सापेक्षतावाद सिद्धांत : विशेष सापेक्षतावाद


अब आप ब्रह्माण्ड के सभी बड़े खिलाड़ियों अर्थात अंतराल/अंतरिक्ष, समय, पदार्थ, गति, द्रव्यमान, गुरुत्वाकर्षण, ऊर्जा और प्रकाश से परिचित हो चुके है। विशेष सापेक्षतावाद के संदर्भ में यह स्पष्ट है कि इन ब्रह्माण्ड के यह सभी सरल से लगने वाले मुख्य गुण-धर्म कुछ विशिष्ट “सापेक्षिक” स्थितियों में बहुत अप्रत्याशित तरीके से व्यवहार करते हैं। विशेष सापेक्षतावाद को समझने की कुंजी इन ब्रह्माण्ड के इन गुणधर्मो पर सापेक्षतावाद के प्रभाव में छीपी हुयी है।

संदर्भ बिंदु (Frames of Reference)

relativity2आइंस्टाइन का विशेष सापेक्षतावाद का सिद्धांत “संदर्भ बिंदु” की धारणा पर आधारित है। संदर्भ बिंदु का अर्थ है एक ऐसी जगह जहां पर “व्यक्ति/निरीक्षक खड़ा” है। आप इस समय संभवतः अपने कंप्यूटर के सामने बैठे है। यह आपका वर्तमान संदर्भ बिंदु है। आपको महसूस हो रहा है कि आप स्थिर है, लेकिन आप जिस पृथ्वी पर है वह अपने अक्ष पर घूम रही है और सूर्य कि परिक्रमा कर रही है। संदर्भ बिंदु के संबंध मे सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि “हमारे ब्रह्मांड में अपने आप में संपूर्ण संदर्भ बिंदु के रूप में ऐसी कोई चीज नहीं है।” जब हम अपने आप में संपूर्ण संदर्भ बिंदु कहते है; तब हमारा तात्पर्य होता है पूरी तरह से स्थिर जगह और संपूर्ण ब्रह्माण्ड में ऐसी कोई जगह नहीं है। इस कथन का अर्थ है कि सभी वस्तुये गतिमान है अर्थात सभी गतियां सापेक्ष है। ध्यान दिजिये कि  आप एक जगह स्थिर है लेकिन  पृथ्वी गतिमान है इसलिए आप भी गतिमान हैं। आप अंतरिक्ष और समय मे हमेशा गतिमान रहते हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड मे कोई भी जगह/पिंड स्थिर नहीं है इसलिए गति के मापन/निरीक्षण के मानकीकरण के लिये कोई मूल संदर्भ बिंदु नहीं है। यदि राम श्याम कि दिशा मे दौडता है, इसे दो तरह से देखा जा सकता है। श्याम के परिप्रेक्ष्य में राम उसके समीप आ रहा है जबकि राम के परिप्रेक्ष्य श्याम उसके समीप आ रहा है। राम और श्याम दोनो को अपने संदर्भ बिंदु के परिप्रेक्ष्य मे निरीक्षण करने का अधिकार है। हर गति आपके संदर्भ बिंदु के सापेक्ष होती है। एक दूसरा उदाहरण, यदि आप एक गेंद को फेंकते है , तब गेंद को अधिकार है कि वह अपने संदर्भ बिंदु से अपने आप को स्थिर और आपको गतिमान समझे। गेंद मान सकती है कि आप उससे दूर जा रहे है जबकि आप देख रहे है कि गेंद आपसे दूर जा रही है। ध्यान मे रखिये कि आप पृथ्वी के धरातल के सापेक्ष गति नही कर रहे हैं लेकिन आप पृथ्वी के साथ गतिमान हैं।

विशेष सापेक्षतावाद का प्रथम नियम

विशेष सापेक्षतावाद का प्रथम नियम सरल है और इसे समझने मे कोई कठिनाई नहीं है।

भौतिकी के नियम सभी संदर्भ बिंदुओं के लिये सत्य होते है।

सापेक्षतावाद की अवधारणाओं मे यह सबसे सरल और आसान है। यह नियम हमें समझाता है कि क्यों और कैसे प्रकृति हमसे हमेशा एक जैसे ही व्यवहार करती है। यह हमें भौतिकी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने और उनके परिणामों को जानने मे मदद करता है। यदि आप एक ईंट और एक इंचीटेप को लेकर ईंट की लंबाई का मापन करे करें तो आपको हमेशा एक ही परिणाम मिलेगा चाहे आप यह मापन जमीन पर स्थिर होकर करें या बस पर सवार होकर करें। अब आप एक पेंडुलम के १० दोलन में लगने वाले समय को एक स्थिर जगह पर मापें, उसके बाद यही मापन आप बस पर सवार होकर करें आपको समान परिणाम मिलेंगे। ध्यान दें कि हम यह मान कर चल रहे हैं कि बस एक सपाट सड़क पर समान गति से चल रही है, उसकी गति मे कोई परिवर्तन(त्वरण) नहीं आ रहा है। अब हम एक जगह पर स्थिर रह कर इन प्रयोगों को दोहराते है, इस बार ईंट/पेंडुलम बस पर सवार है और हम जमीन पर स्थिर हैं। हमे पिछले परिणामों से भिन्न परिणाम मिलेंगे। इन दोनो प्रयोगों के परिणामों मे अंतर इसलिए है क्योंकि भौतिकी के नियम सभी संदर्भ बिंदुओं के लिये समान है। जब हम विशेष सापेक्षतावाद के दूसरे नियम की चर्चा करेंगे यह और स्पष्ट हो जायेगा। यह महत्वपूर्ण है कि भौतिकी के नियम स्थिर है इसका अर्थ यह नही है कि हमे भिन्न संदर्भ बिंदुओं पर एक ही प्रायोगिक परिणाम मिलेगा। परिणाम हमारे प्रयोग के प्रकार पर निर्भर है। यदि हम दो कारो को टकरायें तब इस टकराव की कुल ऊर्जा का संरक्षण होगा, हम कार मे हों या कार से बाहर फुटपाथ पर इसका टकराव के कुल ऊर्जा की मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। ऊर्जा के संरक्षण का नियम भौतिकी का नियम है और यह सभी संदर्भ बिंदुओ के लिये समान रहेगा।

विशेष सापेक्षतावाद का द्वितीय नियम

विशेष सापेक्षतावाद का दूसरा नियम काफी विचित्र और अनपेक्षित है। यह सामान्य बुद्धि और तर्क के विपरीत है! यह नियम है –

सभी संदर्भ बिंदुओं के लिये प्रकाश गति स्थिरांक है।

वास्तविकता में यह सापेक्षतावाद का पहला नियम ही है , केवल शब्दों का हेर-फेर है। यदि भौतिकी के नियम सभी संदर्भ बिंदुओं के लिये समान है, तब प्रकाश गति सभी संदर्भ बिंदुओं के लिये समान ही होना चाहीये।

इसमें विचित्र क्या है ?
relativity3 एक उदाहरण लेते है। श्याम एक स्थान पर खडा है और राम श्याम से दूर 6 किमी/घंटा की रफ्तार से दौड़ रहा है। श्याम के संदर्भ मे राम की गति 6 किमी/घंटा होगी। जबकि राम के संदर्भ मे उसकी स्वयं की गति शून्य होगी। स्वयं के संदर्भ मे स्वयं की गति हमेशा शून्य होती है। अब राम दौड़ते हुये एक गेंद 10 किमी प्रति/घंटा की गति से फेंकता है। राम ने गेंद फेंकी है, इसलिए उसके संदर्भ में गेंद की गति 10 किमी/घंटा होगी। लेकिन श्याम एक जगह स्थिर है, इसलिए उसके संदर्भ मे गेंद की गति मे राम की गति भी जुड जायेगी।

श्याम के अनुसार गेंद की गति = 10 किमी/घंटा + 6 किमी/घंटा = 16 किमी/घंटा

है ना सामान्य तर्क बुद्धी वाली बात!

relativity4लेकिन प्रकाश की गति मे यह सामान्य तर्क बुद्धी लागू नहीं होती है। इसी उदाहरण में अब हम राम के हाथ में जलती हुयी टार्च दे देते है। वह गेंद की बजाय प्रकाश फेंक रहा है। राम के संदर्भ में प्रकाश की गति C अर्थात 299,792,458 मीटर/सेकंड होगी। लेकिन श्याम के संदर्भ मे प्रकाश की गति क्या होगी ?

सामान्य तर्क के अनुसार श्याम के संदर्भ में प्रकाश गति = C + 6 किमी/घंटा होना चाहीये! (C=299,792,458 मीटर/सेकंड)
लेकिन विशेष सापेक्षतावाद के दूसरे नियम के अनुसार श्याम के संदर्भ में भी प्रकाश गति C अर्थात 299,792,458 मीटर/सेकंड ही होगी, उसमें राम की गति नहीं जुडेगी।

अब इस पर थोडा दिमाग पर जोर डालीये। विशेष सापेक्षतावाद के दूसरे नियम के बारे में और चर्चा अगले लेख में….

14 विचार “सापेक्षतावाद सिद्धांत : विशेष सापेक्षतावाद&rdquo पर;

    1. Bhai sahab bohat bhadiya agar app parkash ji gati se age ja rhe ho or app be apne face ke samne aaeena matlab mirror pakda ho to app apni chhavi aaeene me ya mirror ne dekh paoge ya nhi hehehehe batao kyu ki jaise hi parkash apke face se mirror ki taraf nikla app bhi uski taraf chal diye hehehe but app dikae doge pakka kyu ki us speed pe time slow ho jagega

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  1. savinay ji, me kosish krta hu shyad kuch bat ban jaye,
    jab aap ese vahan me honge jo prakash ki speed se chalta ho to us vahan ki headlight jalane pe kuch nhi dikega. kyonki jese-jese light niklegi ap ka vahan bhi age nikal jaye ga. ha yadi is vahan me bethe ap boll fenkoge to wo aage jayegi or kisi isthir vastu ke liye us boll ki gati prakash ki gati se jyada hogi.

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  2. Sir ji, Namaskaar,
    apka yah lekh pada, bahot achcha laga, lekin source ki speed ka prakash ki speed par koi prabhav kyon nahin padega ye baat samajh me nahin aayee, halanki “Anmol Sahu” ji ne achcha udaharan diya hai lekin mujhe lagata hai ki wo sawal ko theek tarah se samajh nahin paye hain.
    Mera ye kahana hai kijis tarah se ham kisi train me baith kar kisi pathar ko bina phenke kewal gira bhee dete hain to bhee us pathar me train ki speed ke barabar ki gati hoti hai, kyon ki pathar us train par rah kar bhe train ke saath usi gati se safar kar raha hota hai, yahi baat “photon” ya “Prakash” ke saath kyon nahin ho sakati.
    Agar ye kaha jaay ki “photon” ki speed itani jyada hoti hai ki, aur wo utpann hote hi apani speed se aage barh jata hai, jis karan use train ya kisi gatisheel vastu ka jhataka lag hi nahin pata is liye usaki speed nahin barh sakati, to saidhdhantik roop se sabase pahali baat to ye kahi ja sakati hai ki “yadi ham kisi eise vahan se yatra kareyen jisaki speed prakash ki speed se jyada ya kam se kam usake barabar ho aur us vahan ki headlight jalaayen to us headlight se nikalane wale prakash ki speed, “Prakash ki real speed” se jyada ya doguni ho sakati hai”
    yadi aisa hota hai to apka “Prakash ke speed ka sidhdhant” to galat sabit ho jayega, aur agar aisa nahin hota hai to please, mujhe ye jaroor hi batayen ki aisa kyon nahin hoga.

    waiting to hear from you
    Savinay Pandey
    9696125252

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  3. photon nikal jane ke bad us par ram ki gati ka koi prbhaw nahi padega jis tarha tenis game me practis karte samay jab machine se ball bahar ati hai agar machine ko age ki or dhakela jae to isse ball ki speed nahi badhne wali but machine humare samip aa jaegi thik isi tarha prakakash strot ko age badhane se photon ki speed nahi badhne wali

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  4. बढ़िया। अब क्यों? का उत्तर अगली बार दीजियेगा।
    टॉर्च से निकल चुके फोटोन को उसके पीछे से आने वाले फोटोन धक्का नहीं मार सकते। क्योंकि सभी फोटान का वेग समान है। जिससे राम चाहे कितनी भी तेज क्यों न दौड़े उसके फोटोन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
    इसे इस प्रकार समझ सकते हैं, यदि हम किसी धागे के एक छोर को पकड़ कर कूलर की सामने ले जाएँ तो पूरा धागा सीधा होकर उड़ने लग जायेगा। अब यदि हम अपने धागे को थोड़ा सा धक्का उसके उड़ने की ही दिशा में दें तो उससे धागे के आगे की ओर की फर्क नहीं पड़ेगा। धक्का देने से धागा मुड़ेगा। उसका वेग नहीं बढ़ेगा।

    वैसे ये धागे वाला उदाहरण प्रकाश को ठीक से नहीं समझा पा रहा है, फिर भी आप मेरी बात समझ गए होंगे।

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