केप्लर वेधशाला ने एक सौर मंडल खोज निकाला !


केप्लर ११ तारा अपने ग्रहो के साथ(कल्पना)
केप्लर 11 तारा अपने ग्रहो के साथ(कल्पना)

नासा की अंतरिक्ष वेधशाला केप्लर का प्रयोग करते हुये खगोलशास्त्रीयो ने एक छः ग्रहो वाला सौर मंडल खोज निकाला है। लेकिन यह सौर मंडल विचित्र है क्योंकि इसके छः मे से पांच ग्रह अपने मातृ तारे के काफी समीप की कक्षा मे है। यह कक्षा बुध ग्रह की  कक्षा से भी छोटी है।

इनमे से किसी भी ग्रह को पृथ्वी जैसा नही कह सकते क्योंकि वे सभी पृथ्वी से ज्यादा द्रव्यमान और अत्याधिक गर्म है। लेकिन यह खोज इसलिये महत्वपूर्ण है कि केप्लर अभियान उत्साहजनक परिणाम देने लगा है।

केप्लर टीम के सदस्य जैक लीसाउर के अनुसार

“केप्लर ११ सौर प्रणाली अद्भूत है।”

वे आगे कहते है कि

“कुछ ही तारो के एक से ज्यादा संक्रमण(ग्रहण) वाले ग्रह होते है और केप्लर 11 ऐसा पहला ज्ञात तारा है जिसके तीन से ज्यादा संक्रमण वाले ग्रह है। ऐसी सौर प्रणाली विरल है। निश्चित रूप से १% से कम तारो मे केप्लर ११ जैसी ग्रहीय प्रणाली होती है लेकिन हम नही जानते कि ऐसा हजार मे से एक तारो मे है या दस हजार मे से एक या दस लाख मे से एक क्योंकि यह ऐसी पहली ज्ञात सौर प्रणाली है।”

नासा के खगोल विज्ञानी माफेट फिल्ड के अनुसार

” यह अद्भूत रूप से सघन, अद्भूत रूप से समतल और अद्भूत रूप से तारे के इतने समीप इतने सारे ग्रहो वाली सौर प्रणाली है।”

संक्रमण विधी से ग्रहो की खोज
संक्रमण विधी से ग्रहो की खोज

केप्लर-११ तारा बहुत हद तक हमारे सूर्य के जैसा है, इसका द्रव्यमान, आकार , आयू और तापमान सूर्य के जैसा है। यह तारा 2000 प्रकाशवर्ष दूर है और धुंधला है; इसे अच्छी दूरबीन के बीना देखा जा कठिन है। इसके ग्रह 11बी, सी, डी, ई, एफ और जी को संक्रमण विधी से खोजा गया है। इनकी ग्रहो की कक्षाये पृथ्वी और उनके मातृ तारे के मध्य एक ही प्रतल मे पड़ती है; जिससे जब ये ग्रह अपने मातृ तारे के सामने से गुजरते है अपने मातृ तारे के प्रकाश को थोड़ा मंद कर देते है। केप्लर वेधशाला इस रोशनी मे आयी कमी को जान लेता है। एक अंतराल मे एक से ज्यादा बार आयी प्रकाश मे कमी से ग्रहो के परिक्रमा काल की गणना की जा सकती है; रोशनी मे आयी कमी से ग्रह का आकार जाना जा सकता है। जितना बड़ा ग्रह होगा वह अपने मातृ तारे का उतना प्रकाश मंद करता है। संक्रमण विधी इस तरह से ग्रहो की स्थिती(मातृ तारे के संदर्भ मे), परिक्रमा काल और उसका आकार बता देती है।

केप्लर ११ के ग्रहो का पृथ्वी के तुलनात्मका आकार
केप्लर 11 के ग्रहो का पृथ्वी के तुलनात्मका आकार

लेकिन केप्लर-11 तारे के संदर्भ मे इसके ग्रह एक समूह मे अपने मातृ तारे की परिक्रमा करते है। इस तारे के ग्रह एक दूसरे के इतने समीप है कि सभी ग्रह एक दूसरे को अपने गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित करते है। सभी ग्रह एक दूसरे को खींचते और ढकेलते है जिससे उनकी कक्षाये बदलती है और परिक्रमा काल कम-ज्यादा होते रहता है। खगोलशास्त्री  एक जटिल गणितिय माडेल बनाने के बाद उसमे निरिक्षित संक्रमण समय प्रयोग कर इस सौर मंडल के ग्रहो का द्रव्यमान की गणना करने मे सफल हुये। यह प्रक्रिया जटिल है और इसे कम ग्रह या बड़ी कक्षाओ वाले ग्रहो के लिये प्रयोग करना कठिन है। इस गणना से ज्ञात हुआ कि इन ग्रहो का परिक्रमा काल 10 से 46 दिन का है(बुध का परिक्रमा काल 88 दिन है); अर्थात यह ग्रह अपने मातृ तारे से 136 लाख से 374 लाख किमी दूरी पर है। ग्रहो का आकार पृथ्वी के आकार के दूगने से लेकर 4.5 गुणा तक है और द्रव्यमान 4 से लेकर 14 गुणा तक है।

आकार और द्रव्यमान की गणना के बाद घनत्व की गणना की जा सकती है। घनत्व किसी भी पिंड की संरचना को जानने के लिये एक महत्वपूर्ण सूत्र होता है। यदि यह कम है अर्थात ग्रह गैसीय है जबकि अधिक घनत्व पृथ्वी जैसे चट्टानी और धात्विक ग्रह की ओर संकेत देते है। केप्लर 11 के ग्रह अधिक घनत्व के ग्रहो से लेकर गैसीय ग्रह तक के है।

केप्लर ११ के ग्रहो की संरचना
केप्लर ११ के ग्रहो की संरचना

चित्र मे दिखाया आलेख ग्रहो के आकार ( लम्ब अक्ष) के विरुद्ध उसके द्रव्यमान (क्षैतिज अक्ष) को दर्शाता है। पृथ्वी तथा शुक्र छोटे और घने है, आलेख के निचे बाये है. नेपच्युन और युरेनस जो बड़े और गैसीय है उपर दायें है। दिर्घवृत्त केप्लर 11 तारे के ग्रहो को दर्शाते है; इनके द्रव्यमान और आकार की अनिश्चितता यह दर्शाती है कि ये इस दिर्घवृत्त मे कहीं भी हो सकते है(केप्लर 11 सी का सबसे ज्यादा अनिश्चित द्रव्यमान है इसलिये वह क्षैतिज रूप से ज्यादा लम्बा है)। इस आलेख मे रेखाये ग्रहो की संरचना दर्शाती है, कोई भी ग्रह जो निचे की ठोस रेखा पर है पृथ्वी के जैसा ग्रह हो सकता है। सभी नये पाये गये ग्रह पृथ्वी से ज्यादा द्रव्यमान के है लेकिन केप्लर ११बी का घनत्व सबसे ज्यादा है जो कि पृथ्वी के घनत्व का 60% है। इसका अर्थ यह है कि इसमे गैस महाकाय ग्रहो की तरह अत्याधिक मोटे गैस के वातावरण की बजाये चट्टानी है और इसमे काफी मात्रा जल की है।

फिर से , इनमे से कोई भी ग्रह पृथ्वी के जैसा नही है क्योंकि ये बहुत भारी और गर्म है। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि यह सौरप्रणाली एक लंबे अंतराल से संतुलित और स्थायी है। इसका मातृ तारा अरबो वर्ष पूराना है और यह मानते हुये कि ग्रह भी तारे के साथ ही बने होंगे इसे एक संतुलित और स्थायी प्रणाली ही होना चाहीये। इसका अर्थ यह नही है कि समय के साथ इसमे परिवर्तन नही आये होंगे, ऐसा प्रतित होता है कि इसके ग्रह मातृ तारे से दूर बने होंगे और समय के साथ तारे के समीप की कक्षा मे आ गये है जोकि इस सौर प्रणाली के भौतिकिय माडेल के अनुसार संभव है। संभव है कि इसके ग्रह वर्तमान की तुलना मे ज्यादा भारी रहे होंगे, तारे के समीप आते हुये इन ग्रहो ने अपना अधिकतर वातावरण खो दिया होगा।

यह एक महत्वपूर्ण समाचार है। केप्लर यान इस सौर प्रणाली के जैसे कुछ सौर प्रणालीयो की खोज करेगा। यह नयी तकनिक जिसमे ग्रहो की कक्षाओ की परिक्रमा काल मे थोड़े परिवर्तन से ग्रहो के द्रव्यमान की गणना आश्चर्यजनक लेकिन उपयोगी है। उम्मीद है निकट भविष्य मे केपलर यान किसी पृथ्वी जैसे ग्रह की खोज का समाचार देखा लेकिन ध्यान रहे इस तरह के समाचारो के सत्यापन मे वर्षो का समय भी लग सकता है।

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संदर्भ -सूची

१.http://blogs.discovermagazine.com/badastronomy/2011/02/02/kepler-finds-a-mini-solar-system/

२.http://www.nasa.gov/mission_pages/kepler/news/new_planetary_system.html

३.http://exoplanet.eu/star.php?st=Kepler-11#a_publi

4 विचार “केप्लर वेधशाला ने एक सौर मंडल खोज निकाला !&rdquo पर;

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