परग्रही (चित्रकार की कल्पना)

परग्रही जीवन श्रंखला भाग 06 : वे कैसे दिखते होंगे ?


परग्रही (चित्रकार की कल्पना)
परग्रही (चित्रकार की कल्पना)

हमारे मन में परग्रही के आकार-प्रकार की जो भी कल्पना है वह हालीवुड की फिल्मो से है। विभिन्न हालीवुड की फिल्मे जैसे एम आई बी,  एलीयन,  स्पीसीज इत्यादि मे अधिकतर परग्रहीयो को मानव के जैसे आकार में या कीड़े मकोड़ों के जैसे दर्शाया है। इन फिल्मो को देखकर हमारे मन में परग्रहीयो का वही रूप बस गया है।

परग्रही जीवन की सममिती

वैज्ञानिकों ने भौतिकी, जीवविज्ञान और रसायन विज्ञान के नियमों का प्रयोग कर यह अनुमान लगाने का प्रयास किया है कि परग्रही जीव कैसे दिखते होंगे। न्युटन को आश्चर्य होता था कि वह अपने आसपास जितने भी प्राणी देखते है सभी के सभी द्विपक्षीय सममिति वाले है, दो आंखें, दो हाथ और दो पैर एक सममिति में ! यह संयोगवश है या भगवान की कृति ?

जीव विज्ञानी मानते है की आधे अरब वर्ष पहले कैम्ब्रीयन विस्फोट के दौरान प्रकृति ने बहुत से आकार प्रकार के छोटे विकासशील प्राणियो की रचना की थी। इस दौरान प्रकृति ने जैविक सममिती के साथ ढेर सारे प्रयोग किये थे। इनमें से कुछ की रीढ़ X,Y या  Z के आकारों मे भी थी। कुछ की तारा मछली के जैसी सममिति भी थी। एक प्राणी जिसकी रीढ़ I जैसे थी और द्विपक्षीय सममिति थी आज के अधिकतर स्तनधारी प्राणीयो का पूर्वज है। इस प्रयोग के कुछ जीव विलुप्त हो गये और कुछ अभी भी है। हालीवुड के फिल्म निर्माता मानव के जैसे द्विपक्षीय सममिति वाले आकार को ही अंतरिक्ष के परग्रही प्राणीयो के रूप में दिखातें है लेकिन यह सभी बुद्धिमान प्राणियो के लिये आवश्यक नही है। परग्रही जीवन किसी और सममिती मे हो सकता है।

कुछ जीव विज्ञानी मानते है कि कैम्बरीयन विस्फोट के दौरान विभिन्न प्रकार के प्राणी आकारो की उत्पत्ति शिकारी और शिकार के मध्य की एक स्पर्धा थी। पहले  दूसरे जीवो को भोजन बनाने वाले बहुकोशीय जीवन के उद्भव ने उन दोनो जीवन के क्रमिक विकास को गति दी, जिसमे हर जीवन दूसरे से बेहतर होने की होड़ मे लग गया। यह शीतयुद्ध में स. रा अमरीका और सोवियत संघ के मध्य की स्पर्धा के जैसे था जिसमे दोनों पक्ष एक दूसरे को पीछे छोड़ने में लगे थे।

बुद्धिमान जीवन के लिये आवश्यक गुणधर्म

जीवन की उत्पत्ति और विकास के अध्ययन से हम बुद्धिमान जीवन के लिये आवश्यक गुणधर्मों की सूची बना सकते है। बुद्धिमान जीवन के लिये निम्न गुण आवश्यक होंगे

  • पर्यावरण को महसूस करने के आंखें या किसी तरह का तंत्रिका तंत्र.
  • किसी वस्तु को पकड़ने के लिये अंगूठा या पंजे जैसी प्रणाली
  • वाक शक्ति जैसी संप्रेषण प्रणाली

यह तीन अभिलक्षण पर्यावरण को महसूस करने और उसे प्रयोग करने के आवश्यक है जो कि बुद्धिमत्ता की पहचान है। लेकिन इन तीन अनिवार्य अभिलक्षणो के अतिरिक्त भी अभिलक्षण हो सकते है जो अनिवार्य नहीं है। इसमें आकार, रूप या सममिति शामिल नहीं है, बुद्धिमान जीवन किसी भी आकार, प्रकार और सममिति का हो सकता है। परग्रही जीव टीवी और फिल्मो में दिखाये जाने वाले मानव के जैसे आकार का हो आवश्यक नहीं है। बच्चे के जैसे, कीड़ों की तरह की आंखों वाले परग्रही जो हम टीवी और फिल्मो मे देखते है १९५० की बी-ग्रेड की फिल्मो के परग्रही के जैसे ही है जो हमारे अंतर्मन में आज भी जड़ जमाये बैठे है।

मानव के पास आवश्यकता से अतिरिक्त बुद्धी क्यो ?

कुछ मानवविज्ञानीयो ने इस सूची में बुद्धिमान जीवन के लिये चौथा अभिलक्षण जोड़ा है जो एक अद्भुत तथ्य की व्याख्या करता है; मानव जंगल में अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये आवश्यक बुद्धि से ज्यादा बुद्धिमान है। आदि मानव वन में रहता था, उसे जीवन यापन के लिए शिकार की आवश्यकता थी और बचाव के लिये तेज पैरो की। इसके लिए जितनी बुद्धि चाहिये, मानव मस्तिष्क उससे कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। मानव मस्तिष्क अंतरिक्ष की गहराईयो को माप सकता है, क्वांटम सिद्धांत समझ सकता है और उन्नत गणितिय ज्ञान रखता है; यह वन में शिकार और अपने बचाव के लिये अनावश्यक है। यह अतिरिक्त बुद्धि क्यों ?

प्रकृति मे हम कुछ चीता या चिकारा जैसे प्राणी देखते है जिनके पास अपने अस्तित्व को बचाने के लिये आवश्यकता से ज्यादा क्षमता है, क्योंकि हम उनके बीच एक स्पर्धा देखते है। इसी तरह जीव विज्ञानी मानते है कि एक चौथा अभिलक्षण, एक ’जैविकी स्पर्धा’ मानवों की बुद्धि को विकसित कर रही है। शायद यह स्पर्धा अपनी ही प्रजाति के दूसरे मानव से है।

आश्चर्यजनक ढंग से विविधता पूर्ण प्राणी जगत के बारे में सोचे। उदाहरण के लिये यदि कोई कुछ लाखों वर्षों तक चून चून कर आक्टोपस के वंश को बढाये तो शायद वे भी बुद्धिमान हो जाये। (हम लोग वानर प्रजाति से 60 लाख वर्ष पूर्व अलग हुये थे। क्योंकि शायद हम अफ्रिका के चुनौती पूर्ण बदलते हुये पर्यावरण के अनुकूल नहीं हो पा रहे थे। इसके विपरित आक्टोपस चट्टान के नीचे रहने में अनुकुल है इस कारण लाखों वर्षों में उसका विकास नहीं हो पाया है।)  बायोकेमीस्ट क्लीफोर्ड पीकओवर कहते है कि

जब वे अजीब से कड़े खोल वाले समुद्री जीव, स्पर्शक वाली जेलीफीश, द्विलैंगिक कृमी को देखते है उन्हें लगता है कि भगवान के पास विलक्षण हास्य बोध है। और हम  यह हास्यबोध ब्रह्मांड के अन्य ग्रहो मे भी देख पायेंगे।

फिर भी हालीवुड उस समय सही होता है जब वह परग्रही प्राणीयो को मांसाहारी दिखाता है। मांसाहारी परग्रही बाक्सआफीस पर सफलता की गारण्टी होते है लेकिन इसमें एक सत्य भी छुपा हुआ  है। शिकारी सामान्यतः अपने शिकार से बुद्धिमान होते है। शिकारी को शिकार के लिये योजना बनाना ,पीछा करना, छुपना और शिकार से लड़ना पड़ता है। लोमड़ी, कुत्ते, शेर और वाघ की आंखें अपने शिकार पर झपटने से पहले उससे अपनी दूरी के अनुमान लगाने के लिये आगे की ओर होती है। दो आँखों के साथ उनके पार शिकार पर नजर गड़ाने के लिये त्रिआयामी दृष्टि प्राप्त होती है। शिकार जैसे हिरण और खरगोश केवल दौड़ना जानते है, उनकी आंखें उनके चेहरे के बाजू मे ऐसी जगह होती है कि वे अपने आसपास 360 डिग्री में शिकारी को देख सके।

दूसरे शब्दों में अंतरिक्ष में बुद्धिमान जीवन में किसी शिकारी की तरह चेहरे के सामने की ओर आंखे या किसी तरह का तंत्रिका तंत्र हो सकता है। वे लोमड़ी, सिंह और मानवों के आक्रामक, मांसाहारी और स्थलीय लक्षणों और व्यवहार को लिये हो सकते है। लेकिन यह भी संभव है कि उनका जीवन भिन्न DNA तथा प्रोटिन अणुओ पर आधारित होने से उन्हें हमारे साथ खाने या रहने में कोई रुचि ना हो।

परग्रही जीवो का आकार

भौतिकी से हम उनके शरीर के आकार भी अनुमान लगा सकते है। यह मानते हुये की वे पृथ्वी के आकार के ग्रह पर रहते है और उनका घनत्व पानी के घनत्व के जैसा है(पृथ्वी के जीवों की तरह), परग्रही जीवो का आकार पृथ्वी के जीवो के तुल्य ही होगा। अनुपात के सिद्धांत के कारण किंगकांग या गाड्जीला के जैसे महाकाय आकार के प्राणी संभव नहीं है। अनुपात के सिद्धांत के अनुसार किसी वस्तु का आकार बढ़ाने पर भौतिकी के नियम उग्र रूप से बदलते है।

12 विचार “परग्रही जीवन श्रंखला भाग 06 : वे कैसे दिखते होंगे ?&rdquo पर;

  1. Koi bhi padarth jo apna drayaman rakhta hai prakash gati ki yatra ko paksr yatra karna uske liye lagbhagh possible nhi hai. Iske liye asim urja ki jarurat hogi. Jo kabhi sambhav nhi hai.ye already proof hai. Alein or dhartivasi space ki asim duri ke kabhi nhi mil sakte. Hum bekar ki koshish kar rshe hsi. Yaha tak ki space me bheje gaye sandesh ka jawab bhi. Aane me Lakho sal lagenge. Isliye hum shayad bekar me apna samay barbad kar rahe hai. Yahi bat un aleins per bhi lagu hogi.

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  2. आज लोग नेट पर हिन्दी और मौलिक साहित्य को लेकर इतने व्यस्त हैं कि सृजनात्मक ब्लॉग को पढ़ने की फुर्सत ही नहीं बची है …. आपका प्रयास अत्यंत सराहनीय है

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