किसी घूर्णन करते हुये श्याम वीवर द्वारा घुर्णन अक्ष की दिशा मे इलेक्ट्रान जेट का उत्सर्जन किया जा सकता है, जिनसे रेडीयो तरंग उत्पन्न होती है।

श्याम विवर: 10 विचित्र तथ्य


श्याम विवर या ब्लैक होल! ये ब्रह्मांड मे विचरते ऐसे दानव है जो अपनी राह मे आने वाली हर वस्तु को निगलते रहते है। इनकी भूख अंतहीन है, जितना ज्यादा निगलते है, उनकी भूख उतनी अधिक बढ़्ती जाती है। ये ऐसे रोचक विचित्र पिंड है जो हमे रोमांचित करते रहते है। अब हम उनके बारे मे काफ़ी कुछ जानते है लेकिन बहुत सारा ऐसा कुछ है जो हम नही जानते है।

आईये देखते है, ऐसे ही दस अनोखे तथ्य जो शायद आप ना जानते हो!

1. श्याम विवर को शक्ति उनके द्रव्यमान से नही उनके आकार से मिलती है।

इस तथ्य पर विचार करने से पहले श्याम विवर को समझते है। किसी श्याम विवर के बनने का सबसे सामान्य तरिका किसी महाकाय तारे का केंद्रक का अचानक संकुचित होना है। इन महाकाय तारों मे एक साथ दो बल कार्य करते रहते है, उनका गुरुत्वाकर्षण तारे को संकुचित करने का प्रयास करते रहता है। संकुचन के कारण उष्मा उत्पन्न होती है और यह उष्मा इतनी अधिक होती है कि तारे के केंद्रक मे हायड्रोजन के नाभिक आपस मे जुड़कर हिलियम बनाना प्रारंभ करते है। हायड्रोजन से हिलियम बनने की प्रक्रिया को नाभिकिय संलयन कहते है। इस संलयन प्रक्रिया से भी उष्मा उत्पन्न होती है। हम जानते है कि उष्ण होने पर पदार्थ फ़ैलता है। गुरुत्वाकर्षण से संकुचन, संकुचन से उष्मा, उष्मा से संलयन, संलयन से उष्मा, उष्मा से फैलाव का एक चक्र बन जाता है। गुरुत्वाकर्षण से संकुचन और संलयन से फ़ैलाव का एक संतुलन बन जाता है और तारे अपने हायड्रोजन को जला कर हिलियम बनाते हुये इस अवस्था मे लाखो, करोड़ो वर्ष तक चमकते रहते है।

जब तारे का इंधन समाप्त हो जाता है तब यह संतुलन बिगड़ जाता है। इस अवस्था मे एक सुपरनोवा विस्फोट होता है, जिसमे तारे की बाह्य सतहे दूर फ़ेंक दी जाती है और केंद्र अचानक तेज गति से संकुचित हो जाता है। इस संकुचित केंद्र का गुरुत्वाकर्षण बढ़ जाता है। यदि तारे के संकुचित होते हुये केंद्रक का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से तीन गुणा हो तो उसकी सतह पर गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक हो जाता है कि पलायन वेग प्रकाश गति से भी अधिक हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि इस पिंड के गुरुत्वाकर्षण से कुछ भी नही बच सकता है, प्रकाश भी नही। इसकारण यह पिंड काला होता है।

श्याम विवर के आसपास का वह क्षेत्र जहां पर पलायन वेग प्रकाशगति के बराबर हो घटना क्षितिज(Event Horizon) कहलाता है। इस सीमा के अंदर जो भी कुछ घटित होता है वह हमेशा के लिये अदृश्य होता है।

अब हम जानते है कि श्याम विवर कैसे बनते है। अब हम जानते है कि इनका गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव इतना अधिक क्यों होता है।

गुरुत्वाकर्षण दो चिजो पर निर्भर करता है, पिंड का द्रव्यमान तथा उस पिंड से दूरी। तारे का केंद्रक का द्रव्यमान स्थिर है, बस वह संकुचित हुआ है। द्रव्यमान स्थिर है, तो इसका अर्थ यह है कि उसका गुरुत्वाकर्षण भी स्थिर है। लेकिन संकुचित केंद्रक का आकार कम हो गया है, अर्थात कोई अन्य पिंड उस संकुचित केंद्रक अधिक समीप जा सकता है। कोई अन्य पिंड उस संकुचित केंद्रक के जितने ज्यादा समीप जायेगा उसपर संकुचित केंद्र का गुरुत्वाकर्षण उतना अधिक प्रभावी होगा। और एक दूरी ऐसी भी आयेगी जब उसका गुरुत्वाकर्षण इतना प्रभावी हो जायेगा कि वह पिंड संकुचित केंद्र की चपेट मे आ जायेगा। श्याम विवर के मामले मे ऐसा होता है कि संकुचित केंद्र इतना ज्यादा संकुचित हो जाता है कि घटना क्षितिज की सीमा के अंदर प्रकाश कण भी श्याम विवर के गुरुत्वाकर्षण की चपेट मे आ जाते है।

इस सब का अर्थ यह है कि श्याम विवर का द्रव्यमान मायने नही रखता है, उस द्रव्यमान का एक छोटे से हिस्से मे संकुचित होना महत्वपूर्ण है। क्योंकि एक छोटे क्षेत्र मे द्रव्यमान आपको उसके अधिक समीप जाने का अवसर प्रदान करता है, और दूरी के कम होने पर गुरुत्वाकर्षण अधिक प्रभावी होते जाता है।

मान लिजिये कि अचानक सूर्य एक श्याम विवर मे परिवर्तित हो जाये तो पृथ्वी का क्या होगा ? क्या उसकी परिक्रमा रूक जायेगी ? या पृथ्वी इस श्याम विवर मे समा जायेगी ?

इस उदाहरण मे पृथ्वी पर कोई असर नही होगा क्योंकि सूर्य का द्रव्यमान वही है, गुरूत्वाकर्षण भी वही होगा। दूरी मे कोई अंतर नही आया है जिससे पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव भी वही रहेगा। पृथ्वी उसी तरह से परिक्रमा करते रहेगी। यह बात और है कि सूर्य से उष्मा नही मिल पाने से हम सभी शीत के कारण समाप्त हो जायेंगे।

2. श्याम विवर अनंत रूप से छोटे(infinitely smal) नही होते है।

श्याम विवर आकार मे छोटे होते है लेकिन कितने छोटे होते है? क्या वे गणितिय बिंदु के समान शून्य आयाम(शून्य लंबाई, चौड़ाई और उंचाई) के बिंदु होते है ?

हमने इस लेख मे देखा है कि ताराकेंद्रक संकुचित होते जाता है। यह ताराकेंद्रक गणितिय रूप से अनंत तक छोटा होता जाता है। लेकिन इसका घटना क्षितिज (वह सीमा जिस पर पलायन वेग प्रकाशगति के तुल्य हो) निश्चित रहता है।

ताराकेंद्रक का क्या हुआ ? उसके द्रव्यमान का क्या हुआ?
इस प्रश्न का शर्तिया उत्तर हमारे पास नही है। हम घटना क्षितिज सीमा के अंदर नही झांक सकते और श्याम विवर से बाहर कोई सुचना आयेगी नही। लेकिन हमारे गणित है, इस गणित को हम संकुचित होते हुये केंद्र पर लगा सकते है, उस समय भी जब श्याम विवर घटना क्षितिज से भी छोटा हो।

संकुचित होता हुआ ताराकेंद्र संकुचित होते जायेगा, उसके साथ उसका गुरुत्विय प्रभाव बढ़ता जायेगा। जितना गुरुत्विय प्रभाव बढ़ेगा, ताराकेंद्र उतना छोटा होते जायेगा। छोटा, और छोटा, और छोटा…… एक ज्यामितिय बिंदू के बराबर जिसकी लंबाई, चौड़ाई और उंचाई शून्य होती है !लेकिन क्या यह संभव है ? नही यह संभव नही है!

एक समय ऐसा आयेगा कि यह ताराकेंद्रक एक परमाणु से छोटा हो जायेगा, उसके पश्चात परमाणु नाभिक से छोटा, उसके पश्चात इलेक्ट्रान से भी छोटा। अंत मे वह एक ऐसे आकार तक पहुंचेगा जिसे प्लैंक लंबाई(Plank Length) कहते है। यह एक ऐसी इकाई है जिसका क्वांटम मेकेनिक्स मे उल्लंघन संभव नही है। प्लैंक लंबाई क्वांटम आकार की सीमा है, कोई भी वस्तु इससे छोटी नही हो सकती है। यदि यह मान भी लिया जाये कि कोई वस्तु इससे छोटी है, तब ब्रह्माण्ड के मूलभूत नियमो के अनुसार उसका मापन असंभव है। यदि किसी लंबाई के मापन को ब्रह्मांडीय नियम ही रोक दे तब उस लंबाई का कोई अर्थ ही नही है। अर्थात श्याम विवर प्लैंक लंबाई से छोटे नही हो सकते है।

प्लैंक लंबाई कितनी होती है ? अत्यंत कम: लगभग 10-35 मीटर!

यदि आपसे कोई कहे कि श्याम विवर का आकार शून्य होता है, तब आप उससे कह सकते है कि आप सत्य के समीप है लेकिन सही नही है।

3.श्याम विवर गोलाकार होते है, वे कीप(funnel) आकार के नही होते है।

यह छवि श्याम विवर द्वारा काल-अंतराल मे उत्पन्न विकृति को समझाने के लिये है, लेकिन श्याम विवर इस आकार के नही होते है।
यह छवि श्याम विवर द्वारा काल-अंतराल मे उत्पन्न विकृति को समझाने के लिये है, लेकिन श्याम विवर इस आकार के नही होते है।

हमने इस लेख मे पहले ही देखा है कि किसी पिंड गुरुत्वाकर्षण दो बातो पर निर्भर है, द्रव्यमान और उस पिंड से दूरी। इसका अर्थ यह है कि किसी महाकाय पिंड से किसी दूरी (मानले एक लाख किमी) स्थित व्यक्ति पर पड़ने वाला प्रभाव समान होगा। यह दूरी तीनो आयामो मे एक गोलाकार आकृति बनायेगी। इस गोलाकार आकृति की सतह पर किसी भी बिंदु पर किसी व्यक्ति को समान गुरुत्वाकर्षण महसूस होगा।

घटना क्षितिज का आकार भी श्याम विवर के गुरुत्वाकर्षण पर निर्भर है, अर्थात श्याम विवर को घेर हुये घटना क्षितिज भी गोलाकार होगा। बाहर से आप देखेंगे तो आपको घटना क्षितिज काले रंग का गोला नजर आयेगा।

कुछ व्यक्तियों को लगता है कि श्याम विवर वृत्त के आकार का द्विआयामी या इससे भी गलत कीप(funnel) के आकार का होता है। यह गलतफहमी वैज्ञानिको द्वारा गुरुत्वाकर्षण को अंतरिक्ष मे आयी वक्रता के रूप से दर्शाकर समझाने उत्पन्न हुयी है। वैज्ञानिक गुरुत्वाकर्षण को समझाने के लिये तीन आयामो को दो आयाम मे बदल देते है और अंतरिक्ष को एक चादर के जैसे दर्शाते है, जोकि एक महाकाय पिंड के द्रव्यमान से वक्र हो जाता है। लेकिन अंतरिक्ष तीन आयामो का है और आप समय को भी जोड़ ले तो चार आयाम का है। जिससे चादर वाली व्याख्या आम जन को भ्रमित कर देती है, लेकिन गुरुत्वाकर्षण को समझाने इससे बेहतर उदाहरण भी नही है। बस थोड़ी सावधानी बरतें।

4. श्याम विवर भी घूर्णन करते है।

यह विचित्र लग सकता है लेकिन श्याम विव भी घूर्णन करते है। तारे घूर्णन करते है, जब ताराकेंद्र संकुचित होता है तब उसकी घूर्णन की गति आकार के कम होने के साथ बढ़ते जाती है। यह कुछ वैसे ही है जब कोई स्केटींग द्वारा घूर्णन कर रहा व्यक्ति अपनी बाहें शरीर के पास लाता है तो उसकी घूर्णन गति बढ़ जाती है। यदि ताराकेंद्रक मे श्यामविवर बनने लायक द्रव्यमान ना हो तो वह कुछ किमी व्यास का न्युट्रान तारा बन जाता है। तेजी से घूर्णन करते हुये न्युट्रान तारो के अनेक उदाहरण हम लोगो ने अंतरिक्ष मे देखे है जोकि एक सेकंड मे सैकड़ो बार घूर्णन कर रहे होते है।

श्याम विवर के साथ भी ऐसा ही होता है। श्याम विवर का पदार्थ घटना क्षितिज से छोटा भी हो जाये और हमारी नजरो से अदृश्य भी हो जाये, लेकिन पदार्थ घूर्णन करते रहेगा। इसे हम निरीक्षण नही कर सकते लेकिन इसे गणितिय रूप से प्रमाणित कर सकते है।

5. श्याम विवर के पास सब कुछ विचित्र होता है।

श्याम विवर अपने गुरुत्वाकर्षण से काल-अंतरिक्ष को विकृत(distort) करते है और यदि श्याम विवर घूर्णन करता हुआ हो तो यह विकृति भी विकृत हो जाती है। किसी श्याम विवर के आसपास अंतरिक्ष इस तरह से लपेता हुआ होता कि उसे किसी घूमते हुये पहिये से उलझे हुये कपड़े के समान माना जा सकता है।

श्याम विवर का यह विचित्र व्यवहार घटना-क्षितिज (event horizon) के बाहर एक विशेष क्षेत्र का निर्माण करते है जिसे अर्गोस्फियर(ergosphere) कहते है। इसका आकार एक ध्रुवो पर चपटे गोले के जैसा होता है। यदि आप घटना-क्षितिज से बाहर है तथा अर्गोस्फियर के अंदर है तो आप एक स्थान पर स्थिर नही रह सकते। आप के आसपास का अंतरिक्ष ही घसीटता हुआ होता है और आप उसके साथे घसीटे जाते है। आप श्याम विवर के घूर्णन की दिशा मे गति कर सकते है लेकिन यदि आप श्याम विवर पर मंडराने(hover) करने का प्रयास करे तो कभी नही कर पायेंगे। तथ्य यह है कि अर्गोस्फियर के अंदर अंतरिक्ष प्रकाशगति से तेज गति करता है। पदार्थ प्रकाशगति से तेज गति नही कर सकता लेकिन आइन्स्टाइन के अनुसार अंतरिक्ष प्रकाशगति से तेज गति कर सकता है। इसलिये यदि आप श्याम विवर के उपर मंडराने प्रयास करे तो आपको श्याम विवर के घूर्णन की दिशा के विपरित प्रकाशगति से तेज गति करनी होगी। आप पदार्थ से बने है और यह गति प्राप्त नही कर सकते है। आप के पास तीन विकल्प है, घूर्णन की दिशा मे अंतरिक्ष के साथ घसीटे जाये, श्याम विवर से दूर चले जाये, या श्याम विवर मे समा जाये।

ध्यान दे कि आप घटना क्षितिज से बाहर है और आपके पास भाग जाने का विकल्प है, और यही समझदारी भी है। क्यों? आगे पढ़े…

6. श्याम विवर के पास जाने से मृत्यु भी अजीबोगरिब ढंग से होगी।

downloadअजिबोगरिब अर्थात यह एक भयावह, विभत्स और वमन उत्पन्न करने वाला दृश्य होगा। यदि आप श्याम विवर के पास जाते है तो आप उसमे गीर जायेंगे और ..! लेकिन उससे दूरी पर रहने पर आप परेशानी मे है ….

श्याम विवर अर्थात एक भयानक भंवर..

गुरुत्वाकर्षण दूरी पर निर्भर करता है, दूरी के साथ कमजोर होते जाता है। यदि आपके पास एक लंबी वस्तु एक अधिक द्रव्यमान वाली वस्तु के पास है तब लंबी वस्तु का अधिक द्रव्यमान वाली वस्तु के पास का सिरे पर गुरुत्वाकर्षण प्रभाव दूर वाले सिरे की तुलना मे अधिक होगा। गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव का दूरी के साथ आने वाला यह अंतर ज्वारिय बल(Tidal Force) कहलाता है।( यह नामकरण गलत है क्योंकि वास्तविकता मे यह बल ना होकर बल मे अंतर है। लेकिन यह चंद्रमा द्वारा पृथ्वी पर समुद्रो मे आने ज्वार से संबधित है।)

श्याम विवर छोटे हो सकते है। सूर्य से तीन गुणा द्रव्यमान वाला श्याम विवर का घटना क्षितिज कुछ किमी व्यास का होगा, इसका अर्थ है कि आप के उसके ज्यादा समीप जाने की संभावना अधिक होगी। इससे यह भी होगा कि आप पर पड़ने वाला ज्वारित बल अत्याधिक होगा।

मान लेते है कि किसी व्यक्ति के पैर श्याम विवर के समीप है, इससे यह होगा कि उसके पैरो पर पढ़ने वाला गुरुत्वाकर्षण बल उसके सर से बहुत अधिक होगा। यह अंतर इतना अधिक होगा कि उस वयक्ति के पैर उसके सर से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से कई लाखो गुणा अधिक बल से खींचे जायेंगे। वह व्यक्ति खींच कर एक लंबा सा पतला धागे जैसा हो जायेगा और उसके बाद टूकड़ो मे बंत जायेगा।

वैज्ञानिक इसे व्यक्ति की सेवई/नुडल बनना(spaghettification) कहते है। उल्टी आ गयी ना…..

अर्थात किसी श्याम विवर के पास जाना खतरनाक है, भले ही उसमे ना गीरे!

7. श्याम विवर हमेशा ही श्याम नही होते है।

लेकिन वे अत्याधिक दूरी से ही हत्या कर सकते है।

श्याम विवर हमेशा श्याम नही होते!
श्याम विवर हमेशा श्याम नही होते!

किसी श्याम विवर मे गिरने वाला पदार्थ अत्यंत दुर्लभ मौको पर ही सीधे गिरकर अदृश्य होता है। यदि उस पदार्थ मे थोड़ा सा भी किसी अन्य दिशा मे विचलन हो तो वह श्याम विवर की परिक्रमा प्रारंभ कर देता है। और अधिक पदार्थ के गिरने पर विवर के आसपास ढेर सारा कबाड़ जमा होजाता है। किसी भी अन्य घूर्णन करते पिंड के जैसे यह पदार्थ एक तश्तरी रुपी आकार ले लेता है और अत्याधिक तेज गति से श्याम विवर की परिक्रमा करता है। श्याम विवर का गुरुत्वाकर्षण दूरी से साथ तेजी से परिवर्तित होने से विवर के समीप का पदार्थ दूर के पदार्थ की तुलना मे तेजी से परिक्रमा करता है। इस स्थिति मे पदार्थ के कणो के मध्य अत्याधिक घर्षण होने से उसका तापमान अत्याधिक हो जाता है, यह तापमान करोड़ो डीग्री तक पहुंच जाता है। अत्याधिक तापमान पर पदार्थ दीप्तीमान अत्याधिक चमकवाला हो जाता है। अर्थात श्याम विवर काले होते है लेकिन उनके आसपास अत्याधिक चमक होती है।

इससे भी विचित्र स्थिति उस समय बनती है जब चुंबकीय तथा अन्य बल ऊर्जा के दो स्तंभो को इस तरह से केंद्रित कर देते है कि इस तश्तरी के दोनो ओर ये ऊर्जा के स्तंभ करोडो या कभी कभी अरबो प्रकाशवर्ष दूर तक फ़ैले देखे जा सकते है। ये स्तंभ श्याम विवर के ठीक बाहर से प्रारंभ होते है। ये स्तंभ भी अत्याधिक दीप्तीमान, अत्याधिक चमक वे होते है।

इस तरह के पदार्थ का भक्षण करने वाले बकासुर श्याम विवर इतने चमकदार होते है कि वे सारी आकाशगंगा को प्रकाशित कर सकते है। इन्हे सक्रिय श्याम विवर कहते है।

ये श्याम विवरो की भयावहता यहीं पर नही रूकती है। इसमे गिरने वाला पदार्थ गिरने से पहले इतना अधिक उष्ण हो जाता है कि वह एक्स किरण उत्सर्जित करने लगता है जोकि प्रकाश का अत्याधिक ऊर्जा वाला रूप है। यह किरणे इतनी शक्तिशाली होती है किसी भी अंतरिक्ष यान को घटना क्षितिज के बाहर भी सेकंडो मे भून कर रख सकती है।

श्याम विवर इतने भयावह है कि उनके पास जाने की भी ना सोचें, उनसे दूरी ही बेहतर!

8. श्याम विवर हमेशा खतरनाक भी नही होते है।

इस पर विचार करने से पहले एक प्रश्न : यदि सूर्य की जगह उसके द्रव्यमान का श्याम विवर रखते तो क्या होगा ? क्या वह पृथ्वी को निगल जायेगा ? या पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण की अनुपस्थिति मे दूर अंतरिक्ष मे उड़ चली जायेगी? या पृथ्वी उसी तरह अपनी कक्षा मे परिक्रमा करते रहेगी ?

अधिकतर लोग सोचते है कि इस स्थिति मे श्याम विवर पृथ्वी को निगल लेगा क्योकि उसके पास अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण है। लेकिन ध्यान दें गुरुत्वाकर्षण द्रव्यमान के साथ दूरी पर भी निर्भर है। मैने कहा कि सूर्य के द्रव्यमान का श्याम विवर, दूरी वही है, द्रव्यमान भी वही है। इसका अर्थ है कि गुरुत्वाकर्षण भी वही है। पृथ्वी उसी तरह से श्याम विवर की परिक्रमा करते रहेगी जैसे अभी सूर्य की कर रही है।

हाँ लेकिन हम लोग शीत से मर जायेंगे क्योंकि हमारा जीवन सूर्य की ऊर्जा पर निर्भर है।

श्याम विवर खतरनाक नही होते है यदि आप उससे सुरक्षित दूरी बनाये रखे।

9. श्याम विवर अपना विकास कर बड़े हो सकते है।

प्रश्न : दो महाकाय श्याम विवर के टकराने पर क्या होगा?
उत्तर : एक महा-महाकाय श्याम विवर

दो श्याम वीवर टकराने पर विशाल गुरुत्विय तरंग उत्पन्न करेंगे।
दो श्याम वीवर टकराने पर विशाल गुरुत्विय तरंग उत्पन्न करेंगे।

इसे ऐसे समझते है। श्याम विवर दूसरे पिंडो को भोजन बनाते है जिसमे अन्य श्याम विवर भी शामिल है, जिससे वे बढते है। ऐसा माना जाति कि आरंभिक ब्रह्मांड मे जब आकाशगंगाये बन रही थी तब इन नवजात आकाशगंगाओ के केन्द्र मे पदार्थ जमा होकर विशालकाय(very massive) श्याम विवर के रूप मे संपिडित हुआ होगा। इसमे अतिरिक्त पदार्थ के गिरने पर श्याम विवर उसे निगलते जाता है और बढ़ते जाता है। अतंत: एक महाकाय(Supermassive) श्याम विवर बनता है जोकि करोडो या अरबो सूर्य के द्रव्यमान के तुल्य होगा।

ध्यान दे कि जैसे ही पदार्थ श्याम विवर मे पदार्थ गिरता है, वह उष्ण होते जाता है। वह इतना उष्ण हो सकता है प्रकाश से ही उत्पन्न दबाव पदार्थ को दूर फ़ेंक सकरा है। यह सौर मण्डल की सौर वायु जैसे है लेकिन बड़े पैमाने पर है। इस वायु की शक्ति बहुत से कारको पर निर्भर है, जिसमे श्याम विवर का द्रव्यमान, श्याम विवर की शक्ति का भी समावेश है। यह वायु पदार्थ को श्याम विवर मे गिरने से रोकती भी है, यह एक तरह का सुरक्षा प्रबंध(safety valve) है जो श्याम विवर की निरंतर सनातन भूख को नियंत्रण मे रखता है।

यही नही समय के साथ श्याम विवर के आसपास की गैस तथा धुल तारों को भी जन्म देती है। यह प्रक्रिया श्याम विवर से थोडी दूर लेकिन आकाशगंगा के समीप ही होती है। गैस श्याम विवर मे तारो की तुलना मे आसानी से गिरती है। एक समय ऐसा आता है कि श्याम विवर के आस पास उसके भोजन के लिये कुछ नही बचता है, इसके पश्चात आकाशगांगा मे स्थायित्व आता है।

आज जब हम ब्रह्माण्ड की आकाशगंगाओ को देखते है तो पाते है कि हर आकाशगंगा के मध्य मे एक महाकाय श्याम विवर है। हमारी अपनी आकाशगंगा ’मंदाकिनी’ के केंद्र मे चालीस लाख सूर्यो के बराबर द्रव्यमान वाला श्याम विवर है। रूकिये रूकिये, घबराने की कोई आवश्यकता नही है। 1: यह श्याम विवर बहुत दूर है, 26,000 प्रकाशवर्ष दूर, 2: इसका द्रव्यमान आकाशगंगा के द्रव्यमान 200 अरब सौर द्रव्यमान की तुलना मे नगण्य है, इसलिये वह हमे कोई हानि नही पहुंचा सकता है। वह हमे हानि उस समय पहुंचा सकता है जब वह सक्रिय होकर तारों को खाना शुरु कर दे, ऐसा अभी नही हो रहा है लेकिन ऐसा हो सकने की संभावना शून्य नही है।

हमे ध्यान रखना चाहिये कि श्याम विवर भूखे होते है, वे विनाश का प्रतिक है लेकिन वे आकाशगंगाओ के जन्म के लिये उत्तरदाती भी है। हमारा अस्तित्व उनके कारण ही है।

10. श्याम विवर कम घनत्व के भी हो सकते है।

इतनी सारी विचित्रताओं के मध्य , मुझे यह सबसे विचित्र लगता है।

जैसा कि आप सोचते ही होंगे कि श्याम विवर के द्रव्यमान के बढ़ने के साथ उसका घटना क्षितिज भी बढ़ता है। ऐसा इसलिये कि द्रव्यमान बढ़ने के साथ गुरुत्वाकर्षण बढ़ेगा और उससे घटना क्षितिज भी।

यदि आप ध्यान पुर्वक गणना करे तो पता चलेगा कि द्रव्यमान के साथ घटना क्षितिज रैखिक रूप से बढ़ता है। यदि आप द्रव्यमान दोगुणा कर दे तो घटना क्षितिज की त्रिज्या भी दोगुणी हो जाती है।

अब यह विचित्र है! कैसे ?

गोले का आयतन त्रिज्या के घन पर निर्भुर करता है। (गोले का आयतन =4/3 x π x r3)। अब त्रिज्या को दो गुणा कर दे तो आयतन 2x2x2=8 गुणा बढ़ेगा। गोले की त्रिज्या को दस गुणा करने पर आयतन 10x10x10=1000 गुणा बढ़ेगा।

इसका अर्थ यह है कि आयतन गोले के आकार बढ़ाने पर तेजी से बढ़ता है।

अब आपके पास मिट्टी के समान आकार के दो गोले है। अब आप उन दोनो को मिला दे। क्या नये गोले का आयतन दोगुणा होगा ?

नही! द्रव्यमान दोगुणा हो गया है लेकिन त्रिज्या थोड़ी सी ही बढ़ी है। क्योंकि आयतन त्रिज्या के घन के रूप मे बढ़ता है, आयतन को दोगुणा करने के लिये या त्रिज्या को दो गुणा करने आपको आठ मिट्टी के गोले मिलाने पड़ेंगे।

लेकिन श्याम विवर के साथ ऐसा नही है, द्रव्यमान दोगुणा करने के साथ, घटना क्षितिज की त्रिज्या दोगुणी हो जाती है! यह विचित्र है। ऐसा क्यों ?

घनत्व का अर्थ है कि किसी दिये गये आयतन मे कितना द्रव्यमान रखा है। आकार वही रखकर द्रव्यमान जमा करने पर घनत्व बढ़ता है। आयतन बढाकर द्रव्यमान वही रखने पर घनत्व कम होता है।

अब श्याम विवर के घटना क्षितिज के अंदर पदार्थ के औसत घनत्व को देखते है। यदि हम दो एक जैसे श्याम विवर को टकराये तो घटना क्षितिज दो गुणा हो जाता है, द्रव्यमान भी दोगुणा हो जाता है। लेकिन आयतन आठ गुणा बढ़ गया है! इसका अर्थ है कि घनत्व कम हो गया है , वास्तविकता मे घनत्व 1/4 हो गया है। दो गुणा द्रव्यमा और आठ गुणा आयतन से आपको 1/4 घनत्व प्राप्त होगा। आप श्याम विवर मे द्रव्यमान बढाते जाये, घनत्व कम होते जायेगा।

एक सामान्य श्याम विवर जिसका द्रव्यमान सूर्य से तीन गुणा है, 9 किमी त्रिज्या का घटना क्षितिज वाला होगा। इसका अर्थ है कि उसका घनत्व अत्याधिक होगा, 2×1015 ग्राम/घन सेमी! द्रव्यमान दोगुणा करने पर घनत्व 1/4 रह जायेगा। दस गुणा द्रव्यमान करने पर घनत्व 100 गुणा कम होगा। एक अरब सौर द्रव्यमान वाले श्याम विवर(हमारी आकाशगंगा के केंद्र मे स्थित श्याम विवर) का घनत्व 1×1028 गुणा कम होगा। इसका अर्थ है कि उसका घनत्व 1/1000 ग्राम/घन सेमी होगा, जोइ हवा के घनत्व के बराबर है।

एक अरब सौर द्रव्यमान वाले श्याम विवर का घटना क्षितिज 3 अरब किमी होगा, जोकि सूर्य से नेपच्युन की दूरी के तुल्य है। अर्थात यदि 3 अरब किमी त्रिज्या वाले गोले मे हवा भर दी जाये तो वह श्याम विवर बन जायेगा।

निष्कर्ष :

श्याम विवर विचित्र होते है, सामान्य बुद्धि से परे होते है!

40 विचार “श्याम विवर: 10 विचित्र तथ्य&rdquo पर;

    1. सूर्य के ब्लैक होल बनने पर उसके द्रव्यमान मे कोई अंतर नही आयेगा। द्रव्यमान वही रहने से उसका गुरुत्वाकर्षण भी वही रहेगा।

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  1. सर जी ,
    ब्लैकहोल के उस पार क्या होता है ?
    कोई वस्तु ब्लैकहोल के अंदर जाती है , तो क्या वह वस्तु हमेशा अंदर ही फंसी रहेगी ?
    या
    दूसरी तरफ किसी रास्ते से बाहर निकल जाएगी ?

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  2. Sir ji,
    1. क्या black hole भी अन्य तारों की तरह खत्म होते हैं । या यह अमर होते हैं
    2. आपने कहा कि प्रकाश की गति 3 lakhs K.M./s हैं। हमने इस गति को कैसे ज्ञात किया अर्थात हम तो प्रकाश की गति से तेज तो जा नहीं सकते ?

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    1. 1 ब्लैक होल चिरंजीवी नहीं होते, उनसे एक विशिष्ट वीकीरण निकालता है जिसे हाकिंग विकिरण कहते है, समय के साथ ब्लैक होल समाप्त हो जातेहै।
      2 प्रकाश की गति मापन पर लेख लिखता हूँ।

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  3. मान्यवर!
    कृष्ण-विवर के बारे मे सामान्य भाषाशैली मे विस्त्रित जानकारी प्रदान करने के लिये, आपको कोटीशः धन्यबाद |

    किसी पिण्ड़ का कृष्ण-विवर बनना किस भौतिक राशी पर निर्भर होता है?
    द्रव्यमान पर , अथवा घनत्व पर

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  4. मान्यवर!
    कृष्ण विवर के विषय मे सामान्य भाषाशैली मे विस्त्रित जानकारी प्रदान करने के लिये, कोटीशः धन्यबाद |

    किसी पिण्ड़ का श्यामविवर बनना किस भौतिक राशी पर निर्भर होता है?
    द्रव्यमान पर
    घनत्व पर

    आपने लिखा है कि, तीन अरब कि.मि. कि त्रिज्या के गोले मे हवा भरा हो तो वह श्याम विवर हो जायेगा |

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