सौर पाल : भविष्य के अंतरिक्षयानो को सितारों तक पहुंचाने वाले प्रणोदक


सौर पाल(Solar Sail) अंतरिक्ष यानो की प्रणोदन प्रणाली है जोकि तारो द्वारा उत्पन्न विकिरण दबाव के प्रयोग से अंतरिक्षयानो को अंतरिक्ष मे गति देती है। राकेट प्रणोदन प्रणाली मे सीमित मात्रा मे इंधन होता है लेकिन सौर पाल वाले अंतरिक्षयानो के पास वास्तविकता मे सूर्य प्रकाश के रूप मे अनंत इंधन होगा। इस तरह का असीमित मात्रा मे इंधन किसी भी अंतरिक्षयान द्वारा अंतरिक्ष मे खगोलिय दूरीयों को पार कराने मे सक्षम होगा।

यह कैसे कार्य करता है ?

सौर पाल फोटान अर्थात प्रकाश कणो से ऊर्जा ग्रहण करते है जोकि सौर पाल की दर्पण नुमा परावर्तक सतह से टकराकर वापस लौटते है। हर फोटान का संवेग होता है, यह संवेग फोटान के टकराने पर सौर पाल की परावर्तक सतह को स्थानांतरित हो जाता है। हर फोटान अपने संवेग का दुगना संवेग सौर पाल को स्थानांतरित करता है। अरबो की संख्या मे फोटान किसी विशाल सौर पाल से टकराने पर उसे पर्याप्त मात्रा मे प्रणोद प्रदान करने मे सक्षम होते है।

सौर पाल मे प्रयुक्त परावर्तक पदार्थ किसी कागज से 40 से 100 गुणा पतले होते है तथा इस पाल को फैलाने पर वे पाल के लिये निर्मित ढांचे पर दृढ़ रूप से बंध जाते है और अंतरिक्षयान को प्रणोदन देने मे सक्षम होते है। अंतरग्रहीय यात्राओं के लिये सौर पाल का क्षेत्रफल एक वर्ग किमी चाहीये। वर्तमान के सौर पाल वाले अभियानो का आकार बहुत कम है और वे जांच तथा तकनीकी प्रदर्शन के लिये ही बनाये गये है।

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सौर पाल का संक्षिप्त इतिहास

  1. 1610 :गणितज्ञ जोहानस केप्लर ने कहा था कि किसी धूमकेतु की पुंछ सूर्य के कारण निर्मित हो सकती है। उन्होने गैलेलियो को लिखे पत्र मे कहा था कि सूर्य की इस विशिष्ट क्षमता से ग्रहो के मध्य यात्रा करने के लिये यान बनाये जा सकते है।Solarsail2
  2. 1864 :स्काटलैंड के वैज्ञानिक जेम्स क्लार्क मैक्सवेल विद्युतचुंबकीय क्षेत्र तथा विकिरण के सिद्धांत के प्रतिपादक थे। उनके सिद्धांत के अनुसार प्रकाश का संवेग होता है और यह संवेग पदार्थ पर दबाव डालता है। उनके समीकरणो ने सौरपाल के लिये सैद्धांतिक आधार दिया था।solarsail3
  3. 1899 :रूसी वैज्ञानिक पीटर लेबेडेफ़(Peter Lebedev) ने टार्सनल संतुलन द्वारा प्रकाश के दबाव का सफल प्रदर्शन किया था।Solarsail4
  4. 1925: राकेट विज्ञान तथा अंतरिक्षयानो के प्रवर्तक फ़्रेडरिक ज़ेण्डर ने एक शोध पत्र मे सौर पाल की अवधारणा मे विशाल आकार के पतली परत वाले दर्पण तथा सूर्य प्रकाश के दबाव से खगोलिय गति प्राप्त करने का विचार प्रस्तुत किया।solarsail5

solarsail6प्रारंभिक जांच और प्रयास

  1. मैरिनर 10(Mariner 10) :यह बुध ग्रह तक पहुंचने वाला प्रथम यान था तथा इसने उंचाई नियंत्रण करने के लिये सौर दबाव का प्रयोग किया था। इस यान को 1973 मे प्रक्षेपित किया गया था।
  2. झ्नम्या 2(Znmya -2)  : रूसी अंतरिक्ष केन्द्र मिर(Mir) द्वारा 20 मीटर चौड़े विशाल परावर्तक को फैलाया गया था, लेकिन इस प्रयोग मे प्रणोदन की पुष्टि नही हुयी।
  3. एस्ट्रो-एफ़(Astro-F) :2006 मे अकारी अंतरिक्षयान(Akari) के साथ 15 मिटर व्यास के सौर पाल का प्रक्षेपण किया गया था। यह यान कक्षा मे स्थापित हो गया लेकिन सौर पाल फ़ैल ना पाने से अभियान असफ़ल रहा।
  4. नैनोसेल डी(Nanosail-D) – 2008 मे नासा ने स्पेसएक्स फ़ाल्कन 1 यान के साथ एक सोलर पाल प्रक्षेपण का प्रयास किया लेकिन राकेट कक्षा मे नही पहुंच पाया और प्रशांत महासागर मे जा गिरा।
  5. इकारास(IKAROS) :जुन 2010 मे जापान द्वारा प्रक्षेपित यह विश्व का सर्वप्रथम अंतरग्रहीय सौर पाल वाला सफ़ल यान था।
  6. नैनोसेल डी2(Nanosail D2) :  नासा का सौर पाल मे यह द्वितिय प्रयास था और इसे नवंबर 2010 मे प्रक्षेपित किया गया। इस यान ने जनवरी 2011 मे अपने सौर पाल को सफलता पूर्वक फ़ैला दिया।

प्रकाश सौर पाल : 40 वर्षो की निर्माण गाथा

  1. 1976 मे खगोल वैज्ञानिक कार्ल सागन ने विश्व के सामने द जानी कार्सन शो मे सौर पाल वाले अंतरिक्षयान के एक प्रोटोटाईप
    को प्रस्तुत किया।
  2. चार वर्ष पश्चात कार्ल सागन मे लुई फ़्रीडमन तथा ब्रुस मुर्रे के साथ द प्लेनेटरी सोसायटी की स्थापना की जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष अन्वेषण को बढ़ावा देना था।
  3. 2001 तथा 2005 मे द प्लेनेटरी सोसायटी ने कासमस स्टुडियो तथा रशीयन एकेडमी आफ़ साइंसेस के साथ मिलकर दो सौर पाल वाले प्रयोग किये। दोनो असफल रहे।
  4. कार्ल सागन के 75 वे जन्मदिन 9 नवंबर 2009 को द प्लेनेटरी सोसायटी ने तीन प्रयोगो की घोषणा की जिन्हे लाइट्सेल 1,2 तथा 3 नाम दिये गये।
  5. 2010 मे बिल नाय (Bill Nye) द प्लेनेटरी सोसायटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बने, अब वे लाईट्सेल का कार्यभार देखेंगे।
  6. मई 2015 मे नाय ने लाइटसेल -A के लिये राशि जमा करने का अभियान आरंभ किया, इसे अब तक 12 लाख की राशि दान मे मिली है।
  7. 8 जुन 2015 को लाइट्सेल A सफलता पुर्वक कक्षा मे स्थापित हो गया और अपनी सौर पाल को फैलाने मे सफ़ल रहा। यह द प्लेनेटरी सोसायटी के लिये ऐतिहासिक क्षण था।
  8. अप्रैल 2016 मे द प्लेनेटरी सोसायटी लाइट सेल 1 प्रक्षेपित करने जा रहा है जोकि उनका पहला पूर्ण आकार का सौर पाल अंतरिक्षयान होगा। पाल को फैलाने पर उसका आकार 32 मिटर होगा, इसका आकार इतना है कि इसे पृथ्वी से देखा जा सकेगा।

सौर पाल क्यों ?

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सौर पाल के साथ आप सैद्धांति रूप से लंबी दूरी कम समय मे तय कर सकते है।

निल डीग्रेस टायसन – खगोलभौतिक वैज्ञानिक

हालांकि सूर्यप्रकाश से मिलने वाला धक्का अत्यंत कम होता है लेकिन यह धक्का लगातार होता है। हम चंद्रमा और उसके आगे अत्यंत कम लागत मे जा सकते है।

बिल नाय मुख्य कार्यकारी अधिकारी द प्लेनेटरी सोसायटी

इसमे स्थायी त्वरण होता है जिससे यह सौर मंडल के आंतरिक भाग मे राकेट इंजन की तुलना मे अधिक गति से और अधिक सरलता से जा सकता है।

कार्ल सागन संस्थापक द प्लेनेटरी सोसायटी

यदि सौर पाल का विचार गति लेता है और सफ़ल सिद्ध होता है तो यह अंतरिक्षयानो के डिजाईन और निर्माण मे मूलभूत क्रांतिकारी परिवर्तन होगा। 50 किग्रा हायड्रजिन के इंधन टैक को केंद्र मे रखकर अंतरिक्षयान को डिजाइन करने की बजाये आप अंतरिक्षयान और उसके अन्य उपकरणो का डिजाइन करेंगे जिसे अनंत प्रणॊदन उपलब्ध होगा।

नाथन बर्नेस अध्यक्ष L’Garde.

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ग्राफिक्स स्रोत : https://futurism.com

मूल ग्राफिक्स कॉपी राइट : https://futurism.com

लेख सामग्री : विज्ञान विश्व टीम

 

 

14 विचार “सौर पाल : भविष्य के अंतरिक्षयानो को सितारों तक पहुंचाने वाले प्रणोदक&rdquo पर;

  1. आशीष जी आपका(या इसे हमारा भी कह सकते है ) विज्ञान विश्व हमारे जैसे विज्ञान का अल्प ज्ञान रखने वालो के लिए तो किसी मरुस्थल में सरोवर जैसा है ,आपके श्रमपूर्वक लिखे गए अत्यंत सरल एवं सुगम भाषा के आलेख लगतार हमारे विज्ञान के ज्ञान को एक सीमा तक विस्तृत करते जा रहे हैं , इसके लिए आपका सदैव आभार रहेगा।
    आपको कुछ कठिनाइयों से अवगत करना चाहता हूँ ,आपका एक अत्यंत रोचक लेख है “तारो की अनोखी दुनिया” मैंने उस पर टिप्पड़ी की थी और कुछ प्रश्न भी मन में थे जो किये थे , किन्तु वो कहीं भी प्रदर्शित नहीं हो रहे अभी तक , यह पहली बार नहीं है ऐसा पहले भी कई बार हो चूका है , कृपया इस समस्या का कुछ समाधान करें ,पता नहीं मेरी यह टिप्पड़ी भी पोस्ट होगी अथवा नहीं होगी .
    और आपकी यह सौर पाल वाला लेख मैंने “आविष्कार युग ” ब्लॉग पर देखा है बिलकुल इस लेख की प्रति , आपको लिंक भेज रहा हूँ .
    http://avishyug.blogspot.in/2016_03_01_archive.html

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    1. राहुल, टिप्पणियों के प्रकाशन में समस्याएं है। दूर करने का प्रयास जारी है। आपने जो लिंक दी है उसमें सारे लेख विज्ञानं विश्व से कापी है। 😊

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    1. प्रायोगिक रूप से जांचा जा चूका है लेकिन पूरे आकार में नहीं बनाया गया है। इस पाल का आकार कई किलोमीटर होना चाहिए।

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    1. स्पेस स्टेशन पृथ्वी की परिक्रमा करते रहता है। स्पेश स्टेशन के यात्रियों का खाना पीना सल में कई बार भेजा जाता है।

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  2. सर संवेग और घनत्व क्या होता है ? ये होते क्या है ?अर्थात जेसे किसी पिंड कितनी तेजी चल रहा है उसे पिंड की गति कहते है वेसे ही ये घनत्व और संवेग क्या है

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    1. किसी वस्तु के द्रव्यमान व वेग के गुणनफल को संवेग कहते हैं: संवेग एक सदिश राशि है क्योंकि इसका एक परिमाण होता है और एक दिशा भी होती है। एक संबंधित राशि कोणीय संवेग है। संवेग एक संरक्षित राशि है। अर्थात किसी वियुक्त निकाय में कुल संवेग स्थिर रहता है।
      भौतिकी में किसी पदार्थ के इकाई आयतन में निहित द्रव्यमान को उस पदार्थ का घनत्व कहते हैं। इसे ρ या d से निरूपित करते हैं। अर्थात अतः घनत्व किसी पदार्थ के घनेपन की माप है।

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  3. सर आप एक android app बनाइये। जिसमे ये सब हो हिंदी में। मै आपका सारा लेख पडता हूँ। बहुत ही अच्छा ज्ञानवर्धक बात होती है इसमे।

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    1. Ancient Aliens एक वाहियात और बकवास कार्यक्रम है जिसे विज्ञान के क्षेत्र में कोई गंभीरता से नहीं लेता है। उसमे आनेवाले किसी भी तथाकथित विशेषज्ञ के पास विज्ञान या पुरातत्व की डीग्री नहीं है। वे तथ्य नहीं देते है केवल अफवाह फैलाते है, उलटे सीधे निष्कर्ष निकालते है।
      कोई भी विश्वसनीय वैज्ञानिक इस कार्यक्रम में नहीं आता है।
      हिस्ट्री चैनल और फॉक्स टीवी दोनों भारत के इण्डिया टीवी जैसे है जो केवल सनसनी और अफवाह फैलाते है।

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  4. मे हमेसा से सोचता हु की क्या हम अपने शरीर को ऊर्जा मे बदल कर प्रकास के वेग से कही भी भेज सकते है फिलाल विज्ञान कहता है की प्रकास से तेज कुछ भी नही चलता लेकिन मुझे लगता ह की कुछ ऐसा जरूर ह जो प्रकास से भी तेज चलता है अब नही तो सायद आने वाले दिनों मे वैज्ञानिक ढूंढ ही लेंगे मेरा सवाल ये ह की आप के अनुभव के हिसाब हम कब तक दूसरे तरो पर पहुचने की युक्ति ढूंढ लेंगे क्योकि विज्ञान इंसान की सोच से भी 10 गुना तेज तरक्की कर रहा ह

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