जब भी ट्रिगर दबाया जाता है, दोनो संभव परिणामो को समाविष्ट करने ब्रह्माण्ड का विभाजन हो जाता है और दो समांतर ब्रह्माण्ड बन जाते है।

क्वांटम आत्महत्या और श्रोडीन्गर की बिल्ली


 जब भी ट्रिगर दबाया जाता है, दोनो संभव परिणामो को समाविष्ट करने ब्रह्माण्ड का विभाजन हो जाता है और दो समांतर ब्रह्माण्ड बन जाते है।
जब भी ट्रिगर दबाया जाता है, दोनो संभव परिणामो को समाविष्ट करने ब्रह्माण्ड का विभाजन हो जाता है और दो समांतर ब्रह्माण्ड बन जाते है।

एक व्यक्ति अपने सर पर तनी बंदूक के साथ बैठा है। यह साधारण बंदूक नही है, यह एक क्वांटम सिद्धांत आधारित बंदूक है जो किसी क्वांटम कण के स्पिन को मापने मे सक्षम है। जब भी बंदूक का ट्रिगर दबाया जाता है, एक क्वांटम कण या क्वार्क का स्पिन मापा जाता है। स्पिन के मापन के आधार पर गोली चलेगी या नही चलेगी। यदि क्वार्क का स्पिन घड़ी के सुईयों की दिशा मे है तो बंदूक से गोली चलेगी। यदि क्वार्क का स्पिन घड़ी की सुईयों के विपरीत है तो गोली नही चलेगी, केवल ट्रिगर की क्लिक होगी।

घबराहट के साथ वह व्यक्ति एक गहरी सांस लेता है और ट्रिगर दबा देता है। बंदूक से केवल क्लिक ही होता है। वह फ़िर से ट्रिगर दबाता है, क्लिक, फिर से ट्रिगर, परिणाम वही क्लिक। वह व्यक्ति बार बार ट्रिगर दबाते रहेगा लेकिन परिणाम वही रहेगा, गोली नही चलेगी। हालांकि बंदूक सही तरह से कार्य कर रही है और उसमे गोलीयाँ भी भरी हुयी है, वह व्यक्ति कितनी ही बार ट्रिगर दबायेगा, बंदूक से गोली कभी नही चलेगी। वह यह प्रक्रिया अनंत तक दोहराता रहेगा और क्वांटम अमर रहेगा।
अब हम समय यात्रा कर इस प्रयोग के आरंभ मे वापस जाते है। वह व्यक्ति प्रथम बार ट्रिगर दबाता है, बंदूक मे क्वार्क की दिशा का मापन घड़ी की सुईयों की दिशा मे होता है। बंदूक से गोली चलती है। वह व्यक्ति अब मृत है।

लेकिन रूकिये! उस व्यक्ति ने प्रथम बार ट्रिगर दबाया था और उसके पश्चात अनंत बार ट्रिगर दबाया था और हम पहले से ही जानते हैं कि बंदूक से गोली नही चली थी। अब वह व्यक्ति मृत कैसे हो सकता है ? वह व्यक्ति नही जानता कि वह जीवित और मृत दोनो अवस्था मे है। जब भी वह ट्रिगर दबाता है, ब्रह्माण्ड का विभाजन हो जाता है और दो ब्रह्माण्ड बन जाते है। यह विभाजन होते रहता है, दोबारा , तीबारा, चौथी बार, जब भी वह व्यक्ति ट्रिगर दबाता है ब्रह्माण्ड का एक और विभाजन होता है।

इस वैचारिक प्रयोग (thought experiment) को क्वांटम आत्महत्या(quantum suicide) कहा जाता है। इसे प्रिंसटन विश्वविद्यालय(Princeton University) के सैद्धांतिक भौतिक वैज्ञानिक मैक्स टेगमार्क(Max Tegmark) ने 1997 मे प्रस्तावित किया था। वे अब एम आई टी(MIT) मे है। वैचारिक प्रयोग केवल मस्तिष्क मे किये जाते हैं। क्वांटम स्तर मानव द्वारा ब्रह्माण्ड मे खोजा गया पदार्थ का सूक्ष्मतर स्तर भाग है। यह इतना सूक्ष्म है कि इस स्तर पर पारंपरिक तौर पर वैज्ञानिक प्रयोग करना लगभग असंभव हो जाता है।

क्वांटम भौतिकी

वैज्ञानिक विधि के प्रयोग के बिना अनुभवजन्य प्रमाणो की जांच के लिये क्वांटम स्तर पर वैज्ञानिक वैचारिक प्रयोग करते है। हालांकि ये प्रयोग अवधारणात्मक रूप से ही किये जाते है लेकिन क्वांटम स्तर पर इन प्रयोगो के परिणाम क्वांटम भौतिकी के आंकड़ो की पुष्टि ही करते है।

विज्ञान के क्वांटम स्तर पर जो भी निरीक्षण कीये है उन्होने प्रश्नो का उत्तर देने की बजाय नये प्रश्न ही खड़े किये है। क्वांटम कणो का व्यवहार अनियमित है और हमारी इन कणो के बारे मे जो समझ है, उस पर प्रश्न चिह्न ही खड़े होते है। उदाहरण के लिये फोटान , जोकि प्रकाश के सबसे सूक्ष्म कण है, कण और तरंग का दोहरा व्यवहार रखते पाये गये है, वे एक साथ , एक ही समय मे दो अवस्थाओं मे रह सकते है। कणो की गति की दिशा भी एक ही समय मे दोनो ओर पायी गयी है, जबकि अनुभव जन्य ज्ञान यह बताता है कि कण एक समय मे एक ही दिशा मे गति कर सकता है। जब हम क्वांटम विश्व की जांच करते है, तो हम पाते हैं कि हम इस ज्ञान के लिये अभी भी एक बाहरी व्यक्ति है।और ये विश्व हमारे ब्रह्माण्ड संबधी ज्ञान को चुनौती देता है।

इस सब से यह प्रमाणित होता है कि हमारा क्वांटम भौतिकी के संबध मे ज्ञान उन प्राचीन सभ्यताओं के तुल्य है जिनके खगोलज्ञ सूर्य को “देवता” मानते थे। कुछ वैज्ञानिको का मानना है कि क्वांटम भौतिकी मे आगे का अनुसंधान वर्तमान क्वांटम अव्यवस्था की बजाय एक व्यवस्था और पूर्वानुमेयता लायेगा, जिसमे गणनाओं के द्वारा सटिक अनुमान लगाना संभव होगा। लेकिन क्या यह संभव है कि क्वांटम तंत्र को हमारे विज्ञान पारंपरिक मॉडल के अंतर्गत समझना संभव ना हो?

इस लेख मे आगे हम देखेंगे कि क्वांटम आत्मह्त्या के उदाहारण से हमारे ब्रह्माण्ड के बारे मे क्या उद्घाटित होता है और इसके साथ ही हम देखेंगे कि वर्तमान के कौनसे सिद्धांत इसके समर्थन मे है और कौन से इसके विरोधाभाषी है।

लेकिन इससे पहले हम देखते है कि वैज्ञानिक उन कणो का मापन क्यों नही कर सकते है जिसका वे अध्ययन करने जा रहे है? अगले भाग मे हम देखते है कि क्वांटम निरीक्षण मे सबसे मूलभूत दोष क्या है, जिसकी व्याख्या हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत(Heisenberg’s Uncertainty Principle) करता है।

हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत(Heisenberg’s Uncertainty Principle)

वेरनेर हाइजेनबर्ग
वेरनेर हाइजेनबर्ग

क्वांटम प्रयोगो मे सबसे बड़ी समस्या मानव द्वारा नन्हे क्वांटम कणो की स्थिति और अवस्था को प्रभावित किये बगैर उनका अध्ययन है। जब हम किसी भी क्वांटम कण का निरीक्षण करते है, यह निरीक्षण उनकी अवस्था या गति को परिवर्तित कर देता है और हमारे निरीक्षण सटिक नही रहते है, यह एक निराशाजनक अवस्था होती है। इस परेशानी से जूझने के लिये वैज्ञानिको ने महाकाय, विस्तृत कण त्वरक(particle accelerators) जैसी मशीने बनायी है जिसमे मानविय प्रभाव कम से कम हो और कण को उसकी गति से ही त्वरण दिया जा सके।

इसके बावजूद भी क्वांटम भौतिकी वैज्ञानिक जब उन्ही कणो की जांच करते है तब उन्हे मिश्रीत परिणाम मिलते है जो कि यह दर्शाते है कि हमारा निरीक्षण क्वांटम कणो प्रभावित कर रहा है। उदाहरण के लिये सबसे छोटा कण फोटान जिसका द्रव्यमान शून्य होता है और आवेशहीन होता है, वह भी किसी अन्य कण से टकराने पर उसकी गति और/या अवस्था के परिवर्तित करने मे सक्षम होता है।

इसे ही हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत कहते है। जर्मन भौतिक वैज्ञानिक वेर्नेर हाइजेनबर्ग(Werner Heisenberg) ने बताया था कि हमारा निरीक्षण क्वांटम कणो के व्यवहार को प्रभावित करता है। हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत समझने मे थोड़ा कठिन लगता है और इस सिद्धांत का नाम भी थोड़ा भयभीत करने वाला है। लेकिन इसे समझना उतना कठिन नही है और यदि आप इसे समझ गये तो आपको क्वांटम यांत्रिकी के सबसे मूलभूत नियम को समझ जायेंगे।

मान लिजिये की एक दृष्टिहीन व्यक्ति किसी दूर पड़ी वस्तु की दूरी ज्ञात करने के लिये उसपर एक व्यायाम करने वाली गेंद का प्रयोग करता है। वह कमरे मे रखे एक स्टूल पर व्यायाम करने वाली गेंद फेंकता है यदि गेंद शिघ्रता से वापिस आती है तो इसका अर्थ होगा कि स्टूल पास मे है। यदि वह सड़क के पार रखे स्टूल पर गेंद फेंकता है तो गेंद के वापिस आने मे ज्यादा समय लगेगा अर्थात वह जान जायेगा कि स्टूल ज्यादा दूर है।

लेकिन इस तकनीक मे समस्या यह है कि जब आप गेंद फेंकते है, वह भी व्यायाम करने वाली भारी और बड़ी गेंद, यह गेंद स्टूल से टकराकर उसे स्थिति मे परिवर्तन कर देती है । गेंद के लौटने पर आप यह जान जायेंगे कि स्टूल कहाँ था, लेकिन आपको उसकी वर्तमान स्थिति अज्ञात होगी क्योंकि अब स्टूल वहाँ से खिसक चूका है। यदि आपने किसी तरह स्टूल की नयी गति ज्ञात कर ली तब भी आपके पास स्टूल की पुरानी गति(गेंद के टकराने से पहले की) ज्ञात करने का कोई उपाय नही है।

हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत ने इसी समस्या से पर्दा हटाया था। किसी क्वार्क की गति ज्ञात करने हमे उसका मापन करना होगा और उसका मापन करने के लिये जो भी कुछ हम करेंगे, वह उसकी स्थिति/गति मे परिवर्तन कर देगा। किसी कण की गति या स्थिति के मापन की यह अनिश्चितता किसी भी भौतिक वैज्ञानिक के लिये ज्यादा जानकारी प्राप्त करने को कठिन बना देता है।

वैज्ञानिक किसी क्वार्क के मापन के लिये उनपर व्यायाम करने वाली गेंद नही फेंक रहे होते है, लेकिन क्वार्क के संबंध मे छोटा सा भी हस्तक्षेप(जैसे फोटान) उन नन्हे कणों के व्यवहार को प्रभावित करने मे काफी है।

इन्ही कारणो से क्वांटम वैज्ञानिक वैचारिक प्रयोग करने के लिये मजबूर होते है जोकि क्वांटम स्तर पर किये गये वास्तविक प्रयोगो के परिणामो पर आधारित होते है। ये वैचारिक प्रयोग वास्तविक प्रयोग से प्राप्त परिणामों के व्याख्याओं/स्पष्टीकरण को स्वीकार करने या अस्विकार करने के लिये सहायक होते है।

अगले भाग मे हम देखेंगे कि क्वांटम आत्महत्या के उदाहरण के आधार पर क्वांटम यांत्रिकी के आधार पर समांतर ब्रह्मांड की संभावना वाली व्याख्या कैसे संभव है।

समांतर ब्रह्मांड सिद्धांत

क्वांटम आत्महत्या वैचारिक प्रयोग समांतर विश्व की अवधारणा पर आधारित है, यह अवधारणा धीरे धीरे क्वांटम भौतिकी का सबसे सफल स्पष्टीकरण माना जाने लगा है। समांतर विश्व की इस अवधारणा को 1957 मे प्रिंसटन विश्वविद्यालय के शोध छात्र हग एवेरेट III (Hugh Everett III)ने प्रस्तावित किया था। इस अवधारणा का दशको तक मजाक बनाया जाता था लेकिन मैक्स टेगमार्क के क्वांटम आत्महत्या वाले वैचारिक प्रयोग के बाद से इसे गंभीरता से लिया गया।

समांतर ब्रह्माण्ड अवधारणा के अनुसार किसी भी क्रिया के सभी संभव परिणामो के अनुसार ब्रह्माण्ड का उतने भागो मे विभाजन हो जाता है, हर ब्रह्माण्ड मूल ब्रह्माण्ड की प्रतिकृति ही होता है लेकिन उस क्रिया के परिणाम हर ब्रह्माण्ड मे अलग होते है। इसका अर्थ यह है कि आपके किसी लाटरी जितने के बाद आप अपनी ही प्रतिकृति की लाटरी नही जितने की निराशा से अंजान होंगे। जैसे ही लाटरी का परिणाम निकलेगा ब्रह्मांड का दो प्रतिकृतियों मे विभाजन होगा, एक मे आपने लाटरी जीती है, दूसरे मे आपकी प्रतिकृति ने नही जीती है। लेकिन आपकी दोनो प्रतिकृतियां एक दूसरे से अंजान है।

इसी तरह से क्वांटम आत्महत्या वाले प्रयोग मे दो संभव परिणाम है, कि जब वह व्यक्ति ट्रिगर दबाता है तब गोली चलेगी या नही चलेगी। इस प्रयोग मे व्यक्ति या तो जीवित रहेगा या नही रहेगा। जब भी ट्रिगर दबाया जाता है, ब्रह्माण्ड का विभाजन हर संभव परिणाम के लिये हो जाता है। लेकिन उस व्यक्ति की मृत्यु होती है, उसके पश्चात ट्रिगर के दबाने के आधार पर ब्रह्मांड के विभाजन की संभावना खत्म हो जाती है। क्योंकि ट्रिगर दबाने के बाद संभव परिणाम एक ही बच जाती है, व्यक्ति की मत्यु । लेकिन व्यक्ति के जीवित रहने की स्थिति मे दोनो संभावनाये रहती है कि व्यक्ति जीवित रहेगा, या नही रहेगा।

जब वह व्यक्ति ट्रिगर दबाता है और ब्रह्माण्ड का विभाजन दो परिणामो के अनुसार होता है, तब उस व्यक्ति की जीवित प्रतिकृति यह नही जानती है कि समांतर ब्रह्मांड मे उसकी प्रतिकृति की मृत्यु हो चुकी है। इस तथ्य से अंजान होने के कारण उसके पास ट्रिगर दबाने का एक और मौका होगा। वह ट्रिगर दबाते जायेगा और उस व्यक्ति की एक प्रतिकृति जीवित रहेगी, और वह अपनी प्रतिकृतियों की समांतर ब्रह्माण्डो मे मृत्यु से अंजान ही रहेगा। इसे क्वांटम अमरता कहा जाता है।

तो अब तक जितने भी व्यक्तियों ने आत्महत्या का प्रयास किया है, वे अमर क्यों नही है ? समांतर ब्रह्मांड की अवधारणा के अनुसार, किसी समांतर ब्रह्माण्ड मे वे जीवित है। यह हमे स्वयं के निरीक्षण मे कभी नही आयेगा क्योंकि ब्रह्मांड का विभाजन हमारी अपनी मृत्यु या जीवन पर आधारित नही है। हम किसी अन्य की आत्मह्त्या के लिये एक बाह्य निरीक्षक हैं और एक निरीक्षक के रूप मे हम प्रायिकता(probability) पर निर्भर करते है। जब ब्रहांड मे बदूंक चली थी या उसके उस संस्करण मे जिसमे हमारा अस्तित्व है, हम परिणाम से जुड़े रह जाते है, हमे समांतर ब्रह्माण्ड के परिणामो का ज्ञान नही होता है। यदि हम स्वयं भी बंदूक उठाकर उस व्यक्ति पर गोली चलाने का प्रयास करते रहें, ब्रह्मांड पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा, उसकी एक ही अवस्था रहेगी। ऐसा इसलिये कि यदि व्यक्ति की मृत्यु हो गयी है तो मृत व्यक्ति पर गोली चलाने के संभव परिणामों की संख्या घटकर एक ही रह गयी है।

लेकिन समांतर ब्रह्माण्ड की अवधारणा एक दूसरे क्वांटम अवधारणा के विरोध मे है, यह अवधारणा है कोपेनहेगन व्याख्या(Copenhagen interpretation)। अगले भाग मे हम इस व्याख्या को विस्तार से देखते है।

कोपेनहेगन व्याख्या(Copenhagen interpretation)

समांतर ब्रह्माण्ड वाली क्वांटम यांत्रिकी अवधारणा यह मानती है कि किसी भी क्रिया के समस्त संभावनाओं के लिये ब्रह्माण्ड सभी को समायोजित करते हुये संभावनाओं की संख्या के तुल्य विभाजित होता है। इस अवधारणा मे निरीक्षक समीकरण बाह्य होता है, जिससे वह निरीक्षण मात्र से किसी भी घटना के परिणाम को प्रभावित नही करने की स्थिति मे नही रहता है, जोकि हाइजेनबर्ग के सिद्धांत के अनुसार नही है।

लेकिन समांतर ब्रह्माण्ड की अवधारणा अब ज्यादा पैमाने पर स्वीकृत अवधारणा बन चुकी है। और अनियमित क्वांटम विश्व मे यह कुछ तो कहने मे सक्षम है।
पिछली सदी के अधिकतर समय मे किसी भी क्वांटम कण के भिन्न भिन्न व्यवहार की व्याख्या कोपेनहेगन स्पष्टीकरण से की जाती थी। वर्तमान मे इसे समांतर ब्रम्हांड की अवधारणा से कड़ी चुनौती अवश्य मिल रही है लेकिन अनेक वैज्ञानिक आज भी इसे सही मानते है। कोपेनहेगन स्पष्टीकरण को प्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक निल्स बोह्र(Niels Bohr) 1920 मे प्रस्तावित किया था। इसके अनुसार कोई भी कण किसी एक या अन्य अवस्था मे नही रहता है, वह एक साथ ही सभी संभव अवस्था मे रहता है। जब हम उसका निरीक्षण करने का प्रयास करते है तब वह सभी संभव अवस्थाओं मे से किसी एक अवस्था को ग्रहण करने के लिये मजबूर होता है। वह कण हर बार किसी भिन्न निरीक्षण की जाने वाली अवस्था को ग्रहण कर सकता है जिससे हमे अनियमित क्वांटम व्यवहार दिखायी देता है।

श्रोडीन्गर की बिल्ली
श्रोडीन्गर की बिल्ली

किसी कण के एक साथ सभी अवस्थाओ मे होने को सुसंगत समाविष्टीकरण( coherent superposition) कहते है, अर्थात किसी वस्तु की सभी संभव अवस्थाओं का समावेश, उदाहरण के लिये किसी फोटान का कण या तरंग रूप जो एक साथ दोनो दिशा मे गति कर सकता है, उस वस्तु का तरंग समीकरण बनाता है। जब हम उस वस्तु का निरीक्षण करते है तब यह सुसंगत समाविष्टीकरण ढह जाता है और वह वस्तु अपने तरंग समीकरण द्वारा प्रस्तावित किसी एक अवस्था को ग्रहण कर लेता है।

बोह्र के कोपेनहेगन स्पष्टीकरण को एक अन्य वैचारिक प्रयोग द्वारा प्रमाणित किया गया था जिसमे एक बिल्ली और डिब्बे का प्रयोग था। इस प्रयोग को श्रोडीन्गर की बिल्ली(Schrödinger’s cat) प्रयोग के नाम से जाना जाता है और इसे विएना के भौतिक वैज्ञानिक एरवीन श्रोडीन्गर(Erwin Schrödinger) ने 1935 मे प्रस्तावित किया था।

इस प्रयोग मे श्रोडीन्गर ने एक बिल्ली को एक डिब्बे मे बंद कर दिया था, इस डिब्बे मे रेडीयो सक्रिय पदार्थ, रेडीयो सक्रियता मापने वाला गाइजर मापक( Geiger counter) था। गाइजर मापक को इस तरह से बनाया गया था कि जब भी कोई रेडीयो सक्रिय विकिरण को महसूस करता वह एक हथौडी से हाइड्रोक्लोरीक अम्ल वाले कांच के बर्तन को तोड़ देता , जोकि मुक्त होने पर बिल्ली को मार देता।

बिल्ली के भविष्य के बारे मे किसी भी अनिश्चितता दूर करने के लिये इस प्रयोग की अवधि एक घंटा रखी गयी थी जोकि रेडीयोसक्रिय पदार्थ द्वारा क्षय के फलस्वरूप रेडीयो सक्रिय विकिरण उत्पन्न करने के लिये काफी है लेकिन इसका नही होना भी संभव है।

श्रोडीन्गर के प्रयोग मे बिल्ली डिब्बे मे बंद है. उस डिब्बे के अंदर बिल्ली के रहने के समय मे बिल्ली की अवस्था अज्ञात है। हम नही जानते कि रेडीयो सक्रिय विकिरण होगा या नही अर्थात बिल्ली जीवित  है या मृत। जब तक बिल्ली का निरीक्षण नही किया जा सकता तब तक यह कहा नही जा सकता कि वह जीवित है या मृत। वह जीवित और मृत दोनो अवस्थाओं मे है। यह जेन कथा के प्रश्न के क्वांटम उत्तर के रूप मे है जिसमे पूछा गया था कि यदि वन मे एक पेड़ गिरता है, और आस पास सुनने के लिये कोई भी उपस्थित नही है तो क्या उस पेड़ के गिरने से ध्वनि उत्पन्न होगी?

कोपेनहेगन स्पष्टीकरण के अनुसार निरीक्षण करने पर कोई भी वस्तु अपनी संभव अवस्था मे से एक अवस्था या अन्य को ग्रहण करती है। इसके अनुसार जब तक निरीक्षण नही होता है, बिल्ली एक साथ जीवित और मृत दोनो अवस्थाओं मे है। जब उसका निरीक्षण होगा, वह इन दोनो संभव अवस्था मे से किसी एक अवस्था को ग्रहण करेगी। लेकिन इसके अनुसार क्वांटम आत्महत्या प्रयोग कार्य नही करेगा क्योंकि ट्रिगर के दबाने पर क्वार्क के स्पिन की दिशा का निरीक्षण किया जा सकता है, जिससे अंततोगत्वा (कभी ना कभी) क्वार्क को घड़ी के सुईयों की दिशा लेनी ही होगी, जिससे बंदूक से गोली चलेगी और व्यक्ति की मृत्यु हो जायेगी।

लेकिन क्या यह सब मुर्खतापूर्ण नही लगता है? क्या ये वैचारिक प्रयोग और क्वांटम व्याख्याओं से हमे कुछ सीखने मिलता है? आगे देखते है।

क्वांटम भौतिकी के निहितार्थ

जब हम परंपरागत विज्ञान और न्युटन प्रस्तावित भौतिकी की तुलना क्वांटम भौतिकी की प्रस्तावित अवधारणाओं से करते है तब क्वांटम भौतिकी पागलपन लगती है। एरवीन श्रोडीन्गर ने भी अपने बिल्ली वाले प्रयोग को “काफी हास्यास्पद (quite ridiculous)” कहा था। लेकिन विज्ञान ने अभी तक जितने भी निरीक्षण किये है, उससे पता चलता है कि जिन नियमों से विश्व संचालित होता है वे क्वांटम स्तर पर कार्य नही करते है, ये विश्व किसी अन्य नियमो से संचालित हो रहा है।

क्वांटम भौतिकी अपेक्षतः विज्ञान की एक नयी शाखा है जो 1900 के प्रारंभ से ही आस्तित्व मे आयी है। इस विषय पर प्रस्तावित सभी अवधारणायें केवल अवधारणायें ही है। कुछ अवधारणायें जो एक दूसरे से सही होने की स्पर्धा करती है वे क्वांटम स्तर पर किसी घटना कि व्याख्या भिन्न भिन्न तरह से करती है। इतिहास इनमे से किस अवधारणा को सही ठहरायेगा? शायद क्वांटम भौतिकी की सही व्याख्या करने वाली अवधारणा अब तक प्रस्तावित ही नही हुयी है। क्वांटम भौतिकी की सबसे सही व्याख्या करने वाले वैज्ञानिक ने अब तक जन्म ही नही लिया हो। लेकिन क्वांटम भौतिकी के तर्को के अनुसार चलें तो क्वांटम भौतिकी की व्याख्या करने वाले सभी सिद्धांत एक साथ सही हो सकते है, भले ही वो एक दूसरे के विरोध मे हो।

निल्स बोह्र की कोपेनहेगन व्याख्या शायद सबसे ज्यादा आश्वासन देनेवाली व्याख्या है। इसके अनुसार कोई भी कण एक साथ सभी अवस्थाओं मे रहता है, जिसे सुसंगत समाविष्टीकरण अवस्था कहते है, ऐसा मानने पर हमारी ब्रह्मांड के बारे मे जानकारी थोड़ी असंगत अवश्य रहती है लेकिन कुछ हद तक बोधगम्य, ग्राह्य है। बोह्र की व्याख्या थोड़ी सांत्वना भी देती है क्योंकि इसके अनुसार मानव द्वारा निरीक्षण करने पर ही कोई भी घटना अपने आकार मे घटित होती है। हालांकि वैज्ञानिको के लिये किसी कण का एक साथ एकाधिक अवस्थाओं मे होना निराश करता है, उससे ज्यादा निराशा इस बात से होती है कि हमारा निरीक्षण परिणामों को प्रभावित करता है। लेकिन कम से कम हम संतोष कर सकते है कि हमारे निरीक्षण के दौरान वह कण सभी अवस्थाओं मे ना होकर एक ही अवस्था मे होता है।

समांतर ब्रह्मांड वाली अवधारणा इससे कम सान्त्वना देने वाली अवधारणा है। यह अवधारणा हमारे द्वारा क्वांटम विश्व मे किसी भी परिवर्तन की शक्ति को हम से छीन लेती है। इसके अनुसार हम क्वांटम विश्व मे घटने वाली घटनाओं के लिये दर्शक मात्र है, जिससे सभी संभव परिणाम एक साथ आते रहते है। इसके अनुसार क्वांटम विश्व मे कार्य-कारण सिद्धांत(cause and effect) रद्दी की टोकरी मे डालने योग्य होता है।

यही समांतर ब्रह्मांड सिद्धांत कुछ हद तक निराशाजनक है। यदि यह सही है तब किसी समांतर विश्व मे एडाल्फ हिटलर ने सारा विश्व जीतने मे सफलता पायी होगी लेकिन किसी समांतर विश्व मे सं रा अमरीका ने हिरोशीमा और नागाशाकी पर परमाणु बम भी नही डाले होंगे।

समांतर ब्रह्माण्ड अवधारणा ओक्केम रेजर के आइडीये से भी सुसंगत नही है, जिसके अनुसार सबसे सरल व्याख्या ही सही होती है। समांतर ब्रह्माण्ड अवधारणा के अनुसार समय भी सुसंगत रैखिक गति नही करता है, वह किसी पेड़ की शाखाओं के जैसे है। समय की ये शाखायें किसी भी घटना के एकाधिक संभव परिणाम के फलस्वरूप उत्पन्न हुयी है।

वर्तमान मे क्वांटम भौतिकी के भविष्य का अनुमान लगाना कठिन है। सैद्धांतिक क्वांटम भौतिकी ने पिछली सदी मे अपने जन्म से लेकर अभी तक काफी प्रगति की है। हालांकि अपनी भिन्न व्याख्या के बावजूद निल्स बोह्र ने हग एवरेट्ट के समांतर विश्व की अवधारणा को स्वीकृति दी होती क्योंकि निल्स बोह्र ने ही कहा था कि

कोई भी व्यक्ति जिसे क्वांटम भौतिकी ने झटका नही दिया हो, उसने इसे समझा ही नही है।

“Anyone who is not shocked by quantum theory has not understood it.”.

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14 विचार “क्वांटम आत्महत्या और श्रोडीन्गर की बिल्ली&rdquo पर;

  1. मै पिछले दो तीन सालों से विज्ञान विश्व को फालो कर रहा हूँ, इसने विज्ञान सम्बन्धी हमारी कई धारणाओं का बहुत सरल तरीके व्याख्यान दिया है, जिसमें क्वांटम सिद्धान्त प्रमुख है। कार्य- कारण का सिद्धान्त इसके अन्तर्गत डगमगाता सा प्रतीत होता है और यही इसका सौन्दर्य भी है।

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  2. यह क्वाटम सिद्धान्त और समानांतर ब्रह्मांड भारतीय दर्शन जैसा वैचारिक लग रहा है । जो की केवल गुढ शाब्दिक जादू है । हकीकत से मिलो दूर ।

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    1. क्वाटम सिद्धान्त प्रायोगिक तथा गणितिय रूप से प्रमाणित है। आपके आसपास का हर इलेक्ट्रानिक उपकरण क्वांटम सिद्धांत का पालन करता है।

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