators were mentioned as cabs on a hemp rope and powered by hand or by animals. It is supposed that elevators of this type were installed in the Sinai monastery of Egypt.
        3. On March 23, 1857 the first Otis passenger elevator was installed at 488 Broadway in New York City.
        (And Einstein was born on 14 march, 1979.)

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  49. यदि आप किसी लिफ्ट में दियसलाई की तीली को जलायें और वह लिफ्ट नीचे बिना किसी रोक के गिरने लगे यानि कि वह केवल पृथ्वी के गुरुत्वकर्षण के फ्री फॉल में हो तब दियसलाई की तीली की जलती लौ का क्या होगा।

    (संभवतः यह आइन्स्टाइन का सुझाया एक प्रश्न है। जहाँ भी मैँनेँ यह प्रश्न पढ़ा था वहाँ इसका उत्तर नहीँ दिया गया था।)

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    1. आपका प्रश्न स्पष्ट नही है कि गति किसकी बढा़ना है! किसी यान की गति अंतरिक्ष मे ऐसे भी ज्यादा होती है क्योंकि कोई अवरोध नही होता है। पृथ्वी पर वायुं से, धरती या जल के घर्षण से गति कम होते जाती है। लेकिन अंतरिक्ष मे ऐसा कोई अवरोध ना होने से न्युटन का प्रथम नियम पूरी तरह कार्य करता है।

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    1. जब भी प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम (जैसे निर्वात से वायु या वायु से जल, या वायु से कांच) मे जाता है तब उसके तरंगदैर्ध्य तथा गति मे परिवर्तन आता है। कारण इस समीकरण से समझा जा सकता है
      तरंगदैर्ध्य(λ) x आवृति(Ν) = तरंगगति(v)

      आवृति स्थिर रहती है, उसमे परिवर्तन नही आता है, लेकिन माध्यम के परिवर्तन से गति मे परिवर्तन होता है। गति के इस परिवर्तन के संतुलन के लिये तरंगदैर्ध्य मे परिवर्तन आवश्यक है।

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    1. प्रकाशीय सुक्ष्मदर्शी से परमाणु को देखा नही जा सकता है लेकिन इलेक्ट्रान सुक्ष्मदर्शी से उसकी स्पष्ट तो नही लेकिन धुंधली तस्वीर बनती है|

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  50. इंटरनेट पर भारी मात्रा मेँ डाटा मौजूद है। यह डाटा संग्रहीत कहाँ होता है?

    उसकी संग्रहण क्षमता कितनी होगी?

    इंटरनेट का क्या कोई मालिक भी है?

    हमलोग जो इंटरनेट के पैसे सर्विस प्रदाता को देते हैँ वो पैसे कौन लेता है? (अन्त मेँ)

    इंटरनेट पर साईट बनानेँ पर जो वार्षिक धन चुकाना पड़ता है तो यह धन कौन लेता है? उसे कौन अधिकार देता है ऐसा करनेँ का?

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    1. इंटरनेट पर भारी मात्रा मेँ डाटा मौजूद है। यह डाटा संग्रहीत कहाँ होता है?

      उत्तर : हर वेब साईट का अपना सर्वर होता है, डाटा उसी सर्वर पर होता है. एक सर्वर पर एक से ज्यादा साईट भी हो सकती है. कुछ कम्पनियाँ इस काम के लिए सर्वर राकहती है जिन्हें होस्टिंग कंपनी कहते है. वैसे अपने नीजी सर्वर भी रखे जा सकते है, जैसे ब्लॉग वाणी का अपना सर्वर था.

      उसकी संग्रहण क्षमता कितनी होगी?
      उत्तर : सर्वर की क्षमता होस्टिंग कंपनी पर निर्भर है, कितनी भी हो सकी है.

      इंटरनेट का क्या कोई मालिक भी है?
      उत्तर : इंटरनेट एक जाल मात्र है, जिसने इन सर्वरों को जोड़ रखा है, इसका कोई मालिक नहीं है, अलबत्ता कुछ नियामक संस्थान है जो इसके सञ्चालन के नियम तय करते है.

      हमलोग जो इंटरनेट के पैसे सर्विस प्रदाता को देते हैँ वो पैसे कौन लेता है? (अन्त मेँ)
      उत्तर : सर्विस प्रदाता ही, क्योंकि वह आपके कंप्यूटर को जाल से जोड़ता है, उसी के पैसे लेता है.

      इंटरनेट पर साईट बनानेँ पर जो वार्षिक धन चुकाना पड़ता है तो यह धन कौन लेता है? उसे कौन अधिकार देता है ऐसा करनेँ का?
      उत्तर : होस्टींग कंपनी क्योंकि आपकी साईट उसके सर्वर पर है! आपको सर्वर का किराया देना होगा!

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  51. फ्रिज मेँ जमी हुई बर्फ पिघलनेँ पर जो पानी बनता है उस पानी मेँ सफेद रंग का कोई पदार्थ आ जाता है जो पानी मेँ विलेय नहीँ नहीँ होता। जल की सतह मेँ बैठ जाता है। लगता है पानी गन्दा हो।

    तो वो सफेद पदार्थ क्या है? क्योँ और कैसे बनता है?

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    1. जल में कुछ लवण मिले होते है , ये कुछ अवस्था मे अपने निर्माता धातु के कुछ यौगिको का निर्माण करते है, सफेद पदार्थ वही होता है.

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  52. फोटान, जो कि प्रकाश वेग से गतिमान होते हैँ, विशेष सापेक्षता के सिध्दान्त के अनुसार समय का प्रयोग करते हैँ या नहीँ? क्या फोटान पर भी समय शून्य होता है?

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  53. main ek student hi hu …or apni puri life ko ek parrelal univers ko khojne main samrpit karta hu ….muje pata nahi main kis disha main ja raha hu par main jaha se eski surubat kar raha hu vo apko sab ko batata hu …………….ye to ham sabhi jante hai ki theoritical rup se eska astitv hai …….par maine mere asspass kuchh esa dekha jo muje use or adhik janne ke liye prerit kartra hai ….apne bhi dekha hoga …bhut pret ke bare main suna hoga …unme kuchh to sachhai hai …..ya sirf energy ka koi rup hia …ya koi duniya jo kisi or dimenssion me ho ….maine kuchh pata kiya

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  54. प्रश्न १. ऐसा माना जाता है की सूर्य का प्रकाश हम तक आने मैं लगभग 8 .5 मिनट लेता है, इस का मतलब की अगर अभी सूर्य ख़तम हो जाये तो हमे 8 .5 मिनट बाद पता चलेगा. अब आते मैं मुद्दे की बात पर, हमारे सबसे पास के तारे अल्फा सेंतुरी का प्रकाश हम तक लगभग ४ वर्ष मैं आता है, तो जो ब्रह्माण्ड हम आज देखते हैं वो तो जाने कितने लाख प्रकाश वर्ष बाद हम तक पहुंचा है, मतलब हम कई लाख वर्ष पहले के आकाशमंडल को देखते हैं, तो हम जो calculation करते है वो कैसे सही हो सकती है?
    प्रश्न २. हमारे आंखे .4 mircon से .7 micron के वर्णक्रम के प्रकाश को देख सकती है, हम केवल २० हर्ट्ज़ से २० किलो हर्ट्ज़ के बीच की ध्वनि को ही सुन सकते हैं, इससे ऊपर और नीचे भी कितनी धवानियाँ और प्रकाश होंगे जिन्हें हम न तो देख सकते और न सुन सकते फिर हम इतनी लिमिटेड इन्द्रियों से कैसे इस दुनिया की थाह पाने की सोच सकते है?
    प्रश्न ३. हमारे हम मैं जो विचार आते हैं उन्हें हम किस तरह परिभाषित कर सकते हैं? वो किसी प्रकार की ऊर्जा है ?

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    1. १. ब्रह्मांडीय स्तर पर की गणनाओ में खगोलीय पिंडो के द्वारा उत्सर्जित प्रकाश के पृथ्वी तक पहुँचाने में लगे समय का ध्यान रखा जाता है.
      २. हमारी इन्द्रियाँ सक्षम नहीं लेकिन हमारे पास उपकरण तो है.
      ३. आपका प्रश्न अभी तक अनुत्तरीत है, विचार का प्रवाह हमारे मस्तिस्क में विद्युत् संकेतो के रूप में ही होता है लेकिन विचार कैसे बनते है, क्यों बनते है , अनुत्तरीत है.

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  55. आप पुनः ध्यान से पढ़िये। सापेक्षता के सिध्दान्त के अनुसार यह प्रश्न बिल्कुल सही है।
    अगर आपनेँ सापेक्षता का सिध्दान्त पढ़ा है तो उसमेँ आपनेँ जुड़वा विरोधाभास (Twin Paradox) के बारे मेँ पढ़ा होगा। अगर नहीँ भी पढ़ा तो विकीपीडिया से पढ़ सकते हैँ। यह एक ऐसा विरोधाभास है जो आजतक हल नहीँ हुआ है। इस पहेली के हल के रुप मेँ कई सिध्दान्त हैँ पर सभी वैज्ञानिकोँ का किसी एक सिध्दान्त पर एक मत नहीँ है।
    हमारा यह प्रश्न भी उसी विरोधाभास से सम्बन्धित है।

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    1. अच्छा तो आप ही साहू जी भी है और Einstein भी खैर…
      चलिए देखते हैं, जब मैं आप से दूर जाता हूँ। तब आप देखेंगे कि मेरा आकर जिस अनुपात में घटता हुआ प्रतीत होता है। उसी अनुपात में आपका आकर भी घटता हुआ प्रतीत होता है। इसे कहते हैं सापेक्षता का सिद्धांत..

      ठीक इसी तरह प्रकाश के वेग से गतिशील वस्तु या पिंड के आकर में कमी, द्रव्यमान अन्नत और समय अन्नत होता हुआ, प्रतीत होता है। इसे कहते हैं विशेष सापेक्षता का सिद्धांत..
      क्या है ना जब हम भी प्रकाश के वेग से गतिशील हो जाएँगे तब ऐसा भी प्रतीत नहीं होगा। ऐसा सापेक्षीय गति होने पर ही संभव होगा। यहाँ समझने योग्य बिंदु यही है, कि दोनों परिस्थितियों में तो आकार कम प्रतीत हो रहा है तब प्रकाश के वेग का क्या अभिप्राय..??

      प्रकाश के वेग से गतिशील पिंड में वास्तव में कमी, द्रव्यमान अन्नत और समय भी अन्नत होने लगता है। फिर प्रतीत होने वाली बात कैसे..?? वो ऐसे कि जब हम परिक्षण करने के लिए वहां पहुंचेंगे। तब आकार हमारे अनुपात में कम ही नहीं होगा। और जब हम अपनी अवस्था से ही परिक्षण करेंगे तब ही इस घटना को देखा जा सकता है।
      अरे यह कैसे…??? ये तो गलत है जिसको करना संभव नहीं है। तो हम उन परिक्षण के परिणाम को क्यों माने..??

      वो ऐसे कि जब पिंड प्रकाश के वेग से गतिशील होता है तब उसमे निर्पेक्षीय अनुपात में परिवर्तन होते हैं। और जब वस्तु या पिंड के सामान्य वेग के कारण वस्तु दूर जाती है। तब परिवर्तन होता नहीं है। सिर्फ सापेक्षीय प्रतीत होता है।
      इसे ऐसा मान लिया जाता है मानो उस पिंड की अपनी अलग ही दुनिया बन गई है।

      अब आप स्वयं के द्वारा बनाई गई परिस्थितियों में इस बात से अनुमान लगा सकते हैं कि आप सही हैं या नहीं..।

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      1. 1. आधारभूत ब्रह्माण्ड! जी, आपका शुभ नाम क्या है?

        2. क्या आपनें सापेक्षता के विशेष सिद्धांत का भली-भाँती अध्ययन किया है?

        3. “ठीक इसी तरह प्रकाश के वेग से गतिशील वस्तु या पिंड के आकर में कमी, द्रव्यमान अन्नत और समय अन्नत होता हुआ, प्रतीत होता है। इसे कहते हैं विशेष सापेक्षता का सिद्धांत..”

        अगर धरातल को स्थिर मान लें, तो धरातल के सापेक्ष के प्रकाश के निकटतम वेग से गतिमान रेलगाड़ी का अवलोकन यदि हम करते हैं तो द्रव्यमान में अधिकता, समय में कमी और आकार में भी कमी पायेंगे!” (जबकि यहाँ आपने समय को उन्नत होता बताया है.)

        4. “जब पिंड प्रकाश के वेग से गतिशील होता है तब उसमे निर्पेक्षीय अनुपात में परिवर्तन होते हैं।” परिवर्तन निरपेक्ष कैसे हो सकता है? निरपेक्ष परिवर्तन का अर्थ हुआ की यात्री को रेलगाड़ी से बाहर की वस्तुवें जिस अनुपात में छोटी दिख रही हैं, उसी अनुपात में अंदर की वस्तुवें भी संकुचित दिखनी चाहिए. पर ऐसा नहीं होता!

        5. अधिक जानकारी के लिए कृपया पहले इसे पढ़ लें! http://en.wikipedia.org/wiki/Special_relativity

        6. “माना हम ट्रेन पर बैठे सुबह के दस बजे, और बैठते समय अपनी हाथ की घड़ी, स्टेशन की घड़ी से मिला ली! अब हमारी रेलगाड़ी 2,40,000 किमी./सेकंड के भीषण वेग से दौड रही है! फिर कुछ दूरी तय करने के बाद एक स्टेशन आया! हमारी रेलगाड़ी रुक गयी! स्टेशन पर देखा की ग्यारह बज गए थे, और अपनी हाथ घड़ी देखा तो उसमें दस बजकर 36 मिनट ही हुए थे. यहाँ तक ठीक है?” आपके अनुसार यहाँ क्या परिवर्तन होना चाहिए?

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      2. यह कहना मुश्किल होगा कि मैंने विशेष सापेक्षता के सिद्धांत का भली-भाँती अध्ययन किया है या नहीं..
        मैंने बहुत साल पहले कक्षा-११वी. में ऐसा ही पड़ा था।
        खैर.. आप इतना जान लें कि अन्नत समय होने का व्यवहारिक अर्थ घड़ी का सुस्त पड़ना भी होता है। यानि कि घड़ी का धीरे-धीरे चलना।
        अन्नत का गणितीय में दो अर्थ निकाले जाते हैं। एक तो अधिकतम मान के लिए.. और दूसरा सर्वाधिक होने के लिए..।
        इसी तरह भौतिकी में जिस स्थान से प्रकाश किरणें समान्तर आती हुई प्रतीत होती हैं। उसे भी अनंत कहते हैं। और जहाँ गुरुत्वाकर्षण बल समाप्त होता है। उसे भी अनंत कहते हैं।

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      3. आधारभूत ब्रह्माण्ड,
        ग्यारहवीं में विशेष सापेक्षता का सिद्धांत! इन दिनों तो B.Sc. से पहले लोग सापेक्षता के सिद्धांत के बारे में जानते ही नहीं है, यदि उन्होंने स्कूल से बाहर निकलकर कुछ पढाई न की हो तो!

        वैसे कहीं आप विद्या निकेतन इंटर कॉलेज, कानपुर के भौतिकी के अध्यापक तो नहीं हैं?

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  56. दीपक,
    मुझे नहीँ लगता कि आइंस्टीन नेँ ऐसा कभी कहा था। भारतीयोँ की एक विशेषता है कि वे विदेशियोँ से अपनेँ आप को अधिक महान सिध्द करनेँ के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहते हैँ। जब भी कोई नई खोज होती है उसके कुछ ही दिनोँ बाद पता चलता है कि यह खोज हमारे धर्म ग्रन्थोँ मेँ पहले ही हो चुकी थी।:)
    ऐसा सिध्द करनेँ के लिए अनेक भारतीय प्राचीन ग्रन्थोँ के श्लोकोँ के मनमानेँ अर्थ निकालते हैँ और आधुनिक वैज्ञानिक निष्कर्षोँ को उन ग्रन्थोँ मेँ पहले से होनेँ की बात कहते हैँ।
    अन्य अन्धविश्वासी भारतीय उनकी बातोँ को बिना किसी गहरे विश्लेषण के मान लेते हैँ और फिर सभी से अपनेँ धर्म ग्रन्थोँ के महान होनेँ की डीँगेँ मारा करते हैँ।

    पहले मैँ भी उनकी बातोँ के झाँसे मेँ आ गया था। (आशीष जी इसके गवाह हैँ:)) फिर कई लेखोँ, चर्चाओँ और अनुभवोँ के बाद पता चला कि ये भारतियोँ की आदत मेँ शुमार है। वे अपनेँ आप को महान सिध्द करनेँ के लिए कुछ भी लिख सकते हैँ। इसलिए मेरा सुझाव है कि बिना किसी गहरे विश्लेषण के इस प्रकार की किसी भारतीय बात पर विश्वास न किया करेँ।

    अब आइंस्टीन तो दुनिया मेँ रहे नहीँ। कुछ भी यह कहकर लिख दो कि आइंस्टीन नेँ ऐसा कहा था। अब कौन पूछनेँ जायेगा?

    हाँ यह बात अगर किसी विदेशी नेँ लिखी हो तो सच हो सकती है क्योँकि उसके पास गलत लिखनेँ का कारण नहीँ है। या फिर किसी विश्वसनीय श्रोत मेँ यह बात लिखी हो। क्या आप बता सकते हैँ कि आइन्स्टीन का यह कथन ऐसे किस श्रोत से है जिस पर विश्वास किया जा सके?

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    1. ANMOL SAHU JI, AAP KABHI BHI CHAR LOGON KO DEKH KAR YAH NAHI KAH SAKTE KI UNKE GROUP ME SABHI AISE HI HONGE. HAAN UNKE SWABHAV KO DEKH KAR GROUP KI PRAKRATI KO AWASHYA HI NIRDHARIT KIYA JAA SAKTA HAI.

      YAHI GALTI KI JAATI HAIN BHAUTIK SWAROOP, BHAUTIKTA OR BHAUTIKTA KE ROOP KO SAMJHNE ME. SHRI MAN YADI AISA HONE LAGTA TO ELECTRON KI SANKHYA MERE GURON(RASHIYON) KI MAAP KE BARABAR HOTI.

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    2. बिलकुल सही कहा आशीष,

      हमेशा कोई नयी वैज्ञानिक खोज के बाद में ही लोग अपने ग्रन्थ ले कर आ जाते हैं कि ये बात तो हमारे ग्रंथों में पहले से लिखी थी.

      अगर उनमें इतने ही वैज्ञानिक तथ्य लिखें हुए हैं तो उन्हें खोज होने से पहले क्यूँ नहीं सामने लाते

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    1. तारो से निकलने वाले प्रकाश से उनकी दूरी और संरचना, घटक तत्व और उनकी मात्रा पता चल जाती है। दो छवियो मे ये सभी एक जैसे ही होंगे, इन सभी कारको के अध्यन से गुरुत्व्यिय लेंस से बनने वाली एकाधिक छवियों को पहचाना जा सकता है।

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  57. सर, मैं आप से जानना चाहता हूँ कि ब्रह्माण्ड के समूह वास्तविकता में हैं या सैद्धांतिक रूप में हैं…???
    और इनकी उपस्थिति को किस आधार पर एक दुसरे से पृथक माना जाता है।

    १. भिन्न- भिन्न ऊर्जा या शक्ति के आधार पर
    २. गैलेक्सी के समूह से निर्मित ब्रह्माण्ड में आपसी दूरी अधिक होने के कारण
    ३. ब्रह्माण्ड के निर्माण की क्रिया ही भिन्न-भिन्न होने के कारण
    ४. या फिर मनुष्य के समूह, पेड़-पोधों के समूह या अन्य प्रजाति के समूह के संयोजित रूप को ही ब्रह्माण्ड कहते हैं..।

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      1. सर, मैं जानना चाहता हूँ कि ब्रह्माण्ड के समूह(MULTIVERSE) की अवधारणा व्यावहारिक रूप में संभव है या फिर सिद्धान्तिक रूप में.. ।
        प्रश्न पूंछने का कारण : अभी तक मैं सुनते आया हूँ व्यापकता का दूसरा नाम ब्रह्माण्ड है। जिसके अंतर्गत सर्वस्व सम्मलित है। उसमे सम्मलित होने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहता।

        आगे प्रश्न यह है कि ब्रह्माण्ड के समूह(MULTIVERSE) की अवधारणा के होने का कारण इनमे से क्या हैं..??
        १. ब्रह्माण्ड की भिन्न- भिन्न स्थिति में ऊर्जा या शक्ति का वितरण या उसके रूप के भिन्नता होना।
        २. गैलेक्सी के समूह से निर्मित ब्रह्माण्ड में गैलेक्सी के समूहों का अपना अपना समुच्चय होना।जिससे की समुच्चय में आपसी दूरी अधिक होगी।
        ३. ब्रह्माण्ड के निर्माण की क्रिया में भिन्नता होना।
        ४. या फिर मनुष्य के समूह, पेड़-पोधों के समूह या अन्य प्रजाति के समूह के संयोजित रूप को ही सयोंजित ब्रह्माण्ड कहते हैं..। जहाँ मनुष्य के समूह, पेड़-पोधों के समूह या अन्य प्रजाति की अपनी अलग-अलग दुनिया है।
        ५. और यदि कहीं ब्रह्माण्ड का निर्माण वर्तमान में जारी है। तो इससे निर्मित ब्रह्माण्ड में संख्यात्मक विकास होना। ब्रह्माण्ड के समूह होने का कारण है।

        या फिर ब्रह्माण्ड के समूह(MULTIVERSE) की अवधारणा का कुछ और ही कारण है।

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      2. वर्त्तमान ज्ञान के अनुसार समान्तर ब्रह्माण्ड (मल्टीवर्ष) अभी सैद्धांतिक रूप में ही है, वास्तविकता में हो सकता है या नहीं भी !

        आपके प्रश्न का उत्तर छोटा नहीं है, मुझे इस पर एक पूरा लेख लिखना होगा! अभी इतना कह सकता हूँ कि मल्टीवर्ष इन सभी से अलग है. मल्टीवर्ष में एकाधिक ब्रह्माण्ड होते है और हर ब्रह्माण्ड में एक वास्तु की अलग अलग कापी होने की संभावना होती है. अर्थात यदि दो ब्रह्माण्ड है तो आप और मै एक नहीं है, हम दोनों कि एक कापी दूसरे समान्तर ब्रह्माण्ड में भी है.
        मान लो कि आपने एक सिक्का उछाला तो एक ब्रहमांड में वह चित आयेगा, दूसरे में पट! अर्थात इस घटना के लिए दो परिणामो की संभावना है इसलिए दो समान्तर ब्रह्माण्ड होंगे. जितनी ज्यादा संभावनाए उतने समान्तर ब्रह्माण्ड. यह दिमाग को चकरा देना वाला अजीब सा सिद्धांत है लेकिन असंभव नहीं.

        यह संभव है कि किसी समान्तर ब्रह्माण्ड में महात्मा गांधी की ह्त्या नहीं हुयी हो, जबकि हमारे ब्रह्माण्ड में उनकी ह्त्या हुयी है. ये दो ब्रह्माण्ड इसलिए कि महात्मा गांधी की हत्या होने या ना होने की दो संभावनाए है.

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      3. जी धन्यवाद..
        मुझे अपने प्रश्न का उत्तर पहली पंक्ति से ही मिल गया है। “ब्रह्माण्ड के समूह” पर लेख का मैं इंतज़ार करूँगा। मुझमे इसको जानने की ललक है।

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  58. आयाम की परिभाषा क्या होगी?

    मेरा मत है कि वास्तविक संसार मेँ तीन आयामोँ से कम आयाम संभव ही नहीँ है। शून्य आयामी बिन्दु, एक आयामी रेखा और द्विआयामी समतल सिर्फ गणित मेँ ही हो सकते हैँ बाह्य जगत मेँ नहीँ।

    स्ट्रिँग सिध्दान्त की स्ट्रिँग को एक आयामी संरचना कैसे माना जा सकता है? अगर उसमेँ लम्बाई है तो उसकी और भी सूक्ष्म त्रिज्या भी होगी। एक आयाम का मतलब त्रिज्या शून्य। अब शून्य त्रिज्या का अर्थ क्या होगा? ऐसी कोई स्ट्रिँग हो ही नहीँ सकती।

    आप ऐसी किसी वास्तविक वस्तु का नाम नहीँ बता सकते जो तीन से एक भी आयाम कम पर संभव हो।

    क्या यह सही है?

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    1. अनमोल तुम्हारा प्रश्न स्ट्रिंग सिद्धांत को चुनौती दे रहा है. मानव मस्तिष्क केवल तीन आयामों (न कम न ज्यादा) समझ सकता है. वहीं मछली केवल दो ही आयाम देख सकती है, सोच सकती है.
      स्ट्रिंग को एक आयामी कहा जाता है, वही मूलभूत कण जैसे क्वार्क को शून्य आयामी (शून्य, चौड़ाई, लम्बाई और उंचाई ), यही शून्य गणना में अनंत लाता है.
      स्ट्रिंग सिद्धांत अभी प्रमाणित नहीं है, वह केवल गणितीय सिद्धांत है, प्रायोगिक धरातल पर उसका प्रमाणित होना अभी बाकी है.

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      1. जल की उष्माधारिता की तुलना में किसी पदार्थ की उष्माधारिता को उस पदार्थ की विशिष्ट उष्मा कहते हैं। अर्थात्‌, पदार्थ के किसी द्रव्यमान की किसी तापवृद्धि के लिए आवश्यक उष्मा की मात्रा तथा समान द्रव्यमान के जल की उसी तापवृद्धि के लिए आवश्यक उष्मा की निष्पत्ति को उस पदार्थ की विशिष्ट उष्मा कहते हैं। 1 ग्राम जल की 1° सें. तापवृद्धि के लिए आवश्यक उष्मा 1 एकक उष्मा होती है अत: एक ग्राम पदार्थ की उष्माधारिता उस पदार्थ की विशिष्ट उष्मा होती है।

        यदि द्रव्यमान m की किसी वस्तु का ताप (T1) से (T2) तक बढ़ाने के लिए आवश्यक उष्मा की मात्रा मा (Q) हो तो पूर्वोक्त परिभाषा के अनुसार विशिष्ट उष्मा वि (S) निम्नलिखित सूत्र में प्राप्त होगी:

        S = Q / (m . (T2-T1)) — (1)
        किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा विशिष्ट उष्मा के गुणनफल को उस वस्तु की उष्माधारिता (हीत कैपेसिटी) कहते हैं। इसे उस वस्तु का ‘जल तुल्यांक’ भी कहते हैं।

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    2. Sir space mai kyu nhi ho sakte 3 say adhik dimension yadi space mai 3 say adhik dimension nhi ho sakte h kyuki maths k niyam ke anusar space mai infinite dimension aur space infinite structure ka h mana ki insaan 3 say adhik dimension say jayeda nhi soch sakta to iska Matlab yai nhi h ki ki 3 say adhik dimension nhi ho sakte…apna comments jaruru de

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  59. क्या आप बता सकते हैँ कि हाइजेनबर्ग नेँ अनिश्चितता का सिध्दान्त कैसे दिया? किस आधार पर दिया? उन्होँने इसके लिए क्या प्रयोग किया?

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      1. इसमेँ अनिश्चितता का सिद्दान्त दिया हुआ है। हमनेँ अनिश्चितता का सिध्दान्त नहीँ पूछा है। हमारा प्रश्न है कि हाइजेनबर्ग को अनिश्चितता के सिध्दान्त की जानकारी कैसे हुई? उन्होनेँ यह नियम कैसे जाना?

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  60. आशीष जी नमस्कार ,
    कई बार पहाड़ों पर हम बादलों क़े अन्दर गए /कई बार एयर बस भी बादलों क़े अन्दर से निकलती है, मेरा प्रश्न बादल तो एक कोहरे जैसा लगता है फिर बादल फटना ओर इतनी तबाही होना कैसे ओर क्या विज्ञान की मदद से पूर्व अनुमान नहीं लगाया जा सकता ?

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    1. मनोज,

      बादल फटना वातावरण में आये अचानक बदलाव से होता है, अभी तक इसका पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव नहीं हो सका है. इसके पीछे के सभी कारको की जानकारी नहीं है.

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  61. आशीष, एक अटपटा विचार मन में आया तो उसे साझा कर रहा हूँ. किसी प्रकाश स्रोत (जैसे सूर्य) से तीन लाख किलोमीटर प्रति सैकंड की गति से किरणें-कण-तरंगें-फोटॉन निकल रहे हैं. उसके सामने एक लोहे का बक्सा खुला रखा है. यदि उस बक्से का ढक्कन बंद कर दिया जाये तो क्या यह कहा जा सकता है कि ढक्कन बंद करते समय उस अंतराल से गुज़र रहे किरणें-कण-तरंगें-फोटॉन (अर्थात प्रकाश) उस बक्से में बंद रह गए होंगे?

    इसी से मिलता-जुलता प्रश्न: क्या कारण है कि सर्वोच्च संभव गति से चल रहे अति सूक्ष्म फोटॉन धातु की पतली सी शीट को भेद नहीं पाते, यहाँ तक कि लकड़ी के पतले बोर्ड को भी नहीं भेद पाते.

    और यह भी: क्या फोटॉन भारहीन होते हैं? फोटॉन के पैकेट्स से हमारा क्या अभिप्राय है? यदि वे कण हैं तो निश्चित ही उनका भार अवश्य होगा, भले ही कितना ही नगण्य हो. ऐसे में किसी प्रकाश उत्सर्जित करनेवाली वस्तु (जैसे बल्ब) के द्रव्यमान में लम्बी अवधि में कमी आनी चाहिए (भले ही वह कितनी ही नगण्य क्यों न हो)?

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    1. 1. सबसे पहले समस्त ब्रह्माण्ड मे सिर्फ दो ही चीजें है, पदार्थ और ऊर्जा।
      2. आईन्सटाइन ने प्रमाणित किया कि पदार्थ और ऊर्जा एक ही है और इनका एक से दूसरे रूप मे परिवर्तन संभव है।
      3. समस्त ब्रह्माण्ड दो तरह के कणो से बना है, फर्मीयान और बोसान। फर्मीयान कण पदार्थ बनाते है और बोसान कण ऊर्जा।
      4. अधिकतर बोसान कण का द्रव्यमान नही होता है,इसमे फोटान भी है। फोटान बोसान का एक प्रकार है जो विद्युत-चुंबक बल का वाहक कण है।.
      5. विद्युत बल्ब मे विद्युत ऊर्जा इलेक्ट्रान द्वारा अवशोषित होती है, और ये आवेशित इलेक्ट्रान अधिक ऊर्जा होने से गतिमान हो जाते है। विद्युत बल्ब का फिलामेंट की धातु इस तरह की होती है कि इलेक्ट्रान आपस मे टकराकर ऊर्जा उत्सर्जित करते है, यह ऊर्जा उष्णता/प्रकाश फोटान के रूप मे बाहर आती है। जो ऊर्जा आपने विद्युत रूप मे दी थी, वही उष्णता/प्रकाश रूप मे बाहर आयी। द्रव्यमान का क्षय नही हो रहा है। ध्यान रहे कि ऊर्जा के अविनाशिता के नियम के अनुसार ऊर्जा का निर्माण और विनाश असंभव है, केवल एक रूप से दूसरे रूप मे परिवर्तन संभव है।
      6. किसी बक्से मे आप फोटानो को बंद नही कर सकते है, वे उस बक्से के पदार्थ द्वारा अवशोषित कर लिये जायेंगे। बक्सा आंशिक मात्रा मे उष्ण या आवेशित हो जायेगा।
      7. फोटान कुछ और नही, बस ऊर्जा का संघनित रूप(packet) है।फोटान अपनी आवृत्ति के आधार पर दॄश्य प्रकाश/एक्स रे/उष्मा/गामा किरण जैसे एकाधिक रूप मे रह सकते है। जब हम पैकेट कहते है इसका अर्थ होता है कि प्रकाश किरण सतत नही होती है, विद्युत चुंबकिय ऊर्जा छोटे छोटे टुकड़ो मे अर्थात पैकेट अर्थात फोटान के रूप मे प्रवाहित होती है।
      8. फोटान किस पदार्थ को भेद सकते है यह उसकी आवृत्ती/तरंग दैध्र्य पर निर्भर है। गामा किरण लगभग हर वस्तु को भेद सकती है। दृश्य प्रकास कुछ ही वस्तुओ को भेद सकती है। एक्स रे कुछ ज्यादा पदार्थो को भेद सकती है। यह सभी विद्युत-चुंबकिय विकिरण अर्थात फोटान ही है। बस आवृत्ति भिन्न है। लेजर भी फोटान ही है।
      9. फोटान की आवृत्ति कुछ भी हो अर्थात प्रकाश/एक्स रे/गामा किरण/रेडीयो तरंग सभी की गति एक जैसे रहती है।
      इस चित्र को भी देखे

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      1. धन्यवाद, आशीष.
        ऐसे ही पढ़ते रहने से चीज़ें बेहतर समझ में आने लगेंगीं.
        कणों के अवशोषण से आपका क्या तात्पर्य है? क्या यह कणों का ह्रास होना है? अवोशोषित हो चुके कणों का क्या होता है?

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      2. केवल बलवाहक कण ही अवशोषित किये जा सकते है, क्योंकि ये उर्जा के पैकेट मात्र होते है। ये बलवाहककण पदार्थ-कणो मे समा जाते है, अर्थात अवशोषित हो जाते है, फलस्वरूप पदार्थ कण की ऊर्जा बढ़ जाती है, पदार्थ कण या तो ज्यादा गतिमान हो जाते है, या उष्ण हो जाते है। पदार्थ कण द्वारा बल-वाहक-कण(बोसान) के अवशोषण द्वारा पदार्थ-कण(फर्मीयान) की प्रतिक्रिया बहुत से कारक पर निर्भर है, जैसे उसका प्रकार (धातु/अधातु), रंग इत्यादि।
        पदार्थ कण विशेष स्थितियो मे अपनी ऊर्जा का उत्सर्जन बोसान कणो के रूप मे करते है।

        कणो का ह्रास केवल पदार्थ कणो के ह्रास मे संभव है, यह रेडीयो सक्रिय पदार्थो मे होता है , जहां पर पदार्थ कण का कुछ भाग क्षय होकर ऊर्जा अर्थात बलवाहक कण और न्युट्रीनो मे परिवर्तित हो जाता है।

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      3. आशीष,
        मैं इसी प्रश्न पर पुनः विचार कर रहा हूँ . यदि बक्से की भीतरी सतह पूर्ण रूप से परावर्तनशील (लगभग पूर्ण) है. तब क्या कुछ क्षण के लिए फोटोन बक्से में बंद होंगे?

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  62. आशीष जी ,नमस्कार ,कृपया यह बताये की आसमान में बिजली का निर्माण कैसे होता है ?
    और इस बिजली से पृथ्वी क़े अलावा बाहर अन्तरिक्ष की ओर भी नुक्सान की सम्भावना होती है , तथा अगर वोल्ट में नापे तो कितना वोल्ट तक का करंट इसमें हो सकता है ?

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    1. आकाशीय बिजली प्राय: कपासीवर्षी (cumulonimbus) मेघों में उत्पन्न होती है। इन मेघों में अत्यंत प्रबल ऊर्ध्वगामी(ऊपर कि दिशा में ) पवनधाराएँ चलती हैं, जो लगभग ४०,००० फुट की ऊँचाई तक पहुँचती हैं। इनमें कुछ ऐसी क्रियाएँ होती हैं जिनके कारण इनमें विद्युत्‌ आवेशों की उत्पत्ति तथा वियोजन होता रहता है। इस प्रक्रिया को आयोनाइजेशन कहते है।
      बादलों में इनके ऊपरी स्तर धनावेषित तथा मध्य और निम्नस्तर ऋणावेषित होतें हैं। बादलों के निम्न स्तरों पर ऋणावेश उत्पन्न हो जाने के कारण नीचे पृथ्वी के तल पर प्रेरण(induction) द्वारा धनावेश उत्पन्न हो जाते हैं। बादलों के आगे बढ़ने के साथ ही पृथ्वी पर के ये धनावेश भी ठीक उसी प्रकार आगे बढ़ते जाते हैं। ऋणावेशों के द्वारा आकर्षित होकर भूतल के धनावेश पृथ्वी पर खड़ी सुचालक या अर्धचालक वस्तुओं पर ऊपर तक चढ़ जाते हैं। इस विधि से जब मेघों का विद्युतीकरण इस सीमा तक पहुँच जाता है कि पड़ोसी आवेशकेंद्रों के बीच विभव प्रवणता (वोल्टेज )विभंग मान(potential gradient – इस सीमा पर वायु सुचालक हो जाती है) तक पहुँच जाती है, तब विद्युत्‌ का विसर्जन एक चमक के साथ गर्जन के के रूप में होता है। इसे तड़ित/बिजली कहते हैं।
      इसका प्रभाव पृथ्वी के वायुमंडल तक ही रहता है, अंतरिक्ष में कोई प्रभाव नहीं होता क्योंकि वहां इसके बहाव के लिए कोई चालाक नहीं होता है.यह लगभग एक टेरा वाट तक हो सकती है। इसका करंट ३०,००० एम्पीयर तक हो सकता है. ध्यान रहे विद्युत् ऊर्जा को वोल्टेज में नहीं वाट या अम्पीयर में नापा जाता है,

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  63. गुरुजी, वास्तव मेँ तापमान क्या है? निर्वात मेँ तापमान क्या होगा? निर्वात मेँ तापमान कम ज्यादा कैसे होता है? परम शून्य से नीचे का तापमान भी होता है क्या? और किसी चीज को परम शून्य तक कैसे ठण्डा किया जा सकता है?

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    1. तापमान किसी भी पदार्थ कि उष्मता ऊर्जा का माप है. हर पदार्थ अपने आपको परम शून्य तापमान तक जाने का प्रयास करता है, इस प्रक्रिया में वह उष्मा का उत्सर्जन करता है, वही उस पदार्थ का तापमान होता है.
      निर्वात में पदार्थ नहीं होता, तापमान होने का प्रश्न नहीं उठता.
      परम शून्य पर सभी पदार्थ कण गति करना बंद कर देते है, तो उससे निचे तापमान संभव नहीं है. परम शून्य तक ठंडा करना भी संभव नहीं है, उसके आस पास तक ठंडा करने द्रव नाईट्रोजन का प्रयोग होता है.

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  64. 1….ek sidha shada sabal ….kya parallal world ka astitv hia,,,,,
    kya three dimension ke allaba bhi koi or dimension hai …

    agar ye sab hai to koyo stephen howking god ke astitv ko nakarte hai ….
    shayad vo kisi parallal univers main ho ….
    2…kya prakas se adhik kisi ki speed nahi hai …..

    ha esa koyo mante hai jabki …ham jante hai ki gelaxy ek dusre se prakash ki ghati se adhik ghati se dur ja rahi hai ……..

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    1. दीपक,
      १. समान्तर ब्रह्माण्ड एक अवधारणा है, इसका आस्तित्व संभव है, लेकिन प्रमाणित नहीं. इसका अर्थ है कि यह सैद्धांतिक रूप से हो सकता है लेकिन प्रायोगिक रूप से देखा नहीं गया है.
      भगवान को मानना नहीं मानना व्यक्तिगत अवधारणा है, स्टीफन हाकिंग और अधिकतर वैज्ञानिक भगवान को नहीं मानते. पीटर हिग्स भी नहीं मानते, इसमे कोई आश्चर्य नहीं है. वह उनकी अपनी मान्यता है. मै भी भगवान के आस्तित्व पर विश्वास नहीं करता.
      २. प्रकाश गति से तेज यात्रा संभव नहीं है. वह आइन्स्तैन के सापेखातावाद के सिद्धांत का उल्लंघन है. आकाशगंगाए एक दूसरे से प्रकाशगति से तेज गति से दूर जा रही है, यह सत्य है लेकिन इसमे आकाशगंगाए गति नहीं कर रही है, उनके मध्य का अंतरिक्ष (स्पेस-टाइम) का विस्तार हो रहा है. इसमे पिंड की गति नहीं है, उनके मध्य अंतराल का विस्तार है.

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      1. एक मूल सार है गीताजी का जिसे में बहुत ही गहरा और व्यापक मानता हूँ ,” मयाध्यक्षेण प्रकृतिम सूयते स चराचरम ” , अर्थात मेरी अध्यक्षता में प्रकृति समस्त चर [life ] अचर [universe including everything ] को जन्म देती है . मतलब प्रकृति को सृष्टी का सृजन & सञ्चालन करने का कार्यभार सौपते हुए इश्वर अध्यक्ष अर्थात बिना व्यवधान के प्रकृति को अपना काम करने देते है , इसीलिए हम प्रकृति को ही कुछ रहस्यों को जानने के बाद उसे ही सब कुछ समझ लेते है . इस तथ्य पर कुछ विचार कीजिये और फिर देखिये की इश्वर के अस्तित्व से सम्बंधित आपकी सोच पर क्या प्रभाव पड़ता है .

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  65. कल्पना कीजिये एक रेलगाड़ी की जो धरातल के सापेक्ष प्रकाश के वेग के नजदीक के वेग से दौड रही है! रेलगाड़ी के अंदर बैठे द्रष्टा के लिए रेलगाड़ी से बाहर की वस्तुवें संकुचित दिखाई देंगी! और रेलगाड़ी से बाहर बैठे द्रष्टा को रेलगाड़ी के अंदर की वस्तुवें संकुचित दिखाई देंगी! दोनों लोग यह संकुचन इसलिए देखेंगे, क्यूंकि दोनों एक दूसरे के सापेक्ष गति कर रहे हैं! बाहर वाले के लिए वो स्थिर है और रेलगाड़ी चल रही है जबकि अंदर वाले के लिए ट्रेन स्थिर है और बाहर की दुनिया चल रही है! आपने यात्रा करते हुवे लोगों को कहते हुवे सुना भी होगा, आगरा आ गया! वो ये नहीं कहते कि हम आगरा आ गए! 🙂 ! ये तो हुआ Length Contraction! अब आते हैं Time Dilation पर !

    माना हम ट्रेन पर बैठे सुबह के दस बजे, और बैठते समय अपनी हाथ की घड़ी, स्टेशन की घड़ी से मिला ली! अब हमारी रेलगाड़ी 2,40,000 किमी./सेकंड के भीषण वेग से दौड रही है! फिर कुछ दूरी तय करने के बाद एक स्टेशन आया! हमारी रेलगाड़ी रुक गयी! स्टेशन पर देखा की ग्यारह बज गए थे, और अपनी हाथ घड़ी देखा तो उसमें दस बजकर 36 मिनट ही हुए थे. यहाँ तक ठीक है?

    अब आते हैं हमारे प्रश्न पर! ये बताइए कि हमारी रेलगाड़ी, धरातल के सापेक्ष दौड़ रही थी, जिसके कारण उसमें धरातल के सापेक्ष ही समय अंतराल में संकुचन हुआ, और समय भी धीमी गति से आगे बढ़ा.
    और अगर हम मानें कि हमारी रेलगाड़ी स्थिर थी और धरातल ही दौड़ रहा था (क्योंकि समस्त गतियाँ सापेक्ष हैं), इस स्थिति में रेलगाड़ी के सापेक्ष धरातल के अंतराल में संकुचन तो होता है, पर धरातल के समय में संकुचन क्यूँ नहीं होता?

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      1. क्या आप इस पैराग्राफ की बात कर रहे हैं?
        “माना हम ट्रेन पर बैठे सुबह के दस बजे, और बैठते समय अपनी हाथ की घड़ी, स्टेशन की घड़ी से मिला ली! अब हमारी रेलगाड़ी 2,40,000 किमी./सेकंड के भीषण वेग से दौड रही है! फिर कुछ दूरी तय करने के बाद एक स्टेशन आया! हमारी रेलगाड़ी रुक गयी! स्टेशन पर देखा की ग्यारह बज गए थे, और अपनी हाथ घड़ी देखा तो उसमें दस बजकर 36 मिनट ही हुए थे. यहाँ तक ठीक है?”

        इसमें कौन सी गलती है (?) जी? सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार तो यह सही है!

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      2. जी हाँ, मैं इन्ही पंक्तियों की बात कर रहा था। मुझे लगता है आपने मेरा “REPLY COMMENT” नहीं पड़ा। जिसमें सापेक्षता और विशेष सापेक्षता के सिद्धांत के प्रतीत होने में फर्क को बतलाया गया है।

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    1. Anmol ji,
      mai mera tark deta hu.
      sabse pehli baat to ye ki aapka sawal ka astitv hi nahi hai.
      .esa namumkin hai.
      par fir bhi aapko samjhane ka pryas karta hu,
      .
      kya aapne chiti[ant] ko chalte dekha hai ,
      to aapne ye mahsoos kia hi honga ki chiti [ant] uski tulna se kafi tej chalti hai
      sai bol ra hu naaaaa…………..
      .
      yadi aapko ye baat sahi lag rahi hai , to mai aapko bata du aap galat hai
      .
      darasal ,asliat me chiti AAPKE SAPEKSHA tej chalti hai naa ki wo swayam ke sapeksh tej chalti hai (jesa mene pehle bola tha)
      ab mai ye kehna chahta hu ki ek nikaye hai jisme aap or chiti sammilit hai
      to
      jab aap chiti ko aapke sapeksha chalte dekhonge to wo aapko tej lagengi [arthat chiti ke time me sankuchan ho raha hai]
      ab
      yadi aap chahe ki aap chiti ke sapeksha chal sakte hai ? -ji nahi aaaaap nai chak sakte[arthat aap chiti ke sapeksha tej nahi chal sakte (yaad rakiye ki is nikaye me kewal aap or chiti hai aap earth kesapeksha mat sochna ok)]
      theek yahi ghatna railgadi or earth ke beech hoti hai
      .
      arthath mai simple words me kahe to-” time, dravyaman pe nirbhar krta hai na ki drvyaman, time pe”

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      1. इसका उत्तर बहुत आसान है ,अनमोल जी !
        मान लीजिये की आप ( ट्रैन का यात्री ) ट्रैन के डब्बे के फर्श पर रखे एक टोर्च से भीतरी छत पर प्रकाश की किरणे(rays of light) भेजता है ! छत का सीसा (दर्पण) किरण को वापस टोर्च पर परावर्तित करता है ! स्टेशन पर प्रेक्षक (प्लेटफॉर्म से रेलगाड़ी को देखने वाला,Observer ) को यह मार्ग बिलकुल अलग दिखता है ! टोर्च सेदर्पण तक पहुचने में लगे समय में स्वय दर्पण रेलगाड़ी की गति के कारण स्थानांतरित(shifted) हो जाता है ! और किरण को टार्च तक पहुँचने में लगे समय में स्वय टार्च उसी दुरी तक स्थानांतरित हो जायेगा ! हम यह देखते है ,की स्टेशन पर खड़े प्रेक्षक की अपेक्षा साफ़ है की ज्यादा दुरी तक चली है ! दूसरी तरफ हमे पता है ,की प्रकाशसिये वेग एक निरपेक्ष वेग है और यह गाड़ी में यात्रा कर रहे और स्टेशन के प्रेक्षक के लिए बराबर है ! इसलिए हम यह निष्कर्ष निकाल सकते है की स्टेशन पर प्रकाशसिये किरण को उसके प्रस्थान और वापसी में रेलगाड़ी की अपेक्षा अधिक समय लगा ! (जैसा की स्टेशन पर ११:00 बज गया था और आपकी घड़ी में १०:३६ मिनट हुए थे )

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  66. गुरूजी, सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार ग्रुत्वकर्षण बल एक अवबोधन मात्र है, वास्तव में इसका कोई अस्तित्व नहीं होता! फिर एकीकृत सिद्धांत में ग्रुत्वकर्षण को शामिल किया जाना क्यूँ आवश्यक है?

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    1. क्योंकि गुरुत्वाकर्षण परमाणु से छोटे स्तर पर कार्य कैसे करता है, उसका कणो के द्रव्यमान से क्या संबध है यह अभी तक समझा नही जा सका है।

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  67. लेख से अपने प्रश्न का उत्तर तो ज्यादा कुछ समझ में नहीं आया,
    पर सूत्रों के प्रयोग से ज्ञात हुआ,
    2,40,000 + 70,000 * 3/5
    = 2,40,000 + 42,000
    = 2,82,000 km/s

    अब आप स्पष्ट कर ही दीजिए…

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      1. अच्छा तो ये बताइये कि अगर हम प्रकाश की गति कि विपरीत दिशा मेँ चलेँ तो हमारे सापेक्ष प्रकाश का वेग तो C से अधिक नहीँ हो जायेगा?

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  68. अब सापेक्षता के सिद्धांत से सम्बंधित प्रश्न !
    वेगों के योग के नियम में क्या कमियां हैं? अगर हम 2,40,000 km/s के वेग से गतिमान रेलगाड़ी के अंदर 70,000 km/s के वेग से रेलगाड़ी की दिशा में ही आगे बढ़ें, तो क्या भूमि के धरातल के सापेक्ष हमारा वेग प्रकाश के वेग से अधिक नहीं हो जायेगा?

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  69. चुम्बक से चुम्बकीय तरंगोँ के निकलनेँ का क्या कारण है? मतलब ऐसी क्या खास बात होती है चुम्बक मेँ जिससे वह केवल लोहे को ही आकर्षित करता है? और क्योँ?

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    1. चुम्बकीय क्षेत्र लोहे के अतिरिक्त और भी कई तत्वों को आकर्षित करता है. इसमें लोहा, लिथियम गैस, कोबाल्ट, निकेल प्रमुख है. चुम्कत्व इलेक्ट्रान की स्पिन से उत्पन्न होता है, इलेक्ट्रान स्वयं चुम्बक होता है, फेरोमेग्नेटिक तत्व जैसे लोहे में इलेक्ट्रान एक रेखा में आ कर बड़ा चुम्बक बना लेते है, बाकी तत्वों में यह नहीं हो पाता है.

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    2. मूल रूप से प्रकृति में चुम्बकत्व नाम की कोई चीज नहीं होती.
      जब भी कोई आवेश गतिमान होता है तब उसके आस पास चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है.
      प्रत्येक पदार्थ परमाणुओं से बना होता है जिसमे स्थिर प्रोटोन और गतिमान इलेक्ट्रान होते हैं, इलेक्ट्रान की घूर्णन गति के कारण उस पदार्थ में चुम्बकीय गुण उत्प्पन हो जाता है.

      लोहे का साधारण टुकडा चुम्बक की तरह व्यवहार नहीं करता क्युकिन उसमे वामावर्त घूर्णन वाले और दक्षिणावर्त घूर्णन वाले इलेक्ट्रान याद्रछित रूप से विन्यासित होते हैं.
      इस वजह से उनके द्वारा उत्पान चुम्बकीय क्षेत्र एक दुसरे के प्रभाव को निरस्त कर देता है
      इसके विपरीत एक छड चुम्बक में वामावर्त घूर्णन वाले और दक्षिणावर्त घूर्णन वाले इलेक्ट्रॉन्स अलग अलग कर दिए होते हैं

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  70. हमारे अनुसार अन्तिम प्रश्न का उत्तर है कि फोटॉन अनन्त काल तक गतिमान रहेगा।
    न्यूटन का पहला नियम भी यही कहता है कि अगर किसी गतिमान पिँड पर बाह्य बलोँ का अभाव हो तो वह चिरकाल तक उसी वेग से गतिमान रहेगा।
    प्रश्न का मूलभाव ये था कि क्या गति करनेँ मेँ फोटॉन की ऊर्जा कम नहीँ होगी?

    पर हमारे प्रश्न मेँ फोटॉन था, जिसका द्रव्यमान शून्य होता है। न्यूटन को इस बात की जानकारी नहीँ थी।

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    1. अनमोल जी किसी भी तंत्र [systom] की उर्जा कम क्यों होती है ? जब वह उर्जा कीसी अन्य तंत्र अथवा बल के प्रभाव में आये .यदि ऐसा नहीं होता है तो किसी भी तंत्र की उर्जा हमेशा स्थिर रहती है. यदि पृथ्वी पर हमें घर्षण एवेम स्टेप उठाते समय गुरुत्वाकर्षण के विरुथ कार्य न करना पड़े तो हमरी उर्जा कभी ख़त्म नहीं होगी अनंतकाल तक चाहे कितना भी चले .

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  71. फोटॉन हर समय गति क्योँ करता रहता है?

    प्रत्येक फोटॉन एक निश्चित वेग से ही गति क्योँ करता है, जबकि एक फोटॉन दूसरे फोटॉन से कई गुना अधिक ऊर्जा का भी हो सकता है ?

    प्रकाश का वेग स्थिर क्योँ है?

    अगर किसी फोटॉन को खाली अन्तरिक्ष मेँ छोड़ दिया जाये और वह भविष्य मेँ किसी दूसरे पिँड से न टकराये न ही किसी बल या ऊर्जा का उसपर प्रभाव पड़े तो क्या वह फोटॉन अनन्तकाल तक गति करता रहेगा?

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    1. प्रश्न: फोटॉन हर समय गति क्योँ करता रहता है?
      उत्तर : सभी मूलभूत कण(क्वार्क, इलेक्ट्रान, प्रोटान) गतिमान रहते हैं। प्रकृति मे स्थिरता का अभाव है।
      प्रश्न: प्रत्येक फोटॉन एक निश्चित वेग से ही गति क्योँ करता है, जबकि एक फोटॉन दूसरे फोटॉन से कई गुना अधिक ऊर्जा का भी हो सकता है ?
      उत्तर : अनमोल, वापिस उसी बिंदु पर आ गये! E=mc2 इसमे c स्थिर है, E बढ़ेगी तो m भी बढ़ेगा। ज्यादा ऊर्जा वाले कण का संवेग ज्यादा होगा। वैसे फोटान की गति पर नियंत्रण संभव है, उसे धीमा किया जा सकता है।
      प्रश्न: प्रकाश का वेग स्थिर क्योँ है?
      उत्तर : इस पर “समय श्रृंखला” मे एक लेख आयेगा।
      प्रश्न : अगर किसी फोटॉन को खाली अन्तरिक्ष मेँ छोड़ दिया जाये और वह भविष्य मेँ किसी दूसरे पिँड से न टकराये न ही किसी बल या ऊर्जा का उसपर प्रभाव पड़े तो क्या वह फोटॉन अनन्तकाल तक गति करता रहेगा?
      उत्तर : इस प्रश्न का उत्तर एक प्रति-प्रश्न से न्युटन का गति का पहला नियम क्या कहता है ?

      अनमोल, ज्ञान प्राप्त करने का अर्थ प्रश्नो के उत्तर पा लेना नही होता, कुछ प्रश्नो के उत्तर चिंतन मनन से पाये जाते है, इसीसे हमारा बुद्धि तेज होती है। इस बार तुमने जो प्रश्न पूछे है, इनमे से अधिकांश का उत्तर तुम स्वंय पा सकते थे। जैसे आखिरी वाला प्रश्न !

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  72. हम कैसे जान लेते हैँ कि कोई तारा या मँदाकिनी यहाँ से अमुक प्रकाश वर्ष दूर है? दूसरे शब्दोँ मेँ, हम किसी आकाशीय पिँड की दूरी कैसे ज्ञात करते हैँ?

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    1. 1. ब्रह्माण्ड गुब्बारा नही है, उसे समझाने के लिये दिया जाने वाला एक उदाहरण मात्र है!
      2. ब्रह्माण्ड बाह्य परत को समझने के लिये, पृथ्वी का उदाहरण लेते है। इसकी की बाह्य परत किसे मानोगे ? ठोस धरती को या उसके वायुमंडल की सबसे बाह्य परत को ? या वह भाग जहां पर वायुमंडल खत्म होकर अंतरिक्ष प्रारंभ होता है ?
      हमारे सौर मंडल की सीमा को हीलीयोस्फीयर कहते है, यह एक बुलबुले के जैसा है, इस बुलबुले की बाहरी सीमा तक सौर वायु (सूर्य से उत्सर्जित आवेशित कण) पहुंचती है, इस सीमा के बाहर वह नही पहुंच पाती है। ध्यान रहे सौर वायु और प्रकाश अलग है। लेकिन सौर मंडल के इस बुलबुले की बाह्य परत जैसा कुछ नही है, बस एक सीमा है उसके बाहर सौर वायु का प्रभाव नही है।
      ऐसा ही ब्रह्माण्ड के साथ है, ब्रह्माण्ड की बाहरी परत जैसा कुछ नही है, बिग बैंग की कास्मिक(ब्रह्माण्डीय) किरणे जहां तक पहुंची है वहां तक ब्रह्मांड है, लेकिन कोई भौतिक परत नही है।

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      1. mr. ashish sir,
        aapko bhi kai sawalo ke jawab nahi pata hai jiske answer abhi tak science ke pas nahi hai balki ye kah sakte hai ki koi aisi theory nahi bani hai jisse hum sabke sawal samjh sake
        but ab hum samjh sakte hai ki 1:- space me zero gravity kyu hai ?
        2:- galaxy kaise bani ? or wo gol kyu hai?
        3:-suraj kaise bana isme itni energy kaha se ayi or suraj ka akar kyu badh raha hai
        4:- universe ka viostar kyu ho raha hai

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      2. विशाल,

        हम जो कुछ भी जानते है वह बिग बैंग होने के 10-43 सेकंड के पश्चात का ही जानते है। इसके पहले क्या था और बिग बैंग कैसे हुआ, अभी विज्ञान के पास उत्तर नही है। लेकिन शायद भविष्य मे इसका उत्तर होगा।
        लेकिन हमारे पास इस तथ्य के प्रमाण हैं कि एक बिंदु से ब्रह्माण्ड का प्रारंभ हुआ है। 1919 में ह्ब्बल ने लाल विचलन (Red Shift) के सिद्धांत के आधार पर पाया था कि ब्रह्मांड फैल रहा है, ब्रह्मांड की आकाशगंगाये तेजी से एक दूसरे से दूर जा रही है। इस सिद्धांत के अनुसार भूतकाल में आकाशगंगाये एक दूसरे के और पास रही होंगी और, ज्यादा भूतकाल मे जाने पर यह एक दूसरे के अत्यधिक पास रही होंगी। इन निरीक्षण से यह निष्कर्ष निकलता है कि ब्रम्हांड ने एक ऐसी स्थिती से जन्म लिया है जिसमे ब्रह्मांड का सारा पदार्थ और ऊर्जा अत्यंत गर्म तापमान और घनत्व पर एक ही स्थान पर था। इस स्थिती को गुरुत्विय ‘सिन्गुलरीटी ‘ (Gravitational Singularity) कहते है। महा-विस्फोट(Big Bang) यह शब्द उस समय की ओर संकेत करता है जब निरीक्षित ब्रह्मांड का विस्तार प्रारंभ हुआ था। यह समय गणना करने पर आज से 13.7 अरब वर्ष पूर्व(1.37 x 1010) पाया गया है। इस सिद्धांत की सहायता से जार्ज गैमो ने 1948 में ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग विकिरण(cosmic microwave background radiation-CMB)की भविष्यवाणी की थी ,जिसे 1960 में खोज लीया गया था। इस खोज ने महा-विस्फोट के सिद्धांत को एक ठोस आधार प्रदान किया।

        आप सही है कि कोई भी चीज अपने आप नही होती है, किसी भी घटना के लिये मूलतः भौतिकी/विज्ञान के नियम उत्तरदायी होते है, लेकिन हम जो भी नियम जानते है वह नियम बिग बैंग के 10-43 सेकंड पश्चात ही लागु होते है, उसके पहले हमारे नियम काम नही करते है। इस सीमा से पहले के नियमो की खोज जारी है।

        एक सरल उदाहरण दूंगा, वायुयान और पण्डुब्बी दोनो पर फ़्लुड मेकेनिक्स(द्रव यांत्रिकी) के नियम लागु होते है, दोनो की गति के समीकरण एक जैसे है। लेकिन जब वायुयान ध्वनि की रफ्तार से ज्यादा चलता है तब स्थिति भिन्न होती है और उस पर फ़्लुड मेकेनिक्स(द्रव यांत्रिकी) के नियम कार्य नही करते है, इस स्थिति के समीकरण भिन्न है और उनकी खोज बाद मे हुयी। बिग बैग मे भी हमारी जानकारी की सीमा है, इस सीमा को तोड़ने के प्रयास जारी है।

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      3. sir manushya ke dimag ki seema nishchit rup se hai lekin uske chitta (mind) ki koi seena nahi hai. Darsal hamara vigyan bahut pichda hua hai. Aur muje aisa lagta hai ki shayad kuch sawalo ke jawab ham hamara vigyan kabhi dundh hi nahi sakta. sir I have read Buddhas philosophy and it complled me to think again and again for the existence of universae

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    2. अनमोल जी , ब्रह्माण्ड की कोई सीमा नहीं होती ये अनंत है , क्योंकि सोचिये की पृथ्वी से एक्स दुरी पर किसी बिंदु को हम ब्रह्माण्ड की सीमा माने तो उससे १ मीटर आगे क्या होगा ? .यही अनंत का एहसास है . यहाँ सिर्फ दो संभावनाए हे की या तो एक ही ब्रह्माण्ड है जो की असीम है या की सिमित माने जाने वाले असंख्य ब्रह्माण्ड है . इसका जिक्र “a brief history of time ” में भी उपलब्ध है |as per me knows|

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    1. यह एक अनसुलझा प्रश्न है जिसका उत्तर भविष्य के पास है। यह कहना कि बिग बैंग के पहले कुछ नहीं था भी सही नहीं है, संभव है कि यह एक चक्र हो जिसमें एक बिग बैग के बाद बिग क्रंच (महासंकुचन) होता हो, उसके बाद यही चक्र!

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    2. big bang
      mera trk deta hu
      jis tarah tare bante hai theek usi tarah bramhand bhi koi ek bindu se bante honge
      isi tarah kai bramhand bane sabhi vyavasthit roop se jame honge
      par jab inme se ek brmhand bindu galti se ek dusre bramhand bindu se takraya to ek visphot hua jise big bang kaha gya
      jisse kai bramhand bane
      unme se ek bramhan hamara bhi hai or yeh lagatar badh raha hai
      .
      ashish ji aap mere tark k baare me kya kahonge

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      1. अक्षय जी, आपका तर्क सही हो सकता है! समानांतर ब्रह्मांड की अनेक सभंव अवधारणाएँ में से एक यह भी है! इसे Bubble Multiverse भी कहते है!

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      2. big bang se aap universe ke bare me nhi pata kar payenge big bang theory se aap kai or sawalo me ulajh jayenge
        aapko apke sawal ka jawab “the new black hole theory” se mil sakta hai jiske anusar universe big bang se nahi balki black hole se bana hai or hum black hole ke ander hai

        संपादित : मेल आई डी हटायी गयी।

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    1. प्रति पदार्थ गुरुतवाकर्षण से आकर्षित होता है लेकिन ऋणात्मक पदार्थ प्रतिकर्षित होगा। प्रति पदार्थ का अस्तित्व है लेकिन ऋणात्मक पदार्थ का अस्तित्व अभी तक प्रमाणित नहीं हुआ है।

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  73. क्या प्रति-ऊर्जा भी होती है? अगर हाँ, तो उसकी प्रायोगिक पुष्टी हो चुकी है या नहीँ?

    कहीँ ऐसा तो नहीँ कि पदार्थ और प्रति-पदार्थ मिलकर ऊर्जा और प्रति-ऊर्जा का निर्माण करते होँ, जिससे ये मिलकर शून्य हो सकेँ ?

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    1. प्रति ऊर्जा का अस्तित्व अभी तक प्रमाणित नहीं है लेकिन ऋणात्मक ऊर्जा की प्रायोगिक पुष्टि हो चुकी है। दोहरा रहा हुं कि केवल ऋण तथा धन संख्या का योग शून्य होता है, भौतिक वस्तुओं का नहीं ।

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  74. सामान मात्रा में पदार्थ और प्रति-पदार्थ मिलकर शून्य हो जाने चाहिए! [ (+u) + (-u) = 0 ]
    पर वो ऊर्जा का निर्माण करते हैं! क्यूँ?

    अगर वो ऊर्जा का निर्माण करते हैं, तब तो प्रश्न ये उठता है, कि आखिर ये ऊर्जा आई कहाँ से? बिग-बैंग के समय सामान मात्रा में कण और प्रति-कण बनने चाहिए थे! तभी सब मिलकर शून्य हो जाते! जिससे ये सिद्ध होता, कि बिग-बैंग के पहले कुछ था ही नहीं. अगर ये शून्य नहीं होते, तब तो प्रश्न वहीँ का वहीँ है, क्या बिग-बैंग की स्थिति उत्पन्न करने के लिए किसी ईश्वर की आवश्यकता है?

    अगर प्रति-ब्रह्माण्ड संभव है, तो ब्रह्माण्ड और प्रति-ब्रह्माण्ड अगर भविष्य में कभी मिलते हैं तो वे शून्य नहीं होंगे, और ऊर्जा उत्पन्न करेंगे. आखिर ये ऊर्जा आएगी कहाँ से?

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    1. पदार्थ और प्रति पदार्थ , राशि (संख्या) नहीं है, उसका भौतिक अस्तित्व है। दोनो ही ऊर्जा से निर्मित है केवल विद्युत आवेश विपरीत है। धन और ऋण विद्युत मिलकर शून्य नहीं होते, उनसे ऊर्जा बनती है, हर विद्युत उपकरण इसी सिद्धांत पर कार्य करता है।
      बिग बैंग के समय समान मात्रा में पदार्थ और प्रति पदार्थ नहीं बने थे, पदार्थ कणो की मात्रा अधिक थी, इसे सम्मितिय उल्लंघन कहते है। अब्दुस सलाम को इसी खोज पर नोबेल मिला था।
      ऊर्जा कहाँ से आई,वर्तमान में अज्ञात है लेकिन उसके लिये किसी ईश्वर की आवश्यकता नहीं है। प्रश्न यह भी हो सकता है कि ईश्वर कहाँ से आया ? जिस तरह ईश्वर का निर्माता नहीं है, ऊर्जा का श्रोत अज्ञात है।

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    2. aap sahi kah rhe hai ki big bang hua kaise aisi sthiti kaise hui or big bang se universe bna kaise , galaxy kaise bni is theory se sun kaise bna samjh me nhi ata
      but ab hum samjh sakte hai ki universe kaise bna or iske anuman itne satik hai ki hum asani se samjh jaenge ki space ka vajud kaha se aya
      ise hum ” Black hole ” se samjh sakte h

      संपादित, मेल आई डी हटायी गयी।

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  75. गुरूदेव, एक साधारण सा प्रश्न!

    प्रश्न : पृथ्वी सूर्य का चक्कर क्यूँ लगाती है?
    उत्तर : गुरुत्वाकर्षण के कारण!

    परन्तु,
    जैसे पृथ्वी पर कोई वस्तु अगर हम छोड़ते हैं, तो ग्रुत्वकर्षण के कारण वो पृथ्वी की ओर आकर्षित हो जाती है, वह पृथ्वी का चक्कर तो नहीं लगाने लगती! फिर आकाशीय पिंड क्यूँ चक्कर लगाने लगते हैं? वो एक-दुसरे में क्यूँ नहीं मिल जाते? पृथ्वी क्यूँ सूर्य में विलीन नहीं हो जाती?

    अगर उत्तर है, कि ग्रुत्वकर्षण का प्रभाव यहाँ की अपेक्षा बहुत कम हो जाता है, इसलिए वो चक्कर लगाने लगती है, तो हम उत्तर से संतुष्ट नहीं हैं! अब आप इसका उचित कारण बताइए!

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    1. पृथ्वी से कृत्रिम उपग्रह छोड़े जाते है, वह पृथ्वी का चक्कर लगाते है। यह भी गुरुत्वाकर्षण से होता है। जब हम पृथ्वी से कोई भी पिंड छोड़ते है, वह पृथ्वी की ओर वापिस आयेगा या परिक्रमा करेगा, या पृथ्वी को छोड़कर अंतरिक्ष मे जायेगा, वह उसकी गति पर निर्भर करता है। इस विशेष गति को पलायन वेग(Escape Velocity) कहते है, पृथ्वी के लिये यह 11.2 km/s है। इससे कम होने पर पिंड वापिस आयेगा, ज्यादा होने पर अंतरिक्ष मे चला जायेगा, समान होने पर परिक्रमा करेगा। यह सरल शब्दो मे है, वास्तविक प्रक्रिया थोड़ी और जटिल है। उसमे पिंड के गति की दिशा और कोण की भी गणना होती है।

      पृथ्वी और अन्य ग्रहों की कक्षा समय के साथ कम हो रही है, एक समय ऐसा भी आयेगा जब पृथ्वी सूर्य मे समा जायेगी। लेकिन यह और बात है कि सूर्य उसके पहले ही लाल दानव बन कर इतना बड़ा हो जायेगा कि पृथ्वी को निगल लेगा।
      ज्यादा जानकारी के लिये वीकी पर देखो : http://en.wikipedia.org/wiki/Escape_velocity

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    2. bhai dekho, surya ka gurutva karshan aur pruthvi ka grutvakarshan jis jagah par pruthvi ghumti hai waha balanced ho jata hai…is liye pruthvi vaha se ghumna shuru kar deti hai….aur jab pruthvi pe koi vastu chodi jati hai pruthvi ka grutvakarshan us vastu ke grutvakarshan se bahut jyada hota hai is liye balance hone se pehle hi wo gir jati hai!!!!!!!!!!

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    3. जब कोई भी पिंड वृतीय गति करता है तो उस पिंड पर बहार की दिशा में एक बल लगता है ‘अभिकेन्द्री बल’.

      सूर्य अपने गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा पृथ्वी को अपनी ओर खींचता है लेकिन पृत्वी की वृत्तिय गति के कारण उत्तपन अभिकेन्द्रीय बल बल गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव को संतुलित कर देता है.

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      1. While calculating the ‘अभिकेन्द्री बल’ and गुरुत्वाकर्षण बल you will find that the composition of these forces can be in equilibrium, BUT this composite force will form ‘unstable equilibrium’, NOT ‘stable equilibrium’ And hence the orbit of the earth cannot be in equilibrium. It has to move away or has to move in the sun. How the earth balances these forces in equilibrium.

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    4. eska utar hum cumbk se de sakte h kyu ki ham lohe ko uske paas lekar jate h to bo us se cipak jata h agar cumbak or lohe me parsper doori h to bhe nhi cipke ga esha esi liye hota h kyu ki gurutbakarsan kam ho jata h or rhi waat pirthvi per koi wastu nhi ghumti kyu ki pirthvi per cumbak to h arthta grutbakarsn to h per hum ya hmri wastu loha nhi…

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      1. Your example relate to magnetic force not gravitational force. The magnetic force can be reduced by increasing the distance between two. But the force can not be zero theoretically. Magnet does not come nearer to the ‘loha’, because the force of friction may be more, where they are placed. If they are suspended in open space, they will come closer even if there is any negligible force.

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