सौर मंडल की सीमा पर वायेजर 1? शायद हां शायद ना !


सौर मंडल की सीमा पर ऐसा कोई बोर्ड नहीं है कि जो कहे “आकाशगंगा के मध्य के अंतरिक्षीय क्षेत्र मे आपका स्वागत है”!

अब से 35 वर्ष पहले प्रक्षेपित और पृथ्वी से 115 अरब मील दूरी पर नासा का अंतरिक्ष यान वायेजर 1 सौर मंडल की सीमा को पार कर आकाशगंगाओं के मध्य के अंतरिक्ष मे प्रवेश करने जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों ये वैज्ञानिक उस पल का इंतज़ार कर रहे है जब कोई मानव निर्मित वस्तु सौर मंडल की सीमा को पार कर खुले अंतरिक्ष मे प्रवेश करेगी, ऐसा होना तय है। लेकिन अब तक ऐसा हो चुका है कि हमें लगा है कि वायेजर इस सीमा को पार कर चुका है लेकिन बाद मे ज्ञात हुआ है कि सौर मंडल की सीमा उस बिंदु से और आगे है।

 वायेजर- 1
वायेजर- 1

पिछले गुरूवार 27 जून 2013 को वैज्ञानिकों ने कहा कि वायेजर 1 अभी भी सौर मंडल की सीमा मे है लेकिन एक ऐसे क्षेत्र मे है जिसकी अपेक्षा नहीं थी और हमारी समझ से बाहर है। ये एक ऐसे विचित्र क्षेत्र मे है जो सौर मंडल की निश्चित रूप से अंतिम परत होना चाहिये। अर्थात हीलीयोस्फियर का आख़िरी छोर, जो । सौर मंडल को घेरे हुये सौर वायु से निर्मित एक विशालकाय बुलबुला है। वायेजर 1 जो वर्तमान मे 3800 मील प्रतिघंटा की गति से सौर मंडल से दूर जा रहा है, उसने पिछले कुछ समय मे अपने आसपास अंतरिक्ष मे कुछ परिवर्तन महसूस किये है।

चित्रकार की कल्पना मे वायेजर 1 की वर्तमान स्थिति
चित्रकार की कल्पना मे वायेजर 1 की वर्तमान स्थिति

वैज्ञानिकों की अपेक्षा थी कि जब भी वायेजर 1 हीलीयोसेथ की सीमा हीलीयोपाज तक पहुंचेगा , उसके दो संकेत होंगे। सौभाग्य से वायेजर 1 और उसके जुडंवा वायेजर 2 के उपकरण अभी भी कार्य कर रहे हैं, और उसके नाभिकीय ऊर्जा श्रोत 2020 तक कार्य करेंगे। पिछली गर्मियाँ मे इन दो संकेतों मे से एक संकेत मीला था, लेकिन दूसरा संकेत नहीं मीला, जिससे वैज्ञानिक अचरज मे पड़ गये थे। उम्मीद के अनुसार सौर वायु जो सूर्य से उत्सर्जित आवेशित कणों की धारा है, वायेजर 1 के आसपास मंद हो गयी थी और वायेजर उन्हे नहीं देख पा रहा था। दूसरे संकेत के रूप मे चुंबकिय क्षेत्र की दिशा मे परिवर्तन भी होना चाहिये था क्योंकि सूर्य का चुंबकिय बुलबुला समाप्त हो गया है। लेकिन यह दूसरा संकेत नहीं मीला, चुंबकिय क्षेत्र की दिशा मे परिवर्तन नहीं हुआ।

जुलाई 2012 मे 1600 पौंड वज़न के, 13 फुट लंबाई , चौड़ाई तथा ऊँचाई वाले वायेजर 1 ने सौर वायु मे कमी देखी थी लेकिन यह कमी 5 दिन ही रही। अगसत के मध्य मे ऐसा दोबारा हुआ। लेकिन 25 अगस्त 2012 को सौर वायु मे एक हज़ार गुणा कमी महसूस की गयी। उसके पश्चात यह कमी स्थायी है।इसके अतिरिक्त बाह्य अंतरिक्ष से आनेवाले ब्रह्मांडीय विकिरण मे 9.3% की वृद्धि पायी गयी। ऐसा लगा कि वायेजर 1 सौरमंडल के बाहर जा चुका है।

लेकिन चुंबकिय क्षेत्र की दिशा स्थिर रही, उसमें परिवर्तन नहीं देखा गया, अर्थात वायेजर 1 अभी भी सूर्य के चुंबकिय प्रभाव क्षेत्र मे है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह वह क्षेत्र है जहाँ सौर चुंबकिय क्षेत्र , ब्रह्मांडीय चुंबकिय क्षेत्र से मिलता है, और सौर वायु कणों को मुक्त कर देता है। सौर वा़यु कण चुंबकिय रेखाओं पर ही गति करते हैं। वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र को हेलीसोसेथ मे कमी वाला क्षेत्र माना है।

वायेजर 2 थोड़ा धीमा है और इस क्षेत्र तक नहीं पहुँचा है।

1977 मे जब इन दोनो वायेजर को छोड़ा गया था तब उनका उद्देश्य बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चयुन की यात्रा मात्र था। उस समय मानव के पास कुल 20 वर्ष अंतरिक्ष अनुभव था, कोई उम्मीद नहीं थी कि यह अभियान 35 वर्ष तक चलेगा, वह भी अपने मूल अभियान को पूरा करने के पश्चात। लेकिन इस अभियान के अभियंताओ को कोई आश्चर्य नहीं हुआ, उन्होंने इसे आवश्यकता से अधिक ही बनाया था।

वायेजर 1 शायद अभी सौर मंडल से बाहर नहीं गया हो लेकिन उसे इस सीमा से बाहर जाने मे अधिक देर नहीं है।

यह भी देखें :

  1. ब्रह्माण्ड की अनंत गहराईयो की ओर : वायेजर १
  2. मानव इतिहास का सबसे सफल अभियान :वायेजर २

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