प्रश्न आपके उत्तर हमारे : सितंबर 1, 2013 से सितंबर 30,2013 तक के प्रश्न


जहाज लोहे से बना होता है लेकिन पानी मे क्यों नही डूबता ?
जहाज लोहे से बना होता है लेकिन पानी मे क्यों नही डूबता ?

प्रश्न 1 : जब एक लोहे का टुकडा पानी मेँ डूब जाता है तो लोहे का बडा जहाज क्योँ नहीँ डूबता?

-Mahesh Manikpuri  सितम्बर 2, 2013

उत्तर : आर्कमीडीज के सिद्धांत से! लोहे के जहाज़ का आयतन(volume) उसके भार(weight) से अधिक होता है। लोहे का जहाज़ अपने आयतन के बराबर पानी विस्थापित(displace) करता है, यह विस्थापित जल अपने आयतन के तुल्य बल(force) जहाज़ पर लगाता है जिससे जहाज़ पानी पर तैरता है।

जबकि लोहे के टुकड़े का आयतन उसके भार से कम होता है, उसके द्वारा विस्थापित जल उसके भार से कम होता है जिससे वह डूब जाता है।

प्रश्न 2:पहले मुर्गी आयी या अण्डा?

-सागर सितम्बर 2, 2013

उत्तर: जीव विज्ञान के अनुसार जीवों का विकास क्रमिक रूप से हुआ है। मुर्गी और अंडे के विकास मे लाखों वर्ष लगे है। “मुर्ग़ी और अंडे मे पहले कौन आया?” इस प्रश्न के कोई मायने नहीं है क्योंकि इन दोनो का विकास एक साथ एक क्रम मे हुआ है। 

प्रश्न 3 :क्वांटम कंप्यूटर किस सिद्धांत पर आधारित हैं और यह हमारे आज के कंप्यूटर से किस प्रकार भिन्न होंगे? और आज क्या इन्हें बनाया जा चुका है?और एक सिद्धांत है जिसका मुझे नाम नहीं पता । पर वो शायद कुछ ऐसा है कि एक कण के साथ जो होता है वही किसी दुसरे के साथ भी होता है। और शायद इसकी खोज आइन्स्टीन ने की थी। तो यह सिद्धांत सही से वास्तव में क्या है और इसका नाम क्या है ये मुझे नहीं पता। कृपया इसे बताएं।

-अनमोल सितम्बर 2, 2013

उत्तर : क्वांटम कंप्युटर अभी एक अवधारणा है इसमे सूचनाये क्वांटम टेलीपोर्टेशन के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचायी जायेंगी। दूसरा प्रश्न जिस शब्द को आप भूल गये है वह “क्वांटम एन्टेंगलमेंट” है जो कि क्वांटम टेलीपोर्टेशन से ही संबधित है। इस विषय पर एक लेख क्वांटम भौतिकी श्रॄंखला मे है।

प्रश्न 4 :सर समय क्यो केवल आगे ही क्यो चलता है पिछे क्यो नही

-Ashutosh rao सितम्बर 4, 2013

मेरे पास पूरा उत्तर तो नही लेकिन इस लेख को पढे।

प्रश्न 5: अगर फ्युचर होता है तो हमे फ्युचर मे टाईम मशीन बना ली होगी तो फिर फ्युचर से हमे मिलने कोई क्यों नही आया ?

-अविशेष सितम्बर 7, 2013

यह एक मजबूत तर्क है कि समय यात्रा संभव होती तो भविष्य से समय यात्री आना चाहीये। लेकिन यह भी हो सकता है कि भविष्य के समय यात्री मात्र एक मूक दर्शक हों। वे हम से मिलने मे और कोई बदलाव करने मे असमर्थ हो। समय यात्री शायद भूतकाल मे कोई भी हस्तक्षेप करने मे असमर्थ होंगे क्योकि कोई भी हस्तक्षेप भविष्य को भी बदल देगा। कल्पना किजीये कि कोई समययात्री भूतकाल मे जाकर अपने दादा की उनके विवाह से पहले हत्या कर देता है, इस अवस्था मे वह स्वयं भी पैदा नही हो पायेगा।

प्रश्न 6: गणीत का एक प्रश्न

cos2π/7+cos4π/7+cos6π/7 = 1/2 प्रूव कर दिजीये

-SANTOSH SINGH सितम्बर 12, 2013

उत्तर : cos(2π/7)+cos(4π/7)+cos(6π/7)= -1/2

[a] sin (π-x) = sin x —-चरण 9 मे प्रयोग

[b] sin (π+x) = -sin x —-चरण 8 मे प्रयोग

[c] sin (-x) = -sin x —-चरण  6 मे दोबार प्रयोग

[d] sin 2x = 2 sin x cos x —-चरण 4 मे प्रयोग

[e] sin x cos y = (1/2)sin(x+y) + (1/2)sin(x-y) —-चरण 5 मे दो बार प्रयोग

1. cos(2π/7) + cos(4π/7) + cos(6π/7) =
2. 2sin(2π/7)[(cos(2π/7) + cos(4π/7) + cos(6π/7)] / 2sin(2π/7) =
3. [2sin(2π/7)cos(2π/7) + 2sin(2π/7)cos(4π/7) + 2sin(2π/7)cos(6π/7)] / 2sin(2π/7) =
4. [sin(4π/7) + 2sin(2π/7)cos(4π/7) + 2sin(2π/7)cos(6π/7)] / 2sin(2π/7) =
5. [sin(4π/7) + sin(6π/7) + sin(-2π/7) + sin(8π/7) + sin(-4π/7)] / 2sin(2π/7) =
6. [sin(4π/7) + sin(6π/7) – sin(2π/7) + sin(8π/7) – sin(4π/7)] / 2sin(2π/7) =
7. [sin(6π/7) – sin(2π/7) + sin(8π/7)] / 2sin(2π/7) =
8. [sin(6π/7) – sin(2π/7) – sin(π/7)] / 2sin(2π/7) =
9. [sin(π/7) – sin(2π/7) – sin(π/7)] / 2sin(2π/7) =
10. -sin(2π/7) / 2sin(2π/7) =
11. -1/2

प्रश्न 8 : सरजी, मैथामेटीक्स की हायर एजुकेशन लेवल रीसर्च मैथ्स की बुक जिससे मैथ्स मे गहरी रूची प्राप्त हो बताओ ना प्लीज…..

-SANTOSH SINGH सितम्बर 13, 2013

मैने एक पुस्तक पढ़ी है जो गणितज्ञ रामानुजन के जीवन पर आधारित है आप वह पढ सकते है। पुस्तक का नाम है  “The man who knew Infinity”। लेखक है Robert Kanigel

प्रश्न 9 :सरजी मेरा एक क्योश्चन …. मेथामेटीक्स और साइंस मे से कौन पहले आया …….

-SANTOSH SINGH सितम्बर 13, 2013

प्रसिद्ध गणितज्ञ कार्ल गास(Carl Friedrich Gauss (1777–1855)) ने गणित को विज्ञान की रानी(“the Queen of the Sciences”) कहा था।

विज्ञान और गणित दोनो एक दूसरे के पूरक है, दोनो अलग नही है। हर विज्ञान के सिद्धांत के पीछे गणित है, हर गणित का सूत्र विज्ञान है। कह सकते हैं कि दोनो का जन्म एक साथ हुआ है।

प्रश्न 10: सरजी एक क्योश्चयन और

i=complex number

i=√-1

” i i ”का मान बताओ

-SANTOSH SINGH सितम्बर 13, 2013

उत्तर

ii=0.20787957635

प्रश्न 12 : सरजी और नेक्सट क्योश्च्यन

पृथ्वी पर वायुमंडल है .. लेकिन अन्य ग्रहो पर वायुमंडल नही…. क्यों अन्य ग्रह इस ब्रह्माण्ड के पृथ्वी से अंतर क्यो हुआ ….. क्या विज्ञान द्वारा वहाँ जीवन संभव है?

-SANTOSH SINGH सितम्बर 13, 2013

उत्तर : आपकी जानकारी गलत है, मंगल, शुक्र, गुरु, शनि जैसे सभी ग्रहो पर वायुमंडल है। कुछ उपग्रह जैसे युरोपा, टाईटन पर भी वायुमंडल है, ज्यादा जानकारी के लिये इस ब्लाग को देखें http://navgrah.wordpress.com/

जीवन की संभावना के लिये आवश्यक वातावरण के लिये यह लेख देखें : परग्रही जीवन की तलाश

प्रश्न 13:  सायनाइड क्या है ?

-नागेन्द्र कुमार सितम्बर 18, 2013

उत्तर: सायनाईड एक ऐसा रासायनिक यौगिक है जिसमे CN(कार्बन -नायट्रोजन अणु) होते है, इसमे कार्बन के परमाणु के नायट्रोजन के परमाणु के साथ तीन बंधन होते है, कार्बन का चौथा बांड किसी धातु जैसे पोटेशीयम, मैग्नेशीयम के साथ होता है।

सायनाईड के उदाहरण पोटेशीयम साईनाईड(KCN), सोडीयम साइनाईड(NaCN) है। ये अत्याधिक जहरीले यौगिक होते है। ये शरीर की कोशीकाओ के माईटोकान्ड्रीया मे स्थित लोहे के परमाणू से प्रक्रिया करते है और ऊर्जा के प्रवाह को रोक देते है, इसके फलस्वरूप कोशीकाये आक्सीजन नही ले पाती है। इसके फलस्वरूप अंग जिन्हे आक्सीजन की अत्याधिक जरूरत होती है जैसे दिल, नर्वस सीस्टम कार्य करना बंद कर देते है और मृत्यु होने की संभावना बढ जाती है।

प्रश्न 14: कांच कैसे बना ? with Full detail and uses

-नागेन्द्र कुमार सितम्बर 18, 2013

उत्तर: विज्ञान की दृष्टि से ‘काच’ की परिभाषा बहुत व्यापक है। इस दृष्टि से उन सभी ठोसों को काच कहते हैं जो द्रव अवस्था से ठण्डा होकर ठोस अवस्था में आने पर क्रिस्टलीय संरचना नहीं प्राप्त करते। सबसे आम काच सोडा-लाइम काच है जो शताब्दियों से खिड़कियाँ और गिलास आदि बनाने के काम में आ रहा है। सोडा-लाइम काच में लगभग 75% सिलिका (SiO2), सोडियम आक्साइड (Na2O) और चूना (CaO) और अनेकों अन्य चीजें कम मात्रा में मिली होती हैं। काँच यानी SiO2 जो कि रेत का अभिन्न अंग है। रेत और कुछ अन्य सामग्री को एक भट्टी में लगभग 1500 डिग्री सैल्सियस पर पिघलाया जाता है और फिर इस पिघले काँच को उन खाँचों में बूंद-बूंद करके उंडेला जाता है जिससे मनचाही चीज़ बनाई जा सके। मान लीजिए, बोतल बनाई जा रही है तो खाँचे में पिघला काँच डालने के बाद बोतल की सतह पर और काम किया जाता है और उसे फिर एक भट्टी से गुज़ारा जाता है।

प्रश्न 15: सर जी वन टापीक आर्यभटा, ब्रह्म्गुप्त जैसे गणितज्ञ थे प्रश्न इनसे ये उठत है कि ये लोग गणित के साथ साथ बहुत अच्छे दार्शनिक और ज्योतिष भी थे तो गणित का दार्शनिकता और ज्योतिष का क्या संबध है… इतने फेमस हुये ?

– संतोष सिंह सितम्बर 18, 2013

उत्तर: प्राचीन भारत मे ज्योतिष का अर्थ खगोल शास्त्र था, वह ग्रहों की गति, नक्षत्र के आकाश मे गति, सूर्य चन्द्र के उदय अस्त, ग्रहण होने की गणना जैसे शुद्ध विज्ञान से संबंधित था। भविष्यवाणी का अर्थ था कि सूर्य चन्द्रमा कब किस नक्षत्र मे उदित होगा, कब ग्रहण होगा इत्यादि।

फलित ज्योतिषीयों ने उसे मनुष्य के भविष्य को ज्योतिष से जोड़कर उसे एक अलग ही रूप दे दिया और मूल विज्ञान कहीं खो गया।

दर्शन शास्त्र का तो हर विज्ञान से संबध है। मन मे उपजे हर प्रश्न का उत्तर पाने का नाम ही तो दर्शन है। वही विज्ञान है।

प्रश्न 16 : सरजी पहले इंगलीश दवाई नही थी  आयुर्वेदिक हुआ करते थे मनुष्य ताकतवर होते थे…. लेकिन आज बहुत से रोग बड़ रहे है… मुझे यह बताये क्या रोगो की संख्या पहले जमाने से आज के जमाने मे रोग ज्यादा है…..

– संतोष सिंह सितम्बर 19, 2013

उत्तर: भारत मे ही नही समस्त विश्व मे लोगो की औसत आयु बढ़ी है। रोगो की संख्या मे कमी आयी है। १९६० मे भारत मे आम आदमी की औसत आयु ४३ वर्ष थी वर्तमान मे वह ६४ वर्ष है। पहले महामारी(चेचक, प्लेग, हैजा इत्यादि) बीमारीयों मे शहर के शहर साफ हो जाते थे, हजारों की तादाद मे मौते हुआ करती थी, अब आधुनिक दवाईयों से ऐसा नही हो रहा है। बहुत सी बीमीरीयां जड़ से साफ हो गयी है, पिछले कुछ दशको से उनका कोई मरीज नही पाया गया है। भारत मे पोलीयो का कोई नया मरीज पिछले दो वर्षो मे नही मिला है। वर्तमान मे लोग बीमार हो रहे है उसके पीछे आयुर्वेदिक/अंग्रेजी दवाई नही है, वह है लोगो के रहन सहन मे बदलाव। लोग शारीरिक मेहनत नही करते है, आलसी होते जा रहे है, खानपान मे बदलाव आया है। मै आयुर्वेद और एलोपैथी मे कौन बेहतर है , इस विवाद मे नही पढुंगा। लेकिन दोनो मे दी जाने वाली दवाईयों मे कुछ रसायन होते है, आयुर्वेद मे वे प्राकृतिक होते है, जबकि ऐलोपैथी मे वे कृत्रिम होते है। विज्ञान की दृष्टि मे दोनो समान है।

प्रश्न 17 : सरजी आर्यभट्ट के ग्रंथ आर्यभटीय की तरह ब्रह्मगुप्त के ग्रंथ है.. इनमे टापीक क्या क्या हो सकते है ? शायद गणित के अलावा भी टापीक बताओ जिससे इन ग्रम्ठो के सीलेबस मे लेसन के नाम बताये क्या ये हिन्दी मे कनवर्ट है?

– संतोष सिंह सितम्बर 19, 2013

उत्तर: ब्रह्मगुप्त ने दो विशेष ग्रन्थ लिखे: ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त (सन ६२८ में) और खण्डखाद्यक या खण्डखाद्यपद्धति (सन् ६६५ ई में)। ‘ब्रह्मस्फुटसिद्धांत’ उनका सबसे पहला ग्रन्थ माना जाता है जिसमें शून्य का एक अलग अंक के रूप में उल्लेख किया गया है । यही नहीं, बल्कि इस ग्रन्थ में ऋणात्मक (negative) अंकों और शून्य पर गणित करने के सभी नियमों का वर्णन भी किया गया है । ये नियम आज की समझ के बहुत करीब हैं।

हाँ, एक अन्तर अवश्य है कि ब्रह्मगुप्त शून्य से भाग करने का नियम सही नहीं दे पाये: ०/० = ०.

“ब्रह्मस्फुटसिद्धांत” के साढ़े चार अध्याय मूलभूत गणित को समर्पित हैं। १२वां अध्याय, गणित, अंकगणितीय शृंखलाओं तथा ज्यामिति के बारे में है। १८वें अध्याय, कुट्टक (बीजगणित) में आर्यभट्ट के रैखिक अनिर्धार्य समीकरण (linear indeterminate equation, equations of the form ax − by = c) के हल की विधि की चर्चा है। (बीजगणित के जिस प्रकरण में अनिर्धार्य समीकरणों का अध्ययन किया जाता है, उसका पुराना नाम ‘कुट्टक’ है। ब्रह्मगुप्त ने उक्त प्रकरण के नाम पर ही इस विज्ञान का नाम सन् ६२८ ई. में ‘कुट्टक गणित’ रखा।) ब्रह्मगुप्त ने द्विघातीय अनिर्णयास्पद समीकरणों ( Nx2 + 1 = y2 ) के हल की विधि भी खोज निकाली। इनकी विधि का नाम चक्रवाल विधि है। गणित के सिद्धान्तों का ज्योतिष में प्रयोग करने वाला वह प्रथम व्यक्ति था। उसके ब्रह्मस्फुटसिद्धांत के द्वारा ही अरबों को भारतीय ज्योतिष का पता लगा।

  1. ब्रह्मगुप्त का ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त (संस्कृत पाठ , संस्कृत एवं हिन्दी में टीका)
  2. खण्डखाद्यक : पृथूदक स्वामीकृत टीका सहित

प्रश्न 18 : सर जी ये क्योश्चन मेरी पकड से बाहर है इसला जवाब विस्तृत देना? शुक्र शनि राहु केतु पंडित लोग फ्युचर इससे रीलेटेड बात करते है, क्या ये सब साईंस की देन भी मानी जाती है … और इसका जिक्र हिस्टरी भी बताये… और जो हमने पढा़ है सौरमंडल और ग्रहों के बारे मे जैसे मंगल बुध पृथ्वी ये सब बाते वेद से कीस रूप से जुडी हुयी हैं कौन है इस जादू का जन्मदाता जो कुंडली से लेकर जन्म और मृत्यु के बारे मे जागृत करता है?

– संतोष सिंह सितम्बर 19, 2013

यदि ज्योतिष को ग्रहों की गति की गणना के लिये प्रयोग करें तो वह विज्ञान है लेकिन किसी मनुष्य के भविष्य की गणना के लिये करें तो वह क्षद्म विज्ञान(झुठा विज्ञान) है! राहु-केतु इन दोनो ग्रहों का भौतिक अस्तित्व नही है, लेकिन जब सूर्य या चंद्र गहण होता है तब पृथ्वी/चंद्रमा की छाया को राहु/केतु माना जाता रहा है लेकिन इनका मनुष्य के भाग्य पर कोई प्रभाव नही पढता है। किसी भी ग्रह, नक्षत्र का किसी मनुष्य के भाग्य पर प्रभाव को विज्ञान नही मानता है।ग्रह शांति पूजा, भविष्य, जादू टोना कुछ लोगो की रोजी रोटी का साधन मात्र है, इसका विज्ञान से कोई लेना देना नही है। विज्ञान जादू टोना, मंत्र, भूत-प्रेत को नही मानता है। वेदो मे प्राकृतिक शक्तियों की पूजा के लिये मंत्र है, उनमे विज्ञान ढुंढने का प्रयास ना करें।

प्रश्न 19:फैराडे के वैद्युत अपघटन के दो नियम क्या क्या हैँ?

-Mahesh Manikpuri सितम्बर 19, 2013

उत्तर: फैराडे का विद्युत अपघटन का प्रथम नियम

विद्युत पघटन में विद्युताग्रों (एलेक्ट्रोड्स) पर जमा हुए पदार्थ की मात्रा धारा की मात्रा समानुपाती होती है। ‘धारा की मात्रा’ का अर्थ आवेश से है न कि विद्युत धारा से ।

फैराडे का विद्युत अपघटन का द्वितीय नियम

‘धारा की मात्रा’ समान होने पर विद्युताग्रों पर जमा/हटाये गये पदार्थ की मात्रा उस तत्व के तुल्यांकी भार के समानुपाती होती है। (किसी पदार्थ का तुल्यांकी भार उसके मोलर द्रव्यमान को एक पूर्णांक से भाग देने पर मिलता है। यह पूर्णांकिस बात पर निर्भर करता है कि वह पदार्थ किस तरह की रासायनिक अभिक्रिया करता है।)

प्रश्न 20: सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर आने मे कितना समय लगता है?

-Jitendra pratap singh rajput जुलाई 28, 2013

उत्तर: लगभग 8 मिनट

प्रश्न 21: सर कैंसर क्या है और क्या कारण है कि आज तक उसका इलाज कनफ़र्म नही हो पाया ना उसका कारण और उसके सेल्स बनने का कारण क्या है?

-prabhat mishra जुलाई 30, 2013

उत्तर: प्रभात, कैंसर (कर्क रोग) तब होता है जब शरीर के किसी भाग में कोशिकाओं की कोई असामान्य और अनियंत्रित वृद्धि होती है। हालांकि कैंसर (कर्क रोग) के कई प्रकार हैं, वो सभी असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि के कारण शुरू होते हैं। शरीर की सामान्य कोशिकाएँ एक क्रमबद्ध तरीके से बढ़ती हैं, विभाजित होती हैं, मरती हैं और कई तरह के कारक इन्हें नियंत्रित करते हैं। कैंसरीय (कर्क रोग संबंधी) कोशिकाएँ एक असामान्य तरीके से बढ़ती और विभाजित होती हैं और सामान्य कोशिकाओं से अलग हैं। कैंसर (कर्क रोग) का मुख्य कारण क्षति या कुछ बदलाव हैं जो किसी कोशिका की डी एन ए के रूप में बुलाई जाने वाली पैतृक(जीनेटिक) सामग्री में सहज रूप से होते हैं। डी एन ए हर कोशिका के नाभिक में होता है और डी एन ए कोशिका विभाजन से लेकर कोशिका की सभी गतिविधियों को निर्देशित करते हैं। अक्सर जब डी एन ए क्षतिग्रस्त होता है, तो शरीर इसकी मरम्मत कर लेता है लेकिन कैंसर (कर्क रोग) कोशिकाओं में, क्षतिग्रस्त हुए डी एन ए की मरम्मत नहीं होती है। लोग क्षतिग्रस्त डी एन ए को वंशागत में पा सकते हैं, जो वंशागत में पाए गए कैंसरों (कर्क रोगों) की व्याख्या करता है। सामान्य रूप से, किसी व्यक्ति के डी एन ए बाहरी वातावरण, जैसे धूम्रपान करने, विकिरण, रसायनों, दवाओं आदि को उघाड़ा जाने से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। इस तरह से, दोनों पित्रैकीय (जीनेटिक) और पर्यावर्णीय कारक कैंसर (कर्क रोग) के विकास में एक भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 22 : अगर पृथ्वी पर सारे के सारे पेड़ काट दिये जाये तो क्या पृथ्वी पर वायुमंडल रहेगा ?

-SANTOSH SINGH सितम्बर 20, 2013

उत्तर : वायुमंडल के लिये पेड़ आवश्यक नही है। इसके लिये आवश्यक है गुरुत्वाकर्षण, किसी भी ग्रह/उपग्रह का गुरुत्वाकर्षण यदि शक्तिशाली है, तो वह वायुमंडल रख सकता है। मंगल ग्रह पर पेड नही है लेकिन वायुमंडल है, लेकिन उसका गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से कम है इसलिये उसका वायुमंडल पृथ्वी की तुलना मे कम घना है। दूसरी ओर चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण इतना कमजोर है कि उस पर वायुमंडल नही है। बृहस्पति का वायुमंडल अत्यंत घना है क्योंकि उसका गुरुत्वाकर्षण अत्यंत ज्यादा है, उसके कुछ उपग्रह जैसे युरोपा, गनीमीड पर भी वायुमंडल है।

अब आते है पेड़ के ना होने पर क्या होगा?

सभी प्राणी कार्बन डाय आक्साइड, मीथेन जैसी गैसे उत्सर्जित करते है, जबकि पेड कार्बन डाय आक्साईड ग्रहण करते है। उनके ना रहने पर वायुमंडल मे कार्बन डाय आक्साईड की मात्रा बढ़ जायेगी।

प्रश्न 23 :सर क्रिया-प्रतिक्रिया के नियम के अनुसार अंतरिक्षयान की गति प्रकाश से ज्यादा क्यों नही जा सकती ? क्रिया प्रतिक्रिता के नियम से तो लगता है कि गति बढायी जा सकती है।

-Pavanesh kumar सितम्बर 20, 2013

उत्तर : राकेट क्रिया-प्रतिक्रिया अर्थात न्युटन के तीसरे नियम पर कार्य करते है। इसमे राकेट को गति प्राप्त करने के लिये कुछ द्रव्यमान को फेंकना होता है, प्रतिक्रिया फलस्वरूप राकेट उस फेंके गये द्रव्यमान के तुल्य गति प्राप्त करता है। ज्यादा जानकारी के लिये इस लेख को पढे़  राकेट कैसे कार्य करता है।

यान की गति बढाने के लिये ज्यादा मात्रा मे द्रव्यमान फेंकना होगा, यह मात्रा गति के साथ बढती जाती है। गणना करने पर यह मात्रा प्रकाशगति के समीप आते तक असंभव मात्रा मे पहुंच जाती है। इस कारण से यान न्युटन के तीसरे नियम के अनुसार प्रकाशगति तो दूर उसके समीप भी नही जा सकता है।

प्रश्न 24 : गुरुजी, क्या इंसान के पास ऐसी टेक्नोलॉजी होगी की वो जो चाहे हासिल कर सके ?

-Neeraj सितम्बर 21, 2013

उत्तर : नीरज यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर आसान नही है।

“जो चाहे हासील कर सके” यह काफी व्यापक है।

यदि आपका आशय भौतिक वस्तुओं से है तब यह संभव है। यदि आप चाहे कि मुझे अभी “खीर” खानी है तब भविष्य मे मशीनें आपको वह उसी समय बिना दूध, चावल के बना कर दे सकती है जो स्वाद और गुणधर्मो मे असली खीर के जैसे ही होगी। कृत्रिम मांस भी बनाया जा चुका है जिसे खाया जा सकता है।

आप चाहे कि आप चाँद पर बसना चाहते है, यह भी संभव है कि चंद्रमा पर मानव के रहने लायक वातावरण बनाया जा सके।

भविष्य मे बीमारीयां कम होंगी, अंग प्रत्यारोपण संभव होगा लेकिन मृत्यु पर विजय पाना कठिन।

पृथ्वी के वातावरण, सुनामी , बाढ, भूकंप जैसी आपदाओ पर बेहतर नियंत्रण संभव होगा, लेकिन पूर्ण नियंत्रण कठिन।

कुल मिलाकर “जो चाहे” वह हासिल करना तो संभव नही लेकिन “बहुत कुछ” हासिल किया जा सकेगा”

प्रश्न 25: सर जी, मै ये जानना चाहता हूँ कि कणो मे बल (force) क्यो उत्पन्न होता है? इसका क्या कारण है? कृपया detail मे समझायें।

-Rajat Kumar सितम्बर 21, 2013

उत्तर : रजत, हम जो कुछ भी देखते है वह दो तरह के मूलभूत कणों से बना है, प्रथम है फ़र्मीयान अर्थात समस्त ब्रह्माण्ड को बनाने वाले कण और दूसरे बोसान अर्थात समस्त ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करने वाले कण। बोसान कण बल का वहन करते है, यह उनका गुणधर्म है। बोसान कणो का अस्तित्व ही बल का वहन करने है, यह एक नियम है। बोसान कण बल का वहन नही करेंगे तो ब्रह्माण्ड का अस्तित्व ही संभव नही है। अधिक जानकारी के लिये इस लेख को देखें : https://vigyan.wordpress.com/2012/02/27/qpef/

प्रश्न 26 : केंचुये के आठ हृदय होते है जो उसके शरीर के भिन्न भागो मे होते है। इसके सभी हृदय एक साथ धडकते है जिससे उसके शरीर मे रक्त प्रभाव प्रभावी तरह से हो सके। केंचुये के 3/5 प्रकाशगति से यात्रा करने पर क्या होगा?

-saurabh सितम्बर 22, 2013

उत्तर : सौरभ, प्रकाश गति के 3/5 हिस्से पर यात्रा करने पर केंचुआ जीवित नही रह पायेगा, इस गति पर मानव भी जीवित नही रह पायेगा क्योंकि इस गति पर जीवन के लिये आवश्यक चयापचय(physiological) प्रक्रियायें संभव नही है।

प्रश्न 27: एक शून्य द्रव्यमान(mass -m ) का कण संवेग(momentum – p) का वहन कैसे कर सकता है , क्योंकि द्रव्यमान के शून्य होने पर संवेग भी शून्य होना चाहीये ?(A particle with zero mass can transport momentum but as m=0 implies p=0 explain..? Plz in hindi)

-saurabh सितम्बर 22, 2013

उत्तर : सौरभ, आपने कण का नाम नही दिया है, मै इसे फोटान मानकर चल रहा हूं जिसका द्रव्यमान शून्य होता है।

न्युटन के अनुसार

गतिज ऊर्जा E=1/2mv2

संवेग P=mv

m=द्रव्यमान , v = गति

लेकिन यदि आप फोटान(प्रकाश) के लिये द्रव्यमान m=0 रखें तो आप पायेंगे कि

E=0

P=0

लेकिन यह तो गलत है! यदि फोटान ऊर्जा का वहन नही करते है तो उससे वस्तुयें गर्म कैसे हो जाती है?

समस्या आती है न्युटन के नियमो से! ये नियम पूरी तस्विर नहीं बनाते है और जब प्रकाश की बात होती है तो वे गलत सिद्ध होते है।

सापेक्षतावाद के नियमो के अनुसार द्रव्यमान वाले और द्रव्यमान रहित(m=0) कणो मे मूलभूत अंतर है। दोनो के लिये एक समीकरण का प्रयोग नही किया जा सकता है।

कोई भी कण जिसका द्रव्यमान शून्य हो हमेशा प्रकाशगति से यात्रा करता है, जबकि द्रव्यमान वाले कणो की गति प्रकाशगति से कम होगी और वह शून्य (स्थिर) भी हो सकती है। ध्यान रहे : प्रकाश और साधारण पदार्थ दोनो अलग है और दोनो को संचालित करने वाले नियम अलग है।

1905 मे आइंस्टाइन के अनुसार

E2=P2c2+m2c4.

इसी वर्ष पाया गया था कि प्रकाश दोहरा व्यवहार रखता है, वह कण और तरंग दोनो के जैसे व्यवहात करता है। फोटान जो प्रकाश के कण है वे अपने द्रव्यमान या गति से संचालित नही होते है। वे अपनी आवृति(frequency) से संचालित होते है:

E=hf

h = प्लैंक का स्थिरांक(Planck’s constant)

प्रकाश के लिये m=0

इसलिये E=Pc (गति और संवेग अनुपातिक होते है)।

ध्यान रहे कि संवेग कभी शून्य नही हो सकता है, क्योंकि शून्य द्रव्यमान और शून्य संवेंग का अर्थ है कुछ भी नही(nothing)। दूसरे शब्दो मे आप कह सकते है कि प्रकाश कभी स्थिर नही हो सकता है।

प्रश्न 28 : सर मेरे घर के पास एक बड़ा वाला विद्युत टावर है, मै रोजाना नोटीस करता हुं कि उसमे से आवाज करके प्रकाश निकलता है, मौ समझ मे नही पा रहा हुं कि आखिर ऐसा क्यों ?

-tarik ansari सितम्बर 22, 2013

उत्तर : तारीक, आप शायद ट्रांसफार्मर की बात कर रहे है। यदि वह ट्रांसफार्मर नही है तब भी उत्तर एक जैसा ही है।

सामान्यत: विद्युत का प्रवाह एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव की ओर होता है, इस प्रवाह के लिये एक चालक(जैसे विद्युत तार) चाहीये होता है। जब दो विद्युत तारे दो एक दूसरे के पास आ जायें तो उसका विभव(voltage) वायु को भी सुचालक बना कर विद्युत प्रवाहित कर सकता है, जब वायु से विद्युत प्रवाहित हो तो एक चमक (spark) बनती है। इसी स्पार्क से ही प्रकाश और आवाज आती है। इसी स्पार्क से बचने ही तारो पर प्लास्टिक/रबर जैसे कुचालक लगाये जाते है।

वायु से विद्युत प्रवाह ही आप विद्युत खंबो पर, ट्रांसफार्मरो मे देखते है। आकाश मे चमकने वाली बिजली भी इसी प्रक्रिया का एक रूप है। इसमे बादलो मे उत्पन्न विद्युत वायु से प्रवाहित होकर एक चमक और ध्वनि उत्पन्न करता है।

प्रश्न 29: ब्रह्माण्ड मतलब क्या ?

-rhushikesh sawale सितम्बर 23, 2013

उत्तर : ब्रह्माण्ड अर्थात सब कुछ। मै ,आप, हमारी पृथ्वी, सूर्य , सभी तारे , आकाशगंगाये, उनके मध्य का रिक्त स्थान, यह सभी ब्रह्माण्ड मे आता है।

प्रश्न 30: सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा मेँ कैसे बदलेँगे ? विस्तार से बताएँ ।

-सचिन रौथाण सितम्बर 25, 2013

सौर ऊर्जा सूर्य से प्राप्त शक्ति को कहते हैं। इस ऊर्जा को ऊष्मा या विद्युत में बदल कर अन्य प्रयोगों में लाया जाता है। उस रूप को ही सौर ऊर्जा कहते हैं। घरों, कारों और वायुयानों में सौर ऊर्जा का प्रयोग होता है। ऊर्जा का यह रूप साफ और प्रदूषण रहित होता है।सूर्य से ऊर्जा प्राप्त कर उसे प्रयोग करने के लिए सोलर पैनलों की आवश्यकता होती है। सोलर पैनलों में सोलर सेल होते हैं जो सूर्य की ऊर्जा को प्रयोग करने लायक बनाते हैं। यह कई तरह के होते हैं। जैसे पानी गर्म करने वाले सोलर पैनल बिजली पहुंचाने वाले सोलर पैनलों से भिन्न होते हैं। सौर ऊर्जा को दो तरीकों से प्रयोग हेतु बदला जाता है।

  1. सौर तापीय विधि (सोलर थर्मल): इससे सूर्य की ऊर्जा से हवा या तरल को गर्म किया जाता है। इस विधि का प्रयोग घरेलू कार्यो में किया जाता है।
  2. प्रकाशविद्युत विधि (फोटोइलेक्ट्रिक): इस विधि में सौर ऊर्जा को बिजली में बदलने के लिए फोटोवोल्टेक सेलों का प्रयोग होता है। फोटोवोल्टेक सेल का रखरखाव अपेक्षाकृत होता है। इस विधि के लिये ही सौर सेल बनाये जाते हैं।

प्रश्न 31: आदमी और जानवर मेँ से पहले कौन आया?

-SANTOSH SINGH सितम्बर 27, 2013

उत्तर : जीवन का विकास क्रमिक रूप से हुआ है। सबसे पहले एक कोशीय जीव जैसे अमीबा, जीवाणु बने, उसके पश्चात बहुकोशीय जीव बने। जीवन का विकास पहले पानी मे अर्थात समुद्र मे हुआ उसके पश्चात जमीन पर। मनुष्य का विकास तो जीवन की उत्पत्ति के लाखों करोडों वर्ष बाद मे हुआ है। हम कह सकते है कि जानवर मनुष्यों से करोडो वर्ष पहले आये है।

प्रश्न 32: चेतना(consciousness) क्या है?

-Shubham sharma सितम्बर 29, 2013

उत्तर : चेतना कुछ जीवधारियों में स्वयं के और अपने आसपास के वातावरण के तत्वों का बोध होने, उन्हें समझने तथा उनकी बातों का मूल्यांकन करने की शक्ति का नाम है।

विज्ञान के अनुसार चेतना वह अनुभूति है जो मस्तिष्क में पहुँचनेवाले अभिगामी आवेगों से उत्पन्न होती है। इन आवेगों का अर्थ तुरंत अथवा बाद में लगाया जाता है। चेतना मनुष्य की वह विशेषता है जो उसे जीवित रखती है और जो उसे व्यक्तिगत विषय में तथा अपने वातावरण के विषय में ज्ञान कराती है। इसी ज्ञान को विचारशक्ति (बुद्धि) कहा जाता है। यही विशेषता मनुष्य में ऐसे काम करती है जिसके कारण वह जीवित प्राणी समझा जाता है। मनुष्य अपनी कोई भी शारीरिक क्रिया तब तक नहीं कर सकता जब तक कि उसको यह ज्ञान पहले न हो कि वह उस क्रिया को कर सकेगा। कोई भी मनुष्य किसी विघातक पदार्थ अथवा घटना से बचने के लिए अपने किसी अंग को तब तक नहीं हिला सकता, जब तक कि उसको यह ज्ञान न हो कि कोई घातक पदार्थ उसके सामने है और उससे बचने के लिए वह अपने अंगों को काम में ला सकता है। उदाहरणार्थ, हम एक ऐसे मनुष्य के बारे में सोच सकते हैं जो नदी की ओर जा रहा है। यदि वह चलते-चलते नदी तक पहुँच जाता है और नदी में घुस जाता है तो वह डूबकर मर जाएगा। वह अपना चलना तब तक नहीं रोक सकता और नदी में घुसने से अपने को तब तक नहीं बचा सकता जब तक कि उसकी चेतना में यह ज्ञान उत्पन्न नहीं होता कि उसके समने नदी है और वह जमीन पर तो चल सकता है, परंतु पानी पर नहीं चल सकता। मनुष्य की सभी क्रियाओं पर उपर्युक्त नियम लागू होता है चाहे, ये क्रियाएँ पहले कभी हुई हों अथवा भविष्य में कभी हों। मनुष्य केवल चेतना से उत्पन्न प्रेरणा के कारण कोई काम कर सकता है।

प्रश्न 33: सिलिका क्या है ? रेत , बालू , कांच , पत्थर , मेँ अन्तर बताओ ?

-नागेन्द्र कुमार सितम्बर 29, 2013

उत्तर: सिलिका, यह सिलिकान और आक्सीजन का यौगिक है, इसका रासायनिक नाम SiO2(सिलिकान डाय आक्साईड) है। रेत, बालू, कांच और पत्थर, इन सभी मे सिलिका मौजूद होता है, अंतर इनके क्रिस्टल संरचना मे होता है। इसके क्रिस्टल संरचना की जानकारी आप इस लिंक से प्राप्त कर सकते है : http://en.wikipedia.org/wiki/Silica

प्रश्न 34: सर क्या हमारी पृथ्वी को श्याम विवर (Black Hole)से कोई परेशानी भविष्य मे हो सकती है?

-bhupendra सितम्बर 29, 2013

उत्तर :भूपेंद्र, पृथ्वी से हजारो प्रकाशवर्ष की दूरी पर कोई भी श्याम विवर नही है। हमारा सूर्य सारे सौर मंडल के साथ आकाशगंगा ’मंदाकिनी’ की परिक्रमा कर रहा है, संभव है कि भविष्य मे वह किसी श्याम विवर के समीप पहुंचे लेकिन ऐसा लांखो करोडो वर्ष के बाद ही होगा। इसकी संभावना भी करोडो मे से एक है|

प्रश्न 35: सर, अभिक्रियाए क्या होती है?

-निर्मल सितम्बर 29, 2013

उत्तर : निर्मल, आपका प्रश्न स्पष्ट नही है। अभिक्रियाएं से आपका तात्पर्य क्या है?

अभिक्रियाये कई होती है, रासायनिक अभिक्रिया, नाभिक अभिक्रिया इत्यादि :

  1. रासायनिक अभिक्रियायों मे भिन्न रसायन एक दूसरे से रासायनिक अभिक्रिया कर नये रसायनो का निर्माण करते है, जैसे सोडीयम धातु, क्ल्रोरीन से प्रतिक्रिया कर सोडीयम क्लोराईड (नमक) बनाता है।
  2. नाभिकिय अभिक्रियाओं मे कोई भारी तत्व अल्फा/बीटा/गामा किरणो का उत्सर्जन कर हल्के तत्वों का निर्माण करता है।

अंतरिक्ष मे धातु एक दूसरे से चिपक जाती है!(उपर पृथ्वी पर धातु पर आक्साईड की परत होने से धातुयें चिपकती नही है, नीचे अंतरिक्ष)
अंतरिक्ष मे धातु एक दूसरे से चिपक जाती है!(उपर पृथ्वी पर धातु पर आक्साईड की परत होने से धातुयें चिपकती नही है, नीचे अंतरिक्ष)

प्रश्न 36: अंतरिक्ष मे दो धातुये एक दूसरे से टकरा कर जुड़ जाती है, क्यों?

-Krishna Jangid सितम्बर 29, 2013

उत्तर: यह धातु का गुणधर्म है कि वे जब भी एक दूसरे के पास आती है तब वे एक दूसरे से जुड जाती है, इसे कोल्ड वेल्डींग कहते है। पृथ्वी पर हम इसे होते हुये नही देखते है क्योंकि वातावरण मे उपस्थित आक्सीजन सभी धातुओ पर एक पतली आक्साईड परत चढ़ा देती है। अंतरिक्ष मे आक्सीजन नही होती है इसकारण से यह प्रक्रिया देखी जा सकती है।

पृथ्वी पर कृत्रिम निर्वात मे यह प्रक्रिया देखी गयी है।

250 विचार “प्रश्न आपके उत्तर हमारे : सितंबर 1, 2013 से सितंबर 30,2013 तक के प्रश्न&rdquo पर;

  1. मेरा एक प्रश्न है
    कोई स्पेस शिप लाइट स्पीड से तेज या लाइट स्पीड से जाती है तो क्या किसी ग्रह को बर्बाद करने की क्षमता रखती है??

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  2. सर जी, क्या वेद पूराण मे वर्णित शून्यवादी सिद्धान्तका आधुनिक विज्ञान से सम्बंध या समर्थन है? या शून्यता ब्रह्मांडीय दृष्टिकोण से सम्भव ही नही? किर्प्या विस्तार से चर्चा करेंगे ।

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  3. Sir suna he ki hamara piya hua kuch pani sarir me lifetime tak rehta he kya ye sachi he agar life time pani rehta he to wo konsa pani jo body ke part jo pani se vane he wo ya Hamara piya Hua or body ka pura pani replace hone me kitna time lagta he
    Or sir khane ke baad jo pani piya he hamne to khane ke sath pani ka Bhi pachan hota he meanse wo pani khane se alag joke kaha jata he or bahar kitne time tak nikal jata he

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    1. हर रात जो जो सपने में दिखता है उसकी लिस्ट बनाओ और उसमें से कितनी बातें बाद में सच निकलती हैं उसकी लिस्ट बनाओ। स्टेटिस्टिकली इस बात की जाँच करो कि क्या ये बहुत बार होता है या बस कभी कभी हो जाता है। अगर बस 100 में 5-10 बार होता है तो यह सामान्य है और महज़ एक को-इंसिडेंस है। आप सच में सपने में कोई भविष्य नहीं देखतीं बल्कि आपका दिमाग इस तरह के पैटर्न पर आपको विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहा है जो वहाँ हैं ही नहीं।

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  4. जिज्ञासा!!!
    जैसा कि हम जानते हैं कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती हैं।तो यदि हम एक हवाई जहाज में बैठकर पृथ्वी से कुछ मीटर ऊपर जाकर स्थिर रहे और कुछ घंटे के बाद हम नीचे उतरे तो हमें किसी और जगह उतरना चाहिए क्योंकि पृथ्वी लगातार घूम रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो क्यों नहीं होता जबकि पृथ्वी घूम रही है। सटीक उत्तर की आशा में। धन्यवाद!

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    1. पृथ्वी अपने वायुमंडल को साथ लेकर घूमती है। पृथ्वी का अर्थ धरातल के साथ वायुमंडल भी है। पृथ्वी की सीमा धरातल पर समाप्त नही होती वह, वायुमंडल के सीमा तक है। इसलिये जब वायुयान हवा मे है तो वह वायुमंडल के साथ घूम भी रहा है।

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    1. समस्थानिक (अंग्रेज़ी: Isotope) एक ही तत्व के परमाणु जिनकी परमाणु संख्या समान होती हैं, परन्तु भार अलग-अलग होता है, उन्हें समस्थानिक कहा जाता है। इनमें प्रत्येक परमाणु में समान प्रोटोन होते हैं। जबकि न्यूट्रॉन की संख्या अलग अलग रहती है। इस कारण परमाणु संख्या तो समान रहती है, लेकिन परमाणु का द्रव्यमान अलग अलग हो जाता है। समस्थानिक का अर्थ “समान स्थान” से है। आवर्त सारणी में तत्वों को परमाणु संख्या के आधार पर अलग अलग रखा जाता है, जबकि समस्थानिक में परमाणु संख्या के समान रहने के कारण उन्हें अलग नहीं किया गया है, इस कारण इन्हें समस्थानिक कहा जाता है।

      परमाणु के नाभिक के भीतर प्रोटोन की संख्या को परमाणु संख्या कहा जाता है, जो बिना आयन वाले परमाणु के इलेक्ट्रॉन के बराबर होते हैं। प्रत्येक परमाणु संख्या किसी विशिष्ट तत्व की पहचान बताता है, लेकिन ऐसा समस्थानिक में नहीं होता है। इसमें किसी तत्व के परमाणु में न्यूट्रॉन की संख्या विस्तृत हो सकती है। प्रोटोन और न्यूट्रॉन की संख्या उस परमाणु का द्रव्यमान संख्या होता है और प्रत्येक समस्थानिक में द्रव्यमान संख्या अलग अलग होता है।

      उदाहरण के लिए, कार्बन के तीन समस्थानिक कार्बन-12, कार्बन-13 और कार्बन-14 हैं। इनमें सभी का द्रव्यमान संख्या क्रमशः 12, 13 और 14 है। कार्बन में 6 परमाणु होता है, जिसका मतलब है कि कार्बन के सभी परमाणु में 6 प्रोटोन होते हैं और न्यूट्रॉन की संख्या क्रमशः 6, 7 और आठ है।

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    1. आर्गन का इलेक्ट्रानिक विन्यास 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 है। s कक्षा मे दो इलेक्ट्रान हो सकते है जबकि p मे अधिकतम 6 इलेक्ट्रान इस तरह से आर्गन की कक्षा भरी हुयी है। जिससे उसकी संयोजकता शून्य है।

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    1. द्रव्यमान के द्वारा उत्पन्न बल ।
      गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
      सर आइज़क न्यूटन ने अपनी मौलिक खोजों के आधार पर बताया कि केवल पृथ्वी ही नहीं, अपितु विश्व का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। दो कणों के बीच कार्य करनेवाला आकर्षण बल उन कणों की संहतियों के गुणनफल का (प्रत्यक्ष) समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है। कणों के बीच कार्य करनेवाले पारस्परिक आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) तथा उससे उत्पन्न बल को गुरुत्वाकर्षण बल (Force of Gravitation) कहा जाता है। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त नियम को “न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम” (Law of Gravitation) कहते हैं। कभी-कभी इस नियम को “गुरुत्वाकर्षण का प्रतिलोम वर्ग नियम” (Inverse Square Law) भी कहा जाता है।

      उपर्युक्त नियम को सूत्र रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है : मान लिया m1 और संहति वाले m2 दो पिंड परस्पर d दूरी पर स्थित हैं। उनके बीच कार्य करनेवाले बल f का संबंध होगा :

      F=G m1 m2/d‍^2 …………………….(१)

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    1. तारे एक समान प्रकाश के साथ चमकते हैं लेकिन इस प्रकाश को हमारी आखाें तक पहुॅचने के लिए वायुमंडल की परतों से हाेकर गुजरना पडता है और ज‍ब तारों का प्रकाश इन वायुमंडल की परतों से टकराता है इसके प्रकाश अवरोध उत्‍पन्‍न होता है इसी अवरोध के कारण हमें तारे टिमटिमाते हुऐ दिखाई देेते हैं।

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    1. आपके द्वारा दी गई परमाणु भार की परिभाषा गलत है।
      किसी तत्व का परमाणु भार वह संख्या है, जो यह प्रदर्शित करता है कि तत्त्व का एक परमाणु, कार्बन-12 के परमाणु के 1/12 भाग द्रव्यमान अथवा हाइड्रोजन के 1.008 भाग द्रव्यमान से कितना गुना भारी है।

      परमाणु भार = तत्त्व के परमाणु का द्रव्यमान / कार्बन परमाणु का बारहवां भाग

      प्रकृत्ति में पाये जाने वाले अधिकांश तत्त्व अपने समस्थानिकों के मिश्रण के रूप में होते हैं अतः परमाणु भार प्रायः भिन्नात्मक होते हैं।

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    1. सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल सारे ग्रहों को उनकी कक्षा में चक्कर लगाने मजबूर करता है। इसी तरह से चन्द्रमा भी पृथ्वी का चक्कर लगाता है।

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    1. हाँ सूर्य भी आकाशगंगा के केंद्र के परिक्रमा करता है। हमारी आकाशगंगा भी पड़ोसी आकाशगंगाओं के साथ एक साझा गुरुत्वाकर्षण केंद्र की परिक्रमा करती है।

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  5. sir shadow ka colour black kyu hota hai mainne pucha to pta chala ki shadow tak sun ray nhi pahuchne ke karan shadow black hota hai. dusre ne kha ” because this object are opaque ”. but. mera prashn hai ki shadow ka colour black kyu hota hai jbki agar sun rat nhi pahuch pata ho black color to sun ray ko absorb karta hai ? give me a the accurate answer

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  6. आदरणीय सर

    मेरे पास एक छोटा सा और थोड़ा बचकाना सा सवाल है, लेकिन क्यूंकि ये एक सवाल है और हम सब विज्ञानं के स्टूडेंट्स हैं तो उत्सुकता बहुत ही ज्यादा है, मेरा सवाल है की –

    क्या एक्स मैन मूवी के जैसे mutant हमारी पृथ्वी में जीवित हैं, ये फिर वो हमारे बीच उपस्थित हैं? जैसे की मैंने एक व्यक्ति के बारे डिस्कवरी में देखा था की वो अपनी शरीर की स्किन तो बहुत ही ज्यादा खिंच सकता था, और उसकी स्किन किसी कारन से बहुत ही ज्यादा लचीली हो गई थी, तो इसे mutant की श्रेणी में रखा जा सकता है?

    आपके उत्तर की प्रतीक्षा में…….

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    1. पृथ्वी का सारा जीवन एक ही जीव से उत्पन्न हो कर इतनी सारी प्रजाति मे विकसीत हुआ है जिनमे सारे प्राणी, वनस्पति, पेड़ पौधे आते है। किसी समय यह जीवन दो भागो मे विभाजित हुआ जिनमे से एक जीवन ने पृथ्वी से सीधे पोषण प्राप्त करना प्रारंभ किया और वे पेड़ बने। दूसरी शाखा ने घूम फ़िर कर भोजन खोजना प्रारंभ किया जिससे प्राणी बने।

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    1. सर, स्टीफन हॉकिंग कहते है कि बिग बेंग से पहले खाली जगह भी नहीं थी, ये बात कुछ समझ नहीं आ रही, इसे कैसे समझा जाए?
      मतलब फिर था क्या?

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      1. कुछ नही का अर्थ है, पदार्थ, समय, स्थान, अंतरिक्ष कुछ नही। समय का निर्माण ही बिगबैंग मे हुआ है तो बिगबैंग से “पहले” शब्द ही बेमानी हो जाता है।

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      2. मैं आपकी वेबसाइट को बहुत पसंद करता हूं। बस एक छोटा सा सुझाव देना चाहता हूं। कृपया अपनी वेबसाइट के बैनर में से अनावश्यक Spaces को हटा दीजिए:

        “विज्ञान विश्व”

        विज्ञान समाचार और ले space ख हिं space दी में.

        धन्यवाद.

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    1. सबसे पहले इजिप्त के गणितज्ञ टालेमी ने अपने मानचित्रों मे उपर कि दिशा मे उत्तर रखा था। बस उन्होने एक परंपरा का आरंभ कर दिया जो अब तक चली आ रही है।

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    1. इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक वैद्युत आवेश युक्त मूलभूत कण है। यह परमाणु मे नाभिक के चारो ओर चक्कर लगाता हैं। इसका द्रव्यमान सबसे छोटे परमाणु (हाइड्रोजन) से भी हजारगुना कम होता है। परम्परागत रुप से इसके आवेश को ऋणात्मक माना जाता है और इसका मान -1 परमाणु इकाई (e) निर्धारित किया गया है। इस पर 1.6E-19 कूलाम्ब परिमाण का ऋण आवेश होता है। इसका द्रव्यमान 9.11E−31 किग्रा होता है जो प्रोटॉन के द्रव्यमान का लगभग 1837 वां भाग है।

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    1. पाई या π एक गणितीय नियतांक है जिसका संख्यात्मक मान किसी वृत्त की परिधि और उसके व्यास के अनुपात के बराबर होता है। इस अनुपात के लिये π संकेत का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1706 में विलियम जोन्स ने सुझाया। इसका मान लगभग 3.14159 के बराबर होता है। यह एक अपरिमेय राशि है।

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    1. पदार्थ कण अपनी परमाणु संरचना के अनुसार प्रकाश के साथ तीन तरह के व्यवहार करते है, अवशोषण, परावर्तन , अपवर्तन।
      अवशोषण(Absorb) : प्रकाश को सोख लेना
      परावर्तन(Reflect) : प्रकाश को वापस भेज देना
      अपवर्तन(Refract) : प्रकाश की दिशा मे परिवर्तन , यह मात्रा शून्य से लेकर ९० डीग्री तक हो सकती है।
      हर पदार्थ मे इन तीनो की मात्रा अलग अलग होती है। अपारदर्शी पदार्थ केवल अवशोषण और परावर्तन करते है। जबकी पारदर्शी पदार्थ मे अधिक मात्रा मे अपवर्तन होता है, अत्यल्प मात्रा मे अवशोषण और परावर्तन होता है।

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    1. ऐसा कोई देश नही है, विश्व के समस्त देशो मे सूर्य के दिखायी देने की अवधी गर्मीयों मे अधिक और सर्दियों मे कम होती है।
      वर्ष भर मे सूर्य दिखायी देने की औसत अवधी समस्त विश्व के देशो के लिये समान है।

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    1. बुध सूर्य से जितनी ऊर्जा ग्रहण करता है उसका अधिकांश भाग परावर्तित कर देता है। शुक्र में घने बादल है जो सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को परावर्तित नहीं होने देते है, वातावरण में बांध कर रखते है। इस प्रभाव को ग्रीन हाउस प्रभाव भी कहते है।

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      1. चुंबक लोहे को ही नही हर चुंबकीय धातु को पकड़ता है जैसे लोहा, निकेल कोबाल्ट। इन धातुओ के परमाणु चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति मे इस तरह रैखिक हो जाते है कि वे स्वयं चुंबक बन जाते है जिससे चुंबक उन्हे पकड़ लेता है।

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    1. बिग बैंग आरंभ बिंदु है। बिग बैंग मे ही समय, अंतरिक्ष और पदार्थ बना। बिग बैंग से पहले कुछ भी नही था तो आपका प्रश्न ही बेमानी हो जाता है।

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    1. किसी वस्तु के वेग परिवर्तन की दर को त्वरण (Acceleration) कहते हैं। इसका मात्रक मीटर प्रति सेकेण्ड2 होता है तथा यह एक सदिश राशि हैं।

      यह आवश्यक नहीं है कि जो वस्तु गतिमान है, उसका वेग सदैव एकसमान ही रहे। यह भी हो सकता है कि उसका वेग भिन्न–भिन्न समयों पर भिन्न–भिन्न रहे। यदि समय के साथ वस्तु का वेग बढ़ता या घटता है तो ऐसी स्थिति को त्वरित गति कहते हैं तथा यह बताने के लिए कि वेग में किस दर से परिवर्तन होता है, हम एक नई राशि ‘त्वरण’ का प्रयोग करते हैं। अतः किसी गतिमान वस्तु के वेग में प्रति एकांक समयान्तराल में होने वाले परिवर्तन को उस वस्तु का त्वरण कहते हैं। अर्थात् वे वेग परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं। यदि वेग बढ़ता है तो त्वरण धनात्मक माना जाता है, और यदि वेग घटता है तो वेग ऋणात्मक माना जाता है। यदि किसी वस्तु के वेग में बराबर समयान्तरालों में बराबर परिवर्तन हो रहा है तो उसका त्वरण ‘एक समान’ कहलाता है।

      हम वापस त्वरण की प्रारम्भिक परिभाषा की ओर चलते हैं जिसमें कहा जाता है कि वेग परिवर्तन की दर त्वरण है। इस वाक्यांश में हमें तीन नए मूल पद मिलते हैं वेग, दर और परिवर्तन जिन्हें हमें सबसे पहले समझना होगा। दर, एक ऐसा शब्द है जिससे आपका सामना रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में होता होगा जैसे क्रिकेट में रनों की दर, मोबाइल की कॉल दर, बिजली की खपत दर और वस्तुओं की मूल्य दर आदि। किसी वस्तु की दर का मतलब है उसका किसी अन्य इकाई के सापेक्ष मापन। रन की दर का मतलब है प्रति ओवर रनों की संख्या, बिजली की दर का मतलब है प्रति यूनिट बिजली की कीमत और कॉल दर का मतलब है प्रति मिनट कॉल की कीमत। ठीक इसी तरह त्वरण की परिभाषा में दर से तात्पर्य है समय के सापेक्ष वेग में परिवर्तन। लिहाज़ा, दिए गए समय में वेग में कितना बदलाव हुआ इससे दर को माप सकेंगे और त्वरण को महसूस कर सकेंगे।

      सबसे पहले हम वेग की अवधारणाओं की जाँच-पड़ताल करते हैं और फिर उसमें परिवर्तन की बात करेंगे। चाल की बनस्बत वेग में कुछ अधिक जानकारियाँ शामिल होती हैं। जैसे वेग से पता चलता है कि निर्धारित समय में वस्तु द्वारा कितनी दूरी तय की गई और साथ ही उसकी दिशा क्या थी। दूसरी ओर, किसी वस्तु की चाल के बारे में कुछ कहते हुए हमें दिशा का उल्लेख करने की कोई ज़रूरत नहीं होती। यानी, वेग की जानकारी में दो भौतिक राशियों, चाल और दिशा की जानकारी शामिल है।
      चाल और दिशा में से किसी एक या दोनों में परिवर्तन के परिणाम स्वरूप वेग में बदलाव सम्भव है। इस तरह से वेग में परिवर्तन चाल या चाल की दिशा किसी में भी परिवर्तन से हो सकता है। ये परिवर्तन धनात्मक या ऋणात्मक कुछ भी हो सकते हैं अर्थात् चाल बढ़े या घटे, दोनों ही बदलाव के अन्तर्गत ही गिने जाएँगे। उदाहरण के लिए चलती हुई साइकल में जब आप ब्रेक लगाते हैं तो उसकी चाल में कमी आती है तो इसका मतलब है कि यहाँ वेग में भी परिवर्तन होता है, ढलान आने पर साइकल की रफ्तार लगातार बढ़ती जाती है तो यहाँ पर भी वेग में परिवर्तन होता है। मोड़ पर मुड़ने के बारे में आपको क्या लगता है? हो सकता है चाल में कोई परिवर्तन न किया जाए लेकिन चालक उसे मोड़ के अनुरूप मोड़कर उसकी दिशा में परिवर्तन अवश्य करता है।

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  7. सर जी, 1 प्र. है कि दिवाली पर जो तान्त्रिको द्वारा जो हांडिया उडायी जाती है। उसमे साइंस के क्या विचार है।plz email पर उत्तर दीजिय।plz

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    1. दिवाली पर जो तान्त्रिको द्वारा जो हांडिया उडायी जाती है वह मूर्खता पूर्ण अंधविश्वास मात्र है। इमेल पर उत्तर देना संभव नही है।

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  8. (1) सबसे पहले तो आपको बहुत-बहुत धन्यवाद कि आप इतनी जटिल जानकारियाँ इतने सरल शब्दों में समझा देते हैं वो भी बिना किसी आर्थिक लाभ के। मुझे तब और भी आश्चर्य होता है जब आप ‘अंडा पहले आया कि मुर्गी’ जैसे प्रश्नों की भी अनदेखी नहीं करते।
    (2) मेरा प्रश्न:- रॉकेट के अंदर स्वतंत्र रखे रखे चम्मच, पेन, हैडफ़ोन यहां तक कि स्वतंत्र तैरते इंसान भी एक दूसरे से चिपककर एक गोले में जमा क्यों नहीं हो जाते जबकि हर पिंड दूसरे पिंड को आकर्षित करता है।
    (3) आपके बारे में जानना चाहूँ तो कहाँ पड़ने को मिल सकता है। धन्यवाद।

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    1. गुरुत्वाकर्षण बल सबसे कमजोर होता है। पृथ्वी जैसी द्रव्यमान वाले पिंड दूसरी वस्तु को खींच लेती है लेकिन बाकी वास्तु इतनी क्षमता नहीं रखती है।

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      1. चन्द्रमा का अपना प्रकाश नहीं होता लेकिन वः सूर्य प्रकाश को परावर्तित करता है, इस परावर्तित प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 14 सेकण्ड लगते है।

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    1. वे एक दूसरे को आकर्षित करते है लेकिन इतना भी नही कि वे आपस मे मिल जाये। ग्रहो के गुरुत्वाकर्षण के पीछे जटिल गणित होता है।

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    1. विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो कि किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि किसी भी विषय का क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कह सकते है। ऐसा कहा जाता है कि विज्ञान के ‘ज्ञान-भण्डार’ के बजाय वैज्ञानिक विधि विज्ञान की असली कसौटी है।
      विज्ञान, प्रकृति का विशेष ज्ञान है। यद्यपि मनुष्य प्राचीन समय से ही प्रकृति संबंधी ज्ञान प्राप्त करता रहा है, फिर भी विज्ञान अर्वाचीन काल की ही देन है। इसी युग में इसका आरंभ हुआ और थोड़े समय के भीतर ही इसने बड़ी उन्नति कर ली है। इस प्रकार संसार में एक बहुत बड़ी क्रांति हुई और एक नई सभ्यता का, जो विज्ञान पर आधारित है, निर्माण हुआ।

      ब्रह्माण्ड के परीक्षण का सम्यक् तरीका भी धीरे-धीरे विकसित हुआ। किसी भी चीज के बारे में यों ही कुछ बोलने व तर्क-वितर्क करने के बजाय बेहतर है कि उस पर कुछ प्रयोग किये जांय और उसका सावधानी पूर्वक निरीक्षण किया जाय। इस विधि के परिणाम इस अर्थ में सार्वत्रिक हैं कि कोई भी उन प्रयोगों को पुनः दोहरा कर प्राप्त आंकडों की जांच कर सकता है।

      सत्य को असत्य व भ्रम से अलग करने के लिये अब तक आविष्कृत तरीकों में वैज्ञानिक विधि सर्वश्रेष्ठ है। संक्षेप में वैज्ञानिक विधि निम्न प्रकार से कार्य करती है:

      (१) ब्रह्माण्ड के किसी घटक या घटना का निरीक्षण करिए,
      (२) एक संभावित परिकल्पना (hypothesis) सुझाइए जो प्राप्त आकडों से मेल खाती हो,
      (३) इस परिकल्पना के आधार पर कुछ भविष्यवाणी (prediction) करिये,
      (४) अब प्रयोग करके भी देखिये कि उक्त भविष्यवाणियां प्रयोग से प्राप्त आंकडों से सत्य सिद्ध होती हैं या नहीं। यदि आकडे और प्राक्कथन में कुछ असहमति (discrepancy) दिखती है तो परिकल्पना को तदनुसार परिवर्तित करिये,
      (५) उपरोक्त चरण (३) व (४) को तब तक दोहराइये जब तक सिद्धान्त और प्रयोग से प्राप्त आंकडों में पूरी सहमति (consistency) न हो जाय।
      किसी वैज्ञानिक सिद्धान्त या परिकल्पना की सबसे बडी विशेषता यह है कि उसे असत्य सिद्ध करने की गुंजाइश (scope) होनी चाहिये।

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  9. गुरुजी मेरा जिज्ञासा येह है कि, श्याम बिवरका आफ्ना प्रकाश होता हे या नही ?? श्याम बिवरका घटना क्षितिज मे जो प्रकाश बक्र होता हे, ओह प्रकाश श्याम बिवार खुदका हे वा किसी दुसरे तारो ओं का ?? कृपया बताइए ,,,

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      1. गुरुत्व केंद्र- किसी वस्तु का गुरुत्व केंद्र वह बिंदु होता है जिस पर वस्तु का संपूर्ण भार कार्य करता है अथवा केंद्रित होता है। गुरुत्व केंद्र वस्तु के वास्तविक पदार्थ के बाहर भी स्थित हो सकता है।
        किसी वस्तु की स्थिरता उसके गुरुत्व केंद्र की स्थिति पर निर्भर करती है। नाव में बैठे यात्रियों को नदी में तैरती नाव में खड़े नहीं होने दिया जाता है, क्योंकि नाव का गुरुत्व केंद्र यात्रियों सहित नाव के आधार पर निकट बना रहता है और नाव स्थिर रहती है।

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    1. लाल वस्तु लाल इसलिये दिखाई देती है क्योकि वह वस्तु श्वेत प्रकाश के सभी छः रगों को लाल रंग को छोड़कर अवशोषित कर लेती है और लाल रंग को परावर्तित करती है जिससे वह हमे लाल दिखाई देती है अगर उस वस्तु को गर्म किया जाये तो वह हमे हरी दिखाई देगी क्योकि जो वस्तु जिस प्रकाश को अवशोषित करती है गर्म करने वह उनही का उत्सर्जन करती है जिससे लाल वस्तु लाल को छोड़कर सभी छः रंग उत्सर्जित करेगी जिनमे हरा रंग तीव्र होता है और लाल रं का विरोधी भी होता है|

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    1. रवि, सूर्य की रोशनी मे दृश्य प्रकाश के अतिरिक्त भी और किरणे होती है जो जमीन मे २-३ मीटर तक जाती है। जैसे अवरक्त किरणे, पराबैगनी किरणे. बीज इन किरणो से सूर्य की दिशा पता कर लेते है

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    1. यदि समानांतर ब्रह्मांड की अवधारणा को सही माने तो असंख्य ब्रह्माण्ड है। बिग बैंग की अवधारणा एक ब्रह्माण्ड मानती है लेकिन अनेक ब्रह्माण्ड की संभावना को नकारती नही है।

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  10. सर जब प्रकाश किरण एक माध्यम से दुसरे माध्यम मे प्रवेश करतीं है तो उसकी कौन कौन सी क्रिया बदल जाती है और कौन सी क्रिया नही बदलती है जैसे ******** आवृति , चाल, तरंग दैधयॆ , आयाम, उरजा आदि कैसे विस्तृत बताये सर

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  11. सर सूर्य की किरण मे कितनी किरणें पायी जाती है और कौन किरणें हमारे शरीर को जादा प्रभावित करतीं है और किस समय सुबह साम या फिर दोपहर

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    1. वर्णक्रम बहुत बड़ा है, इसमे सबसे कम ऊर्जा स्तर पर माइक्रोवेव, उससे ज्यादा ऊर्जा वाली रेडीयो तरंग, उससे ज्यादा ऊर्जा वाली अवरक्त(infra red) से लेकर मध्य ऊर्जा वाली दृश्य प्रकाश और उससे उपर अत्याधिक ऊर्जा वाली पराबैंगनी (ultra violet) किरणे होती है। इसमे से हम केवल दृश्य प्रकाश ही देख सकते है।
      सुबह और शाम की धूप अच्छी होती है क्योंकि इसमे पराबैंगनी किरणे कम होती है। सूर्य प्रकाश मे उपस्थित पराबैंगनी से विटामीन डी बनता है जो हड्डीयों के लिये आवश्यक है। लेकिन ज्यादा पराबैंगनी किरणो से त्वचा कैंसर भी हो सकता है, त्वचा जल भी सकती है। इसलिये सुबह और शाम की धुप मे बैठना चाहिये जब पराबैंगनी का असर कम होता है।

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    1. नींद न आना एक गंभीर विकार है, जिसे अनिद्रा रोग (Insomnia) के नाम से जाना जाता है। इस रोग में रोगी रातें जागते हुए बीतती हैं। द पूरी नहीं होने के कारण मोटापा, डायबीटीज़, दिल की बीमारी, मूड स्विंग्स, नशे की लत आदि होने की आशंका रहती है। इस रोग के कारण कई अन्य समस्याएं भी घेर लेती हैं, जिनमें से एक है दिमाग का सिकुड़ना।
      अनिद्रा से पीडित लोगों में, निर्णय लेने में मददगार व समझाने वाले ग्रे मैटर का घनत्व कम हो जाता है।

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    1. पृथ्वी अकेले नही घूमती है, वह अपने साथ सारा वातावरण लेकर घूमती है। इसलिये जब हेलिकाप्टर अपने स्थान पर खड़ा रहता है, पृथ्वी उसे अपने वातावरण के साथ लेकर घूम रही होती है।
      पृथ्वी का अर्थ जमीन तक ही नही , वायुमंडल की उपरी सीमा तक होता है।

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    1. सौर मंडल(सूर्य तथा पृथ्वी)उसी प्रक्रिया से बनते हैं जिस से तारों की सृष्टि होती है।

      तारों के जन्म के पहली स्थिति है , इंतजार और एक लम्बा इंतजार। धूल और गैस के बादल उस समय तक इंतजार करते है जब तक कोई दूसरा तारा या भारी पिंड इसमे कुछ हलचल ना पैदा कर दे! यह इंतजार हजारों लाखों वर्ष का हो सकता है।

      जब कोई भारी पिंड निहारीका(धूल और गैस के बादल) के पास से गुजरता है वह अपने गुरुत्वाकर्षण से इसमे लहरे और तरंगे उत्पन्न करता है। कुछ उसी तरह से जैसे किसी प्लास्टिक की बड़ी सी चादर पर कुछ कंचे बिखेर देने के बाद चादर मे एक किनारे पर से या बीच से एक भारी गेंद को लुढका दिया जाये। सारे कंचे भारी गेंद के पथ की ओर जमा होना शुरु हो जायेंगे। धीरे धीरे ये सारे कंचे चादर मे एक जगह जमा हो जाते है।

      ठीक इसी तरह निहारिका मे धूल और गैस के कण एक जगह पर संघनित होना शुरु हो जाते है। पदार्थ का यह ढेर उस समय तक जमा होना जारी रहता है जब तक वह एक महाकाय आकार नही ले लेता।

      इस स्थिति को पुर्वतारा( protostar) कहते है। जैसे जैसे यह पुर्वतारा बड़ा होता है गुरुत्वाकर्षण इसे छोटा और छोटा करने की कोशिश करता है, जिससे दबाव बढते जाता है, पुर्वतारा गर्म होने लगता है। जैसे साईकिल के ट्युब मे जैसे ज्यादा हवा भरी जाती है ट्युब गर्म होने लगता है।

      जैसे ही अत्यधिक दबाव से तापमान 10,000,000 केल्विन तक पहुंचता है नाभिकिय संलयन(Hydrogen Fusion) की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। अब पुर्वतारा एक तारे मे बदल जाता है। वह अपने प्रकाश से प्रकाशित होना शुरू कर देता है।

      आधुनिक खगोलशास्त्र में माना जाता है के जब अंतरिक्ष में कोई धूल और गैस का बादल गुरुत्वाकर्षण से सिमटने लगता है तो वह किसी तारे के इर्द-गिर्द एक आदिग्रह चक्र (प्रोटोप्लैनॅटेरी डिस्क) बना देता है। पहले अणु जमा होकर धूल के कण बना देते हैं, फिर कण मिलकर डले बन जाते हैं। गुरुत्वाकर्षण के लगातार प्रभाव से, इन डलों में टकराव और जमावड़े होते रहते हैं और धीरे-धीरे मलबे के बड़े-बड़े टुकड़े बन जाते हैं जो वक़्त से साथ-साथ ग्रहों, उपग्रहों और अलग वस्तुओं का रूप धारण कर लेते हैं।जो वस्तुएँ बड़ी होती हैं उनका गुरुत्वाकर्षण ताक़तवर होता है और वे अपने-आप को सिकोड़कर एक गोले का आकार धारण कर लेती हैं। किसी ग्रहीय मण्डल के सृजन के पहले चरणों में यह ग्रह और उपग्रह कभी-कभी आपस में टकरा भी जाते हैं, जिस से कभी तो वह खंडित हो जाते हैं और कभी जुड़कर और बड़े हो जाते हैं।

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  12. किन्तु श्रीमान माइक्रोवेव तरंगे तो और कम आवृत्ति की होती हैं किन्तु उनसे तो माइक्रोवेव ओवन कार्य करता है. अंततः ये बताएं कि उष्मीय प्रभाव के लिए किस परास की विद्युत चुंबकीय तरंगे ज़िम्मेदार हैं?

    दूसरा प्रश्न : किसी मुलायम वस्तु को अत्यंत निम्न तापमान तक ठंडा करके उसे ठोकर मारे तो वह टुकड़े टुकड़े हो जाता है ?

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    1. हर आवृत्ति की विद्युत चुंबकिय तरंग से उष्मा मिलती है लेकिन दृश्य प्रकाश से कम आवृत्ति वाला तरंग में वह अत्यंत कम होती है
    2. मांइक्रोवेव तरंग रेडियो तरंग और अवरक्त तरंग के मध्य की है। उनकी ऊर्जा दृश्य प्रकाश से कम होती है। वे सामान्य पदार्थ को ज़्यादा उष्मा नहीं दे सकती हैं। लेकिन माइक्रोवेव ओवन इन तरंगों के एक विचित्र गुण का प्रयोग करता है, माइक्रोवेव ओवन मे 2,450 megahertz (2.45 gigahertz) आवृत्ति की तरंगों की प्रयोग होता है। ये विशेष आवृत्ति है और कुछ विशेष पदार्थ जैसे पानी, वसा और शर्करा द्वारा अवशोषित हो जाती है, यह अवशोषित ऊर्जा परमाणु को गति देती है और पदार्थ गर्म होता है! लेकिन प्लास्टिक , काँच , सीरेमिक जैसे पदार्थ इसे अवशोषित नहीं करते है, जबकि धातुयें उसे परावर्तित कर देती है। माइक्रोवेव ओवन इन अन्य पदार्थ को गर्मी नहीं कर सकता है। इसी कारण से हम मांइक्रोवेव ओवन में धातु के बर्तन की बजाय काँच , प्लास्टिक या सीरेमिक के बर्तन प्रयोग करते है!
    3. कम तापमान पर पदार्थ के अणुओं के मध्य के बंधन कमज़ोर हो जाने से वह टूटकर बिखरजाता है
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  13. किन्तु श्रीमान जी आवृत्ति के आधार पर दृश्य प्रकाश के फोटॉनों कि ऊर्जा ,अवरक्त तरंगो कि अपेक्षा अधिक हुयी P = hv

    क्योंकि दृश्य प्रकाश की आवृत्ति ,अवरक्त तरंगो कि आवृत्ति से अधिक होती है

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    1. प्रकाश विद्युत चुंबकिय विकिरण है, जो एक बडे वर्णक्रम में फैला हुआ है! सबसे कम ऊर्जावान में रेडियो तरंग है, उससे ज़्यादा ऊर्जावान अवरक्त किरणें (infra red) है, उसके पश्चात दृश्य प्रकाश आता है! इसके पश्चात बढंती ऊर्जा के क्रम में पराबैंगनी (ultraviolet), X किरण , गामा किरण आती है। अव रक्त किरणों से त्वचा नहीं जलती है, त्वचा पराबैंगनी और उससे अधिक ऊर्जावान किरणों से जलती है, इन किरणों से कैंसर भी हो सकता है। गामाकिरण से तुरंत मृत्यु भी संभव है।

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  14. कृपया गुरुत्वाकर्षण के झोल सिद्धांत में दिक्क जाल के झोल को त्रिविमीय रूप से समझाएं ना कि तानी हुयी चादर के समरूप करके …

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    1. रासायनिक तत्व (या केवल तत्व) ऐसे उन शुद्ध पदार्थों को कहते हैं जो केवल एक ही तरह के परमाणुओं से बने होते हैं। या जो ऐसे परमाणुओं से बने होते हैं जिनके नाभिक में समान संख्या में प्रोटॉन होते हैं।
      अणु पदार्थ का वह छोटा कण है तो प्रकृति के स्वतंत्र अवस्था में पाया जाता है लेकिन रासायनिक प्रतिक्रिया में भाग नहीं ले सकता है। रसायन विज्ञान में अणु दो या दो से अधिक, एक ही प्रकार या अलग अलग प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना होता है। परमाणु मजबूत रसायनिक बंधन के कारण आपस में जुड़े रहते हैं और अणु का निर्माण करते हैं। अणु की संकल्पना ठोस, द्रव और गैस के लिये अलग अलग हो सकती है। अणु पदार्थ के सबसे छोटे भाग को कहते हैं। यह कथन गैसो के लिये ज्यादा उपयुक्त है। उदाहरण के लिये, ओक्सीजन गैस उसके स्वतन्त्र अणुओ का एक समूह है। द्रव और ठोस मे अणु एक दूसरे से किसी ना किसी बन्धन मे रह्ते है, इनका स्वतन्त्र अस्तित्व नही होता है। कई अणु एक दूसरे से जुडे होते है और एक अणु को अलग नही किया जा सकता है। अणु मे कोई विद्युत आवेश नही होता है। अणु एक ही तत्व के परमाणु से मिलकर बने हो सकते हैं या अलग अलग तत्वों के परमाणु से मिलकर।
      परमाणु (एटम) किसी तत्व का सबसे छोटा भाग है जिसमें उस तत्व के रासायनिक गुण निहित होते हैं। परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसका घनत्व बहुत अधिक होता है। नाभिक के चारो ओर ऋणात्मक आवेश वाले एलेक्ट्रान चक्कर लगाते रहते हैं जिसको एलेक्ट्रान घन (एलेक्ट्रान क्लाउड) कहते हैं। नाभिक, धनात्मक आवेश वाले प्रोटानों एवं अनावेशित (न्यूट्रल) न्यूट्रानों से बना होता है। जब किसी परमाणु में एलेक्ट्रानों की संख्या उसके नाभिक में स्थित प्रोटानों की संख्या के समान होती है तब परमाणु वैद्युकीय दृष्टि से अनावेशित होता है; अन्यथा परमाणु धनावेशित या ऋणावेशित ऑयन के रूप में होता है।

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  15. sirji ye viman ka nirman bodhayan theorem{as say paithagoras theorem} gravitation {ajkal newton ko iska aviskar mana jata h}vedik ganit fir in sab bharityo ke gyan ko newton aur paithagoras brother robert{ viman aviskar kaha jata h} asa kyu h jo indian kahte h ki humare rishi aur aaryabhatt brahmgupt ne bhi grantho m likh chuke h aaj se 2-4 hazar year pahele

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    1. संतोष, बौधायन प्रमेय के बारे ठीक है! आर्यभटट, ब्रह्मगुप्त को पश्चिम के वैज्ञानिक भी मानते है। लेकिन ये कहोगे कि प्राचीन भारत में विमान बने थे तब वह असत्य है, इसके कोई प्रमाण नहीं है। केवल सिद्धांत से ही विमान नहीं बनते, उसके लिये तकनीक चाहिये जो उस समय उपलब्ध नहीं । मै इसके पहले भी कह चुका हुँ कि वेदों , पुराणों में विज्ञान ना खोंजे, जो अन्य पुस्तकों में विज्ञान है उसे आज भी माना जाता है। अगली बार जब आप कहे कि हमारे ग्रंथों में लिखा है मुझे उस ग्रंथ का नाम पृष्ठ संख्या, श्लोक दिजीये। मै इस तरह के आधारहीन प्रश्नों पर अपनी ऊर्जा व्यर्थ नहीं करना चाहता।

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      1. अधिकतर पौधो मे प्रजनन फुलो से होता है। पुष्प, जिन्हें फूल भी कहा जाता है, जनन संरचना है जो पौधों में पाए जाते हैं। ये (मेग्नोलियोफाईटा प्रकार के पौधों में पाए जाते हैं, जिसे एग्नियो शुक्राणु भी कहा जाता है। एक फूल की जैविक क्रिया यह है कि वह पुरूष शुक्राणु और मादा बीजाणु के संघ के लिए मध्यस्तता करे। प्रक्रिया परागन से शुरू होती है, जिसका अनुसरण गर्भधारण से होता है, जो की बीज के निर्माण और विखराव/ विसर्जन में ख़त्म होता है। बड़े पौधों के लिए, बीज अगली पुश्त के मूल रूप में सेवा करते हैं, जिनसे एक प्रकार की विशेष प्रजाति दुसरे भूभागों में विसर्जित होती हैं। एक पौधे पर फूलों के जमाव को पुष्पण (inflorescence) कहा जाता है।

        फूल-पौधों के प्रजनन अवयव के साथ-साथ, फूलों को इंसानों/मनुष्यों ने सराहा है और इस्तेमाल भी किया है, खासकर अपने माहोल को सजाने के लिए और खाद्य के स्रोत के रूप में भी।
        पराग (pollen) को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्यक पुष्प की अपनी विशेष प्रकार की संरचना होती है। किलिएसटोगैमस फूल (Cleistogamous flower) स्वपरागित होते हैं, जिसके बाद वे खुल भी सकते हैं या शायद नही भी.कई प्रकार के विओला और साल्वी प्रजातियों में इस प्रकार के फूल होते हैं।

        कीटप्रेमी फूल (Entomophilous flower) कीटों, चमगादडों, पक्षियों और जानवरों को आकर्षित करते हैं और एक फूल से दुसरे को पराग स्थानांतरित करने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं। सामान्यतः फूलों के अनेक भागों में एक ग्रंथि होती है जिसे पराग (nectar) कहा जाता है जो इन कीटों को आकर्षित करती हैं। कुछ फूलों में संरचनायें होते हैं जिन्हें मधुरस निर्देश (nectar guides) कहते हैं जो कि परागण करने वालों को बताते हैं कि मधु कहाँ ढूँढना है। फूल परागकों को खुशबू और रंग से भी आकर्षित करते हैं। फिर भी कूछ फूल परागकों को आकर्षित करने के लिए नक़ल या अनुकरण करते हैं। उदाहरण के लिए कुछ ऑर्किड की प्रजातियाँ फूल सृजित करती हैं जो की मादा मधुमक्खी के रंग, आकार और खुशबू से मेल खाते हैं। फूल रूपों में भी विशेषज्ञ होते हैं और पुंकेशर (stamen) की ऐसी व्यवस्था होती है कि यह सुनिश्चित हो जाता है की पराग के दानें परागक पर स्थानांतरित हो जायें जब वह अपने आकर्षित वास्तु पर उतरता है (जैसे की मधुरस, पराग, या साथी) कई फूलों की एक ही प्रजाति के इस आकर्षनीय वस्तु को पाने के लिए, परागक उन सभी फूलों में पराग को स्त्रीकेशर (stigma) में स्थानांतरित कर देता है जो की बिल्कुल सटीक रूप से समान रूप में व्यवस्थित होते हैं।

        वातपरागीत फूल (Anemophilous flower) वायु का इस्तेमाल पराग को एक फूल से अगले फूल तक ले जाने में करते हैं उदहारण के लिए घासें, संटी वृक्ष, एम्बोर्सिया जाति की रैग घांस और एसर जाति के पेड़ और झाडियाँ. उन्हें परागकों को आकर्षित करने की जरुरत नही पड़ती जिस कारण उनकी प्रवृति “दिखावटी फूलों” की नही होती. आमतौर पर नर और मादा प्रजनन अंग अलग-अलग फूलों में पाए जाते हैं, नर फूलों में लंबे लंबे पुंकेसर रेशे होते हैं जो की अन्तक में खुले होते हैं और मादा फलों में लंबे-लंबे पंख जैसे स्त्रीकेसर होते हैं। जहाँ कि कीटप्रागीय फूलों के पराग बड़े और लसलसे दानों कि प्रवृति लिए हुए रहते हैं जो कि प्रोटीन (protein) में धनी होते हैं (परागाकों के लिए एक पुरस्कार), वातपरागित फूलों के पराग ज्यादातर छोटे दाने लिए हुए रहते हैं, बहुत हल्के और कीटों के लिए इतने पोषक भी नही होते हैं

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    1. संतोष, आपने जो वैज्ञानिकों की सूची दी है उनमें से किसी ने वेदों को नहीं पढ़ा है, उनमें से किसी को संस्कृत नहीं आती है! मैंने वेदों को पढ़ा है, उनमें देवताओं की स्तुति के अतिरिक्त कुछ नहीं है! वेदों में विज्ञान नहीं है। आप यदि वेद पढ़ना चाहते है तो पास के किसी गायत्री मंदिर जाये वहाँ पर वेद और उनका हिंदी अनुवाद मिल जायेगा! पढ़ लिजीये सारी ग़लतफ़हमी दर हो जायेगी!
      Internet पर http://vedpuran.com पर आपको वेद और उनका हिंदी अनुवाद मील जायेगा।

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    1. संतोष ऐसा नही है कि नये वैज्ञानिको के नाम सुने नही जाते है। उनके नाम जानने के लिये आपको अच्छी मानी हुयी विज्ञान पत्रिकायें पढनी होगी। दुर्भाग्य से हिंदी मे ऐसी कोई पत्रिका नही है।

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      1. विज्ञान प्रगति और अविष्कार दोनो अच्छी पत्रिका है लेकिन वे बच्चों और किशोरों के लिये है। हम उनकी तुलना अंग्रेज़ी की विज्ञान पत्रिकाओं से नहीं कर सकते है।

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    1. न्युटन का योगदान बहुत बड़ा है दो राय नहीं लेकिन वो खोज नहीं करते तो कोई और करता। उदाहरण के लिये न्युटन ने कैलकुलस खोजा लेकिन साथ में ही लिब्निज ने भी था,कुछ ही समय बाद! उन्होंने गुरूत्व बल खोजा लेकिन केप्लर ने भी कुछ ही समय बाद ग्रहों की गति के नियम खोज निकाले। प्रगति किसी एक व्यक्ति पर निर्भर नहीं होती, विकास अपना रास्ता खोज निकालता है!

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  16. बहुत ही रोचक तरीको से जानकारी मिली..कृपया हिंदी में समझाते हुए आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल करेंगे और अंग्रेजी नामो का उपयोग करेंगे तो हम जैसी गृहणियों को भी समझने में अधिक मदद मिलेगी.

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