वहीं, एटलस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे ब्रिटिश भौतिकशास्त्री ब्रॉयन कॉक्सके मुताबिक सीएमएस ने भी एक नया बोसोन खोजा है जो कि मानक हिग्स बोसोन की तरह ही है। हालांकि कॉक्स ने यह भी कहा कि अधिक जानकारी के लिए हिग्स सिग्नल को प्रत्येक इवेंट में 30- प्रोटान-प्रोटान टकराव कराना पड़ेगा जो कि काफी मुश्किल होगा क्योंकि यह एटलस प्रोजेक्ट की डिजाइन क्षमता के बाहर की बात है।सर्न की खोज पर प्रतिक्रिया देते हुए वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने कहा,
‘सर्न के वैज्ञानिक आज के नतीजों के लिए बधाई के पात्र हैं, यह यहां तक पहुंचने के लिए लार्ज हेड्रान कोलाइडर और अन्य प्रयोगों के प्रयासों का ही नतीजा है। मैं नतीजों की रफ्तार देखकर हैरान हूं। खोज की रफ्तार शोधकर्ताओं की विशेषज्ञता और मौजूदा तकनीक की क्षमताओं का प्रमाण है। मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि मेरे जीवनकाल में ही ऐसा होगा।’
इससे पहले, फ्रांस और स्विटजरलैंड की सीमा पर जिनीवा में बनी सबसे बड़ी प्रयोगशाला में दुनिया भर के बड़े वैज्ञानिकों को निमंत्रित किया गया था।हिग्स बोसोन वे कण हैं, जिसकी ब्रह्मांड के बनने में अहम भूमिका मानी जाती है। भौतिकी के स्टेंडर्ड माडल के नियमों के मुताबिक धरती पर हर चीज को द्रव्यमान देने वाले यही कण हैं। लोगों को 1960 के दशक में इनके बारे में पहली बार पता चला। तब से ये भौतिकी की अबूझ पहेली बने हुए हैं।
यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) के जिनीवा के पास स्थित भौतिकी रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिको ने बताया कि हिग्ग्स बोसोन का पता तब चला, जब एटलस और सीएमएस प्रयोगों से जुड़े वैज्ञानिको ने लार्ज हैड्रोन कॉलाइडर में तेज गति (प्रकाश गति के समीप) से मूलभूत कणों को आपस में टकराए।
इस दौरान बोसोन के चमकते हुए अंश सामने आए, लेकिन उन्हें पकड़ना आसान नहीं था। सीएमएस से जुड़े एक वैज्ञानिक ने बताया, ये दोनों ही प्रयोग एक ही द्रव्यमान स्तर पर हिग्स बोसान की उपस्थिति का संकेत दे रहे हैं।
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यदी भोतिक गणीत ते समीकरणोंमें ये कण का असि्तव याबिच होताहै तो फीर वास्तविकतामें भी ईस कण higs bosson का असतित्व जरूर रहा होगा़
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आशीष भाई मैं जयेंद्र हूँ। उत्तराखंड का रहने वाला। हूँ विज्ञानं या कहूँ विज्ञानं फंतासी में अत्यतिक रूचि हे। आपको मेरा प्रणाम आपके लेख पड़ता हूँ
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आशीष ने यह माना कि……”यह कुछ ऐसे है कि हम वायु को देख नही सकते है लेकिन उसके प्रभाव को महसूस करते है। इस प्रभाव से हम वायु के अस्तित्व को प्रमाणित करते है।”…
———अरे भैया जो पवन देव के साथ है यही तो ईश्वर के साथ है कि देख नही सकते है लेकिन उसके प्रभाव को महसूस करते है… जिन खोजा टिन पाइए गहरे पानी पैठ……सोई जानहि जेहि देऊ जनाई …. सोच रे प्राणी…..
—– गोदियाल जी को जो हवा में तैरते नज़र आये वे हिग्स बोसॉन के प्री-पार्टिकल हैं अर्थात असली god-पार्टिकल ..मुंह से हे भगवान भी निकला होगा…..ये न्यूरोन में स्थित विद्युत ऊर्जा के मूल कणों की आपसी रगड़ से उत्पन्न स्वतंत्र कणों की ऊर्जा है जो आँखों की राह से आती है और प्रायः बंद आँखों से ही दिखती है..क्योंकि इन्हें आँख नहीं अपितु आत्म–तत्व देखता व अनुभव करता है…. सिर्फ आँखों में ही वह रास्ता है जहां से मष्तिष्क को देखा जा सकता है ….
—– एक की दो छवि दिखाई देना भ्रम नहीं है अपितु वास्तविकता है क्यंकि मष्तिस्क में दो अलग अलग चित्र बनने लगते हैं….
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nice
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मैं कहीं हिग्स बोसॉन की औद्योगिक/वाणिज्यिक सम्भावनाओं पर अटकल भी पढ़ रहा था। वह भी रोचक लग रही थी…
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good
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रविवारीय महाबुलेटिन में 101 पोस्ट लिंक्स को सहेज़ कर यात्रा पर निकल चुकी है , एक ये पोस्ट आपकी भी है , मकसद सिर्फ़ इतना है कि पाठकों तक आपकी पोस्टों का सूत्र पहुंचाया जाए ,आप देख सकते हैं कि हमारा प्रयास कैसा रहा , और हां अन्य मित्रों की पोस्टों का लिंक्स भी प्रतीक्षा में है आपकी , टिप्पणी को क्लिक करके आप बुलेटिन पर पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और शुभकामनाएं
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बेहतर आलेख…
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आशीष जी, आपके दोनों लेख पढ़े, विज्ञान पर आपकी अच्छी पकड़ है ! वैसे हसियेगा नहीं , ऐसे ही हिग्ग्स के बारे में नेट पर पढ़ते हुए कल मेरे दिमाग में एक ख्याल यह भी आया था कि इन वैज्ञानिकों को कोलाईदर के जरिये ऊर्जा संचारित कर विखंडन प्रक्रिया के दौरान वे हिग्ग्स बोसोन कण नजर आये जो चमकीले. बहुत सूक्ष्म और अप्ल जीवी थे! मगर आपने भी शायद कभी यह अनुभव किया हो कि कभी जब सिर को झटका लगता है या फिर चक्कर आता है तो भरी दोपहर में भी आँखों के सामने अन्धेरा छाता है और उसमे चमकीले, हवा में तैरते कण नजर आते है(जिसे कहते है दिन में तारे नजर आना ) ! वह भी तो हिग्ग्स बोसोन ही है ! या नहीं ?
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गोदियाल जी,
ये कण इतने छोटे होते है कि हम उन्हें यंत्रो की मदद के बिना देख नहीं सकते, हमारी आँखे या तंत्रिका तंत्र उन्हें देखने में सक्षम नहीं है. यहाँ तक की उनकी आयु इतनी कम होती है कि हमारा तंत्रिका तंत्र कभी भी उन्हें महसूस नहीं कर पायेगा. हमारी शारीरिक क्षमता के बाहर है ये कण, उनकी जांच के लिए हमें पार्टिकल एस्कलेटर चाहिये ही .
सर को झटका देने पर जो तारे आप देखते है वह हमारे मस्तिष्क के न्यूरान के विद्युत संकेत द्वारा उत्पन्न भ्रम है. हमारे मस्तिष्क/आँखों के द्रव की हलचल भी इस तरह का भ्रम उत्पन्न कर सकती है. आप यदि ध्यान दे, तो कभी कभी आपको एक वस्तु की दो छवि भी दिखाई देती है, वह भी न्यूरान द्वारा दोनों आँखों के विद्युत् संकेतो को ढंग से मिला कर एक छवि उत्पन्न नहीं कर पाने से होता है.
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APKA TAHDIL SE DHANYAWAD APKA SAHYOD PRAPT HUA
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One more thing I would like to say here that Higgs Boson, as per the “Standard Model” has not been discovered. What they have “observed” something similar to Higgs-Boson which is in excess of the particle predicted by the “Standard Model”.
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गोदियाल जी,
कण भौतिकी के अधिकतर प्रयोगो मे निष्कर्ष दो प्रकार से निकाले जाते है : 1. सीधे निरीक्षण से 2. अप्रत्यक्ष निरीक्षण से.
हिग्स बोसान दूसरी श्रेणी मे आता है।
यह कुछ ऐसे है कि हम वायु को देख नही सकते है लेकिन उसके प्रभाव को महसूस करते है। इस प्रभाव से हम वायु के अस्तित्व को प्रमाणित करते है।
हिग्स बोसान (और कुछ और भी महत्वपूर्ण) कणो की आयु इतनी कम होती है कि उन्हे देखा नही जा सकता है लेकिन उनके नष्ट होने के बाद बने कणो और अन्य प्रमाणो से उनकी उपस्थिति जानी जाती है। इसे अप्रत्यक्ष निरीक्षण तकनीक कहा जाता है।
हिग्स बोसान के गुणधर्म सैद्धांतिक रूप से स्टैंडर्ड माडेल के जैसे या भिन्न हो सकते है। इस भिन्नता से ज्यादा अंतर नही आयेगा, सिद्धांतो मे(या गणितीय सूत्रों मे) कुछ छोटे मोटे परिवर्तन मात्र होंगे, महत्वपूर्ण है कि यह कण मौजूद है। यह कण यदि मौजूद नही होता तो समस्त भौतिकी को दोबारा लिखना होता।
इस अप्रत्यक्ष निरीक्षण तकनीक पर मैने कुछ लेख लिखे है :
https://vigyan.wordpress.com/2012/05/21/qpdt/
https://vigyan.wordpress.com/qp/
आप इन्हे देख सकते है। और अपने प्रश्न भी पूछ सकते है।
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आशीष श्रीवास्तवजी ! सर्वप्रथम आपका आभार व्यक्त करना चाहूँगा कि आपने अपना समय निकाल मेरे उदगार पर अपनी महत्वपूर्ण टिपण्णी दी ! और यकीन मानिए मुझे आपकी टिपण्णी से किसी भी तरह से बुरा नहीं लगा, अपितु यह कहूंगा कि आपने एक जो वैज्ञानिक पक्ष है उसे खूबसूरती से रखा ! मैं इस पर ख़ास लम्बी बात भी नाहे कहूंगा क्योंकि मैं भी बहुत ज्यादा आस्तिक नहीं हूँ , लेकिन मुझे कहीं लगता है ( और जिसका मुझे डर था और इसी लिए उस आलेख के अंत में नोट भी लिखा था ) कि आप मैं जो कहना चाहता था उसे ठीक से पकड़ नहीं पाए ! प्रयोग आविष्कार का मूल होता है ! यदि प्रयोग ही नहीं होंगे तो आविष्कार कहाँ से होंगे ? और न जाने आगे चलकर यह जो अरबों खरबों रूपये का प्रयोग है मानव के किस हित के काम आ जाए कोई नहीं जानता ! मेरी खीज तो सिर्फ मीडिया से थी भाई साहब कि यदि हमें १३ साल के प्रयोग के बाद यही सुनना था कि कोई हिग्स बोसों जैसा कण है जो मास एकत्रित करने में सक्षम है ! यानि कि भगवान् के जैसा पावरफुल है तो यह बात जो ये इतने प्रयोग करके अरों खर्च करके कह रहे है हमारे ऋषि-मुनियों ने सिर्फ आत्मानुभूति से ही जान लिया था और जिसके गवाह और प्रमाण हमारे पुराण और गीता है !बस,
मैंने यह नोट भी लिखा था ;
”
नोट: उपरोक्त आलेख सिर्फ इस बिंदु को ध्यान में रखकर लिखा गया है कि जैसा कि हमारे कुछ प्रचार माध्यम प्रचारित कर रहे है, कि भगवान् की खोज हो गई है, तो यदि भगवान् है तो यह बात ऋषि-मुनियों ने हमारे धर्म- ग्रंथों में बहुत पहले ही कह दी थी, इसमें नया क्या है ? बहुत सीमित विज्ञान की जानकारी रखता हूँ, अत : जाने अनजाने कुछ गलत परिभाषित किया हो तो उसके लिए अग्रिम क्षमा ! “
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बढ़िया जानकारी दिए हो दोस्त.
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कहीं यह कोई छलिया तो नहीं है ?
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नही जी, आंकड़े 99.9999% सटीक संभावना के साथ है, अर्थात 5 सिग्मा ! इसका अर्थ है कि इस बार त्रुटियों की संभावना नगण्य है। वैसे अगले 1-2 वर्ष मे इसे 6 सिग्मा तक सटीक होने की संभावना है।
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वाह ..
सफल प्रयास
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…और अंत में हिग्स बोसान की खोज पूर्ण हुई !
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