बिजली(तडित पात) : 1 मिनट मे 28 बार!


300px-Lightnings_sequence_2_animationकहते तो ये हैं कि आसमान में बिजली(तड़ित) एक जगह पर दो बार नहीं चमकती। लेकिन आपको जानकर अचरज होगा कि दक्षिण अमरीकी देश वेनेज़ुएला की एक झील के ऊपर किसी भी तूफ़ानी रात को एक घंटे में हज़ारों बार बिजली चमकती है।

इस हैरान करने वाले ‘करिश्मे‘ को “बीकन ऑफ़ मैराकाइबो” या “कैटाटुम्बो लाइटनिंग” या “ड्रैमैटिक रोल ऑफ़ थंडर” या फिर “एवरलास्टिंग स्ट्रॉर्म” के नाम से जाना जाता है। नाम रखने में अतिशयोक्ति भी हो सकती है लेकिन हक़ीक़त यही है कि वेनेज़ुएला में कैटाटुम्बो नदी जहां मैराकाइबो झील में मिलती है, उस स्थान पर औसतन साल में 260 दिन तूफ़ान आते हैं। इन 260 दिनों की तूफ़ानी रातों में रात भर बिजली चमकती रहती हैं। नौ घंटे की रात के दौरान हजारों बार बिजली चमकने के साथ आसमान में बादलों की गड़गड़ाहट सुनाई पड़ती है।

तूफ़ानी रातों में बिजली का चमकना कोई ख़ास बात तो नहीं है लेकिन विषुवत के पास जहां तापमान ज़्यादा होता है, वहां आसमान में सालों भर गड़गड़ाहट देखने को मिलती है।

क्या आप जानना चाहते है कि इस समय कहाँ पर बिजली चमक रही है ? इस लिंक पर क्लिक करें : यह लिंक वास्तविक समय मे आपको सारे विश्व मे कहाँ तडित चमक रही है दिखायेगी। http://wwlln.net/new/map/
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मध्य अफ्रीकी देश डीआर कांगो को तूफ़ानी रातों की राजधानी कहते हैं। यहां के पहाड़ी गांव किफूका में प्रत्येक साल प्रति वर्ग किलोमीटर में 158 बार बिजली चमकती है। पहले इसे दुनिया का सबसे ज़्यादा बिजली चमकने वाला स्थान माना जाता था। नासा के आधिकारिक आकंड़ों के मुताबिक़ 2014 में पूर्वी भारत की ब्रह्मपुत्र घाटी में औसतन अप्रैल से मई के बीच हर महीने में दुनिया में सबसे ज़्यादा बिजली चमकती है।

लेकिन वेनेज़ुएला की झील मैराकाइबो का नाम सबसे ज़्यादा बिजली चमकने वाले स्थान के तौर पर गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हो गया है। यहां प्रत्येक साल प्रत्येक किलोमीटर 250 बार बिजली चमकती है। जनवरी और फ़रवरी के महीने में इसकी संख्या कम हो जाती है लेकिन अक्तूबर के बरसात के मौसम में यह संख्या बहुत ज़्यादा हो जाती है। बरसात के मौसम में औसतन प्रति मिनट 28 बार तक बिजली चमकती है।इस इलाक़े में बिजली चमकने की वजहों के बारे में जानने के लिए विशेषज्ञ सालों से अध्ययन में जुटे हैं। 1960 के दशक में माना गया था कि इस इलाक़े में यूरेनियम की मात्रा ज़्यादा होती है इसलिए वहां आकाश में बिजली ज़्यादा चमकती है। हाल में, वैज्ञानिकों के अध्ययन के मुताबिक़ झील के पास के तेल क्षेत्रों में मीथेन की ख़ासी मात्रा होने के चलते आकाश में ज़्यादा बिजली चमकती है।

हालांकि इन दोनों ही बातों को सिद्धांत के तौर पर नहीं माना जा सकता है।

ग्लोबल हायड्रोलॉजी एंड क्लाइमेट सेंटर की लाइटनिंग टीम के डॉ. डेनियल सेसिल कहते हैं,

“उन इलाक़ों में ज़्यादा बिजली चमकती है जहां पर्वतीय ढलान और समुद्रतटीय मोड़ हो।”

उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों पर तडितपात नही होता है।
उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों पर तडितपात नही होता है।

वेनेजु़एला के उत्तर पश्चिम में दक्षिण अमरीका की सबसे लंबी झील, मैराकाइबो शहर से गुजरते हुए कैरेबियाई सागर में मिलती है। यह तीन ओर से एंडीस पर्वत श्रृंखला से घिरा है। दिन में सूर्य की रोशनी में झील का पानी भाप बनता है और रात होते हैं समुद्री हवाओं का झोंका पर्वतीय श्रृंखला के साये में गर्म हवा को ठंडी हवा में बदलने की कोशिश करता है। ऐसे में 12 किलोमीटर यानी 39,000 फ़ीट की ऊंचाई तक के बादल बन जाते हैं। इन बादलों के अंदर गर्म हवा के कण ऊपर बढ़ना चाहते हैं और इस दौरान ठंडी हवाओं के क्रिस्टल से वे टकराते हैं और इससे बिजली की चमक पैदा होती है। बादलों के बीच होने वाली टकराहट इतनी ज़ोरदार होती है कि इससे पैदा होने वाली बिजली सूर्य की सतह से तीन गुना गर्म होती है। इस दौरान तेज़ गड़गड़ाहट की आवाज़ भी उत्पन्न होती है। तेज़ आवाज़ और बिजली की चमक के साथ तेज़ बारिश भी होती है।

वेनेज़ुएला में चमकने वाली बिज़ली में इतनी ज़्यादा चमक होती है यह 400 किलोमीटर की दूरी से भी दिखाई देती है। इसको लेकर तमाम तरह की किवदंतियां भी हैं लेकिन आंखों से देखने वाले लोगों का मानना है कि आसमान बहुरंगी रोशनी में नहाया हुआ प्रतीत होता है।

 

विद्युत तड़ित का तापमान 27,727°C तक हो सकता है।
विद्युत तड़ित का तापमान 27,727°C तक हो सकता है।

आपको अचरज हो रहा होगा कि इस इलाक़े में बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक को लेकर इतनी ज़्यादा जानकारी कैसी एकत्रित की जा रही है। दरअसल आधुनिक तकनीक के ज़माने में क़रीब 402.5 किलोमीटर की दूरी से भी आसमान में होने वाली इस घटना पर नज़र रखना संभव है। वैसे भी नासा और जापान की एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी ने आपस में मिलकर उष्णकटिबंधीय इलाक़े में वर्षा मापने का मिशन 17 साल से शुरू किया हुआ है।

इस मिशन के उपकरणों में ही लाइटनिंग इमेज सेंसर मौजूद है जो आसमान में चमकने वाली बिजली को रिकॉर्ड करता है। इन आकंड़ों के आधार पर ही वैज्ञानिक दुनिया भर के आसमान को बिजली चमकने के पहलू में मैप कर पाते हैं।
आने वाले दिनों में बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक को लेकर और भी जानकारी मिलने की उम्मीद है। डॉ. डेनियल सेसिल कहते हैं,

“अगले कुछ सालों में विभिन्न भू स्थिर उपग्रहों पर भी लाइटनिंग मैपिंग उपकरण लगाने की योजना है। इससे हमें आसमान पर लगातार नज़र रखने में मदद मिलेगी।”

दरअसल तूफ़ान और बिजली की चमक को लेकर विस्तृत अध्ययन की ज़रूरत इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि दुनिया भर की आबादी बढ़ रही है और ख़ासकर विकासशील देशों में लोगों को बिजली गिरने की स्थिति में बचाने की ज़रूरत महसूस हो रही है। इनके अलावा वर्ल्ड वाइड लाइटनिंग लोकेशन नेटवर्क (डब्ल्यू-डब्ल्यू-एल-एल-एन) भी इस पहलू पर अध्ययन कर रहा है और इसके लिए 70 विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानो में बिजली छवि संवेदक( लाइटनिंग इमेज़ सेंसर) के माध्यम से अध्ययन किया जा रहा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन के इस नेटवर्क के प्रोफेसर रॉबर्ट एच. होल्ज़वर्थ कहते हैं,

“इस प्रणाली के ज़रिए दुनिया भर की तस्वीर को एक साथ देखा जा सकता है। इसे कोई उपग्रह प्रणाली नहीं कर सकती है। हालांकि इसके लिए बिजली की चमक तेज़ होनी चाहिए। सेटेलाइट द्वारा रिकॉर्डेड हर चमक को हम रिकॉर्ड नहीं कर सकते।”

वैसे वर्ल्ड वाइड लाइटनिंग लोकेशन नेटवर्क बिजली की चमक का वास्तविक समय मानचित्र भी तैयार करता है।

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तड़ित (Lightning) या “आकाशीय बिजली” वायुमण्डल में विद्युत आवेश का डिस्चार्ज होना (एक वस्तु से दूसरी पर स्थानान्तरण) और उससे उत्पन्न कड़कड़ाहट (thunder) को तड़ित कहते हैं। संसार में प्रतिवर्ष लगभग 1 करोड़ 60 लाख तड़ित पैदा होते हैं।

तड़ित प्राय: कपासीवर्षी (cumulonimbus) मेघों में उत्पन्न होती है। इन मेघों में अत्यंत प्रबल ऊर्ध्वगामी पवनधाराएँ चलती हैं, जो लगभग ४०,००० फुट की ऊँचाई तक पहुँचती हैं। इनमें कुछ ऐसी क्रियाएँ होती हैं जिनके कारण इनमें विद्युत्‌ आवेशों की उत्पत्ति तथा वियोजन होता रहता है।

बिजली (तड़ित ) कैसे बनती है?

तड़ित की जननप्रक्रिया मेघों में होती है और इसके लिये उन मेघों में विद्यमान हिमकण आदि अवक्षेपण कण (precipitation particles), ही उत्तरदायी होते हैं। बादलों में विद्युद्वितरण के संबंध में इनके ऊपरी स्तर धनाविष्ट तथा मध्य और निम्नस्तर ऋणाविष्टि होतें हैं। इन आवेशों का विभाजन मेघों के अंदर शून्य डिग्री सें० तापवाले स्तरों के भी काफी ऊपर होता है। इससे यह निष्कर्ष सहज ही प्राप्त होता है कि आवेशविभाजन मेघों में बननेवाले हिमकणों तथा ऊर्ध्वगामी पवनधाराओं से ही होता है, जल की बूँदों से नहीं। कभी-कभी निम्न स्तर में भी कहीं-कहीं धनावेशों का एक केंद्र सा बन जाता है।

बादलों के निम्न स्तरों पर ऋणवेश उत्पन्न हो जाने के कारण नीचे पृथ्वी के तल पर प्रेरण द्वारा धनावेश उत्पन्न हो जाते हैं। बादलों के आगे बढ़ने के साथ ही पृथ्वी पर के ये धनावेश भी ठीक उसी प्रकार आगे बढ़ते जाते हैं। ऋणावेशों के द्वारा आकर्षित होकर भूतल के धनावेश पृथ्वी पर खड़ी सुचालक या अर्धचालक वस्तुओं पर ऊपर तक चढ़ जाते हैं। इस विधि से जब मेघों का विद्युतीकरण इस सीमा तक पहुँच जाता है कि पड़ोसी आवेशकेंद्रों के बीच विभव प्रवणता (potential gradient) विभंग मान तक पहुँच जाती है, तब विद्युत्‌ का विसर्जन दीर्घ स्फुलिंग के रूप में होता है। इसे तड़ित कहते हैं। पृथ्वी की ओर आनेवाली तड़ित कई क्रमों में होकर पहुँचती है। बादलों से इलेक्ट्रानों का एक हिल्लोल १ माइक्रो सेकंड (1x10E-6 सेकंड) में 50 मीटर नीचे आता है और रुक जाता है। लगभग 50 मा० से० के पश्चात्‌ दूसरा क्रम आरंभ होता है और इसी प्रकार कई क्रमों मे होकर अंत में यह तरंग पृथ्वी तक पहुँचती है। इसे प्रमुख आघात (Leader stroke) कहते हैं। अपने उद्गमस्थल से पृथ्वी तक पहुँचने में इसे कुल 0.002 सेकंड तक का समय लगता है।

उपर्युक्त तथ्य शॉनलैंड (Schonland) तथा उनके सहयोगियों द्वारा अत्यंत सुग्राही कैमरे की सहायता से लिए गए चित्रो से प्रकट हुए थे। उन्ही चित्रो के क्रम पर यह भी दिखलाई पड़ा कि प्रमुख क्रम (step leader) के पृथ्वी पर पहुँचने के क्षण ही एक अत्यंत तीक्ष्ण ज्योति पृथ्वी से मेघों की ओर उन्हीं क्रमों में होकर गई जिनसे होकर प्रमुख क्रम आया था। इसे प्रतिगामी आपात (Return stroke) कहते हैं। जहाँ प्रमुख क्रम का औसत वेग 105 मीटर प्रति सेकंड होता है वहीं प्रतिगामी आधात (return stroke) का वेग 107 मीटर प्रति सेकंड होता है, क्योंकि उसका मार्ग पहले से ही आयनित (ionized) होने के कारण प्रशस्त रहता है।
उपर्युक्त प्रमुख और प्रतिगामी आघातों के बाद भी कई आघात क्रमश:- नीचे और ऊपर की ओर आते-जाते दिखलाई पड़ते हैं। ये द्वितीयक आघात (Secondary strokes) कहलाते हैं। नीचे आनेवाले ये द्वितीयक आघत प्रमुख आघात की भाँति क्रमों में नहीं आते।

तड़ित के प्रकार

सामान्यतया तड़ित तीन प्रकार की होती है:

  1.  विस्तृत (Sheet) तड़ित काफी विस्तृत क्षेत्र पर होती है और इसका अविरल प्रकाश बादलों पर काफी दूर तक फैल जाता है।
  2. धारीदार या रेखावर्ण (Streak) तड़ित अक्सर दिखलाई पड़ती है। इसमें एक या अधिक प्रकाशरेखाएँ, सीधी या टेढ़ी इधर-उधर दौड़ती हुई दृष्टिगोचर होती हैं। इसमें विद्युद्विसर्जन बादल से बादल में, बादल से धरती में अथवा बादल से वायुमंडल के बीच होता। यह तड़ित स्वयं तीन प्रकार की हो सकती है
    • मनकामय (Beaded), जिसमें तड़ित के पूरे मार्ग में प्रकाश कहीं कम रहता है और कहीं-कहीं सघन प्रकाश के केद्र बन जाते हैं और घुंडियों सघ्श दिखलाई पड़ते हैं,
    •  द्विशाखित (Forked), जिसमें दो शाखाएँ विभिन्न दिशाओं को जाती हुई दिखलाई पड़ती हैं और
    • उष्मा तड़ित, जो बहुत दूर पर होनेवाला विद्युद्विसर्जन है, जहाँ से आवाज नहीं पहुँच पाती।
  3. गेंद (Ball) तड़ित एक ज्योतिर्मय गेंद की भाँति पृथ्वी की और आती हुई दिखलाई पड़ती है। इसका औसत व्यास २० सेंमी० होता है। ज्यों-ज्यों वह पृथ्वी की ओर अग्रसर होती है, इसका वेग घटता जाता है। लगभग तीन से पाँच सेकंड तक दिखलाई पड़ने के उपरांत वह अत्यंत प्रचंड ध्वनि के साथ विस्फोटित हो जाती है। यह बहुत ही कम दिखलाई पड़ती है और इसकी उत्पत्ति का कारण अज्ञात है।

स्रोत : http://www.bbc.com/earth/story/20150810-the-most-electric-place-on-earth

 

21 विचार “बिजली(तडित पात) : 1 मिनट मे 28 बार!&rdquo पर;

  1. लेकिन सर अप्रत्यास्थ टक्कर मे गतिज ऊर्जा सरंक्षित नही रहती बल्कि संवेग सरंक्षण का नियम लागू होता है।इसलिए हानि तो होनी चाहिए?

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    1. गोवर्धन मै वही कह रहन हूँ क़ि किसी भी प्रक्रिया चाहे वह भौतिक प्रक्रिया जैसे टकराना, या रासायनिक प्रक्रिया, या नाभिकीय प्रक्रिया में ऊर्जा का ह्रास नहीं होता है, कुल ऊर्जा वही रहती है जो पहले थी। दो गेंदों के टकराने में कुछ ऊर्जा ऊष्मा के रूप में परिवर्तित होती है जिसे ऊर्जा की हानी के रूप में मन सकते हो , हालाँकि वह भी ऊर्जा ही है।

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  2. सर ऊर्जा का अविनाशिता का नियम कहता है कि ऊर्जा को न ही उत्पन्न कर सकते है और न ही नष्ट। इसे हम एक रूप से दूसरे रूप मे परिवर्तित कर सकते है अर्थात ऊर्जा अविनाशी है।

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  3. नही सर आपने गलत उत्तर दिया है क्योकि अप्रत्यास्थ टक्कर मे हमेशा ऊर्जा की हानि होती है।सर मै B.sc. करता हुॅ।आज ही आपके उत्तर के बाद मैने विज्ञान के प्रोफेसर से पुछा।अब आप ही विस्तार से बताये।सर आकाश मे पिण्डो की टक्कर अप्रत्यास्थ ही होती है।

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    1. शून्य! किसी भी प्रक्रिया मे ऊर्जा की हानि शून्य होती है। ऊर्जा उष्मा के रूप मे व्यर्थ हो सकती है, गतिज ऊर्जा के रूप मे परिवर्तित हो सकती है लेकिन उसकी हानि(नष्ट) नही होगी।

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    1. आसमान की बिजली की मात्रा (वोल्टेज) अत्यधिक होती है, उसे नियंत्रित कर पाना कठिन है। साथ ही उसका स्थान और समय स्थिर नहीं है जिससे उसे संग्रह या प्रयोग कर पाना प्रायोगिक रूप से कठिनहै।

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      1. sir i want to know that is lightning is a d.c or a.c type or how energy is stored can we store a.c and d.c both if yes then why we can not store this energy and if there is anything wrong in intrupting in this lightning or natural processess which later can causes natural disaster please answer my question?

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    1. गुरुत्वाकर्षण से तारो/ग्रहों का सारा पदार्थ पृथ्वी के केंद्र की ओर खिंचा जाता है और उससे इन पिंडो को गोलाकार मिलाता है। केवल गोल ही ऐसा आकार होता है जिसमे उस पिंड के सभी बिंदु गुरुत्वाकर्षण केंद्र से समान दूरी पर होते है।

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