ब्रह्माण्ड का केन्द्र कहाँ है?


universe_center_wideसरल उत्तर है कि

ब्रह्माण्ड का कोई केन्द्र नही है!

ब्रह्माण्ड विज्ञान की मानक अवधारणाओं के अनुसार ब्रह्माण्ड का जन्म एक महाविस्फोट(Big Bang) मे लगभग 14 अरब वर्ष पहले हुआ था और उसके पश्चात उसका विस्तार हो रहा है। लेकिन इस विस्तार का कोई केण्द नही है, यह विस्तार हर दिशा मे समान है। महाविस्फोट को एक साधारण विस्फोट की तरह मानना सही नही है। ब्रह्माण्ड अंतरिक्ष मे किसी एक केन्द्र से विस्तारीत नही हो रहा है, समस्त ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है और यह विस्तार हर दिशा मे हर जगह एक ही गति से हो रहा है।

1929 मे एडवीन हब्बल ने घोषणा की कि उन्होने हम से विभिन्न दूरीयों पर आकाशगंगाओं की गति की गणना की है और पाया है कि हर दिशा मे जो आकाशगंगा हमसे जितनी ज्यादा दूर है वह उतनी ज्यादा गति से दूर जा रही है। इस कथन से ऐसा लगता है कि हम ब्रह्माण्ड के केन्द्र मे है; लेकिन तथ्य यह है कि यदि ब्रह्माण्ड का विस्तार हर जगह समान गति से हो रहा हो तो हर निरीक्षण बिंदु से ऐसा प्रतीत होगा कि वह ब्रह्मांड के केन्द्र मे है और उसकी हर दिशा मे आकाशगंगाये उससे दूर जा रही है।

मान लिजीये की तीन आकाशगंगाये “अ”,”ब” और “स” है। यदि आकाशगंगा “ब” आकाशगंगा “अ” से 10,000 किमी/सेकंड की गति से दूर जा रही हो तो, आकाशगंगा “ब” मे स्थित परग्रही जीव को आकाशगंगा अ विपरीत दिशा मे 10,000 किमी/सेकंड से दूर जाते हुये दिखेगी। यदि आकाशगंगा “स” आकाशगंगा “ब” की दिशा मे दोगुनी दूरी पर हो तो उसकी गति आकाशगंगा “अ” से 20,000 किमी/सेकंड होगी लेकिन आकाशगंगा “ब” के परग्रही के लिये 10,000 किमी/सेकंड ही होगी।

आकाशगंगा “अ” आकाशगंगा “ब” आकाशगंगा “स”
आकाशगंगा “अ” से 0 किमी/सेकंड 10,000 किमी/सेकंड 20,000 किमी/सेकंड
आकाशगंगा “ब” से -10,000 किमी/सेकंड 0 किमी/सेकंड 10,000 किमी/सेकंड

इस तरह आकाशगंगा ब के परग्रही के अनुसार हर दिशा मे सभी कुछ उससे दूर जा रहा है। इसी तरह से हमारी भी हर दिशा मे सभी कुछ दूर जा रहा है।

प्रसिद्ध गुब्बारे का उदाहरण या रूपक

ब्रह्माण्ड के विस्तार को समझने के लिये सबसे सरल उदाहरण अंतरिक्ष की फूलते गुब्बारे की सतह से तुलना है। यह प्रसिद्ध तुलना आर्थर एडींगटन ने 1933 मे अपनी पुस्तक “The Expanding Universe” मे की थी। इसके पश्चात फ़्रेड हायल ने 1960 मे अपनी पुस्तक “The Nature of the Universe” मे की थी। होयल ने लिखा था कि

“मेरे अगणितज्ञ मित्र अक्सर मुझसे कहते है कि उन्हे ब्रह्माण्ड विस्तार को एक चित्र के रूप मे देखने मे कठिनाई होती है। उन्हे समझाने के लिये गणित के सूत्रों का प्रयोग करने की बजाये मुझे उन्हे ब्रह्माण्ड के विस्तार को फूलते हुये गुब्बारे की सतह जिस पर बहुत से बिंदु बने हो के रूप समझाने मे आसानी होती है। जब गुब्बारे को फूलाया जाता है तब उसकी सतह पर के बिंदु एक दूसरे से समान रूप से दूर जाते है उसी तरह से आकाशगंगाओं के मध्य का अंतराल भी बड रहा है।”

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गुब्बारे का उदाहरण अच्छा है लेकिन इसे सही तरह से समझना होगा अन्यथा वह विषय को और उलझा देगा। होयल ने पहले ही चेता दिया है कि

“ब्रह्माण्ड के विस्तार मे कई ऐसे पहलू है जोकि गलत संकेत दे सकते है”।

ध्यान दें कि यहां पर हम गुब्बारे की द्वि-आयामी सतह की तुलना त्री-आयामी अंतरिक्ष से कर रहे है। हम गुब्बारे की तुलना अंतरिक्ष से नहीं, हम “गुब्बारे की सतह” की तुलना अंतरिक्ष से कर रहे है।

गुब्बारे की सतह समांगी(homogeneous) है जिसमे किसी भी बिंदु को केंद्र नही माना जा सकता है। गुब्बारे का केंद्र उसकी सतह पर नही है और उसे ब्रह्माण्ड के केंद्र के जैसे नही माना जाना चाहिये। यदि आपको सरल लगे तो आप गुब्बारे की त्रिज्या(radial) दिशा को समय मान सकते है। यह होयल का सुझाब था जो इसे और भी उलझा सकता है। सबसे सरल है कि आप गुब्बारे की सतह के अतिरिक्त किसी भी बिंदु को ब्रह्मांड का भाग ना समझे। गणितज्ञ गास मे 19वीं सदी के प्रारंभ मे कहा था कि अंतरिक्ष के गुणधर्म जैसे वक्रता को ऐसी अंतर्भूत राशीयों के रूप मे भी समझा जा सकता है जिनका मापन वक्रता के कारण को जाने बिना भी किया जा सकता हो। किसी बाह्य आयाम की अनुपस्थिती मे भी अंतरिक्ष मे वक्रता संभव है। गास मे अंतराल की वक्रता का मापन का प्रयास तीन पर्वतों की चोटीयो से बने त्रिभूज के कोणो के मापन से किया था।

आप जब भी गुब्बारे के उदाहरण के बारे मे सोचें हमेशा ध्यान मे रखे कि

  • गुब्बारे की द्विआयामी सतह अंतरिक्ष के तीन आयामो के समरूप है।
  • त्रीआयामी अंतरिक्ष जो गुब्बारे के अंतर्भूत है, वह किसी अन्य भौतिक आयाम के समरूप नही है, आप चाहे तो उसे उसे आप समय के समरूप मान सकते है।
  • गुब्बारे का केन्द्र किसी भी भौतिक वस्तु के समरूप नही है, उसे आप अंतरिक्ष/ब्रह्मांड का भाग ना माने।
  • संभव है कि ब्रह्माण्ड आकार मे सीमित हो और गुब्बारे की सतह जैसे विस्तार कर रहा हो लेकिन वह असीमित भी हो सकता है।
  • आकाशगंगाये गुब्बारे की सतह के बिंदुओं की तरह एक दूसरे से दूर जा रही है लेकिन आकाशगंगाये स्वयं गुरुत्वाकर्षण से बंधी है, वह बिखर नही रही है।

…..लेकिन यदि महाविस्फोट(Big Bang) एक विस्फोट था तो…

किसी सामान्य विस्फोट मे पदार्थ विस्फोट केंद्र से बाहर की दिशा की ओर फैलता है। विस्फोट प्रक्रिया शुरु होने के एक क्षण के पश्चात केंद्र सबसे ज्यादा गर्म बिंदु होता है। उसके पश्चात केन्द्र से सभी दिशाओं की ओर पदार्थ एक गोले की शक्ल मे बाहर जाता है। महाविस्फोट अर्थात बिग बैंग इस तरह का विस्फोट नही था। वह अंतरिक्ष का विस्फोट था, वह अंतरिक्ष मे विस्फोट नही था। स्टैंडर्ड माडेल के अनुसार बिग बैंग के पहले समय और अंतरिक्ष दोनो नही थे। सही मायनो मे समय के अनुपस्थिति मे “पहले” शब्द ही निरर्थक हो जाता है। बिग बैंग अन्य विस्फोटों से अलग था। यह हमे बताता है कि किसी एक बिंदु से बाह्य दिशा मे पदार्थ विस्तारित नही हो रहा है, बल्कि अंतरिक्ष हर दिशा मे समान गति से विस्तारित हो रहा है।

यदि बिग बैंग किसी उपस्थित अंतरिक्ष मे एक साधारण विस्फोट के जैसे हुआ होता तो हम इस विस्फोट की विस्तारित होती सीमा को देख पाते क्योंकि उसके पश्चात रिक्त अंतरिक्ष होता। लेकिन हम भूतकाल मे देखने का प्रयास करते हैं तो हर दिशा मे बिग बैंग के प्रभाव को देखते है। यह ब्रहमाण्डिय माइक्रोवेव विकिरण अर्थात कास्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड विकिरण हर दिशा मे संमागी है। यह भी दर्शाता है कि पदार्थ किसी बिंदु से बाह्य दिशा की ओर नही जा रहा है बल्कि अंतरिक्ष ही हर दिशा मे समान रूप से विस्तार कर रहा है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि अभी तक के समस्त निरीक्षण भी यही दर्शाते है कि ब्रह्माण्ड का कोई केंद्र नही है। यह एक तथ्य है कि ब्रह्माण्ड के समान रूप से विस्तार से यह संभावना समाप्त नही होती कि एक गर्म घना ब्रह्माण्डिय केंद्र संभव नही है लेकिन आकाशगंगाओं के वितरण और गति के अध्ययन ने यह स्थापित कर दिया है कि हमारे निरीक्षण की सीमा के अंतर्गत ऐसा कोई केंद्र नही है।

ब्रह्माण्डिय सिद्धांत(cosmological principle)

1933 मे आर्थर मिलेने ने ब्रह्माण्डिय सिद्धांत(cosmological principle) प्रस्तुत किया था जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड का एक समान(समांगी और सावर्तिक) होना चाहिये। इसके कुछ पहले ही यह माना जाता था कि ब्रह्माण्ड मे केवल हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी ही है और उसका केंद्र ब्रह्माण्ड का केंद्र है। 1924 मे हब्बल द्वारा अन्य आकाशगंगाओं की खोज ने इस बहस को समाप्त कर दिया। आकाशगंगाओं के वितरण की संरचना मे काफी खोज हो जाने के पश्चात भी अनेक खगोल विज्ञानी इस सिद्धांत को दार्शनिक रूप से मानते है क्योंकि यह एक ऐसी उपयोगी अवधारणा है जिसके विरोध मे कोई प्रमाण नही मिला है। लेकिन ब्रह्माण्ड का हमारा परिप्रेक्ष्य प्रकाश गति तथा बिग बैंग के पश्चात के सीमित समय द्वारा अवरोधित है। हमारे द्वारा निरीक्षित किया जा सकने वाला ब्रह्माण्ड विशाल है, लेकिन संभवतः वह समस्त ब्रह्माण्ड की तुलना मे बहुत क्षुद्र हो सकता है, ब्रह्माण्ड असीमित भी हो सकता है। हमारे द्वारा देखे जा सकने वाले ब्रह्माण्ड के क्षितीज के पश्चात क्या है? इसे जानने के लिये हमारे पास कोई साधन या उपाय नही है, हम यह भी नही जान सकते है कि यह ब्रह्माण्डिय सिद्धांत(cosmological principle) सही है या गलत।

1927 मे जार्ज लेमैत्रे ने अंतरिक्ष के विस्तार के लिये आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के समीकरणो का हल निकाला। इन्ही समिकरणो के हल के आधार पर उन्होने बिगबैंग सिद्धांत को प्रस्तावित किया। इन समिकरणो के हल पर आधारित माडेल को फ़्रीडमैन-लैमीत्रे-राबर्टसन-वाकर(Friedman-Lemaitre-Robertson-Walker (FLRW)) माडेल कहा जाता है। फ़्रीडमैन ने इस माडेल को खोजा था लेकिन उसे सही माडेल नही माना था। यह बहुत कम लोग को ज्ञात है कि लैमीत्रे ने एक ऐसा माडेल भी बनाया था जो गोलाकार सममिती मे विस्तार करते हुये ब्रह्माण्ड का था। इस माडेल को लैमीत्रे-टालमन-बांडी माडेल(Lemaître-Tolman-Bondi (LTB)) कहा जाता है, इस माडेल के अनुसार ब्रह्मांड का केण्द्र संभव है। हमारे पास यह मानने का कोई आधार नही है कि LTB माडेल सही नही है क्योंकि FLWR माडेल यह LTB माडेल का एक विशेष सिमीत प्रकार है। FLWR माडेल यह एक ऐसा सन्निकटिकरण है को निरीक्षण किये जा सकने वाले ब्रह्माण्ड के लिये सही है लेकिन उसके बाह्य कुछ कहा नही जा सकता है।

ब्रह्मांड की संरचना और भी अन्य आकारो मे संभव है जिसमे केंद्र हो भी सकता है या नही भी हो सकता है। निरीक्षण किये जा सकने वाले ब्रह्माण्ड के पैमाने पर उसका केंद्र नही है। लेकिन यदि यह पाया जाता है कि निरीक्षण किये जा सकने वाले ब्रह्माण्ड से बडे पैमाने पर ब्रह्माण्ड का केंद्र है तब यह भी संभव है कि उससे भी बड़े पैमाने पर वह ऐसे अनेक ब्रह्मांड केंद्रो मे से एक हो, ठीक उसी तरह जैसे कुछ समय पहले मंदाकिनी आकाशगंगा का केंद्र ब्रह्माण्ड का केंद्र था।

साधारण शब्दों मे बिग बैंग सिद्धांत की अवधारणा के अनुसार विस्तार करते हुये ब्रह्माण्ड का कोई केंद्र नही है और यह अब तक के निरीक्षणो के आधार पर सही है। लेकिन यह भी संभव है कि हमारे निरीक्षण से बड़े पैमाने पर यह सही ना हो। हमारे आप इस प्रश्न का अकाट्य उत्तर नही है कि ब्रह्माण्ड का केंद्र कहां है?

50 विचार “ब्रह्माण्ड का केन्द्र कहाँ है?&rdquo पर;

    1. Sir …
      HUM samay me aage ya piche ja sakte hain kya isliye hi samay ko dimension maana gya h …
      Main time ke baare me hi kuchh पढ़ पढ़ कर ढूढ रहा था तभी यही जवाब मिल गया क्या ये सही हैं इसलिए आप से पूछा..
      और सर हम अभी समय यात्रा तकनीकी रूप से नहीं कर पाये हैं क्या इसीलिए समय को 4th dimtension “माना” गया हैं मतलब अभी बिल्कुल सिद्ध नहीं हुआ मानकर चल रहे हैं ।

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  1. Sir, thanks for sharing the knowledge mere hisab se universe Ka Matlab Hi hona Chahiye infinite kiyuki ager ham universe ko finite kerte hai to is ke baher kya hai usko hamko define kerna parega mere hisab count kerna ya ginna ya value nikalna insani dimag Ka fitrat hai some aap ko samghane ke liye wena universe Ka koi sima nahi hai kiyon ki anant shabd ko hamara dimag kalpana nahi kerpata hai jaise ki big bank se pahle time ke absence ko nahi samagh pata hai kiyon ki insan kitna bhi sochega ya samghega some dimag ke capacity ke hisab se Hi sochega aur universe me bahoot Sara aisa chigh hai Jo insan ke dimag ke capacity se baher hai kiyon ki jisne duniya banaya hai usne insan ke dimag ko limit banaya hai insan kitna bhi tarakki kerlega lakin duniya ke in rahassiyon ko sulgha nahi paega kiyon ki jis tarah ye duniya anannt hai usi tarah knowledge bhi anannt hai aur insan ke dimag ke capacity aur power Ka ek sima hai kitna jyada insan khoj karega kahin usse gyada usko maloom nahi rahega lakin in San chigho ke alawa ek short cut rasta hai duniya ko samaghane ke liye ki jisne duniya banaya hai usko samghe usko dhundhe usko khoghe to ager ham usko samagh gay to universe Ka chhote se chhota aur bade se bada her chigh samagh jaenge her theory aur her fact likhna to bahoot khuch hai lakin abhi ke liye itna hi

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    1. एड़विन हब्बल के मिश्रित ब्रह्मांड सिद्धांत के अनुसार,”ब्रह्मांड निरन्तर वविस्तारित हो रहा है जो एक निश्चित
      अवधि में एक महाक्रंच के रूप में एक बिन्दु पर समाहित होकर ब्लैक होल में शामिल होकर नष्ट हो जायेगा ।” अर्थात पानी भी समाप्त हो जायेगा

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      1. Sir, agr koi planet ya koi bhi … gol hota h to uska center bhi hota h kya cosmos gol h agr h to uska center point bhi hoga agr nhi………. To esa bhi to ho skta h ki cosmos ko black hole ek dusre se jodte h … Or ese bhoot sare bhramnd possible h warm hole se possible h
        …..

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    1. तारो का तापमान अत्याधिक होता है, उस पर जीवन संभव नही है। जीवन केवल उन ग्रहों पर संभव है जिन पर द्रव जल संभव हो। तारो पर जल द्रव अवस्था मे नही हो सकता है।

      आपके दूसरे प्रश्न का उत्तर भविष्य के पास है, यहा हाँ भी हो सकता है ना भी।

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    1. बिना ऊर्जा के चलने वाले उपकरण ऊष्मा गतिकी के नियंम के विपरीत है और वे संभव नहीं है। ढेर सारे ठगों ने ऐसे यत्र बनाने के दावे किये है लेकिन वे धोखाधड़ी ही निकले है।

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  2. “महाविस्फोट अर्थात बिग बैंग इस तरह का विस्फोट नही था। वह अंतरिक्ष का विस्फोट था, वह अंतरिक्ष मे विस्फोट नही था। स्टैंडर्ड माडेल के अनुसार बिग बैंग के पहले समय और अंतरिक्ष दोनो नही थे। सही मायनो मे समय के अनुपस्थिति मे “पहले” शब्द ही निरर्थक हो जाता है। बिग बैंग अन्य विस्फोटों से अलग था।”

    samjhayiye, ki aakhir kuchh nahi se kuchh kaise utpann hua? big-bang hua to kiska hua? samay ka na hona sambhav kaise? kin shaktiyo aur tatvo ke prabhav-vash big bang ki ghatna ghati?
    lekin ‘ghati’ ye bhi kaise kahun, aapne to kaha ki samay big bang ke paschat aaya.

    kul mila ke prashn hai ki, “big bang ashtitva me kaise aaya????”

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    1. samay ka na hona sambhav kaise?
      Ye janne ke liye ya samay ke astitva ke bare me koi bhi discussion karne ke liye aapko ek nai bhasha ka vikas karna hoga kyoki aaj duniya ki har bhasha kaal yani samay ko aadhar bana kar viksit hui he in bhashao me samay ko shasvat satya maan kar viksit kiya gaya he in sabhi bhasho ki grammar me samay ko classified bhi kiya he . Ab aap esi kisi bhasha me samay ke astitv par kese sanvad kar sakte he jis bhasha ke mul aadhar me hi samay racha basa he. Aapke mul prashn tak ko aap in bhasho me nahi puch sakte he “kya samay he?” Is prashn me hi vartaman kaal ka upayog he, to aap to prashn ke doraan he samay ko svikaar kar chuke he, to fir aab is prashn ka to koi matlab hi nahi reh jata he ye prashn in bhashao me nishpaksh nahi poocha ja sakata he. Is liye time ke bare me discuss karne ke liye hame machine language ya assembly language jesi kisi language ka use karna chahiye jin bhashao ka astitv samay par nirbhar nahi karta he halaki ye discussion in bhashao me behad mushkil ho jaayega lekin in bhasho me time ki sahi aur nishpaksh vyakhya ho sakti he . I think time jesi koi chiz nahi he , hame objects ki gatiyo ke karan samay ka mithya anubhav hota he ye ek mrugcharika hi he

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  3. “किसी चीज का केद्र होने के लिए उसके विरोधी बिंदुओ को उससे समान दूरी पर होना चाहिए.”
    -: चीज मतलब ऑब्जेक्ट लेकिन केंद्र के लिए सिर्फ दुरी सामान होना जरुरी नहीं क्योकि CG (गुरुत्वीय केंद्र ) के लिए ऑब्जेक्ट के सभी बिन्दुओ से केंद्र की दुरी अलग अलग हो सकती हे बल्कि गुरुत्वीय केंद्र तो ऑब्जेक्ट से बहार भी हो सकता हे किसी ऑब्जेक्ट का केंद्र बताने के लिए विस्तृत विश्लेषण की आवश्यकता होती हे जेसे ऑब्जेक्ट का आकार, द्रव्यमान का वितरण उस आकार में किस तरह से हे और खास तोर पर ये की आप किस तरह के केंद्र की बात कर रहे हे ?(गुरुत्वीय केंद्र , या ऑब्जेक्ट के आकार का त्रिआयामी केंद्र या कई बार तो उद्गम को भी केंद्र की तरह माना जाता हे | व्रत या गोले के अलावा किसी भी अन्य आकार का द्वियायामी अथवा त्रिआयामी केंद्र ऑब्जेक्ट के सभी बिन्दुओ से समान दुरी पर नहीं हो सकता

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      1. sir, bhagwan ke hone kaa dawa hota hai… kisi n kisi proof ke zariye yh samne aata hai ki kahi n kahi bhawan thy is duniya me… itne proof hai jese eg. Ramayan ki book , or mahabharat , shivpuran brama buran aadi… fir bhi science yh kyu nhi maanti ki bhgwan hai… brahmand ka nirman iahwar dwara hi hua hai… koi big bang theory ae nhi.. big babg theory to sirf natikiye or fizul ki baat or behuda sa karan hai brahmand ki utpatti k liye…..

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      2. चित्र शंकर , विज्ञान प्रमाणो को मानता है। बिग बैंग थ्योरी के समर्थन मे ढेर सारे प्रमाण है। इसके असत्य होने की संभावना न्यूनतम है।

        आपने जो धार्मिक ग्रंथो की सूची बताई है, क्या आपने उन्हे स्वंय पढ़ा है ? या किसी ने कहा और मान लिया है ? इन ग्रंथो मे विज्ञान नही है। ना ही इनमे बताया गया है कि यह ब्रह्माण्ड, सौर मंडल, पृथ्वी कैसे बनी है।
        ईश्वर के होने के अब तक कोई प्रमाण नही है।

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  4. ब्रह्माण्ड का केंद्र 3डी में न सही 4डी (x,y,z,टाइम में संभव हे क्योकि जिस बलून की सरफेस का केंद्र नहीं होता उस बलून का केंद्र जरूर होता हे जो 4थ डायमेंशन में हे ठीक उसी तरह ब्रहमांड का भी एक केंद्र तो हे वो केंद्र टाइम में बेक जाने पर (भूत कल में दिखाई देगा लेकिन चुकी भूत काल में जाना पोसिबल नहे हे इस लिए हम उस केंद्र को निरर्थक कह सकते हे क्योकि वर्त्तमान में उसका कोई वजूद ही नहीं हे

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      1. नहीं सर, यह परिभाषा समझने में आसान नहीं है। आप समझदार हैं। इसलिए आपने कम शब्दों में स्वयं ही इसे परिभाषा मानकर समझ लिया है। जिस तरह से परिभाषा के शुरुआत में केंद्र की शर्त होने दावा किया गया है। उसे न ही स्पष्ट किया गया है और न ही वह पूर्ण है।

        “उसके” अरे भाई किसके ? “विरोधी बिन्दुओं को” से क्या आशय है ?? किससे समान दूरी होना चाहिए ? और फिर इस परिभाषा में विरोधी शब्द का क्या अर्थ है ?

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      2. यदि आपको सच में लगता है कि आपके द्वारा बतलाई गई परिभाषा स्पष्ट, पूर्ण अथवा आसान है। तो फिर मेरे समझने की क्षमता यहीं तक थी। शुक्रिया..

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  5. अंतरिक्ष संबंधी भ्रांतियों को मिटाने का एक उत्कृष्ट प्रयास..
    सर, आपने तो इस लेख में बहुत सी असंगत परिस्थितियों को जन्म दे दिया है। जहाँ एक तरफ कहा जा रहा है कि यह ऐसा तो है। पर यह वही नहीं है। मजेदार तथ्यों के साथ नए-नए सिद्धांतों की जानकारियाँ..
    खूब भायो..

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