ब्रह्मांडीय नर्सरी जहाँ तारों का जन्म होता है एक धूल और गैसों का बादल होता है जिसे हम निहारीका (Nebula) कहते है। सभी तारों का जन्म निहारिका से होता है सिर्फ कुछ दुर्लभ अवसरो को छोड़कर जिसमे दो न्यूट्रॉन तारे एक श्याम विवर बनाते है। वैसे भी न्यूट्रॉन तारे और श्याम विवर को मृत तारे माना जाता है।
निहारिका दो अलग अलग कारणों से बनती है। एक तो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ती है। ब्रह्माण्ड के जन्म के बाद ब्रह्माण्ड मे परमाणुओं का निर्माण हुआ और इन परमाणुओं से धूल और गैस के बादलों का निर्माण हुआ। इसका मतलब यह है कि गैस और धूल जो इस तरह से बनी है उसका निर्माण तारे से नही हुआ है बल्कि यह ब्रह्माण्ड के निर्माण के साथ निर्मित मूल पदार्थ है।
निहारिका के निर्माण का दूसरा तरीका किसी विस्फोटीत तारे से बने सुपरनोवा से है। इस दौरान सुपरनोवा से जो पदार्थ उत्सर्जित होता है उससे भी निहारिका बनती है। इस दूसरे तरीके से बनी निहारिका का उदाहरण वेल(Veil) और कर्क (Crab) निहारिकाये है। ध्यान रखे कि निहारिकाओ का निर्माण इन दोनो तरीकों के मिश्रण से भी हो सकता है।
निहारिकाओ के प्रकार
उत्सर्जन निहारिका (Emission): इस तरह की निहारिकाये सबसे सुंदर और रंग बिरंगी होती है। ये नये बन रहे तारों से प्रकाशित होती है। विभिन्न तरह के रंग भिन्न तरह की गैसों और धूल की संरचना के कारण पैदा होते है। सामान्यतः एक बड़ी दूरबीन (8+ इंच) से उत्सर्जन निहारीका के लगभग सभी रंग देखे जा सकते है। तस्वीर मे सभी रंगो को देखने के लिये लम्बे-एक्स्पोजर से तस्वीर लेनी पढ़ती है।
चील निहारिका(M16) और झील निहारिका (Lagoon या M8) इस तरह की निहारिका के उदाहरण है। M16 मे तीन अलग अलग गैसों के स्तंभ देखे जा सकते है। यह तस्वीर हब्बल से ली गयी है और इसे साधारण दूरबीन से इतना स्पष्ट नही देखा जा सकता। इस स्तंभो के अंदर नये बने तारे है, जिनसे बहने वाली सौर वायु आसपास की गैस और धूल को दूर बहा रही है। इसमे सबसे बड़ा स्तंभ 10 प्रकाश वर्ष ऊंचा और 1 प्रकाश वर्ष चौड़ा है। इसकी खोज 1764मे हुयी थी और यह हमसे 7000 प्रकाश वर्ष दूर है।
निचले दी गयी M 8 की तस्वीर भी हब्बल दूरबीन से ली गयी है। यह 5200 प्रकाश वर्ष दूर है। इसकी खोज 1747 मे हुयी थी। इसका आकार 140X60 प्रकाश वर्ष है।
परावर्तन निहारिका (Reflection): यह वह निहारीकाये है जो तारों के प्रकाश को परावर्तित करती है, ये तारे या तो निहारिका के अंदर होते है या पास मे होते है। प्लेइडेस निहारिका इसका एक उदाहरण है। इसके तारों का निर्माण लगभग 1000 लाख वर्ष पूर्व हुआ होगा। हमारे सूर्य का निर्माण 5 अरब वर्ष पूर्व हुआ था। ये सितारे धीरे धीरे निहारिकाओ से बाहर आ रहे है।
श्याम निहारिका (Dark): ऐसे तो सभी निहारिकाये श्याम होती है क्योंकि ये प्रकाश उत्पन्न नही करती है। लेकिन विज्ञानी उन निहारिकाओ को श्याम कहते है जो अपने पीछे से आने वाले प्रकाश को एक दीवार की तरह रोक देती है। यही एक कारण है कि हम अपनी आकाशगंगा से बहुत दूर तक नही देख सकते है।
आकाशगंगा मे बहुत सारी श्याम निहारीकाये है, इसलिये विज्ञानियों को प्रकाश के अन्य माध्यमों का(x किरण, CMB) सहारा लेना होता है।
निचले चित्र मे प्रसिद्ध घोड़े के सर के जैसी निहारिका दिखायी दे रही है। यह निहारिका एक अन्य उत्सर्जन निहारिका IC434 के सामने स्थित है।
ग्रहीय निहारिका (Planetary): इन निहारिकाओ का निर्माण उस वक्त होता है जब एक सामान्य तारा एक लाल दानव (red gaint)तारे मे बदल कर अपने बाहरी तहों को उत्सर्जित कर देता है। इस वजह से इनका आकार गोल होता है। चित्र मे बिल्ली की आंखो जैसी निहारिका(Cat’s Eye NGC 6543) दिखायी दे रही है। इस तस्वीर मे तारे के बचे हुये अवशेष भी दिखायी दे रहे है।
दूसरी तस्वीर नयनपटल निहारिका(Retina IC 4406) मे वृताकार चक्र उसके बाजु मे दिखायी दे रहा है। तारे का घूर्णन और चुम्बकिय क्षेत्र इसे वृताकार बना रहा है ना कि एक गोलाकार।
ग्रहीय यह शब्द निहारिकाओ के लिये सही नही है। यह शब्द उस समय से उपयोग मे आ रहा है जब युरेनस और नेप्च्यून की खोज जारी थी। उस समय हमारी आकाशगंगा के बाहर किसी और आकाशगंगा के अस्तित्व की भी जानकारी नही थी।
सुपरनोवा अवशेष: ये निहारिकाये सुपरनोवा विस्फोट के बाद बचे हुये अवशेष है। सुपरनोवा किसी विशाल तारे की मृत्यु के समय उनमें होने वाले भयानक विस्फोट की स्थिति को कहते है। कर्क (Crab) निहारीका इसका एक उदाहरण है।
सितारों के जन्म की प्रक्रिया
सितारों के जन्म के पहली स्थिति है , इंतजार और एक लम्बा इंतजार। धूल और गैस के बादल उस समय तक इंतजार करते है जब तक कोई दूसरा तारा या भारी पिंड इसमे कुछ हलचल ना पैदा कर दे! यह इंतजार हजारों लाखों वर्ष का हो सकता है।
जब कोई भारी पिंड निहारीका के पास से गुजरता है वह अपने गुरुत्वाकर्षण से इसमे लहरे और तरंगे उत्पन्न करता है। कुछ उसी तरह से जैसे किसी प्लास्टिक की बड़ी सी चादर पर कुछ कंचे बिखेर देने के बाद चादर मे एक किनारे पर से या बीच से एक भारी गेंद को लुढका दिया जाये। सारे कंचे भारी गेंद के पथ की ओर जमा होना शुरु हो जायेंगे। धीरे धीरे ये सारे कंचे चादर मे एक जगह जमा हो जाते है।
ठीक इसी तरह निहारिका मे धूल और गैस के कण एक जगह पर संघनित होना शुरु हो जाते है। पदार्थ का यह ढेर उस समय तक जमा होना जारी रहता है जब तक वह एक महाकाय आकार नही ले लेता।
इस स्थिति को पुर्वतारा( protostar) कहते है। जैसे जैसे यह पुर्वतारा बड़ा होता है गुरुत्वाकर्षण इसे छोटा और छोटा करने की कोशिश करता है, जिससे दबाव बढते जाता है, पुर्वतारा गर्म होने लगता है। जैसे साईकिल के ट्युब मे जैसे ज्यादा हवा भरी जाती है ट्युब गर्म होने लगता है।
जैसे ही अत्यधिक दबाव से तापमान 10,000,000 केल्विन तक पहुंचता है नाभिकिय संलयन(Hydrogen Fusion) की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। अब पुर्वतारा एक तारे मे बदल जाता है। वह अपने प्रकाश से प्रकाशित होना शुरू कर देता है। सौर हवाये बचे हुये धूल और गैस को सुदूर अंतरिक्ष मे धकेल देती है।
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सभी परिजनों को इतना गूढ़ ज्ञान बाँटने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद्.
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निहारिका की परिभाषा अच्छी है
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accha knowledge mila is site se
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सृजन-सम्मान द्वारा आयोजित सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक ब्लॉग पुरस्कारों की घोषणा की रेटिंग लिस्ट में आपका ब्लाग देख कर खुशी हुई। बधाई स्वीकारें।
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क्या बात है भाई. जनवरी से नवम्बर बीत रहा है. इतनी आलसी ता भारत सरकार भी नहीं है!
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बंधुवर , आपके चिट्ठे का प्रशंसक हूं मगर ये काफी दिनों से अपडेट नहीं हुआ है। व्यस्त दिनचर्या में से थोड़ा समय हम जैसे ज्ञानपिपासुओं के लिए निकालिये न…
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