स्टेनली मीलर और हैराल्ड उरे द्वारा किया गया प्रयोग

परग्रही जीवन श्रंखला भाग 02 : पृथ्वी के बाहर जीवन की वैज्ञानिक खोज


अंतरिक्ष मे जीवन की खोज करने वाले विज्ञानीयो के अनुसार अंतरिक्ष मे जीवन के बारे मे कुछ भी निश्चित कह पाना कठिन है। हम ज्ञात भौतिकी, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान के नियमों के अनुसार कुछ अनुमान ही लगा सकते है।

अंतरिक्ष मे जीवन की खोज से पहले यह सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है कि किसी ग्रह पर जीवन के लिये मूलभूत आवश्यकता क्या है? पृथ्वी पर जीवन और जीवन के विकास के अध्ययन तथा ज्ञात भौतिकी, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान के नियमों के अनुसार अंतरिक्ष मे जीवन के लिये जो आवश्यक है उनमें से प्रमुख है:

  • द्रव जल,
  • कार्बन और
  • DNA जैसे स्वयं की प्रतिकृति बनाने वाले अणु।

वैज्ञानिको का मानना है कि जीवन के लिये द्रव जल की उपस्थिति अनिवार्य है। अंतरिक्ष मे जीवन की खोज के लिये पहले द्रव जल को खोजना होगा। द्रव जल अन्य द्रवो की तुलना मे सार्वभौमिक विलायक(Universal Solvent) है, जिसमे अनेको प्रकार के रसायन घूल जाते है। द्रव जल जटिल अणुओ के निर्माण के लिये आदर्श है। द्रव जल के अणु सामान्य है और ब्रह्माण्ड मे हर जगह पाये जाते है जबकि बाकी विलायक दुर्लभ है।

हम जानते है कि जीवन के लिये कार्बन आवश्यक है क्योंकि इसकी संयोजकता(Valencies) चार है और यह चार अन्य अणुओ के साथ बंध कर असाधारण रूप से जटिल अणु बना सकता है। विशेषतः कार्बण अणु की श्रंखला बनाना आसान है जोकि हायड़्रोकार्बन और कार्बनीक रसायन का आधार है। चार संयोजकता वाले अन्य तत्व कार्बन के जैसे जटिक अणु नही बना पाते है।

 स्टेनली मीलर और हैराल्ड उरे द्वारा किया गया प्रयोग
स्टेनली मीलर और हैराल्ड उरे द्वारा किया गया प्रयोग

1953 मे स्टेनली मीलर और हैराल्ड उरे द्वारा किये गये प्रयोग ने यह सिद्ध किया था कि सहज जीवन निर्माण यह कार्बनीक रसायन का प्राकृतिक उत्पाद है। उन्होने अमोनिया, मीथेन और कुछ अन्य रसायन (जो पृथ्वी की प्रारंभिक अवस्था मे थे) के घोल को एक फ्लास्क मे लीया और उसमे से विद्युतधारा प्रवाहित की और इंतजार करते रहे। एक सप्ताह मे ही उन्होने फ्लास्क मे अमीनो अम्ल (Amino Acid) को निर्मीत होते देखा। विद्युत धारा अमोनिया और मीथेन के कार्बन बंधनो को तोड़कर उन्हे अमीनो अम्ल मे बदलने मे सक्षम थी। अमीनो अम्ल प्रोटीन का प्राथमिक रूप है। इसके बाद मे अमीनो अम्ल को उल्काओ मे और गहन अंतरिक्ष के गैस के बादलो मे भी पाया गया है।

जीवन का मूलभूत आधार है स्वयं की प्रतिकृति बनाने वाले अणु जिन्हे हम डी एन ए कहते है। रसायन विज्ञान मे इस तरह के स्वयं की प्रतिकृति बनाने वाले अणु दूर्लभ है। पृथ्वी पर पहले डीएनए के अणु के निर्माण के लिये करोड़ो वर्ष लगे। संभवतः ये अणु सागर की गहराईयो मे बने। यदि कोई मीलर-उरे के प्रयोग को करोड़ो वर्ष तक सागर मे जारी रखे तो डीएनए के अणु सहज रूप से बनने लगेंगे। प्रथम डीएनए के अणु का निर्माण शायद सागर की गहराईयो मे ज्वालामुखी के मुहानो हुआ होगा क्योंकि ज्वालामुखी के मुहानो की गतिविधीया इन अणुओ के निर्माण के लिये आवश्यक उर्जा देने मे सक्षम है। यह प्रकाश संश्लेषण से के आने से पहले की गतिविधियां है। यह ज्ञात नही है कि डीएनए के अणुओ के अलावा अन्य कार्बन के जटिल अणु स्वयं की प्रतिकृती बना सकते है या नही लेकिन स्वयं की प्रतिकृती बना लेने वाले अणु डीएनए के जैसे ही होंगे।

जीवन के लिये संभवतः द्रव जल, हायड्रोकार्बन रसायन और डीएनए जैसे स्वयं की प्रतिकृती बनाने वाले अणु चाहीये। इन शर्तो का पालन करते हुये ब्रम्हाण्ड मे जीवन की संभावना की मोटे तौर पर गणना की जा सकती है। 1961 मे कार्नेल विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्री फ्रेंक ड्रेक ने सर्वप्रथम ऐसी ही एक गणना की थी। मंदाकिनी आकाशगंगा मे 100 बीलीयन तारे है, इसमे से आप सूर्य के जैसे तारो का अनुमान लगा सकते है, उसके बाद उनमे से ग्रहो वाले तारो का अनुमान लगा सकते है।

ड्रेक का समिकरण बहुत सारे कारको को ध्यान मे रखते हुये आकाशगंगा मे जीवन की गणना करता है। इन कारको मे प्रमूख है

  1. आकाशगंगा मे तारो की जन्मदर
  2. ग्रहो वाले तारो का अंश
  3. तारो पर जीवन की संभावना वाले ग्रहो की संख्या
  4. जीवन उत्पन्न करने वाले वास्तविक ग्रहो का अंश
  5. बुद्धीमान जीवन उत्पन्न करने वाले ग्रहो का अंश
  6. बुद्धिमान सभ्यता द्वारा सम्पर्क रखने की इच्छा और निपुणता का अंश
  7. सभ्यता का अपेक्षित जीवनकाल

उचित आकलन लगाने के बाद और इन सभी प्रायिकताओ का गुणन करने के बाद पता चलता है कि अपनी आकाशगंगा मे ही 100 से 10,000 ग्रह ऐसे होगें जिनपर बुद्धीमान जीवन की संभावना है। यदि यह बुद्धीमान जीवन आकाशगंगा मे समान रूप मे वितरित है तब हमारे कुछ सौ प्रकाश वर्ष मे ही बुद्धीमान जीवन वाला ग्रह होना चाहीये। 1974 मे कार्ल सागन के अनुसार हमारी आकाश गंगा मे ही 10 लाख सभ्यताये होना चाहीये। (ड्रेक के समीकरण का उल्लेख कार्ल सागन ने इतनी बार किया है कि इस समीकरण को सागन का समीकरण भी कहा जाता है।)

इन गणनाओ ने सौर मंडल से बाहर जीवन की संभावनाओ की खोज के लिये नये औचित्य दिये है। पृथ्वी बाह्य जीवन पाने ही इन संभावनाओ के कारण विज्ञानीयो अब गंभीर रूप से इन ग्रहो से उत्सर्जीत रेडीयो संकेतो पर ध्यान देना शुरू किया है। आखीर ये बुद्धीमान सभ्यताये भी हमारी तरह टीवी देखती होंगी ही या रेडीयो सुनती ही होंगी !

क्रमश: (अगले भाग मे : बाह्य सभ्यताओ से संपर्क कैसे करे……)

33 विचार “परग्रही जीवन श्रंखला भाग 02 : पृथ्वी के बाहर जीवन की वैज्ञानिक खोज&rdquo पर;

  1. Respected sir,

    Hum jeevan ki utpatti ke liye jin cheezo ko jarurat mante hain, wo cheezein to sirf hamari earth aur Manav se hi sambandhit hain, mujhe lagta hai isiliye hum aisa sochte hain ki agar kisi Planet me ye cheezein nahi hain to vahan jeevan nahi hoga, lekin jeevan ki utpatti ke aur bhi kai cheezo se ho sakti hai, bina water aur bina sunlite ke, ye cheezin bilkul waisi hi hain jaise hum apne ghar me lite aur disc connection ke sath rahte hain aur sochte hain ki iske bina Ghar nahi, sambhav hi nahi, According to darvins theory Jeev jivit rahne ke liye khud ko nature ke anusar dhal leta hai, to ye bhi ho sakta hai ki kisi planet me jab earth ke jaisi jeevan ki parishtithiya na ho tab bhi wahan jeevan ho????

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  2. क्या आपने कभी रात में तारो को देखते हुए ये सोचा है की क्या वहाँ भी कोई रहता है l अकसर हम सब के दिमाग में ये सवाल आता है की क्या हम इस ब्रह्मांड में अकेले है ? मै आपको इस लेख में alien के बारे में पूरी जानकारी दूँगा l और हाँ अगर आप सोचते हैं की alien नहीँ होते है तो ये हमारा दावा है की इस पेज को पढ़ने के बाद आपका दिमाग बदल जायगा l
    https://onlyhindi.wordpress.com/2016/06/20/%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-alien-%e0%a4%b8%e0%a4%9a%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%9a-%e0%a4%b9%e0%a5%8b%e0%a4%a4%e0%a5%87-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%af%e0%a4%b9-%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%96/

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  3. 1क्या किसी प्रकार हम इंसान की जिंदगी मस्तिक्ष की क्षमता को बढ़ा सकते हैं
    2हम सभी जानते हैं की संसार जो है उसका अंत होना है ?क्या किसी प्रकार हम इंसान की जीवन काल में बढ़ोतरी कर सकते हैं?
    3हम सभी जानते हैं प्रकृति के द्वारा किए गए बदलावएक निश्चित समय में होती हैइस बदलाव कोहमारी आने वाली वीडियो के द्वारा ही अध्ययन होना है क्या किसी प्रकार इस समय के अंतर को कम किया जा सकता हैक्या बैज्ञानिकों ने इस पर किसी प्रकार कीयोजना पर कार्य किया है?

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    1. 1. नही, हम अपनी मस्तिष्क की क्षमता का पूर्ण प्रयोग कर पाये वह हमारी आवश्यकता के अनुरूप होगा।
      2. मनुष्य के जीवनकाल मे बढोत्तरी लगातार हो रही है, पिछली सदी मे औसत जीवन काल 40 वर्ष ही था, अब 60 वर्ष के आसपास है।
      3.प्रकृति के द्वारा बदलाव के अतिरिक्त हम भी बदलाव करते है, DNA बदलाव से यह संभव है। पेड़ पौधो के लिये ये तो पिछले ४०-५० वर्षो से हो रहा है।

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    1. मंगल से पृथ्वी की दूरी स्थिर नही है, दोनो सूर्य की परिक्रमा करते है, उनकी दूरी कम ज्यादा होते रहती है।
      मंगल की पृथ्वी से न्युनतम दूरी 560 लाख किमी होती है तथा अधिकतम दूरी 2250 लाख किमी होती है|
      मंगल और पृथ्वी की कक्षा

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  4. सर मैं ये तो मानता हूँ कि जिस तरह पृथ्वी पर जीवन हैं शायद अंतरिक्ष में किसी और गृह पर भी जीवन हो लेकिन में ये नहीं मानता की किसी और गृह के प्राणी में इंसान से ज्यादा बुध्दि हो और वो इंसान से ज्यादा तकनीकी क्षेत्र में अव्वल हो यदि ऐसा होता तो हम उन्हें या वो हमे ढूंढ लेते लेकिन फिर भी एक आद प्रतिशत ऐसा हुआ की कोई हमसे भी ज्यादा समझदार हैँ और उनके पास हमसे ज्यादा तकनीकी ज्ञान हैँ और वो हमसे ज्यादा ताकतवर हैं तो इसकी कोई गारंटी तो नहीं हैं कि वो हमसे दोस्ताना व्यवहार ही करें हो सकता कि वो हमसे आकर कहे कि चलो पृथ्वी खाली करो आज से ये हमारी हैं या वो हमको गुलाम बनाना चाहे जैसाकि हम मनुष्य बाक़ी प्राणियों के साथ करते हैं तब क्या होगा क्या हमारे वैज्ञानिक इस बारे में कुछ कर रहें हैं या वो अपनी ही धुन में कुछ और ढूंढ रहे है सर इस बारे में अपनी राय जरूर रखियेगा धन्यवाद

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  5. Kya hum apni dharti se pareshan ho gaye h?
    Kya hame apne ghar(dharti ) ko khud hi mitane wale h…….
    Ya phir hame ek dusre par bharosa nahi raha
    Ya phir hamare darti par har insan k paas pet bharne k liye roti pahene k liye kapda or rahne k liye makan h……….
    Agar nahi to ham to hum itna paisa antariksh par q kharch kar rahe h humse hamari choti si dharti nahi sambhal ti itna bada aasman kya khak sambhale ga………….
    Please answer……….

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    1. ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती है, उसे पाने के लिये ब्रह्मांड के दूसरे छोर तक जाना पड़े तब भी जाना चाहिये!
    2. जिस तरह से जनसँख्या बढ़ रही है निकट भविष्य में हमें रहने के लिये नई दुनिया चाहिये होगी
    3. पृथ्वी पर संसाधन सीमित है, नये संसाधनों के लिये पृथ्वी से बाहर जाना ही होगा
    4. एक समय ऐसा भी आयेगा जब सूर्य की मृत्यु हो जायेगी, तब तक हमारी तकनीक इतनी विकसित होना चाहिये कि हम किसी अन्य तारे पर बस सकें
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  6. यह सोच गलत हैँ कि हर जगह पानी हो तो ही जीवन हैँ। कहीँ प्राणी ऐसे भीँ हैँ जो पानी जीवन यापन करते हैँ।
    जैसेँ -सुर्य का प्रकाश, रासायनिक कण

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  7. इस लेख मे जो समीकरण का उल्लेख किया गया हैं मैने अपनी थोड़ी सी बुद्धि का प्रोग करके 14 बातो का ध्यान रख के ( इस में मैने दूरी को भी शामिल किया हैं क्योंकि जो ग्रह खोजे गए हैं उन में ज्यादातर गर्म जा ठंडे हैं) हल निकाला जो कि में लगातार शोध रहा हूँ और नई बातो को भी ध्यान में रखता हूँ मगर हर बार हल 1000 से नीचे ही रहता जो कि बढ़ता घटता रहता हैं।

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  8. बहुत परिश्रम और सिस्टेमिक रूप से आप पृथ्वी से इतर जीवन की संभावनाओं के आकलन की रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं…दुसरी कड़ी भी मजेदार है !

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