मिशन धूमकेतु


लेखक : देवेंद्र मेवाड़ी

धूमकेतु  पर धमाका

उस दिन दुनिया भर के समाचारपत्रों की सुर्खियों में यह खबर थीः

केप केनवरल, जनवरी 13: नासा के धूमकेतु  टैम्पल-1 से मिलने के लिए हालीवुड नामधारी अंतरिक्ष यान डीप इम्पैक्टका बुधवार को ठीक 1: 47:08 बजे अपराह्न प्रक्षेपण किया गया। डीप इम्पैक्टअपनी 6 माह की 43.10 करोड़ किलोमीटर लंबी यात्रा पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है।

मानव इतिहास में यह पहला अवसर था जब कोई मानव निर्मित यान करोड़ों किलोमीटर दूर अंतरिक्ष की गहराइयों में किसी धूमकेतु से टकराने जा रहा था। मानव सभ्यता को इस मिशन से पहली बार किसी धूमकेतु  के भीतर का दृश्य देखने और उसकी रचना का रहस्य जानने का सुअवसर मिलने की आशा थी।

डीप इम्पैक्टके सफल प्रक्षेपण के अवसर पर आयोजित प्रेस सम्मेलन में पत्रकारों में इस मिशन से जुड़े वैज्ञानिक दल के सदस्यों से कई तरह के सवाल पूछे।

पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए मिशन के प्रमुख विज्ञानी माइकल ए हेर्न ने उत्साह के साथ कहा- डीप इम्पैक्ट आगे बढ़ रहा है। हम 4 जुलाई को वहां होंगे और टैम्पल-1 से टक्कर लेंगे।

क्या आप बता सकते हैं कि इस मिशन का असली मकसद क्या है?” एक पत्रकार ने पूछा।

मकसद है, यह जानना कि धूमकेतु किन चीजों से बने हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिकों का यह अनुमान है कि वे शायद जमी हुई बर्फ, धूल और गैसों से बने हैं। वे कहते हैं- धूमकेतु बर्फ की मैली गेंदें हैं। मिशन से पता लगेगा कि क्या यह सच है।माइकल ने जवाब दिया।

एक महिला पत्रकार ने पूछा- अगर यही पता लगा कि वह धूल, बर्फ और गैसों का गोला है तो आप जानते हैं यह जानने की कीमती कितनी होगी- 33 करोड़ डालर!

हां, मैं जानता हूं लेकिन यह भी जानता हूं कि धूमकेतु की धूल सिर्फ धूल नहीं है। उसकी जमी हुई गैसें, बर्फ और बाकी मलबा हमारे सौरमंडल की वह आदि निर्माण सामग्री है जिससे सभी ग्रह- नक्षत्र बने। धूमकेतु तो कालपात्र हैं। उनमें वह सब सामग्री वैसी की वैसी ही है जैसी 4.5 अरब वर्ष पहले सौरमंडल के निर्माण के समय थी। तो, इससे हमें सौरमंडल और अपनी पृथ्वी के जन्म के बारे में भी पता लगेगा।ए हेर्न ने कहा।

    वाशिगटंन पोस्ट के रिपोर्टर ने पूछा- डीप इम्पैक्टक्यों? क्या यह हालीवुड फिल्म की तरह है?”

जवाब नासा के प्रक्षेपण-निदेशक ओमर बेज ने दिया-यह वैज्ञानिक मिशन है- फिल्मी नहीं। यहां जो कुछ होगा असलियत में होगा। मिशन का नाम भी हमने स्वयं रखा डीप इम्पैक्टक्योंकि धूमकेतु से हमारे यान की गहरी टक्कर होगी। संयोग है कि यह हाॅलीवुड फिल्म का भी नाम है।

एक और पत्रकार का प्रश्न था- क्या अंतरिक्ष यान जाकर सीधे धूमकेतु से टकरा जाएगा?

ओह नहीं, तब टक्कर की तस्वीरें कौन लेगा? हमें कैसे पता लगेगा? ‘डीप इम्पैक्टयान, के साथ 370 किलोग्राम भारी एक और छोटा यान जुड़ा है- इम्पैक्टर। धूमकेतु के साथ टकराने से 24 घंटे पहले यह डीप इम्पैक्टरयान, मेरा मतलब है मुख्य या फ्लाइ बाइयान से अलग हो जाएगा और धूमकेतु की ओर चल पड़ेगा। फ्लाइ बाइ यान किनारा करके करीब 500 किलोमीटर की दूरी से टक्कर का नजारा देखेगा और अपनी हाइ रिजोल्यूशन व मिड रिजोल्यूशन दूरबीनों से तस्वीरें लेकर पृथ्वी पर भेजता रहेगा।ओमर बोले।

    बी बी सी संवाददाता ने पूछा- इम्पैक्टर सीधे धूमकेतु में जाकर धंस जाएगा?”

माइकल हंसे- धंस कर भाप बन जाएगा, लेकिन यों ही नहीं। शहीद होने से पहले वह भी तस्वीरें भेजेगा। टकराने तक की तस्वीरें। उसमें भी कैमरा लगा हुआ है। इसलिए धूमकेतु की सबसे नजदीकी तस्वीरें तो उसी से मिलेंगीं। इम्पैक्टर के टकराने से काफी बड़ा गड्ढा बन जाएगा। फुटबाल स्टेडियम के बराबर। उसी में धूमकेतु के भीतर का नजारा दिखाई देगा।

    एक रूसी पत्रकार ने सवाल किया-यान टकराने की क्या जरूरत थी। बम से भी तो विस्फोट किया जा सकता था?”

    अभियान के सह-अन्वेषणकर्ता और ग्रहीय भूगर्भ विज्ञानी जे. मेलोश ने हंसते हुए जवाब दिया- हम सापेक्षता सिद्धांत का लाभ उठा रहे हैं। धूमकेतु भी चल रहा है और यान भी। इम्पैक्टर यान 37000 किलोमीटर प्रति घंटे की चाल से धूमकेतु से जा टकराएगा। इससे साढ़े चार टन टी एन टी के बराबर विस्फोट होगा। तो, बम की क्या जरूरत है? हां, इस धमाके की चमक अंधेरे आकाश में कोरी आंख को भी दिखाई देगी।

    अभियान के प्रबंधक रिक ग्रेमियर ने उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- पृथ्वी पर हम यह सब देखेंगे अपनी दूरबीनों से। अंतरिक्ष में स्थित हब्बल, चंद्रा, स्पिजर दूरबीनें इस दृश्य की तस्वीरें दिखाएंगीं। शौकिया खगोल विज्ञानी अपनी दूरबीनों का मुंह बृहस्पति ग्रह और स्पाइका तारे की ओर कर देंगे। उसी के आसपास धूमकेतु के धमाके की चमक दिखाई देगी।

हिंदुस्तान टाइम्सके वांशिगटन स्थित संवाददाता अमिताभ घोष भी प्रेस सम्मेलन में मौजूद थे। रिक ग्रेमियर की बात सुन कर वे समझ गए कि स्पाइकाचित्रा नक्षत्र को कहा जा रहा है। उन्होंने पूछा- क्या आप बता सकते हैं कि टैम्पल-1 धूमकेतु का आकार कैसा और कितना बड़ा है?”

    जे. मेलोश बोले- इस धूमकेतु के आकार के बारे में अधिक पता नहीं है। अनुमान है कि इसकी लंबाई करीब 14 किलोमीटर औेर चौड़ाई 5 किलोमीटर है। इसकी खोज 1867 में हुई थी और यह 5 वर्ष 5 माह की अवधि में सूर्य की परिक्रमा करता है। जब इम्पैक्टरइससे टकराएगा तो पृथ्वी से यह धूमकेतु करीब 12 करोड़ 90 लाख किलोमीटर दूर होगा।

    वह तो ठीक है, लेकिन जब धूमकेतु का आकार पता नहीं है तो मिस फायरभी तो हो सकता है?” घोष ने पूछा।

नहीं, ऐसा नहीं होगा। आइ टी एस मेरा मतलब है इम्पैक्टर टार्गेटिंग सेंसर ऐसा नहीं होने देगा।मेलोश ने कहा।

काफी सवाल- जवाबों के बाद कैनेडी स्पेस सेंटर के निदेशक जेम्स कैनेडी ने पत्रकारों से कहा- आप सब हमारे साथ 4 जुलाई 2005 की प्रतीक्षा कीजिए जब इम्पैक्टर धूमकेतु टैम्पल- 1 से टकराएगा। धूमकेतु के बारे में तमाम सवालों का जवाब तो तभी मिल सकेगा। अभी तो यह भी नहीं पता है कि टैम्पल-1 की परत सख्त है या मुलायम। इम्पैक्टर जाकर सख्त चट्टान से टकराने वाला है या कार्न फ्लैक्स के ढेर से, हमें कुछ नहीं पता। एक बात और। अपनी लाखों किलोमीटर लंबी पूंछ लहराते हुए धूमकेतु आते हैं और लौट जाते हैं। धीरे-धीरे वे बुसबुसा कर गायब हो जाते हैं। आप लोग भी सोचिए- उनकी गैस, धूल और बर्फ कहां जाती है। सब कुछ उड़ जाता है क्या? या कहीं ऐसा तो नहीं कि बाहरी परत इतनी सख्त हो जाती है कि धूल, बर्फ और गैसें उसके भीतर कैद हो जाती हैं? अगर ऐसा हुआ तो इम्पैक्टर के टकराने से धूल, गैस और बर्फ का जखीरा फूट पड़ेगा। क्यों?”

ले मोंडके संवाददाता ने पूछा- मोंशेयर, इम्पैक्टर यान के टकराने से साढ़े चार टन टी एन टी के बराबर विस्फोट होगा, ठीक है? तो इस जबर्दस्त विस्फोट से धूमकेतु के टुकड़े-टुकड़े भी तो हो सकते हैं? क्यों?”

आप ठीक कह रहे हैं।केनेडी बोले।

तब यह भी तो हो सकता है कि धूमकेतु का कोई टुकड़ा फ्लाइ बाइयान डीप इम्पैक्टर से टकरा जाए? वह उसे तहस-नहस कर सकता है? उसका कोई विशाल टुकड़ा पृथ्वी की ओर भी आ सकता है? क्यों?” संवाददाता ने पूछा।

लगता है आप जरूर हालीवुड की फिल्म डीप इम्पैक्टदेख कर आए हैं। वह हालीवुड की कल्पना थी। उसमें धूमकेतु का एक टुकड़ा अटलांटिक महासागर में आ गिरा और उससे उठी सुनामी लहरों ने तबाही मचा दी। क्यों? लेकिन, मान लीजिए इम्पैक्टरकार्नफ्लेक्स के ढेर से टकराता है तो? यों भी, किसी भी खतरे से निबटने के लिए हर तरह का एहतियात बरता गया है। इसलिए मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, ऐसा कुछ भी नहीं होगा। हमें भी विश्वास है कि इम्पैक्टरके टकराने से एक विशाल गड्ढा बन जाएगा। बस। हां, धूल बिखरेगी तो उससे बचाने के लिए इम्पैक्टरऔर फ्लाइ बाइदोनों को तांबे की कई परतों के कवच से ढका गया है।”  

पत्रकार ने पीछा नहीं छोड़ा- लेकिन अगर टुकड़े हो गए और कोई टुकड़ा पृथ्वी की ओर आ ही गया तो?”

अब एहेर्न बोले- ऐसा नहीं होगा। इस मिशन की सफलता के लिए हमने हर तरह की गणनाएं की हैं, अनुमान लगाए हैं और हर स्थिति से निबटने की तैयारी की है। इसलिए जैसा मि. कैनेडी ने कहा, ऐसे किसी खतरे की संभावना नहीं है।

पत्रकार पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुआ। तब तक दूसरे पत्रकारों ने अपने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।

लंदन टाइम्स के प्रतिनिधि ने पूछा- क्या ऐसा भी हो सकता है कि पूरी कोशिश के बावजूद यान रास्ता भटक जाए और इम्पैक्टर धूमकेतु से टकराए ही नहीं?”

नहीं, क्योंकि यान में धूमकेतु की टोह लेने के लिए जो शक्तिशाली सेंसर लगा हुआ है। वह यान को लक्ष्य से भटकने नहीं देगा। फ्लाइ बाइयान ठीक समय पर इम्पैक्टर को छोड़ेगा और इम्पैक्टर अचूक गोली की तरह धूमकेतु को वेधने के लिए चल पड़ेगा। फ्लाइ बाइ किनारा करके हाइ रिजोल्यूशन तथा मीडियम रिजोल्यूशन दूरबीनों के साथ इम्पैक्टर की टक्कर को रिकार्ड करने के लिए तैयार हो जाएगा।

रिक ग्रैमियर ने जवाब दिया और फिर जैसे कुछ याद आते ही बोल पड़े- भटकने की कोई गुंजाइश नहीं है फिर भी एहतियातन हमने मिशन के प्रारंभ में ही डीप इम्पैक्टको मर्जी से राह से थोड़ा भटका कर और फिर सही राह पर लाकर भी देख लिया है। वह किसी समझदार बच्चे की तरह कहना मान रहा है।फिर हंसते हुए बोले-यह इतना त्रुटिहीन है कि यान के भटकने की बात सोची भी नहीं जा सकती।

मानव इतिहास की इस अनोखी घटना के संबंध में आयोजित वह प्रेस कांफ्रेंस कई तरह के सवालों, जवाबों, जिरह और कयासों के साथ खत्म हुई।

07.3.05- डीप इम्पैक्ट स्टेटस रिपोर्ट

डीप इम्पैक्ट अंतरिक्ष यान अपनी यात्रा के निर्धारित चरण पूरा करने के बाद धूमकेतु टैम्पल-1 के पास पहुंच गया है। यान ने धूमकेतु के कई नायाब चित्र भेजे हैं। उसकी दोनों एच आर आइ और एम आर आइ दूरबीनें, इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर, कैमरा और टोही सेंसर कुशलता से काम कर रहे हैं। सौर पैनलों से समुचित ऊर्जा प्राप्त हो रही है। यान टैम्पल-1 धूमकेतु की ओर लगातार बढ़ रहा है।

 

07.04.05

……24 घंटे….डीप इम्पैक्ट फ्लाइ बाइ यान से इम्पैक्टर यान सफलतापूर्वक अलग हो गया है। और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है….मदरशिप डीप इम्पैक्ट ने अपनी राह तय कर ली है। वह धूमकेतु से सुरक्षित दूरी बना कर आगे बढ़ रहा है। लगातार…

….शेष 2 घंटे…..इम्पैक्टर यान ने अपनी गति पकड़ ली है….वह सीधा धूमकेतु की ओर बढ़ रहा है…..

…..शेष 90 मिनट….इम्पैक्टर से फ्लाइ बाइ यान का रेडियो सम्पर्क बना हुआ है। बीसों रेडियो लिंक काम कर रहे हैं।

….शेष 7.5 मिनट….इम्पैक्टर पूरी ताकत से धूमकेतु टैम्पल-1 से टकराने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहा है….गति 10 किलोमीटर प्रति सेकेंड….

…..काउंट डाउन….दस, नौ, आठ, सात, छः, पांच, चार, तीन, दो, एक…शून्य। धमाका।

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पृथ्वी पर नासा के नियंत्रण कक्ष में उपकरणों पर आखें गड़ाए वैज्ञानिक हर्षातिरेक में चिल्लाए- वी हैव डन इट!

एक तेज चमक, धूमकेतु से छिटके हुए मलबे की बौछार में कुछ देर तक सब कुछ धुंधला पड़ गया लेकिन थोड़ी देर बाद वह छंटा और फ्लाइ बाइ यान ने धूमकेतु के भीतर की तस्वीरें भेजना शुरू कर दिया वैज्ञानिक उन तस्वीरों के विश्लेषण की तैयारी में जुट गए। इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर ने पृथ्वी पर धूल और बारीक कणों के वर्णक्रम भेजे जिनसे वैज्ञानिक यह पता लगा सकेंगे कि धूमकेतु किन तत्वों से बना हुआ है।

दुनिया भर में लोगों ने अपने टेलीविजन सेटों पर धूमकेतु के धमाके की चमक देखी।

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डीप इम्पैक्ट ने शुरू से धमाके के 60 घंटे बाद तक जो तस्वीरें भेजी थीं, वैज्ञानिकों ने महीनों उनका विश्लेषण और अध्ययन किया। उनसे यह अनुमान लगा कि धूमकेतु वास्तव में जमी हुई गैसों, बर्फ और धूल तथा चट्टानों के टुकड़ों से बना था। उसमें कम से कम 40 तत्वों का पता लगा जिनमें कार्बन के यौगिक और पानी भी था। इम्पैक्टर धूमकेतु के भीतर किसी कड़ी चट्टान से भी टकराया था। वैज्ञानिकों का यह अनुमान था कि जब सौरमंडल बना होगा तो जिन तत्वों से ग्रह बने उन्हीं के बचे-खुचे टुकड़े सौरमंडल के चारों ओर जमा हो गए और वहां की भयानक ठंड में जम कर बर्फ की गेंदों में बदल गए। छोटी-छोटी गेंदों से लेकर कई किलोमीटर मोटी-लंबी चट्टानों तक में।

मिशन डीप इम्पैक्ट की सबसे बड़ी सफलता रही- लक्ष्य भेद, जो खगोल वैज्ञानिकों की उपलब्धि बन गई। साथ ही स्पेक्ट्रोमीटर द्वारा भेजे गए वर्णक्रम तथा अन्य तस्वीरों से जिन तत्वों का पता लगा उनसे साबित हुआ कि ब्रह्मांड की ईंटें एक समान हैं। शायद सभी ग्रह-नक्षत्र तत्वों की इन्हीं ईंटों से बने हैं। यह बात पूरी तरह तो तभी सिद्ध हो सकती है जब धूमकेतु के नमूने एकत्र करके प्रयोगशाला में उनकी जांच की जाए जिस तरह कभी चांद की मिट्टी लाई गई थी।

जब डीप इम्पैक्ट मिशन के परिणाम न्यूयार्क में धूमकेतुओं पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए तो उसमें सर्वसम्मति से यह विचार बना कि धूमकेतुओं के गहन अध्ययन के लिए उनके नमूने लिए जाने चाहिए ताकि विश्व के अन्य इच्छुक देशों के वैज्ञानिक भी इस मिशन में शामिल हो सकें।

मिशन के संचालन की जिम्मेदारी नासा को सौंपी गई ताकि डीप इम्पैक्ट के अनुभवों का इस मिशन में पूरा लाभ उठाया जाय। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने मिशन में विशेष सहयोग का आश्वासन दिया। एजेंसी ने इससे पूर्व 1986 में जोत्तो मिशन के तहत हेली धूमकेतु के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। रूस ने भी वेगा-1 से हेली का अध्ययन किया था। इसलिए उसने भी इस मिशन में विशेष रूचि दिखाई। सुखद बात यह थी कि इस प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय मिशन में यूरोपीय सदस्य देशों के अलावा भारत, चीन और जापान ने भी सक्रिय सहयोग का आश्वासन दिया। भारत के खगोलविज्ञानी डा. विष्णु खानवलकर के इस प्रस्ताव को सभी देशों के वैज्ञानिकों ने एकमत से स्वीकार किया कि आगामी मिशन में हमें पृथ्वी वासियों की ओर से धूमकेतु में एक कालपात्र भी रखना चाहिए। जब धूमकेतु अंतरिक्ष में अपनी लंबी यात्रा पर लौटे तो अपने साथ कालपात्र भी ले जाए। हो सकता है धूमकेतु के बुसबुसा जाने पर कहीं किसी अनजान लोक के किसी अज्ञात ग्रह में वह कालपात्र गिर पड़े। अगर वहां कोई सभ्यता हुई तो हो सकता है कालपात्र उन्हें मिल जाए और पता लगे कि विशाल ब्रह्मांड में वे अकेले नहीं हैं। चीनी और रूसी वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया कि हमें अपनी सभ्यता की सूचना के साथ ही सभ्यता के बीज भी वहां भेजने चाहिए। कालपात्र के साथ ही एक बीजपात्र भी भेजना चाहिए जिसमें न्यूनतापमान पर बीज और कंद भेजे जा सकते हैं। धूमकेतु में वे स्वयं हिमीकरण की अवस्था में रहेंगे और कभी कहीं सही उचित वातावरण मिलने पर अंकुरित हो जाएंगे।

खगोल वैज्ञानिकों ने कहा कि डा. फ्रेड हायल व चंद्र विक्रम सिंघे ने तो यह सिद्धांत रखा ही था कि पृथ्वी पर जीवन शायद धूमकेतुओं के साथ आया होगा। कुछ वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया कि जब हिमीकरण की अवस्था में ही सभ्यता के बीज भेजने हैं तो द्रव नाइट्रोजन के फ्लास्क में जीवों के निषेचित डिंब भी भेजे जा सकते हैं। वे भी सुरक्षित ही रहेंगे। कभी किसी अज्ञात सभ्यता को मिल गए तो पृथ्वी का जीवन वे अपनी दुनिया में भी जगा सकेंगे।

सम्मेलन में कुछ वैज्ञानिकों ने आरोप लगाया कि ठोस वैज्ञानिक प्रयोगों की योजना बनाने के बजाय कई वैज्ञानिक भावुक हो रहे हैं और स्वप्न देख रहे हैं। तब सम्मेलन के अध्यक्ष ने स्वयं स्थिति को संभालते हुए कहा मानव ने सदा स्वप्न देखे हैं और उन्हें साकार किया है। अगर इस सम्मेलन में भी कुछ वैज्ञानिक स्वप्न देख रहे हैं तो शायद वे अपने पुरखों की परंपरा का ही पालन कर रहे हैं। मैं समझता हूं, हमें अपने आगामी धूमकेतु मिशन में सभ्यता के बीज भी भेजने चाहिए और कालपात्र भी। मिशन के कुल व्यय को देखते हुए यह व्यय नगण्य होगा।सम्मेलन के अंतिम और निर्णायक सत्र में इन प्रस्तावों को स्वीकृति दे दी गई।   

सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण निर्णय यह लिया गया कि कालपात्र और सभ्यता के बीज रखने के लिए धूमकेतु पर रोबोट लेंडर उतारा जाएगा जो इन्हें सावधानी से धूमकेतु पर उतार देगा। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के प्रतिनिधियों ने कहा कि एजेंसी 2014 में रोजेटा यान से चुरूमोव-गेरासिमेंको धूमकेतु पर रोबोट लेंडर उतारने की योजना पर काम कर रही है। अनेक वैज्ञानिकों ने डीप इम्पैक्ट अभियान की सफलता को देखते हुए वर्ष 2014 तक की अवधि को बहुत लंबा समय बताया। इसलिए सर्वसम्मति से निश्चय किया गया कि यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी बेशक अपनी प्रस्तावित योजना पर काम जारी रखे लेकिन नए अंतरराष्ट्रीय मिशन को पहले पूरा करने में पूरी मदद करे। एजेंसी ने रोबोट लेंडर तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपने का अनुरोध किया जिसे स्वीकार कर लिया गया।

प्रस्तावित मिशन को मिशन धूमकेतु-2’ का नाम दिया गया और इसे आगामी पांच-छः वर्षों के भीतर कार्यरूप देने का निश्चय किया गया। सम्मेलन में आगामी वर्षों में आने वाले धूमकेतुओं में से किसी धूमकेतु का चयन करके उस पर कालपात्र और सभ्यता के बीज उतारने का निश्चय कर लिया गया।

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सभ्यता के बीज

वर्ष 2008। अंतराष्ट्रीय सहयोग से स्थापित अंतरिक्ष स्टेशन की ब्रह्मांड को टटोलती विशाल दूरबीन ने नवंबर में पृथ्वी की ओर आ रहे एक अज्ञात धूमकेतु की झलक पा ली। धीरे-धीरे धूमकेतु का आकार स्पष्ट होता चला गया और वह ज्यों-ज्यों सूर्य की ओर बढ़ता गया, उसकी पूंछ बढ़ती चली गई। जनवरी अंत में धूमकेतु को कोरी आंखों से देखना संभव हो गया। अपनी लाखों मील लंबी पूंछ लहराता धूमकेतु पृथ्वी के आकाश में अनोखी छटा बिखेरने लगा। कोरी आंखों से वह नील गगन में रूई के फाहे-सा तैरता दिखाई देता। धूमकेतु के शुभ-अशुभ होने या अकाल और युद्ध जैसी विपदाएं लाने की बातें पिछली सदी के आठवे दशक में धूमकेतु हेली के साथ ही हवा हो गई थीं फिर भी कुछ पुराने विचारों वाले लोगों का मन भय और आशंका से भरा हुआ था। तब विश्व भर में हेली दर्शन का आयोजन किया गया था जिससे लोगों को इस बात का विश्वास हो सके कि धूमकेतु अंतरिक्ष के सुंदर सैलानी हैं। बड़ी संख्या में लोग इस बात को समझ गए कि धूमकेतु के सुंदर, नयनाभिराम दृश्य को देखना जीवन की एक अनोखी उपलब्धि है। उसके बाद पिछली सदी के अंत में, वर्ष 1997 में जब 4000 वर्ष बाद धूमकेतु हेल-बाप आकाश में चमका तो लाखों लोगों ने महीनों तक उसका नजारा देखा था। उसके बाद भी कुछ धूमकेतु आए थे लेकिन उन्हें कोरी आंख से नहीं देखा जा सका।

    वर्षों बाद अब यह धूमकेतु सौरमंडल की सैर पर आ रहा था। वैज्ञानिक प्रथा के अनुसार वैज्ञानिकों ने उसका नाम ‘2011डीरख दिया। वर्ष 2011 में दिखाई देने वाला यह चैथा धूमकेतु था। इसी प्रथा के अनुसार इसे खोजने वाले वैज्ञानिकों के नाम पर इसका नामकरण बाद में करने का निश्चय किया गया।

    मिशन धूमकेतु-2 की युद्ध स्तर पर तैयारियां चल रही थी। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की ओर से निर्मित रोबोट लेंडर केप केनवरल के वायु सेना केन्द्र में काफी पहले पहुंच चुका था। उस पर परीक्षण पूरे हो चुके थे। सभ्यता के बीजों में सभी प्रमुख फसलों, फलों, साग-सब्जियों, फूलों और पेड़-पौधों के बीज, कंद-मूल आदि रखे गए। उन्हें जीवाणुओं और विषाणुओं से पूरी तरह मुक्त कर लिया गया ताकि अगर किसी अन्य लोक में वे बीज पहुंचें तो वहां पृथ्वी के अदृश्य जीवाणुओं या विषाणुओं का हमला न हो सके। धातु के एक विशेष फ्लास्क के भीतर द्रव नाइट्रोजन में मानव तथा कुछ पशुओं के निषेचित डिंब व प्रारंभिक अवस्था के भ्रूण भी रख दिए गए।

    कालपात्र में मानव सभ्यता के इतिहास का संक्षिप्त विवरण रखने के साथ ही उसकी सभ्यता के प्रमुख चिह्नों के फोटो भी रखे गए। मजबूत धातु की कम्प्यूटर डिस्कों में पक्षियों के कलरव, बारिश की रिमझिम, हवा की सांय-सांय और सागर के गर्जन की आवाजें, संगीत की धुनें और पृथ्वी के तमाम दृश्य भरे गए। इन सबके साथ टंगस्टन धातु के फलक के एक ओर सौरमंडल में पृथ्वी, अन्य ग्रहों और हमारे सूर्य की स्थिति उकेरी गई। फलक के दूसरी ओर यह संदेश उकेरा गयाः

    अनजाने लोक के साथियों, हम आकाशगंगा के एक सौरमंडल में स्थित छोटे-से ग्रह पृथ्वी के निवासी सौहार्द और शांति की कामना करते हैं। हमारे सौरमंडल में एक सूर्य और नौ ग्रह हैं। हम जिस ग्रह पृथ्वीमें रहते हैं उसके चारों ओर वायुमंडल है। ग्रह का दो-तिहाई भाग पानी से भरा है। पृथ्वी का एक चांद है जो इसका चक्कर लगाता है। हमारे सौरमंडल के सभी ग्रह अपनी धुरी पर घूमते हैं और सूर्य की परिक्रमा करते हैं। पृथ्वी के घूमने के कारण यहां दिन और रात होते हैं। इस ग्रह पर हमारी आबादी करीब 6 अरब है। इसके अलावा करोड़ों पशु-पक्षी, मछलियां कीड़े-मकोड़े और सूक्ष्म जीव हैं। पेड़-पौधों की लाखों जातियां हैं। हम इनके कुछ नमूने साथ भेज रहे हैं। अगर ये आपकी दुनिया में किसी काम आ सकें तो इसे अपनी ब्रह्मांडीय बिरादरी में हमारी ओर से एक छोटी-सी भेंट मान लेना और यह भी मान लेना कि इस विशाल ब्रह्मांड में आप अकेले नहीं हैं। हम आपके साथ हैं। हम इस धूमकेतु के सदा आभारी रहेंगे जिसने हमारा संदेश आपकी दुनिया तक पहुंचाया। हमारे और हमारी दुनिया के बारे में आपको इस सामग्री से काफी जानकारी मिल जाएगी। शांति और सहयोग की कामना के साथ- हम सभी पृथ्वीवासी।

    वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार धूमकेतु 2011डी मई माह में पृथ्वी से सबसे कम दूरी पर पहुंचने वाला था। इसलिए मिशन धूमकेतु-2 के अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण की तैयारी तेजी से की जाने लगी। गणना के अनुसार यान को धूमकेतु तक पहुंचने में साढ़े पांच माह का समय लगना था। यान के प्रक्षेपण की तिथि 20 नवंबर 2010 तय कर दी गई।

    20 नवंबर 2010 को दुनिया भर के लोग अपने टी वी सेटों पर केप केनवरल से मिशन धूमकेतु-2 के प्रक्षेपण का आंखों देखा हाल सुन रहे थे।

…..केप केनवरल…..मिशन धूमकेतु-2 के प्रक्षेपण का काउंट डाउन शुरू हो गया है…..यान का प्रक्षेपण कुछ क्षणों के बाद ठीक 2:35:04 बजे अपराह्न को किया जा रहा है…..पांच….चार….तीन…..दो….एक…..शून्य। और, आप देख रहे हैं शक्तिशाली बोइंग डेल्टा-4 राकेट धुएं का गुबार छोड़ता हुआ यान को लेकर अंतरिक्ष की ओर कूच कर गया है…..आसमान साफ है इसलिए राकेट के धुंए की लंबी लकीर आकाश में दूर तक दिखाई दे रही है……राकेट मिशन धूमकेतु-2 के अंतरिक्ष यान को लेकर अंतरिक्ष में ओझल हो गया है…..

…..मिशन धूमकेतु-2 महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियान है। इस यान के दो भाग हैं- एक है मुख्य यान और दूसरा रोबोट लैंडर। धूमकेतु के निकट पहुंचने के बाद मदरशिप अर्थात् मुख्य यान लगभग 500 से 800 किलोमीटर की दूरी बनाए रख कर अपनी शक्तिशाली दूरबीनों से धूमकेतु और रोबोट लेंडर की तस्वीरें लेगा। उन पर लगातार नजर रखेगा। और, रोबोट लैंडर मुख्य यान से 48 घंटे पहले अलग होकर धूमकेतु के पास पहुंचेगा। उसके संवेदनशील उपकरण धूमकेतु के चलने की गति की गणना करेंगे। रोबोट लैंडर वही गति अपना कर धूमकेतु की सतह पर साफ्ट लैंडिंग करेगा। रोबोट लैंडर के नुकीले पाए धूमकेतु की सख्त बर्फ में पर्वतारोहियों के कंटीले जूतों की तरह मजबूती से टिक जाएंगे। नियंत्रण कक्ष के निर्देशों के अनुसार रोबोट लैंडर के पाए कदम बढ़ाएंगे और कुछ जगहों की सामग्री खोद कर उसकी जांच करेंगे। लैंडर से इस्पात की एक लंबी खोखली छड़ निकलेगी और बर्मे की तरह सूराख करके गहराई से धूमकेतु की सामग्री निकालेगी। उसकी भी जांच की जाएगी।

…….लैंडर एक गड्ढा खोदेगा जिसमें कालपात्र और सभ्यता के बीजों की पेटी डाल दी जाएगी।…..

…..हमें 17 मई तक इंतजार करना होगा जब रोबोट लैंडर धरती से लगभग 13 लाख किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में धूमकेतु पर उतर कर ये सभी काम करेगा।…..

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11.25.05- मिशन धूमकेतु-2 स्टेटस रिपोर्ट  

मिशन धूमकेतु-2 सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है। उसके सभी उपकरण ठीक काम कर रहे हैं। दूरबीनों, स्पेक्ट्रोमीटर और कैमरों को चांद की ओर घुमा कर फोकस करके देखा जा चुका है। उनसे उम्दा तस्वीरें मिलने की आशा है।

    आकंड़ों से पता लगा है कि यान ने अपने सौर-पैनलों का परीक्षण कर लिया है। यान को नियमित रूप से ऊर्जा मिल रही है। यान आशातीत सफलता के साथ आगे बढ़ रहा है। इस अंतरराष्ट्रीय मिशन से जुड़े सभी वैज्ञानिक यान की स्थिति से संतुष्ट हैं।

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    मिशन धूमकेतु-2 लगभग निर्धारित समय के अनुसार ही धूमकेतु 2011डी के पास तक पहुंच गया। नियंत्रण कक्ष के निर्देश पाकर रोबोट लैंडर मुख्य यान से अलग हुआ। उपकरणों ने धूमकेतु की गति का संकेत दिया और रोबोट लैंडर अपनी गति को उसी हिसाब से नियंत्रित करते हुए धूमकेतु के बहुत पास पहुच गया। फिर नियंत्रण

कक्ष के निर्देशों के अनुसार धीरे-धीरे धूमकेतु की सतह पर उतर गया। रोबोट लैंडर भी अपने कैमरे से पृथ्वी पर लगातार तस्वीरें भेज रहा था। कालपात्र और सभ्यता के बीजों की पेटी रोबोट लैंडर से जुड़ी हुई थी। धूमकेतु की सतह पर रोबोट लैंडर किसी बर्फीले वीराने में भटकी हुई गाड़ी की तरह दिखाई दे रहा था। उसके उपकरणों ने अपना काम शुरू कर दिया था और वे धूमकेतु की रचना के बारे में बेशकीमती जानकारी पृथ्वी पर भेज रहे थे। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार रोबोट लैंडर से पांच माह तक आंकड़े मिलने की आशा थी। सूरज से न्यूनतम दूरी पर पहुंच कर जब धूमकेतु की वापसी यात्रा शुरू होगी तब सौर हवा से उसकी लाखों किलोमीटर लंबी पूंछ की दिशा बदल जाएगी। वह धूमकेतु की राह में आगे की ओर हो जाएगी। पूंछ के दिशा परिवर्तन के समय रोबोट लैंडर पर धूल और गैसों की बौछार होगी जिससे उपकरणों को नुकसान पहुंचने की आशंका थी। लेकिन तब तक उसके उपकरणों के ठीक-ठाक काम करने की आशा थी।

    उधर मुख्य यान रोबोट लैंडर को छोड़ने के बाद धूमकेतु से 700 किलोमीटर की दूरी बना कर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था और धूमकेतु तथा रोबोट लैंडर की तस्वीरें पृथ्वी पर भेज रहा था। रोबोट लैंडर के धूमकेतु पर उतरने के अद्भुत दृश्य मुख्य यान ने ही भेजे थे। वह दो माह तक धूमकेतु के चित्र भेजता रहा और फिर अंतरिक्ष की असीम गहराइयों में कहीं खो गया।

    वैज्ञानिकों की दृष्टि से मिशन धूमकेतु-2 आशा के अनुरूप सफल रहा। इस मिशन से मिले आंकड़ों के अध्ययन से धूमकेतुओं के बारे में पहली बार इतनी अधिक प्रामणिक जानकारी मिली। इस मिशन की उपलब्धियों पर हाइडेलबर्ग, जर्मनी में आयोजित अंतरराष्ट्रीय धूमकेतु सम्मेलन में विस्तृत चर्चा हुई और इसका श्रेय अंतरराष्ट्रीय सहयोग को दिया गया। उस सम्मेलन में यह भी निश्चय किया गया कि भावी धूमकेतु अभियानों में भी इसी तरह सभी सहयोगी मित्र देशों का सहयोग लिया जाएगा। सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण निर्णय यह भी लिया गया कि आगामी धूमकेतु मिशन में रोबोट लैंडर न केवल धूमकेतु पर उतारा जाए बल्कि वह धूमकेतु की सतह से बर्फ, धूल, गैस आदि के नमूने भी एकत्र करे और फिर आकर मुख्य यान से जुड़ कर पृथ्वी पर लौट आए। जिस तरह कभी चांद की मिट्टी लाई गई थी उसी तरह धूमकेतु की सतह के नमूने भी प्राप्त किए जाएं।

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हम यहां हैं

धूमकेतु तो सौरमंडल की सैर पर कभी भी आ धमकते हैं। मिशन धूमकेतु-2 को कई वर्ष बीत चुके थे। ब्रह्मांड की टोह लेती अंतरिक्ष में स्थित शक्तिशाली दूरबीनों ने एक और विशाल धूमकेतु के आने का संकेत दिया। वह पृथ्वी से करोड़ों किलोमीटर दूर था लेकिन अब तक आए अन्य धूमकेतुओं की तुलना में उसके सिर का आकार काफी बड़ा लगता था। सूर्य से बहुत दूर होने के कारण अभी उसकी पूंछ का आकार बहुत बड़ा नहीं हुआ था लेकिन वैज्ञानिकों का कहना था कि धीरे-धीरे यह लाखों किलोमीटर लंबी हो जाएगी। वैज्ञानिक धूमकेतु के मार्ग की गणना में जुट गए। गणना से यह स्पष्ट लगता था कि वह धूमकेतु हमारी पृथ्वी के काफी करीब से गुजरेगा। पृथ्वी उसकी विशाल पूंछ से होकर गुजरेगी। पूंछ की धूल और गैसों की बौछार कैसी होगी यह तभी पता लग सकेगा।

    इस धूमकेतु के आगमन की खबर से विश्व भर में धूमकेतु अध्ययन में जुटे वैज्ञानिक सतर्क हो गए और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से मिशन धूमकेतु-3 को कार्यान्वित करने की तैयारियां जोर-शोर से शुरू कर दी गईं। पृथ्वी के काफी निकट से गुजरने की आशंका के कारण विश्व भर में धूमकेतु जागरूकताअभियान चलाने का निश्चय किया गया ताकि लोगों को किसी प्रकार का भय न रहे। हर संभव मीडिया से धूमकेतु की छवि अंतरिक्ष के एक सुंदर सैलानी के रूप में प्रस्तुत करने का निश्चय किया गया।

    धूमकेतु लगातार आगे बढ़ रहा था।

    कई देशों ने धूमकेतु के पृथ्वी के निकट आने पर अपने अंतरिक्ष यानों से अलग से भी धूमकेतु की जांच करने का निश्चय किया। कुछ और देशों ने अंतरिक्ष में पहले से मौजूद अपने अंतरिक्ष यानों का मार्ग बदल कर धूमकेतु के करीब भेजने का निर्णय लिया। इस तरह इस बार धूमकेतु के अध्ययन की अभूतपूर्व तैयारियां की गईं।

    धूमकेतु निकट आता जा रहा था। अब सौर विकिरण और हवाएं उसकी धूल और गैसों के गुबार को पीछे अंतरिक्ष में धकेलने लगी थीं जिससे उसकी लाखों किलोमीटर लंबी पूंछ लहराने लगी। नियत तिथि और समय पर केप केनवरल से मिशन धूमकेतु-3 को अंतरिक्ष में रवाना कर दिया गया। अंतरिक्षयान नए सुधरे हुए रोबोट लैंडर के साथ अपने लक्ष्य की ओर चल पड़ा।

    गरीब और विकासशील देशों में ही नहीं, कई विकसित देशों में भी ज्योतिषियों ने धूमकेतु के बारे में अपना कुप्रचार जारी रखा कि इसका आगमन अशुभ है और इससे भूख, बीमारी और युद्ध की घटनाएं बढ़ेंगी। दुर्घटनाओं में वृद्धि होगी। राजनीतिक उथल-पुथल होगी। इस आशंका से डर कर कई राजनीतिज्ञों ने धूमकेतु का आसन्न प्रभाव नष्ट करने के लिए चुपके-चुपके निराकरण अनुष्ठानो की व्यवस्था की। पूजा, यज्ञ आदि सम्पन्न किए गए।  लेकिन, मीडिया के माध्यम से धूमकेतु की जानकारी से लोगों की जागरूकता बढ़ी और विश्व भर के करोड़ों लोग धूमकेतु के आगमन का एक अशुभ घटना के रूप में नहीं बल्कि आकाश के एक नयनाभिराम, अलौकित व दर्शनीय दृश्य के रूप में इंतजार करने लगे जिसे देखने का जीवन में प्रायः एकाध ही अवसर मिलता है।

    धूमकेतु बृहस्पति और मंगल ग्रह की कक्षाओं के बीच में पहुंच चुका था। मिशन धूमकेतु-3 अंतरिक्ष-यान अपनी राह पर अबाध गति से आगे बढ़ रहा था। कई अंतरिक्ष यानों के मार्ग में परिवर्तन किए जाने लगे ताकि वे वक्त आने पर निकट से धूमकेतु दर्शन कर सकें।

    अपनी साढ़े चार माह की यात्रा पूरी करके अंततः मिशन धूमकेतु-3 यान नए धूमकेतु के निकट पहुंच गया और अपनी शक्तिशाली दूरबीनों से धूमकेतु की सतह के शानदार चित्र पृथ्वी पर भेजने लगा। चित्रों के विश्लेषण से वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि इस धूमकेतु की बर्फीली सतह इससे पूर्व के धूमकेतुओं की तुलना में कहीं अधिक कड़ी है। नियत दूरी पर पहुंच जाने के बाद रोबोट लैंडर को मुख्य यान से अलग होकर धूमकेतु की सतह पर उतरना था और मुख्य यान को इन दृश्यों के चित्र भेजने के बाद आगे बढ़ कर निर्धारित दूरी से  नियंत्रण कक्ष के निर्देशों के अनुसार धूमकेतु की समानांतर दिशा में वापस लौटना था।

मुख्य यान से रोबोट लैंडर को अलग होने में केवल कुछ ही मिनट शेष रह गए थे। मुख्य यान की दूरबीनें धूमकेतु की सतह को टटोल रही थीं कि तभी….तभी…..यान के संवेदनशील यंत्रों ने सतह पर एक जगह किसी ठोस धातु की उपस्थिति का संकेत दिया। दूरबीन को उस स्थान पर फोकस करने के बाद पता लगा कि बर्फ में निश्चित रूप से धातु की कोई चीज है। नियंत्रण कक्ष ने रोबोट के उतरने के लिए वही स्थान निर्धारित किया और रोबोट लैंडर को उतरने का निर्देश दिया। रोबोट लैंडर मुख्य यान से अलग होकर धूमकेतु की सतह पर उतरने के लिए आगे बढ़ा और मुख्य यान निश्चित दूरी पर आगे बढ़ते हुए रोबोट लैंडर के उतरने की तस्वीरें पृथ्वी पर भेजने लगा। रोबोट लैंडर का लक्ष्य-संवेदी उपकरण उसे निर्धारित स्थान की ओर बढ़ने में मदद कर रहा था।

    रोबोट लैंडर धीरे-धीरे धूमकेतु के उस निर्धारित स्थान पर उतर गया। पृथ्वी से निर्देश पाकर वह अपने नुकीले पायों से धीरे-धीरे आगे बढ़ा। सतह के नमूने लेने के लिए उसकी यांत्रिक बांहें बाहर निकलीं। उन्होंने सतह को खुरचा, खोदा और बर्फ व मलबे की कुछ मात्रा उठा कर लैंडर की पेटी में जमा कर दी। तब नियंत्रण कक्ष ने रोबोट लैंडर को धातु का संकेत देने वाले स्थान की फिर जांच करने का निर्देश दिया। सुरक्षा की दृष्टि से भी जांच की गई। एक्स-किरणों और इंफ्रारेड किरणों से पता लगा कि धातु की वस्तु बेलनाकार और किरणों के लिए अभेध्य है। इसलिए पृथ्वी पर वैज्ञानिक उसकी भीतरी रचना का कोई अनुमान नहीं लगा सके। गंभीर विचार-विमर्श करने के बाद निर्णय लिया गया कि उस अज्ञात वस्तु को भी नमूने के रूप में पृथ्वी पर मंगाया जाए। इसके लिए रोबोट को निर्देश दे दिए गए। रोबोट लैंडर की दोनों बाहें बर्फ हटाने लगीं। नियत्रंण कक्ष के निर्देश पर रोबोट लैंडर ने लौटे हुए मुख्य यान का लक्ष्य तय किया, अपने रोबोट इंजन दागे और धूमकेतु की सतह से ऊपर उठ कर मुख्य यान की ओर चल पड़ा।

    मुख्य यान से जुड़ने के बाद मिशन धूमकेतु-3 की पृथ्वी की ओर वापसी यात्रा शुरू हुई। इस मिशन को अब तक आशातीत सफलता मिल चुकी थी। यह अंतरिक्ष यान मानव इतिहास में पहली बार न केवल धूमकेतु के नमूने लेकर लौट रहा था बल्कि उसकी सतह पर से एक अज्ञात और रहस्यमय धातु पिंड को भी ला रहा था। पृथ्वी पर वैज्ञानिक उस धातु पिंड के बारे में कई तरह की आशंकाएं और अनुमान व्यक्त कर रहे थे लेकिन उनकी दृष्टि में खोज के लिए यह खतरा मोल लेना भी अनिवार्य था। इस बात को ध्यान में रखते हुए अंतरिक्ष यान के पृथ्वी पर लौटने के बाद उसकी हर दृष्टि से कड़ी जांच करने का निश्चय किया गया। इसके लिए युद्ध स्तर पर आवश्यक तैयारियां शुरू कर दी गईं।

    यान की सुरक्षित वापसी के बाद उसे क्वारंटाइन में रखा गया और जांच की गई कि धूमकेतु के सम्पर्क से लौटे अंतरिक्ष यान के साथ कहीं कोई जीवाणु, विषाणु तो नहीं आ गए। ऐसे नए जीवाणु, विषाणु या कोई अन्य सूक्ष्मजीव धरती पर जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकते थे। साथ ही यह भी कि अगर कोई सूक्ष्मजीव है तो धूमकेतु पर जीवन की संभावना सच साबित हो सकती है। फिर, प्रोफेसर फ्रेड हायल व चंद्र विक्रम सिंघे की यह बात भी सच साबित हो जाएगी कि धूमकेतुओं से भी जीवन का बीजारोपण हो सकता है।

    कई दिनों की कड़ी जांच के बाद भी यान पर सूक्ष्मजीवों काी उपस्थिति का पता नहीं लगा। फिर भी यान का पूरी तरह निर्जर्मीकरण कर लिया गया। रोबोट लैंडर द्वारा एकत्रित नमूनों को सख्त सुरक्षा में बिल्कुल पृथक रखा गया ताकि कोई भी सीधे उनके संपर्क में न आ सके। हर तरह से सुरक्षित तथा निर्जर्मीकृत प्रयोगशाला में, विशेष पोशाक और मास्क पहन कर नमूनों के विश्लेषण का कार्य शुरू हुआ। धातु के बेलनाकार पिंड की जांच के लिए वैज्ञानिकों का एक अति गोपनीय दल बना दिया गया जो न केवल प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों बल्कि स्वयं मानव सभ्यता की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसकी गहन जांच में जुट गया।

    उधर धूमकेतु मंगल के परिक्रमा पथ को पार कर पृथ्वी और मंगल के बीच से गुजर रहा था। मंगल तब सूर्योच्चस्थिति में था। पृथ्वी व सूर्य से निकटतम दूरी की यह स्थिति 17 वर्ष बाद आई थी। धूमकेतु ज्यों-ज्यों सूर्य से न्यूनतम दूरी पैरीहिलियनकी ओर बढ़ रहा था उसकी पूंछ की मनोहारी छवि द्विगुणित हो रही थी। आकाश में विचरते उस पुच्छल तारे की पूंछ पूरी पृथ्वी को अपनी लपेट में लेने को भी आगे बढ़ रही थी। उस दिन की प्रतीक्षा सभी कुतूहल के साथ कर रहे थे।

और, धूमकेतु पृथ्वी के पास से होकर गुजरने लगा। कई अंतरिक्षयानों ने करीब से उसकी तस्वीरें लीं। अपने उपकरणों से उसका अध्ययन किया। पृथ्वी के एक बहुत बड़े भूभाग से धूमकेतु की पूंछ गुजरी। संवेदशील उपकरणों ने बेशक कुछ गैसों और धूल की न्यून मात्रा की उपस्थिति का पता लगा लिया लेकिन आम लोगों को उसका विशेष पता नहीं लगा। लाखों किलोमीटर लंबी पूंछ जैसे पृथ्वी को बुहार कर चली गई। जाते हुए धूमकेतु की मनोहारी छवि करोड़ों लोगों ने देखी। अंतिम कुछ महीनों में वह सूर्यास्त के बाद आकाश में एक अद्भुत रचना के रूप में दिखाई देता रहा।

    धूमकेतु धरती को अलविदा कर रहा था लेकिन सुरक्षा पोशाक पहने चंद वैज्ञानिकों का दल धातु पिंड की जांच में जुटा था। धातु पिंड को करीब से अच्छी तरह देखते ही वैज्ञानिक चैंक पड़े। उस पर संकेत चिह्न बने थे। उस बेलनाकार धातु पिंड को बेहद सावधानी के साथ घुमाने पर वह खुल गया। भीतर कुछ गोल डिस्कनुमा चीजें रखी थीं और एक धातु के फलक पर चित्र उकेरा गया था। उसका अध्ययन करने पर पता लगा कि उसमें एक ऐसा सूर्य दिखाया गया है जिसके चारों ओर छोटे-बड़े आकार के ग्यारह ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं। उनमें से अधिकांश बहुत विशाल ग्रह थे। जिन दो ग्रहों पर संकेत चिह्न लगे थे वे आकार में बड़े ग्रहों से काफी छोटे थे। उनमें से एक के चारों ओर चार और दूसरे के दो चांद दिखाए गए थे। उन ग्रहों के पास ही बड़ी-बड़ी आंखों वाले विचित्र आकृति के कुछ जीव दिखाए गए थे।

    वैज्ञानिकों ने हर्षातिरेक में एक-दूसरे को गले लगा लिया। यह कालपात्र था। ब्रह्मांड की किसी दूसरी सभ्यता द्वारा भेजा गया कालपात्र। मतलब ब्रह्मांड के किसी ग्रह में वे भी हैं। जांच करने वाले वैज्ञानिक खुशी से चिल्लाए- मतलब इस विशाल ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं हैं। कहीं किन्हीं दो अनजान ग्रहों पर भी सभ्यता पनप रही है। अपूर्व और अविश्वसनीय। वैज्ञानिकों ने शांत होकर उस सामग्री का गंभीर अध्ययन शुरू किया। विशाल ब्रह्मांड की असंख्य मंदाकिनियों के अनगिनत नक्षत्रों की परिक्रमा कर रहे लाखों अज्ञात ग्रहों में से कौन-से दो ग्रह हैं वे? ब्रह्मांड के किस कोने में हैं वे? वे संकेतों की भाषा को समझने की कोशिश करते रहे। संकेतों के कूट को पढ़ने का प्रयास करते रहे और धीरे-धीरे उनके संकेत समझ में आने लगे। उन्होंने पहली डिस्क को उठा कर उलट-पुलट कर देखा और फिर खुले हुए ढक्कननुमा भाग पर रख दिया। और अचानक……उसमें से एक भारी आवाज आने लगी। अजीबोगरीब और अनजानी आवाज। फिर संगीत का झरना-सा फूट पड़ा। उसके बाद काफी देर तक कई तरह की आवाजें आती रहीं। उनमें से कोई भी जानी-पहचानी आवाज नहीं थी। लेकिन, सहसा….. सहसा…..सांय….सांय..हवा चलने की आवाज सुनाई दी। फिर बादल गरजे, बिजली कड़की और रिमझिम बारिश…..हां, वह बारिश की ही आवाज थी…..वैज्ञानिकों का मन भीतर तक भीग गया। मतलब वहां….वहां….भी जीवन है! मतलब हम….हम…ब्रह्मांड में अकेले नहीं हैं।

    आवाज रूकने के बाद उन्होंने दूसरी डिस्क उठाई। उसमें से भी आवाज और संगीत की जैसी लय सुनाई दी। जांच करने वाले वैज्ञानिकों को लगा डिस्क दृश्य रूप में देखने के लिए है। लेकिन, उस अलग आकार की डिस्क को कम्प्यूटर के विशेष डी

वी डी मोड में लगा कर देखना संभव नहीं था। तब निश्चय किया गया कि डिस्क के लिए उसके आकार के अनुसार डी वी डी मोड बना कर देखा जाए।

    और, तब उस आकार में डी वी डी मोड पर डिस्क को देखना संभव हो गया। वह सभ्यता भी शायद इस प्रकार की कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी से परिचित थी। कम्प्यूटर के स्क्रीन पर उस अलौकिक दुनिया का अनोखा दृश्य उभरा। शुरूआत उनके सूर्य और ग्रहों के बनने से हुई। वे शायद यह बताना चाहते थे कि जिस दुनिया में वे रहते हैं वह कैसे बनी। ग्रहों के बन जाने के बाद उन्होंने डिस्क में आकाश से गुजरते धूमकेतु दिखाए। ग्रहों पर उन धूमकेतुओं से झरती धूल दिखाई और उस धूल से जल और थल में पनपता जीवन दिखाया। जीवन का विकास दिखाया कि कैसे वहां जल और थल में जीवन पनपा। और, धीरे-धीरे उनके पुरखे विकास की दौड़ में आगे बढ़ गए। वे पूरे ग्रह पर फैल गए। डिस्क के दृश्यों में एनीमेशन से चारों ओर विचरते वही जीव दिखाए गए थे- डायनोसौर! हां, हमारी दुनिया के प्राचीन डायनासोरों की तरह के प्राणी।

डिस्क देख रहे वैज्ञानिक चौंके। तो, क्या कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी पृथ्वी और उनकी दुनिया में जीवन का बीजारोपण एक ही स्रोत से हुआ हो? जिसने वहां जीवन बोया, उसी ने यहां भी जीवन के बीज बोए? तो क्या वहां भी करोड़ों वर्ष पहले जुरैसिक युग आया होगा? तब तक यहां और वहां समानांतर विकास ही हुआ होगा? फिर यहां वह भीषण दुर्घटना हुई होगी।…..उन वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक लुइस अल्वारेज और उनके वैज्ञानिक पुत्र वाल्टर के सातवें दशक के अंत में व्यक्त किए गए वे विचार याद आए कि……..साढ़े छः करोड़ वर्ष पहले 70 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से लगभग 8 किलोमीटर व्यास का एक धूमकेतु धरती से टकराया होगा। उससे शायद 40 किलोमीटर गहरा और 80 किलोमीटर चैड़ा गड्ढा बना होगा। उससे निकली धूल और चट्टानों के गुबार से आकाश भर गया होगा। धूल की मोटी परत ने सूरज की किरणें रोक दीं होंगी। पृथ्वी पर अंधेरा छा गया होगा। अंधेरे में वनस्पतियां उजड़ गईं होंगी और डायनोसौर नष्ट हो गए होंगे…..धरती पर उनका साम्राज्य समाप्त हो गया होगा।

लेकिन, विकास की प्रक्रिया चलती रही, स्तनपोषी प्राणी विकास की दौड़ में सबसे आगे पहुंच गए और एक दिन वानर कुल का एक प्राणी आदमी के रूप में अपने दो पैरों पर खड़ा होकर विकास की सर्वोच्च सीढ़ी पर पहुंच गया। धूमकेतु ने धरती पर विकास की दिशा बदल दी।

लेकिन, वहां? वहां क्या हुआ होगा…? डिस्क के दृश्यों से बिल्कुल स्पष्ट था कि वहां जीवन उसी रूप में पनपता रहा। डायनासौरों का दोपाया पुरखा विकास की दौड़ में आगे बढ़ता रहा। वह अपने दो पैरों पर खड़ा हो गया। विकास क्रम में दो पैरों पर चलने वाला डायनोसोरायडप्राणी बन गया। डिस्क में उस दुनिया के प्राणियों ने अपने विकास के इतिहास की झांकी दिखाई थी। उनका पुरखा अपने दोनों हाथों से काम करने लगा। उसके हाथों में तीन-तीन अंगुलियां थीं। शरीर पर बाल नहीं थे। चेहरा नुकीला और उभरा हुआ था। उस पर दो बड़ी-बड़ी बिल्ली की तरह चमकदार आंखे थीं। समय के साथ शरीर सुघड़ बनता गया और आज वहां, उस दुनिया में उनका राज है।

लेकिन, वह दूसरा ग्रह? डिस्क के दृश्यों के अनुसार ग्रह में उनकी आबादी बढ़ती गई। सारे ग्रह में शहर फैल गए। तब उन्होंने अपने ग्रह के समान ही दूसरे ग्रह पर भी बसने का निश्चय किया। उनके अंतरिक्ष यानों ने दूसरे ग्रह का सर्वेक्षण किया। उसे उन्होंने जीवन की परिस्थितियों के अनुकूल बनाया। उन्होंने वनस्पतियों को तेजी से बढ़ाया। वन-उपवन लगाए। झीलों, तालाबों और नदियों का पानी हर जगह मुहैया कराया। और, फिर अपनी बस्तियां बसा दीं। डिस्क के दृश्य दर्शाते थे कि अब उन दोनों ग्रहों पर उनकी सभ्यता पनप रही थी। दोनों ग्रहों के बीच अंतरिक्ष यानों की आवाजाही दिखाई गई थी। अंतरिक्ष में विशाल स्टेशन भी दिखाए गए थे। इस सबके बावजूद शायद उन्हें लगता था कि वे ब्रह्मांड में निपट अकेले हैं क्योंकि डिस्क में सब कुछ दिखाने के बाद काफी देर तक विशाल ब्रह्मांड के सूने ग्रह-नक्षत्र दिखाए गए। फिर ग्रैफिक एनीमेशन से ग्रह के आकाश में आता हुआ एक धूमकेतु दिखाया गया। फिर….उनके ग्रह से धूमकेतु की ओर छोड़ा गया एक अंतरिक्ष यान दिखाया गया……यान को धूमकेतु की सतह पर एक बेलनाकार पिंड रखते हुए दिखाया गया।

और, अंत में उभरी उनकी अपनी तस्वीर। उस ग्रह के चार प्राणी अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से सामने ताक रहे थे। उन्होंने एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर घेरा बनाया और हल्का-सा सिर झुका कर सामने देखने लगे। शायद वे सहयोग की बात कहना चाहते थे। पृष्ठभूमि में बेलनाकार पिंड को लेकर धूमकेतु अपनी अनजानी राह पर आगे बढ़ रहा था- न जाने किस आकाशगंगा के कौन-से सौरमंडलों के कौन-से नक्षत्रों, ग्रहों और उपग्रहों के पार।

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और यहां, सूर्य की निकटतम दूरी पर पहुंच कर धूमकेतु धरती के आकाश में जैसे पृथ्वीवासियों से विदा ले रहा था। उसकी वापसी यात्रा शुरू हो गई थी। आकाश में वह अपनी भव्य छवि दिखाते हुए लगातार वापस लौट रहा था- उसी अनजानी दुनिया की ओर, जहां से वह शायद हजारों वर्ष पहले चला था। बेलनाकार धातु-पिंड की गोपनीय जांच में जुटे वैज्ञानिकों ने एक शाम अपनी प्रयोगशाला से बाहर निकल कर गोधूलि की बेला में दूर अंतरिक्ष मे वापस लौट रहे उस धूमकेतु को विदा का हाथ हिलाया और मन ही मन कहा- उस अनजान दुनिया के निवासियों का संदेश यहां तक लाने के लिए हार्दिक आभार दोस्त। अलविदा!

धूमकेतु वापस लौट गया। उस अज्ञात सभ्यता के निवासियों को यह संदेश भेजने का वक्त भी न मिल सका कि उनका संदेश मिल गया है और यह भी पता लग गया है कि इस विशाल ब्रह्मांड में अब हम भी अकेले नहीं हैं। कोई नहीं जानता कि वह धूमकेतु अब कब लौटेगा। हो सकता है सौ साल बाद, पांच सौ साल बाद, पांच हजार साल बाद या पचास हजार साल बाद। ये भी हो सकता है कि वह अब लौटे ही नहीं। धूमकेतु तो यायावर हैं, कब आ जाएं, कौन जाने। लेकिन, यह धूमकेतु इतना संकेत तो दे ही गया कि ग्रहों पर धूमकेतुओं ने जीवन के बीज बोए हैं और वे बीज ब्रह्मांड में अन्यत्र भी पनपे हैं।

मगर, इस बात को अभी कौन जानता है? केवल वैज्ञानिक दल के वे सदस्य जो मिशन धूमकेतु-3 से मिले धातु-पिंड की गोपनीय जांच कर रहे हैं। इस जानकारी को सार्वजनिक बनाने के लिए न केवल खगोल वैज्ञानिक बिरादरी की सहमति लेनी होगी बल्कि इस मिशन में सहयोग दे रहे देशों के राष्ट्राध्यक्षों की स्वीकृति भी जरूरी होगी। गोपनीय जांच की रिपोर्ट को शीध्र ही राष्ट्राध्यक्षों को भेजने का निश्चय किया गया ताकि आगामी धूमकेतु सम्मेलन में मिशन की खोज के परिणामों की घोषणा की जा सके।

    धूमकेतु धरती के आकाश से दूर और दूर होता जा रहा था।

लेखक :

देवेंद्र मेवाड़ी

पताः सी-22, शिव भोले अपार्टमेंट्स

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9 विचार “मिशन धूमकेतु&rdquo पर;

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गाँव से शहर को फैलते नक्सली – ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है…. आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी….. आभार…

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  2. देवेंद्र मेवाड़ी जी अपने वैज्ञानिक लेखों को अनेक मासिक पत्रिकाओं में लिखते हैं और यह बहुत ही रोचक जानकारी पूर्ण होती है इन्होंने विज्ञान विश्व में भी लिखना शुरू किया यह देखकर बहुत अच्छा लगा कृपया आप इसी तरह लिखते रहें और वैज्ञानिक जानकारी का समाज में प्रसार करते हैं बहुत-बहुत धन्यवाद

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  3. लाजवाब है यह पोस्‍ट। मैं तो सच्‍ची कथा समझ पढता गया। इसे शेयर कर रहा।

    गुरु, 23 अग॰ 2018 को 2:41 pm बजे को विज्ञान विश्व ने लिखा:

    आशीष श्रीवास्तव posted: “लेखक : देवेंद्र मेवाड़ी धूमकेतु पर धमाका उस दिन
    दुनिया भर के समाचारपत्रों की सुर्खियों में यह खबर थीः केप केनवरल, जनवरी 13:
    नासा के धूमकेतु टैम्पल-1 से मिलने के लिए हालीवुड नामधारी अंतरिक्ष यान ‘डीप
    इम्पैक्ट’ का बुधवार को ठीक 1: 47:08 बजे अपराह्न प्र”

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  4. लाजवाब, मैं तो पूरी कथा को सच्‍ची मान पढता गया। अंत में जाना कि यह विज्ञान कथा है। देवेन्‍द्र मेवाडी जी को नमस्‍कार।

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