समय के बारे मे जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण तथ्य


क्या आप जानते है कि समय यह अंग्रेजी भाषा मे सबसे ज्यादा प्रयुक्त संज्ञा है? “समय के बारे मे जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण तथ्य“, यह शीर्षक कुछ “दार्शनिक” अंदाज लिये हुये है, लेकिन आप तो विज्ञान से संबधित चिठ्ठे पर है!समय शायद एक ऐसा विषय है जो हर क्षेत्र मे उपस्थित है, धर्म, दर्शन शास्त्र या विज्ञान। पिछले कुछ समय से मै भौतिकी से संबधित लेखो को पढ़ रहा हूं, उनपर लेख लिख रहा हूं, कुछ शब्द जो बार बार आते है, वे है “समय“, “अंतराल/अंतरिक्ष” और “ब्रह्माण्ड”। यह लेख समय पर कुछ टिप्पणियों का संग्रहण है।

1.समय का आस्तित्व है। यह एक बहुत साधारण सा लगने वाला लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्या समय का अस्तित्व है? हां समय का अस्तित्व है, आखिर हम लोग अपनी अलार्म घड़ीयोँ मे से समय निर्धारित करते ही है! समय ब्रह्माण्ड को “क्षणो की एक व्यवस्थित श्रृंखला” मे रखता है। ब्रह्माण्ड हर क्षण भिन्न अवस्था मे रहता है, ब्रह्माण्ड की किसी भी क्षण की अवस्था, किसी अन्य क्षण की अवस्था के समान नही होती है। यदि समय इन अवस्थाओं को एक व्यवस्थित श्रृंखला मे न रखे तो अनुमान लगाना कठिन है कि कैसी अव्यवस्था होगी। वास्तविक प्रश्न है कि क्या समय मूलभूत है अथवा उत्पत्ती है? एक समय हम मानते थे कि तापमान प्रकृति का बुनियादी गुणधर्म है, लेकिन अब हम जानते है कि वह परमाणु के आपसी टकराव से उत्पन्न होता है। लेकिन क्या समय की उत्पत्ती होती है, या वह ब्रह्माण्ड का बुनियादी गुणधर्म है ? इसका उत्तर कोई नही जानता है। लेकिन मै अपनी शर्त इसके बुनियादी गुणधर्म होने पर लगाउंगा लेकिन इसे सिद्ध करने हमे “क्वांटम गुरुत्व” को समझना जरूरी है।

2.भूतकाल और भविष्यकाल भी समान रूप से वास्तविक होते है। इस तथ्य को सभी स्वीकार नही करते है, लेकिन यह तथ्य है। सहज ज्ञान से हम मानते है कि केवल वर्तमान वास्तविक है, भूतकाल स्थायी है और इतिहास मे दर्ज है, जबकि भविष्य अभी तक आया नही है। लेकिन भौतिकी के अनुसार भूतकाल और भविष्य की हर घटना वर्तमान मे अंतर्निहित है। इसे रोजाना के कार्यो मे देखना कठिन है क्योंकि हम किसी भी क्षण मे ब्रह्माण्ड की अवस्था नही जानते है, ना ही कभी जान पायेंगे। लेकिन समीकरण कभी गलत नही होते है। आइंस्टाइन के अनुसार

” अब तक के तीन आयामो मे अस्तित्व के विकास की बजाय चार आयामो को भौतिक वास्तविकता के रूप मे स्वीकार करना ज्यादा प्राकृतिक है।”

इसमे चतुर्थ आयाम समय है।

3.हम किसी का समय का अनुभव भिन्न होता है। यह भौतिकी तथा जीव शास्त्र दोनो स्तरों पर सत्य है। भौतिकी मे इतिहास मे हमने न्युटन के समय के दृष्टिकोण को देखा है जिसमे समय सभी के लिए सार्वभौमिक और समान था। लेकिन आइंस्टाइन ने यह प्रमाणित कर दिया कि समय भिन्न भिन्न स्थानो पर गति और गुरुत्व के अनुसार भिन्न होता है। विशेषतः यह प्रकाशगति के समीप यात्रा करने वाले व्यक्ति के लिए या श्याम वीवर के जैसे अत्याधिक गुरुत्व वाले स्थानो पर थम सा जाता है। प्रकाशगति से यात्रा करने वाला व्यक्ति यदि पृथ्वी पर वापिस आये तो उसके एक वर्ष मे पृथ्वी पर हजारो वर्ष व्यतित हो चुके होंगे। जैविक या मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी किसी परमाणु घड़ी द्वारा मापा गया समय हमारी आंतरिक लय और स्मृतियोँ के संग्रह से ज्यादा महत्वपूर्ण नही है। समय का प्रभाव किसी घड़ी से ना होकर व्यक्ति पर, उसके अनुभवो पर निर्भर करता है। यह एक प्रमाणित तथ्य है कि जैसे हम उम्रदराज होते है समय तेजी से व्यतित होता है।

4.आप भूतकाल मे जीते है। सटीक तौर पर कहा जाये तो आप 80 मीलीसेकंड भूतकाल मे जीते है। यदि आप एक हाथ से नाक को छुये और ठीक उसी समय दूसरे हाथ से पैरो को छुये, आप को महसूस होगा कि दोनो कार्य एक साथ हुये है। लेकिन पैरो से संकेतो को मस्तिष्क तक पहुंचने मे लगने वाला समय,नाक से संकेतो को मस्तिष्क तक पहुंचने मे लगने वाले समय से ज्यादा है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि हमारी आंतरिक चेतना का सुचना जमा करने मे समय लगता है तथा हमारा मस्तिष्क सारी आगत सुचनाओं के इकठ्ठा होते तक प्रतिक्षा करता है, उसके पश्चात उसे “वर्तमान” के रूप मे महसूस करता है। हमारे मस्तिष्क का यह ’वर्तमान’ वास्तविक वर्तमान से 80 मीलीसेकंड पिछे होता है, यह अंतराल प्रयोगों द्वारा प्रमाणित है।

5.आपकी स्मृति आपकी अपनी मान्यता से कमजोर होती है। आपका मस्तिष्क भविष्य की कल्पना के लिये ठीक वैसी ही प्रक्रिया अपनाता है जब आप किसी भूतकाल की घटना को याद करते है। यह प्रक्रिया किसी लिखे नाटक के मंचन की बजाये वीडीयो को रीप्ले करने के जैसे ही है। किसी कारण से यदि नाट्य लेख गलत हो तो आप अपनी मिथ्या स्मृति का सहारा लेते है जो कि वास्तविकता के जैसा ही प्रतित होता है। यह एक प्रमाणित तथ्य है कि न्यायालयों मे चश्मदीद गवाहो के बयान सबसे कम भरोसेमंद होते है।

6.हमारी चेतना अपनी समय के साथ हेरफेर की क्षमता पर निर्भर होती है। हमे पूर्णतः ज्ञात नही है लेकिन हमारी चेतना के लिये काफी सारी संज्ञानात्मक क्षमतायें अनिवार्य होती है। लेकिन हमारी चेतना समय तथा प्रायिकता के साथ हेरफेर करने मे सक्षम है और यह मानव चेतना का एक महत्वपूर्ण गुण है। जलचर जीवन के विपरीत, धरती के जीव जिनकी दृश्य क्षमता सैकड़ो मीटर तक होती है, एक साथ कई पर्यायो पर विचार कर सर्वोतम को चुन सकने मे सक्षम है। वे भविष्य का पूर्वानुमान लगा सकते है। एक चीता 70-80 किमी की गति से रफ्तार से दौड़ते हुये चिंकारे की अगली अवस्था का अनुमान लगा कर छलांग लगा सकता है और दबोज सकता है। उसकी चेतना समय के साथ हेरफेर मे सक्षम है। व्याकरण की उत्पत्ती के साथ हम भविष्य की काल्पनिक स्थितियोँ का वर्णन कर सकते है। भविष्य की कल्पना की क्षमता की अनुपस्थिति मे चेतना का अस्तित्व ही संभव नही है।

7.समय के साथ अव्यवस्था बढती है। भूतकाल और भविष्य के हर अंतर के हृदय मे होते है – स्मृति, बुढा़पा,कारण-कार्य-सिद्धांत, जो दर्शाते है कि ब्रह्माण्ड व्यवस्था से अव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। किसी भौतिक विज्ञानी के शब्दो मे एन्ट्रोपी बढ़ रही है। व्यवस्था(कम एन्ट्रोपी) से अव्यवस्था(अधिक एन्ट्रोपी) की ओर बढने के एकाधिक पथ होते है, इसलिए एन्ट्रोपी का बढ़ना प्राकृतिक लगता है। आप किसी फुलदान को कितने ही सारे तरीकों से तोड़ सकते है। लेकिन भूतकाल की कम एन्ट्रोपी की व्याख्या के लिए हमे बिग बैंग (महाविस्फोट) तक जाना होगा। हमने उस समय के कुछ कठिन और जटिल प्रश्नो का उत्तर ज्ञात नही है जैसे : बिग बैंग के समय एन्ट्रोपी इतनी कम क्यों थी ? बढ़ती हुयी एन्ट्रोपी स्मृति, कारण-कार्य-सिद्धान्त और अन्य के लिये कैसे उत्तरदायी है?

8.जटिलता आती है और जाती है। इंटेलीजेंट डीजाइन के समर्थकों(क्रियेशनीस्ट) के अतिरिक्त अधिकतर व्यक्तियों को व्यवस्थित (कम एन्ट्रोपी) तथा जटिलता के मध्य अंतर समझने मे परेशानी नही होती है। एन्ट्रोपी बढती है अर्थात अव्यवस्था बढ़ती है लेकिन जटिलता अल्पकालिक होती है, वह जटिल विधियोँ से कम और ज्यादा होते रहती है। जटिल संरचनाओं के निर्माण का कार्य ही अव्यवस्था को बढा़वा देना है, जैसे जीवन का उद्भव। इस महत्वपूर्ण घटना को पूरी तरह से समझना अभी बाकि है।

9.उम्रदराज होने की विपरीत प्रक्रिया संभव है। हमारा उम्रदराज होना अव्यवस्था मे वृद्धि के सिद्धांत के अनुरूप ही है। लेकिन सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे अव्यवस्था मे वृद्धी होना चाहीये, किसी वैयक्तिक भाग मे नही। किसी भाग मे अव्यवस्था मे कमी आ सकती है, बशर्ते सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे अव्यवस्था मे बढ़ोत्तरी हो। ऐसा ना हो तो किसी रेफ्रिजरेटर का निर्माण असंभव हो जाता। किसी जीवित संरचना के लिए समय की धारा को पलटना तकनीकी रूप से चुनौती भरा जरूर है लेकिन असंभव नही है। हम इस दिशा मे नयी खोज भी कर रहे है जिसमे स्टेम कोशीकायें के साथ साथ मानव पेशीयों का निर्माण भी शामील है। एक जीवविज्ञानी ने कहा था कि

“आप और मै हमेशा जीवित नही रहेंगे, लेकिन अपने पोतों के लिए मै ऐसा नही कह सकता।”

10.एक जीवन = एक अरब धड़कन : जटिल जैविक संरचनाओं की मृत्यु होती है। यह किसी व्यक्ति के लिए दुखद हो सकता है लेकिन प्रकृति के लिए यह एक अनिवार्य प्रक्रिया है जो पुराने को हटाकर नये के लिए मार्ग बनाती है। इसके लिए एक साधारण परिमाण नियम है जो कि प्राणी चयापचय तथा उसके भार से संबधित है। बड़े प्राणी अधिक जीते है लेकिन उनकी चयापचय प्रक्रिया धीमी होती है और धड़कनो की गति धीमी होती है। छछूंदर से लेकर ब्लू व्हेल तक जीवन समान होता है, लगभग डेढ़ अरब धड़कने। समय सभी के सापेक्ष है, सभी की जीवन अवधि समान होती है। यह तब तक सत्य रहेगा जब तक आप इसके पहले वाले बिंदु मे सफलता हासील नही कर लेते!

13 विचार “समय के बारे मे जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण तथ्य&rdquo पर;

  1. चतुर्विम विश्व की कल्पना के साथ यह भी जुड़ जाता है कि 5-6-7-… न जाने कितनी विमायें होंगी। और उन विमाओं के जीवों के लिये हम माइनर कीड़ों जैसे होंगे!
    सब गड़बड़झाला है!

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  2. समय के विभिन्‍न पहलुओं को इससे सुंदर ढंग से नहीं समझाया जा सकता।
    आभार।

    ——
    तत्‍सम शब्‍दावली में खदबदाता विमर्श…
    …एड्स फायदे की बीमारी है।

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  3. भूतकाल में तो जीते ही हैं…कुछ भी देखने के कुछ मिली या माइक्रो सेकेंड बाद ही हम अनुभव कर पाते हैं, जब तक मस्तिष्क प्रतिक्रिया स्वरूप सूचना दे नहीं देता…जबकि हमारी इंद्रिय किसी चीज को देख कर संकेत भेज चुकी होती है…अच्छा लगा…

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