ऊर्जा संकट : थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टर


भविष्य में ऊर्जा संकट की आशंका से समस्त विश्व जूझ रहा है, और डर के इस माहौल में एक बार फिर से थोरियम ऊर्जा की चर्चा में आ गई है। इसे भविष्य का परमाणु ईंधन बताया जा रहा है। थोरियम के बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि यूरेनियम की तुलना में यह कहीं ज़्यादा स्वच्छ, सुरक्षित और ‘ग्रीन(पर्यावरण हितैषी)’ है।

समस्त विश्व में थोरियम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और यह पूरी पृथ्वी पर लगभग हर जगह उपलब्ध है। किसी परमाणु भट्टी में सक्रिय होने के दौरान इसकी कुछ रासायनिक और भौतिक विशेषताएँ होती हैं जो इसे यूरेनियम से बेहतर बना देती है। परमाणु भट्टियों में थोरियम का प्रयोग यूरेनियम से अधिक सुरक्षित होंता है| जब कोई परमाणु रिएक्टर ज्यादा गर्म हो जाता है और ईंधन की छड़ें श्रृंखलाबद्ध में विस्फोटों का सिलसिला जारी नहीं रख पाती हैं और संकट जारी कहता है। यही फुकुशिमा में हुआ था। लेकिन अगर किसी थोरियम रिएक्टर में कुछ होता है तो तकनीशियन आसानी से उत्प्रेरक को बंद कर सकेंगे और इसकी प्रतिक्रिया ख़ुद ब ख़ुद रुक जाएगी। थोरियम बिना किसी मानवीय दख़ल के बंद हो जाएगा। आपको बस एक स्विच ऑफ़ करना होगा।

परमाणु भट्टियों में थोरियम अधिक सुरक्षित है और इसके ज़रिए बम बनाना भी तक़रीबन नामुमकिन है। ये वो महत्वपूर्ण वजहें हैं जिनकी वजह से दुनिया भविष्य के ईंधन की आपूर्ति की ओर देख रही है।

इन सब आशावादी बयानों में भारत का भविष्य सबसे बेहतर दिखता है क्योंकि दुनिया के ज्ञात थोरियम भंडार का एक चौथाई भारत में है।

क्या है थोरियम?

थोरियम (Thorium) आवर्त सारणी के ऐक्टिनाइड श्रेणी (actinide series) का प्रथम तत्व है। पहले यह चतुर्थ अंतर्वर्ती समूह (fourth transition group) का अंतिम तत्व माना जाता था, परंतु अब यह ज्ञात है कि जिस प्रकार लैथेनम (La) तत्व के पश्चात् 14 तत्वों की लैथेनाइड शृंखला (lanthanide series) प्रांरभ होती है, उसी प्रकार ऐक्टिनियम (Ac) के पश्चात् 14 तत्वों की दूसरी शृंखला आरंभ होती है, जिसे एक्टिनाइड शृंखला कहते हैं। थोरियम के अयस्क में केवल एक समस्थानिक(द्रव्यमान संख्या 232) पाया जाता है, जो इसका सबसे स्थिर समस्थानिक (अर्ध जीवन अवधि 1.4 x 1010 वर्ष) है। परंतु यूरेनियमरेडियम तथा ऐक्टिनियम अयस्कों में इसके कुछ समस्थानिक सदैव वर्तमान रहते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 227, 228, 230, 231 तथा 234 हैं। इनके अतिरिक्त 224, 225, 226, 229 एवं 233 द्रव्यमान वाले समस्थानिक कृत्रिम उपायों द्वारा निर्मित हुए हैं।

थोरियम धातु की खोज 1828 ई में बर्ज़ीलियस ने थोराइट अयस्क में की थी। यद्यपि इसके अनेक अयस्क ज्ञात हैं, परंतु मोनेज़ाइट (monazite) इसका सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं, जिसमें थोरियम तथा अन्य विरल मृदाओं के फॉस्फेट रहते हैं। संसार में मोनेज़ाइट का सबसे बड़ा भंडार भारत के केरलराज्य में हैं। बिहार प्रदेश में भी थोरियम अयस्क की उपस्थिति ज्ञात हुई है। इनके अतिरिक्त मोनेज़ाइट अमरीका, आस्ट्रलिया, ब्राज़िल और मलाया में भी प्राप्त है।

मौनेज़ाइट को सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की प्रक्रिया कर आंशिक क्षारीय विलयन मिलाने से थोरियम फॉस्फेट का अवक्षेप बनता है। इसको सल्फ्यूरिक या हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में घुला कर फिर फॉस्फेट अवक्षिप्त करते हैं। इस क्रिया को दोहराने पर थोरियम का शुद्ध फॉस्फेट मिलता है।

Monazit_opening_acid

थोरियम क्लोराइड को सोडियम के साथ निर्वात में गरम करने से थोरियम धातु मिलती है। थोरियम आयोडाइड (Th I4) के वाष्प को गरम टंग्स्टन तंतु (filament) पर प्रवाहित करने से, या थोरियम ऑक्साइड (ThO2) पर कैल्सियम की प्रक्रिया द्वारा भी, थोरियम धातु प्राप्त हो सकती है।

 

thorium reserveविश्व में थोरियम के भण्डार

USGS द्वारा अनुमानित थोरियम भण्डार]], टन में (2011)
देश भण्डार
भारत 963,000
संयुक्त राज्य अमेरिका 440,000
आस्ट्रेलिया 300,000
ब्राजील 16,000
कनाडा 100,000
मलेशिया 4,500
दक्षिण अफ्रीका 35,000
अन्य देश 90,000
सम्पूर्ण विश्व का योग 1,913,000

भारत मे थोरियम के भंडार

thorium reserve Indiaसंसार में मोनेज़ाइट का सबसे बड़ा भंडार भारत के केरल राज्य में हैं। बिहार प्रदेश में भी थोरियम अयस्क की उपस्थिति ज्ञात हुई है। थोरियम की प्राप्ति के प्रमुख क्षेत्र है। तमिलनाडु में मदुरै ज़िले का मसूर तालुका क्षेत्र,आंध्र प्रदेश में करीमनगर, मेडक, तीमापुर तथा बसवापुरम क्षेत्र, झारखण्ड में हज़ारीबाग़ा ज़िले के पैटो, बराबार, परसवाद, धाबुआडीह तथा बंसोधरवा क्षेत्र तथा राजस्थान में पाली एवं भीलवाड़ा।

थोरियम का ऊर्जा के लिये प्रयोग

महत्वपूर्ण प्रश्न  है कि अब तक थोरियम के रिएक्टरों का उपयोग क्यों नहीं शुरू हो पाया है, जबकि इस तत्व की खोज हुए पौने दो सौ साल से ऊपर बीत चुके हैं? इसका सर्वमान्य उत्तर  है कि-

थोरियम रिएक्टर के तेज़ विकास के लिए विकसित देशों की सरकारों और वैज्ञानिक संस्थाओं का सहयोग चाहिए, और इसके लिए वे ज़्यादा इच्छुक नहीं हैं। सबको पता है कि यूरेनियम और प्लूटोनियम की ‘आपूर्ति श्रूंखला (supply chain)’ पर कुछेक देशों का ही नियंत्रण है, जिसके बल पर वो भारत जैसे बड़े देश पर भी मनमाना शर्तें थोपने में सफल हो जाते हैं। इन देशों को लगता है कि थोरियम आधारित आणविक ऊर्जा हक़ीक़त बनी, तो उनके धंधे में मंदी आ जाएगी, उनकी दादागिरी पर रोक लग सकती है। और भारत जैसा देश परमाणु-वर्ण-व्यवस्था के सवर्णों की पाँत में शामिल हो सकता है।

थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टर के विकास में खुल कर अनिच्छा दिखाने वालों में यूरोपीय संघ सबसे आगे है। शायद ऐसा इसलिए कि ज्ञात थोरियम भंडार में नार्वे के अलावा यूरोप के किसी अन्य देश का उल्लेखनीय हिस्सा नहीं है। (वैसे तो, रूस में भी थोरियम का बड़ा भंडार नहीं है, लेकिन वहाँ भविष्य के इस ऊर्जा स्रोत पर रिसर्च जारी है। शायद, थोरियम रिएक्टरों के भावी बाज़ार पर रूस की नज़र है!)

यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन(CERN) ने थोरियम ऊर्जा संयंत्र के लिए ज़रूरी एडीएस रिएक्टर(accelerator driven system reactor) के विकास की परियोजना शुरू ज़रूर की थी। लेकिन जब 1999 में ADS रिएक्टर का प्रोटोटाइप संभव दिखने लगा तो यूरोपीय संघ ने अचानक इस परियोजना पर पूँजी लगाने से हाथ खींच लिया।

यूनीवर्सिटी ऑफ़ बैरगेन के इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़िजिक्स एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफ़ेसर एगिल लिलेस्टॉल यूरोप और दुनिया को समझाने की अथक कोशिश करते रहे हैं कि थोरियम भविष्य का ऊर्जा स्रोत है। उनका कहना है कि वायुमंडल में कार्बन के उत्सर्जन को कम करने के लिए ऊर्जा खपत घटाना और सौर एवं पवन ऊर्जा का ज़्यादा-से-ज़्यादा दोहन करना ज़रूरी है, लेकिन ये समस्या का आंशिक समाधान ही है। प्रोफ़ेसर लिलेस्टॉल के अनुसार भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा सिर्फ़ परमाणु ऊर्जा ही दे सकती है, और बिना ख़तरे या डर के परमाणु ऊर्जा हासिल करने के लिए थोरियम पर भरोसा करना ही होगा।

उनका कहना है कि थोरियम का भंडार यूरेनियम के मुक़ाबले तीन गुना ज़्यादा है। प्रति इकाई उसमें यूरेनियम से 250 गुना ज़्यादा ऊर्जा है। थोरियम रिएक्टर से प्लूटोनियम नहीं निकलता, इसलिए परमाणु बमों के ग़लत हाथों में पड़ने का भी डर नहीं। इसके अलावा थोरियम रिएक्टर से निकलने वाला कचरा बाक़ी प्रकार के रिएक्टरों के परमाणु कचरे के मुक़ाबले कहीं कम रेडियोधर्मी होता है।

प्रोफ़ेसर एगिल लिलेस्टॉल के बारे में सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन की थोरियम रिएक्टर परियोजना में वो उपप्रमुख की हैसियत से शामिल थे। उनका कहना है कि मात्र 55 करोड़ यूरो की लागत पर एक दशक के भीतर थोरियम रिएक्टर का प्रोटोटाइप तैयार किया जा सकता है। लेकिन डर थोरियम युग में भारत जैसे देशों के परमाणु ईंधन सप्लायर बन जाने को लेकर है, सो यूरोपीय संघ के देश थोरियम रिएक्टर के विकास में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे।

हर्ष की बात है कि भारत अपने बल पर ही थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा के लिए अनुसंधान में लगा हुआ है। भारत की योजना मौजूदा यूरेनियम आधारित रिएक्टरों को हटा कर थोरियम आधारित रिएक्टर लगाने की है। कहने की ज़रूरत नहीं कि भारत को इसमें सफलता ज़रूर ही मिलेगी।

भारत ने विद्युत उत्पादन के लिए नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग के संबंध में सावधानीपूर्वक कदम आगे बढाए हैं । इसके लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम बनाकर उसका क्रियान्वयन किया गया । इसके अंतर्गत निर्धारित उद्देश्यों में प्राकृतिक रुप से उपलब्ध तथा उच्च सम्भावना वाले तत्वों यूरेनियम एवं थोरियम का उपयोग भारतीय नाभिकीय विद्युत रिएक्टरों में नाभिकीय ईंधन के रूप में करना है ।

 

थोरियम आधारित रिएक्टर

thorium_fig1सतत आधार पर ऊर्जा सुरक्षा देने के लिए भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का दीर्घावधि केंद्रीय उद्देश्य थोरियम का प्रयोग है। भारतीय कार्यक्रम का तीसरा चरण थोरियम-यूरेनियम 233 चक्र पर आधारित है। इस दिशा में एक छोटी शुरूआत के तौर पर सीमित रूप से थोरियम का अनुसंधान रिएक्टरों और दाबित गुरुजल रिएक्टरों में इस्तेमाल किया गया है।

अनुसंधान रिएक्टर “कामिनी” विभिन्न पदार्थो की न्यूट्रान रेडियोग्राफी के लिए 30 किलोवाट का सीमित विद्युत उत्पादन करता है और कलपक्कम स्थित इस रिएक्टर में थोरियम से हासिल किए गए यूरेनियम-233 ईंधन का प्रयोग होता है। इस ईंधन का देश में ही उत्पादन, पुन: प्रसंस्करण और संविचरण किया जाता है।

थोरियम तकनीक की लाभ/हानी

लाभ

  1.  उपलब्धता : थोरियम युरेनियम की तुलना मे तीन से चार गुणा मात्रा मे उपलब्ध है।
  2. युरेनियम के विपरित इसका एक ही समस्थानिक(isotope) है इसलिये इसमे समस्थानिको के पृथ्थकरण की समस्या नही आती है।
  3. थोरियम आधारित रिएक्टरो से हथियारों के लिये रेडियो सक्रिय युरेनियम U233 प्राप्त करना कठिन है।
  4. थोरियम आधारित श्रूंखला अभिक्रिया(chain reaction) अनियंत्रित नही हो सकती है।

समस्यायें

  1. थोरियम तकनीक मे भारी जल की आवश्यकता होती है, जबकि युरेनियम तकनीक मे सामान्य जल का प्रयोग हो सकता है। इस कारण थोरियम युरेनियम की तुलना मे महंगा पढ़ता है।
  2. थोरियम का सीधे सीधे ईंधन के रूप मे प्रयोग नही हो सकता है, इसका प्रयोग दो चरण या तीन चरण के रिएक्टरो मे होता है।

थोरियम से ऊर्जा का उत्पादन कैसे होता है ?

भारतीय नाभिकीय विद्युत उत्पादन कार्यक्रम के अंतर्गत एक तीन चरणीय कार्यक्रम (चरण 1,चरण 2, चरण 3 ) का समावेश है

पहला चरण – दाबित भारी पानी रिएक्टर

reacto1जिसमें निम्नलिखित का उपयोग होता है :

  • ईंधन  के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम डाई-ऑक्साइड
  • मंदक (moderator)एवं शीतलक(coolant) के रूप में भारी पानी(Heavy Water)

प्राकृतिक यूरेनियम आईसोटोप का संयोजन इस प्रकार है – 0.7% विखण्डन U-235 और बाकी U-238

  • U-235 (n, f) अनेक रेडियो सक्रिय विखंडन उत्पाद + ऊर्जा की बड़ी मात्रा
  • U-238 (n, γ, -) Pu- 239

पहले दो संयंत्र क्वथन जल रिएक्टर (Boiling Water Reactor)थे जो कि आयातित प्रौद्योगिकी पर आधारित थे। बाद वाले संयंत्र स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास प्रयासों द्वारा बनाए गये PHWR(pressurized heavy-water reactor) प्रकार के हैं । भारत ने इस प्रौद्योगिकी में पूर्ण आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है और कार्यक्रम का यह चरण औद्योगिक क्षेत्र में है ।

भावी योजना में निम्नलिखित का समावेश है –

  • विद्युत उत्पादन बढ़ाने हेतु रूसी प्रौद्योगिकी पर आधारित VVER (The Voda Voda Energo Reactor (VVER), or WWER)प्रकार के संयंत्रों का स्थापन प्रगति पर है ।
  • मॉक्स ईंधन(मिश्रित आक्साइड) का विकास किया गया है और तारापुर में ईंधन के संरक्षण तथा नई ईंधन प्रौद्योगिकी विकसित करने हेतु इसका प्रयोग किया गया है।

भुक्तशेष ईंधन का पुनर्संसाधन : विवृत्त अथवा संवृत चक्र की विधि द्वारा होती है।

  1. विवृत चक्र का संदर्भ अपशिष्ट उपचार के बाद सम्पूर्ण अपशिष्ट निपटान से है । इसके परिणामस्वरुप यूरेनियम की ऊर्जा क्षमता का बृहत् उपयोग दिखाई पड़ता है । (लगभग 2% का उपयोग होता है )
  2. संवृत चक्र का संदर्भ U-238 एवं Pu-239 के रासायनिक पृथक्करण और आगे पुनश्चक्रण से जबकि अन्य रेडियो सक्रिय विखण्डन पदार्थों का उनकी अर्धायु एवं सक्रियता के अनुसार पृथक्करण किया गया तथा छंटाई की गई तथा उनकी न्यूनतम पर्यावरणीय असामान्यताओं का समुचित प्रकार से निपटान किया गया ।
    • सामान्यत दोनो प्रकार के विकल्प प्रयोग में लाये जाते हैं ।
    • दीर्घकालीन ऊर्जा नीति के एक भाग के रूप में, जापान और फ्रांस ने संवृत चक्र को चुना है ।
    • भारत में संवृत चक्र विधि पसन्द की गई है द्वितीय और तृतीय चरणों के माध्यम से नाभिकीय विद्युत उत्पादन के चरणबद्ध विस्तार कार्यक्रम को देखते हुए संसाधन एवं अपशिष्ट प्रबंधन हेतु स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास तथा पुनर्संसाधन संयंत्रों का स्थापन किया गया है । ये संयंत्र प्रचालनरत हैं तथा इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई है ।

दूसरा चरण – तीव्र प्रजनक रिएक्टर(Fast Breeder Reactor)

भारत के नाभिकीय विद्युत उत्पादन के द्वितीय चरण में रिएक्टर प्रचालन के प्रथम चरण से प्राप्त Pu-239 का मुख्य ईंधन के रूप में तीव्र प्रजनक रिएक्टर (FBR) में उपयोग करने पर विचार किया गया है ।

  • FBR में Pu-239 मुख्य विखण्डण तत्व के रूप में कार्य करता है ।
  • ईंधन कोर के चारों ओर U-238 के समाच्छद से नाभिकीय तत्वांतरण के कारण नये Pu-239 पैदा होंगे तथा प्रचालन के दौरान अधिक से अधिक Pu-239 की खपत होगी ।
  • इसके अलावा FBR के चारो ओर उपस्थित Th-232 का समाच्छद(आवरण) भी न्यूट्रानग्राही(Neutron Absorption) अभिक्रिया करेगा जिससे U-233 का निर्माण होगा U-233 भारत के नाभिकीय विद्युत कार्यक्रम के तृतीय चरण के लिए नाभिकीय रिएक्टर ईंधन हैं ।
  • तकनीकी रूप से FBR से सतत रूप से 420 GWe ऊर्जा का उत्पादन करना संभव है ।
  • 500 MWe विद्युत उत्पादन Pu-239 ईंधन से चालित तीव्र प्रजनक रिएक्टर(FBR) का स्थापन कार्य प्रगति पर है । इसके साथ-साथ उन्नत भारी पानी रिएक्टरों(AHWR) में प्लूटोनियम – आधारित ईंधन के थोड़ी मात्रा में निवेश के साथ थोरियम आधारित ईंधन के उपयोग का प्रस्ताव है । आशा की जाती है कि AHWR से थोरियम के बृहत् उपयोग वाले चरण तक पहुंचने में लगने वाली अवधि में कमी आयेगी ।

तृतीय चरण – प्रजनक रिएक्टर(Breeder Reactor)

भारत के नाभिकीय विद्युत उत्पादन कार्यक्रम के तृतीय चरण में प्रजनक रिएक्टरों में U-233 ईंधन का प्रयोग किया जाना है । भारत में थोरियम के विशाल भंडारों को देखते हुए U-233 ईंधन के प्रयोग से संचालित होने वाले प्रजनक रिएक्टरों का अभिकल्पन (Design)एवं प्रचालन(Operation) संभव है ।

  • U- 233 को Th-232 जिसका उपयोग द्वितीय चरण वाले Pu- 239 ईंधन द्वारा चालित तीव्र प्रजनक रिएक्टर में समाच्छद(आवरण) के रूप में होता है, के नाभिकीय तत्वांतरण से प्राप्त किया जाता है ।
  • इसके अलावा U-233 ईंधन से संचालित प्रजनक रिएक्टरों में U-233 रिएक्टर के चारों ओर Th-232 का समाच्छद(आवरण) होता है जिससे रिएक्टर के प्रचालन के समय के दौरान और अधिक U-233 उत्पादित होते हैं । इससे लम्बे समय तक विद्युत उत्पादन हेतु ईंधन की आवश्यकता पूरी होती रहती है ।
  • U-233/Th-232 आधारित प्रजनक रिएक्टर विकासाधीन हैं और भारत के नाभिकीय कार्यक्रम के थोरियम के उपयोग वाले अंतिम चरण में इन्हीं की प्रधानता रहेगी । भारत का वर्तमान ज्ञात थोरियम भंडार 3,58,000 GWe-yr विद्युत ऊर्जा देने की क्षमता रखता है तथा इससे बड़ी आसानी के साथ अगली सदी या और उससे आगे की ऊर्जा आवश्यकतायें पूरी की जा सकती हैं।

कामिनी

यह कल्पक्कम स्थित इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र में 30 kWt क्षमतावाला रिएक्टर है। यह रिएक्टर अक्तूबर 1996 में क्रांतिक हुआ जो न्यूट्रान रेडियोग्राफी सुविधाएं उपलब्ध कराता है । हमारे विस्तृत थोरियम भंडार के उपयोग की दिशा में यह एक छोटी परंतु महत्वपूर्ण उपलब्धि है । दुनिया का एकमात्र थोरियम आधारित प्रायोगिक रिएक्टर भारत में ही है. भले ही, कामिनी नामक यह रिएक्टर मात्र 30Kw क्षमता का है, लेकिन इसे थोरियम आधारित ऊर्जा प्रौद्योगिकी का पहला सफल प्रदर्शन तो कहा ही जा सकता है । यह विश्व का एक मात्र रिएक्टर है जिसमें यूरेनियम – 233 ईंधन का प्रयोग होता है । परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा निर्मित कुछ बड़ी सुविधाएं अब पऊवि सुविधाओं हेतु अंतर विश्वविद्यालय संघ के माध्यम से विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के उपयोग के लिए उपलब्ध हैं ।

अन्य भारतीय परियोजनाये और भविष्य

बार्क(BARC) 300 मेगावाट वाले उन्नत गुरुजल(भारी जल) रिएक्टर(AHWR) का विकास कर रहा है। यहां के अनुसंधान और विकास प्रयासों का उद्देश्य थोरियम के इस्तेमाल में महारत हासिल करना और सुरक्षा के उन्नत तरीकों का प्रदर्शन करना है।

इसकी संरचना थोरियम से लगभग 75 फीसदी विद्युत उत्पा्दन के अनुकूल है। विश्व में अपनी तरह का एकमात्र होने के कारण AHWR(advanced heavy-water reactor  ) की संरचना लगातार वैज्ञानिकों की नजर में रहती है ताकि यह अनुकूलतम और सर्वमान्य बन सके। AHWR में इस्तेमाल के लिए मिश्रित थोरियम-यूरेनियम और थोरियम-प्लूटोनियम विकल्पों पर विचार हो रहा है। पारंपरिक पाउडर धातुविज्ञान के तरीकों से ईंधन के पैलेटों का सफलतापूर्वक संविचरण किया गया है। इस रिएक्टर में अनेक उन्नत सुरक्षा विशेषताएं हैं। मुख्यत विन्यास सहित सम्पूर्ण भौतिक डिजाइन बनाने का कार्य पूरा हो चुका है। AHWR से जुड़ी भौतिक गणनाओं के प्रमाणीकरण के लिए बार्क में महत्वपूर्ण सुविधा स्थापित की जा रही है।

मुख्य: प्रक्रिया ऊष्मा तथा नॉन-ग्रिड आधारित विद्युत उत्पा्दन प्रयोगों के लिए हाइड्रोजन उत्पा्दन हेतु सघन उच्च् ताप रिएक्टर, परमाणु विद्युत पैक तथा उच्चताप रिएक्टर सहित एक उच्चताप रिएक्टर प्रणाली के विकास और डिजाइन बनाने का कार्य भी ट्रांबे में चल रहा है।

यूरेनियम-233 को विकिरित(used) थोरियम ईधन से संयंत्र द्वारा अलग करने के लिए यूरेनियम- थोरियम पृथक्कतरण सुविधा ट्रांबे में उपलब्ध है।

दूरदराज के क्षेत्रों में विद्युत उत्पारदन वैकल्पिक परिवहन ईधन जैसे हाइड्रोजन और निम्न स्तर के कोयला और तैलीय पदार्थो के पुन: संशोधन से जीवाष्म तरल ईंधन प्राप्त करने के लिए एक संघनित उच्च ताप रिएक्टर(compact high temprature reactor) का विकास बार्क द्वारा किया जा रहा है। इसकी क्षमता 100 किलोवॉट होगी।

थोरियम से यूरेनियम-233 विखण्डित पदार्थ को बनाने के लिए नाभिकीय रिएक्टरों के लिए एक्सीलरेटर ड्रिवन सब-क्रिटिकल प्रणाली (Accelerator-driven system (ADS)) भारतीय परमाणु कार्यक्रम की नवीनतम उपलब्धि है। थोरियम के बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए ADS एक मजबूत प्रौद्योगिक आधार प्रदान कर सकता है। इस प्रविधि में लंबी जीवन अवधि के एक्टीमनाइड्स और विखंडनीय उत्पादों को पूरी तरह जलाया जा सकेगा एवं दीर्घ जीवन अवधि वाली उच्च स्तरीय रेडियोसक्रिय अपशिष्ट सामग्री के भंडारण में आने वाली तकनीकी समस्याओं को कम किया जा सकेगा। इस प्रणाली के सफल विकास के लिए प्रोटोन इंजेक्टर का विकास परमाणु ऊर्जा विभाग ने शुरू किया है। सब-क्रिटिकल एसेम्बली पर प्रयोगात्मक अध्ययन करने के लिए एक 14 MeVन्यूट्रान जेनरेटर को ज्यादा करंट आयन स्रोत के साथ उन्नत किया गया है।

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स्रोत  :

  1.  http://divainternational.ch/spip.php?article161
  2. http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2013/11/131031_thorium_future_fuel_vr.shtml
  3. http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A5%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
  4. http://en.wikipedia.org/wiki/Thorium
  5. http://en.wikipedia.org/wiki/Thorium-based_nuclear_power

 

 

11 विचार “ऊर्जा संकट : थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टर&rdquo पर;

    1. हायड्रोजन के तीन समस्थानिक है H, D, T
      H के केंद्र मे एक प्रोटान, D के केंद्र मे एक प्रोटान एक न्युट्रान, T के केंद्रक मे एक प्रोटान और दो न्यूट्रान होते है।
      साधारण जल मे हायड्रोजन H के दो परमाणु और आक्सीजन का एक परमाणु होता है।
      भारी जल मे H की जगह D या T होता है।

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    1. भारी जल, हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यूटीरियम का आक्साइड हैं। इसमे ०.०१४ % साधारण जल होता हैं। रसायन की भाषा मे हाइड्रोजन ऑक्साइड (H2O, अणुभार 18) है। इस के एक अणु मे ऑक्सीजन का एक परमाणु हाइड्रोजन के दो परमाणुओं से सह संयोजी बन्ध से जुड़ा रहता है। हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक (आइसोटोप) पाये जाते हैं, अन्य दो ड्यूटीरियम और ट्रिटियम कहलाते हैं, जिनका परमाणु भार क्रमशः 2 और 3 होता है। सामान्यत: प्राकृतिक जल मे जल के ऐसे अणुओं की संख्या चार करोड़ दस लाख और एक के अनुपात में होती है जिसमे हाइड्रोजन का दूसरा समस्थानिक पाया जाता है। इस प्रकार के जल के अणु को D2O (अणुभार 20) से निरूपित किया जाता है। ऐसा जल जिसमे 99 प्रतिशत से अधिक अणु D2O के होते हैं उसको भारी जल के नाम से जाना जाता है, इसका घनत्व (1.1044) सामान्य जल (1.0) से अधिक होता है।
      भारी जल का व्यावसायिक उत्पादन मुख्यतः रासायनिक विधि से किया जाता है जिसमे गतिज समस्थानिक प्रभाव (Kinetic Isotope Effect) तकनीक का प्रयोग होता है। भारी जल का मुख्य उपयोग नाभिकीय संयन्त्रों मे होने वाली नाभिकीय विघटन क्रियाओं के दौरान उत्पन्न न्यूट्रॉन को अवशोषित करने के लिये मंदक के रूप मे होता है। जिससे की नाभिकीय ऊर्जा का नियन्त्रित उत्पादन और शान्तिपूर्ण उपयोग किया जा सके। यहाँ भारी जल के स्थान पर साधारण जल का भी प्रयोग किया जा सकता है लेकिन उस परिदृश्य मे संयन्त्र मे यूरेनियम 235 का ही प्रयोग किया जा सकता है, क्योकि साधारण जल भारी जल की अपेक्षा अधिक न्यूट्रॉन अवशोषित कर लेता है।

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  1. थोरियम घोटाले पर विस्तृत ब्लॉग

    hindi.ibtl.in/blog/1136/thorium-scam-a-step-further

    अगर थोरियम की विदेशी साजिश के तहत तश्करी की बात सत्य है,तो ये बेहद निराशाजनक है।
    ये महान भाभा की दूरदर्शिता का अपमान है।
    नेहरूजी की थोरियम निर्यात प्रतिबंध निति बेहद सराहनीय कदम था।

    इस ब्लॉग में रामसेतु के पत्थरों के भी थोरियम अयस्कों से बने होने की बात बताई गयी है। क्या ये सही है??

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    1. थोरीयम घोटाले का कोई आधार नही है! थोरियम तकनीक केवल भारत के पास है, किसी अन्य देश के पास यह तकनीक है ही नही! तब कोई अन्य देश थोरीयम का क्या करेगा ?
      भारत के सारे सागर तट की रेत मे थोरीयम है!
      रामसेतु के पत्थरो का आयतन कम है और वे पानी पर तैरते है। थोरियम रेडीयो सक्रिय तत्व है और भारी होता है। थोरियम से बना पत्थर पानी मे तैरे, मुश्किल लगता है!

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  2. आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन पूँजी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।

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  3. थोरियम को काली रेत कहा जाता है केरल में अवैध तरीके से कुछ नेताओं द्वारा भण्डारण और तस्करी की बातें आये दिन सुनने को मिल रही है

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    1. मोनेज़ाइट की तस्करी और भंडारण का औचित्य समझ मे नही आता क्योंकि इससे थोरियम के परिष्करण के विधि इतनी कठिन है कि इसे आसानी से निकाला नही जा सकता। दूसरा वर्तमान मे थोरियम नाभिकिय रिएक्टर केवल भारत के पास है, कलपक्कम मे कामीनी के नाम से!

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