सापेक्षतावाद सिद्धांत : प्रकाश के गुणधर्म


प्रकाश (सूर्य)

प्रकाश ऊर्जा का ही एक रूप है। प्रकाश का व्यवहार थोड़ा विचित्र है। न्युटन के कारपसकुलर अवधारणा(corpuscular hypothesis) के अनुसार प्रकाश छोटे छोटे कणों (जिन्हें न्युटन ने कारपसकल नाम दिया था।) से बना होता है। न्युटन का यह मानना प्रकाश के परावर्तन(reflection) के कारण था क्योंकि प्रकाश एक सरल रेखा मे परावर्तित होता है और यह प्रकाश के छोटे कणों से बने होने पर ही संभव है। केवल कण ही एक सरल रेखा मे गति कर सकते है।

थामस यंग का प्रकाश अपवर्तन दिखाता डबल-स्लिट प्रयोग जिसने प्रकाश के तरंग होने की पुष्टि की थी।

लेकिन उसी समय क्रिस्चियन हायजेन्स( Christian Huygens) और थामस यंग( Thomas Young) के अनुसार प्रकाश तरंगो से बना होता था। हायजेन्स और यंग का सिद्धांत प्रकाश के अपवर्तन(refraction) पर आधारित था, क्योंकि माध्यम मे परिवर्तन होने पर प्रकाश की गति मे परिवर्तन आता था, यह प्रकाश के तरंग व्यवहार से ही संभव था। न्युटन के कारपसकुलर अवधारणा के ताबूत मे अंतिम कील मैक्सवेल(James Clerk Maxwell) ने ठोंक दी थी, उनके चार सरल समीकरणों ने सिद्ध कर दिया कि प्रकाश विद्युत-चुंबकिय क्षेत्र की स्वयं प्रवाहित तरंग( self-propagating waves) मात्र है। इन समीकरणों से प्रकाश की गति की सटीक गणना भी हो गयी थी। लेकिन २० वी शताब्दि मे फोटो-इलेक्ट्रिक प्रभाव(Photoelectric effect) की खोज ने प्रकाश के कणो के बने होने के सिद्धांत मे एक नयी जान डाल दी।

इन दोनो मे क्या सही है? क्या प्रकाश कण है ? या एक तरंग ?

आज हम जानते हैं कि ये दोनों सिद्धांत सही है, प्रकाश दोहरा व्यवहार रखता है, वह एक ही समय में कण और तरंग दोनों गुण-धर्म रखता है। प्रकाश के कण व्यवहार मे उसे फोटान कहा जाता है और उसके तरंग व्यवहार मे उसे विद्युत-चुंबकिय विकिरण(electro-magnetic radiation) कहा जाता है।

फोटान

फोटान किसी परमाणु द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा है जिसे हम प्रकाश के रूप मे देखते हैं। किसी परमाणु मे इलेक्ट्रान,  प्रोटान और न्युट्रान से बने नाभिक की कक्षा मे परिक्रमा करते हैं। इन इलेकट्रानो की नाभिक के आसपास एकाधिक ऊर्जा अवस्थाओं की कक्षायें होती है। किसी विशिष्ट ऊर्जा अवस्था वाली कक्षा मे इलेक्ट्रान के पास तुल्य विशिष्ट ऊर्जा होती है। जब भी कोई परमाणु कुछ ऊर्जा प्राप्त करता है तब उसके इलेक्ट्रान जो नाभिक के पास कम ऊर्जा अवस्था वाली कक्षा मे होते है ;कूद कर नाभिक से दूर अधिक ऊर्जा वाली कक्षा मे चले जाते है। इस अवस्था मे परमाणु को उत्तेजित अवस्था (excited state) मे माना जाता है और यह एक अस्थायी अवस्था होती है, प्राकृतिक रूप से परमाणु अपनी कम ऊर्जा वाली अवस्था मे आने का प्रयास करता है। इलेक्ट्रान अपनी ऊर्जा को एक पैकेट के रूप मे उत्सर्जित कर अपनी कम ऊर्जा वाली कक्षा मे चला जाता है, इसी ऊर्जा के पैकेट को फोटान कहा जाता है। यह उत्सर्जित ऊर्जा इलेक्ट्रान की उन कक्षाओं की ऊर्जाओं के अंतर के तुल्य ही होती है। इसी उत्सर्जित ऊर्जा या फोटान को हम प्रकाश के रूप मे महसूस करते है।

विकिरण(तरंग) रूप मे प्रकाश

किसी दोलन करते आवेश(oscillating charge) द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को प्रकाशीय विकिरण कहा जाता है। यह आवेश दोलन करते हुये एक विद्युत क्षेत्र तथा एक चुंबकिय क्षेत्र द्वारा उत्पन्न होता है इसलिए प्रकाश को विद्युत-चुंबकिय विकिरण कहा जाता है। ध्यान दें कि यह दोनों क्षेत्र एक दूसरे के लंबवत दोलन कर रहे होते हैं और प्रकाश विद्युत-चुंबकिय विकिरण के कई प्रकारो मे से केवल एक प्रकार मात्र है। इन सभी प्रकारों को विद्युत-चुंबकिय वर्णक्रम( electromagnetic spectrum ) पर विद्युत-चुंबकिय क्षेत्र के दोलन करने की आवृत्ति (frequency) के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। हमारे द्वारा दृश्य प्रकाश की आवृत्ति विद्युत-चुंबकिय वर्णक्रम का एक नन्हा सा भाग है जिसके एक ओर बैंगनी(अधिकतम आवृत्ति) और दूसरी ओर लाल रंग(न्यूनतम आवृत्ति) का प्रकाश है। बैंगनी प्रकाश की आवृत्ति अधिक होती है अर्थात उसकी ऊर्जा अधिक होती है। यदि आप विद्युत-चुंबकिय वर्णक्रम को देंखे तो पायेंगे कि गामा किरणे सबसे ज्यादा ऊर्जा वाली किरणे है। कोई आश्चर्य नही कि गामा किरणे अधिकतर पदार्थो को भेद देती है। ये किरणे इतनी ज्यादा ऊर्जा रखती है कि वे आपको जैविक रूप से प्रभाव डाल सकती है, आपके डीएनए को प्रभावित कर कैंसर उत्पन्न करने की क्षमता रखती है गामा किरणे! इस विद्युत-चुंबकिय विकिरण मे ऊर्जा की मात्रा विकिरण की आवृत्ति पर निर्भर है। दृश्य विद्युत-चुंबकिय विकिरण जिसे हम प्रकाश कहते है उसे भी हम भिन्न आवृत्तियों के आधार पर अलग अलग कर सकते है; जिसमे हर आवृत्ति से संबंधित एक प्रकाश रंग होता है।

प्रकाश के गुणधर्म

prismजब प्रकाश अंतरिक्ष मे यात्रा करता है तब वह कई प्रकार के माध्यमो से गुजरता है। हम प्रकाश के परावर्तन(reflection) को से भलीभांति परिचित है क्योंकि हमने किसी चमकीली सरल सतह जैसे दर्पण द्वारा प्रकाश के परावर्तन को देखा है। यह प्रकाश का किसी विशिष्ट पदार्थ से किया गया विशेष व्यवहार है। जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम मे प्रवेश करता है उसकी किरणे मुड् जाती है, उसे हम अपवर्तन(refraction) कहते है। यदि कोई प्रकाश के मार्ग मे स्थित कोई माध्यम प्रकाश की भिन्न आवृत्तियों को भिन्न भिन्न तरीके से मोड़ दे तो हम प्रकाश के घटक रंगो को देख सकते है। उदाहरण के लिये वातावरण मे उपस्थित पानी की बूंदे सूर्य प्रकाश से इंद्र धनुष का निर्माण करती है। पानी की यह बूंदे सूर्यप्रकाश की भिन्न भिन्न आवृत्तियों को भिन्न भिन्न तरीके मोड़ देती है जिससे हर रंग का प्रकाश अलग हो जाता है और हमें प्रकाश के वर्ण-क्रम से सुंदर रंग दिखायी पड़ते है। कांच का प्रिज्म भी यही कार्य करता है। प्रिज्म पर जब एक विशिष्ट कोण पर प्रकाश डाला जाता है, प्रकाश अपवर्तित(मुडता) होता है, हर आवृत्ति अलग अलग कोण से मुडती है जिससे हमे अलग अलग रंग दिखायी पड़ते है। यह प्रभाव प्रिज्म के आकार और प्रकाश के कोण से उत्पन्न होता है।
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यदि आप दायें चित्र को ध्यान से देखें तो पायेंगे कि प्रकाश कि जब प्रकाश तरंग प्रिज्म मे प्रवेश कर रही है तब वह नीचे की ओर मुड़ रही है। जब प्रकाश वायु से प्रिज्म मे प्रवेश करता है तब उसकी गति कम हो जाती है। जब प्रकाशतरंग का निचला भाग प्रिज्म मे प्रवेश करता है वह धीमा हो जाता है। जबकि प्रकाश तरंग का उपरी भाग जो अभी भी वायु मे है निचले भाग से अधिक गति मे यात्रा कर रहा है, प्रकाश तरंग के उपरी और निचले भाग की गति मे इस अंतर के कारण प्रकाश तरंग मुड़ जाती है। इसी तरह से जब प्रकाश तरंग प्रिज्म से बाहर जाती है, तरंग का उपरी भाग पहले बाहर आता है और उसकी गति निचले भाग से ज्यादा होती है जोकि अभी भी प्रिज्म के अंदर है। गति मे इस अंतर से तरंग मे और अधिक मोड् आ जाता है। किसी स्केटबोर्ड पर कोई खिलाड़ी जब किसी सपाट सतह से घास की सतह पर जाता है तब खिलाड़ी सामने झुक जाता है क्योंकि स्केट की गति कम हो गयी है लेकिन उसका शरीर भी भी पुरानी गति पर है। इसी तरह का व्यवहार प्रकाश भी कर रहा है जब वह एक माध्यम से दूसरे माध्यम मे जाता है तब वह मुड जाता है। स्केटबोर्ड और खिलाडी घास की सतह आने से पहले एक ही गति पर है अचानक स्केटबोर्ड घास की सतह पर आ गया है और स्केटबोर्ड खिलाडी कि तुलना मे धीमा हो गया है, जिससे खिलाडी सामने झुक जाता है। (वास्तविकता मे खिलाडी घास की सतह पर आने से पहले कि गति से चलने का प्रयास कर रहा है, न्युटन का गति का पहला नियम!)

हम प्रकाश की संरचना के बारे मे कुछ जानते है , अब हम प्रकाश गति समझने का प्रयास करते है। प्रकाश विद्युत-चुंबकिय विकिरण है, इसलिये प्रकाश गति को विद्युत-चुंबकिय विकिरण की गति के रूप मे समझना ज्यादा आसान है। वास्तविकता मे प्रकाशगति “सूचना की गति” है। कोई घटना घटित हुयी है या नही इसका पता हमे उस घटना की सूचना मिलने पर ही होता है। यह सूचना हमे उस घटना से उत्पन्न रेडीयो संकेत /प्रकाश द्वारा प्राप्त विद्युत-चुंबकिय विकिरण मे निहित होती है। कोई भी घटना काल-अंतराल मे उत्पन्न एक संयोग है और किसी भी घटना की सूचना किसी विकिरण के रूप मे ही उत्सर्जित होती है। निर्वात(Vaccume) मे इस सूचना का प्रवाह 299,792,458 मीटर/सेकंड की गति से होता है। एक लंबी  रेल-गाड़ी जब चलना प्रारंभ करती है तब अंतिम डिब्बा इंजन से साथ उसी समय एक साथ चलना प्रारंभ नही करता है। सबसे पहले इंजन चलता है, उसके बाद इंजन से सटा डिब्बा, उसके बाद दूसरा डिब्बा, क्रमशः अंत मे आखिरी डिब्बा। इंजन से आखिरी डिब्बे तक गति के प्रवाह मे विलंब होता है, इंजन से चलने की सूचना आखिरी डिब्बे तक कुछ् विलंब से पहुँच रही है। यह विलंब विशेष सापेक्षतावाद सूचना के स्थानांतरण के जैसे ही है, लेकिन विशेष सापेक्षतावाद मे सूचना की गति कि एक अधिकतम सीमा है; प्रकाशगति! कोई भी सूचना इस गति से ज्यादा तेज नहीं जा सकती है। आप रेल के इस उदाहरण को कितना भी विस्तृत कर लें लेकिन किसी भी तरह से इंजन के चलने की सूचना आप आखिरी डिब्बे तक प्रकाशगति से तेज नही पहुँचा सकते है!

प्रकाशगति पर हम इतना जोर क्यों दे रहे हैं ? क्योंकि यह एक विशेष गति है जो हम आने वाले लेखों मे विस्तार से देखेंगे!

अगले अंक मे विशेष सापेक्षतावाद!

11 विचार “सापेक्षतावाद सिद्धांत : प्रकाश के गुणधर्म&rdquo पर;

  1. किसी वस्तु का वेग प्रकाश वेग के बराबर होने पर द्रव्यमान शून्य हो जाता है अतः कह सकते है
    वेग द्रव्यमान के व्युत्र्कमानुपाती होता है
    इस आधार पर ऋणात्मक द्रव्यमान संभव है

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