श्याम वीवर द्वारा गैस के निगलने से एक्रेरीशन डीस्क का निर्माण तथा एक्स रे का उत्सर्जन

ब्रह्माण्ड की संरचना भाग 12 : श्याम विवर (Black Hole) क्या है?


श्याम वीवर
श्याम वीवर

श्याम विवर (Black Hole) एक अत्याधिक घनत्व वाला पिंड है जिसके गुरुत्वाकर्षण से प्रकाश किरणो का भी बच पाना असंभव है। श्याम विवर मे अत्याधिक कम क्षेत्र मे इतना ज्यादा द्रव्यमान होता है कि उससे उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण किसी भी अन्य बल से शक्तिशाली हो जाता है और उसके प्रभाव से प्रकाश भी नही बच पाता है।

श्याम विवर की उपस्थिति का प्रस्ताव 18 वी शताब्दी मे उस समय ज्ञात गुरुत्वाकर्षण के नियमो के आधार पर किया गया था। इसके अनुसार किसी पिंड का जितना ज्यादा द्रव्यमान होगा या उसका आकार जितना छोटा होगा, उस पिंड की सतह पर उतना ही ज्यादा गुरुत्वाकर्षण बल महसूस होगा। जान मीशेल तथा पीयरे सायमन लाप्लास दोनो ने स्वतंत्र रूप से कहा था कि अत्याधिक द्रव्यमान या अत्याधिक लघु पिंड के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से किसी का भी बचना असंभव है, प्रकाश भी इससे बच नही पायेगा।

इन पिंडो को ’श्याम विवर(Black Hole)’ नाम जान व्हीलर ने 1967 मे दिया था। भौतिक विज्ञानीयों तथा गणितज्ञों ने यह पाया है कि श्याम विवर के पास काल और अंतराल(Space and Time) के विचित्र गुणधर्म होते हैं। इन विचित्र गुणधर्मो की वजह से श्याम विवर विज्ञान फतांसी लेखको का पसंदीदा रहा है। लेकिन श्याम विवर फतांसी नही है। श्याम विवर का आस्तित्व है और जब भी एक महाकाय तारे की मृत्यु होती है एक श्याम विवर का जन्म होता है। यह महाकाय तारे अपनी मृत्यु के पश्चात श्याम विवर बन जाते है। हम श्याम विवर को नही देख सकते है लेकिन उसमे गुरुत्वाकर्षण के फलस्वरूप उसमे गिरते द्रव्यमान को देख सकते है। इस विधि से खगोल वैज्ञानिको ने अब तक ब्रह्माण्ड का निरीक्षण कर सैकड़ो श्याम विवरो की खोज की है। अब हम जानते है कि हमारा ब्रह्माण्ड श्याम विवरो से भरा पड़ा है और उन्होने ब्रह्माण्ड को आकार देने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

क्या श्याम विवर भौतिकी के नियमो का पालन करते है ?

श्याम विवर भौतिकी के सभी नियमों का पालन करते हैं। उसके विचित्र गुणधर्म गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के फलस्वरूप उत्पन्न होते है।

1679 मे आइजैक न्युटन ने प्रमाणित किया था कि ब्रह्माण्ड के सभी पिण्ड एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण से आकर्षित होते है। गुरुत्वाकर्षण भौतिकी के सभी मूलभूत बलो मे सबसे कमजोर बल है। हमारे दैनिक जीवन मे प्रयुक्त होने वाले अन्य बल जैसे विद्युत, चुंबकत्व इससे कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। लेकिन गुरुत्वाकर्षण हमारे ब्रह्माण्ड को आकार देता है क्योंकि यह खगोलिय दूरीयोँ पर भी प्रभावी है। उदाहरण के लिए इस बल के प्रभाव से चन्द्रमा ग्रहों की ,ग्रह सूर्य की तथा सूर्य आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है।

किसी भारी पिंड द्वारा काल-अंतराल मे लायी गयी विकृति(गुरुत्वाकर्षण)
किसी भारी पिंड द्वारा काल-अंतराल मे लायी गयी विकृति(गुरुत्वाकर्षण)

अल्बर्ट आइंस्टाइन ने अपने साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के द्वारा हमारे गुरुत्वाकर्षण के ज्ञान को उन्नत किया। उन्होने सिद्ध किया कि प्रकाश एक सीमित गति अर्थात लगभग 3 लाख किमी/सेकंड की गति से चलता है। इसका अर्थ यह है कि काल और अंतराल(Space and Time) एक दूसरे से संबधित हैं। 1915 मे उन्होने सिद्ध किया कि भारी पिण्ड अपने आसपास के 4 आयाम वाले काल-अंतराल को विकृत करते है, यह विकृति हमे गुरुत्वाकर्षण के रूप मे दिखायी देती है। जैसे किसी चादर पर एक भारी लोहे की गेंद रख दे तो वह चादर को विकृत कर देती है, अब उसके पास कंचो को बिखरा दे तो वे उस गेंद की परिक्रमा करते हुये अंत मे गेंद के पास पहुंच जाते है। यहां चादर अंतराल(Space) है, गेंद एक भारी पिंड और चादर मे आयी विकृति गुरुत्वाकर्षण बल। (4 आयाम : लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई और समय)

आइंस्टाइन के पूर्वानुमानो को परखा जा चूका है और विभिन्न प्रयोगो से प्रमाणित किया गया है। अपेक्षाकृत कमजोर गुरुत्वाकर्षण बल जैसे पृथ्वी पर आइन्स्टाइन और न्युटन के पूर्वानुमान समान है। लेकिन मजबूत गुरुत्वाकर्षण जैसे श्याम विवर के पास मे आइन्स्टाइन के सिद्धांत से कई नये विचित्र अद्भुत तथ्यो की जानकारी प्राप्त हुयी है।

श्याम विवर का आकार कितना होता है ?

श्याम विवर का आकार
श्याम विवर का आकार

श्याम विवर के अंदर सारा द्रव्यमान एक अत्यधिक छोटे बिन्दू नुमा क्षेत्र मे सीमित होता है जिसे केन्द्रीय सिंगयुलैरीटी(Central Singularity) कहते है। घटना-क्षितिज(Event Horizon) श्याम विवर को घेरे हुये एक काल्पनिक गोला है जो श्याम विवर के पास जा सकने की सुरक्षित सीमा दर्शाता है। घटना क्षितीज को पार करने के बाद वापसी असंभव है, इस सीमा के बाद आप श्याम विवर के गुरुत्वाकर्षण की चपेट मे आकर केन्द्रिय सिंगयुलैरीटी मे समा जायेंगे। घटना-क्षितिज की त्रिज्या को जर्मन वैज्ञानिक स्क्वार्ज्सचील्ड के सम्मान मे स्क्वार्ज्सचील्ड त्रिज्या (Schwarzschild radius)कहते है।

घूर्णन करता श्याम विवर
घूर्णन करता श्याम विवर

स्क्वार्ज्सचील्ड त्रिज्या श्याम विवर के द्रव्यमान के अनुपात मे होती है। खगोल वैज्ञानिको ने स्क्वार्ज्सचील्ड त्रिज्या 6 मील से लेकर हमारे सौर मंडल के आकार तक की पायी है। लेकिन सैद्धांतिक रूप से श्याम विवर इस सीमा से छोटे और बड़े भी हो सकते है। तुलना के लिए यदि पृथ्वी के सारे द्रव्यमान को दबा कर एक कंचे के आकार का कर दे तो वह श्याम विवर बन जायेगी। आप अनुमान लगा सकते है कि श्याम विवर मे पदार्थ किस दबाव मे और कितने ज्यादा घनत्व का होता है। किसी श्याम विवर का अत्याधिक द्रव्यमान का होना आवश्यक नही है, आवश्यक है उसका अत्याधिक घनत्व का होना। सूर्य के द्रव्यमान के लिए यह सीमा 3 किमी है, अर्थात सूर्य के सारे द्रव्यमान को संकुचित कर 3 किमी त्रिज्या मे सीमित कर दे तो वह श्याम विवर मे परिवर्तित हो जायेगा। ध्यान दे सूर्य की त्रिज्या लगभग 700,000 किमी है।

कुछ श्याम विवर अपने अक्ष(axis) पर घूर्णन भी करते है और स्थिति को ज्यादा जटिल बनाते है। घूर्णन के साथ आसपास का अंतरिक्ष भी आसपास खिंचा जाता है, जिससे एक खगोलीय भंवर का निर्माण होता है। इस अवस्था मे सिंगयुलैरीटी एक बिंदू की जगह एक बेहद पतला वलय(ring) होती है। इस मे एक काल्पनिक गोले की बजाये दो घटना क्षितिज होते है। इनके अतिरिक्त एक अर्गोस्फीयर (Ergosphere)नामक क्षेत्र होता है जो की स्थायी सीमा से बंधा होता है। इसमे फंसा पिंड श्याम विवर के घूर्णन के साथ घूमता रहता है, सैधांतिक रूप से वह श्याम विवर के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त हो सकता है।

कितनी तरह के श्याम विवर संभव है ?

अतिभारी श्याम विवर(Supermassive Black Hole) आकाशगंगा के केन्द्र मे होते है। बड़ी आकाशगंगा मे बड़ा श्याम विवर होता है।
अतिभारी श्याम विवर(Supermassive Black Hole) आकाशगंगा के केन्द्र मे होते है। बड़ी आकाशगंगा मे बड़ा श्याम विवर होता है।

श्याम विवर सामान्यतः एक दूसरे से भिन्न लगते है। लेकिन यह उनके आसपास के क्षेत्रो की भिन्नता के कारण होता है। सभी श्याम विवर एक जैसे होते है, उनके तीन विशिष्ट गुणधर्म होते है:

  1. श्याम विवर का द्रव्यमान (कितनी मात्रा पदार्थ से वह निर्मित है)।
  2. घूर्णन (वह घूर्णन कर रहा है अथवा नही ?,उसके अपने अक्ष पर घूर्णन की गति)।
  3. उसका विद्युत आवेश

विचित्र रूप से श्याम विवर हर निगले गये पिंड के बाकी सभी जटिल गुणधर्मो को मिटा देते है।

खगोलविद किसी श्याम विवर के द्रव्यमान की गणना उसकी परिक्रमा करते पदार्थ के अध्यन से कर सकते है। अभी तक दो तरह के श्याम विवर ज्ञात हुये है।

  1. तारकीय द्रव्यमान वाले श्याम विवर(Stellar Mass) – श्याम विवर जिनका द्रव्यमान सूर्य से कुछ गुणा ज्यादा हो
  2. अतिभारी श्याम विवर(Super Massive Black Hole) – किसी छोटी आकाशगंगा के द्रव्यमान के तुल्य

हाल के कुछ अध्यनो से ज्ञात हुआ है कि इन दो श्याम विवरो के वर्गो के मध्य द्रव्यमान के भी श्याम विवर हो सकते है।

श्याम विवर एक अक्ष पर घूर्णन कर सकते है, उसकी घूर्णन गति एक विशिष्ट सीमा को पार नही कर सकती है। खगोलविद मानते है कि श्याम विवर को घूर्णन करना चाहिये क्योंकि श्याम विवर जिन पिंड (तारो) से बनते है वे भी घूर्णन करते है। हाल के कुछ निरिक्षण इस पर कुछ प्रकाश डाल रहे है लेकिन सभी वैज्ञानिक इस पर एक मत नही है। श्याम विवर विद्युत आवेशीत भी हो सकते है। लेकिन इस अवस्था मे विपरीत आवेश के पदार्थ को आकर्षित कर और उसे निगल कर तेजी से उदासीन हो जायेंगे, इसकारण वैज्ञानिक मानते है कि ब्रह्माण्ड के सभी श्याम विवर विद्युत उदासीन(Neutral) होते है।

नोट: श्याम विवर को हिन्दी मे कृष्ण विवर/कृष्ण छिद्र भी कहा जाता है।(साभार :दर्शन बवेजा जी/नीरज रोहील्ला जी)

अगले अंको मे

  1. श्याम विवर के अंदर क्या होता है?
  2. क्या श्याम विवर प्रकाश किरणो को वक्र कर सकते है?
  3. जब दो श्याम विवर टकराते है तब क्या होता है?
  4. क्या श्याम विवर चिरंजीवी होते है?
  5. श्याम विवर कैसे बनते है?
  6. श्याम विवर को कैसे देखा जाता है?
  7. श्याम विवर की वृद्धि कैसे होती है?
  8. ब्रह्माण्ड मे कितने श्याम विवर हैं?

180 विचार “ब्रह्माण्ड की संरचना भाग 12 : श्याम विवर (Black Hole) क्या है?&rdquo पर;

  1. सर
    क्या यह आवश्यक है कि किसी गृह का उपग्रह उसी का एक भाग है जो उससे ही अलग हुआ है ,क्या यह संभव नही की कोई पिंड बाहर से आकर उस गृह की गुरुत्वाकर्षण से संतुलन में आकर घूमने लगे?

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    1. एक अत्याधिक द्रव्यमान वाला गोला जिसे देखा नही जा सकता। लेकिन इसका कार्य ऐसा होता है कि वह एक छिद्र जैसे प्रतित होता है।

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      1. एक सिद्धांत है CP सममिती विखंडण। उसके अनुसार किसी अज्ञात कारण से बिग बैंग के पश्चात पदार्थ कणो का निर्माण प्रतिपदार्थ से थोड़ा अधिक हुआ। पदार्थ और प्रतिपदार्थ टकराकर नष्ट हो गये और ऊर्जा मे तब्दिल हो गये। पदार्थ की जो थोड़ी अधिक मात्रा थी उसी से ब्रह्माण्ड बना। प्रतिब्रह्माण्ड नही बन पाया।

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    1. अंटार्कटिका महाद्विप, आर्कटिक क्षेत्र तथा प्रशांत महासागर के बहुत से क्षेत्र अभी भी मानव की पहुंच से बाहर हो सकते है।

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    1. किसी एक व्यक्ति को इसका श्रेय नही जाता है। इसके पीछे कई वैज्ञानिक रहे है जिनमे John Michell ,Pierre-Simon Laplace,Karl Schwarzschild , David Finkelstein प्रमुख है!

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  2. सब कुछ भ्रह्मण्ड में निहित हे।
    जब तारो से भरा आकाश देखते है तो ईसके बारे में सोचकर रोमांचित होते है।
    मेरा सवाल ये हे की जो आकाशगंगाएँ आज दिखती है क्या वो वास्तव में लाखो साल पहले का नजारा है जो यात्रा करके आज हमारे पास पहुचा है।

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      1. विपिन, आकाशगंगा में अरबों तारे है। सूर्य एक बहुत साधारण तरह का औसत आकार का तारा है। ये आकाशगंगा केंद्र से हजारो प्रकाशवर्ष दूर से आकाशगंगा की परिक्रमा करता है।

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    1. आशीष, बुध, शुक्र का कोई उपग्रह नहीं है। पृथ्वी का एक, मंगल के दो, बृहस्पति और शनि के 60-60 से अधिक। यूरेनस, नेपच्युन के 10-10 से अधिक, प्लूटो के पांच उपग्रह है।

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    1. मानव केवल चंद्रमा पर गया है। अंतरिक्षयान सभी ग्रह बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति पर उतर चूके है या उनसे टकरा चुके है। युरेनस, नेपच्युन और प्लूटो के करीब से अंतरिक्षयान गुजर चूके है।
      उपग्रहो मे टाईटन पर अंतरिक्ष यान उतर चूका है।

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    1. चंद्रमा ग्रह नही है, वह पृथ्वी का उपग्रह है। ग्रह तारे की परिक्रमा करते है, जबकि उपग्रह ग्रह की परिक्रमा करते है।

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    1. ब्र्ह्माण्ड मे अरबो खरबो तारे है। हर तारे के कुछ ग्रह होते है। इन सभी की संख्या और नाम बताना संभव ही नही है। इन अरबो खरबो ग्रहों मे से हम केवल कुछ ग्रहो को ही जानते है जिसमे हमारे अपने सौर मंडल के आठ ग्रह है।
      सौर मंडल के आठ ग्रह है, बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेपच्युन

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    1. ऊर्जा और द्रव्यमान एक ही है। प्रकाश का स्थिर द्रव्यमान rest mass शून्य होता है लेकिन कार्यरत द्रव्यमान अर्थात ऊर्जा शून्य नहीं होती है।

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    1. आशीष, ब्लैक होल , के होल शब्द पर मत जाओ! ये कोई होल या गड्डा नही है जो भर जाये। ब्लैक होल मे अत्यंत कम घनत्व मे अत्याधिक द्रव्यमान होने से उसका गुरुत्वाकर्षण अत्याधिक होता है। ये अपने गुरुत्वाकर्षण से जितना अधिक द्रव्यमान खिंचेगा उतना अधिक शक्तिशाली होते जाता है। मतलब की इसकी भूख बढ़तेजाती है।

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    1. स्टीफन हाकिंग के अनुसार ब्लैक होल एक विशिष्ट विकिरण उत्सर्जन करते है जिससे लंबे समय में ब्लैक होल अपना द्रव्यमान खो देते है। ये समय करोडो वर्ष हो सकता है। इस विकिरण को हाकिंग विकिरण कहते है।

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    1. ब्लैक होल को देखा नही जा सकता है लेकिन उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा उत्पन्न प्रभाव को देखा जा सकता है। उदाहरण के लिये यदि किसी रिक्त स्थान की परिक्रमा कुछ तारे कर रहे है तो इसका अर्थ है कि वहाँ पर ब्लैक होल है।

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    1. गुरत्व बल द्रव्यमान से उत्पन्न होता है। हर वस्तु जिसका द्रव्यमान हो उसका गुरुत्व बल होता है, मेरा, आपका भी। यह बल कमजोर होता है अत्यधिक द्रव्यमान जैसे पृथ्वी , सूर्य का गुरुत्वार्षण ही महसूस कर सकते है।

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    1. ब्लैक होल के हरो और एक सीमा होती है जिसे event horizon कहते है, इसे पार करने के बाद वापसी असंभव है। इस सीमा के अंदर देखा नहीं जा सकता।

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    1. कृष्ण श्याम दोनों शब्द का अर्थ काला होता है जोकि अंग्रेजी के ब्लैक का समानार्थी है। इसलिए ब्लैक होल हिंदी में श्याम वीवर या कृष्ण छिद्र ।

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  3. sabse pàhale to mai dil se aapka dhanyawad karna chahunga kyuki aarthik pareshani k wajah se meri shiksha adhoori rah gayi aur uske saath saath mere man k bahut saare sawal bhi adhure rah gaye lekin aaj aapka post dekh kar phir se ek nayi ummeed jagi hai
    man me sawal to bahut hai lekin filhal mai ye jaanana chahata hoo jaisa ki har jagah bataya jata hai ki bramhand me jitne bhi pind hai we ek doosre ko apni taraph aakarshit karte hai aur isi liye wo sthir hai lekin agar is bramhand ka kahi koi ant hoga to to phir ye saare k saare grah pind kaise sthir hai suppos agar poore bramhand me pachas grah hai aur we ek doosre k gurutwakarshan ki wajah se ruke hai to aisi kaun si energy hai jo in sabko roke rakhi hai

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    1. सबसे पहले, ब्रह्माण्ड मे कुछ भी स्थिर नही है। चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है, पृथ्वी सूर्य की, सूर्य आकाशगंगा की, आकाशगंगा अपने समूह के केंद्र की। इन सब परिक्रमा के पीछे एक ही बल है ,गुरुत्वाकर्षण बल, जो हर किसी हो बांधे हुये है। उसी के कारण पिंड एक दूसरे की परिक्रमा कर रहे है। लेकिन कोई भी पिंड रूका हुआ नही है।

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    1. 1. किसी भी वस्तु के दिखायी देने के लिये उस वस्तु से प्रकाश परावर्तित होना चाहिये, श्याम विवर का गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि वह प्रकाश को भी खींच लेता है। इस कारण से श्याम विवर मे समाने वाली कोई भी वस्तु दिखायी नही देती है।
      2. श्याम विवर मे जाने वाली किसी भी वस्तु का अपना अस्तित्व नही होता है, वह अपना अस्तित्व खोकर श्याम विवर का भाग बन जाती है।

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    1. अंकिता : बरमूडा त्रिभूज मे कोई रहस्य नही है। वहाँ होने वाली दूर्घटनाओं का औसत किसी अन्य जगह से ज्यादा नही है, इसके बार मे जितनी भी कहानीयाँ है केवल अफ़वाह है। इस लेख को पढो : https://vigyanvishwa.in/2014/01/13/bermudatriangle/

      ब्लैक होल एक अलग पिंड है एक ऐसा पिंड जिसका द्रव्यमान और गुरुत्वाकर्षण अत्याधिक है। उसके अंदर कोई भी वस्तु का अस्तित्व संभव नही है।

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      1. ब्लैक होल अपने आसपास आने वाली हर वस्तु, ग्र्ह, तारे, प्रकाश को निगल जाता है। ध्यान रहे ’अपने पास’ आने वाले को निगलता है, हर किसी को नही।

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  4. गुरुजी मेरा जिज्ञासा येह है कि, श्याम बिवरका आफ्ना प्रकाश होता हे या नही ?? श्याम बिवरका घटना क्षितिज मे जो प्रकाश बक्र होता हे, ओह प्रकाश श्याम बिवार खुदका हे वा किसी दुसरे तारो ओं का ?? कृपया बताइए ,,,

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  5. ज्ञानवर्धक पोस्ट, अगली कडी का इन्तजार रहेगा। मैने ब्लैक होल का हिन्दी अनुवाद “श्याम विवर” पढा है। विवर अथवा वीवर में कुछ अन्तर है क्या या फ़िर ये टाईपिंग की त्रुटि है?

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  6. बहुत ज्ञानवर्धक लेख,मै अपने विद्यार्थियों को इसको पढ़ने के लिए प्रेरित करूँगा.
    धन्यवाद इस लेख से मुझे कृष्ण छिद्र का नया नाम श्याम वीवर पता चला,वैसे श्याम वीवर हिंदी मे पहली बार पढ़ा हम तो सदा कृष्ण छिद्र के नाम से जानते/पढते रहे हैं.कृपया बताने का कष्ट करें.क्या कोई अंतर है दोनों मे ?

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    1. दर्शन जी,

      कृष्ण छिद्र और श्याम वीवर दोनों एक ही है,कहीं कहीं मैंने कृष्ण वीवर भी पढ़ा है. मुझे श्याम वीवर अच्छा लगा था तो वही शब्द प्रयोग में ला रहा हूँ.

      मुझे श्याम शब्द शायद ज्यादा पसंद है, श्याम ऊर्जा, श्याम पदार्थ 😀

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