तारे का जन्म

लाखों तारे आसमां मे


आप से एक मासूम सा प्रश्न है। कितने दिनों पहले आपने रात्रि में आसमान में सितारों को देखा है ? कुछ दिन, कुछ माह या कुछ वर्ष पहले ? कब आप अपने घर की छत पर या आंगन में आसमानी सितारों के तले सोये है ? बच्चों को तारों को दिखाकर बताया है कि वह जो तारा दिख रहा है वह ध्रुव तारा है, उसके उपर सप्तऋषि है ? वो देखो आकाश के मध्य में व्याघ्र है ?

आज इन तारों के बारे में बात की जाये ।

आसमान में जो टिमटिमाते बिन्दु जैसे तारे दिखायी दे रहे है, वह हमारे सूर्य जैसे विशाल है। इनमें से कुछ तो सूर्य से हज़ारों गुणा बड़े और विशालकाय है। ये तारे हमारी पृथ्वी से हज़ारों अरबों किमी दूर है, इसलिये इतने छोटे दिखायी दे रहे है।

एक तारा एक विशालकाय चमकता हुआ गैस का पिण्ड होता है जो गुरुत्वाकर्षण के कारण बंधा हुआ होता है। पृथ्वी के सबसे पास का तारा सूर्य है, यही सूर्य पृथ्वी की अधिकतर ऊर्जा का श्रोत है। अन्य तारे भी पृथ्वी से दिखायी देते है लेकिन रात में क्योंकि दिन में वे   सूर्य की रोशनी से दब जाते है। एक कारण हमारा वायुमंडल में होनेवाला प्रकाश किरणो का विकिरण है जो धूल के कणों से सूर्य की किरणों के टकराने से उत्पन्न होता है। यह विकिरण वायु मण्डल को ढंक सा लेता है जिससे हम दिन में तारे नहीं देख पाते है।

ऐतिहासिक रूप से इन तारों के समूहों को हमने विभिन्न नक्षत्रों और राशियों में विभाजित कर रखा है। सिंह राशि, तुला राशि, व्याघ्र, सप्तऋषि यह सभी तारों के समुह है। लेकिन इन तारा समूहों के तारे एक दूसरे के इतने पास भी नहीं है जितने हमें दिखायी देते है। इन तारा समूहों के तारों के मध्य में दूरी सैकड़ों हज़ारों प्रकाश वर्ष भी हो सकती है। एक प्रकाश वर्ष का अर्थ है प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गयी दूरी। प्रकाश एक सेकंड मे लगभग तीन लाख किमी की दूरी तय करता है।

तारे अपने जीवन के अधिकतर काल में हायड्रोजन परमाणुओ के संलयन से प्राप्त उर्जा से चमकते रहते है। इस प्रक्रिया मे हायड़्रोजन परमाणु नाभिकों के संलयन से हिलीयम बनती है। हिलीयम और उससे भारी तत्वों का तारों में इसी नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया से निर्माण होता है। जब इन तारों में हायड्रोजन खत्म हो जाती है तब इन तारों की भी मृत्यु हो जाती है। तारों की मृत्यु के प्रक्रिया में नाभिकीय संलयन से अधिक भारी तत्वों जैसे कार्बन , खनिजों का निर्माण होता है जो हमारे जीवन के लिये आवश्यक है। तारों की मृत्यु भी नया जीवन देती है ! एक मृत तारा अपनी मृत्यु के दौरान नये तारे को भी जन्म दे सकता है या एक भूखे श्याम विवर (Black Hole) मे भी बदल सकता है। हमारा सूर्य भी ऐसे किसी तारे की मृत्यु के दौरान बना था, उस तारे ने अपनी मृत्यु के दौरान न केवल सूर्य को जन्म दिया साथ में जीवन देने वाले आवश्यक तत्वों का भी निर्माण किया था।

तारों का जन्म

तारों का जन्म अंतरिक्ष में निहारिका में होता है, ये निहारिकायें गैस और धूल का विशालकाय (लम्बाई चौड़ाई सैकड़ों हज़ारों प्रकाश वर्ष में) बादल होती है। इन निहारीकाओं मे अधिकतर हायड्रोजन, 23-28% हीलियम और कुछ प्रतिशत भारी तत्व होते है। ऐसे ही एक तारों की नर्सरी (निहारीका) ओरीयान निहारीका(Orion Nebula) है।

सितारों के जन्म के पहली स्थिति है , इंतजार और एक लम्बा इंतजार। धूल और गैस के बादल उस समय तक इंतजार करते है जब तक कोई दूसरा तारा या भारी पिंड इसमें कुछ हलचल ना पैदा कर दे! यह हलचल सुपरनोवा(Supernova) से उत्पन्न लहर भी हो सकती है। यह इंतजार हजारों लाखों वर्ष का हो सकता है।

 

पूर्वतारा अवस्था (Prorostart State)

तारे का जन्म
तारे का जन्म

जब कोई भारी पिंड निहारिका के पास से गुजरता है वह अपने गुरुत्वाकर्षण से इसमें लहरे और तरंगें उत्पन्न करता है। कुछ उसी तरह से जैसे किसी प्लास्टिक की बड़ी सी चादर पर कुछ कंचे बिखेर देने के बाद चादर में एक किनारे पर से या बीच से एक भारी गेंद को लुढ़का दिया जाये। सारे कंचे भारी गेंद के पथ की ओर जमा होना शुरु हो जायेंगे। धीरे धीरे ये सारे कंचे चादर में एक जगह जमा हो जाते है। ठीक इसी तरह निहारिका में धूल और गैस के कण एक जगह पर संघनित होना शुरु हो जाते है। पदार्थ का यह ढेर उस समय तक जमा होना जारी रहता है जब तक वह एक महाकाय आकार नहीं ले लेता।

इस स्थिति को पूर्व तारा( protostar) कहते है। जैसे जैसे यह पुर्वतारा बड़ा होता है गुरुत्वाकर्षण इसे छोटा और छोटा करने की कोशिश करता है, जिससे दबाव बढ़ते जाता है, पूर्व तारा गर्म होने लगता है। जैसे साइकिल के ट्युब में जैसे ज्यादा हवा भरी जाती है ट्युब गर्म होने लगता है।

जैसे ही अत्यधिक दबाव से तापमान 10,000,000 केल्विन तक पहुंचता है नाभिकीय संलयन(Hydrogen Fusion) की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। अब पूर्व तारा एक तारे में बदल जाता है। वह अपने प्रकाश से प्रकाशित होना शुरू कर देता है। सौर हवायें बचे हुये धूल और गैस को सुदूर अंतरिक्ष में धकेल देती है।

नव तारा जिसका द्र्व्यमान २ सौर द्रव्यमान से कम होता है उन्हे टी टौरी(T Tauri) तारे कहते है। उससे बड़े तारों को हर्बीग एइ/बीइ (Herbig Ae/Be) कहते है। ये नव तारे अपनी घूर्णन अक्ष की दिशा में गैस की धारा(Jet) उत्सर्जित करते है जिससे संघनित होते नव तारे की कोणीय गति(Angular Momentum) कम होते जाती है। इस उत्सर्जित गैस की धारा से तारे के आस पास के गैस के बादल के दूर होने में मदद मिलती है।

मुख्य क्रम (Main Sequence)

तारे का मुख्यक्रम
तारे का मुख्यक्रम

तारे अपने जीवन का 90% समय अपने केन्द्र पर उच्च तापमान तथा  उच्च दबाव पर हायड्रोजन के संलयन से हिलीयम बनाने में व्यतीत करते है। इन तारों को मुख्य क्रम का तारा कहा जाता है। इन तारों के केन्द्र में हिलीयम की मात्रा धीरे धीरे बढ़ती जाती है जिसके फलस्वरूप केन्द्र मे नाभिकिय संलयन की दर को संतुलित रखने के लिये तारे का तापमान और चमक बढ़ जाती है। उदाहरण के लिये सूर्य की चमक 4.6 अरब वर्ष पहले की तुलना में आज 40% ज्यादा है। हर तारा कणों की एक खगोलीय वायु प्रवाहित करता है जिससे अंतरिक्ष में गैस की एक धारा बहते रहती है। अधिकतर तारों के लिये द्र्व्यमान का यह क्षय नगण्य होता है। सूर्य हर वर्ष अपने द्र्व्यमान का 1/1000000000000000 हिस्सा इस खगोलीय वायु के रूप मे प्रवाहित कर देता है। लेकिन कुछ विशालकाय तारे  1/100000000 से 1/0000000  सौर द्र्व्यमान प्रवाहित कर देते है। सूर्य से 50 गुना बड़े तारे अपने द्र्व्यमान का आधा हिस्सा अपने जीवन काल में खगोलीय वायु के रूप में प्रवाहित कर देते है।

तारों के मुख्य क्रम में रहने का समय उस तारे के कुल इंधन और इंधन की खपत की दर पर निर्भर करता है अर्थात उसके प्रारंभिक द्र्व्यमान और चमक पर। सूर्य के लिये यह समय 1010 वर्ष है। विशाल तारे अपना इंधन ज्यादा तेजी से खत्म करते है और कम जीवन काल के होते है। छोटे तारे (लाल वामन तारे-Red Dwarf) धीमे इंधन प्रयोग करते है और ज्यादा जीवन काल के होते है। यह जीवन काल 10 अरब वर्ष से सैकड़ो अरब वर्ष हो सकता है। ये छोटे तारे धीरे धीरे मंद और मंद होते हुये अंत में बूझ जाते है। इन तारों का जीवन ब्रह्मांड की उम्र से ज्यादा होता है, आज तक कोई भी लाल बौना तारा इस अवस्था तक नहीं पहुँचा है।

तारे के अपने द्रव्यमान के अतिरिक्त तारे के विकास में हिलीयम से भारी तत्वों की भी भूमिका होती है। खगोल शास्त्र मे हिलियम से भारी सभी तत्व धातु माने जाते है तथा इन तत्वों के रासायनिक घनत्व को धात्विकता कहते है। यह धात्विकता तारे के इंधन के प्रयोग की गति को प्रभावित कर सकती है, चुंबकीय क्षेत्र के निर्माण को नियंत्रित कर सकती है, खगोलीय वायु के प्रवाह को प्रभावित कर सकती है।

मुख्य क्रम के पश्चात

लाल दानव(Red Giant) तारा

तारे जिनका द्रव्यमान कम से कम सूर्य के द्र्व्यमान का 40% होता है अपने केन्द्र की हायड्रोजन खत्म करने के बाद फूलकर लाल दानव तारे बन जाते है। आज से 5 अरब वर्ष बाद हमारा सूर्य भी एक लाल दानव बन जायेगा, उस समय वह बढकर अपने आकार का 250 गुणा हो जायेगा। सूर्य की परिधी हमारी पृथ्वी की कक्षा के बराबर होगी।

सूर्य के द्रव्यमान से 2.25 गुणा भारी लाल दानव तारे के केन्द्र की सतह पर हायड्रोजन के सलयंन की प्रक्रिया जारी रहती है। अंत मे तारे का केन्द्र संकुचित होकर हीलीयम संलयन प्रारंभ कर देता है। हीलीयम के खत्म होने के बाद कार्बन और आक्सीजन का संलयन प्रारंभ होता है। इसके बाद यह तारा भी लाल दानव की तरह फूलना शुरू कर देता है लेकिन ज्यादा तापमान के साथ।

लाल महादानव तारे

लाल महादानव बीटल गूज
लाल महादानव बीटल गूज

सूर्य के द्रव्यमान से नौ गुणा से ज्यादा भारी तारे हिलियम ज्वलन(संलयन-Fusion) की प्रक्रिया के बाद लाल महादानव बन जाते है। हिलियम खत्म होने के बाद ये तारे हीलीयम से भारी तत्वों का संलयन करते है। तारो का केन्द्र संकुचित होकर कार्बन का संलयन प्रारंभ करता है, इसके पश्चात नियान संलयन, आक्सीजन संलयन और सीलीकान संलयन होता है। तारे के जीवन के अंत में संलयन प्याज की तरह परतों पर होता है। हर परत पर एक तत्व का संलयन होता है। सबसे बाहरी सतह पर हायड़ोजन, उसके निचे हीलीयम और आगे के भारी तत्व। अंत में तारा लोहे का संलयन प्रारम्भ करता है। लोहे के नाभिक अन्य तत्वों की तुलना मे ज्यादा मजबूत रूप से बंधे होते है। लोहे के नाभिकों के संलयन से ऊर्जा नहीं निकलती है इसके उलटे ऊर्जा लेती है। पुराने विशालकाय तारों के केन्द्र में लोहे का बड़ी सी गुठली बन जाती है।

तारो का अंत

एक सामान्य द्रव्यमान का तारा अपनी बाहरी परतों का झाड़ कर एक ग्रहीय निहारिका(Planetary nebula) में तबदील हो जाता है। बचा हुआ तारा यदि सूर्य के द्रव्यमान के 1.4 गुणा से कम हो तो वह श्वेत वामन तारा बन जाता है जिसका आकार पृथ्वी के बराबर होता है जो धीरे धीरे मंद होते हुये काले वामन तारे के रूप में मृत हो जाता है।

सूर्य के द्र्व्यमान से 1.4 गुणा से ज्यादा भारी तारे होते है अपने द्र्व्यमान को नियंत्रित नहीं कर पाते है। इनका केन्द्र अचानक संकुचित हो जाता है। इस अचानक संकुचन से एक महा विस्फोट होता है, जिसे सुपरनोवा कहते है। सुपरनोवा इतने चमकदार होते है कि कभी कभी इन्हें दिन मे भी देखा गया है।

सुपरनोवा विस्फोट मे फेंके गये पदार्थ से निहारिका बनती है। कर्क निहारिका इसका उदाहरण है। बचा हुआ तारा न्युट्रान तारा बन जाता है। ये कुछ न्युट्रान तारे पल्सर तारे होते है। यदि बचे हुये तारे का द्रव्यमान 4 सूर्य के द्र्व्यमान से ज्यादा हो तो वह एक श्याम विवर(Black Hole) मे बदल जाता है।

कर्क निहारीका
कर्क निहारीका

सुपरनोवा विस्फोट मे फेंके गये तारे की बाहरी परतो मे नये तारे के निर्माण की सामग्री होती है जिसमे भारी तत्वो का समावेश होता है। ये भारी तत्व पृथ्वी जैसे पथरीले ग्रह का निर्माण करते है।

तारों का वितरण

सूर्य के जैसे अकेले तारों के अलावा अधिकतर तारे दो या दो से ज्यादा तारों के समूह में होते है। ये तारे एक दूसरे के गुरुत्वाकर्षण से बन्धे होते है। अधिकतर तारे दो तारों के समूह में है, लेकिन तीन या उससे ज्यादा तारों के समूह भी पाये गये है।

ब्रह्मांड  में तारे समान रूप से वितरित नहीं है। वे आकाशगंगाओं के रूप में गैस और धूल के साथ समुह में है। एक आकाशगंगा में अरबों तारे हो सकते है और हमारे द्वारा देखे जाने वाले ब्रह्मांड  में अरबों आकाशगंगाये है। आमतौर पर माना जाता है कि तारे आकाशगंगाओं में ही होते है लेकिन कुछ तारे आवारा के जैसे आकाशगंगाओं से बाहर भी पाये गये है।

पृथ्वी के सबसे पास का तारा(सूर्य के अलावा) प्राक्सीमा सेन्टारी है जो 4.2 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है।

तारों के गुणधर्म

उम्र

अधिकतर तारे 1 अरब वर्ष से 10 अरब वर्ष की उम्र हे है। कुछ तारे 13.7 अरब वर्ष के है जो कि ब्रम्हाण्ड की उम्र है। जितना विशाल तारा होता है उसकी उम्र उतनी कम होती है क्योंकि वह हायड्रोजन उतनी ज्यादा गति से जलाते है। विशाल तारे जहां 10 लाख वर्ष तक जीते है वही लाल वामन तारे सैकड़ों अरबों वर्ष तक जी सकते है।

तारों का व्यास

सूर्य को छोड़ कर अन्य तारे एक बिन्दु जैसे दिखायी देते है। सूर्य हमारे काफी पास है इसलिये इतना बड़ा दिखायी देता है।

तारों के व्यास में जहां न्युट्रान तारो का व्यास 20-40 किमी होता है वही बीटलगूज का व्यास सूर्य के व्यास से 650 गुणा है।

तारो का द्र्व्यमान

सबसे भारी ज्ञात तारों में से एक एटा कैरीने (Eta Carinae)  है जो सूर्य से 100-150 गुणा भारी है, कुछ लाख वर्ष उम्र का है।  अभी तक यह माना जाता था कि सूर्य से 150 गुणा बड़ा होना तारों की उपरी सीमा होगी लेकिन नयी गणना के अनुसार आर एम सी 136ए क्लस्टर का तारा आर136ए1 सूर्य से 265 गुणा बड़ा है।

सबसे छोटा ज्ञात तारा एबी डोराडस सी(AB Doradus C) है जो बृहस्पति ग्रह से 93 गुणा बड़ा है। यह माना जाता है कि छोटे तारे की सीमा बृहस्पति ग्रह से कम से कम 87 गुणा(सूर्य के द्रव्यमान का 8.3%) बड़ा होना है। इन छोटे तारों और गैस महाकाय ग्रह के बीच के पिंडों को भूरे वामन(Brown Dwarf) कहा जाता है।

तारों का वर्गीकरण

तारों का वर्गीकरण उनके तापमान पर किया जाता है। तारों का वर्गीकरण नीचे दी गयी तालिका में दिया गया है। सभी तापमान डिग्री केल्वीन (K) में है।

 
वर्ग तापमान उदाहरण
33,000 K या ज्यादा जीटा ओफीउची Zeta Ophiuchi
बी 10,500–30,000 K रीगेल Rigel
7,500–10,000 K अल्टेयर Altair
एफ़ 6,000–7,200 K प्रोच्यान ए Procyon A
जी 5,500–6,000 K सूर्य Sun
के 4,000–5,250 K एप्सीलान इन्डी Epsilon Indi
एम 2,600–3,850 K प्राक्सीमा सेन्टारी Proxima Centauri

तारो के संदर्भ मे एक और लेख यहां पढीये ।

8 विचार “लाखों तारे आसमां मे&rdquo पर;

    1. आप अपने घर के आंगन मे हो तो आप अपना पूरा घर नही देख पाते है लेकिन दूसरो के घर देख पाते है। बस ऐसा ही हमारी आकाशगंगा के बारे मे है। पृथ्वी आकाशगंगा के एक भाग मे है, पूरी आकाशगंगा को उस आकाशगंगा के बाहर से ही देखा जा सकता है। लेकिन दूसरी आकाशगंगा को हम अपनी आकाशगंगा से अच्छी तरह से देख सकते है।

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    1. निहारीका मे बनने वाले तारों की संख्या की कोई सीमा नही है, निहारिका मे जितना ज्यादा पदार्थ होगा उतने ज्यादा तारे बनेंगे। सूर्य किसी निहारिका मे नही है, सूर्य के बनने के पश्चात उसकी मातृ निहारिका का पदार्थ समाप्त हो गया होगा।
      हम अभी तक अपनी पूरी आकाशगगा को देख ही नही पाये है, आकाशगन्गा मे भी निहारिकाओ की सख्या गिनना तो दूर की बात है, लेकिन सन्ख्या हजारो मे होगी

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  1. हमारे Milky way Galaxy मे जितने भी तारे है ऊनमे से कुछ तारो की किरण हमारी धरती पर पढती है उन किरणो के माद्यम से हम यह पता कर सकते है कि उसके कितने ग्रह है । Sethi कि टीम शायद इसी माद्यम से खोज कर रही है मुझे उम्मीद है कि यह माद्यम सफल होगा । क्योकि “जो चीज हम तक पहुँच सकती है उन तक हम भी पहुँच सकते है”

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