गुरुत्विय लेंस अंतरिक्ष में किसी बड़ी वस्तु के उस प्रभाव को कहते हैं जिसमें वह वस्तु अपने पास से गुज़रती हुई रोशनी की किरणों को मोड़कर एक लेंस जैसा काम करती है। भौतिकी के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत की वजह से कोई भी वस्तु अपने इर्द-गिर्द के व्योम (“दिक्-काल” या स्पेस-टाइम) को मोड़ देती है और बड़ी वस्तुओं में यह मुड़ाव अधिक होता है। जिस तरह चश्मे, दूरबीन के मुड़े हुए शीशे से गुज़रता हुआ प्रकाश भी मुड़ जाता है, उसी तरह गुरुत्वाकर्षण लेंस से गुज़रता हुआ प्रकाश भी मुड़ जाता है।
1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने सापेक्षता सिद्धांत की घोषणा की और उसे प्रकाशित किया। 1924 में एक ओरॅस्त ख़्वोलसन नाम के रूसी भौतिकविज्ञानी ने आइनस्टाइन के सापेक्षता सिद्धांत को समझकर भविष्यवाणी की कि ऐसे गुरुत्विय लेंस ब्रह्माण्ड में ज़रूर होंगे। 1936 में आइनस्टाइन ने भी अपने एक लेख में ऐसे लेंसों के मिलने की भविष्यवाणी की। कई दशकों पश्चात , 1979 में, एक क्वासर की एक के बजाए दो-दो छवियाँ देखी गयी और इस की पुष्टि हुयी। उसके बाद काफ़ी दूरस्थ वस्तुओं की ऐसी छवियाँ देखी जा चुकी हैं जिनमें उन वस्तुओं और पृथ्वी के बीच कोई बहुत बड़ी अन्य वस्तु रखी हो जो पहली वस्तु से आ रही प्रकाश की किरणों पर लेंसों का काम करे और उसकी छवि को या तो मरोड़ दे या आसमान में उसकी एक से ज़्यादा छवि दिखाए।
किसी अत्यंत दीप्तीमान पिंड जैसे एक तारे, आकाशगंगा या एक क्वासर की कल्पना किजीये जो कि पृथ्वी से 10 अरब प्रकाश वर्ष दूर हो। इस लेख मे हम मान लेते है कि वह क्वासर है। यदि हमारे और क्वासर के मध्य कुछ ना हो तो , हम उस क्वासर की एक छवि देख पायेंगे। लेकिन यदि कोई महाकाय आकाशगंगा या आकाशगंगा समूह हमारे और उस क्वासर के मध्य हो और हम उस क्वासर को देख ना पा रहे हों तो क्या होगा ?
ऐसी स्थिति मे वह आकाशगंगा उस क्वासर से उत्सर्जित प्रकाश किरणो को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकार्षण से मोड़ देगी, जैसा चित्र अ मे दिखाया गया है। इस प्रभाव को गुरुत्विय लेंस कहते है, क्योंकि आकाशगंगा का गुरुत्व किसी लेंस की तरह प्रकाश किरणो को मोड़ रहा हौ। लेकिन गुरुत्विय लेंस प्रभाव मे क्वासर की एक छवि बनने की बजाय एकाधिक छवि बनती है। हम पृथ्वी से क्वासर की प्रकाश किरणो को देखते है और क्वासर की छवि एक सरल रेखा मे बनते देखते है। यदि क्वासर और पृथ्वी के मध्य की आकाशगंगा पूर्ण सममितिय हो तो हमे क्वासर की छवि एक वलय के आकार मे दिखेगी।
सामान्यत: मे पृथ्वी और क्वासर के मध्य की आकाशगंगा क्वासर-पृथ्वी के मध्य की सरल रेखा के केंद्र मे नही होती है, इस अवस्था मे क्वासर उत्सर्जित प्रकाश के दो पथ आकाशगंगा से भिन्न दूरी तय कर आयेंगे। और क्वासर की छवियाँ हमे भिन्न भिन्न दूरी पर बनते दिखायी देंगी। चित्र ब देखें।
अंत मे इन सभी पिंडो के मध्य दूरी इतनी अधिक है कि आकाशगंगा की त्रिज्या तथा आकाशगंगा का द्र्व्यमान वितरण को एक बिंदु के रूप मे माना जा सकता है, इससे गणना मे आने वाली त्रुटि नगण्य होगी। अब हम सरल ज्यामिति के प्रयोग से उस आकाशगंगा के द्रव्यमान, आकाशगंगा की दूरी तथा दोनो छवियों की दूरी के आधार पर उस क्वासर की वास्तविक दूरी की गणना कर सकते है।
चित्र स मे हब्बल दूरबीन द्वारा लिया गया Abell 2218 द्वारा उत्पन्न गुरुत्विय लेंस प्रभाव दिखाया गया है।
प्रणाम बड़े भैया…..बहुत सुन्दर लेख…भैया मैं एक Physics Student. हूँ…व M.Sc.Physics First year में हूँ
मेरी भौतिकी/Quantum Mechanics/astrophysics में अत्यधिर रुचि है…व आगे theoretical physics में PhD कर भौतिकविद बनने की इच्छ भी है…मैं पहल् से ही विज्ञान विश्व के लेख पढ़ता रहा हूँ…भैया कृपा कर कुछ मार्गदर्शन पिरदान करें…..यदि संभव हो तो..कुछ droughts/concepts ऐसी हैं…जो शायद आप समझा सकें..तो बड़ी कृपा होगी…सम्पर्क सूत्र संभव हो तो उपलब्ध करायें…धन्यवाद भैया..
आज्ञाकारी भाई–शुभम गौड़ 9654687625 fb link:- shubham.gaur.9803@Facebook.com
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very nice
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Adbhud. Sir kya yahi niyam black hol par bhi lagu hota he.
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हां
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guritya lense ki jankari
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barmand ki adbhut jankari hai,,thanks
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