पृथ्वी का जन्म आज से 4.5 अरब वर्ष पहले हुआ था। यह माना जाता है कि पृथ्वी की सतह पर जीवन का उद्भव पहले एक अरब वर्ष मे ही हो गया था।
- सबसे प्राचीन ज्ञात जीव सूक्ष्म तथा आकृतिहीन थे।
- इनके जीवाश्म सूक्ष्म राड के जैसे है जिन्हे जीवहीन प्रक्रियाओं से बने पदार्थ से अलग कर पाना अत्यंत कठीन है।
- चट्टानो के अध्ययन से ज्ञात है कि बैक्टेरीया के जीवाश्म 3.5-3.8 अरब वर्ष पुराने है।
जीवन का प्रारंभिक स्वरूप
सूक्ष्म जीवाश्म
- जीवन का सबसे प्राचीन प्रमाण सूक्ष्म जीवाश्मो के रूप मे मिलता है जो अत्यंत सूक्ष्म जीवों के अवशेष है।
- वे वर्तमान काल के बैक्टेरीया के जैसे थे जिनका आकार 1-2 माइक्रोमीटर था, वे एक कोशीय, बिना किसी बाह्य आकृति या आंतरिक संरचना वाले जीव थे।
- सरल शरीर रचना वाले वाले जीवो को प्रोकार्योटेस(prokaryotes) कहा जाता है जोकि ग्रीक शब्द है और यह शब्द “पहले” तथा “केंद्रक” के अर्थ वाके शब्दो से बना है।
- इस नाम का अर्थ है, बिना केंद्रक वाले जीव, गोलाकार केंद्रक बाद के जीव जैसे युकार्योटेस(eukaryotes) जैसे जटिल कोशीकाओं वाले जीवो का गुणधर्म है।
- जीवाश्मो के रिकार्ड के अनुसार युकार्योटेस का उद्भव अब से 1.5 अरब वर्ष से पहले नही हुआ था।
- इसका अर्थ है कि पृथ्वी पर पहले दो अरब वर्ष पहले केवल बैक्टेरिया का ही अस्तित्व था।
प्राचीन बैक्टेरिआ : आर्कबैक्टेरिआ
- गर्म जल के झरनो के उबलते पानी मे तथा गहरे समुद्री ज्वालामुखी छिद्रो के पास अत्याधिक तापमान पर बिना आक्सीजन की उपस्थिति मे बैक्टेरिया पाये गये है।
- पृथ्वी पर आरंभीक जीवन के इन अवशेषो को आर्कबैक्टेरिआ कहा जाता है जोकि ग्रीक शब्द से बना है और उसका अर्थ है “प्राचीन जीव”।
- सबसे पहले मिथेन गैस उत्पन्न करने वाले मिथनोजींस(methanogens) बैक्टेरिआ का अध्ययन किया गया जो कि सबसे प्राचिन बैक्टेरिआ मे से एक है और वर्तमान मे भी पाये जाते है।
- ये सरल संरचना वाले है और आक्सीजन की अनुपस्थिति मे ही जीवित रह पाते है, आक्सीजन इनके लिये जहर है।
- ये प्राचिन आरंभीक जीव है लेकिन अन्य सभी बैक्टेरिआ के जैसे ही है, इनमे DNA, वसा युक्त कोशिका भित्ति,बाह्य कोशीका भित्ति तथा ऊर्जा आधारित चयापचय प्रक्रिया होती है।
प्रथम युकार्योटिक कोशीकायें
- ये आकार मे प्रोकार्योटेस से बड़ी और जटिल होती है।
- युकार्योटिक कोशिकाओं में एक झिल्ली से घिरा हुआ केन्द्रक (न्यूक्लियस) होता है जिसके अन्दर आनुवंशिक (जेनेटिक) सामान होता है
- युकार्योटिक कोशिकायें दो या दो से अधिक कोशिकाओं के मिलने से बनती है।
- इनका जन्म 1.6-2.1 अरब वर्ष पहले हुआ है।
- युकार्योटिक कोशिकाओं को जीवन के विकास मे मील का पत्थर माना जाता है, युकार्योटिक कोशिकायें सभी जटिल कोशिकाओं का समावेश करती है, जिसमे लगभग सभी बहुकोशिय जीव आते है।
जीवन के उद्भव के लिये अवधारणायें
पैनस्पर्मिआ
- इस अवधारणा के अनुसार जीवन का ब्रह्माण्ड मे सर्वत्र फैले हुये उद्भव सूक्ष्म जीव से या जीवन के पूर्ववर्ती रसायनो से हुआ है।
- जीवन का उद्भभव इन सूक्ष्म जीव पूर्ववर्ती रसायनो के किसी पृथ्वी जैसे जीवन के लिये सहायक वातावरण मे पहुंचने से हुआ है।
- जीवन का प्रसार उल्काओं, क्षुद्रग्रहो, धूमकेतुओ तथा परग्रही यानो के द्वारा हुआ होगा।
स्वतंत्र उद्भव
- इस अवधारणा के अनुसार पृथ्वी पर जीवन यहीं पर उपलब्ध पदार्थ से हुआ है।
- जीवन के लिये उत्तरदायी बल “प्राकृतिक चुनाव” था।
- अणुओं मे परिवर्तन ने उनके स्थायित्व तथा दिर्घ आयु को बढ़ावा दिया।
- इन अणुओ मे अधिक जटिल संरचनाओं बनायी, जिससे जीवन उत्पन्न हुआ।
जीवन के उद्भव के स्थान की अवधारणाये
सागरी किनारे
- पृथ्वी के प्राथमिक जीव का जन्म और जीवन अत्याधिक तापमान पर हुआ है।
- सौर मंडल के जन्म से बचा मलबा पृथ्वी से 4.6 अरब वर्ष पहले से 3.8 अरब वर्ष पहले के मध्य टकराता रहा है, जिससे भूपर्पटी पिघली हुयी और उष्ण बनी रही है।
- जब इस मलबे का पृथ्वी से टकराना धीमा हुआ तब तापमान घट कर 49°C से 88 °C तक आ गया था।
- अब से पहले 3.8 से 3.5 अरब वर्ष के मध्य सबसे पहला जीवन उत्पन्न हुआ, इसके पश्चात पृथ्वी निवासयोग्य बनते गयी।
जमे हुये सागर की उपरी तह
- जीवन की उत्पत्ति बृहस्पति के चंद्रमा युरोपा के जैसे जमे हुये सागर के नीचे वाली परिस्थिति मे हुयी है।
- यह अवधारणा असंभव लगती है क्योंकि प्राथमिक पृथ्वी उष्ण थी जिससे जमे हुये सागर संभव नही है।
भूपर्पटी के नीचे गहराई मे
- जीवन का उद्भव ज्वालामुख्य गतिविधियों के सहुउत्पाद के रूप मे खनिजो और गैसो के मिश्रण से हुआ है।
- इस अवधारणा को गुन्टेर वाचरहौसर ने 1988 मे प्रस्तावित किया था। बाद मे वे इस असाधारण रसायनिक प्रक्रिया से अमिनो अम्ल के पूर्ववर्तियों को बनाने मे सफ़ल भी हुये थे।
- आलोचको के अनुसार उनके प्रयोगो मे रसायनो की मात्रा प्रकृति मे उपलब्ध मात्रा से बहुत अधिक थी।
मिट्टी मे
- जीवन का उद्भव सिलिकेट के रसायनिक प्रक्रिया से हुआ है।
- मिट्टी मे धनात्मक आवेश होता है और वह कार्बनिक पदार्थ के अणुओं को आकर्षित और जल को अलग कर सकता है, इस परिस्थिति मे जीवन के आरंभिक अणुओ के लिये उत्प्रेरक भू सतह बन जाती है।
गहरे सागरी धरातल पर ज्वालामुखिय छिद्रो के पास
- जीवन का उद्भव गहरे सागर मे ज्वालामुखिय गर्म जल के स्रोतो के पास हुआ है, जिसमे जीवन के लिये आवश्यक प्रा्थमिक रसायन का निर्माण इन छिद्रो के पास उपलब्ध धात्विक गंधक(सल्फाईड) अणुओं से हुआ है।
- इन सल्फाईड अणु का धनात्मक आवेश ऋणात्मक आवेश के कार्बनिक अणुओ के लिये चुंबक का कार्य करता है।
- आधुनिक जिनोमिक्स(Genomics) के अनुसार वर्तमान प्रोकार्योटेस के पूर्वज इन गहरे सागरी छिद्रो के पास प्राप्त बैक्टेरिया से अत्याधिक मिलते जुलते है।
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लेख सामग्री : विज्ञान विश्व टीम
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हीरा भारी धातु नही है, वह कार्बन का रूप है।
स्वर्ण निर्माण जानने के लिये इन दो लिंक पर जायें : https://vigyanvishwa.in/2013/12/13/gold/
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सर बहुत अच्छा लेख लिखते हैं आप और जानने की इच्छा होती हैं.ये बातायें की क्या प्रकाश की गति में भी फर्क होता हैं जैसे जीरो वाट या हजार वाट का बल्ब रोशनी में फर्क तो स्पीड में भी फर्क होगा.और sunlight आने में 8 मिनिट कूछ sec लगते हैं ये कैसे पता जबकि sun तो लगतार रोशनी देता रहता हैं.जलता बूझ्ता तो हैं नही लाइट हमेशा earth पे रहती हैं.
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प्रकाश हमेशा गति करते रहता है, वह स्थिर नही रहता है। उसके मार्ग मे कोई अन्य वस्तु के आने पर वह या तो अवशोषित कर लिया जाता है, या परावर्तित होता है या पार हो जाता है। सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश आने पर अधिकतर प्रकाश अवशोषित हो जाता है। सूर्य से निकला प्रकाश पृथ्वी के सम्मुख भाग मे आने मे आठ मिनट लगते है।
जब सूर्योदय होता है, उसके पहले सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के उस भाग तक नही पहुंचा होता है। सूर्योदय के समय जब प्रकाश पृथ्वी के उस भाग को रोशन करता है वह सूर्य से आठ मिनट पहले निकला हुआ होता है।
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Sir , Can u pls tell me about the Time Machine? & How does it works?
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इस लेख को देखें : https://vigyanvishwa.in/2010/12/10/timetravel/
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सर जी ये बताईये earth कितनी तरह से घूमती है एक घूर्णन और परिक्रमा लेकिन सूर्य तो बहुत तेजी से galaxy का चक्कर लगता है तो earth और बाकी planets पीछे क्यों नही छूटते
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जब हम कहते है कि सूर्य आकाशगंगा की परिक्रमा करता है, उसका वास्तविक अर्थ पूरे सौर मंडल द्वारा आकाशगंगा की परिक्रमा करना होता है।
किसी बस/ट्रेन मे यात्रा करने के दौरान आप बस/ट्रेन के अंदर भी गति कर सकते है, आप बस/ट्रेन से पीछे छूट नही जाते है।
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धन्यवाद सिर अब ये बातायें की जब राकेट स्पेस में जाता है तो ऊपर जाकर वो कई हिस्सों में अलग हो जाता है बाकी हिस्सों का क्या होता है क्या वो धरती पे गिरते हैं या स्पेस में घूमते रहते हैं
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कुछ भाग धरती पर गिर जाते है, कुछ वातावरण में जल जाते है, कुछ अंतरिक्ष में कचरा बढ़ाते है।
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kya ye lekh aap ko kisi dharma granth se milte julte hain agar haan to wo kis dharm se?
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ये लेख विज्ञान धर्म से है।
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Ye lakh bhut acha hai aage kabhi jiv ke badlte savrup ke bare me bhi kuch jankari dijye ki insan kesa hoga.tanks
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good job
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Yadi Prithvi par jeevan ke utpann hone ka kaaran nirjeev Padarth hai to sajeev aur nirjeev me kya Antar rah jaayega fir to hum kevel ham apne liye sajeev arthaat hum khud ko sajeev mante hai yahi baat hume sajeev banati hai? iska koi pramaan nahi hai?
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AUR BHAGVAN ISWAR ALLAH GOD USKA KYA????
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हम तथाकथित परालौकिक शक्तियो जैसे ईश्वर पर कोई टिप्पणे नही करते है।
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Is duniya me jitne bhi logo ko hum bhagwan, ya god samajhte hai unme se maximum kalpanik hai…. Jaise ki hinduo ke saare bhagwan, allah, etc…… Gautam budda, mahavir jain, Gurunanak ji type log guru the jinhone acchhi shikshaye di…. Inhe guru bhi keh sakte hai aur aap chahe to bhagwan bhi bol sakte hai but in sabhi me koi bhi real god nahi hai……inme se kisi ki wazah se humara janam nahi hua hai…….. God ki khoj hona abhi baki hai……kis cheez se ye jiwan bana kis cheez se itni saari galaxys aur sun bane…… Jis jis cheez se ye sab bana aur paida hua hoga wo hi bhagwan, ishwar, aur god hoga.
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आशीष जी आपका ये लेख बहूत अच्छा और महत्व्पूर्ण है। आगे भी जानकारियां देते रहे .
धन्यवाद
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muje ni lgta ki human earth ki personal h…..qwki niyendarthals jo hamere ancistor mane jate h …..pur wo hmse puri tarh alag the…..kya aapko lagta h ki hme hybride karke bnaya gya h
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आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन – स्वर्गीय सुनील दत्त में शामिल किया गया है। सादर … अभिनन्दन।।
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Ji ha aasheesh ji ap apne har ek post par kuch nayapan late hai ye apki kala hai mai bahut khush hu ki apke hi aathak prayas se hame science se Judi her ek cheese ka behad hi sateek gyan ho gaya thanks aasheesh ji very much ….thanxx again!!!!
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Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
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बहुत ज्यादा मेहनत की है आपने इस लेख पर, धन्यवाद आशीष जी।
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