आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षतावाद के सिद्धांत के कुछ पूर्वानुमान लगभग 100 वर्ष पश्चात प्रमाणित हो रहे है। 20 अप्रैल 2004 को डेल्टा 2 राकेट से एक अंतरिक्ष उपग्रह ग्रेवीटी प्रोब बी (गुरुत्वाकर्षण जांच बी) का प्रक्षेपण किया गया था। यह अभियान नासा का सबसे लंबे अंतराल तक चलने वाला अभियान है। इस अभियान की शुरूवात 1959 मे ही हो गयी थी जब एम आई टी के प्रोफेसर जार्ज पग ने इस अभियान की परिकल्पना की थी। लगभग 50 वर्ष तथा 75 करोड डालर के खर्च के बाद इस अभियान को सफलता मिली है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के इस परीक्षण उपग्रह (ग्रैविटी प्रोब बी ने) आइंस्टीन के गुरुत्वाकर्षण के सामान्य सिद्धांत के दो प्रमुख पूर्वानुमानों की पुष्टि कर दी है।
- किसी पिंड का गुरुत्वाकर्षण उसके इर्द-गिर्द के अंतराल और समय(Space and Time) के रूप आकार को विकृत कर देता है।
- अपनी धुरी पर घुर्णन करता यह पिंड अपने आस पास के अंतराल और समय को अपने साथ साथ खींचता चलता है।
आइंस्टीन के इन दो पूर्वानुमानों की जांच करने के उद्देश्य से 2004 में अंतरिक्ष में भेजे गए ग्रैविटी प्रोब बी परीक्षण के अंतर्गत अत्याधिक सटिक परिणामो वाले चार जायरोस्कोप इस्तेमाल किए गए। पृथ्वी के गिर्द परिक्रमा करने वाले इन जायरोस्कोपों का काम यह पता लगाना था कि क्या पृथ्वी और अन्य विशाल पिंड अपने गिर्द अंतरिक्ष और समय को उस रूप में प्रभावित करते हैं, जैसा आइंस्टीन का मानना था। और अगर हां, तो किस सीमा तक।
परीक्षण के प्रमुख जांचकर्ता फ्रांसिस ऐवरिट पैलो ऐल्टो कैलिफोर्निया के स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। उन्होंने परीक्षण की चर्चा करते हुए बताया,
‘हमारे परीक्षण में जायरोस्कोप पृथ्वी की कक्षा में स्थित किए गए। इस प्रश्न का उत्तर ज्ञात करने के लिए कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण और घूर्णन का क्या क्या असर होता है। हमारा जाइयरोस्कोप पिंगपांग की गेंद के नाप और आकार का है और चक्कर काटती हुई इस गेंद को एक तारे(आई एम पेगासी) की दिशा में निर्देशित किया जाता है। इसकी दिशा मे कोई भी बदलाव पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण और घूर्णन का परिणाम स्वरूप ही होगा।’
अगर गुरुत्वाकर्षण का ’अंतरिक्ष और समय(Space-Time)’ पर असर न पड़ता, तो पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षा में स्थित किए गए ये जायरोस्कोप हमेशा एक ही दिशा में लक्षित रहते। लेकिन पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के असर से जायरोस्कोपों के चक्कर की दिशा में थोड़ा, लेकिन मापा जा सकने वाला परिवर्तन हुआ और इस तरह आइंस्टीन की धारणा को पुष्टि हो गई।
न्यूटन और आइंस्टीन के ब्रह्मांड
आइंस्टीन से पहले तक अंतरिक्ष और समय को किसी भी असर से मुक्त माना जाता था। इस संबंध में बात करते हुए फ्रांसिस ऐवरिट कहते हैं,
‘अगर हम वैज्ञानिक आइजक न्यूटन की परिकल्पना के ब्रह्मांड में रह रहे होते, जहां अंतरिक्ष और समय अबाधित हैं, तो घूमते हुए किसी जायरोस्कोप की दिशा ज्यों की त्यों रहती। लेकिन आइंस्टीन का ब्रह्मांड इससे अलग है, और उसमें दो अलग अलग तरह के असर होते हैं। पृथ्वी के द्रव्यमान के प्रभाव से अंतरिक्ष में आने वाली विकृति और पृथ्वी के घूर्णन के परिणाम से अंतरिक्ष में आने वाला खिंचाव।’
शहद में डूबी पृथ्वी?
यह खिंचाव किस रूप में पैदा होता है, इसका स्पष्टीकरण ऐवरिट एक बहुत ही दिलचस्प तुलना के साथ करते हैं,
‘कल्पना करें कि पृथ्वी शहद में डूबी हुई है। तो जब पृथ्वी घूमेगी, तो वह अपने साथ अपने आसपास के उस शहद को भी अपने साथ खींचती चलेगी। इसी तरह वह जायरोस्कोप को भी साथ खींचती चलेगी।’
जीपीबी परीक्षण के बारे में ऐवरिट का कहना है कि आइंस्टीन की दो धारणाओं के प्रमाणित होने का पूरी अंतरिक्ष भौतिकी में हो रही खोजों पर असर पड़ेगा। जीपीबी अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के इतिहास की सबसे अधिक काल तक चली परियोजनाओं में से है, जिसकी शुरुआत 1963 में हुई। उसने ब्योरा जुटाने का अपना काम दिसंबर 2010 में समाप्त किया।
जीपीबी की व्यापक पहुंच
जीपीबी के परिणाम में हुए आविष्कारों का इस्तेमाल जीपीएस तकनीक में किया गया है, जिनके नतीजे में विमान बिना सहायता के उतर पाते हैं। जीपीबी की अतिरिक्त तकनीक नासा के कोबी मिशन में भी इस्तेमाल की गईं, जिस मिशन ने ब्रह्मांड के पृष्ठभूमि प्रकाश का सुस्पष्ट रूप से सही निर्धारण किया। जीपीबी टेक्नोलॉजी की ही सहायता से नासा का गुरुत्वाकर्षण और जलवायु परीक्षण संभव हो पाया और साथ ही यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का ओशन सर्कुलेशन ऐक्सप्लोर भी।
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क्या ऐसा भी संभव है, की किसी दृश्यमान पिंड या वस्तु की ग्रेविटी इतनी ज्यादा हो की प्रकाश की कोई भी किरण उससे निकलने ना पाये ?
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sir is pure lekh main main batana chahta hun ki tare m v pegasi ke sapechh main upgrah main aaya jhukao sadav utna hi hoga jo kah rhen hain ki parti warse bdhega aisa kbhi nhi ho sakta isko main assedness parbhav kahta hun…
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Respeced sir , plz use numbers like 1, 2 , 3 , ………………………… in your articles . I think you will notice my talk .
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जाहिर हैं आईन्स्टीन आज भी खरे हैं -जबकि विज्ञान में भी अंतिम सत्य कुछ नहीं होता -यह एक प्रक्रिया भर है !
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